वैसे तो तरही मुशायरा समाप्त हो चुका है लेकिन आज एक विशेष आलेख । इस आलेख में मीनाक्षी धनवंतरी जी ने पूरे तरही मुशायरे से अपने पसंद के शेर छांटे हैं । मीनाक्षी जी पहले तरही में स्वयं भी भाग लेती रहीं हैं, लेकिन आजकल श्रोता की हैसियत से मुशायरे का आनंद लेती हैं । वे अपना स्वयं का ब्लाग प्रेम ही सत्य है चलाती हैं । वरिष्ठ ब्लागर हैं । सुबीर संवाद सेवा के पहले प्रयोग शरद पूर्णिमा पर आयोजित आन लाइन कवि सम्मेलन में उन्होंने भाग लिया था जिसकी स्मृति को उन्होंने आज भी अपने ब्लाग पर सजा रखा है । तो आइये मीनाक्षी जी से ही एक श्रोता की हैसियत से जानते हैं कि तरही में उनके पसंदीदा शेर कौन कौन से रहे ।
पंकज जी...नमस्कार ... आपके मुशायरे में हम शुरु से ही शरीक़ थे और आज आपको अपनी प्रतिक्रिया भेज रहे हैं... चाह नहीं है पोस्ट बने, चाह यही बस समझा जाए, पाठक हरदम श्रद्धा से पढ़ता
पंकज जी मुशायरे की शुरुआत में ही आपने अपनी पहली पोस्ट में लिखा था कि “केवल सूचना के लिये बताना चाह रहा हूं कि इस प्रकार की एक पोस्ट को लगाने में मुझे पूरा दो घंटा लगता है, इसलिये यदि आप यहां केवल 'वाह, बहुत सुंदर, नाइस' जैसी टिप्पणी लगाने आएं हों तो क्षमा करें उससे आप टिप्पणी नहीं ही लगाएं तो बेहतर है । गीतों को पढ़ें आनंद लें और फिर टिप्पणी करें तो लेखक की और मेरी दोनों की मेहनत सफल होगी....”
मैंने आपकी उसी बात को याद रखा ...सोचा कि एक नायाब टिप्पणी कैसे की जाए जिसमें पूरे मुशायरे की बात हो...प्रत्येक पाठक की एक ही रचना पर अलग अलग प्रतिक्रिया हो सकती है, हम हर गज़ल और लिखने वाले का परिचय पढ़ते और आनन्द लेते लेकिन जो शेर दिल मे उतर जाता उसे यहाँ उतार देते...
श्री राकेश खंडेलवाल जी
राह सूनी ज्यों कि हो सिन्दूर के बिन मांग कोई
एक खामोशी लगे जो आप अपने आप खोई
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धर्मेन्द्र कुमार सिंह
हर तरफ अब शोर इतना मन सहम कर चुप हुआ है
''और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी''
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प्रकाश पाखी
बात बंटवारे की लाई गर्मियों की वो दुपहरी
शूल सी दिल में चुभी थी गर्मियों की वो दुपहरी
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रविकांत पांडेय
गंध महुवे की वो मादक, वो टिकोरे आमवाले
याद फ़िर उनकी दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी
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डॉ. आज़म
यू.डब्ल्यू.एम. : किसी हिन्दू को नमाज़ पढ़ते देखा है ...?
हम जवाब दें कि हाँ हमने पढ़ी है और रोज़े भी ऊपर वाले के रहम से तीस के तीस रख पाए...
लू की लपटें, धूप तीखी, और कभी आंधी बवंडर
साथ लाए संगी साथी, गर्मियों की ये दुपहरी
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राजीव भरोल 'राज़'
चिलचिलाती धूप थी और सायबाँ कोई नहीं था,
पूछिए मत कैसे गुज़री गर्मियों की वो दुपहरी.
