बुधवार, 3 नवंबर 2010

आज धनतेरस का दिन है तो चलिये आज तरही मुशायरे को कुछ और आगे बढ़ाते हैं सुलभ जायसवाल, राजीव भरोल, नवीन सी चतुर्वेदी और दिगम्‍बर नासवा के साथ

आज की तरही में फिर से चार शायर आ रहे हैं । चारों ने इतने जबरदस्‍त शेर कहे हैं कि क्‍या कहा जाये । आज आ रहे हैं सुलभ, राजीव, दिगम्‍बर के साथ पहली बार नवीन चतुर्वेदी । नवीन जी पहली ही बार आ रहे हैं । तो चलिये शुरू करते हैं आज का तरही ।

शुभ दीपावली तरही मुशायरा

जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रौशनी

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सुलभ जायसवाल

 

सुलभ का नाम तो परिचित नाम है । सुलभ ग़ज़ल के प्रारंभिक दौर में  है । लेकिन मुझे जो बात सबसे अच्‍छी लगी वो ये कि सुलभ में सीखने को लेकर काफी इच्‍छा है । और फिर ये भी कि कम्‍प्‍यूटर इंजीनियर होकर आरेकल जावा से बहरे हजज रमल पे आना थोड़ा कठिन होता है । आइये सुनें सुलभ को ।

हिन्दू मुसलमां देखें क्‍यूं मिलकर करें हम बंदगी
बातें मोहब्बत की करें हम आदमी हैं आदमी

ये जुस्तजू है क्यूं भला उफ कैसी है ये आरजू
यह जिंदगी एक तिश्नगी है या कोई आवारगी 
तू मिल गया राहों में तो अब ये सफ़र आसां हुआ
रातें हसीं दिन है जवाँ शामो सहर हैं शबनमी
मिलते रहें हम सब यहाँ मिलकर दुआ आओ करें
जलते रहे दीपक सदा काईम रहे ये रौशनी ||

हूं बात आ गई है अब इंजीनियर में भी । ये जुस्‍तजू कैसी भला कैसी है उफ ये आरजू शेर बहुत बढि़या निकाला है । वाह वाह वाह ।

राजीव भरोल 

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राजीव के बारे में क्‍या कहूं । बस ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि राजीव ने ग़ज़ल की कक्षाओं के 2007 से अभी तक के पूरे पीडीएफ बना कर उनको इस प्रकार से पढ़ा मानो किसी इम्‍तेहान की तैयारी की जा रही हो और परिणाम अब ये है जो सामने दिख रहा है ।

जब तक रवानी है लहू में तब तलक है जिंदगी,

ये बात मुझसे कह गयी इस गांव की चंचल नदी.

आ चल करें कुछ, ये न हो की फूल मूरझाने लगें,

बच्चों के ओंठों से चुरा कर ले गया कोई हंसी

जब आग है तो आग की चिंगारियां भी कुछ दिखें.

ओंठों में ही क्यों कैद हो कर रह गयी है तिश्नगी.

बादल चुरा कर फिर तेरी आँखों का काजल ले गया.

अब तो सरे बाजार होने लग गई है रहज़नी.

जैसे किसी सैयाद के पिंजरे में बुलबुल कैद हो,

इस जिस्म में है कैद मेरी रूह मुद्दत से यूँ ही,

कैसा हुनर सिखला दिया हालात ने आखिर मुझे,

मैं मुस्कुराहट से छुपा लेता हूँ आँखों की नमी,

आँखों से जो अक्सर बरसते हैं वो बादल और हैं,

ना तो इन्हें मौसम की बंदिश ना ही पानी की कमी.

हर बात पर गुस्सा, बिगड़ना बेवजह हर बात पर,

ऐ दिल तेरी फितरत में पहले तो ना थी ये बरहमी

पैरों में हैं छाले निगाहों में है सहरा की तपिश,

आ देख कैसे बिन तेरे काटी है मैंने जिंदगी.

जो हों उजाले हर तरफ तो दिल भी रौशन सा लगे,

जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रौशनी

बुझते चिरागों को ना दो 'राजीव' सारा दोष तुम,

मुमकिन है ये भीतर तुम्हारे ही कहीं हो तीरगी.

