मंगलवार, 7 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं होली गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, सुधीर त्यागी, संजय दानी और रेखा भाटिया के साथ।

दोस्तों इस बार बहुत व्यस्तता रही है, और शायद इस बार व्यस्तता सभी की रही है, इसलिए इस बार तरही पर रचनाएँ बहुत कम आई हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि इस बार का मिसरा थोड़ा कठिन सा है। सबसे पहले तो इसकी बहर ही कुछ उलझन पैदा कर रही है, ऐसा कुछ लोगों ने बताया। उसके बाद इस बार का क़ाफ़िया और रदीफ़ भी थोड़ी उलझन कर रहे हैं। ख़ैर जो भी हो, कुछ शायरों ने तो अपनी रचनाएँ भेजी हैं, जिनके साथ हम होली का यह तरही मुशायरा मनाएँगे। मैं भी इस बार बहुत थकान में हूँ। आज ही पुस्तक मेले से लौट कर आया हूँ, कल होली है इसलिए आज ही यह तरही कर रहा हूँ। हर बार की तरह होली की पोस्ट लगाने की कोशिश की, लेकिन थकान ने रोक दिया। ख़ैर जो है जैसी है, होली तो हमको मनानी ही है। यह भी तय है कि बहुत से लोग बाद में अपनी ग़ज़लें भेजेंगे, जिनके साथ हम होली का बासी तरही मुशायरा मनाएँगे।


"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं होली गिरीश पंकज, धर्मेंद्र कुमार सिंह, सुधीर त्यागी, संजय दानी और रेखा भाटिया के साथ।

गिरीश पंकज
प्यार-मोहब्बत-भाईचारा अब हर सू ख़तरे में है
इतने बंट गए लोग यहाँ हिंदी-उर्दू ख़तरे में है
मत इतना निश्चिंत तू हो के आग लगी है दूर कहीं
तुझ तक भी आग ये पहुँचेगी बन्दे सुन तू ख़तरे में है
महंगाई की डायन बढ़ती चली आ रही है देखो
रामभरोसे, राधा, माधव और ननकू ख़तरे में है
ये विकास की नई गन्दगी नष्ट करेगी दुनिया को
नीलगगन बस बचा हुआ है अभी तो भू ख़तरे में है
नफरत की आंधी में अब तो उत्सव भी रोते पंकज
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”

 मतले में ही बहुत अच्छे से हमारी आज की सबसे बड़ी समस्या को चित्रित किया गया है। हिन्दी और उर्दू के बीच की समस्याएँ दोनों के लिए ही ख़तरा हैं। और अगला शेर भी उसी क्रम को आगे बढ़ाता हुआ है कि दूसरे के घर की आग को देख कर निश्चिंत मत रहिए। और उसके बाद महँगाई की डायन के प्रकोप से काँपते हुए घरों की बात है। फिर विकास की गंदगी से नष्ट होते हुई दुनिया को बहुत अच्छे से शेर में कहा गया है। मकते के शेर में गिरह बहुत सुंदरता के साथ बाँधी गई है। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।


धर्मेन्द्र कुमार सिंह
जनता समझ रही बस पूँजी का जादू ख़तरे में है
कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा
रंग, अबीर, गुलाल, फाग रसिया टेसू ख़तरे में है
इनके बिन दुनिया में सबकुछ रंगहीन हो जाएगा
भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है
मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका
नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है
बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता
बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है
जिसने अपनी छाती से ही तोपों का मुंह मोड़ दिया
नोट कुतरते चूहों को लगता बापू ख़तरे में है
बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ
मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है

 वाह क्या ग़ज़ब किया है मतले के शेर में जनता का नादानी पर बहुत ही सुंदरता के साथ कटाक्ष किया गया है। और अगले ही शेर में पर्यावरण की बात को बहुत अच्छे से गिरह में बाँधा गया है। सच कहा गया कि प्यार वफ़ा भाईचारा इन सबके बिना सच में रंगहीन हो जाएगी दुनिया। मालिक और नौकर वाले शेर में क्या छुपा कर व्यंग्य किया गया है, बहुत ख़ूब। माली, उपवन और फूलों का शेर देश के आज के हालात का पूरा ब्यौरा दे रहा है, वाह। नोट कुतरते चूहों के साथ बापू का क़ाफ़िया सुंदरता के साथ आया है। और टट्टू तो कमाल आया है मकते में। वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।


