मित्रों दीपावली का त्योहार आ ही गया । मुझे याद पड़ता है कि इस ब्लॉग पर पहला तरही मुशायरा शायद दीपावली को लेकर ही हुआ था। और उसके बाद जाने कितने आयोजन हुए । बाद में फेसबुक और वाट्स अप के कारण ब्लागिंग की चमक धीमे धीमे कम होती चली गई। लेकिन जो बात ब्लॉगिंग में है वह मुझे फेस बुक या वाट्स अप में देखने को नहीं मिली। ब्लॉगिंग में एक प्रकार की आत्मीयता होती थी, सब एक दूसरे के साथ जुड़े होते थे, कहीं कोई इस प्रकार की बात नहीं थी कि उसने मेरे स्टेट्स पर कमेंट किया या नहीं उसने मुझे लाइक किया अथवा नहीं । फेसबुक तथा वाट्स अप पर तो इसको लेकर बाकायदा मन में रिश्तों में दरार पड़ जाती है। मुझे जिसका सामना करना पड़ा। बहुत से अपनों ने यह अरोप लगाया कि मैं उनके फेसबुक स्टेटस पर कभी कमेंट नहीं करता। उनके किसी भी पोस्ट को कभी लाइक नहीं करता । एक बड़े शायर जो मेरे मित्र हैं उन्होंने एक लम्बा मेल मुझे किया कि 'माफ करना फेसबुक तथा वाट्स अप पर मेरी इतनी गतिविधियां रहती हैं लेकिन आपने कभी भी कहीं भी कोई भी कमेंट करने की ज़हमत नहीं उठाई।' अब क्या उत्तर देता उनको। लेकिन हां उसके बाद से उनके और मेरे संबंध अब नहीं के बराबर हैं । ब्लॉग में ऐसा नहीं होता था। ब्लॉग संयुक्त परिवार की तरह था जबकि फेसबुक और वाट्स अप एकल परिवार हैं जिन्हें केवल और केवल अपने से ही मतलब है।
इस ब्लॉग पर भी अब सक्रिय सदस्य बहुत कम हैं । कभी कभी ऐसा लगता है कि मात्र रस्मन हम अब इसे चला रहे हैं। लेकिन हां यह पता चलता है कि पुरानी पोस्टों को कई लोग पढ़ रहे हैं तथा उसका लाभ उठा रहे हैं। क्योंकि रोज कई कई हिट्स इस पर आते हैं। पिछले दो तीन सालों में जब से कुछ सक्रियता कम हुई है तब से ही यहां पर एक लाख हिट्स आ चुके हैं।
आइये आज से हम दीपावली के मुशायरे का शुभारंभ करते हैं। आज शुभारंभ के लिए हम सात समंदर पार जा रहे हैं। जो जुड़े हुए देशों की तरफ एक कनाडा और दूसरा अमेरिका। श्री राकेश खंडेलवाल और श्री निर्मल सिद्धू दोनों ही बहुत परिचित नाम हैं हमारे लिए। इनकी रचनाओं को हम पढ़ते रहे हैं और सराहते रहे हैं। आज सोचा कि दीपावली का पहला पटाखा चलाने का अवसर भारत से बाहर रह कर भारत को और भारतीयता को जिंदा रख रहे इन भारतीयों को दिया जाए।
मिट जायेगा अँधेरा इक बार मुस्कुरा दो
कर दो ज़रा उजाला इक बार मुस्कुरा दो
डूबा वजूद मेरा तारीकियों में कब से
छोड़ो कोई शरारा इक बार मुस्कुरा दो
आओ जलायें दीपक हम चारों ओर दिल के
जगमग करे नज़ारा इक बार मुस्कुरा दो
मावस की रात काली ढल जायेगी तभी जब
आँखो से कर इशारा इक बार मुस्कुरा दो
दीपक जले तो अच्छा दिल ना जले किसी का
जलता रहे ज़माना इक बार मुस्कुरा दो
नफ़रत मिटे जहां से हर सू बसे मुहब्बत
चमके नया सितारा इक बार मुस्कुरा दो
आग़ाज़ रोशनी का कुछ इस तरह करें हम
सबको बंटे उजाला इक बार मुस्कुरा दो
दीपावली जो आती ख़ुशियाँ अनेक लाती
मौसम बने सुहाना इक बार मुस्कुरा दो
