इस बार का तरही मुशायरा जनवरी को पार करता हुआ फरवरी में आ गया है । वैसे इस बार तो ऐसा लगा था कि बहुत कम ग़ज़लें आएंगीं और जल्दी ही काम समाप्त हो जायेगा लेकिन हुआ वैसा नहीं । इस बार न केवल अच्छी बल्कि कई तो बहुत ही अच्छी ग़ज़लें मिली हैं । तरही को 8 फरवरी के पहले पूरा करने का मन है क्योंकि 9 को यमुना नगर के लिये निकलना है वहां सेमीनार में 10, 11 और 12 को रुकने के बाद 13 और 14 को दिल वालों की दिल्ली में रहकर ( वेलेण्टाइन डे भी दिल्ली में ) वापसी होगी । 14 को संभवत: आदरणीय चित्रा मुदगल दीदी ने उपन्यास ये वो सहर तो नहीं पर कोई कार्यक्रम रखा है उसमें शामिल होकर वापसी होगी । उसके बाद होली का तरही होना है और जाने क्या क्या होना है । 8 के पहले दो कवि सम्मेलन यहीं मध्यप्रदेश के होने हैं । सो बस बीच बीच में कभी कभी समय मिलता है तो भाग आता हूं । एक जगह तो कवि सम्मेलन जो कार्पोरेट से जुड़े लोग करवा रहे हैं वहां पर विषय पर कविता पढ़नी है सो नई लिखना पड़ रही है । तरही के लिये अभी तक एक मिसरा लिखा है और मिसरा आकर्षित कर रहा है कि पूरी ग़ज़ल कह ही दी जाये ।
नव वर्ष तरही मुशायरा
नये साल में नये गुल खिलें नई खुश्बुएं नया रंग हो
तरही के इस बार के फार्मेट में जो तय हुआ था कि सारी ग़ज़लें उसी रूप में लगाई जाएंगीं जैसी प्राप्त हो रही हैं उससे काफी फायदा हुआ है । पहला तो ये कि ग़ज़लें बहुत उम्दा मिली हैं । और दूसरा ये कि ग़ज़लों में ग़लतियां भी कम ही मिली हैं । हालांकि 2212 और 11212 की उलझन ने सबका उलझाया है । नवीन चतुर्वेदी जी से इस विषय में काफी लम्बी बात भी हुई कि जो शब्द हिंदी में 112 की ध्वनि उत्पन्न करते हैं उनको क्यों नहीं ले सकते । खैर ये लम्बी बहस का विषय है पर एक बात समझ लें कि उर्दू में दो शब्द हैं नज़र और नज़्र दोनों से आप बखूबी परिचित हैं । नज़री तौर पर यदि ऐसा कहा जा रहा है तो वज्न 112 ही होगा क्योंकि 22 करने पर शब्द नज़्री हो जायेगा । खैर आइये चलते हैं सुनते हैं चार शायरों विनोद कुमार पांडेय, संदीप साहिल, नवीन चतुर्वेदी और धर्मेन्द्र कुमार सिंह को ।
(विनोद कुमार पांडेय)
नए साल में,नए गुल खिलें,नइ हो महक,नया रंग हो
मन में नया उत्साह हो,नइ हसरतों के पतंग हो
भोजन मिले भूखे है जो,फुटपाथियों को छत मिले
आपस में हो सौहार्दयता,निर्धन धनी एक संग हो
हँस कर जियें सब बेटियों, माँ-बाप भी खुशहाल हो
ना दहेज की कोई माँग हो, ना ससुराल में कोई तंग हो
भय दूर हो सब हो सुखी, राहत मिले सब लोग को
बदनाम हो ना मुन्नी कोई, ना ही कोई भी दबंग हो
कोई नया मोदी न हो,और ना कोई कलमाड़ी हो
घोटालेबाजी दूर हो,सरकार के सही ढंग हो
सब मान लें इस ध्येय को, भगवान सारे एक है
हिंदू-मुसलमाँ एक हो, ना धर्म के लिए जंग हो
चारो तरफ बस हो खुशी,मुस्कान हो हर अधर पर
विकसित हो अपना देश यूँ, बैराक ओबामा दंग हो
संदीप 'साहिल'
इनका जो फोटो इनके ब्लाग उभरता साहिल के प्रोफाइल में लगा है वही यहां पर लगाया है बाकी इनके बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि इनकी प्रोफाइल कहती है कि ये मेल ( पुरुष ) हैं और यूनाइटेड स्टेट रहते हैं ।
नए साल में, नए गुल खिलें, नयी हो महक, नया रंग हो
