गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

तरही मुशायरे को लेकर कुछ मिश्रित सी प्रतिक्रिया आई है, काफी लोगों ने अपनी ग़ज़लें भेज भी दी हैं ।

इस बार के मुशायरे को लेकर मिश्रित सी प्रतिक्रिया है । मिसरे को लेकर कुछ लोगों का कहना है कि कठिन है, तो कुछ लोगों का कहना है कि विषय में बांधने के कारण कुछ कठिनाई हुई है । मगर ऐसे भी लोग हैं जिनकी ग़ज़लें मिसरा घोषित होने के सप्‍ताह भर के अंदर ही प्राप्‍त हो गईं हैं । और बहुत सुंदर ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं । इस बार कुछ नये लोगों की भी ग़जल़ें मिली हैं । आइये आज के पाठ में बहरे मुजारे के बारे में कुछ और विस्‍तार से जानने का प्रयास करते हैं ।

बहरे मुज़ारे ( मुरक्‍कब बहर )

सालिम बहर

इस बार का मिसरा जैसा कि पिछली बार बताया था ये बहरे मुजारे मुसमन अखरब पर आधारित मिसरा है । ये बहर मुरक्‍कब बहर है अर्थात दो प्रकार के रुक्‍नों से मिल कर ये बहर बनी है । मुफाईलुन और फाएलातुन रुक्‍नों से मिलकर मुजारे का सालिम रुक्‍न बनता है । अर्थात बहरे हजज और बहरे रमल के स्‍थाई रुक्‍नों से मिलकर बहरे मुजारे को बनाया गया है । मुजारे की सालिम बहर में मुफाईलुन और फाएलातुन एक के बाद एक दो बार आते हैं । मुफाईलुन-फाएलातुन-मुफाईलुन-फाएलातुन ( बहरे मुज़ारे मुसमन सालिम के रूप में उपयोग में नहीं लाई जाती है, इसकी मुज़ाहिफ़ बहरें ही उपयोग में लाई जाती हैं । )

मुज़ाहिफ़ बहरें

जैसा कि आपको पता होगा कि सालिम बहर के स्‍थाई रुक्‍नों में जब परिवर्तन किया जाता है तो उससे मुज़ाहिफ़  बहरें बनती हैं । परिवर्तन को जि़हाफ़ कहते हैं और जिहाफ़ से बनी बहरें मुज़ाहिफ़ बहरें कहलाती हैं ।

1222-2122-1222-2122  ये बहरे मुजारे का स्‍थाई रुक्‍न विन्‍यास है जिसमें 1222 के बाद 2122 फिर 1222 और अंत में 2122 आता है । बहरे मुज़ारे के सालिम रुक्‍न मुफाईलुन और फाएलातुन हैं । अर्थात यहां पर दो प्रकार के परिवर्तन की गुंजाइश है । पहला तो 1222 में मात्राओं के परिवर्तन के कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न और दूसरा 2122 में मात्रिक परिवर्तन के कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न ।

हमने ग़ज़ल का सफ़र पर बात की थी, जुजों के बारे में । आइये यहां पर भी कुछ जुजों के बारे में बात करते हैं । रुक्‍न के टुकड़ों को  जुज़ कहते हैं । या ये भी कह सकते हैं कि जिन छोटे छोटे खंडों से मिलकर रुक्‍न बनते हैं उनको जुज़ कहते हैं । वैसे तो इनके तीन प्रकार सबब, वतद और फासला होते हैं लेकिन मुज़ारे के संदर्भ में जो जानने योग्‍य हैं वो हैं दो 1 सबब और 2 वतद

सबब कहा जाता है दो मात्रिक व्‍यवस्‍था को और इसके भी दो प्रकार होते हैं ।

सबब-ए-ख़फ़ीफ़- जब दो मात्रिक व्‍यवस्‍था में पहली मात्रा उजागर हो तथा दूसरी उसमें संयुक्‍त हो रही हो । जैसे तुन, मफ, मुस्‍, ऊ, ई, ला आदि आदि । इसको 2 से दर्शाते हैं ।

सबब-ए-सक़ील- जब दो मात्रिक व्‍यवस्‍था में दोनों ही मात्राएं स्‍वतंत्र हों जैसे फए, एल, आदि आदि । इसको 11 से दर्शाते हैं ।

