समय का पहिया हर पल चलता रहता है । और उस चलने के क्रम में बीते जाते हैं क्षण, दिन सदियां। हम पुराने होते जाते हैं एक बार फिर से नया होने के लिए। कई दीपावलियां आती हैं और जाती हैं। हम हर बार उसी उत्साह के साथ त्यौहारों को मनाते हैं। और फिर कुछ दिनों तक उदास रहते हैं। पर्व बीत जाने के बाद एक प्रकार का सन्नाटा बस जाता है मन में । खैर यह तो बाद की बातें हैं। आज तो हमको त्यौहार मनाना है। आज तो दीपावली है। आज की रात अंधकार और दीपक के समर की रात है। और इस प्रतीक की रात है कि अंधकार कितना ही घना हो उसे प्रकाश से हारना ही पड़ता है। यही अंधकार की नियति है। तो आप सब को दीपावली की मंगल कामनाऍ आप सबके जीवन में सुख आए, शांति हो और समृद्धि हो। शुभ दीपावली ।
आइये आज दो रचनाकारों के साथ मनाते हैं दीपावली का यह त्यौहार । श्री गिरीश पंकज और श्री पी. सी. गोदियाल 'परचेत' के साथ। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि श्री गिरीश पंकज ने सभी काफियों पर अपनी ग़ज़लें भेजी हैं । मतलब कई ग़ज़लें । यह दीपावली का बोनस है। आइये आनंद लेते हैं।
पी. सी. गोदियाल 'परचेत '
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुरा दो।
इन रिक्त, दीपकों को, कुछ प्रीत की सुरा दो,
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुंरा दो।
जज्बाती क्यों सभी के, मंसूबे लग रहे है,
मायूसियों के तम में, सब डूबे लग रहे है,
घी त्याग का ज़रा सा, हर दीप में गिरा दो,
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुदरा दो।
बांधे कलम सभी को, कुछ प्रेम-पातियों में,
जज्बा सा है झलकता, मिटने का बातियों में,
बलिदानी गुण ज़रा सा, परवानो से चुरा दो,
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुरा दो।
परवानों को अमंगल, कोई खटक न पाये,
दिल दीपकों का देखो हरगिज चटक न पाये,
इस अंधकार को अब, उजियार से हरा दो,
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुंरा दो।
इन रिक्त, दीपकों को, कुछ प्रीत की सुरा दो,
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुंरा दो।
बहुत ही सुंदर गीत है । त्याग के घी से दीपक को जलाने की बात कह कर बहुत ही अच्छा प्रयोग किया है। सचमुच दीपक तो एक प्रतीक ही होता है, वास्तव में तो हमें अपने अंदर के प्रकाश को ही जगाना होता है और यह प्रकाश त्याग और समर्पण के ईंधन से ही आता है। पूरा का पूरा गीत उजाले की लड़ाई का सिपाही है। दीपक के जलने का और उसके जज्बे में परवाने के आकर सुर मिलाने का जो संदेश है वह गीत को बहुत अच्छे स्वर दे रहा है। अंधकार को उजियारे से हराने का भाव लिये यह गीत बहुत ही अच्छे तरीके से दीपावली के भावों को व्यक्त कर रहा है । बहुत ही सुंदर । वाह वाह वाह ।
गिरीश पंकज
हो जाएगा सवेरा, इक बार मुस्करा दो
मिट जाएगा अँधेरा , इक बार मुस्करा दो
कब तक बंधे रहेंगे हम लोग दायरे में,
तोड़ो चलो ये घेरा, इक बार मुस्करा दो
जो कुछ कमाया तुमने, इक दिन न साथ होगा
मेरा न वो तुम्हारा, इक बार मुस्करा दो
सांसो की डोर जाने, कब टूट जाए सोचो
उजड़ेगा ये बसेरा, इक बार मुस्करा दो
जो कल ग़रीब थे अब, दौलत से खेलते हैं
तक़दीर का है फेरा, इक बार मुस्करा दो
यूं ही न बैठो पंकज , मंज़िल है दूर थोड़ी
देखो, उसी ने टेरा, इक बार मुस्करा दो
दीपक उदास देखो, इक बार मुस्करा दो
ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्करा दो
खुशिया जो बांटते हैं धरती के हैं मसीहा
यह बात थोड़ी समझो, इक बार मुस्करा दो
बस एक बात मानो, हो जाएगा उजाला
हौले से लब ये खोलो, इक बार मुस्करा दो
दीपों से जगमगा दो, भागेगा ख़ुद अँधेरा
गर ये नसीब ना हो, इक बार मुस्करा दो
हँसने से आदमी का, बढ़ता है खून पंकज
अब और कुछ न सोचो, इक बार मुस्करा दो
दिल की कली खिलेगी, इक बार मुस्करा दो
फिर ज़िंदगी हँसेगी, इक बार मुस्करा दो
जब भी दिखा अँधेरा दीपक जला दिया है
फिर से शमा जलेगी, इक बार मुस्करा दो
हिम्मत न हारना तू , माना बिगड़ गयी है
यह बात फिर बनेगी, इक बार मुस्करा दो
ठहरा है वक़्त क्योंके हम भी ठहर गए हैं
ताज़ा हवा बहेगी, इक बार मुस्करा दो
लक्ष्मी भले हो रूठी, पर पूजना तू दिल से
आकर वही कहेगी, इक बार मुस्करा दो
पतझर से जो लड़ेगा, जीतेगा ज़िंदगी में
पावस चमक उठेगी, इक बार मुस्करा दो
दुनिया नयी बसाने, इक बार मुस्करा दो