राजीव ये जो तुमने बादल चुरा कर ले गया वाला शेर कह दिया है ये तो बस कमाल ही कर दिया है वैसे पूरी ग़ज़ल में कई और भी शेरे हैं जो कोट किया जाना मांग रहे हैं लेकिन ये शेर तो कमाल का है वाह वाह वाह ।

नवीन सी चतुर्वेदी

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दतिया कवि सम्‍मेलन के रास्‍ते में नवीन जी का मैसेज मिला और उन्‍होंने तरही के बारे में जानकारी ली तब मैं उनके बारे में नहीं जानता था । लेकिन जब ग़ज़ल मिली तो उनके बारे में कुछ और जानने की ज़रूरत ही नहीं रह गई । वैसे वे एक ब्‍लाग ठाले बैठे चलाते हैं ।

अन्याय पर इंसाफ़ का जयघोष है दीपावली|
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी|१|
कश्मीर पर फिर से मचा हुड़दंग यारो देख लो|
लगता है जैसे सेठ के खलिहान में बकरी घुसी|२|
यू एस से ओबामा जी आने हैं इतना जान कर|
मेरे शहर की हर सड़क फिर से दुल्हन सी है सजी|३|
वो बात करते हैं सुधारों की जहाँ जाते वहाँ|
फिर क्वालिटी पे गौर करते हैं बिछे कालीन की|४|
संवाद पर पहरा न हो, कहते रहे हैं यूँ सभी|
पर हर अभिव्यक्ति पे, हर मुद्दे पे है केंची चली|५|
राहुल, वरुण, नीतीश, मोदी, सोनिया के देश में|
ये भी गनीमत है हवा तो मुफ़्त में है मिल रही|६|
अगले बजट से पूर्व ईंधन के बढ़ेंगे दाम बस|
अब वो करें क्या, जिंस हर, ईंधन से ही गर है जुड़ी|७|
कम्प्यूटरों का दौर है, कम्प्यूट करना सीख लो|
बच्चो तुम्हारे काम आएगी बहुत कम्प्यूटरी|८|
तुम याद आती हो बहुत, मिलने कहाँ आएँ तुम्हें|
गुम हो गयी हो तुम कहाँ, मेरे जिगर की सादगी|९|
अब चाँद तारे, इश्क उलफत, बेवफ़ाई छोड़ कर|
अपनी ग़ज़ल तो आम इन्साँ की गली में घुस पड़ी|१०|
तरकीब कोई हो अगर मुझको बताना यार तुम|
सब की ज़ुबानें इक दफ़ा फिर गुनगुनाएँ शायरी|११|
तरही के दीवाने अपुन मिलने चले आए तुम्हें|
यारो नये हैं हम ज़रा, हम से निभाना दोस्ती|१२|

व्‍यंग्‍य की भाषा में लिखी गई ग़ज़लों में तो मेरे प्राण बसते हैं मानो और इसीलिये इस ग़ज़ल का एक एक शेर मुझे भा रहा है । और उस पर मतले का मिसरा उला तो बहुत ही प्रभावशाली बना है । नवीन जी ने ग़ज़ल को आम इन्‍सां की गली में जिस प्रकार घुसाया है वो कमाल का है । वाह वाह वाह ।

दिगम्‍बर नासवा

DN-Anita

दिगम्‍बर का परिचय तो देने की आवश्‍यकता नहीं है । ग़ज़ल की कक्षाओं से प्रारंभ से ही जुड़े हैं और ग़ज़ल कविता तथा छंद मुक्‍त कविता में अपने आपे को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्‍यक्‍त करते हैं । फिलहाल दुबई में निवासारत हैं । 

 

महके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी

तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी

सहरा शहर बस्ती डगर उँचे महल ये झोंपड़ी

जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी

है इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा

दानिश नही आलिम नही मुल्ला हूँ न मैं मौलवी

है हीर लैला सोहनी महबूब तेरे अक्स में

मीरा कहूँ राधा कहूँ मुरली की मीठी रागिनी

इस इब्तदाए इश्क़ में अंज़ाम क्यों सोचें भला

जब यार से लागी लगन तो यार मेरी ज़िंदगी

तू आग पानी अर्श में, पृथ्वी हवा के अंश में

ये रूह तेरे नूर से कैसे कहूँ फिर अजनबी

नज़रें झुकाए तू खड़ी हो थाल पूजा का लिए

तुझमें नज़र आए खुदा तेरी करूँ मैं बंदगी

ठोकर तुझे मारी सदा अपमान नारी का किया

काली क्षमा दुर्गा क्षमा गौरी क्षमा हे जानकी

दिगम्‍बर इस बार की ग़ज़ल में तुमने क्‍या कर दिया है ये तुम भी नहीं जानते । बहुत ही कमाल के शेर निकाल दिये हैं । है इश्‍क ही मेरी इबादत और तू आग पानी अर्श में ये दोनों शेर तो मानो अपनी कहानी स्‍वयं ही कह रहे हैं । वाह वाह वाह ।