नयी सुबह हो, नयी शाम हो, नई दिल में सब के उमंग हो
नए साल में, मेरे साकिया, तू बरसता जा, यूँ ही बन घटा
न तो कुछ कमी तेरी मय में हो, न तो मैकदा तेरा तंग हो
ये मेरी दुआ है मेरे खुदा, तेरी छाँव में हो ये सब जहाँ
न बुराइयों का भुजंग हो, न नहूसतों का नहंग हो
मुझे तू सुने, तुझे मैं सुनूँ, आओ प्यार की, कोई बात हो
ये जो सरहदें हैं, मिटा दें हम, न कभी भी अब, कोई जंग हो
नयी मुश्किलें भी तो आएँगी, वो घटायें ग़म की भी छायेंगी
मुझे क्या फिकर, मुझे क्या है डर, मेरे हमसफ़र तू जो संग हो
ऐ मेरे उदू, ऐ हरीफ-ऐ-जां, मेरी पीठ पर न छुरी चला
मुझे क़त्ल होने का शौक गर, तुझे क़त्ल करने का ढंग हो
नवीन सी चतुर्वेदी
स-हृदय यही स-विनय कहें स-कुशल सभी स-उमंग हों|
नये साल में नये गुल खिलें नई खुश्बुएं नये रंग हों|१|
कु-मती भगे सु-मती जगे सु-मधुर विचार विमर्श हों|
सु-गठित समाज बनायँ और सदैव मस्त मलंग हों|२|
न बहे रुधिर न जले जिगर न कटे पतंग अनंत से|
न दबें कदापि अनीति से औ बिना वजह न दबंग हों|३|
विधिनानुसार चले जगत, अ-घटित घटे न कहीं कभी|
सदुपाय मीर करें वही चहुँ ओर मौज तरंग हों|४|
सु-मनन करें, सु-जतन करें, अभिनव गढ़ें, अनुपम कहें|
वसुधा सवाल उठा रही क्यूँ न फिर से ग़ालिब-ओ-गंग हों|५|
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
धर्मेन्द्र जी पहली बार संभवत: तरही में आ रहे हैं ये वरिष्ठ अभियन्ता जनपद निर्माण विभाग - मुख्य बाँध बरमाना, बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में हैं । इनका ब्लाग मधुशाला नाम से है ।
नए साल में नए गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
जो भी फल लगें सभी में बँटें ये विकास का नया ढंग हो ।१।
लड़े तम से जो मरे कट के जो सभी चाँद थे मेरे देश के
न घटे कभी यहाँ चाँदनी हो उजाले में जो भी जंग हो ।२।
चलें बहस या चलें गालियाँ मचें झगड़े या बजें तालियाँ
चले जैसे भी रहे चलता ही न कभी सदन यहाँ भंग हो ।३।
रहीं टालतीं जिसे कुर्सियाँ गए साल ने दिया फैसला
रहें मिल के अब एक दूजे में होवे भगवा या हरा रंग हो ।४।
तेरे बिन सनम मेरी जिंदगी आ के देख ले बनी वह नदी
हो बहाव कुछ युँ तो जिसमें पर न तरंग हो न उमंग हो ।५।
नहीं गलती से कोइ काट दे ये कमर तेरी इसे साध ले
है मटक रही युँ लहर लहर ये कुरंग हो या पतंग हो ।६।
ये उगल जहर छुपे बिल में जा कभी भूख से जो है तड़पता
तभी निकलता है ये जानवर हो ये नेता या के भुजंग हो ।७।
जिसे देख लो यहाँ आ रहा जिसे मन हुआ वो ही जा रहा
न सराय सी ये बनी रहे गली प्रेम की जरा तंग हो ।८।
इस बार तो दाद देने का काम श्रोताओं पर ही छोड़ा हुआ है और श्रोता दाद भी खूब दे रहे हैं तो आज की ग़ज़लों में भी कई कई शेर दाद देने लायक हैं । कुछ शेर तो बाक़ायदा चौंका रहे हैं । तो आज की ग़ज़लों पर दीजिये दाद और इंतज़ार कीजिये अगली बार का ।
गुरुदेव अब क्या कहें आप तो यमुना नगर निकल ल्लो..वहां से दिल्ली और फिर वापस सीहोर...मुशायरे कवि सम्मलेन...होली..तरही...सब के लिए वक्त है आपके पास...बस नहीं है तो खोपोली आने के लिए...हम भी देख लेंगे...सब्र का बांध खतरे के निशान के ऊपर चल रिया है...संभल जाओ मियां...