वाह वाह वाह क्या दीप जलाए गए हैं। हर शेर दीप पर्व को समर्पित है । आओ जलाएं दीपक हम चारों ओर दिल के जगमग करे नजारा इक बार मुस्कुरा दो। दिल के दीपक जला कर चारों ओर उजाला करने का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया गया है। नफरत मिटे जहां से हर सू बसे मुहब्बत में सर्वे भवन्तु सुखिन: की बात को बहुत ही अलग तरीके से कहने का प्रयास किया है। सबको बंटे उजाला में भी वही भावना है कि जब तक एक भी घर में अँधेरा है तब तक हम दीपावली कैसे मना सकते हैं। दीपावली एक त्यौहार मात्र नहीं है यह तो जीवन में आगे की ओर बढ़ने का एक आयोजन है। बहुत ही अच्छी और सकारात्मक ग़ज़ल। क्या बात है वाह वाह वाह।
श्री राकेश खंडेलवाल
इक बार मुस्कुरा दो तारीकियां हटाने्
मिट जायेगा अंधेरा, मावस चमक उठेगी
जल जायेंगे स्वयं ही कुछ दीप हर डगर में
आ जायेंगे पलट कर गुजरे हुये ज़माने
इक बार मुस्कुरा दो तारीकियां हटाने
जो छा रहा है नभ पर पावस का तम घनेरा
निगले हुये है पथ पर जो चिह्न बन सके हैं
संतोष पी जरा सा, इक सांस ही तो ली है
सोचा है जगमगाये, इस बार तो दिवाली
बीते बरस हैं कितने जंगल की खाक छाने
इक बार मुस्कुरा दो तारीकियां हटाने
ये जल उठेंगे दीपक इक बार मुस्कुरा दो
जीवंत हो उठेगा तब तानसेन खुद ही
तब राग भैरवी भी, दीपक बना बजेगा
मिट जाएगा अंधेरा, इक बार मुस्कुरा दो
मौसम हुआ है आतुर, छेड़े नए तराने
इक बार मुस्कुरा दो तारीकियां मिटाने
इक बार मुस्कुरा दो मावस चमक उठेगी
ढल जाए चौदहवीं में ये रात घनी काली
नभ पर हजार दीपक, हर एक सू जलेंगे
जगमग नई दुल्हन सी ये रात सज सकेगी
बिखरेंगे हर गली में खुशियों भरे ख़ज़ाने
इक बार मुस्कुरा दो तारीकियां मिटाने
ताज के विज्ञापन की पंक्तियां दोहराने की इच्छा हो रही है वाह उस्ताद वाह। सचमुच कमाल के गीत लिखते हैं राकेश जी । आज का यह गीत भी उसी कमाल का एक हिस्सा है। सबसे पहले तो यह कि राकेश जी ने तीनों ही मिसरों का उपयोग इस गीत में कर लिया है। और तीनों पर अलग अलग बंद लिख दिये हैं। जीवंत हो उठेगा तब तानसेन खुद है तब राग भैरवी भी.... वाह क्या कमाल का बिम्ब गढ़ा है । एकदम अलग प्रकार से । ढल जाए चौदहवीं में ये रात घनी काली में भी बहुत ही सुंदर तरीके से नभ पर हजारों दीपकों के जलने का जो चित्र खींचा है वह आंखों के सामने ही नजर आ रहा है। नई दुल्हन की तरह रात के सजने की बात भी अलग तरीके से कही गई है । वाह वाह वाह क्या कमाल का गीत है । दीपावली के सारे रंग समेटे हुए।
तो यह आज के दोनों शायरों की रचनाऍं हैं पढि़ये और दाद दीजिए । अगले अंक में मिलते हैं कुछ और रचनाकारों के साथ ।
बहुत सुन्दर रचनायें दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनायें दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंप्रभु
जवाब देंहटाएंये बात सही है कि आजकल ब्लॉग को बहुत कम लोग पढ़ते हैं , पर पढ़ते हैं। पहले जैसी बात भले न रही हो लेकिन फिर भी ब्लॉग ब्लॉग ही है। फेसबुक पर बने अधिकांश मित्र ब्लॉग के जमाने के ही हैं। हम जैसे खूसट अभी भी वहीं लिख रहे हैं और खुश हैं भले उस लिखे को पढ़ने वाले एक आध ही हों। ब्लॉग पर लिखा बरसों तक सुरक्षित रहता है जबकि फेसबुकमें खड़े र पर शायद एक दिन भी नहीं।
जैसा की मैंने पहले भी कई बायर लिखा है कि इंटरनेट पर बहुत से पोर्टल पर तरही मुशायरे होते रहते हैं लेकिन इस ब्लॉग का मुशायरा हमेशा विशेष होता है। बहुत से मित्र अब तरही पर नहीं आते शायद उनमें से कुछ खुद बदल गए हों और कुछ को ज़माने ने बदल दिया हो कारण चाहे कुछ भी हो कमी अखरती है। यूँ रूठ के कोई घर परिवार छोड़ के थोड़े ही चला जाता है। खैर !!!
