या कुन्देंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वर दंड मंडित करा, या श्वेत पद्मासना
आज मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस है । मां सरस्वती, जिनके कारण आज हम सब एक सूत्र में इस प्रकार से बंधे हैं । मां को बुद्धि और ज्ञान की देवी कहा गया है लेकिन मुझे लगता है कि मां सरस्वती तो सकले व्यक्तित्व की देवी हैं । वे ही किसी व्यक्ति की चेतना को इस प्रकार से नियंत्रित करती हैं कि कोई गांधी, कोई प्रेमचंद, कोई गा़लिब, कोई तुलसी तो कोई लता मंगेशकर हो जाता है । हम सब उस मां के बहुत ऋणी हैं कि उसने हमें शब्दों के माध्यम से विशिष्ट बना दिया । उसने हमें वाणीपुत्र कहलाने का गौरव प्रदान किया । न हों भले हम ल्क्ष्मीपुत्र, लेकिन हमें गर्व है कि हम वाणी पुत्र हैं । उसने हमें करोंड़ों में से चयनित किया है ये हमारा सौभाग्य है । उसने हमें जीवन भर 99 को 100 करने की जुगाड़ में लगे किसी धनिक के रूप में जीवन काटने से बचा लिया । उसने हमें बचा लिया इस बात से कि हमारे जीवन का एक ही लक्ष्य हो पैसा । हमें उसने शब्दों की सत्ता दी है । हम इस शब्दों की सत्ता के प्रहरी हैं । हम किसी हीरे मोतियों से भरे कोषागार पर कुंडली मार के बैठे सर्प नहीं हैं । हम अपनी रचनाओं के संसार में मस्त होकर झूमते भ्रमर हैं जो हर पुष्प का रसपान करके अपने लिये मधु संचय कर रहे हैं । मधु जो अपने लिये नहीं दूसरों के लिये होगा ।
और आज केवल एक शेर मां के चरणों में अपनी तरफ से सुमन के रूप में समर्पित कर रहा हूं
मुझे वर दे मां, मेरी लेखनी, न कभी झुके, न कभी रुके
मेरे सीने में, यूं ही आग हो, मेरे हाथों में, यूं ही संग हो
नववर्ष तरही मुशायरा
नये साल में नये गुल खिलें नई खुश्बुएं नया रंग हो
आज मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस पर मां वाणी की तीन आराधिकाएं अपने शब्दों के पुष्पों से और अपने भावों चंदन से मां शारदा का पूजन कर रही हैं । आदरणीया निर्मला कपिला जी, आदरणीया लावण्या शाह जी और आदरणीया देवी नागरानी जी की ग़ज़लों से बेहतर और क्या हो सकता था आज के दिन के लिये । तो आज सुनें तीनों कवयित्रियो को ।
आदरणीया निर्मला कपिला जी
नये साल मे सजें महफिलें चलो झूम लें कि उमंग हो
तेरे नाम का पिएं जाम इक खूब जश्न हो नया रंग हो
घटा छा रही उमंगें जवां खिले चेहरे हसीं शोख से
नये साल मे नये गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
तू मुझे कभी नही भूलना किये ख्वाब सब तेरे नाम अब
मेरा प्यार तू मेरे साजना रहूँ खुश तभी कि तू संग हो
कोई रह गया किसी मोड पर नही साथ था नसीबा मेरा
फिरूँ ढूँढती पता खुद का मै कोई खत सा ज्यों कि बैरंग हो
लिखूँ तो गज़ल मिटे दर्द सा भूल जाउँ मै सभी गम अभी
याद जब तलक करूँगी उसे रहूँगी सदा यूँ हि तंग हो
मेरे ख्वाब तो मुझे दें खुशीरहे जोश मे जरा मन मेरा
ए खुदा करो इनायत जरा मेरी ये खुशी नही भंग हो
गुजारे हुये कई साथ पल याद जब करूँ रुलायें मुझे
कौन बावफा कौन बेवफा छिडी मन मे जो कोइ जंग हो
कभी वक्त की नज़ाकत रही कभी वक्त की हिमाकत रही
नही लड सके कभी वक्त से लडे आदमी जो दबंग हो
नहीं गोलियाँ कभी हल रही किसी बात का किसी भी तरह
सभी ओर हो चैन और अमन करो बात जो सही ढंग हो
मिटे वैर और विरोध सा रहें प्यार से सभी देश मे
जियें चैन से ये दुआ करो जमीं पर कभी नही जंग हो
कौन नगर है कौन सी गली जहाँ हो नही कभी शोर सा
