गुरुवार, 4 नवंबर 2010

आज छोटी दीपावली मनाने आ रहे हैं तरही मुशायरे में गौतम राजरिशी, कंचन चौहान, रविकांत पांडेय, प्रकाश अर्श, अंकित सफर और वीनस केशरी

आज छोटी दीपावली है कुछ लोग इसको नरक चतुर्दशी भी कहते हैं पता नहीं क्‍यों । लेकिन आज के दिन सुबह उबटन लगा कर नहाने का रिवाज़ है । तो चलिये आज हम ज्‍यादा बात नहीं करते हुए मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं । अब इसके बाद केवल एक पोस्‍ट बाकी रहेगी  । आज अपनी ग़ज़लें लेकर आ रहे हैं गौतम राजरिशी, कंचन चौहान, रविकांत पांडेय, प्रकाश अर्श, अंकित सफर और वीनस केशरी ।

शुभ दीपावली तरही मुशायरा

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जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रोशनी

गौतम राजरिशी

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हर साल आती और कहती है यही दीपावली

जलते रहें दीपक सदा, कायम रहे ये रौशनी

जब तौलिये से कसमसा कर ज़ुल्फ उसकी खुल गयी

फिर बालकोनी में हमारे झूम कर बारिश गिरी

करवट बदल कर सो गया था बिस्तरा फिर नींद में

बस आह भरती रह गयी प्याली अकेली चाय की

ये गुनगुनी-सी सुब्‍ह शावर में नहा कर देर तक

बाहर जब आयी, सुगबुगा कर धूप छत पर जग उठी

उलझी हुई थी जब रसोई सेंकने में रोटियाँ

सिगरेट के कश ले रही थी बैठकी औंधी पड़ी

इक फोन टेबल पर रखा बजता रहा, बजता रहा

उट्ठी नहीं वो दोपहर, बैठी रही बस ऊँघती

लौटा नहीं है दिन अभी तक आज आफिस से, इधर

बैठी हुई है शाम ड्योढ़ी पर जरा बेचैन-सी

क्यूँ खिलखिलाकर हँस पड़ा झूला भला वो लान का

आयी जरा जब झूलने को इक सलोनी-सी परी

गौतम मेरे विचार में तुम्‍हारी अब तक की सबसे श्रेष्‍ठ ग़ज़ल है ये । जब तरही लगा रहा था तो करीब आधा घंटे तक इस ग़ज़ल में उलझा रहा । उन सब जगहों को तलाशता रहा जो इस ग़ज़ल में शामिल हैं । फिर आंख में आंसू आ गये '' जो बड़री अंखियन निरख अंखियन को सुख होय'' ( जैसे अपनी ही बड़ी हो रही आंखों को दर्पण में निरख रही आंखों को सुख होता है   ) । किसी एक शेर को कोट करने की हालत में नहीं हूं ( किस किस को करूं )

कंचन चौहान

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हम से खफा, हम पे फिदा कैसी मिली ये जिंदगी,
बेबात रूठी एक पल, इक पल गले हंस कर मिली
ढूँढ़ा किये खोया हुआ, ठुकरा दिया पाया हुआ,
किस्मत भी पाई कुछ अजब और कुछ अजब फितरत मेरी
आई बहारें भी यहाँ, ऐसा नहीं, आई नहीं
हम बाग से या दूर थे, या मन की खिड़की बंद थी ।
हमको बता ना हर दफा, है प्यार हमसे ही तुझे,
करना पड़े जिसको बयाँ, ना प्यार ऐसी शै कोई।
कुछ तो हुआ होगा कि जो नज़रें चुराई बेवज़ह,
डरते हो मेरे इश्क से या बात ये कारन बनी ?
सबका है अपना आसमाँ, सबका है अपना चाँद भी,
पर चाँद पाकर ये लगा, सबसे तनिक दूरी भली
जगमग जहाँ को देख कर, तम मेरे मन का ये कहे,
जलते रहें दीपक सदा, काइम रहे ये रोशनी।