जवाब देंहटाएंआज की तरही में यकीनन चौंकाने वाले बेहतरीन शेर पढने को मिले हैं...हम तो समझ रहे थे के अब की बार काफिया ऐसा है के एक आध शेर के बाद ही सबकी टैं बोल जायेगी लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा...शायर लोग दनादन शेर पे शेर कहे जा रहे हैं...और वो भी बेहद उम्दा...विनोद भाई और नवीन जी की शायरी के तो हम पुराने फैन हैं...और क्यूँ हैं इसका जवाब उन्होंने अपनी अपनी ग़ज़ल में एक बार नहीं बार बार दिया है...संदीप और धर्मेन्द्र जी के फैन पहले नहीं थे लेकिन अब बनना पड़ेगा...दोनों ने कमाल किया है...इस बार का तरही मुशायरा...उफ़ यू मा...टाइप का है, बोले तो एक दम धाँसू...
नीरज
nice work frd..........:D
जवाब देंहटाएंएक ही विषय पर इतने कवियों को लिखवा कर बड़ी बारीकी से समझाने का प्रयास किया है आपने।
जवाब देंहटाएंगज़ब की कारीगरी की है सभी गुणीजनों ने,वाह के अलावा काबिलियत नहीं के कुछ कह पाऊँ!
जवाब देंहटाएंचारों शायरों को बधाई अच्छी रचनाओं के लियें।
जवाब देंहटाएंन तो कुछ कमी मेरे मय में हो न ही मयकदा तेरा तंग हो। ( संदीप साहिल जी का यह शे'र क़ाबिले-तारीफ़ है।
पंकज जी शुक्रिया, मेरी ग़ज़ल को इस तरही में स्थान देने के लिए|
जवाब देंहटाएंभाई विनोद जी:-
आपकेये मिसरे काफ़ी प्रभावशाली लगे
मन में नया उतसाह हो, नई हसरतों की पतंग हो.............
हँस कर जिएं सब बेटियाँ औ माँ-बाप भी खुशहाल हों..............
ना दहेज की कोई माँग ना ससुराल में कोई तंग हो......
और ये तो ग़ज़ब का रहा............सब मान लें इस ध्येय को भगवान सारे ही एक हैं
भाई संदीप साहिल जी:-
संदीप जी आप का हर शे'र दाद के काबिल है| किसी एक शे'र पर बोलना अन्य के साथ ज़्यादती होगी| फिर भी ये दो कोट करने को जी चाह रहा है
मुझे तू सुने................
नयी मुश्किलें भी तो आएँगी
भाई धर्मेन्द्र जी:-
धर्मेन्द्र भाई क्या खूब ग़ज़ल पेश की है आपने| क्या बात है दोस्त| हर शे'र दिल दिमाग़ की घंटिया बजा रहा है| बहुत बहुत बधाई बंधुवर| अयोध्या डिसीजन वाला, सदन भंग वाला और आख़िरी वाला शे'र काफ़ी प्रभावशाली लगे मित्र|
गज़लें सभी विषय के अनुरूप ही हैं, विनोदजी की रचनाओं में उत्तरोत्तर निखार आ रहा है. नवीन जी का शब्द चयन अच्छा लगा.धर्मेन्द्राजी का कहने का ढंग प्रभावशाली है.सन्दीपजी की गज़ल नाम के अनुरूप ही है " उभरता साहिल ".
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो मुझ नौसिखिये की ग़ज़ल को इस नामी-गिरामी शायरों वाले मुशायरे में स्थान देने के लिए, पंकंज जी का बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंइस अंक में तीनों भाइयों के शेर पढ़कर बहुत आनंद आया.
विनोद जी का ये शेर बहुत पसंद आया....
"सब मान लें इस ध्येय को............."
नवीन जी ने तो शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया है........जिसे से ग़ज़ल में एक नया रंग और ताजगी नज़र आई... एक से बढ़कर एक शेर कहें हैं...
"न बहे रुधिर........"
खासतौर पे पसंद आया.
धर्मेन्द्र जी का ये शेर तो दिल को चीर गया.
"लड़े तम से जो......."
अगले अंक का इन्तिज़ार रहेगा
वाह पंकज जी आप का मुशायरा तो हर अंक में सफल से सफलतम होता जा रहा है
जवाब देंहटाएंभोजन मिले भूखे............
बहुत सुंदर !
नए साल में ......
ये मेरी दुआ है मेरे.......
संदीप जी बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल
बहुत बढ़िया हिंदी ग़ज़ल है नवीन जी ,मतला ही बहुत सुंदर है
आप के अश’आर मेंदेश और समाज की चिंता झलकती है ,बहुत सुंदर !