डॉ. सुधीर त्यागी
फागुन में गदराए फूलों की ख़ुशबू ख़तरे में है,
ढोल, नगाड़े, ताशे अब सब का जादू ख़तरे में है।
फीकी रंगत त्योहारों की बाज़ार सभी पे हावी,
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है।
पस मंज़र है एक समंदर खोई-खोई आँखों में,
बर्फ़ जमी है आँखों से दिल तक आँसू ख़तरे में है।
इश्क़ निभाना इश्क़ गँवाना खुश होकर लम्हे जीना,
किस पहलू की बात करूँ मैं हर पहलू ख़तरे में है।
रोशनी तेरे खास मुहाफिज़ जलते कुमकुमे लील गए,
दीयों की क्या बात करें अब तो जुगनू ख़तरे में है।

 मतले में ही होली का पूरा चित्र प्रस्तुत किया गया है। वह होली जो हमारी स्मृतियों में बसी हुई है उस होली का पूरा चित्र। और अगले ही शेर में गिरह का शेर बहुत ही सुंदरता के साथ बना है। समंदर का आँखों में होना और उसके बाद बर्फ़ तथा आँसू का पूरा चित्र बहुत ही कमाल का है। इश्क़ में होना और इश्क़ में नहीं होना फिर याद करना, वहा क्या ही सुंदर तरीक़े से कहा गया है सब कुछ। और अगले शेर में हमारे पिछली दीवाली वाले मिसरे को यहाँ लाकर यादों को ताज़ा किया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।


डॉ संजय दानी दुर्ग
रंग अबीर गुलाल फाग रसिया टेसू ख़तरे में है।
अपने त्यौहारों की बगिया की ख़ुशबू ख़तरे में है।
अब सरकार शराब को पूरी तरह बंद करेगी जल्द,
मुझको लगता है के मोहल्ले के मंदू ख़तरे में है।
तूने छह बहनों वाली औरत से शादी क्यूँ कर की,
मैं दावे से कह सकता हूँ सुन अब तू ख़तरे में है।
जब से बेहद तेज़ उजाले देने वाले बल्ब हुए,
तब से अपना चमकीला साथी जुगनू ख़तरे में है।
जबसे शहर की जनता पनीर की दीवानी हो बैठी है,
तब से सदा बहार हमारा ये आलू खतरे में है। 

सच कहा है कि अपने त्यौहारों की बगिया की सारी ख़ुश्बुएँ अब ख़तरे में ही हैं। अच्छे से मकते में ही गिरह को बाँधा गया है। होली के हास्य को अगले ही शेर में शराबबंदी और मंदुओं की परेशानी में चित्रित किया गया है। और हास्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए छह बहनों वाली महिला से शादी करने की बात को कहा गया है। बल्बों की दुनिया में जुगनुओं के सामने आ रही लुप्त होने की समस्या को अगला शेर अच्छे से कह रहा है। और पनीर के सामने आलू के संकट में घिर जाने की बात भी अच्छे से कही गई है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।


रेखा भाटिया
आज बलम हुए हैं रसिया वीकेंड का दिन है भैया
देख बगिया में डाली-डाली पंछी, पीली-पीली धूप
देख पेड़ों पर खिले जामुनी, सफ़ेद, गुलाबी फूल
आया बसंत दिन हुए नरम-गरम याद आया फागुन
मन पंछी फाग गा रहा परदेस में देस याद आ रहा
वहाँ पहाड़ों पर खिले होंगे टेसू, चंपा, बसंत रानी
होली आते छा जाती थी बसंत उत्सव की मस्ती
खिलता तन-मन साजन-सजनी खेलते प्रेम होली
भर पिचकारी प्रेम के रंगों की रूठने -रिझाने की
पकड़े गए आया खतरे में रंग गुलाल, अबीर का
वही सजनी बनी पत्नी निष्ठावान साजन पति की
आज बलम हुए हैं रसिया वीकेंड का दिन है भैया
आ सजनी मिलकर यादों को थोड़ा ताज़ा कर लें
आ दो चुंबन धर दूँ, गालों पर थोड़ा गुलाल मल दूँ
देख धरा पर, मौसम का मिज़ाज़ है बहुत यौवन पर
आँखें तरेर इठलाती इतराती अकड़ कर बोली पत्नी
ओ बाबू दूर हो, तुम संग न खेलूँ मैं रंग गुलाल, अबीर
ऑर्गेनिक लाल रंग मेरे बालों का, मँहगा है मैनीक्योर
फूलों वाला इत्र, लोशन लगाकर मुझे न भाये रंग निगोड़े
छोड़ ठिठोली शाम होने आई है अभी तो पार्टी टाइम है
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है भैया 

