सोमवार, 13 मार्च 2023

आइए आज मनाते हैं बासी होली भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल के साथ

इस बार मिसरा कुछ कठिन होने के कारण प्रतिभागियों की संख्या कम ही रही। उस पर यह भी हुआ कि रदीफ़ और क़ाफ़िया का मेल भी ज़रा कठिन था। असल में इस बार इस बात का ख़तरा बहुत ज़्यादा था कि ज़रा सी असावधानी से रदीफ़ असंबद्ध हो जाएगा। मतलब यह कि उसका पूरे मिसरे से कोई संबंध ही नहीं बचेगा, उसके बिना भी मिसरा मुकम्मल रहेगा। कुछ शायद यह भी कारण रहा और य​ह भी कि इस बार समय भी कुछ कम दिया गया तरही के लिए। जो भी हो फिर भी कई लोग आ गए और मुशायरा हो गया ठीक प्रकार से। हाँ इस बार आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी पहली बार अनुपस्थित रहे हैं, जबसे हमने तरही प्रारंभ की है तब से ऐसा कभी नहीं हुआ। उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो रही है, यदि कोई मित्र उनके बारे में जानकारी प्रदान कर पाएँ तो बहुत अच्छा। उनको किए गए मेल का भी उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं बासी होली भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल के साथ।
भभ्भड़ कवि भौंचक्के
मैं भी ख़तरे में हूँ साथी जब तक तू ख़तरे में है
जुम्मन कैसे चैन से सोये गर अलगू ख़तरे में है
सब अपना सुख-दुख बाँटें यह उनको है मंज़ूर नहीं
पीर-पराई में बहता जो वह आँसू ख़तरे में है
धीरे-धीरे बढ़ता ही आता है नफ़रत का पानी
हम जिस पर हैं प्रेम का वह सुंदर टापू ख़तरे में है
गोदी वालों नया शगूफ़ा जल्दी से कोई छोड़ो
दाढ़ी वाले बाबा का काला जादू ख़तरे में है
कुछ भी नहीं किया हो लेकिन 'आएगा तो फिर वो ही'
उसको बस इतना तो कहना है- 'हिन्दू ख़तरे में है'
जो भी चमकेगा वह उनकी आँखों में चुभ जाएगा
चंदा, सूरज, हर इक तारा, हर जुगनू ख़तरे में है
स्याह 'घृणा-जल' का चलता व्यापार अयोध्या नाम से अब
अविरल, निर्मल, रामप्रिया, पावन सरयू ख़तरे में है
संसद-वंसद, नेता-वेता, मंत्री-वंत्री के कारण
चम्बल, बीहड़ ख़तरे में हैं, हर डाकू ख़तरे में है
हम सब आदम की संतानें यह 'सुबीर' तुम याद रखो
कोई है ख़तरे में तो अपना ही लहू ख़तरे में है

तो यह है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल, यदि ठीक लगे तो दाद दीजिए नहीं तो कोई बाध्यता तो नहीं है। भभ्भड़ कवि का नया उपन्यास 'रूदादे-सफ़र' पढ़ना चाहें तो अमेज़न पर जाकर ऑर्डर कर सकते हैं। https://www.amazon.in/dp/B0BXP1VZXM


9 टिप्‍पणियां:

  1. मुश्किल 'रदीफ' में भी 'ख़तरे' की इतनी सारी संभावनाए निकल आयेगी...अंदाज़ा भी नही था ! गुनी शायरों को सलाम. आपने तो कमाल ही कर दीथा मिस्टर पर्फ़ेक्शनिस्ट.
    हम तो यह कहेंगे कि यह विधा (तरही की) अब ख़तरे में नही है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब गजल है !
    सच है खतरा बहुत है हर तरफ
    https://www.youtube.com/watch?v=z34Xha_vQFE&t=1s

    जवाब देंहटाएं
  3. भौंचक्क रह गये है, भभ्भड़ कवि को सुनकर
    क्योंकर कहे कि प्यार की (अब) गुफ़्तगु ख़तरे में है ?

    (प्यार की गुफ़्तगू = ग़ज़ल)

    जवाब देंहटाएं
  4. हर शेर विचारणीय।सामाजिक सारोकार से चिंतित
    लाज़वाब ग़ज़ल भईया 😊🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया ! दूसरा और तीसरा शेर बहुत सटीक

    जवाब देंहटाएं
  6. गजब। वाह। दाढ़ी वाले बाबा का जादू .............क्या बात है, क्या भिगो के मारा है। हिन्दू खतरे में है तो गजब ढा रहा है। और रुदादे-सफर हम खरीद लिए हैं। पढ़ के बताएंगे जल्दी ही। राकेश जी वाली बात से मुझे भी चिंता हो रही है जिनकी उनसे बातचीत हो रही हो कृपया सूचित करें।

    जवाब देंहटाएं
  7. होली पर दिये मिसरे के दायरे में अच्छी ग़ज़ल आपने प्रस्तुत किया
    बहुत-बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. धीरे-धीरे बढ़ता ही आता है नफ़रत का पानी
    हम जिस पर हैं प्रेम का वह सुंदर टापू ख़तरे में है
    वाह वाह गुरु जी , क्या शानदार ग़ज़ल। आप की ग़ज़ल पढ़कर एहसास होता है कि मुझे अभी कितना कुछ सीखना है।

    जवाब देंहटाएं
  9. आज नजर पड़ी है इस कमाल की ग़ज़ल पर। हर शेर मुकम्मल है और खुलकर वर्तमान के मुख्य प्रश्नों पर चोट करता हुआ, सत्ता को चुनौती देता हुआ। हासिले-तरही तो एस ग़ज़ल ने होना ही था, यह एक प्रेरणा देती है कि शायर की वर्तमान पर पकड़, शब्द सामर्थ्य और रचनाधर्मिता विषय को फिसलने नहीं देती है।

    जवाब देंहटाएं

परिवार