मुशायरे का आगाज़ ही जबरदस्त है। निर्मल भाई की कलम का कमाल है कि उनका हर शेर दीपावली के दीपक की तरह जगमगा रहा है। उनकी ग़ज़ल दिवाली के अवसर पर घरों की मुंडेरों पर लगी लड़ियों जैसी है जिसमें रंग बिरंगे बल्ब एक के बाद एक जलते बुझते हैं। ग़ज़ल का प्रभाव दिल में फैले अंधेरों को रोशन करता है। राकेश भाई की क्या बात की जाय जिनके आगे शब्द हाथ जोड़े कतार में खड़े उनकी रचना में आने की प्रतीक्षा करते दिखाई देते हैं। इस सरस्वती के लाडले पुत्र की प्रशंशा शब्दों के माध्यम से करना संभव ही नहीं है। रचना पढ़ते हुए जो भाव मन में उठते हैं उन्हें व्यक्त करने के लिए शब्द बने ही नहीं। हम प्रार्थना करते है कि माँ सरस्वती का वरद हस्त अपने इस विलक्षण पुत्र पर सदा यूँ ही बना रहे। हम उनके स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना करते हैं.
हमसे इन दिनों ग़ज़ल की बेगम रूठी हुई है कारण भी नहीं मालूम बस रूठी है अब कितना भी मनाओ टस से मस नहीं हो रही। हम कोशिश तो करते हैं पर सच बात तो ये है कि उम्र अब मान मनौव्वल के चोंचले करने की इज़ाज़त नहीं देती। इसलिए वो एक कोने में मुंह फुलाये बैठी है और हम दूसरे कोने में। देखते हैं ये रस्साकशी कब तक चलती है तब तक टिपियाने तो आते ही रहेंगे।
मुशायरा चलता रहे और कामयाबी की नयी हदें छुए - आमीन।
नीरज
झिलमिलाते ब्लॉग पर इस धमाकेदार आगाज की बधाई ... सात सनुन्दर पार की गजल और गीत का आनद सच में वाह उस्ताद कहने को मजबूर करता है ... आदरणीय राकेश जी ने सच में शब्दों द्वारा अँधेरे को दूर कर दिया है ... निर्मल जी के शेर भी कमाल कर रहे हैं ... दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें सभी को ...
जवाब देंहटाएंदोनों शायरों की रचनाएँ काबले दाद है और नीरज जी की उपरोक्त टिपण्णी भी काबले दाद है | निर्मल सिद्धू जी का ये शेर :
जवाब देंहटाएं"दीपक जले तो अच्छा दिल न जले किसी का ..." और राकेश खंडेलवाल जी का "ढल जाए चौदहवीं में ये रात घनी काली .... " खास तौर पर अच्छे लगे !
मावस की रात काली ढल जायेगी तभी जब
जवाब देंहटाएंआँखों से कर इशारा इक बार मुस्कुरा दो
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बिखरेंगे हर गली में खुशियों भरे खजाने। ...............
बहुत उम्दा !
बहुत ही ख़ूबसूरत रचनाओं से आगाज़ हुआ है तरही मुशायरे का। दोनों ही रचनाकारों को इन शानदार रचनाओं के लिए बारंबार बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-11-2015) को "अच्छे दिन दिखला दो बाबू" (चर्चा अंक 2154) (चर्चा अंक 2153) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अहा ! दीपावली आ गयी !!
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे ने दस्तक दे दी है. दीपावलीकी शुभकामनाएँ. ..
हम ब्लॉग की दुनिया में कभी थे ही नहीं. जब ब्लॉग का वातावरण अपने तथाकथित ज़ेनिथ पर था हम नेट के इस संसार में नये थे. दूसरे, हमने कभी ऐसा सोचा भी नहीं. हमारा व्यक्तिगत ब्लॉग आज भी नहीं है. हम कुछ मंचों से अवश्य जुड़े हुए हैं. और जब-तब कई समृद्ध मंचों पर अपनी उपस्थिति बनाते रहे हैं.
चार-साढ़े चार वर्षों पूर्व जब ग़ज़ल की विधा के प्रति उत्सुकता बनी तो हम कई जानकार आत्मीय जनों के सम्पर्क में आये. अनुज वीनस केसरी आदरणीय पंकज भाई से हमारे सम्पर्क का कारण बने. तथा, वीनसजी ने ही हमें इस ब्लॉग का यूआरएल दिया था. हम स्पष्ट रूप से कहें, तो ’सुबीर संवाद सेवा’ ने ग़ज़लों के प्रति हमारे व्यवहार को न केवल अनुशासित व विकसित किया, बल्कि हम इस मंच के आलेखों को पढ़-पढ़ कर तिल-तिल पगते गये. ग़ज़लों को हम ओपनबुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) पर ही जान गये थे. लेकिन इस विधा से व्यवहार करना हम इसी मंच पर समझ पाये. लेकिन सर्वोपरि, पंकज भाई के उत्साहवर्धन ने जैसा आत्मविश्वास हममें इन्फ़्यूज किया वह हमारे लिए थाती है. पंकज भाई ने हमें एक ग़ज़लकार के तौर पर घोषित कर दिया. जबकि, सही कहें, तो हमें अब भी संदेह है.