बिगड़ी चलो बनाने, इक बार मुस्करा दो
रहता नहीं जहाँ में, सदियों तलक अँधेरा
तारीकियां मिटाने, इक बार मुस्करा दो
मनहूसियत अँधेरा, मुस्कान है उजाला
करना न अब बहाने, इक बार मुस्करा दो
भूलो पुरानी बातें, जो दिल दुखा रही हैं
छेड़ो नए तराने, इक बार मुस्करा दो
हमसे अँधेरे पंकज, अब हार मानते हैं
फिर शम्मा तुम जलाने, इक बार मुस्करा दो
उफ क्या ग़ज़लें कही हैं। गिरीश पंकज जी ने । एक साथ चारों मिसरों पर ग़ज़लें कह दी है। जो कुछ कमाया तुमने, इक दिन न साथ होगा में दर्शन का बहुत ही सुंदर तरीके से उपयोग किया गया है। दुनिया और इसकी वस्तुओं के फानी होने को बहुत ही अच्छे ढंग से कहा है । वाह। हँसने से आदमी का, बढ़ता है खून पंकज में विज्ञान का प्रयोग किया है और हँसने मुस्कुराने की बात को क्या खूब बल दिया है। हँसने से खून बढ़ता है सचमुच । पतझर से जो लड़ेगा, जीतेगा ज़िंदगी में हौसलों का शेर है जो खूब अच्छे से बांधा गया है। वाह वाह वाह। चौथी ग़ज़ल में मनहूसियत अँधेरा, मुस्कान है उजाला में क्या बात कही है वाह ऐसा लगता है मानो मिसरे के अंदर की बात को पकड़ लिया है। बहुत ही सुंदर हैं चारों ग़ज़लें । क्या बात क्या बात। वाह वाह वाह।
आप सब को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं । दीपावली शुभ हो मंगलमय हो । आनंद करें । खूब खुश रहें। रचते रहें। और सबके साथ रहें। जय हो।
बहुत-बहुत धन्यवाद . पहले भी कुछ मित्रो की कुछ ग़ज़लें प्रकाशित हुयी हैं, इन सभी साथियों को भी बधाई
बहत खूब । दोनों ग़ज़लकारों ने बहत खूब ग़ज़लें कही हैं ।
जवाब देंहटाएंदीपावली के शुभ अवसर पर आदरणीय गिरीश पंकजजी ने तो ग़ज़लों की अवलियाँ सजा दी हैं ! मन तृप्त हुआ मुग्ध है। हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पीसी गोदियाल 'परचेत' जी के गीत में सामयिक परिस्थितियों के प्रति न केवल नकार है बल्कि आत्मीय विचार भी है जो गीतों का अन्योन्याश्रय पहलू हुआ करता है किन्तु कई कारण हैं, आजके गीत सुझाव-सलाह-संवाद की प्रक्रिया से निर्लिप्त होते जा रहे हैं। परचेत भाईजी को इस आत्मीयता के लिएबार-बार साधुवाद।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदीपावली पर एक नया परिचय हुआ परचेत जी के रूप में। बहुत खूबसूरत गीत है।
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी ने चारों मिसरों पर तरही प्रस्तुत कर सिद्ध कर दिया कि इस मंच पर कठिनतम परिस्थितियों में भी सहज सरल ग़ज़ल कहने की क्षमता बहुतों में है।
परचेत जी व पंकज जी बधाई के पात्र हैं।
सभी मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी को दीपावाली के इस पर्व की बेहतरीन शुभकामनाएँ हों। ग़ज़लों को पढ़ते एक सार्थक खुशी का अहसास हुआ। अभी गिरीश पंकज जी चार अलग अलग काफिये के साथ अर्थपूर्ण ग़ज़ल पढ़ी । बहुत बहुत बधाई गिरीश जी और सभी गज़लों के महारथी जो सीखने सिखाने में पहल करते आए हैं आज अक। सबसे ज्यादा खुशी हुई सुधा ॐ की ग़ज़ल पढ़कर...वाह...... बस वाह.....! लय... ताल और अदायगी ..... ग़ज़ब ....बधाई सुधा जी
जवाब देंहटाएंभाई मैं क्यों न लिख पाई, यह बाद में सोचूँगी, आज अभी अभी मुतासिर होकर जो लिखा है वही मतला और मक्ता हो तो.......इक बार मुस्करा दो। मेरी सोच को हवा दो...... सुबीर बधाई ऐसे सुंदर खुशनुमा मिसरे के लिए, जो सब में जान फूँक देता है।
दीपक बुझे जला दो, इक बार मुस्करा दो
अब फासले मिटा दो, इक बार मुस्करा दो
दिल में सुलग रही जो नफरत की आग ‘देवी’
चिंगारी वो बुझा दो, इक बार मुस्करा दो
पी.सी. (परचेत) जी के गीत "ये जल उठेंगे तुम जो, इक बार मुस्कुरा दो" बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी ने जीतने मिसरो से दीपमालाएँ सजायी है - इस पर कुछ कहते नहीं बन रहा है।
क्या खूब प्रस्तुति है!! वाह वाह वाह !!
आप सभी को दीप पर्व की मंगलकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंबधाई दोनों रचनाकारों को ।
जवाब देंहटाएंगोदियाल साहब ने और पंकज जी ने सचमुच रंग जमा दिया है। बहुत बहुत बधाई दोनों रचनाकारों को इन शानदार रचनाओं के लिए।
जवाब देंहटाएंभाई पंकज, गोदियालजी,क्या आतिशबाजी छेड़ी है
जवाब देंहटाएंगज़ल-गीत में उतरी आकर सचमुच में जैसे दीवाली
इस मावस में चार चाँद संग लेकर जड़ने पंकज आये
गोदियालजी की रचना पर रुकती नहीं हाथ की ताली