चलिये दाद देते रहिये और इंतजार कीजिये आने वाले शेष दो अंकों का ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. अभी गज़लें एक से एक उम्दा!! उन्हें पढ़ बहुत सीख पा रहे हैं...और भरपूर आनन्द उठा रहे हैं...

    जय हो इस तरही मुशायरे की और आपकी, मास्साब!

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  2. पंकज जी ,आप का मुशायरा तो शबाब पे है
    सुलभ जी का आख़री शेर
    राजीव जी के अश’आर
    आ चल करें कुछ ............
    कैसा हुनर सिखला दिया........
    बहुत उम्दा !क्या बात है!
    नवीन जी का तो मतला ही अपने आप में बहुत अच्छा है
    दिगंबर जी की ग़ज़ल भी अपना अलग ही रंग ले कर आई है
    है इश्क़ ही मेरी...............
    है आग पानी अर्श में..........
    बहुत बढ़िया !
    आने वाली ग़ज़लों का इंतेज़ार है

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  3. बेहतरीन अशआर, चारों शायरों ने रंग बढा दिया इस मुशायरे का। चारों को मेरा सलाम।

    सुलभ जी- रातें हसीं शामो-सहर है शबनमी।
    राजीव जी -आंखों से बरसते वो बादल और हैं।
    नवीन जी - गो सेठ के खलिहान में बकरी घुसी।
    नासवा जी--दानिश नहीं आलिम नहिं मुल्ला हूं न।

    (के ये अशआर अपनी पुख़्तगी का अहसास मुकम्मल करा रहे हैं)

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  4. सुलभ जी , राजीब जी ,नवीन जी ,दिगंबर जी ,
    सभी ने बहुत ही शानदार ग़ज़लें कही है.
    बहुत बहुत मुबारक हो आप सब को .

    सुलभ जी का ... ये जुस्तजू .........
    दिल से निकली ग़ज़ल

    राजीव जी का ... बदल चुरा ......और कैसा हुनर ....
    यादों और रूमानियत का मंजर पेश करती ग़ज़ल

    नवीन जी का .. कश्मीर ....कम्पुटर ...
    हालात को बयान करती ग़ज़ल वाह वाह

    दिगम्बर जी का ..है इश्क .....इस इब्तिदाए ...
    इश्क के रंग बिखेरती ग़ज़ल बहुत खूबसूरत

    मुशायरा जोरो शोरों से चल रहा है सभी को बधाई ...

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  5. बहुत कुछ कहना चाहता हूँ...इतना के आज की पोस्ट छोटी पड़ जाए...लेकिन क्या करूँ जो मन में भाव आ रहे हैं उसके लिए शब्द नहीं मिल रहे...चारों गज़लकारों ने जो किया है उसकी प्रशंशा के लिए हर शब्द छोटा लग रहा है...

    गदगद हूँ...दिल से चारों के लिए दुआ निकल रही है...माँ सरस्वती इनकी कलम में यूँ ही वास करती रहे...

    नीरज

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  6. तू मिल गया राहों में तो, अब ये सफ़र आसां हुआ
    रातें हंसीं, दिन है जवां शामो-सहर है शबनमी
    वाह सुलभ जी, शेर में बहुत खूबसूरत रंग सजाए हैं

    कैसा हुनर सिखला दिया हालात ने आख़िर मुझे
    मैं मुस्कुराहट से छुपा लेता हूं आंखों की नमी
    राजीव जी बहुत उम्दा शेर है...

    नासवा जी, कमाल की ग़ज़ल है...वाह वाह
    ये मतला तो लाजवाब है आपका-
    महके उफ़क़ महके ज़मीं हर सू खिली है चांदनी
    तुझको नहीं देखा कभी, देखी तेरी जादूगरी.

    नवीन जी का कलाम भी पसंद आया, बधाई.

