तरही को लेकर लोगों में उत्साह धीरे धीरे बढ़ना शुरू होता है । हम भारतीय लोग बिजली का बिल भरने तक के लिये अंतिम तिथि का इंतज़ार करते हैं । तो ये तो तरही मुशायरा है । इस बार ग़जल़ें धीरे धीरे आना शुरू हुईं और अभी भी आ रही हैं । इस बार का तरही मुशायरा हमने समाजिक सरोकारों पर केन्द्रित रखने का तय किया है । ऐसा नहीं है कि अब तक के मुशायरों में ये सामाजिक सरोकार नहीं होता था । मगर इस बार पूरा मुशायरा ही सामाजिक सरोकार पर केन्द्रित होगा । इस बार हमने बहरे मुजारे को लिया है । बहरे मुजारे गाई जाने वाली बहर है । जिसकी कई कई उप बहरें गाने में बहुत मधुर हैं । हमने जो बहर ली है वो है बहरे मुजारे मुसमन अखरब ये तो खूब गाई जाने वाली बहर है ही । आइये मुजारे की एक और उपबहर के बारे में जानते हैं ।
बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ महजूफ ( मफऊलु-फाएलातु-मुफाईलु-फाएलुन 221-2121-1221-212 ) यह तो काफी सुप्रसिद्ध बहर है । इस पर काफी काफी काम होता है । मुशायरों में इस बहर पर खूब खूब ग़ज़लें पढ़ी जाती हैं । और उमराव जान का मशहूर गीत 'दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये' तो आप जानते ही हैं ।
''ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है''
आइये आज सुनते हैं दो शायरों से उनकी ग़ज़लें सुनते हैं । धर्मेन्द्र कुमार सिंह से तो हम सब खूब खूब परिचित हैं । नवनीत शर्मा संभवत: मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं । सो प्रथम आगमन पर पूरे ग़ज़ल गांव की ओर से उनका स्वागत है ।
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
घर से न राम निकले इतनी ही सब कथा है
गद्दी पे फिर भी बैठी क्यूँ मूक पादुका है
इतना मुझे बता दे किस जुर्म की सजा है
ये कैद-ए-बामुशक्कत जो तूने की अता है
हर धार खुद-ब-खुद है नीचे की ओर बहती
ये कौन पंप दौलत ऊपर को खींचता है
कथनी को छोड़कर वो करनी पे जब से आया
तब से ही मीडिया की नज़रों से गिर गया है
ब्लड बैंक खोलकर जो करता है अब कमाई
इतिहास देखिएगा खटमल वही रहा है
मरना है कर्ज में ही कर लाख तू किसानी
ये संविधान है या शोषक की संविदा है
नेता का पुत्र नेता मंत्री का पुत्र मंत्री
गणतंत्र गर यही है तो राजतंत्र क्या है
झूठे मुहावरों से हमको न यूँ डराओ
आँतों को काट देगा पिद्दी का शोरबा है
नेता का पुत्र नेता, मंत्री का पुत्र मंत्री, गणतंत्र गर यही है तो राजतंत्र क्या है, बिना किसी का नाम लिये बहुत खूब कहा है । मरना है कर्ज में ही कर लाख तू किसानी, में बहुत प्रभावी तरीके से देश की एक प्रमुख समस्या को उभारा है । हर धार खुद ब खुद है नीचे की ओर बहती में पूंजीवाद और भ्रष्टाचार को प्रतीक के माध्यम से खूब अभिव्यक्त किया है । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
नवनीत शर्मा
माँगी थी धूप मैंने बस जुर्म ये हुआ है
यह क़ैदे बा मशक़्क़त जो तूने की अता है
मेहनतकशों को सूखी रोटी भी है ग़नीमत
जो दुम हिलाएं उनको बादाम-नाश्ता है
गुफ़्तार से कहाँ है ग़ुर्बत का तोड़ कोई
संसद से हाइवे तक सदियों का फ़ासला है
कैसे निजात देंगे उनको भला दिलासे
फ़ाक़ों से अब भी जिनका दिन-रात वास्ता है
मौसम तमाम दुश्मन दुश्वार सांस लेना
हम जी रहे हैं फिर भी अपना ये हौसला है
वो सो रहा है कब से जिसको जगाना चाहूं
मैं रह रहा हूं जिसमें वो शख्स लापता है
आजाद हो गया हूं लेकिन गुलामियों का