वतद कहा जाता है तीन मात्रिक व्‍यवस्‍था को इसके भी दो प्रकार  हैं ।

वतद मजमुआ- जब दो मात्राएं उजागर हों और तीसरी संयुक्‍त हो रही हो । जैसे मुफा, एलुन आदि आदि । इसको 12 से दर्शाया जाता है ।

वतद मफ़रूफ़- जब पहली मात्रा उजागर हो दूसरी उसमें संयुक्‍त हो रही हो तथा तीसरी स्‍वतंत्र हो । जैसे लातु, आदि आद‍ि ।  इसको 21 से दर्शाया जाता है ।

कुल मिलाकर    बात ये कि जुज़ इस प्रकार होते हैं सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 2, सबब-ए-सक़ील 11, वतद मजमुआ 12, वतद मफ़रूफ़ 21

मुजारे के रुक्‍न दो प्रकार के हैं मुफाईलुन और फाएलातुन । आइये इन रुक्‍नों का जुज़ विन्‍यास देखते हैं ।

मुफाईलुन- मुफा+ई+लुन ( वतद मजमुआ+सबब-ए-ख़फ़ीफ़+सबब-ए-ख़फ़ीफ़)

फाएलातुन- फा+एला+तुन  ( सबब-ए-ख़फ़ीफ़+वतद मजमुआ+सबब-ए-ख़फ़ीफ़)

( नोट: कई जगहों पर फाए+ला+तुन के हिसाब से वज्‍़न लिखा  जाता है )

इन्‍हीं मात्राओं में परिवर्तन करने के फलस्‍वरूप रुक्‍नों का रूप बदलता है और उसके कारण नई ध्‍वनियां उत्‍पन्‍न होती हैं । मुजारे में मुख्‍य रूप से चार प्रकार से मात्राओं का परिवर्तन किया जाता है ( जि़हाफ़) जिसके कारण मुजारे की मुज़ाहिफ बहरों में चार प्रकार के मुज़ाहिफ़ रुक्‍न मिलते हैं । 1 अख़रब 2 मकफूफ 3 महजूफ़ 4 मक़सूर । ये चारों मुज़ाहिफ़ रुक्‍न चार प्रकार के परिवर्तनों (जिहाफ़)  से बनते हैं जिनके नाम क्रमश: 1ख़रब  2 कफ्फ़ 3 हज़फ़ 4 क़स्र हैं । आइये इनके बारे में जानते हैं कि ये क्‍या होते हैं । जिस प्रकार जुज तीन प्रकार के होते हैं उसी प्रकार जिहाफ़ भी तीन प्रकार के होते हैं 1ख़ास, 2 आम, 3 मिश्र । ख़ास जिहाफ़ किसी ख़ास रुक्‍न में होते हैं । आम जिहाफ़ एक से अधिक रुक्‍नों में हो सकते हैं और मिश्र जिहाफ़ का मतलब जब एक ही रुक्‍न में एक से अधिक तरीके से मात्राओं में परिवर्तन किया जाए ।

कफ्फ़ : यह एक 'आम जिहाफ़' है । सात मात्राओं वाले रुक्‍न में यदि अंतिम जुज सबब-ए-ख़फ़ीफ़ है तो उसकी अंतिम संयुक्‍त मात्रा को विलोपित कर देना । जैसे मुफा+ई+लुन के 'लुन' में से 'न' विलोपित कर दिया तो बचा 'लु' और रुक्‍न बना मुफाईलु, इस मुजाहिफ़ रुक्‍न को चूंकि कफ्फ परिवर्तन से बनाया गया है तो इसका नाम होगा 'मकफूफ़' ।

हज़फ़: यह एक 'आम जिहाफ़' है । किसी भी रुक्‍न के अंत में आ रहे सबब-ए-ख़फ़ीफ़ को यदि पूरी तरह से विलोपित कर दिया जाए तो उसको हज़फ़ कहा जाता है । जैसे मुफा+ई+लुन और फा+एला+तुन  में से अंत का पूरा  सबब-ए-ख़फ़ीफ़ 'लुन' 'तुन' विलोपित कर दिया जाए तो बचेंगे क्रमश: मुफा+ई (फऊलुन) तथा फा+एला ( फाएलुन )  । ये मुज़ाहिफ़ रुक्‍न महजूफ कहलाएंगे ।