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  7. एक से बढकर एक गज़ल है……………शानदार , लाजवाब्।

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  8. व्‍यस्‍तता के बीच भी तरही में उपस्थिति दर्ज कराने की औपचारिकता निभाते हुए भी सुलभ ने अच्‍छा प्रश्‍न उठाया है आवारगी में।
    राजीव की ग़ज़ल स्‍पष्‍ट प्रमाण है उनके प्रयासों का। नवीन चतुर्वेदी जी ने पहली प्रस्‍तुति में धमाके कर दिये और दिगम्‍बर भाई जितना जाद कविताओं में भरें होते है उतना ही ग़ज़ल में लेकर आये हैं। तीनों की ग़ज़लों में स्‍पष्‍ट हो रहा है कि इस बह्र में कहने की मूल आवश्‍यकता पर अच्‍छी पकड़ है और विषय व काफिये भी कम नहीं। परिपूर्ण ग़ज़लें हैं।

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  9. गजलें सभी की अच्छी लगी।

    सुलभ नें अच्छा प्रयास किया है।

    राजीव जी जिस तेजी से आगे बढ़े वो चकित करता है।

    आज की गज़ल में भी सबसे पहले तो मतला ही बहुत बढ़िया है

    प्रतीको का अच्छा ‍प्रयोग किया है भरोल जी ने

    होंठों में ही क्यों कैद हो कर रह गई है तिश्नगी

    बादल चुरा के आँख का... ये बिंबों के बढ़िया प्रयोग है

    वैसे सही कहा गुरु जी ने कि शेर और भी बहुत से अच्छे है मगर कमेंट के शब्दो की सीमा है आखिर

    चतुर्वेदी जी के पास अच्छी कहन का बढ़िया भंडार है। हर शेर में कुछ नई बात कही है इन्होने। जो गुरू जी हमसे कहने को कहते है, वो कहन इनके पास पहले से मौजूद है। बस भरोल जी की पीडीएफ फाइल इन को एक बार ठीक से पढ़ लेनी चाहिये।

    नवीन जी आपकी कहन वाक़ई अच्छी है।

    दिगम्बर जी ! वाह वा..क्या बात है मतला ही धुँआधार...! सूफियाना अंदाज़ लिये। यही सूफियाना अंदाज़ आगे
    तू आग पानी अर्श में" भी मिल जाता है ।

    फिर गिरह क्या खूब बाँधी है ? कितनी पवित्र दुआ है।

    फिर सच तो ये हैं कि पूरी की पूरी गज़ल ही बहुत पवित्र सी बनी है। इनके शेर पूजा के थाल सी सजी, गमकती...! और ये थाल वाला शेर भी मन को बार बार खुश कर रहा है।

    बार बार पढ़ा है इस गज़ल को और मकते में माँगी गयी क्षमा.... अभिभूत हूँ...!

    आप सबको दीपावली की बधाइयाँ

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  10. पंकज जी और सभी कमेंटेटर्स मित्र:
    सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए| भाई पंकज सुबीर जी, इस खाकसार को औकात से ज़्यादा इज़्ज़त बख्शने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|

    सुलभ जी:
    आज का नौजवाँ वो भी इंजीनियरिंग फील्ड से जब अदब में दखल रखता है, तो इस के माने बहुत ज़्यादा हो जाते हैं| भाई सुलभ जी आप की कलम को सलाम| आपको और भी आगे पढ़ने की तमन्ना रहेगी हमारी|


    राजीव भरोल जी:
    ये बात मुझसे कह गयी इस गाँव की चंचल नदी||
    बच्चों को होठों से चुरा कर ले गया कोई हँसी||
    अब तो सरेबाज़ार होने लग गयी है रहजनी||
    भाई राजीव जी आपके ये मिसरे आपके ताज़गी भरे ख़यालों के चश्मदीद गवाह हैं| आप ज़मीन से जुड़े विषयों को उठा रहे हैं, जो कि मौजूदा दौर की शायरी के लिए निहायती तौर पर ज़रूरी है| बहुत बहुत मुबारकबाद|


    दिगंबर नासवा जी:
    दुबई निवासी दिगंबर जी ये मिसरे काफ़ी दिलकश और पुरनूर लगे:
    तुझको नहीं देखा कभी, देखी तेरी जादूगरी||
    जब यार से लागी लगन तो यार मेरी जिंदगी||
    और आपके इस शे'र के लिए तो हमें आपको शाष्टांग दंडवत प्रणाम करना होगा-
    टोकर तुझे मारी सदा, अपमान नारी का किया|
    काली क्षमा! दुर्गा क्षमा! गौरी क्षमा! हे जानकी||

    जवाब देंहटाएं
  11. मुशायरा जोरो शोरों से चल रहा है सभी को बधाई ...
    दीपावली की ढेर सारी  शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  12. निशब्द कर गय़ीं ये प्रस्तुतियां!
    विशेष तौर पर
    ...काली क्षमा! दुर्गा क्षमा!.....