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लेफ्टिनेंट कर्नल गौतम राजरिशी
चाँद के माथे से टपकेगा पसीना रात भर अब
दे गई है ऐसी धमकी गर्मियों की ये दुपहरी
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कंचन सिंह चौहान
गुड़ छिपा आले में, मटके में मलाई की दही है,
राज़ नानी के बताती, गर्मियों की वो दुपहरी।
“ऐसा मानती हूँ कि कबिरा के ढाई अक्षर का सही अर्थ सिर्फ मैं जानती हूँ और सब बस ऐसे ही कहते हैं। जिंदगी ने बहुत से रिश्ते दिये। खुद को दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति मानती हूँ और सबसे खुश भी”
(इस गौरेया की इसी बात के हम कायल हैं.कंचन को ढेरों शुभकामनाएँ)
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श्री तिलक राज कपूर जी
अब कहॉं मुमकिन मगर दिन काश फिर वो लौट आयें
धूप थी जब चॉंदनी सी, गर्मियों की वो दुपहरी।
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संजय दानी
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी,
याद नानी की दिलाती, गर्मियों की ये दुपहरी।
निर्मल सिद्धू
दूर तक ख़ामोशियां हैं जिस्म सबका है पिघलता
जान सबकी टांग देती गर्मियों की ये दोपहरी
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अंकित सफर
आसमां अब हुक्म दे बस, बारिशें देहलीज़ पर हैं,
लग रही मेहमान जैसी गर्मियों की ये दुपहरी.
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नवीन सी चतुर्वेदी
गर्म कर के आमियाँ, दादी बनाती थी पना जो,
उस पने से मात खाती, गर्मियों की वो दुपहरी.
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दिगम्बर नासवा
खींच के मारा किसी ने आसमाँ पे आज पत्थर
सुबह की डाली से टूटी गर्मियों की ये दोपहरी
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लावण्या दीदी
न बदलीं चाहतें ही , न रंजिशे ही
बदली है तो सर्द हवाएं ,
आज तब्दील हुईं जो लू बन
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श्री गिरीश पंकज जी
तोड़ते हैं पत्थरों को ज़िंदगी के वास्ते कुछ
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
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राणा प्रताप सिंह
पुरसुकूं है गर मिले तो छाँव का बस एक टुकड़ा
पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी
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श्री नीरज गोस्वामी जी
थे पिता बरगद सरीखे और शीतल सी हवा माँ
तो लगा करती थी ठंडी, गर्मियों की वो दुपहरी
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प्रकाश अर्श
रात भी ख़ामोश थी , कोने में दुबकी कसमसाती ,
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी !
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आदरणीया निर्मला कपिला दी
है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे
औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
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शार्दुला नोगजा दीदी
था समय उजली शमीजें पहन कर आती थी गरमी,
जामुनी आँखों में रसमय स्वप्न की भीगी सी नरमी,
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अनन्या सिंह ( हिमांशी )
जो नज़र नीची किये, लिपटी हया की चादरों में
उस नई दुल्हन को लागे शांत, कोमल ये दुपहरी।
वीनस केशरी
आदमी ने किस कदर धरती को लूटा, देख कर अब,
हो रही है लाल-पीली गर्मियों की ये दुपहरी |
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इस्मत जैदी जी
रिश्तों नातों कि वो चाहत ,कुछ नसीहत और दुआएं
इस दफ़ा बस याद लाई , गर्मियों की वो दुपहरी
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सुलभ जायसवाल
टीन की छप्पर जलाती गर्मियों की वो दुपहरी
ताल झरने सब सुखाती गर्मियों की वो दुपहरी
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डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी
अलसाए मन का मौन,
और सन्नाटे में डूबी, गर्मियों की ये दुपहरी.
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डॉ. अज़मल हुसैन ख़ान 'माहक'
थी तपिश अन्दर कि बाहर होश पर काबू न था, उफ़
बेखुदी ही बेखुदी थी गर्मियों की वो दुपहरी.
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विनोद कुमार पांडेय
नहर-नदियों ने बुझाई प्यास खुद के नीर से जब
नभचरों के नैन में दिखने लगी है बेबसी सी
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आदरणीया देवी नागरानी जी
अपनी लू के ही थपेड़े गोया कि खाने लगी है
पानी - पानी गिड़गिड़ाती गर्मियों की ये दुपहरी
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श्री शेष धर तिवारी जी
वो लिपे कमरे की ठंढक और सोंधी सी महक भी
बंद हो कमरे में काटी गर्मियों की वो दुपहरी
नमस्कार सुबीरजी.... अब आपका मेल पढ़ कर रहा नही गया और जवाबी मेल भेज रहे हैं... बताइएगा कैसा लगा...... ज़ुरूरी सूचना: यदि समय की कमी हो तो फिलहाल पोस्ट को न पढ़ें, ये पोस्ट थोड़ा अतिरिक्त समय मांगती है . इस सूचना को पढ़ कर तो एक महीना भी कम रहेगा :) अभी तो सिर्फ 15 दिन हुए हैं आपकी पोस्ट को आए... कम से कम एक महीना तो चाहिए उस पर टिप्पणी करने के लिए... गज़ल लिखना और कहना आपके लिए आसान होगा लेकिन मुझ से पाठक को समझने में बहुत वक्त लगता है...गहरे में जो डुबकी लगानी होती है समझने के लिए .... यादों के गलियारों से आपको देखते हुए परिवार को मिलना सुखद अनुभव रहा...परिवार में सबको यथा योग्य...ख़ास तौर पर खूब सारा प्यार और आशीर्वाद आपकी दो नन्ही परियों को ... अब आपकी सतरंगी गज़लों की इन्द्रधनुषी आभा का चित्र उकेरते हैं.... मेरी पसन्द के सात रंग... जिनमें एक एक शेर छांट कर कुल सात शेरों की ग़ज़ल ( मतला, मकता और गिरह मिलाकर) की कोई सीमा नहीं है...