कंचन तुम अचानक से ही चौंका देती हो मुझको । जब भी मुझे लगता है कि ये लड़की बहुत लापरवाह है इसका तो कुछ नहीं हो सकता, ये अपनी सारी ऊर्जा बतौलेबाजी में व्‍यर्थ कर देती है, तब अचानक तुम सबका है अपना आसमां सबका है अपना चांद भी जैसा दूसरी दुनिया का शेर लिख कर मेरा भरम तोड़ देती हो   । वाह क्‍या लिखा है ।

 

रविकांत पांडेय

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बूढ़ा शज़र रोता रहा, रोते रहे पत्ते सभी
जब पांव से रौंदी गई मासूम सी कोई कली
वो मतलबी सब यार थे, सारे ज़ुदा होते गये
दौरे सफ़र यूं रह गया अब सिर्फ़ मैं और शाइरी
मेरा जिगर और दिल जला कर यूं कहा फ़िर यार ने
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
झूठे तभी सब आपको लगते रहे किस्से मेरे
शायद अभी यूं आपने देखी नहीं दीवानगी
यूं नींद तो आती नहीं उन मखमलों के सेज पर
होंगे महल तुझको भले, मुझको भली है झोपड़ी
इस शहर में यूं खोजते बीती कई सदियां रवी
कुर्सी मिली, पैसा मिला, बस ना मिला तो आदमी

रवी की गंभीरता तो हमेशा से ही कविताओं में दिखाई देती है और ये गंभीरता ही रवी की ग़ज़लों को विशिष्‍ट बनाती है । आज तो मैं कायल हो रहा हूं उस गिरह का जो रवी ने लगाई है आनंद की गिरह है ये । इस प्रकार से भी सोचा जा सकता है ये बात मन को छू गई । अहा क्‍या गिरह है श्रेष्‍ठ गिरह । तालियां ।

प्रकाश अर्श

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आँखों से मैं कहने लगा, आँखों से वो सुनने लगी !

कैसा है ये लहजा, इसी को कहते हैं क्या आशिकी !

जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी ,

बस इस दुआ में हाथ ये उट्ठे  हैं रहते हर घडी !

आहों में तू, सांसों में तू, नींदों में तू, ख्‍़वाबों में तू

कैसे रहूँ तेरे बिना तू ही बता ऐ ज़िंदगी !

तौबा वो तेरी भूल से कल जुगनूओं में खौफ था ,

तू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गयी !

वो चाह कर भी रोक न पाएगी अपनी ज़ुल्फ़ से ,

जब ले उडेंगी इस तरफ खुश्बू हवाएं सरफिरी !

कैसे कहूँ इस प्यास का रिश्ता नहीं तुझसे भला ,

पाऊं तुझे तो और भी बढ़ जाती है ये तिश्नगी !

क्यूँ तंग नज़रों से मुझे वो देखती है बारहा ,

ऐसी अदा पे आज मैं कह दूँ उसे क्या चोरनी !

क़ाबिज हुआ चेहरा तेरा  कुछ इस तरह से जह्न में,

खीचूं लकीरें जैसी भी बन जाती है तस्वीर सी !

आया न कर  तन्हाई में यूं छम से तू ऐ दिलरुबा ,

ये जान लेकर जाएगी एक दिन तेरी ये दिल्‍लगी !

प्रकाश जो कुछ करता है वो किसी और के बस की बात नहीं है । गौतम के बाद फिर मुझे जो ग़ज़ल आज की पोस्‍ट में सबसे ज्‍यादा भाई वो यहीं ग़ज़ल थी । इस ग़ज़ल की मासूमियत मुझे भा गई । आप जानते हैं ''कैसे कहूं इस प्‍यास का रिश्‍ता नहीं तुझसे भला'' जैसा शेर लिखने वाले प्रकाश ने परसों रात मुझे एसएमएस किया कि गुरूजी मुझे लग रहा है ग़ज़ल लिखना मेरे बस की बात नहीं । अब आप लोग ही दीजिये उसके एसएमएस का उत्‍तर । 

अंकित सफ़र

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फितरत तेरी पहचानना आसां नहीं है आदमी.

मतलब जुडी हर बात में तू घोलता है चाशनी.

तुम उस नज़र का ख्वाब हो जो रौशनी से दूर है,
एहसास जिसकी शक्ल है, आवाज़ है मौजूदगी.