जरा होश खो किसी सडक पर युवा जब चलें हुडदंग हो
आदरणीया लावण्या शाह जी
नये साल में नये गुल खिलें , नई खुशबुएँ नया रंग हो
हों बुलंद हौसले सबके और , दिलों में सभी के उमंग हो
दिले बेकली , तू ठहर तो ले, ये सहर हुई, है नई नई
ये चढ़ेगी ऐसे हवाओं में, कोई झूमती, ज्यों पतंग हो
रुत जा रही , रुत आ रही , कुछ झूम के , चुपचाप सी
ये है कहता दिल, मिटे हर तमस, अब रोशनी, की तरंग हो
जो लिखा है सब के नसीब में, वही होना है, हो रहेगा वो
है ये इल्तजा, के दुआ सदा, मेरी मां की बस, मेरे संग हो
मेरे हमनवां, ये जो सिलसिले , ये जो दोस्तों, की हैं महफिलें
ये चलें यूं हीं, न रुकें कभी, कोई हाल हो, कोई ढंग हो
आदरणीया देवी नागरानी जी
नया रँग हो नया ढँग हो, नई आस और उमँग हो
"नए साल में नए गुल खिले, नई हो महक नया रँग हो"
हो न बेवफ़ा कभी वक़्त ये , न गुनाह का कोई अँग हो
हो लहू में बूए -वफ़ा जहाँ, नई ख़ुशबू और तरँग हो
मुझे राहतों की जो छाँव दे , कोई ऐसा भी तो शजर मिले
मेरी रूह को दे सुकून जो , वहाँ बज रहा नया चँग हो
मेरे ज़ख़्म भर के सुकून दे , कोई साज़ ऐसा वो छेड़ दे
जो बजा सके मेरा साज़े -दिल, कोई ऐसा मस्त मलंग हो
मेरा आसमाँ भी ज़मीं भी तू , है क़रीम मेरा वजूद तू
मेरी मुश्किलों को पनाह दे, हर रँग में तेरा रंग हो
न हो माँग सूनी न गोद हो, न जुदाई का कोई ख़ौफ़ हो
है दुआ में कोई असर अगर, न हो हादसे औ' न जंग हो
न शिक्सता हो तू ऐ ज़िंदगी, यहाँ राह सच की है बँदगी
न भरोसा टूटे कभी तेरा , वो है डोर तुम ही पतँग हो
हूं आज का तरही का ये अंक सचमुच ही उस स्तर का है जिस स्तर का समापन का अंक होना चाहिये । तरही का उससे अच्छा समापन और क्या हो सकता था । तो आनंद लीजिये इन ग़जल़ों का और दाद देते रहिये तथा प्रतीक्षा कीजिये अगले तरही मुशायरे का ।
सभी के अशआर बहुत ही सुन्दर और भावपक्छ से सार्थक लगे । आप सभी को बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय निर्मला जी का : कोई रह गया किसी मोड़ पर...
जवाब देंहटाएंआदरणीय लावण्या जी का: मेरे हम नवां ये जो सिलसिले...
और नागरानी दीदी का : न हो मांग सूनी...
वाह..वाह...वाह...सच खा आपने इस से बेहतर इस तरही का समापन हो ही नहीं सकता था...आपको इस कामयाब मुशायरे के लिए हार्दिक बधाई. अब आप सारी जगह जाना लेकिन खोपोली मत आना. यात्रा और कार्यक्रम की सफलता के लिए अग्रिम शुभकामनाएं...
नीरज
निर्मला जी, बहुत अच्छी गज़ल है. शुरू में आपने जब कहा कि मैं इस तरही में लिख नहीं पाऊँगी तो निराशा हुई थी लेकिन आपकी गज़ल देख कर दिल खुश हो गया. आपने इतने सारे काफिये भी ढूंढ लिए और बहुत अच्छे शेर निकाले हैं.. "तू मुझे कभी नहीं..","नहीं गोलियाँ कभी हल रहीं.." बहुत अच्छे लगे..
जवाब देंहटाएंलावण्या जी की गज़ल बहुत अच्छी लगी, "दिले बेकली..","जो लिखा है सब के नसीब में.." खास तौर पर पसंद आये.
देवी नागरानी जी की गज़ल भी पसंद आयी. "हो न बेवफा कभी वक्त ये.."," मेरे ज़ख्म भर के सुकून दे.."अच्छे लगे.
सरस्वती सुताओं की सुन्दर रचनायें बसंत पंचमी के शुभ काल को वासंती रंग प्रदान कर रहीं हैं!बधाई!
जवाब देंहटाएंकित्ती सुन्दर रचनाएँ ....वसंत पंचमी तो बहुत प्यारा त्यौहार है..इसके साथ मौसम भी कित्ता सुहाना हो जाता है. वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!
जवाब देंहटाएं_______________________
'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..