आप के अश’आर में देश और समाज...........
जवाब देंहटाएंये पंक्ति धर्मेंद्र जी की ग़ज़ल के लिये कही गई है
मैं तो निश्बद हूँ चारों के सभी शेर एक से एक बढ कर हैं तो किसी एक दो को कोट करने का मन नही। लाजवाब गज़लें है चारों। पढ कर खुद पर शर्म महसूस हो रही है कि आखिर मैं ही क्यों नही लिख पाती ऐसी गज़लें। वोनोद जी ने भी बहुत कम समय मे अच्छी गज़ल कहना सीख लिया । नवीन जी तो पहले ही उस्ताद हैं नवीन जी और सन्दीप जी को पढा तो कम है लेकिन लगता है ये भी उस्ताद शायर बनने की राह पर हैं। चारों को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंतरही का एक विशेष लाभ तो स्पष्ट है कि एक ही काफि़या कितने बयान कायम कर सकता है इसका एहसास होने लगता है और जो परिपक्वता लाना चाहता है वह अपनी ग़ज़ल लिखते समय एक शेर पर बार बार सोचने को प्रेरित होता है।
जवाब देंहटाएंआज की ग़ज़लों के शेर वैसी ही स्थिति निर्मित कर रहे हैं। एक से एक अनूठे प्रयोग हैं, नवीन जी के नवीन प्रयोग प्रेरणादायक लगे। आशय यह नहीं कि बाकी ग़ज़लें कमज़ोर हैं, वो अपनी जगह हैं लेकिन नवीन जी के प्रयोगों में एक नवीनता है, कुछ सीखने लायक।
भाई पंकज सुबीर जी के परामर्श तले मेरे द्वारा किए गये नये प्रयोग को सराहने के लिए
जवाब देंहटाएंनीरज जी [खोपोलीकर], इस्मत जी, तिलक भाई साब, प्रवीण जी, राकेश जी, संजय भाई साब, साहिल जी और केथेलिओ जी
आप सभी का दिल से शुक्रिया|
वाह ये तरही तो नए मुकाम छू रही है ... विनोद जी अपने व्यंगात्मक अंदाज़ में ... हर शेर में कुछ न कुछ कहा है .... साहिल जी की ग़ज़लें भी ब्लॉग के माध्यम से पढता रहता हूँ ... ए मेरे उदू ... ये शेर बहुत पसंद आया .... नवीन जी के तो क्या कहने ... हिंदी में लिखे हुवे सारे शेर गज़ब ढा रहे हैं ... न बहे रुधिर जले जिगर ... बहुत ही लाजवाब शेर है ... और धर्मेन्द्र जी ने तो हर शेर में कमाल ही कर दिया है ... चारों शायरों को बहुत बहुत बधाई ....
जवाब देंहटाएं.
ये तरही तो सीखने सिखाने के लिए विशेष तौर पर याद रखी जायेगी.
जवाब देंहटाएंविनोद जी को पढता आया हूँ. वे हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करते हैं.
साहिल जी और धर्मेन्द्र जी की ग़ज़लों से परिचय होना आज की उपलब्धि है. "ए मेरे उदू ... बहुत खूब.
धर्मेन्द्र जी ने समाज राजनीति पर जो रंग बिखेरे... पसंद आया.
"न बहे रुधिर जले जिगर ... वाह वाह!
नवीन जी के नवीन प्रयोग ने ऐसा तड़का लगाया कि स्वाद मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा. चारों शायरों को बहुत बहुत बधाई!!!!
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जवाब देंहटाएंचारो गज़ल कथ्य और कहन में बहत दमदार लगी
जवाब देंहटाएंकहन बहुत स्पष्ट रूप से निखर कर सामने आ रही है
आप सभी को बहुत बहुत बधाई
बहुत बेहतरीन...सभी. बधाईयाँ.
जवाब देंहटाएंआदणीय सुबीर जो को इस विद्यार्थी को इतने बड़े शायरों के बीच स्थान देने के लिए धन्यवाद। रचना पसंद करने के लिए नीरज गोस्वामी जी, प्रवीण पांडे जी, दानी जी, नवीन जी, राकेश जी, साहिल जी, इस्मत जी, निर्मला जी, तिलक जी, दिगंबर जी, शुलभ जी, वीनस जी और समीर लाल जी आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंतीनों साथी शायरों ने वाकई कमाल के शे’र लिखे हैं। नवीन भाई को तो अक्सर पढ़ता रहता हूँ, उनके शे’रों से हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता रहता है। साहिल जी तो खैर लाजवाब हैं। और विनोद भाई भी किसी से कम नहीं हैं। तीनों साथियों को बहुत बहुत बधाई
नवीन जी की इस अनूठी तरही पे जितनी भी दाद दी जाये कम होगी। शब्दों के चयन ने चारो खाने चित्त कर दिया हमें तो। नवीन भाई सैल्युट आपको...लाजवाब!