    चतुर्वेदी की कलम और कलाम दोनों लाजवाब!

    राजीव जी आपका संवेदनशील कथन कमाल।
    सुलभ जी, आवरगी को ज़ुबां देदी आपने!

    वाह! वाह! वाह!

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  13. राजीव जी,यदि मैं गुस्ताखी नही कर रहा हूं, तो वो PDF file ktheleo@yahoo.com पर प्रेषित करने की कृपा करें!

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  14. वैसे तो सब एक से बढ़कर एक हैं और सभी की रचना भी शानदार है ...लेकिन सुलभ जी से तथा उनकी सोच से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूँ...उनकी सोच देश और समाज को हर तरह से अच्छा बनाने की है...

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  15. पंकजकी,

    आज के दिन इतनी सुन्दर गज़लों पढ़कर आनन्द आ गया. दिगम्बरजी तो मंजे हुए शायर हैं ही परन्तु जो नजरिया अन्य शायरों ने प्रस्तुत किया है काबिले तारीफ़ है. राजीव के शेरों में नयापन उनकी उत्तरोत्तर प्रगति का द्योतक है.

    इतने बढ़िया आयोजन के लिये बधाई स्वीकार करें

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  16. एक से एक बढ़ कर शे'र हैं, सभी गज़लों ने बहुत उर्जा दी, धन्यवाद|

    सुधा ओम ढींगरा

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  17. सभी टिप्पणीकर्तायों का तारीफ़ के लिए धन्यवाद..

    तीनो गज़लें बहुत अच्छी लगीं.
    सुलभ भाई का "तू मिल गया.." शेर बहुत भाया.
    नवीन जी के ग़ज़ल के सभी शेर कोट करने की इच्छा हो रही है..लेकिन "बकरी घुसी", "गली में घुस पड़ी.." और "कालीन" वाले शेर तो बहुत ही अच्छे हैं.
    दिगंबर जी के "है इश्क ही मेरी इबादत.." और "काली क्षमा, दुर्गा क्षमा.." वाले शेर तो क्या कहने..
    आनंद आ गया.

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  18. सुलभ को बहुत ज्यादा तो नहीं पढ़ा मगर कोशिश अच्छी है ... तू मिल गया राहों में तो ... बढ़िया शे'र है...

    जब आग है तो आग की / बादल चुराकर / कैसा हुनर सिखला दिया ... अछे शे'र हैं राजीव जी के ... बहुत बहुत बधाई इनको ....

    चतुर्वेदी जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ ... अच्छी ग़ज़ल कही है इन्होने ... हर शे'र समसामयीक है ...

    और दिगंबर साब का मतला ही जानलेवा है .. नज़रें झुकाए तू खड़ी... वेसे तो तमाम शे'र ही कमाल के हैं मगर इन दोनों को सामने लाना पडा ...

    आप सभी को दिवाली की ढेरो बधाई और शुभकामनाएं....

    अर्श

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  19. .
    .
    .
    चारों रचनाकारों ने बेहतरीन लिखा है, पर आदरणीय दिगंबर नासवा जी एक बार फिर से छा गये हैं...कुछ शेर तो याद रहेंगे हमेशा !


    ...

