फरवरी का माह आने का मतलब होता है कि नया साल भी एक माह बूढ़ा हो गया है । एक माह बीत गया है । कई सारी बातें एक माह में हो गईं । कई कुछ ऐसा हो गया जो अप्रत्याशित था । और अब फरवरी सामने है । जिसमें अभी तो व्यस्तता ही व्यस्तता दीख रही है । 6 फरवरी से प्रारंभ हो रही व्यस्तता जो कि 18 तक की तो है ही । हां इन सबे के बीच ये कि 14 फरवरी को वेलेण्टाइन डे के दिन ही आदरणीया चित्रा मुदगल दीदी ने उपन्यास ये वो सहर तो नहीं पर एक विशेष कार्यक्रम रखा है । वो मेरे लिये खास है । और फिर ये कि सुधा ढींगरा दीदी के साहित्य पर एक विशेष आलेख का पाठ 11 फरवरी को सुधा दीदी के सामने ही करना है । 13 को दिल्ली में कई सारे लोगों से मिलना होगा ऐसा लग रहा है । तो चलिये अब चलते हैं तरही की ओर ।
नव वर्ष तरही मुशायरा
नये साल में नये गुल खिलें, नई खुश्बुएं, नया रंग हो
आज तीन शायर आ रहे हैं । तीनों ही अपने तरीके से ग़ज़ल कहते हैं । तीनों की ही कहन का अपना अंदाज़ है । और तीनों ही हमारे इस तरही मुशायरे के बहुत पुराने सदस्य हैं । नियमित रूप से हर तरही में हम गिरीश पंकज जी, मुकेश तिवारी जी और संजय दानी जी को सुनते आये हैं तो आज तीनों को एक साथ सुनते हैं ।
जीवन हो ये सबका सुंदर हर पल हरदम नव उमंग हो
नए साल में नए गुल खिलें नई महक हो नया रंग हो
बीत गई जो बात भूल कर हम नूतन अध्याय रचें
लीक पुरानी छोड़ें साथी भीतर अपने इक तरंग हो
काम अधूरे होंगे पूरे है अब तो है संकल्प यही
चलते जाना लक्ष्य हमारा यही नया अब इक प्रसंग हो
होंगे अपने दुश्मन बेशक आलस भी या लापरवाही
सैनिक बनकर डटें लाम पर हारें ना हम नित्य जंग हो
मिलेंजुलें हम बढ़कर सबसे प्यार बांटना ही है जीवन
बिछड़े कोई नहीं यहाँ पर प्रेम-मोहब्बत साथ-संग हो
अंग विकल हों लेकिन अपना मन न कभी विकलांग रहे
काम करें कुछ ऐसा जिसको देख-देख हर शख्स दंग हो
बहुत अधिककी ख्वाहिश ले कर आखिर कितने पाप करें
धीरे-धीरे बढ़ते जाएँ यही लक्ष्य हो यही ढंग हो
देख रहे हैं अंधकार को इसे हराना है अब पंकज
उजियारे का दान करें हम हाथ हमारा नहीं तंग हो
जीवन हो ये सबका सुंदर हर पल हरदम नव उमंग हो
नए साल में नए गुल खिलें नई महक हो नया रंग हो
मुकेश कुमार तिवारी
सरहदें मजबूत हों लहराये विजयी तिरंग हो
मुल्क में खुशियाँ बसे हर दिल में नई उमंग हो
नए गीत हों नए साज हों नई मौज नए अंदाज हो
हर बात में नई बात हो नई रीतियों का संग हो
नए रास्ते ईज़ाद हों नई मंजिलों पे हो नज़र
नए साल में नए गुल खिले नई खुश्बुएँ नया रंग हो
नए प्रश्न हों नई खोज हो उम्मीदियाँ नायाब हों
देख अपनी बुलंदियाँ रह जाये दुनिया दंग हो
हर हाथ को ये इल्म हो कि हर दुआ मकबूल हो
कलमा सजे मिरे होंठ पे तू जो गाता अभंग हो
इन्सान की तरह जियें ये दौर-ए-वहशत खत्म हो
अम्न की बातें चलें न ये रंजिशे न जंग हो