ख़रब:   यह एक 'मिश्र जिहाफ़' है । मुफा+ई+लुन  में से यदि पहली और अंतिम मात्रा को हटा दिया जाए तो रुक्‍न कुछ ऐसा बचेगा फा+ई+लु ( मफऊलु ) इसे ख़रब कहते हैं । क्‍योंकि दो स्‍थानों से मात्राएं दो जिहाफ़ खिरम ( मुफा में से 'मु' को विलोपित कर देना ) और कफ्फ़ ( लुन में से 'न' को विलोपित कर देना )  का उपयोग कर हटाई गई हैं । इसलिये यह एक मिश्र जिहाफ़ है जो दो प्रकार के जिहाफ़ से मिलकर बना है । इसके कारण बनने वाले मुज़ाहिफ़ रुक्‍न को अख़रब रुक्‍न कहा जाता है ।

क़स्र: यह एक 'आम जिहाफ़' है । फा+एला+तुन  में से यदि अंत की मात्रा को हटा दिया जाए तो बचेगा फा+एला+तु । इसमें भी अंतिम मात्रा की ध्‍वनि को सायलेंट कर देना फाएलान करके ।  फाएलान में अंत का न अक्‍सर सायलेंट होता है। मकसूर रुक्‍न अधिकांशत: बहर का अंतिम रुक्‍न होता है।  वैसे क़स्र और कफ्फ़ बहुत मिलते जुलते परिवर्तन हैं । इसीलिये कई बहरों के साथ लिखा होता है 'मकफूफ़  या मक़सूर' ।

तो इस प्रकार से बहरे मुजारे में पाई जाने वाली मुज़ाहिफ ( रुक्‍नों में मात्राओं के परिवर्तन से बनी बहरें) बहरों में मुख्‍य निम्‍न होती हैं ।

1 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब

2 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब महजूफ

3 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ महजूफ

4 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ मक़सूर

5 बहरे मुजारे मुसमन मकफूफ मक़सूर

6 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मकफूफ

7 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब महजूफ

8 बहरे मुजारे मुसमन अख़रब मक़सूर

9 बहरे मुजारे मुरब्‍बा अख़रब

और मुज़ारे बहर की स्‍थाई ध्‍वनि

10 बहरे मुजारे मुसमन सालिम

इनमें से हमने ठीक पहली ही मुज़ाहिफ़ बहर पर इस बार का मुशायरा घोषित किया है । बहरे मुजारे मुसमन अखरब पर ।

तो इतनी जानकारी से यदि आपके मन में तरही मुशायरे के लिये ग़ज़ल भेजने की इच्‍छा जाग गई हो तो जल्‍दी कीजिये तुरंत अपनी ग़ज़ल भेज दीजिये । क्‍योंकि 15 फरवरी से मुशायरा शुरू हो जाएगा ।

7 टिप्‍पणियां:

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  2. ग़ज़ल और बहर पर, जानकारी से लबालब ये पोस्ट तसल्ली से बैठकर पढने और समझने की है।

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  3. लीजये ये हुआ बहरे मुजारे के बहाने "गागर में सागर"।
    ग़ज़ल तो तैयार है- अभी भेज दे रहा हूँ।

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  4. आज तो सच में गागर में सागर भर दिया है ... आराम से बैठकर समझने वाली बातें हैं ... अनमोल खजाना है धीरे धीरे आत्मसात करने के लिए ...
    मेरी गज़ल भी लगभग तैयार है ... बस भेजना बाकी है ...

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  5. ओह.. !!! ..
    आपकी पोस्ट, आदरणीय, अभी देख रहा हूँ और कतिपय प्रतिक्रियाओं के साथ !.. इत्मिनान से पढ़ीजाने योग्य एवं संग्रहणीय पोस्ट.

    सादर

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  6. ग़ज़ल की बारीकियॉं समेटे यह आलेख एक और कदम आगे बढ़ाता है पिछले आलेख की चर्चा को।
    बहुत से मित्रों को मैंने ए और ऐ तथा इ और ई का उच्‍चारण एक सा करते देखा इसलिये मैं सावधानीवश् ए और इ को य पढ़ता हूँ। मैं सही हूँ या नहीं, ज्ञात नहीं; लेकिन इसमें मुझे सरलता लगी।
    एक नयी बह्र पर एक समविषयक विचार-श्रंखला बॉंधना थोड़ा कठिन तो होता ही है।

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  7. बहुत जरूरी जानकारी। आधारभूत जानकारी के बारे में सच यही है कि वो धीरे धीरे समझ में आती है मगर जब आती है तो मजा आता है।

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