माज़ी शजर के भेष में देता मुझे है छाँव जब,

पत्ते गिरे हैं याद के जो शाख कोई हिल गयी.
मासूम से दो हाथ हैं थामे कटोरा भूख का,
मैंने किसी की आँख में देखा तुझे ऐ ज़िन्दगी.
हालात भी करवट बदल कर हो गए जब बेवफा,
चुपचाप वो भी हो गयी फिर घुंघरुओं की बंदिनी.

लाये अमावस रात से उम्मीद की जो ये सहर,
"जलते रहें दीपक सदा, क़ायम रहे ये रौशनी".
क्यों बेवजह उलझे रहें हम-तुम सवालों में "सफ़र",
जब दरमयां हर बात है आकर भरोसे पर टिकी.

अंकित ने बहुत बहुत आगे जाने वाले दो शेर रच दिये हैं ' मासूम से दो हाथ हैं ' शेर में जिस कमाल का मिसरा सानी लगाया गया है वो धमचक से चौंका देता है । फिर पढ़ो, फिर पढ़ो और आनंद दोबाला होता रहता है । दूसरा शेर है ' तुम उस नज़र का ख्‍़वाब हो'' अंकित इस एक शेर पर क्‍या कहूं बस ये कि हो सकता है कल को मुझे किसी को बताने में गर्व हो कि ये मेरे अनुज का शेर है ।  
 

वीनस केशरी

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किसको सुनाऊं हाले दिल किसको बताऊं बेकली

मन्ज़िल मिली है और मुझको भा गई आवारगी

गज़लों से पहले दोस्ती, फ़िर प्यार अब दीवानगी

मुझको ये बढती तिश्नगी जाने कहां ले जा रही

याद आपको करता हूं तो याद आती हैं कुछ बैठकें

दिल्कश हंसी सादा कहन चटनी सी गज़लें आपकी ( अर्श को )

दे दो इजाजत मैं भी कर लूं इश्क का मीठा नशा

रख दो चिलम पर चांद तो पी लूं ज़रा सी चांदनी

गर पेट भर खाना मिले, भूखे को भी अच्छी लगें

खुशबू, घटाएं, बारिशें, सूरज, हवाएं, चांदनी

तकनीक लाती जा रही है पास लोगों को भले  

पर दूर होता जा रहा है आदमी से आदमी

रोशन मिले हर राह “गज़लों का सफ़र” चलता रहे

“जलते रहें दीपक सदा काइम रहे यह रोशनी”

आज लगता है कि सब ही दीपावली का उपहार मुझे देने पर तुले हैं । वीनस के बारे में मैं हमेशा कहता हूं कि ये जिनती ऊर्जा फिजूल की बहसों और कामों ( कुछ फिजूल के ब्‍लागों ) में लगाता है उतनी ग़ज़ल पर लगाए तो इसको कोई सानी नहीं । ''दे दो इजाज़त कर लूं मैं' में एक बार फिर आसमानी मिसरा सानी है । आसमानी का अर्थ है कि जो ऊपर से उतरता है जो शाइर को ऊपर वाला अता करता है । बच्‍चे तुझे अभी नहीं पता तूने इस मिसरा सानी में क्‍या लिख दिया है । '' रख दो चिलम पे चांद तो पी लूं ज़रा सी चांदनी'' रससिक्‍त है मिसरा, अहा अहा ।

तो चलिये छोटी दीपावली का आनंद लें और कल तरही के समापन में सुनें कुछ वरिष्‍ठों को ।

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छी ग़ज़लें. विस्तार से टिप्पणी के लिए बाद में आता हूँ. फिलहाल तो गुरुभाइयों से इर्ष्या हो रही है..