प्रवाह बना रहे।
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती को अर्पित आप का शेर तो कुछ भी कहने के लिए नहीं छोड़ रहा है.
आदरणीय निर्मला जी, लावण्या जी, देवी नागरानी जी की ग़ज़लें इस समापन अंक को एक नयी उंचाई दे रही है.
होली के तरही मुशायेरे का बेसब्री से इंतज़ार है.
आज तो प्रिय छोटे भाई की तरफ से माँ सरस्वती का जो प्रसाद मिला है उसकी खुशी कितनी हुयी बता नही सकती। मुझ मे तो एक नई ऊर्जा कासंचार होता है जब मेरी अदना सी गज़ल को इस गुरूकुल के आँगन मे स्थान मिलता है बेशक मुझे गुरूजी कहने का उपहार नही मिला लेकिन मेरे लिये एक्लव्य होना ही गौरव की बात है। मै गज़ल उस्तादों और दिग्गजों के बीच हूँ बस यही बात मुझे लिखने के लिये उत्साह देती है। इसमे बहुत बडा हाथ आपके गुरूकुल के होनहार शिष्य़ अर्श का भी है। वो हमेशा कहता है कि ये या वो शेर गुरू जी के स्टैंडर्ड का नही है जिससे अच्छा लिखने का प्रयास करती हूँ और आशा है कभी न कभी तो उस मुकाम को छू लूँगी। प्रिय लावण्या जी और देवी जी की गज़लें तो हमेशा की तरह लाजवाब हैं।
जवाब देंहटाएंदिले बकली----
मेरे हमन्वाँ--- वाह क्या शेर हैं
देवी जी के
मुझे राहतों की
हो न बेवफा--- कमाल है
दोनो की गज़लें बहुत ही अच्छी लगी। उन्हें बधाई ये मुशायरा भी कमाल का रहा जिसके लिये अपने भाई सुबीर को बधाई , आशीर्वाद।
नमस्ते जी
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती ,
आप पर कृपा करें और अपना दिव्य प्रकाश
आप सब पर उन्डेलें
ये मंगल कामना करती हूँ
बसंत पंचमी की आप सभी को भी ढेरों शुभकामनाएं
पिछले तरही मुशायरों मे ,
उपस्थित नहीं रह पाने का खेद है ..
कुछ अस्वस्थता घेरे रही है ...
पर आज सुश्री निर्मला जी व
आदरणीया देवी बहन की
सुन्दर गजलों को पढ़कर ,
ये लिखना बरबस ही हुआ ....
सभी की गजलों को पढूंगी ...
सभी को बधाई व स स्नेह नमस्कार !
देखिये न ,
हम परदेस मे बर्फ से घिरे बैठे हैं
और देस की , बसंत पंचमी को याद कर रहे हैं ....
मेरे अति गुणी अनुज को
स स्नेह आशिष तथा उम्दा गजलों के दौर का
सफल संचालन व प्रेषण प्रस्तुत करने के लिए
बहुत बहुत बधाई ...
आप वास्तव मे ' शारदा पुत्र ' हैं .
अनवरत साधना चलती रहे ..
ये मंगल कामना है
आज आदरणीय महावीर जी भी बहुत याद आ रहे हैं ...
११ फरवरी पूज्य पापा जी की पुण्यतिथि है .
उनकी याद फरवरी मे हर पल तीव्र होती है
पापा का जन्म दिन फरवरी २८ है न ...
आशा है सब स्वस्थ सानद हैं ,
स स्नेह सादर ,
- लावण्या
Manch par sabhi ko mera sadar namaskaar.
जवाब देंहटाएंYeh to ek pathshaala hai jahan apne samast gun dosh ke sath ham aaseen hue hain. Soch nein ek rang bhar jaata hai jab Subeer ji aise aise misre dete hain. sirf hamari koshih sweekar ki jaati hai. yeh pathshala sada chalti rahe, gazalkaron ko raah darshati rahe isi mangakl kamna ke saath..
सचमुच बहुत ही शानदार समापन हुआ है मुशायरे का। सभी अशाअर गजब के हैं। और आदरणीय सुबीर जी का तो एक ही शे’र हासिल-ए-मुशायरा हो गया है। बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे की इस किस्त में
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार और कामयाब अश`आर पढने को मिले हैं
निर्मलाजी कहती हैं ...
तू मुझे कभी नहीं भूलना किये खाब अब तेरे नाम सब
मेरा प्यार तू मेरे साजना रहूँ खुश तभी तू जो संग हो
पढ़ते ही ग़ज़ल की प्य्रानी और सुहानी परम्परा की याद आ गयी
और,,, नहीं गोलियां कभी हल रहीं .... वाले शेर में
उनकी पावन दुआएं साफ़ झलक रही हैं .... वाह
आदरनीय लावण्या जी का शेर ...
