इस गीत में क्या है ये कभी नहीं जान पाया । क्यों ये गीत मन को इतना भाता है । पता ही नहीं चलता । ये गीत 1984 में आई फिल्म तरंग का है । फिल्म को कुमार शाहनी ने निर्देशित किया था और ये राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम की फिल्म थी । लम्बे समय तक मैं इस गीत को गुलज़ार साहब का ही गीत समझता रहा । ग़ुलज़ार साहब कि किसी वेब साईट पर इसे उनके गीत के रूप में दिखाया भी गया है । और फिल्म के गीतकार के रूप में गुलज़ार साहब का नाम आता भी है । लेकिन ये गीत गुलज़ार साहब ने नहीं लिखा था । इसी फिल्म का एक और गीत था जो कि गुलज़ार साहब ने लिखा था । लेकिन ये गीत, ये कमाल का गीत लिखा था रघुवीर सहाय ने, रघुवीर सहाय ? जी हां वही सशक्त हिंदी कवि । उन्होंने और फिल्मी गीत ? दरअसल में वे इस फिल्म के लेखन से जुड़े थे । और उसी के चलते ये गीत अस्तित्व में आया ।
श्री रघुवीर सहाय
रघुवीर सहाय के बारे में बस ये कि जन्म: 09 दिसंबर 1929, निधन: 30 दिसंबर 1990 , जन्म स्थान
लखनऊ, प्रमुख कृतियाँ दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो, जल्दी हँसो, लोग भूल गये हैं, कुछ पते कुछ चठ्ठियाँ, एक समय था कविता संग्रह लोग भूल गये हैं के लिये 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार। बाकी उनके काव्य का क्या परिचय दूं । उतनी मेरी हैसियत नहीं है ।
श्री वनराज भाटिया
तरंग वैसे तो ये फिल्म एक आर्ट फिल्म थी लेकिन फिर भी इसमें गीत थे । और गीतों का सृजन किया था वनराज भाटिया ने । वनराज भाटिया को तो आप जानते ही होंगें । वही वनराज भाटिया जिन्होंने अंकुर, निशांत, मंथन, भुमिका, जुनून, कलयुग जैसी फिल्मों में संगीत दिया । 1977 में आई भूमिका के दो गीत 'तुम्हारे बिन जी न लगे घर में' और ' सावन के दिन आये सजनवा आन मिलो' तो आपको याद ही होंगें । प्रीती सागर की आवाज़ में ये दो गीत अनोखे हैं । या फिर जुनून का वह कभी न भूलने वाला गीत 'घिर आई कारी घटा मतवारी सावन की आई बहार रे' । तो वही वनराज भाटिया इस फिलम के संगीतकार थे । फिलम के कलाकार थे अमोल पालेकर और स्मिता पाटिल । हालांकि ये गीत स्मिता पाटील पर नहीं फिल्माया गया था । किस पर फिल्माया गया था मैं नहीं बता सकता क्योंकि कलाकार को मैं नहीं जानता ।
अब लता जी के लिये क्या लिखूं । कितना कुछ तो उन पर लिखा जा चुका है फिर भी ये गीत सुनने से ही लग जाता है कि लता जी क्यों लता जी हैं । इस गीत में उनकी आवाज़ कोहसारों से आती हुई प्रतीत होती है । कभी ऐसा लगता है कि धूंध से ढंके दरख़्तों के साथ ये आवाज़ सरगोशी करती हुई बह रही है । और एक अजीब सी अपूर्णता को समपूरन करने की चाह लिये ये गीत लता जी की आवाज़ की बाहें थामें भटकता है और अंत में शांत हो जाता है । क्या कहूं ।
गीत रघुवीर सहाय का
है और गीत भी क्या है एक यात्रा है । यात्रा उस आनंद की जिसकी तलाश में हर कोई बरसों से भटक रहा है ।
गीत सुनें
( गीत श्री नीरज गोस्वामी जी के सहयोग से तलाशा गया है )
डाउनलोड लिंक
http://www.divshare.com/download/15292631-f73
http://www.archive.org/details/BarseGhanSariRatLataMangeshkarFilmTarang
गीत देखें
बरसे घन सारी रात, सारी रात
संग सो जाओ रे, आओ रे, संग सो जाओ, आओ रे
प्रियतम आओ, प्रिय आओ रे
संग सो जाओ, संग सो जाओ
नहलाओ, सांसों से, तन मेरा
शीतल पानी, याद न आये
सागर नदिया, याद आये
शबनम धुला सबेरा,
शबनम धुला
होठों से तपन बुझाओ, बुझाओ
प्रियतम आओ, आओ रे
संग सो जाओ
कुम्हलाया, उजियारा, मेरे मन में
अंधियारा, घिर आया दर्पण में
क्यूं तन सिहरे, छाया डोले
क्या तुम आये, बांहें खोले
नींद न आई, मधुर समर्पण में
मधुर समर्पण में
नींद आई
अंतिम सिसकी, अंतिम सिसकी
चुंबन से, चुप कर जाओ
कर जाओ
प्रियतम आओ, आओ रे
संग सो जाओ, संग सो जाओ
बरसे घन सारी रात
एहसास में जब आस का पंछी फ़ड़फ़ड़ाता है तब शायद ऐसे गीत जन्म लेते हैं।
जवाब देंहटाएंलता जी की आवाज़ और इतना अच्छा लिखा हुआ गीत. ऊपर से उतनी ही अच्छी धुन. गीत तो अमर होना ही था..
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा गीत है.
सबीरजी...पिछली पोस्ट से ही कक्षा में खड़े हैं..इस पोस्ट के लिए शुक्रिया करना ज़रूरी बनता है क्यों कि संगीत हमेशा मेरी आत्मा पर छाई उदासी की धूल को साफ करता है...कई बार कई गीत सुनकर बहुत कुछ लिखने का मन किया लेकिन आज आपने रास्ता साफ़ कर दिया...हिन्दी कवि...संगीतकार और लताजी के बारे में जानकर गीत और उसके बोल सुनना पढ़ना एक अलग ही एहसास देता है...
जवाब देंहटाएंमन की असीम उत्कण्ठा जब शब्द आकार लेती है तब ऐसी कृति बनती है।
जवाब देंहटाएंऐसे गीतों पर कमेन्ट थोड़े ही किया जाता है...आँखें बंद कर सुना जाता है और आनंद को अपने अन्दर भरा जाता है...बस.
जवाब देंहटाएंनीरज
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जवाब देंहटाएंनीरज जी ने सच कहा आँखें बंद कर के इस गीत को सुनने का एहसास किसरी दूसरी दुनिया मिएँ ले जाता है ...
जवाब देंहटाएंमुझे याद है आपने कुछ महिने पहले इस गीत के लिए गुहार लगाई थी। आज इस गीत को पहली बार सुन रहा हूँ। नीरज जी व आपको आभार ऍसे मोती को ढूँढ निकालने के लिए।
जवाब देंहटाएंसुन लिया आँखें बंद कर के.. दो बार...फिर कई बार....!
जवाब देंहटाएंइस गीत के बारे में विस्तृत जानकारी मिली. शांत माहौल में ऐसे गीत सुनना सदैव आनंद देता है.
जवाब देंहटाएंछुटियाँ काट कर जब नेट प्क़र आओ तो मन नही होता काम करने का लेकिन आते ही आपका ब्लाग खोला तो गीत सुन कर फिर से नई ऊर्जा मिली । बस सुन रही हू\ आनन्द ले रही हूँ। धन्यवाद , शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंपंकज सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
adhbhut ...
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