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  2. सभी एक-से-बढ़कर-एक ग़ज़लें हैं... बेहतरीन

    सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  3. सभी रचनाएं बेहतरीन हैं
    ...बहुत सुंदर।
    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की मंगलकामनाएं।

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  4. अज की छिकडी तो वैसे ही कमाल की है तो इनकी गज़लें भी कमाल हैं। गौतम जी को पढने की इच्छा रहती है मगर अब कुछ व्यस्तता के चलते कम पढने को मिल रहे हैं इस लिये आज उनका नाम देख कर बहुत खुशी हुयी।
    जब तौलिये से ----- वाह नई बात । शायद जो महसूस किया जस का तस लिख दिया।
    इक फोन टेबल---- शायद इस लिये कि वो फोन जरूर गौतम का होगा और उसने नही उठाया होगा तो शेर बना दिया हा हा हा
    हए एक शेर उमदा। गौतम को बहुत बहुत बधाई।
    और कंचन तो अब पूरी कंचन बन निखर गयी है
    ढूँढा किये खोया----
    सबका है अपना आसमा----
    लाजवाब शेर घडे हैं कंचन ने बहुत बहुत बधाई।
    रविकान्त जी ने तो और भी कमाल दिखाया
    पहले मतला -- वाह
    यूँ नींद तो आती----
    इस शह्र मे ---- बहुत बढिया शेर हैं रवि जी को बधाई।
    अर्श अर्श अर्श क्या कहूँ इस लडके को ये तो अब हाथ से निकल । हर वक्त आशिकी का भूत सवार रहता है इस पर, अब माँ के लिये भी वक्त नही मिलता। सुबीर कुछ करो इसका इलाज। इसकी आशिकाना गज़ल पर तो तालियाँ बजा लेती हू--
    आहों मे तू-----
    तौबा वो तेरी-----
    आया न कर ---
    वाह वाह क्या बात है। ये तंग नज़र क्या होती है?चोर नज़र तो होती है। लेकिन उसे जनून रहता है नये शब्द घडने का। वाह उस्ताद। बहुत बहुत बधाई।
    अंकित के लिये हमेशा हैरान होती हूँ कि इतनी कम उम्र मे उस्तादना गज़लें कहने लगा है। जरूर आगे चल कर नाम कमायेगा।
    तुम उस नज़र का ----
    माज़ी शजर के ----
    वैसे यहाँ भी मुझे समझ नही आ रही किस शेर की बात न करूँ। कमाल की शायरी है अंकित की
    अब आपकी ये छिकडी भी उस्तादों से आगे निकल जाने की फिराक मे है। गज़ल के इतिहास मे इनके रूप मे सुबीर की झलक मिलती रहेगी। जिसके लिये सुबीर और उनके सभी शिश्य बधाई के पात्र हैं। आप सब को व परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। याद गार मुशायरा रहा ये।

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  5. अच्छा और पठनीय साहित्य, एक स्थान पर। आनन्द आ गया।

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  6. गौतम राजरिशी जी, कंचन चौहान जी, रविकांत पांडेय जी, प्रकाश अर्श जी, अंकित सफर जी और वीनस केशरी की ग़ज़लें एक से बढ़कर एक रहीं...सभी को बधाई.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  7. क्या खुबसूरत समा बांधा है सभी ने मिल कर. सभी को दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
    regards

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  8. सभी रचनाओं का स्तर फ़लक से उपर है। इस ब्लाग से जुड़े हर शख़्स को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  9. गौतम चला कहने ग़ज़ल तो तौलिया किसका गिरा
    किसपर गिरा, कैसे गिरा, क्‍यूँकर गिरा, हमें है पता।
    कंचन लिये उस आस्‍मॉं, औ चॉंद से ये दूरियॉं
    हमसे कहे, वो प्‍यार क्‍या, करना पड़े जिसको बयॉं।
    रविकॉंत जी, इस उम्र में, बूढ़ा शजर, तुमने जिया,
    अहसास ये, इक दिन तुम्‍हें, उँचाई पर, ले जायगा।
    ये अर्श की, इक तिश्‍नगी, जो बढ़ गयी, जितनी मिटी
    जिन्‍दा रहे, उसमें कहीं, मेरी दुआ, है बस यही।
    अंकित, सभी, माज़ी लिये, हर दौर में, जीते रहे,
    तेरे शज़र, में बस रहें, लम्‍हे सदा, खुशियों भरे।
    इस उम्र में, अच्‍छी नहीं, वीनस तेरी, ये बेकली
    हॉं खूब है, पीना तेरा, भार के चिलम, ये चॉंदनी।

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  10. आनंदित हूँ ....ग़ज़ल पढ़कर और ये सोचकर कि ब्लाग्स कि दुनिया साहित्य से कितनी सम्रद्ध है ...धन्यवाद गुरु जी...सारी ही गजले बहुत अच्छी हैं ......HaPpY DiWaLi.... to all of you!!

