शुभ हो दीपावली मंगलमय उल्लास से भरपूर हो ये पर्व । सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं । हर वर्ष बीतता है और हम उम्मीद लगाए बैठ जाते हैं पर्वों के फिर से आने की । इस बार भी ये पर्व पुन: आया है । हम सब पिछले समय परेशान रहे, मुश्किलों से जूझते रहे और लड़ते रहे । लेकिन अब पांच दिनों के लिये विराम लेकर मन से मनाएं पर्व को । इसलिये भी क्योंकि सामने तो फिर से वही संघर्ष है और वही समर है । तो आइये दीपको के झिलमिल प्रकाश और आनंद की रस वर्षा में विभोर हो जाएं । इस बार मेरे लिये तो दीपावली खास इसलिये है कि इस बार गौतम, बहू और बिटिया के साथ दीपावली मनाने सीहोर आ रहा है ।
तो आइये मनाते हैं दीपावली आज इन महानुभावों के साथ । ये जो झिलमिलाते हुए सितारें हैं हमारे आकाश के और जिनके कारण हम अमावस में भी पूर्णिमा का एहसास करते हैं । तो आज सुनते हैं राकेश खंडेलवाल जी, लावण्य शाह जी, नीरज गोस्वामी जी, तिलक राज कपूर जी और सबके चहेते समीर लाल जी को तरही की इस समापन किश्त में । और भभ्भड़ कवि भौंचक्के का एक छोटा सा मुक्तक । ये सातवीं किश्त है । और बहुत आनंद के साथ हम आ पहुंचे हैं आज दीपावली के तरही मुशायरे का ये क़ारवां लेकर एन दीपावली को ।
शुभ दीपावली तरही मुशायरा
जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रोशनी
आदरणीय तिलकराज कपूर जी
तम दूर कर, खुशियां भरे, दिल से मने, दीपावली
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी।
हमको रहा, उसपर यकीं, देखा नहीं, जिसको कभी
गर राह से, भटके दिखे, वो आ गया, बनकर नबी।
नबी- ईशदूत, अवतार, पैग़म्बर
उस महज़बीं, मग़रूर के, बस में न थी, ये जिन्दगी,
मेरी मगर, ये कब रही, पल में हुई, जादूगरी।
हमने कभी, सोची न थी, खाने लगे, कस्में वही
ये क्या हुआ, तुम ही कहो, थे कल तलक, हम अजनबी।
क्यूँ आपकी, तस्वीर ये, आठों पहर, मन में बसी,
रहकर अलग, भायी नहीं, क्यूँ जिन्दगी, ओ चॉंदनी।
उसने मुझे, क्या क्या दिया, चर्चा कभी, मैनें न की
रुस्वा न हो, ये सोचकर, मेरी ज़बां, चुप ही रही।
इक याद से सिहरन उठे, इक याद से मिलती खुशी
जीवन डगर, कटती रही, कुछ इस तरह, यादों भरी।
इस शह्र में, किस शख्स को, कब काम से, फ़ुर्सत मिली
एक यंत्र के, पुर्ज़े बने, चलते दिखे, मुझको सभी।
तेरे नगर, में तो दिखी, चारों तरफ़, इक भीड़ सी
ढूँढा बहुत, दिखता नहीं, इस भीड़ में, इक आदमी।
पढ़कर मुझे, उसने कहा, सीखी कहॉं, ये शायरी,
मैनें कहा, तुमपर फिदा, जबसे हुए, ये आ गयी।
लगती सरल, थी ये बहुत, पर अब कठिन, लगने लगी
आसॉं नहीं है शायरी, शब्दों की है, कारीगरी।
इस शौक में, हम थम गये, जिस मोड़ पर, महफिल दिखी
अब तो सभी कहने लगे अच्छी नहीं आवारगी।
‘राही’ अगर, दिल ये कहे, गल्ती करें अपनी सही
उस मोड पर, लौटें जहॉं तक साथ की थी रहबरी।
सारे के सारे मतले और वो भी सब एक से बढ़कर एक । वाह किस पर करें और किस पर न करें । हमको रहा उस पर यक़ीं जिसको नहीं देखा कभी, दीपावली के दिन को सार्थक बनाता हुआ उस ईश्वर की परम सत्ता में भरोसा दिलाता हुआ सा शेर है मजा आ गया ।