साया सा इक बराबर मेरे साथ चल रहा है
वो सो रहा है कबसे जिसको जगाना चाहूं, बहुत बढि़या तरीके से बात कही है । मैं रहा रहा हूं जिसमें वो शख्स लापता है बहुत सुंदर । कैसे निजात देंगे उनको भला दिलासे, शेर अंतिम छोर पर खड़े आदमी के हक़ में खड़ा हुआ दिखाई देता है । और गुफ्तार से कहां है शेर में मिसरा सानी में संसद से हाइवे तक जो सदियों का फासला है वो खूब बना है । बहुत सुंदर ग़ज़ल । वाह वाह वाह ।
तो ये आज के दोनों शायरों की दो महत्वपूर्ण ग़ज़लें । इनका आनंद लीजिये और दाद दीजिये । मिलते हैं अगले अंक में कुछ और ग़जल़ों के साथ ।
दोनों ग़ज़लकारों को मुबारकबाद्।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी--गणतंत्र गर यही तो राजतंत्र क्या है।
नवनीत जी--मेहनतकशों को सूखी रोटी भी ग़नीमत्।
बेहतरीन श"र्।
शुक्रिया दानी साहब
हटाएंशुक्रिया जनाब।
हटाएंमेरे इन नौजवान भाईयों ने जिस खूबसूरती से आज के हालात को बॉंधा है वह मुझे लगता है कि उन्हें भी प्रेरित करेगा जिन्होंने अभी ग़ज़ल नहीं भेजी है। हालात हमारे आस-पास बिखरे पढ़े हैं ज़रूरत है उनपर नज़र डालने की और शेर का रूप देने की। आज की स्थिति पर बेहतरीन कटाक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। दोनों ग़ज़ल एक ही सरोकार रखे हुए हैं लेकिन फिर दोनों में यह अंतर स्पष्ट हो रहा है कि शायर अलग हैं।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी हमारी सांस्कृतिक प्रेरणा 'मनसा-वाचा-कर्मणा' एक होने पर बल देती है अत: मीडिया की परवाह न कर करनी पर ही ध्यान रखना चाहिये। आपके शेर के पात्र को सलाम।
नवनीत जी बहुत गहरी बात कह गये 'वो सो रहा है..' में लेकिन आज के सरोकारों में शायद यही ऐसा है जिसपर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं।
बेहतरीन अश'आर के लिये आप दोनों को बधाई।
बहुत बहुत शुक्रिया तिलक राज जी
हटाएंआपका स्नेह मिला, धन्यवाद।
हटाएंधर्मेन्द्र जी ने कमाल ग़ज़ल कही है। कथनी -करनी वाला शेर हो या व्यंग के नश्तर चुभोता खटमल वाला, नेता का पुत्र नेता वाला हो या पीद्दी के शोरबे वाला सभी अद्भुत हैं और नवीनता लिए हुए हैं। आनंद आ गया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंनवीन जी को मैंने उनके ब्लॉग पर पढ़ा है , अगर मैं गलत नहीं हूँ तो वो हमारे द्विज साहब के भाई हैं। उनके बादाम -नाश्ता , संसद से हाई वे ,कैसे निजात देंगे , वो शख्स लापता है जैसे शेर गज़ब के हैं और लम्बे समय तक ज़ेहन में बसने की काबलियत रखते हैं।
दोनों शायरों को मेरी और से ढेरों दाद।
नीरज
बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी
हटाएंभाई नीरज गोस्वामी जी, आपसे प्रशंसा पाने का सुख मैं ले रहा हूं।
हटाएंधर्मेन्द्र भाई जी, जब गिरह बांधते हैं तो देखते बनता है।
जवाब देंहटाएंऔर आज जो मौका मिला उन्हें समूचे राज और समाज को बांधने का, तो क्या खूब कस कर बाँधा है, बस वाह वाह और मंत्री पिता पुत्र के लिए हाय हाय निकल रहे हैं।
बहुत बहुत बधाई सज्जन जी को !!
सुलभ जी, बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंनवनीत भाई जी, आपका बहुत बहुत स्वागत है। नवनीत जी को बीच बीच सुनने पढने को मिल जाता है, पूर्व में सतपाल जी ने मिलवाया था।
जवाब देंहटाएंकुछ शेर जो उनके तरकश से निकले है,,, बड़ी दूर तक साथ चलेंगे। ये तय है।
बहुत बहुत शुक्रिया !!