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  11. सच कहूँ मैं आज भभ्भड़ कवि भौंचक्के से अधिक भौंचक्का हूँ, होना भी चाहिए, कोई भी समझदार (?)इंसान ऐसी अनूठी ग़ज़लें एक ही जगह पर पढ़ कर भौंचक्का नहीं तो और क्या होगा? बकौल चुलबुल पाण्डेय आफ दबंग "कमाल करते हो गुरूजी आप..."

    आज की ये पोस्ट तो युवराज के ट्वंटी टवंटी के एक ओवर में मारे गए छै छक्कों की याद ताज़ा कर गयी. हर छक्का (शायर) दूसरे से कम नहीं है.

    गौतम की गज़ल पढ़ कर चारों खाने चित्त हो गया हूँ...जीवन के छोटे छोटे आत्मीय लम्हों को जिस ख़ूबसूरती से उन्होंने अपने अशआरों में समेटा है उसे पढ़ कर कौन भौंचक्का नहीं होगा? ग़ज़ल में जिंदगी के इन लम्हों को इस तरह पहले किसी ने सहेजा हो याद नहीं पड़ता...जो पढ़ेगा उसे ये गज़ल अपनी लगने लगेगी ...वाह...मेजर..वाह...गुरूजी ने सच कहा है ये गज़ल आपकी खूबसूरत गज़लों में पहले नंबर पर आएगी.

    कंचन के अशआर उसमें छुपी असीमित प्रतिभा को खुल कर प्रदर्शित करने में कामयाब हुए हैं. जितना मैं उसे जान पाया हूँ मुझे उस से ऐसी शायरी की ही उम्मीद थी, और वो मेरी उम्मीदों पर खरी उतरी है. क्यूँ की मुझसे उसने गुरूजी की तरह कभी गप्पें नहीं मारीं इसलिए मैं उसे एक धीर गंभीर प्यार भरे दिल वाली बच्ची के रूप में ही जानता हूँ...लेकिन जिस दिन वो मुझसे भी ऐसे ही गप्पें मारेगी उस दिन से वो मुझे और भी प्यारी लगने लगेगी...मुझे चुप रहने वाले लोग जरा कम ही पसंद हैं. उसके "पर चाँद पा कर ये लगा..." मिसरे से एक शेर याद आ गया:(किसका है ये याद नहीं)
    हर हंसी मंज़र से यारों फासले कायम रखो
    चाँद गर धरती पे उतरा देख कर डर जाओगे

    रवि की प्रतिभा का मैं शुरू से कायल रहा हूँ वो जिस सहजता से हिंदी कवितायें लिखता है उसी सहजता से ग़ज़लें, ऐसी प्रतिभा विरलों को ही नसीब होती है. रवि की ये गज़ल कमाल की है और गिरह सच में बेजोड.

    प्रकाश न जाने क्यूँ आज कल कम लिख रहा है मुद्दतों बाद आज उसे आपके ब्लॉग पर पढ़ने का मौका मिला. इतना सुरीला इंसान यूँ खामोश रहे ये अच्छी बात नहीं है. उसकी इस गज़ल में सौंदर्य का उतार चढ़ाव सुरों के आरोह अवरोह की तरह बहूबी प्रदर्शित है.पूरी गज़ल पढ़ना एक निहायत खूबसूरत वादी से गुजरने के सामान है जहाँ कल कल करते झरने ऊंचे बर्फ से ढके पहाड ठंडी हवा के झोंके, घुमड़ते बरसते बादल,घास के हरे भरे मैदान और कलकल करती नदी... सभी का एक साथ अनुभव होता है...वाह...