आदरणीय समीर लाल ’समीर’ जी
जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी
बोलो वचन ऐसे सदा घुलने लगे ज्यूँ चाशनी
ऐसा नहीं हर सांप के दांतों में हो विष ही भरा
कुछ एक ने ऐसा डसा ये ज़ात ही विषधर बनी
सम्मान का होने लगे सौदा किसी जब देश में
तब जान लो, उस देश की है आ गई अंतिम घड़ी
किस काम की औलाद जो लेटी रही आराम से
और भूख से दो वक्त की, घर से निकल कर मां लड़ी
(CWG स्पेशल)
सब लूट कर बन तो गये सरताज आखिरकार तुम
लेकिन खबर तो विश्व के अखबार हर इक में छपी
वाह वाह समीर जी बड़े दिनो बाद तरही में आए लेकिन धमाका कर ही दिया । जिस देश में सम्मान का सौदा भी जब होने लगे अहा क्या बात कही है । आपके गद्य और पद्य दोनों में ही व्यंग्य का जो स्थाई भाव है वो गहरे तक उतर जाता है ।
आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी
आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए
एक ही बस लक्ष्य बाकी दृश्य सारे खो गए
वर्तिका जलती रही तैंतीस धागों में बंटी
बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी
फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे
जब जलधि लगने लगा थक सो गया है आँख मीचे
पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो
इक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को
मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी
दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
चूनरें धानी रहें मन में हमेशा आस की
ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
वाह वाह वाह क्या गीत है । वैसे राकेश जी की एक ग़ज़ल भी प्राप्त हुई है । स्थानाभाव के चलते जब दोनों में से कोई एक लगाने की समस्या आई तो मन ने कहा कि दीपावली के दिन गीतों के राजकुमार कवि का गीत ही सुनना चाहिये । मिसरा ए तरह को किस प्रकार से गीत के मुखड़े में गूंथा है कि बस । ठोकरों का रोष पथ में अहा अहा अहा । राकेश जी की ग़ज़ल भी जल्द ही दीपावली पश्चात ।
आदरणीय श्री नीरज गोस्वामी जी
संजीदगी, वाबस्तगी, शाइस्तगी, खुद-आगही
आसूदगी, इंसानियत, जिसमें नहीं, क्या आदमी
(वाबस्तगी: सम्बन्ध, लगाव, शाइस्तगी: सभ्यता, खुद-आगही: आत्म ज्ञान, आसूदगी:संतोष)
ये खीरगी, ये दिलबरी, ये कमसिनी, ये नाज़ुकी
दो चार दिन का खेल है, सब कुछ यहाँ है आरिजी
(खीरगी: चमक, दिलबरी: नखरे, आरिजी:क्षणिक)
हैवानियत हमको कभी मज़हब ने सिखलाई नहीं
हमको लडाता कौन है ? ये सोचना है लाजिमी
हर बार जब दस्तक हुई उठ कर गया, कोई न था
तुझको कसम, मत कर हवा, आशिक से ऐसी मसखरी
हो तम घना अवसाद का तब कर दुआ, उम्मीद के
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रौशनी
पहरे जुबानों पर लगें, हों सोच पर जब बंदिशें
जुम्हूरियत की बात तब लगती है कितनी खोखली
फ़ाक़ाजदा इंसान को तुम ले चले दैरोहरम
पर सोचिये कर पायेगा ‘नीरज’ वहां वो बंदगी ?