सुलभ भाई साहब, दिल से आभार।
हटाएंमुशायरा का दूसरा अंक सामने है. धर्मेन्द्र भाई जी की ग़ज़लों की एक अलग पहचान है. इस बार भी आपकी ग़ज़ल के कई शेर अपनी रौ में हैं. इन अश’आर को कोई बार-बार सुनना चाहेगा--
जवाब देंहटाएंकथनी को छोड़ कर वो करनी पे जबसे आया.. .
मरना है कर्ज़ में ही कर लाख तू किसानी.. .
नेता का पुत्र नेता मंत्री का पुत्र मंत्री.. .
धर्मेन्द्रजी को अतिशय बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
भाई नवनीत शर्मा जी को पहली बार सुनना बहुत ही भला लगा है. आपकी ग़ज़ल मतले से जो समा बाँधती है उसका अंदाज़ आखिरी शेर तक बरक़रार रहता है. आपके प्रति अपेक्षाएँ बनी हैं. जिस प्रभा के आलोक में यह मुशायरा आयोजित है, उस लिहाज से नवनीतजी के कई-कई शेर संतुष्ट करते हुए सामने आये हैं.
इन शेरों की तासीर से बिना प्रभावित हुए नहीं रहा जा सकता. -
ग़ुफ़्तार से कहाँ है ग़ुर्बत का तोड़ कोई.. .
वो सो रहा है कबसे जिसको जगाना चाहूँ.. .
आज़ाद हो गया हूँ लेकिन ग़ुलामियों का.. .
लेकिन जिस शेर ने मुझे बार-बार पढ़ने को बाध्य किया है वह अधोलिखित शेर है -
कैसे निजात देंगे उनको भला दिलासे.. . .. वाह-वाह !
यह आने वाली प्रविष्टियों के प्रति भरोसा है.
भाई नवनीतजी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
सौरभ जी, अतिशय धन्यवाद स्वीकार करें और यह अपार स्नेह यूँ ही बरसाते रहें
हटाएंआपका आभार व्यक्त करने में मेरे शब्द असमर्थ हैं आदरणीय। धन्यवाद।
हटाएंदोनों ही गज़लों का रूह सामाजिक सरोकारों की कहानी कह रही है ...
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी तो वैसे भी गज़लों में वर्तमान परिवेश को बाखूबी लिखते हैं ... उनके सभी शेर.. इतना मुझे बता दे ... या ब्लड बेंक खोल कर ... या झूठे मुहावरे ... सभी कमाल कर रहे हैं ... गण तंत्र ओर राज तंत्र वाला शेर तो करार प्रहार है ...
नवनीत जी का भी स्वागत है गज़ल गाँव में ... संसद से हाइवे तक ... या फिर मेहनतकशों को सूखी रोटी ... दोनों ही वास्तविकता बयान कर रहे हैं ... ओर वो सो रहा हैं कब से ... तो जैसे अपनी अंतरात्मा को तलाश करता हुवा शेर है ...
स्वागत ओर बधाई है दोनों को ....
बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी
हटाएंBHAI NAVNEET JI , AAPKAA YE SHER MAINE APNEE NOTE BOOK MEIN DARZ KAR LIYAA . KYA VYANGYA HAI ISMEIN -
जवाब देंहटाएंAAZAAD HO GAYAA HUN LEKIN GULAAMIYON KAA
SAAYA SAA I BRAABAR MERE SAATH CHAL RAHAA HAI
श्रद्धेय प्राण शर्मा जी, आपकी डायरी की छांव में मेरे शे'र को ठौर मिला....मेरे लिए बायस-ए-फ़ख्र है।
हटाएंअहा क्या बात है ! दोनों ही ग़ज़लें क़माल की हैं! धर्मेन्द्र जी इधर बहुत अच्छी ग़ज़लें कह रहे है, और उससे अच्छी बात तो ये है कि ये लगातार अच्छी ग़ज़ल कह रहे हैं ! इनका एक अलग ही अन्दाज़ है और देसज शब्दों का बहुत आसानी से प्रयोग करते है! और इतना ही नहीं वो माहिर हैं! इस बार भी इन्होने ये सिद्ध कर दिखाया है ! मतला ही सब कुछ कह रहा है ! नेता का पुत्र नेता .. इस शे'र ने वाकई चौंकाया है निहायत ही खुबसूरत शेर है ! बहुत बधाई धर्मेन्द्र जी को !
