मित्रों आज रूप की चतुर्दशी है । दीपावली वैसे तो एक दिन का त्यौहार है लेकिन यह पांच दिन का हो जाता है । धनतेरस से लेकर भाई दूज तक । बिहार और उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों में यह छठ पर्व तक होता है। मालवा अंचल में यह देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है तो कहीं कहीं कार्तिक पूर्णिमा तक होता है। शायद इसीलिए इसको महापर्व कहा जाता है। धन तेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पडवा, भाई दूज, छठ, देव प्रबोधिनी एकादशी, कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्यौहार इस महापर्व में शामिल होते हैं। इस त्यौहार की बात ही कुछ और होती है। आइये आज रूप चतुर्दशी को हम तीन रचनाकारों श्री अश्विनी रमेश, डॉ. सजंय दानी और डॉ. सुधा ओम ढींगरा के साथ बढ़ते हैं तरही मुशायरे में।
अश्विनी रमेश
तम को दिखा दो जलवा, इक बार मुस्कुरा दो
मिट जाएगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो
ये रात की उदासी कटती नहीं अजब है
हो जाएगा सवेरा, इक बार मुस्कुरा दो
ज़ुल्फ़ें अगर उठा दो, हो जाएगा उजाला
चेहरा दमक पड़ेगा, इक बार मुस्कुरा दो
ये रात का अँधेरा, फैला हुआ घनेरा
फिर चाँद खिल उठेगा, इक बार मुस्कुरा दो
दीपावली के दीपों, हो क्या किसी से कम तुम
सूरज चमक उठेगा, इक बार मुस्कुरा दो
सब तोड़ फैंक डालो, दीवारें नफ़रतों की
फिर प्यार ही पलेगा, इक बार मुस्कुरा दो
आज़ाद इस चमन की, कुछ ऐसी हो फ़ज़ा अब
हो प्यार का बसेरा, इक बार मुस्कुरा दो
इस बार का मिसरा सकारात्मक सोच से भरा हुआ है इसलिए सारी ग़ज़लें सकारात्मक सोच के साथ ही आ रही हैं। सब तोड़ फैंक डालो दीवारें नफ़रतों की में बहुत ही सकरात्मक संदेश दिया गया है। सचमुच आज इसी की आवश्यकता है कि हम सारी दीवारें तोड डालें और दिल से दिल के बीच राहें पैदा करें। उसके बाद सचमुच प्यार ही प्यार होगा और कुछ हो भी नहीं सकता । दीपावली के दीपों की सूरज से तुलना का प्रयोग भी खूब बन पड़ा है। ये रात की उदासी कटती नहीं अजब है में मुस्कुराने से सबेरा होने का प्रयोग भी अच्छा बना है। दीपाली की सकारात्मक भावों को लिये हुए यह ग़ज़ल बहुत खूब बनी है। वाह वाह वाह।
डॉ. संजय दानी
बादल अभी छँटेगा, इक बार मुस्कुरा दो,
फिर चांद खिल उठेगा, इक बार मुस्कुरा दो।
होती है तुमको चिढ़ गर, क्यों शांत है मुहल्ला,
हो जाएगा बखेड़ा, इक बार मुस्कुरा दो।
पतवार से ही कश्ती, हरदम हो क्यूं चलाते,
दरिया ही राह देगा, इक बार मुस्कुरा दो।
तुम जुगनुओं की गलियों से आयी हो तो बेशक,
मिट जाएगा अंधेरा, इक बार मुस्कुरा दो।
हर अश्क सिर्फ रोने के वास्ते नहीं है,
आंसू भी हंस पड़ेगा, इक बार मुस्कुरा दो।
गो इश्क़ सिर्फ कांटों पर चलने का है आदी,
अब फूल भी बिछेगा, इक बार मुस्कुरा दो।
पहले तो खूब आनंद के शेर की बात । होती है तुमको चिढ़ गर क्यों शांत मुहल्ला है हो जाएगा बखेड़ा इक बार मुस्कुरा दो। एकदम नास्टेल्जिक कर दिया इस शेर ने । सचमुच वे क्या दिन थे जब किसी के मुस्कुराने भर से पूरा मोहल्ला अशांत हो जाता था। कयास लगते थे कि यह मुस्कुराहट किसके लिये है। दावे होते थे, झगड़े होते थे। और भी पता नहीं क्या क्या होता था। बहुत सटीक चित्रण। पतवार से ही कश्ती चलाने की जगह मुस्कुराहट से दरिया पार करने की बात बहुत गूढ़ार्थ लिए हुए है। हम चाहें तो एक मुस्कुराहट कई काम कर जाती है। जुगनुओं की गली वाला शेर भी खूब बना है। सुंदर ग़ज़ल , वाह वाह वाह।
सुधा ओम ढींगरा
नयनों में भर उजाला, इक बार मुस्करा दो,
तुम सुब्ह का हो तारा, इक बार मुस्करा दो।
शिक्षा का तेल, बाती है ज्ञान की जो इसमें,