मतला और मतले के ठीक बाद का शेर उफ मार डाला । वाह वाह वाह क्या कह दिया है नीरज जी आपने, मतले के बाद का शेर तो क़ातिल है, खंजर लिये खड़ा है कि आओ मुझे पढ़ो और क़त्ल हो जाओ । सबसे अच्छी बात तो ये है कि जो आपने 2212 के वज़्न के मुकम्मल शब्द ढूंढे हैं वे तो कमाल के हैं । आपको प्रणाम ।
आदरणीया लावण्या शाह जी
जलतें रहें दीपक सदा, काइम रहे ये रोशनी
अब के दिवाली आये यूं, हर ओर बिखरे बस खुशी
शिकवा नहीं, ना हो गिला, कोई परेशानी न हो
मिट जाएँ सारे फासले, कोई रहे न अजनबी
जगमग जलें, जब दीप तब, हर ओर फिर, हो नूर बस
मिल कर गले, यूं सब मिलें, दिल से मिटे हर दुश्मनी
हर सिम्त अम्नो चैन हो, बच्चे किलकते झूमते
बन कर बुजुर्गों की दुआ, घर घर में उतरे चांदनी
हिन्दू मुसलमां, पारसी, ईसाई, सिख और जैन सब
मिल कर रहें, घुल कर रहें, जैसे के मीठी चाशनी
इसीलिये तो कहा जाता है कि बहनें जहां भी हों उनका एक ही काम होता है दुआएं मांगना । बहनों का दुआएं मांगने का सिलसिला कभी रुकता नहीं है । लावण्य दीदी साहब ने भी पूरी ग़ज़ल में उस ऊपर वाले से किस के लिये नहीं मांगा । वाह वाह वाह ।
सुख सम्पदा भरपूर हो, हर ओर बिखरी हो ख़ुशी
जगमग दीवाली की तरह रोशन हो सबकी जि़दगी
धन-धान्य से भरपूर हो, हर इक नगर, हर एक घर
जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रोशनी
भभ्भड़ कवि भौंचक्के
चलिये सबको दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनाएं । हंसते रहें मुस्कुराते रहें । मेरे हिस्से की मिठाई कोरियर से या जिस भी तरीके से भेजना चाहें तो स्वागत है । परिवार के साथ रहें । आनंद लें । बच्चों को उन छोटी छोटी खुशियों से जोड़ें जो आगे चलकर उनकी स्मृतियों में दर्ज रहें । सबको बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।
आज के उस्तादों पर तो कुछ कहने की हिम्मत नही हो रही। बार बार हर गज़ल को पढ रही हूँ लेकिन ये नही समझ पा रही कि किस किस शेर की दाद दूँ। सभी का हर शेर लाजवाब अनूठा है। आज केवल ये तरही पढने नेट पर आयी हूँ और इन से बहुत सी ऊर्जा ले कर जा रही हूँ। आज सच मे ही किसी एक शेर को कोट नही कर पाऊँगी । राकेश खन्डेलवाल जी, लावण्याशाह जी,नीरज गोस्वामी जी, भाई तिलकराज कपूर जी और समीर लाल जी इन सब को बधाई\ मा शारदे काऐन सब पर यूँ ही आशीर्वाद रहे । इन सब को दीपावली की भी हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंये खुशी की बात है कि आज गौतम परिवार समेत आपके यहाँ दीपावली मनाने आ रहे हैं। उनको और आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें, ढेरों आशीर्वाद।
वाह...बहुत खूब...एक से बढ़ कर एक उम्दा शेर पढ़ने को मिली इस दीवाली के शुभ अवसर पर शब्द,भाव,प्रस्तुति हर तरह से बेहतरीन किस किस शेर की तारीफ करूँ मुझे तो सभी की और सभी ग़ज़लें अच्छी लगी..साथ में गीतकार राकेश जी की रचना तो अलग ही है एक लाज़वाब प्रस्तुति...पूरा का पोस्ट यादगार है..
जवाब देंहटाएंपंकज जी बहुत बहुत आभार साथ ही साथ सभी शायर, और आपको दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ...प्रणाम
तिलक राज कपूर जी, समीर लाल जी,नीरज जी, लाव्न्या शाह जी,और राकेश जी, सभी की गज़्ले बहुत ही सुंदर है. आप सब तो माहेरीन हैं.बहुत बहुत बधाई.....
जवाब देंहटाएंदीपावली के दिन का ये बहुत ही खूब सूरत तोह्फा है.
मुशायरे की क़मियाबी पर सभी को बहुत बहुत बधाई,
और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये......
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जवाब देंहटाएंजब सब हैं हम भाई-भाई
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
आओ सब मिलकर खाए मिठाई
और भेद-भाव की मिटाए खाई
पंकज जी, बधाई....बहुत सफ़ल रहा ये आयोजन.
जवाब देंहटाएंसमापन पर सभी ने फ़न का शानदार प्रदर्शन किया है..