विश्वास हो इत्मीनान हो हर खौफ से अंजान हो
जिन्दगी कुछ यूँ चले पायाब खुशियाँ न तंग हो
संजय दानी
नये साल में नया गुल खिले नई हो महक नया रंग हो,
फ़िज़ा-ए-वतन में ख़ुलूस की सदा हो अदब की तरंग हो।
कहां तक अकेले चलोगे इश्क़ के सर्द, दश्ते-बियाबां में,
मेरा साया, गर न अजीज़ हो तो मेरी दुआयें तो संग हो।
ये लड़ाई सरहदों की,तबाह करेगी हमको भी तुमको भी,
तुम्हें शौक़े- जंग हो तो ग़ुनाहों के सरपरस्तों से जंग हो।
मैं चरागे आशिक़ी को बुलंद रखूंगा मरते तलक सनम,
भले आंधियां तेरे ज़ुल्मी हुस्न की,बे-शहूर मतंग हो।
ये जवानी की हवा चार दिन ही रहेगी, आसमां पे न उड़
सुकूं से बुढापा बिताने , हाथों पे सब्र की ही पतंग हो।
वफ़ा के मकान की कुर्सियां पे लगी हों कीलें भरोसों की,
दिलों के मुहल्ले में ग़ैरों के लिये भी मदद की पलंग हो।
कहां राज पाठ किसी के साथ लहद में जाता है दोस्तों,
दो दिनों की ज़िन्दगी में हवस के मज़ार जल्द ही भंग हो।
मुझे अपने कारवां के सफ़र से जुदा न करना ऐ महजबीं,
तेरे पैरों की जहां भी हो थाप , वहां मेरा ही म्रिदंग हो।
तेरे आसमां पे मेरा ही हुक्म चलेगा दानी , ये याद रख,
मेरी नेक़ी जीतेगी ही तेरी बदी चाहे कितनी दबंग हो।
हूं कई सारे शेर उम्दा निकले हैं । ये बात सच है कि हर ग़ज़लगो का अपना एक अंदाज़ होता है जो उसका नाम लिखे बिना भी पहचाना जा सकता है । खैर तरही का ये अंक भी पढि़ये और दाद दीजिये तथा प्रतीक्षा कीजिये अगले अंक की ।
तीनों शायरों ने गजब के अशआर कहे हैं। और दानी जी हमेशा की तरह लाजवाब हैं। बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआज की तरही में नई खुश्बुऍं और कुछ नये रंग, कुछ इस तरह कि:
जवाब देंहटाएंकहीं खुश्बुऍं हैं नयी नयी, कहीं बात है नये रंग में,
सभी फूल तो तेरे बाग के मुझे दिख रहे हैं तरंग में।
ये लडाइयां सरहदों की...
जवाब देंहटाएंसंजय दानी जी के ये शेर ने प्रभावित किया.
इंसान की तरह जियें ये दौरे वहशत... मुकेश जी ने नए साल में अच्छी दुआए की है.
लीक पुराने छोड़े साथी भीतर अपनी एक तरंग हों..... गिरीश पंकज जी ने अपनी सी बात कह दी इस शेर में. सभी अशार खूबसूरत हैं.
आप तीनो को बहुत बहुत बधाइयां !!
इस तरही की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि तिलकजी और नीरजजी जैसे शायरों के साथ अंकित, वीनस और गौतम के नये अन्दाज़ौर आज इन तीनों का अपना अलग ढंग एक ही जगह पढ़ने को मिल सका है.
जवाब देंहटाएंसभी को साधुवाद.
काव्य प्रवाह जारी आहे।
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी को बहुत पहले से पढ़ता आ रहा हूँ और बहुत कुछ सीखा भी हूँ...एकदम पास से गुजरती हुई बेहद प्रभावशाली रचना होती है.. आज भी कुछ वैसे ही हर शेर दाद के काबिल है...सुंदर भाव और सुंदर ग़ज़ल...मेरा प्रणाम उन तक पहुचें..