दीपक सदा जलेगा, इक बार मुस्करा दो।
भूलो फरेब, धोखे, षडयंत्र सज्जनों के,
रस्ता नया खुलेगा, इक बार मुस्करा दो।
अपनों से जो मिला है, माना है गहरा लेकिन
यह घाव भी भरेगा, इक बार मुस्करा दो।
धोखे की राजनीति, अतृप्त कामनाएं,
इतिहास सब कहेगा, इक बार मुस्करा दो।
ये चांद तारे सूरज देंगे सदा गवाही
गहरा तमस हटेगा, इक बार मुस्करा दो।
शिक्षा का तेल और ज्ञान की बाती का प्रयोग बहुत सुंदर है और उसमें भी दीपक के सदा जलने की बात बहुत खूब है । सच है जिस दीपक में शिक्षा का तेल और ज्ञान की बाती हो वो भला कभी बुझ सकता है। कभी नहीं। बहुत ही सुंदर शेर।फरेब धोखे और षडयंत्र सज्जनों के भूलने वाला शेर बहुत सी दिशाओं में इंगित कर रहा है लेकिन उसके बाद भी वही बात की भूल कर सब मुस्कुरा दो तो नया रास्ता खुल जाएगा। और वैसी ही बात अपनों से मिले घाव में कही गई है कि हर घाव भर जाता है। और अंत में शेर कह रहा है कि यदि आपने अपनी मुस्कुराहट से अंधेरा हटा दिया तो उजालों के प्रतीक सूरज चांद तारे सब आपकी गवाही देंगे। बहुत ही अच्छे जीवन दर्शन से भरी हुई ग़ज़ल । वाह वाह वाह।
तो यह आज के तीनों रचनाकारों की ग़ज़लें हैं खूब कही हैं तीनों ने। आनंद लीजिए और दाद देते रहिये इसलिए कि अब घटते हुए ब्लॉगिंग परिवार को आपकी दाद ही बचा सकती है। उन लोगों पर ज्यादा दाद देने का दंड है जो इस बार शामिल नहीं हो रहे हैं। तो मिलते हैं अगले अंक में।
तीनो ही लाजबाब गजलें।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया परचेत जी।
हटाएंभाई अश्विनीजी, डॉक्टर साहब और आदरणीया सुधाजी की ग़ज़लों से सजा आजका पोस्ट प्रभावी है. हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंसही कहा गया आपने, आदरणीय पंकजभाई, इस बार मिसरा सकारात्मक सोच को खींच ला रहा है. यह शुभकारी है
सादर
शुक्रिया सौरभ जी ।
हटाएंतीनों ही रचनाकारों ने शानदार अश’आर कहे हैं। तीनों ही ग़ज़लें चमचमा कर इस महफिल में चार चाँद लगा रही हैं। बहुत बहुत बधाई आदरणीय रमेश जी, दानी जी एवं आदरणीया सुधा जी को।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया धर्मेन्द्र जी।
हटाएंअति उत्तम
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हटाएंशुक्रिया अनिल जी।
हटाएंरमेश जी की अमन चैन की बातें करती ग़ज़ल तम से सवेरे की ओर जाने की उम्मीद व आश्वासन दे रही है। रात की उदासी वाला शेर अच्छा लगा। रमेश जी उजालों भरी ग़ज़ल के लिए शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसंजय जी की ग़ज़ल ने तो होली का अहसास दिवाली के साथ करा दिया कितनी ख़ूबसूरती से ग़ज़ल कही है वाह वाह। होती है तुमको चिढ़ गर...,,, पतवार से ही ....,, हर अश्क़...,,, गो इश्क़ ....,,, वाह वाह हर शेर लाजवाब।
भूलो फ़रेब ...,, अपनो से मिले..,,,, उफ़्फ़ क्या कमाल शेर हुए हैं सम्बन्धों व समाज की सच्चाई पर। धोखे की राजनीति...,, वाह वाह । बहुत सुन्दर ग़ज़ल सुधा जी शुभकामनाएँ । अनुभवी लेखन से सजी पोस्ट।
दिन ब दिन परवान चढ़ता मुशायरा। ब्लागिंग परिवार छोटा है या बड़ा परिवार का होना महत्वपूर्ण है। वैसे कहते हैं छोटा परिवार सुखी परिवार।
शुक्रिया पारुल जी।
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हटाएंअश्विनी रमेश जी, संजय दाणी जी और सुधा जी तीनों ने बहुत खूबसूरती से निर्वाह किया है रदीफ़ का और खूबसूरत मनोभाव प्रस्तुत किये हैं। आप सब को इस खूबसूरत प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय तिलक राज कपूर जी।
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जवाब देंहटाएंतीनों गजलें इस दीपावली को विशेष बना रही है...