आज के पोस्ट ने अनायास नोस्टैल्जिक कर दिया, पंकज भाई.
आज राकेश खण्डेलवाल भाईजी तथा निर्मल सिद्धू भाई के क्रमशः गीत तथा ग़ज़ल से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है. गीतों के अद्भुत रचनाकार की प्रस्तुति पर क्या कहना. पंकजभाईने समीचीन चर्चा की है. निर्मल भाई की ग़ज़ल दिवाली के दीपों की जगर-मगर से रोशन है. हार्दिक शुभकामनाएँ
शुभ-शुभ
Bahut hi sundar depawali ke dio si jagmagati gajal nirmal ji ki .subhkamnayen dhero nirmal ji. Rakesh ji ko padhna to baar baar padh Apna shabdkosh badhana hota hai aur unke pratiko aur bimbo se Jo chavi utpann hoti hai vo manbhavan hoti hai. Bahut sundar feet rakesh ji shubhkamnayen dheron.
जवाब देंहटाएंपंकज ब्लॉग की दुनिया से जो स्नेह, आत्मीयता और उत्साह मिला। वह फेसबुक और ट्विटर पर कहाँ! ब्लॉग जगत ने ही तो मेरा परिचय आपके इस ब्लॉग से करवाया। तभी से हर तरही मुशायरे में हिस्सा ले रही हूँ, एक दो बार को छोड़ कर। निर्मल सिद्धू की ग़ज़ल और राकेश खण्डेलवाल का गीत अच्छा लगा। दीपावली की शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंब्लॉग ब्लोगिंग और यह ब्लोगजगत तो अद्भूत आनंद का एक समंदर है जो शायद ही कभी खत्म हो।
जवाब देंहटाएंइस प्लैटफ़ार्म पर मुशायरे से छूटना बहुत कुछ छूटने के समान प्रतीत होता है। फिर दिवाली तरही मे शामिल हुये बिना दीपावली का आनंद अधूरा सा लगता है।
तरही का शानदार आगाज हुआ है श्री सिद्धू जी के अशआर और श्री खंडेलवाल जी के सुमधुर गीत से वातावरण पवित्र और दिवालीमय हो गया है।
यह सिलसिला यूं ही चलता रहे....
- सुलभ
बहुत खूब। बहुत ही सुंदर पोस्ट। दीपावली की अग्रिम बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंनिर्मल सिद्धू जी की ग़ज़ल और राकेश भाई साहब का गीत, दोनों ही आश्वस्त करते हैं कि इक बार मुसक्राने से भी बहुत कुछ हो सकता है। मुस्करायें तो सही।
जवाब देंहटाएंमेरा तो निजि अनुभव रहा है कि मुस्कराने में बहुत ताकत होती है और जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कराने की कला जान ली और अपना ली उसने विजय पा ली। विरोधाभासी ही सही लेकिन इस वास्तविकता का अनुभव तो सभी मित्रों को होगा कि अच्छे-अच्छे पत्थर पि
घल जाते हैं मुुस्कराहट की ठंडक से।
इस खूबसूरत शुरुआत के लिये निर्मल जी व राकेश जी को बहुत-बहुत बधाई।
सर्वप्रथम आदरणीय पंकज जी एवं सभी गुरुजनों को दीवाली की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआजकल ब्लॉगs पर कम लोगों का हाज़िरी लगाना एक तथ्य है। उँगलियों के इशारों पर फेसबुक जैसे आधुनिक माध्यम पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराना बहुत आसान है अतः ब्लॉग्स पर अब कम लोग आ रहे हैं। हालांकि ब्लॉग्स अभी भी ज्ञान प्राप्त करने का सबसे सफल माध्यम है।
मैं इस बार देरी से आया हूँ और देर होने के कईँ कारण हैं, मगर यह छोड़ कर तरही की बात करता हूँ
सिद्धू साहब की ग़ज़ल ने खंडेलवाल साहब के गीत के साथ बहुत खूब opening जोड़ी बनाई, जैसे सचिन और सहवाग की थी। क़माल किया है दोनों की रचनाओं ने। तरही की सफल शुरुआत।
दीपक जले तो अच्छा दिल ना जले किसी का
जलता रहे ज़माना इक बार मुस्कुरा दो
इस शे'र के माध्यम से कितना अच्छा सन्देश दिया गया है।
हार्दिक बधाई
नकुल गौतम
नाहन से