 होली का पूरा चित्र प्रस्तुत कर रही है यह कविता, जिस कविता में भाव भी हैं और हास्य भी है। जिसमें बसंत है, पहाड़ हैं, रंग है, धूप है। और इन बिम्बों को लेकर बहुत सुंदरता के साथ बात कही गई है। साथ ही प्रेमी के साथ छेड़छाड़, गालों पर गुलाल मल देने की बात और चुंबनों से होली मनाने की बात भी इस कविता में प्रेम के रंग लेकर आती है। और मैनीक्योर, ऑर्गेनिक लाल रंग के माध्यम से सहज हास्य भी उत्पन्न किया गया है। बहुत ही सुंदर कविता, वाह वाह वाह।

होली है भाई होली है रंगों वाली होली है। आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आज के पाँचों रचनाकारों ने होली का रंग जमा दिया है। आप भी दाद दीजिए। और यदि आगे रचनाएँ आती हैं, तो हम होली के बासी मुशायरे का भी आनंद लेंगे।

18 टिप्‍पणियां:

  1. आनंद आ गया सब को पढ़ कर। होली का माहौल बन गया।

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  2. यहॉं पूना में तो होलिका दहन कल हो गया और आज होली की धूम है। तरही होली की शुरुआत तो आज हो ही गयी और आनंदपूर्ण रही।
    धर्मेंद्र जी की ग़ज़ल आज का धमाका रही।

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  3. एक बेहतरीन शुरुआत होली के विभिन्न रंगों का कमाल सर चढ़ कर बोलने लगा है …
    धर्मेंद्र जी की लाजवाब आग़ाज़ आम जीवन के विभिन्न रंग समेटे है … आ. गिरीश जी का जादू कमाल कर रहा है … बाक़ी सभी के गीत और ग़ज़ल भी एक से बढ़ कर एक …
    होली का रंग निखार का रहा है … सभी को बहुत बहुत बधाई …

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  4. अरे वाह होली के मुशायरे की शुरुआत हो गई और क्या खूब हुई है। बहुत खूबसूरत रचनाएं पेश की गई हैं।
    प्यार-मोहब्बत-भाईचारा अब हर सू ख़तरे में है
    इतने बंट गए लोग यहाँ हिंदी-उर्दू ख़तरे में है
    वाह सच बयान करता हुआ मतला। आदरणीय गिरीश पंकज जी ने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है।
    धर्मेंद्र जी ने अपने अंदाज़ में हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत और सच्ची ग़ज़ल पेश की है। वाह वाह क्या बात है
    सुधीर त्यागी जी ने तो क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है।बहुत ही ख़ूब। और जिस खूबसूरती से उन्होंने मिसरे बुने है, पढ़ते हुए मज़ा आता है।
    संजय दानी जी ने बहुत मज़ेदार ग़ज़ल पेश की है। और अंत में रेखा भाटिया जी की खूबसूरत कविता। वाह वाह अलग अलग रंगों की बहुत खूबसूरत रचनाएं पढ़ने को मिलीं आज। लेकिन राकेश जी के गीत की कमी खल रही है

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  5. बहुत धन्यवाद 🙏

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  6. सभी ग़ज़ल गो को मुबारकबाद के साथ आप सबको होलो की बधाइयाँ। तरही मुशायरे का आग़ाज़ हो गया अब अंजाम तक मुशायरे का मज़ा आने वाला है।

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  7. सभी रचनाकारों ने बहुत सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की हैं। बहुत बहुत बधाई सभी को और होली की अशेष शुभकामनाएं।

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  8. अरे वाह मुशायरा तो प्रारम्भ हो गया. मैं तीन दिनों से रुकत-चलता यात्रा हूँ. यूपी में होली आज 8 मार्च को है.

    आ० धर्मेन्द्र भाई की गजल प्रदत्त तरह को पूरी तरह से रूपायित करती हुई है.
    आ० गिरीश पंकज जी, सुधीर त्यागीजी तथा संजय दानी जी की प्रस्तुतियाँ प्रासंगिक हैं. संजय भाई ने तनिक हास्य की भी छौंक लगायी है.
    रेखा भाटिया जी की कविता पूरे माहौल को स्वर दे रहा है.
    आयोजन में सम्मिलित सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई.

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  9. वाह वाह शानदार सभी की रचनाएँ 👌आप सभी को भी होली की बहुत बहुत शुभकमनाएं

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