    अंकित से दो बार मिला हूँ और हर बार मिल कर मेरा यकीन पक्का हुआ है के उसमें एक बहुत बेहतरीन शायर बनने के सारे गुण मौजूद हैं. लफ़्ज़ों का चयन, उनका अद्भुत प्रयोग और नयी सोच उसे सबसे अलग खड़ा करती है. उस से जब मैंने ये तरही वाली गज़ल सुनी थी तो हैरान रह गया...सच तो ये है तब तक मैंने खुद तरही के बारे में सोचा ही नहीं था और उसकी गज़ल सुन कर इरादा कर लिया के अब सोचूंगा भी नहीं...मैं लाख कोशिश कर के भी उस के स्तर नहीं छू पाउँगा...

    वीनस तो जैसे ऊर्जा का ज्वालामुखी है...इस उम्र में जैसे शेर वो कहता है उसे कहने में बरसों की आराधना चाहिए...इस गज़ल में किये प्रयोग मुझे चमत्कृत कर गए हैं...उसने मानो अपनी ही गज़लों के लिए कहा है " चटनी सी ग़ज़लें आपकी..." और उसका "रख दो चिलम..." वाला शेर तो हासिले मुशायरा शेर है भाई...जियो...

    इन शायरों को पढ़ कर कौन कहेगा उर्दू/हिंदी गज़ल का भविष्य उज्जवल नहीं है...बल्कि गज़ल के भविष्य को लेकर चिंतित होने वालों को आपकी आजकी पोस्ट पढ़ लेनी चाहिए...सारे शंका बादल छट जायेंगे....ये मेरा दावा है.

    नीरज

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  12. आज तो एक से बढकर एक उस्ताद है यहाँ ……………यूँ लग रहा है जैसे चारों तरफ़ दीपावली के दिये जगमगा उठे हों…………बेहद उम्दा गज़लें……………हर शायर लाजवाब्।
    दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

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  13. वाह वाह ... गौतम जी में प्रेम के अनोखे अंदाज़ में ग़ज़ल कह दी .... जब तौलिये से कसमसाकर .... या फिर इक फोन तबल पर रखा .... गज़ब की मासूमियत है सब शेरों में ... सबका है अपना आसमां .... कंचन जे ने तो जीवन तो बहुत ही दार्शनिक अंदाज़ में कह दया है .... हर शेर कुछ नवीन दर्शन लिए है .....
    आज तो रवि कान्त जी ने भी बहुत दार्शनिक अंदाज़ में अपने शेर कहे हैं ... गुरुदेव ने सच कहा .. क्या गिरह लगाई है रवि जी मज़ा ही आ गया ....
    आहों में तू, साँसों में तू .... अर्श जी को प्यार तो हो गया है .... लगता है अब जुदाई का मज़ा भी ले रहे हैं वो .... प्यार के मासूम एहसासों को छुवा है उन्होंने ....
    अंकित जी का शेर ... मासूम से दो हाथ हैं ... नज़र आती है उनकी संवेदनशीलता ... नाज़ुक दिल है इस कवी का ....
    और वीनस जी .... दिल खींच कर ले गए हैं आपके शेर तो .... दे दो इजाजत मैं भी कर लूं..... और ..... गर पेट भर .... आज के बहतरीन शेरोन में से एक हैं ....
    बधाई गुरुदेव को इस जबरदस्त मुशाइरे के लिए ......

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  14. सच कहता हुं. आज तक एैसी दीवाली नही मनाई. सभी प्रियजनों ने जिस प्रकार गजल के मौसम को बांधा है, ये आनंदोत्सव है.

    फिर कहना चाहुंगा - जलते रहे दीपक सदा काईम रहे ये रौशनी.

    आचार्य जी अौर आप सभी को प्रकाशपर्व की बधाई!!

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  15. गौतम राजरिशी जी, कंचन चौहान जी, रविकांत पांडेय जी, प्रकाश अर्श जी, अंकित सफर जी और वीनस केशरी जी की ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं .
    सभी को बहुत बहुत बधाई.
    (और सुबीर जी को खास तौर से बधाई.)