मेरे हम नवा ये जो सिलसिले ये जो दोस्तों की है महफ़िलें
ये चलें यूं ही, न रुकें कभी, कोई हाल हो, कोई ढंग हो
सच में ग़ज़ल का शेर है और खूब शेर है ... कमाल
मुह्तरिमा देवी नागरानी जी
हो न बेवफा कभी वक्त ये , न गुनाह का कोई अंग हो
हो लहू में बू-ए-वफ़ा जहां नई खुशबु और तरंग हो
मन की गहराई से निकला हुआ यादगार शेर है....
मुशायरे के शानदार समापन पर
सभी को बहुत बहुत बधाई .
तीनों मातृशक्तियों ने तरही का अवश्य एक लाजवाब हुस्न दिया है....लेकिन मुशायरे का समापन और वो भी कवि भभभ्ड़ भौंचके की तरही के बिना???? नहीं, मंजूर नहीं! एकदम मंजूर नहीं....
जवाब देंहटाएंगुरूकुल, कहाँ हो? आवाज लगाओ मेरे संग सब के सब...भौचकी तरही चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
जवाब देंहटाएंहाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
हाँ जी, चाहिये ही चाहिये!
जवाब देंहटाएंएक अंतिम वाला छूट गया था :)
आदरणीय भकभौं जी,
जवाब देंहटाएंआप कहाँ हैं?
भौचकी तरही चाहिये ही चाहिये!
कित्ती सुन्दर रचनाएँ ,वसंत पंचमी तो बहुत प्यारा त्यौहार है.इसके साथ मौसम भी कित्ता सुहाना हो जाता है !!
जवाब देंहटाएंयत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
जवाब देंहटाएंनमन्ते तत्र देवता....................
भ्रमण पर होने के कारण इस बार इस तरही को पढ़ने / गुनने में काफ़ी समय लगा|
सभी साहित्य रसिकों को वसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ| पंकज जी का लक्ष्मी पुत्र / सरस्वती पुत्र वाला जुमला दिल को बहुत भाया|
आदरणीया निर्मला कपिला जी:
आपने हमेशा मेरे जैसे कई शिशुओं का माँ बन कर उत्साह वर्धन किया है| आपको तरही में पढ़ कर बहुत ही गर्व महसूस हो रहा है|
तू मुझे कभी नहीं भूलना...........
कोई खत सा ज्यूँ कि बैरंग हो.........
मेरे ख्वाब तो मुझे दें खुशी...........
नहीं लड़ सके कभी वक्त से...................
नहीं गोलियाँ कभी हल रहीं..................
आप की कहन ने काफ़ी प्रभावित किया है| आपकी जिजीविषा को सादर प्रणाम|
आदरणीया लावण्या शाह जी:
જાય શ્રી કૃષ્ણ
दिले बेकली तू ठहर तो ले..............
रुत जा रही रुत आ रही.................
मेरे हमनवाँ ये जो सिलसिले.......
ખરેખર ખુબજ મજ્જા ની ગઝલ છે, ખૂબ આનંદ થયું વાંચી ને.
आदरणीया देवी नागरानी जी:
खूबसूरत मतले से शुरुआत की है आपने ग़ज़ल की|
हो न बेवफा कभी वक्त ये.............
मुझे राहतों की जो छाँव दे.............
मेरा आस्माँ भी जमीँ भी तू...............
है दुआ में कोई असर अगर...........
कमाल के अशआर हैं सब के सब| मनभावन पेशकश|
पंकज जी :- गौतम और वीनस की आवाज़ में मेरी आवाज़ भी जुड़ी हुई है|
जब तक भौचक्के जी महफ़िल में नहीं आयेंगे सौती मुशायरे का रंग कैसे जमेगा...
जवाब देंहटाएंpahli bar dekha aapka blog behad pasand aaya aur bahut pasand aayee prastuti...
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी में शक्ति को प्रणाम है ....
जवाब देंहटाएंइस मुशायरे को सभी ग़ज़लें चार चाँद लगा रही हैं .... निर्मला जी का जीवन से प्रेम ... कार्य की लगन ..... उनका उत्साह देख कर तो कभी कभी लगता है की आज के युवा उनसे बहुत कुछ ग्रहण कर सकते हैं ....
कमाल के शेर निकाले हैं ... और लावण्या जी और देवी जी के तो क्या कहने .... बस आनंद ही आनद छाया हुवा है ...
पंकज सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी पर यह मुशायरा...मजा आ गया...
सभी को बहुत बहुत बधाई ....