जवाब देंहटाएंहो प्यार का बसेरा (अश्विनी जी)
हो जाएगा बखेरा (दानी जी)
रस्ता नया खुलेगा (सुधा जी)
बहुत खास लगे ...
आप सभी दीपपर्व की मंगलकामनाएँ !!
शुक्रिया सुलभ जी।
जवाब देंहटाएंआप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद साथ ही दीपावली की बधाइयाँ व शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंक्षमा करें रूप चतुर्दशी का पढ़े पर कॉमेंट गोवेर्धन पूजा वाले दिन कर रहा हूँ। दिवाली के दिन गहमागहमी के होते हैं घर में ये करना है वो करना है ये लाना है वो देना है बस इसी में उलझा रहना पड़ता है समय पंख लगा उड़ता नज़र आता है ऐसे में अगर कोई वक्त पे न टिपिया पाये तो उसे क्षमा कर देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंये रात की उदासी ---, जुल्फें अगर उठा दो ---, जैसे शुद्ध प्रेम में डूबे शेरों के साथ समाज को संदेशा देता 'सब तोड़ फेंक डालो ---" जैसा शेर बहुत कमाल के साथ ग़ज़ल में पिरोया गया है इसके लिए अश्विनी जी के लिए ढेरों तालियां -वाह -वाह-वाह---आनंद आ गया।
संजय जी को पहले भी तरही मुशायरों में पढ़ा है और उनकी प्रतिभा को नमन किया है। "होती है तुमको चिढ़ गर ---" लाजवाब शेर बन पड़ा है वाह , दरिया के राह देने की बात हो या आंसू के हंसने का जिक्र हो या इश्क की राह में फूल बिछाने की बात हो संजय साहब का जवाब नहीं है नहीं है। ढेरों दाद संजय जी के लिए।
कविता हो कहानी हो या ग़ज़ल हो सुधाजी की कलम के स्पर्श से सभी विधाएँ जगमगाने लगती हैं। विलक्षण प्रतिभावान सुधा जी बस सुधा जी ही हैं। शिक्षा के तेल के साथ ज्ञान की बाती की कल्पना करना उन्हीं के बस की बात है। अपनों से मिले गहरे घाव के भरने की बात करना सकारात्मक सोच से ही संभव है। धोके की राजनीती का हश्र भी शेर में बखूबी से इंगित किया गया है। सुधा जी को इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल ढेरों दाद। वाह।
ये मुशायरा सही मायनो में ऐसा मुशायरा जो पिछले मुशायरों की तरह ही यादगार रहेगा। इस ब्लॉग का जादू पाठकों के सर चढ़ कर बोलता है , जिन्होंने ने अपनी हाज़री यहाँ इस बार दर्ज नहीं करवाई वो लौटेंगे और धूम धाम से लौटेंगे।
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जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय नीरज गोस्वामी जी । आपकी टिप्पणी भी किसी रोचक शेर से कम नहीं होती जिसको पढ़ने पर आनंद आता है सो आपकी टिपण्णी का खासतौर पर इंतज़ार रहता है ।
जवाब देंहटाएंअश्विन रमेशजी के शेरों पे दाद क्या दें
जवाब देंहटाएंहर लफ़्ज़ बोलता है, इक बार मुस्कुरा दो
सन्देश दे रही है ये लेखनी सुधा की
मावस चमक उठेगी, इक बार मुस्कुरा दो
दानी की गज़ल दीपक बन कर के कह रही है
मिट जायेगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो
शुक्रिया ,आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी।
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