हर छुअन में इक तपिश है, हर किनारा जल रहा है
है तुम्हारे जिस्म जैसी, गर्मियों की ये दुपहरी
जब तलक तुम थे तो कितनी ख़ुशनुमा लगती थी लेकिन
लग रही अब कितनी सूनी, गर्मियों की ये दुपहरी
है विरहिनी उर्मिला सी, गर्मियों की ये दुपहरी
इसलिये दिन रात जलती, गर्मियों की ये दुपहरी
ख़ुशनुमा मौसम सभी कुछ ख़ास तक महदूद हैं बस
आम इन्सानों को मिलती, गर्मियों की ये दुपहरी
है खड़ी बन कर चुनौती, गर्मियों की ये दुपहरी
आज़माइश की कसौटी, गर्मियों की ये दुपहरी
बुदबुदाई पत्थरों को तोड़ती मज़दूर औरत
राम जाने कब ढलेगी, गर्मियों की ये दुपहरी
याद की गलियों में जाकर, ले रही है चुपके चुपके
बर्फ के गोले की चुसकी, गर्मियों की ये दुपहरी
एक शेर हमारा भी गुरु पंकज के नाम
तन्हाँ खड़ी अकेली जलते देखती जब भी उसे
बेदख़ल सी लगती है गर्मियों की ये दुपहरी
उम्मीद है एक पाठक की टिप्पणी करने का यह अन्दाज़ कुछ तो पसन्द आएगा ही
मीनाक्षी
अपना बहुमूल्य समय निकाल कर, सभी का एक साथ एक ही जगह उत्साह वर्धन करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंएकविषयी आकाश पर शब्दों का इन्द्रधनुष।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विवेचना साथ ही सुन्दर गज़ल की पेशगी भी ख़सूसी है , आभार व बधाई मीनाक्षी जी को।
जवाब देंहटाएंधनवन्तरी जी की पार्खी नज़र के कायल होना पडेगा। ये गर्मिओं की दुपहरी कितनी लम्बी होती है -- इस मुशायरे से ही पता था लेकिन इतनी खूबसूरत होती है ये इस मुशायरे की और खास कर कवि भौंचक्के जी की गज़लों से पता चला। आज तक के सभी मुशायरों से बेहतरीन मुशायरा। धनवन्तरी जी वाह वाह करने वालों को भी निश्चित ही मुशायरा बहुत अच्छा लगा लेकिन कई मेरे जैसो को गज़ल की अधिक समझ न होने या उस्तादों की गज़लों पर कुछ कहने मे निश्चित ही संकोच भी होता है--- और जरूरी नही हर कोई हर जज़्बात को ब्याँ कर सके इस लिये हर टिप्पणी भले ही वाह वाह की हो कुछ कहती है।ीस वाह वाह से ही तो लोग प्रेरणा भी लेते हैं इस लिये मेरा मानना है कि जो भी श्रद्धावश इस ब्लाग पर आया है उसका टिप्पणी न छाप कर अनादर नही होना चाहिये। ये भी तय है कि इस ब्लाग पर वही आता है जिसे इस ब्लाग से प्यक़र है। इसे अन्यथा न लें ये केवल मेरी राय है। और फिर इस गुरूकुल मे किसी का प्रवेश वर्जित नही है इतना तो जानती हूँ। भगवान करे ये परंपरा अनवरत चलती रहे। सुबीर जी को बधाई इस प्रयास के लिये।
जवाब देंहटाएंधन्वन्तरी जी के माध्यम से एक बार फिर हमने वो यादगार पल जी लिए जिनकी बदौलत इस बार की गर्मियां हँसते खेलते कट गयीं. इतनी सारी ग़ज़लों को पढ़ कर हर ग़ज़ल से में से एक ही शेर छाँटना कितना मुश्किल काम है कोई हमसे पूछे...कहना पड़ेगा के उनकी मेहनत रंग लायी है और वो समंदर की तह में जा कर मोती दूंढ लायीं हैं. सबसे मुश्किल काम था प्रातः स्मरणीय भभ्भड़ जी की ग़ज़लों से शेर छांटना क्यूँ की वहां तो मोतियों का खज़ाना ही पड़ा हुआ था. इस समुद्र मंथन जैसे मुश्किल काम को इतनी सार्थकता से अंजाम देने पर उन्हें ढेरों बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंनीरज
itana samay nikal kar sheron ka chayan karnaa badee baat hai.is lagan ko naman..