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. आज के दिन को " रूप चौदस " भी कहते हैं
    ( नरक चौदस के बजाय --
    चूंकि उबटन से नहाने के बाद रूप खिलता है न ! :)
    या गुजरात में इसे " काली चौदस भी कहा जाता है -
    तो आज छोटी दिवाली पर सारे ही छोटे भाई बहनों के गुण प्रदर्शन देख उनकी भावनाओं को बखूबी गज़लों में पिरोया देखकर , चतुर्दिक,
    रूप ही रूप प्रकाशित हुआ दीख रहा है -
    कितने सुन्दर बिम्ब चुने हैं गौतम भाई ने
    दीनचर्या के संग जीवन ऐसे ही चलता है ..
    बिटिया कंचन ऐसी संजीदा और स्वप्निल बातें एकसाथ कैसे कह जाती है ?
    आश्चर्य ! बहुत खूब !
    भाई रविकांत ने भी सुन्दर भाव व सहानुभूति को एक साथ पिरोया है ..
    आगे चलें तब प्रकाश अर्श जी दिल की भावनाओं को बड़े सलीके से
    और गहरी आत्मीयता से लिखते हैं,
    मानों अपनी ही बात कोइ और कह रहा हो !
    फिर अन्क्तित सफ़र जी ने भी विषम परिस्थिति के साथ
    प्रकृति का चित्रण बखूबी मिलाया है ...
    भाई वीनस केशरी ने सोचनेवाली बातों के साथ ,
    हमे आगाह भी किया है और सुन्दर ग़ज़ल पेश की है
    आप सबों को ( उम्र में बड़ी होने के नाते ;-)
    स्नेहाशिष और बहुत बहुत बधाई और दीपावली की शुभकामनाएं -
    पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़कर तो खुशी दुगनी हुई और इन सारी खुशियों को
    हम तक पहुंचाने के लिए ,
    गुणी अनुज को बधाई व दीपावली के पावन प्रसंग पर
    समस्त परिवार सहित ,
    आप सभी के परिवार के छोटे और बड़ों के लिए ,
    मेरी , कर बध्ध दीवाली की मुबारकबादी भी ..
    स स्नेह आशिष सहित,
    - लावण्या
    Cincinnati, OH U.S.A.

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  18. इन गजलों की तारीफ़ करने के लिए शब्द कम पड़ेंगे. नीरज जी ने अपनी टिप्पणी में वो सब लिख दिया जो मेरे मन में था..
    किस किस शेर तो कोट करूँ? एक तो करने लगता हूँ तो बाकी शेर नाराज़ होते हैं की भाई हम कौन से ख़राब हैं?
    सब देख लीजियेगा की अंकित आने वाले समय में एक बहुत ही उम्दा शायर के रूप में मशहूर होने वाला है.. यह मेरी भविष्यवाणी समझ लें.

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  19. गौतम राजरिशी जी, कंचन चौहान जी, रविकांत पांडेय जी, प्रकाश अर्श जी, अंकित सफर जी और वीनस केशरी जी की ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं .
    Sochon ki Udaan aasmaan ko choo rahi hai. Bahut hi nageenedari se shabdon mein saji hai ghazalein. har sher ka apna swaroop hai nikhra hua.
    Rajeev Vharol ki tarah mera bhi yahi manna hai...
    इन गजलों की तारीफ़ करने के लिए शब्द कम पड़ेंगे. नीरज जी ने अपनी टिप्पणी में वो सब लिख दिया जो मेरे मन में था..

    बधाई, बधाई, बधाई बधाई
    मुबारक सभी को दिवाली है आई.
    हैं शुभ शुभ सुन्हरा ये त्यौहार लोगो
    जलाकर दिये सबने किस्मत जगाई
    जो श्रधा से पूजन करें लक्ष्मी जी का
    वहीं धन की बरसात ले के वो आई
    सदा माँ सरस्वत कृपा धारणी बन
    दे वर ज्ञान का हर किसी को है भाई
    करे विघ्न का नाश गणनाथ देवी
    हरे कष्ट सारे करे है भलाई
    देवी नागरानी

    जवाब देंहटाएं
  20. एक से बढ़ कर एक ग़ज़ल --
    गौतम बहुत खूब | बधाई |
    कंचन- सबका है अपना समां बहुत बढ़िया लिखा है |
    रवि आप ने तो कमाल ही कर दिया | क्या कहूँ...
    प्रकाश ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आई |
    अंकित और वीनस को क्या लिखूं ..दोनों छोटों ने धमाल कर दी |
    सब को बहुत -बहुत बधाई |
    सुधा ओम ढींगरा

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  21. आज गौतम भैया ने ग़जल मे जो बात कही, हर इक शेर सौ सौ पन्नों की कहानी कह रहा है.
    लौटा नहीं है दिन अभी तक ......
    ........ प्याली अकेली चाय की
    क्या बात है.