जवाब देंहटाएंनवनीत जी को इधर कुछ दिनो से पढ रहा हूँ और ख़ासा प्रभावित हूँ ! सच कहूँ तो फैन हो गया हूँ इनका उसी तरह जैसे बडे भाई द्विजेन्द्र जी का !
नवनीत जी बहेद बारिक़ और मज़्बूत शे'र कहते हैं ! इनकी ग़ज़ल में एक रवानगी होती है एक एह्सास होता है जिसे आसानी से मह्सुस किया जा सकता है !
संसद से हाईवे तक ... इस शे'र के क्या कहने भई वाह ! पुरी ग़ज़ल क़माल बनी है ! दिल से करोडो दाद नवनीत जी को और इनका स्वागत है इस ब्लौग पर दिल से !
अर्श
प्रकाश जी इतनी तारीफ़ के लिए धन्यवाद तो बहुत कम होगा। फिर भी बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंअर्श भाई, साथ बना रहेगा। दाद के लिए हज़ार बार धन्यवाद।
हटाएंधर्मेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंब्लड बैंक, पम्प और मीडिया जैसे शब्दों को समेटे हुए अशआर बुलंद आवाज़ में कहते हैं कि यह धर्मेन्द्र सिंह् सज्जन के कलम से निकले हैं जो "हमेशा कुछ नया" की पहचान बनते जा रहे हैं
पूरी ग़ज़ल दुष्यंत की धारा से जुडी हुई है ... कथनी करनी के अंतर पर जो तंज़िया बयान पेश किया है उसके लिए विशेष बधाई
स्पष्ट प्रहार करती इस ग़ज़ल के लिए ढेरो ढेर बधाई
उफ़!! जनाब इस कदर भी तारीफ़ मत कीजिए। दुष्यंत साहब के सामने तो अभी मैं चींटी भी नहीं हूँ। बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंनवनीत जी पहले भी आपको पढ़ने का अवसर मिला है और आज इस महफ़िल में देख कर बेहद खुशी हुई
जवाब देंहटाएंग़ज़ल अपने आप में एक उदाहरण है कि कैसे भाव और तेवर को सुन्दर ढंग से समेटा जाता है
हर एक शेर वर्त्तमान सरोकार के पक्ष में एक सशक्त गवाही है ...
ह्रदय तल से बधाई स्वीकार करें
आख़िरी शेअर के एक शब्द "मेरे" पर काफी देर तक अटक रहा कि क्या इसे बर-वज्न "फ़ा" सबब-ए-खफीफ माना जा सकता है ? क्योकि "रे" साकिन तो हो नहीं रहा ...
आप भी नज़रे सानी फरमाएं
भाई वीनस जी, तारीफ़ के लिए शुक्रिया। जहां तक रे के साकिन होने के संबंध में आपका सवाल है, बेहतर होगा कि अग्रज पंकज सुबीर जी इस पर रोशनी डालें।
हटाएंवाह, दोनों बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया समीर साहब
हटाएंशुक्रिया हुजू़र ।
हटाएंधर्मेन्द्र जी ने अपने अलग और बिंदास अंदाज़ में बहुत ही खूबसूरत शेर कहे हैं. गिरह खूबसूरत है. सभी शेर सामायिक हैं. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंनवनीत जी को अक्सर पढ़ता हूँ. परिपक्व शायर हैं और परिपक्वता इस गज़ल में झलकती है. बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है. दिली मुबारकबाद.