इक याद से सिहरन उठे, इक याद से मिलती खुशी
जीवन डगर कटती रही कुछ इस तरह यादों भरी
तिलक राज जी,
बहुत उम्दा शेर दिया है आपने...
ऐसा नहीं हर सांप के दांतों में हो विष ही भरा
कुछ एक ने ऐसा डसा ये ज़ात ही विषधर बनी
समीरलाल जी,
क्या कह गए आप....वाह वाह वाह
राकेश जी के गीत ने मन मोह लिया बधाई.
नीरज के कलाम का तो कहना ही क्या
हैवानियत हमको कभी मज़हब ने सिखलाई नहीं
हमको लडाता कौन है ये सोचना है लाज़िमी
ऐसे शेर नीरज जी की पहचान हैं...
हर सिम्त अम्नो-चैन हो बच्चे किलकते झूमते
बनकर बुज़ुर्गों की दुआ घर घर में उतरे चांदनी
लावण्या जी बेहतरीन कलाम है आपका
और भभ्भड़ जी की ये दुआ दीपावली का तोहफ़ा है.
सभी को सपरिवार दीपोत्सव की शुभकामनाएं.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
जवाब देंहटाएंहम खुशकिस्मत हैं कि हमे उस्ताद जनों की सोहबत मिल रही है.
जवाब देंहटाएंआज शुभ दिन अगणित आनंद की सौगात है.
कल जब आदरणीय तिलक जी के कमेंट मे शायरी लहरा रही थी तो इंतजार था जल्दी से वो हमारे बीच आयें................. बेमिसाल ग़जल !!
आदरणीय समीर जी, आदरणीय राकेश जी, आदरणीया लावण्या जी अौर हरदिल अज़िज आदरणीय नीरज जी ने जिस कारीगरी से अशअार प्रस्तुत किये हैं वो अद्भूत है.
अाचार्य जी ने जिस खुबसूरती से मुशायरे का समापन किया है ये अानंदोत्सव का चरम है.
**शुभ दीपावली**
हर शायर कमालकर रहा है. दो दिग्गजों ने कुछ ज्यादा कौशल दिखाया है. यह नए shayaron के लिए प्रेरक होगा. अगर लोग उनकी बारीकी को समझें. मज़ा आ गया. सृजनशील logon ki yahi deevalee hai.
जवाब देंहटाएंदीपावली के इस मौके पर यहाँ तरही मुशायरा देख कर दिल खुश हो गया।
जवाब देंहटाएंपंकज जी को दीपावली पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ! बस अगले माह आप से मिलने का अवसर उपस्थित हो रहा है।
समीर भाई इसी तरह मिट्टी से जुड़े रहना और सार्थक बातें कहते रहना, एक से बढ़़कर एक शेर और मत्ले के एक दम बाद तो बब्बर शेर। आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंराकेश जी के गीत हमेशा ही लुभाते रहे हैं और उनमें अवसर जुड़ जाये तो बात ही कुछ और रहती है। नये नये शब्दों से परिचय कराता गीत।
नीरज भाई का शब्द चयन कुछ ऐसा रहता है कि कार्ड गेम का आभास देता है, एक के उपर एक शब्द इस तरह आता है कि देखते ही बनता है। भूखे पेट न भजन गोपाला को खूब बॉंधा है मक्ते के शेर में।
लावण्या शाह जी का हर शेर दिल से दुआ दे रहा है हर दुआ पर कहता हूँ 'आमीन(ऐसा ही हो)'।
पंकज भाई आपने एक ही मुक्तक में सभी दुआओं का असर पैदा कर दिया, फिर से कहता हूँ 'आमीन'।
वाह वाह वाह्……………बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर रचनाएँ है!