जवाब देंहटाएंसाहिल भाई की ग़ज़ल भी बहुत अच्छी लगी।
विनोद जी और धरमेन्द्र जी को खूब-खूब बधाई ।
ऊपर छिड़े जिक्र पर...शब्दों के वजन को लेकर...मेरे ख्याल से इतने पुराने व्याकरण और अरूज को बड़े-बुजुर्गों ने सोच-समझ कर ही बनाया होगा। हां, बदलते वक्त के साथ आम-बोलचाल की भाषा वाले शब्दों को उनकी ध्वनि के अनुसार वजन में लेने की बात को अब अरुजियों को स्वीकर करना चाहिये।
चारो ही शायर कमाल के हैं , अछी लगी इन की गज़लें मगर ये शे'र उफ्फ्फ्फफ्फ़
जवाब देंहटाएंऐ मेरे उदू , ऐ हरीफ-ऐ - जां मेरी पीठ पर ना छुरी चला
मुझे कतला होने का शौक गर ,तुझे क़त्ल करने का ढंग हो !
सभी को बहुत बहुत बधाई
अर्श
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जवाब देंहटाएंविनोद पाण्डेय जी ने अलग अंदाज़ अपनाते हुए
जवाब देंहटाएंअनूठे शेर कहे हैं .... सराहनीय हैं
न दहेज़ की कोई मांग हो ... वाला शेर
हम सब का अपना ही कहन है
संदीप साहिल जी का मिसरा
ना बुराईयों का भुजंग हो न नहूस्तों का नहंग हो
अपनी बात कह रहा है ...
नवीन जी का मतला .... कमाल ... !
स-ह्रदय यही स-विनय कहें स-कुशल सभी स-उमंग हों...
और
सु-मनन करें, सु-जतन करें अभिनव गढ़ें, अनुपम कहें
नवीन जी हुनर खुद बोल रहा है .... वाह
धर्मेन्द्र जी ने
लड़े तम से जो, मरे कट के जो , सभी चाँद थे मेरे देश के
कह कर शहीदों के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं
जो सराहनीय है
गुरूदेव,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम,
तरही मुशायरा तो जम गया है इसबार एक मिसरे के अनूठे प्रयोग पढ़ने को मिल रहे हैं। आपकी कक्षाओं और हौंसला अफ़्जाई का असर देखने को मिल रहा है कि अब गज़लगो दिखने लगे हैं।
विनोद जी, साहिल जि, नवीन जी और धर्मेन्द्र जी को तह-ए-दिल से बधाईयाँ।
गज़लों का यह सफर चलता रहे, कारवाँ बढ़ता रहें और काफिले जुड़ते रहें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
भाई दिगंबर नासवा जी, सुलभ जी, वीनस जी, उडन तश्तरी जी, धर्मेन्द्र जी, गौतम जी, अर्श जी, दानिश जी और मुकेश तिवारी जी आप सभी का हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंसंदीप'साहिल' जी,
जवाब देंहटाएंबहुत लाज़वाब शेर कहा आपने...खास कर अंतिम के तीन शेर तो बहुत ही अच्छे लगे..ग़ज़ल के इस प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ भी...
नवीन जी,
पहले भी आपको पढ़ चुका हूँ आज भी ग़ज़ल को खूबसूरत बनाने में आपने कोई कसर नही छोड़ी..वाकई इस बार आपने इस बार ग़ज़ल में एक नया प्रयोग किया जो और भी अच्छा लगा..सभी के सभी शेर पे मन वाह वाह कह रहा है.. सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार..और बधाई भी
धर्मेन्द्र जी,
हर रंग पिरोए है आप ने ग़ज़ल में......बेहतरीन शेर ..हर शेर पर दाद देता हूँ..मेरी शुभकामनाएँ आप तक पहुँचे..उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई..
मैं अपनी क्या बात कहूँ आप सब के साथ मेरी ग़ज़ल आई वाकई बड़ी खुशी हुई...आप सब का प्यार और पंकज जी का आशीर्वाद निरंतर मिलता रहें बस मैं तो इसी में खुश हूँ..
पंकज जी, आपने तरही मुशायरे को एक नया आयाम दिया जिससे हम जैसों को बहुत कुछ सीखने को मिला...आपको मेरा सादर प्रणाम है...
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