आदरणीय राजीव भाई, हौसलाअफज़ाई के लिए शुक्रिया।
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी
हटाएंआदरणीय धर्मेन्द्र जी वाह क्या गजल कही है हर शेर लाजवाब है खास तोर पर ये दो शेर बहुत पसंद आये है
जवाब देंहटाएंमरना है कर्ज में ही कर लाख तू किसानी
ये संविधान है या शोषक की संविदा है सच कहा है
नेता का पुत्र नेता मंत्री का पुत्र मंत्री
गणतंत्र गर यही है तो राजतंत्र क्या है
क्या बात कही है धर्मेन्द्र जी , आज के हालात को शब्दों में क्या कहा है . आज नेता का पुत्र ही नेता बन सकता है और ना सिर्फ नेता अभिनेता भी सिर्फ अभिनेता का पुत्र और भी बहुत सारी जगह है जहा ऐसा होता है काबिलयित के लिए कोई जगह नहीं है बधाई सर जी इस बेहतरीन गजल के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया तपन जी
हटाएंआदरणीय नवनीत जी
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आपको बधाई, पहली बार इस मुशायरे में शिरकत कर रहे है और पहली बार में ही क्या लिखा है वाह वाह
मेहनतकशों को सूखी रोटी भी है ग़नीमत
जो दुम हिलाएं उनको बादाम-नाश्ता है
अच्छा शेर , हकीकत है , पर जो मजा मेहनत की सुखी रोटी मैं है वो दुम हिला कर खाये बादाम नाश्ते में नहीं।
कैसे निजात देंगे उनको भला दिलासे
फ़ाक़ों से अब भी जिनका दिन-रात वास्ता है
वाह वाह क्या बात है
आदरणीय तपन जी, आपने ग़ज़ल को सराहा, दिल से आभार।
हटाएंदोनों ग़ज़लों में मौजूदा हालात पर करारी चोट की गई है।धर्मेन्द्र जी ने ग़ज़ल में अप्रचलित अल्फाज़ बरते हैं,जो साहस का काम है।नवनीत जी की ग़ज़ल का आखिरी शेर खूब पसंद आया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सौरभ भाई।
हटाएंशुक्रिया सौरभ जी
हटाएंआदरणीय पंकज सुबीर जी का आभार कि उन्होंने ग़ज़ल को स्थान दिया। इस मंच पर पहली बार आया और वास्तव में खुशी हुई। भाई धर्मेंद्र जी की ग़ज़ल ख़ूब भायी।
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा है नवनीत जी। पहली बार आए और इतने बुलंद अश’आर लाए। सुस्वागतम के साथ दिली दाद कुबूल कीजिए। ये दो शे’र तो छप गए हैं जेहन में।
हटाएंवो सो रहा है कब से....
आजाद हो गया हूँ....।
मेरे अदना अश’आर पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
धर्मेन्द्र का अपना अन्दाज़ और नवनीत की अदायगी--दोनों ने ही खूबसूरती से निभाया है
जवाब देंहटाएंआपका आशीर्वाद मिल जाय तो फिर और क्या चाहिए। बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएं# बहुत सामयिक सवाल उठाया है धर्मेन्द्र जी ने : "गणतंत्र गर यही है तो राजतंत्र क्या है"
जवाब देंहटाएं# हर 'धार' खुद-ब-खुद है नीचे की ओर बहती
ये कौन पंप दौलत ऊपर को खींचता है
धर्मेन्द्र जी की 'धार' से प्रेरित होकर उसका बहाव मध्य प्रदेश की तरफ कर दिया है, क्षमा याचना के साथ:
पूजा ही न इबादत इसको उबार पायी,
इक 'धार' एम् .पी . का मंझधार में फंसा है।
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# नवनीत शर्मा :
हक़ीक़त बयानी है तमाम शेरो में।
शुक्रिया मंसूर अली साहब
हटाएंमंसूर अली जी सही कहाँ है आपने मैं धार मप्र से हूँ ये सियासयत इसे मंझदारसे निकलने नहीं देती
हटाएंबेह्तरीन ग़ज़लों के लिये दोनों शायर मुबारकबाद के हक़दार हैं ,,,मुझ से तो एक शेर भी नहीं हो पाया अभी तक :)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया इस्मत जी
हटाएंदोनों ही ग़ज़लकारों ने वर्तमान समय के सरोकारों और सामयिक घटनाओं की नब्ज़ को अच्छे से पकड़ा है। धर्मेन्द्र जी का ये शेर "नेता का पुत्र नेता मंत्री का पुत्र मंत्री ................" बेहद पसंद आया और इस शेर ने "मरना है कर्ज में ही कर लाख तू किसानी ............" ने आम किसान की ज़िन्दगी की हक़ीक़त को अच्छे से उकेरा है।
जवाब देंहटाएंनवनीत जी के ये शेर बहुत पसंद आये "गुफ़्तार से कहाँ है ग़ुर्बत का तोड़ कोई ............", "कैसे निजात देंगे उनको भला दिलासे .........", "वो सो रहा है कब से जिसको जगाना चाहूं ...............", "आजाद हो गया हूं लेकिन गुलामियों का .............". वाह वाह
मज़ा आ गया। बहुत खूब शेर कहे हैं।
बहुत बहुत शुक्रिया अंकित जी
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