जवाब देंहटाएं--
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
ख़ूबसूरत अशआर, बेहतरीन ग़ज़लियात, मुशायरे की शानदार रवानी, खचाखच भरी महफ़िल, तालियों की गडगडाहट ,इससे ज़ियादा क्या चाहिये किसी अदीब को। दीप पर्व की बधाई व सलाम इस अन्जुमन को।
जवाब देंहटाएंमहारथियों को पढ़वा दिया आपने।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव आपने भी कहाँ इतने दिग्गजों के बीच इस नाचीज़ को खड़ा कर दिया...बहुत ना इंसाफी है ये तो...मारे शर्म के नज़रे ऊपर नहीं उठा पा रहा हूँ...हर गज़ल कमाल की है भाई राकेश का अपना अंदाज़ है जिसका कोई सानी नहीं...तिलक जी से गज़ल कहने की कला सीखी है और अभी तक सीख रहा हूँ...समीर लाल जी तो अद्वितीय हैं उनके बारे में जितना कहा जाये कम है गद्य और पद्य में महारत हासिल है उन्हें...लावण्या दी का शब्द और भाव चयन विलक्षण है...इन सब के बीच मैं...इस बात को अभी तक हज़म नहीं कर पाया हूँ...सच्ची...
जवाब देंहटाएंआपने इस बार तरही में कमाल किया है उम्मीद है आने वाली तरहियों में भी आपके हुनर का डंका यूँ ही बजता रहेगा.
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं.
नीरज
अदभुत प्रस्तुतियाँ! सब एक से बढ कर एक! उस्तादों का जग्मगाता जलवा!सभी को दिल की गहराईयों से
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली!
"तमसो मा ज्योतिर्गमय"
आदरणीय समीर जी, आदरणीय राकेश जी, आदरणीया लावण्या जी अौर हरदिल अज़िज आदरणीय नीरज जी ने जिस कारीगरी से अशअार प्रस्तुत किये हैं वो अद्भूत है.
जवाब देंहटाएंsoch bhi sochti hi rah gayi hai Neeraj ki shaili par, Sameer ki nageenedari par, Rakesh ji kie kavya kaushal par aur behen Lavanya ko in kataron mein dekh kar bahut hi anand aaya. unki duayein raas aye hum sabko.AMIN
दीपावली मुबारक हो मेरे परम गुणी अनुज आपके लिए तथा समस्त परिवार , मित्रों के लिए भी - व नूतन वर्षाभिनंदन !
जवाब देंहटाएंऐसी ही दीपावली सबके जीवन में सुख- समृद्धि
लेकर, सौ बार से अधिकआये।
दीपों की रौशनी से अपनाबाह्य जगत ही नहीं,
अंतरतम भी जगमगाए।
आपने तो कमाल कर दिया आज !
" शाह परिवार " को, "
को ये अवसर दिया ..शुक्रिया !
श्री राकेश जी व सौ. भाभी जी ,वाह !
श्री नीरज भाई व सौ. भाभी जी ,
प्यारी गुडीया मिष्टी के संग , अहा !
सौ साधना भाभी जी व ब्लॉग जगत के बेताज बादशाह, श्री समीर लाल " समीर " भाई को चीयर्स ! :)
और भाई श्री तिलक राज व उनकी
'काव्य प्रेरणा ' धर्मपत्नी सभी को ,
मेरे हार्दिक अभिनन्दन और ढेरों दुआएं
भेज रही हूँ ,
सभी के लिए HAPPY DIWALI ...
वे सभी , जो यहां आये,
रुके और स्नेहसिक्त बातें लिख कर गये हैं ........आभार !
आपने मेरी कविता को ग़ज़ल बना कर पेश किया उसके लिए :) अंतर से शुक्रिया ......
आज से आप भी हमारे " गुरु जी अनुज " हुए ..इसी तरह सभी को साथ लेकर चला करें !
ईश्वर, आपको , हर दुविधा से
दूर रखें और सौ भाभी जी के पास रखें ! :) चि. परी व चि पंखुरी को ढेर सारा प्यार व आशीर्वाद ....
& last but not least,
Happy Diwali to Major Gutam & Family with an honorable
" Salute ! "
We are so proud of YOU ...
Enjoy Diwali ...