जवाब देंहटाएंमजा आ गया, ऐसा लगा जैसे गर्मियों की दुपहरी पर एक शानदार ग़ज़ल पढ़ी हो। सबके चुनिंदा अश’आरों को एक जगह पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता है।
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी,
जवाब देंहटाएंआपके प्रयासों की गंभीरता का परिचय है ये पोस्ट। कठिन होता है कहने वाले के शब्दों के मर्म तक पहुँचना इसीलिये ज्ञानी से कठिन होता है मर्मज्ञ होना। अन्य शायरों के विषय में तो मैं नहीं कह सकता, मैं आपके चयन का कायल हुआ। मेरा जो शेर आपने चुना उसमें मुझे स्वये एक अलग ही कशिश दिखाई देती है जो लगभग आधी सदी पीछे छूट गये समयकाल में खींच ले जाती है।
ईश्वर की कृपा से से सभी प्राकृतिक मौसमों का आनंद मैं आज भी उसी शिद्दत से लेता हूँ लेकिन उस मसय की स्वतंत्रता फिर कभी न मिल सकी।
आपको इस सफल प्रयास की हार्दिक बधाई।
मीनक्षी जी , वाह या नाइस जैसी टिप्पणी आपको नहीं चाहिए , यानि आपके इर्द गिर्द बहुत हैं आपके हौसला बढाने वाले , या फिर आपको बुद्धिजीवी ही कम्मेंट करने वाले चाहिए ...हैरान हूँ ...सकारत्मकता किसी को बुरी भी लगती है ...फिर पढने वाले पसंद करने के बावजूद कम्मेंट नहीं देंगे ...
जवाब देंहटाएंक्षमा करें शारदा जी जो बात मीनाक्षी जी ने उद्धृत की है वो मेरे द्वारा लिखी हुई है । उन्होंने उसे केवल कोट किया है अपने आलेख में । ये बात मैंने मुशायरे की पहली पोस्ट पर लिखी थी ।
जवाब देंहटाएंधनवंतरी जी ने तो मेरे मन की बात जान ली. मेरे मन में यही आया था कि अगर हर गज़ल से एक एक शेर लिया जाए तो एक मेगा गज़ल तैयार हो सकती है.. बहुत सुंदर गज़ल तैयार हो गई है.
जवाब देंहटाएंएक और गज़ल हो गई है उन शेरों की जो गुरूजी ने हर पोस्ट के टाइटल में लिए हैं!
सुबीरजी...आपने तो अचानक ही पूरी क्लास के सामने ला खड़ा किया और हम सिर झुकाए स्तब्ध शरमाते हुए खड़े रह गए...सोचा भी नहीं था कि आप पोस्ट बना कर लगा देंगे..
जवाब देंहटाएंसभी से करबद्ध क्षमा ..ख़ासकर @निर्मलाजी.. @शारदाजी....भूल से भी किसी का दिल दुखाने का मेरा कोई इरादा नहीं था....