जवाब देंहटाएंमुकेश जी..आपको पढ़ कर दिल खुश हो गया.. देशभक्ति और अमन चैन के संदेश से ओत-प्रोत बढ़िया ग़ज़ल..बधाई..
संजय जी,
पिछले मुशायरे की तरह इस बार भी ज़ोरदार इंट्री.. शब्दचयन और भाव दोनों बेजोड़ है..चौथा और पाँचवा शेर तो और भी बेहतरीन बन पड़ा है...संजय जी बहुत बहुत बधाई..
वाकई इस तरही मुशायरे में बड़े ही लाज़वाब शेर सामने आए..पंकज जी आपका बहुत बहुत आभार..प्रणाम
---> भाई गिरीश पंकज जी की छंद बद्ध प्रस्तुति बेहद प्रभावशाली है|
जवाब देंहटाएं---> कहन के मामले में भाई मुकेश तिवारी जी ने भी अपनी छाप छोड़ी है|
---> संजय दानी जी ने अपनी अदबी नौलिज का दिलचस्प मुजाहिरा पेश किया है|
तीनों सरस्वती पुत्रों को बहुत बहुत बधाई...............
और ये शे'र भाई पंकज सुबीर जी के लिए:-
पुस्तकों से सीखें या गुरु से या अंतरजाल पर|
गूँजते साहित्य के गुंजन से मुझको प्यार है||
गिरीश जी, मुकेश जी और संजय जी को गज़लों के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसंजय दानी जी की गज़ल का शेर "वफ़ा के मकान कि कुर्सियों पे.." और "कहाँ तक अकेले.." और मुकेश तिवारी जी का "इंसान की तरह जियें.."
अच्छे लगे. गिरीश जी की गज़ल का भाव बहुत अच्छा लगा.
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम,
आपकी कृपा पा धन्य हो गया कि मुझे इस मंच पर गुणी-विद्जनों के बीच स्थान मिला।
श्री संजय दानी जी का शे’र बहुत पसंद आया :-
कहाँ तक अकेले चलोगे इश्क के सर्द दश्त-ए-बियाबाँ में
मेरा साया, गर न अजीज़ हो तो मेरी दुआयें तो संग हो
श्री पंकज गिरीश जी का शे’र बहुत पसंद आया :-
बहुत अधिक की ख्वाहिश लेकर आखिर कितने पाप करें
धीरे-धीरे बँटते जाएँ यही लक्ष्य हो यही ढंग हो
मैं श्री धर्मेन्द्र जी, सुलभ जी, विनोद जी, नवीन जी, राजीव जी और सभी गज़ल विधा के पुरोधाओं का शुक्रगुज़ार हूँ कि मेरे कहने का अंदाज उन्हें पसंद आया।
अंत में बस इतना ही कहना चाहता हुँ कि यह गुरूदेव की ही कृपा है जो मुझ अकिंचन से गज़ल कहलवा सकी
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कवितायन
तीनों ने आज समा बाँधा है ... गिरीश जी का और मुकेश जी का कहन बहुत लाजवाब है ... और संजय जी तो माहिर हैं फन के ... कमाल के शेर निकाले हैं उन्होने ... मुझे ख़ास ये पसंद आया ...
जवाब देंहटाएंकहाँ तक अकेले चलोगे ...
सर्वप्रथम सुबीर जी का आभार।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गिरिश जी का मतला बहुत पसंद आया।
मुकेश जी का नये रास्ते ईज़ाद हो नई मन्ज़िलों पे हो नज़र, वाला मिसरा क़ाबिलेतारीफ़ है।
मेरे अशआर की तारीफ़ करने वाले सभी अद्ब-ज़नों को ज़र्रानवाज़ी के लिये शुक्रिया पेश करता हूं।