अब आज्ञा ,
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
पिछले तीन दिन से तरही मुशायरा मेरे लिए "गूंगे का गुड" हो गई थी
जवाब देंहटाएंमोबाइल पर सब अंक पढ़ रहा था मगर कमेन्ट नहीं कर पा रहा था, मन कैसा कसमसा रहा था मैं ही जानता हूँ
आज का अंक तो जैसा की, मैंने अभी अभी नीरज जी को फोन पर कहा है की पंडाल हिलाऊ साबित हुआ
पूरा मुशायर - क्या संचालक गुरु जी, क्या गुरु कुल, क्या ब्लॉगर, क्या पाठक, क्या तम्बू कनात :) सब वाह वाह कर रहे हैं
ऐसी दीपावली तो कभी मनाई ही नहीं गई
बस मज़ा आ गया
जिन शेरों ने दिल लूट लिया -
जवाब देंहटाएं@ तिलक जी
हमको रहा, उसपर यकीं, देखा नहीं, जिसको कभी
गर राह से, भटके दिखे, वो आ गया, बनकर नबी।
@ समीर जी
ऐसा नहीं हर सांप के दांतों में हो विष ही भरा
कुछ एक ने ऐसा डसा ये ज़ात ही विषधर बनी
@ राकेश जी (गीत का यह बंध)
ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
चूनरें धानी रहें मन में हमेशा आस की
ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
@ नीरज जी
संजीदगी, वाबस्तगी, शाइस्तगी, खुद-आगही
आसूदगी, इंसानियत, जिसमें नहीं, क्या आदमी
ये खीरगी, ये दिलबरी, ये कमसिनी, ये नाज़ुकी
दो चार दिन का खेल है, सब कुछ यहाँ है आरिजी
@ आदरणीया लावण्या शाह जी
हिन्दू मुसलमां, पारसी, ईसाई, सिख और जैन सब
मिल कर रहें, घुल कर रहें, जैसे के मीठी चाशनी
इस बार तो मैदानेजंग में सारे ही महारथी पधार गए ! किसी एक शेर, ग़ज़ल या शायर की तारीफ़ करना मुनासिब नही लगता. सब के सब एक से बढ़ कर एक. सब को नमन ! ईश्वर इन सब को लम्बी उम्र दे ताकि ये सब ऐसे ही लिखते रहें और हम सब पढ़ कर आनंदित होते रहें.
जवाब देंहटाएंगुरु जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह इस बार भी तरही ने नए आयाम स्थापित किये
पुराने रिकार्ड टूटे, नए बने
एक से बढ़ कर एक गज़लें पढ़ने को मिली
और कई ग़ज़लों नें तो चौका ही दिया
हर बार की तरह नए लोग भी जुड़े
आपका मुक्तक तो दीपावली का बोनस हो गया जो मिले तो दिल खिल जाता है :)
अब मिठाई को कोरियर से क्या भेजें, २२ को सूद समेंत आपको पेश की जायेगी :)
इतना बड़ा त्यौहार भी जा रहा है और तरही भी विदा ले रही है
अब जो कुछ दिन का खालीपन आने वाला है, सोच कर ही मन बेचैन हो रहा है
बस यही कहूँगा की,
यह सब कुछ जो है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आपका वीनस
देरी से टिप्पणी के लिए क्षमा. ग़ज़लें तो पढ़ ली थीं लेकिन टिप्पणी नहीं कर पाया था.
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया.
नीरज जी और तिलक जी की गज़लें जब भी पढूं तो दिल से वाह निकलती है. तिलक जी का "पढ़ कर मुझे.." बेहद पसंद आया.
नीरज जी के "हर बार जब दस्तक हुई.." और "हैवानियत.." वाले शेर खास तौर पर पसंद आये.
लावण्या जी को शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ. बहुत ही उम्दा गज़ल है.
समीर जी के "सम्मान का होने लगे सौदा.." और "किस काम की औलाद.." शेर तो लाजवाब है. वाह.
राकेश जी के गीतों की तो जितनी भी तारीफ करें कम होगी.. इतने अच्छा शब्दों का चयन होता है और इतनी अच्छी लय होती है की अगर किसी अहिन्दी भाषी को भी सुनाएँ तो वह भी झूम उठे. "अँधेरी रात का सूरज" मैं अक्सर जब भी समय मिले पढता रहता हूँ.
एक से बढ़ कर एक ... सभी लाजवाब ... सभी उस्ताद .... बस आनंद ही लूटना चाहते हैं हम तो ... और वो खुल कर बंट रहा है आज आपके ब्लॉग पर ....