मीनाक्षी जी पहले तो वाह निकली आप की पोस्ट देख कर , फिर वाह -वाह निकली आप की पोस्ट पढ़ कर | मैं सोचती रही कि कुछ ऐसा किया जाए और समय की कील पर बहाने टांकती रही और आप ने समय निकाल कर वह कर दिखाया जो मेरी सोच में था | आपकी मेहनत और पसंद को सलाम | पंकज तो गुरु हैं क्या कहूँ ...यह बगिया इसी तरह खिली रहे |
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी धनवंतरी जी
जवाब देंहटाएंसबसे पहले इस सुंदर आगाज़ के लिए आपको बधाई हो...ग़ज़ल सांसें ले रही है...सिहर रही है, कंपकपा रही है...सभी भावों को समोह लेते है ये शब्द !!
हर छुअन में इक तपिश है, हर किनारा जल रहा है
है तुम्हारे जिस्म जैसी, गर्मियों की ये दुपहरी
टिप्पणी पर टिप्पणी नहीं करूंगी यह व्यक्तिगत चोइस है...
सुबीर जी को हर सफ़ल प्रयास के लिए बधाई. वैसे यह एक गुरुकुल की मानिंद मंच है जहाँ सब विद्यार्थी भा लेते है...!!
देवी नागरानी
ॐ
जवाब देंहटाएंहो जाये है हर मुश्किल काम आसान
मिल जाये हर किसीको ऐसा कद्रदान
परम गुणी , ज्ञानवंत अनुज के मुशायरों की तो बात ही निराली है जी !!
तिस पर , सोने पे सुहागा जड़ने का काम किया हमारी मीनाक्षी जी ने
मीन नयनों से मोती चुने गये जो , जो , आज यहां दमक रहे हैं ...
रचनाकारों का मनोबल यूं ही बढ़ता है जब् लिखे की कद्र होती है -
मैं, यात्रा और रोजमर्रा की आपाधापी मे , समय नहीं दे पायी उसका रंज है -
पर सभी का लिखा पढ़ा है और पूरे मनोयोग से पढ़ा है और भरपूर आनंद मिला वो साथ रहेगा तब ललक के जब् ये गर्मियां , आकर चली जायेंगीं ...
बस, एक याद बन कर रह जायेंगीं .
आबाद रहे हर लिखनेवाला और उन्हें मंच देनेवाला और संजोनेवाला ...
इंसानियत यहां अपना बेसाख्ता नूर लिए , झलक रही है ...
और मैं , सपनों के भारत मे भ्रमण का सुख पा रही हूँ ..
सादर स स्नेह,
- लावण्या के नमस्ते आप सभी के लिए
आपने बड़ा उपकार किया है मीनाक्षी जी, सो आपका सादर धन्यवाद! समयाभाव के कारण इस बार तरही नहीं देख पाई थी, सो आज आपने ये मोती छाँट कर जो लिख दिए हैं उनको पढ़ कर मन तृप्त हो गया. सुबीर भईया...आपको कैसे धन्यवाद दूँ ... आप एक बड़ी सी दुआ संभालिये ...सस्नेह शार्दुला
जवाब देंहटाएंGuruji Agalla Tahari Mushayara kab shuru ho raha me aapki kaksha ka sabse kamjor vidhyarthi hu par bhaag lena chahta hu isme....
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी की इस विस्तृत टिप्पणी, जो पोस्ट में रूपांतरित हो गई, ने मन को छू लिया| कितने जतन से उन्होने सब की रचनाओ को पढ़ा और फिर एक-एक शेर चुने....उफ़्फ़!!!
जवाब देंहटाएंदुबई में होने के कारन मिनाक्षी जी से बात चीत होती रहती है .. इस तरही की बीच भी उनसे कई बार चर्चा से मुझे लग रहा था की वो कितने नज़दीक से इसको फोलो कर रही हैं ... इस नए अंदाज़ में और पारखी की दृष्टि से उन्होंने पूरा मुशायरा पढ़ा और चुन चुन के मोती निकाले हैं .... बहुत बहुत शुक्रिया मिनाक्षी जी का ...
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से पूरा मुशायरा आखों के सामने से हो कर गुजार गया
जवाब देंहटाएंचुनिन्दा शेर प्रस्तुत करना वास्तव में कठिन काम है मीनाक्षी जी को एक एक शेर चुनने में कितना सोचना पड़ा होगा और जो गज़लें पूरी ही अच्छी थी फिर उनमें से ... अच्छे शेर में से किसी एक को चुनना ...
सोच कर ही पसीना आ जाता है
मीनाक्षी जी को इस महती कार्य के लिए हार्दिक बधाई
मीनाक्षी जी ,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी का ये नया अंदाज़ बहुत ख़ूबसूरत है ,शुक्रिया