    जवाब देंहटाएं
  20. अरे वाह .. आखिरकार मैं इस सुन्दर पेज पर पहुच ही गयी.. मुशायरा बहुत सुन्दर है.. सभी रचनाएं बेहतरीन
    ....और पेज की शोभा भी बहुत सुन्दर.. पूरी दीपावली सजी है... धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं
  21. इन चारों उस्तादों ने तो कमाल ही कर दिया। सुलभी जी के ये शेर
    ये जुस्तजू है----
    तू मिल गया--- लाजवाब शेर हैं सुलभी जी को बधाई।राजीव जी की गज़ल भी बहुत अच्छी है--
    जब आग है तो-----
    बादल चुरा कर-----
    वाह वाह बहुत खूब। राजीव जी को भी बधाई।
    नवीन जी ने तो और भी कमाल कर दिया बिलकुल नये मसले नये ख्यालात।
    अब इस मे सभी शेर बहुत ही अच्छे हैं और हर शेर की अपनी अहमियत है इस लिये कोई एक दो शेर कोट कर के बाकी के साथ नाइन्साफी नही करूँगी। उमदा गज़ल के लिये उन्हें बधाई।
    दिगम्बर नास्वा जी के लिये तो क्या कहूँ उन्हें पढना तो हमेशा ही अच्छा लगता है । उन्की न्ज़्म, कविता या गज़ल हो दिल को छूती है।
    है इश्क ही मेरी-----
    है हीर लैला------ वाह
    तू आग पानी-----
    किस किस शेर की बात करूँ? हर एक शेर नायाब है। दिगम्बर नास्वा जी को बहुत बहुत बधाई। सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। इस बार तो गज़लों ने धूम मचा दी। जिस के लिये मेरे छोते भाई का धन्यवाद और आशीर्वाद।

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  22. मुशायरा अपने पूरे शबाब पर है .... सुलभ जी ने अपने व्यस्तता होने के बाबजूद इतनी लाजवाब ग़ज़ल भेजी है ... ये उनका ग़ज़ल जनून ही है ... तू मिल गया राहोप्न में .... बहुत ही गज़ब का शेर है ... और राजीव जी की क्या कहूं .... आ चल करें कुछ ... बादल चुरा कर ... वैसे तो सभी शेर गज़ब हैं पर इन दोनों ने दिल लूट लिय .... नवीन जी ने तो जैसे व्यंग की बरसात ही कर दी है ... हर शेर कटाक्ष कर रहा है इस व्यवस्था पर ....
    गुरुदेव आपका बहुत बहुत शुक्रिया क्योब्की आपकी बदौलत इतना कुछ पढने और जान्ने को मिल रहा ही की समेत नहीं पा रहा हूँ ....
    आपको और आपके समस्त परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ...

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  23. अाज तो कमाल हो गया. धनतेरस मे मिला सबसे बड़ा तोहफा.

    राजीव जी
    अपकी इस गजल का दायरा विस्त् रित है. बहुत खुब कही अापने.

    दिगम्बर जी इस मधुर गजल के सभी शेर पसंद अाये.

    और नवीन जी ने मुशायरे मे जिस प्रकार तड़का लगाया है काबिले तारिफ है. मजा अा गया.

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  24. सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें| आप सभी ने अपने इस नये मित्र को जो अपने मन के आँगन में जगह दी उस के लिये मैं आप सभी का शुक्र गुज़ार हूँ| आप लोगों के उत्साह वर्धन ने मुझे नयी ताक़त दी है| स्नेह बनाये रखिएगा| इस्मत जी, संजय जी, अजमल जी, शाहिद जी, तिलक राज जी, कंचन जी, केथेलिओ जी, राजीव भारोल जी, अर्श जी, निर्मला जी, दिगंबर जी और सुलभ जी आप सभी की बहुमूल्य टिप्पणियो एवम् जर्रानवाजी के लिए तहेदिल से शुक्रिया|

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  25. @ सुलभ जी

    तू मिल गया राहों में तो अब ये सफ़र आसां हुआ
    रातें हसीं दिन है जवाँ शामो सहर हैं शबनमी

    वाह वाह, क्या शेर है मज़ा आ गया
    रातें हसीं दिन है जवाँ शामो सहर हैं शबनमी
    भाई बहुत खूब मिसरा है

    @ राजीव जी
    ये क्या है ?
    अरे ये है क्या ?
    अभी ६ महीने भी नहीं हुआ, आप कहते थे मुझे बहर का कुछ आता पता नहीं
    तो भईया ये कैसे हो गया कौन सी घुट्टी पी है
    मुझे भी बताईये बिना नागा दो समय पियूंगा , कसम से

    मुझे आपकी गज़ल इतनी पसंद आई है की मुझे खुद समझ नहीं आ रहा की मैं ज्यादा क्या हूँ मगर खुश भी और हैरान भी

    @ दिगंबर जी
    आपकी गज़लें मुझे हर बार पसंद आती है मगर इस बार तो आपके अंदाजे सुखन पर मैं कायल हो गया
    कुछ शेर तो सीधे दिल में ईष्या के भाव पैदा कर रहे हैं

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