जवाब देंहटाएंभाव, शब्द, जज़्बात, एहसास .... सब कुछ है यहाँ .... आपका बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव ... इस सफल आयोजन के लिए .... आपकी ये खूबी है की शिष्यों को बिना एहसास कराये ही ज्ञान की सरिता बहा रहे हैं आप .... इन तरही के बहाने बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है ....
मेरा आपसे आग्रह है की इन मुशायरों को मासिक कर दिया जाए और हर बार नयी बहर पर काम हो .... वाह ... मज़ा आ जाएगा ....
इतने बड़े नामों के बीच अपना नाम देख....बस, उसी में मगन हूँ..तो टिप्पणी ही नहीं दे पाया.
जवाब देंहटाएंएक से गज़ब एक...अद्भुत!!
पिछले कुछ दिनों से दीवाली के अलावा ओबिओ के महा इवेंट में भी कुछ ज़्यादा ही व्यस्तता हो गयी थी, लिहाजा देर से आने के लिए क्षमा|
जवाब देंहटाएंपंकज जी मुशायरे का ये दौर भी ग़ज़ब ढाने वाला रहा| ऑनलाइन तरही का भी अपना अलग ही मज़ा है|
तिलकराज कपूर जी:
इतने सारे मतला-ए-हुस्न, ग़ज़ब, ग़ज़ब, ग़ज़ब| अजनबी वाला मिसरा बड़ी ही सहजता के साथ तंज़ करने में कामयाब है|
"इक याद से सिहरन उठे, इक याद से होती खुशी" सुख-देख के संगम में स्नान करने का मज़ा आ गया तिलक राज जी|
इस शह्र में............, ढूँढा बहुत मिलता नहीं................, मैने कहा तुम पर फिदा......... के साथ साथ आसाँ नहीं है शायरी......... वाले मिसरों ने दिल जीत लिया| आख़िर में रही सही कसर पूरी कर दी उस मोड़ पर लौटें............. वाले मिसरे ने|
बहुत बहुत बधाई तिलकराज जी|
समीर लाल जी:
कुछ एक ने ऐसा डसा ............ वाले मिसरे का कथानक बहुत ही सार गर्भित है समीर भाई|
भूख से माँ लड़ी.......... और कमान वेल्थ वाले शे'र भी बहुत बहुत खूब रहे समीर जी|
राकेश खंडेलवाल जी:
पंकज भाई आप ने सही किया जो राकेश जी के गीत को पढ़ने का मौका दिया हम सभी को| लयबद्धता का परचम फहराता, तरही के मिसरे को आत्मसात कर अपनी अलग सुगंध बिखेरता यह गीत वाकई स्तुत्य है| बधाई राकेश जी|
नीरज गोस्वामी जी:
नीरज भाई आप ने इस ग़ज़ल में सिलेब्स की जो जादूगरी दिखाई है, वाकई काबिलेतारीफ है| आम तौर पर काफ़िए मिलाने के लिये जो लोग संघर्ष करते हैं, आप के द्वारा कही गयी यह ग़ज़ल पढ़ कर उन की शिकायत काफ़ी हद तक दूर हो जायेगी|
लावण्या शाह जी:
अदब में गुजराती ग़ज़ल का अलग ही स्थान है| इसी शौक के चलते कभी कुछ ग़ज़लें लिखी थीं गुजराती में, एक शे'र आपसे शेयर करना चाहूँगा:
આધુનિકતા ની કથાઓ દર્જ છે ઇતીહાસ માં,
કેટલા ગામો ગુમાવ્યા, શહેર ના વિસ્તાર માં.
एक गुजराती का अन्य भाषा पर यह अधिकार नितांत वंदनीय है|
हर सिम्त अम्नोचैन हो, बच्चे किलकते झूमते|
बन कर बुजुर्गों की दुआ, घर घर में उतरे चाँदनी||
लावण्या जी ऐसा नहीं कि यह ख़याल पहली मर्तबा किसी ने पेश किया है, परन्तु एक माँ ने इसे जो सहजता और सुगम्यता दी है वह निस्संदेह गौर करने की बात है| इस से ज़्यादा किसी को और चाहिए भी क्या| धन्य हैं आप और धन्य वे परिवारी जन [ગુજરાતી માં કહૂઁ તો ઘર ના મોટાઑ] जिन्होने आप को इतने सुंदर संस्कार दिए|