    कंचन जी ने अपने अंतर्मन के भावों को खुबसूरती से ग़ंजल मे पिरोया है.
    एक शेर जो मेरी स्थिति को बयाँ कर रहा है
    ढूँढ़ा किये खोया हुआ, ठुकरा दिया पाया हुआ,
    किस्मत भी पाई कुछ अजब और कुछ अजब फितरत मेरी
    ये शायरी ग़जब चीज है.

    रविकांत जी के मतले की जितनी भी तारिफ की जाये कम है.

    प्रकाश अर्श जी की बात ही निराली है, आशिकी मे जाने कितने मंजर दिखा दिये.
    कैसे रहूँ तेरे बिना तू ही बता ऐ ज़िंदगी ! कुछ कहने की जरुरत ही नही.


    अंकित ने वाकई उस्तादों जैसे अंदाज मे संजीदा शायरी की है. हर इक शेर व़जनदार.

    वीनस ने तो अाज अनोखे रंग उढेल दिये. अाज उनसे फोन पर भी बात हुई, ये दिवाली तरही तो हम सब के लिये बहुत बड़ा उपहार है. बस ये सफर चलता रहे.

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  22. गौतम राजरिषी:
    ग़ज़ल में तौलिये से होती बरसात....... वाह भाई क्या कहने| ये हुई ना नये जमाने वाली बात| बैठकी वाला शे'र अपने आप में अपनी तरह का एक अलहदा शे'र है| और लॉन के झूले वाले मिसरे तो जैसे जान ही निकाले दे रहे हैं| बहुत बहुत मुबारकबाद गौतम, यार अब आप को हर बार पढ़ने को दिल हो रहा है|

    कंचन जी:
    हम बाग से या दूर थे, या मन की खिड़की बंद थी|
    आधा गिलास पानी भरा वाली कहावत को बखूबी से उकेरा है आपने इस मिसरे में कंचन जी| जैसे सारा का सारा संगीत सिर्फ़ सात सुरों पर ही टिका हुआ है, ठीक उसी तरह हम लोगों के पास भी चुनिंदा सरोकार, संवेदनायें और मसले होते हैं| हम सब को अपना अपना अंदाज बदलना होता है| आप ने उक्त कहावत को बहुत ही सलीके से पिरोया है अपनी अभिव्यक्ति में|
    पर चाँद पा कर ये लगा, सब से तनिक दूरी भली|
    आपका ये मिसरा बहुत कुछ बयान करता है कंचन जी| आप के हौसले और पैनी नज़र दोनो की दाद देनी होगी|

    रविकान्त जी:
    "अब सिर्फ़ मैं और शाइरी" - अरे भाई हम लोग भी तो हैं आप के साथ .... आप के जैसे ही| गिरह के बारे में मैं पंकज भाई से पूरा पूरा इत्तेफ़ाक रखता हूँ| और आपका ये मिसरा, भाई सुबहानअल्लाह:
    कुर्सी मिली, पैसा मिला, बस ना मिला तो आदमी.........
    भाई आपके अन्दाजेबयाँ के कायल हो गये हम|

    प्रकाश अर्श जी:
    अगर पंकज जी आपको पसंद करते हैं तो यक़ीनन आप इस के हकदार हैं प्रकाश जी|
    आँखों से मैं कहने लगा............ कितना बचपाना कितनी मासूमियत है इन पकतियों में, भाई वाह|
    क्यूँ तंग नज़रों से मुझे वो........... काफ़ी शायराना अंदाज वाला शे'र है ये| नायक के लिए लिखा गया एक बेहतरीन शे'र|
    'छम से तू ए दिलरुबा" ये जब पढ़ा तो लगा जैसे की शायर मेरे सामने बैठा हुआ कह रहा है ये शे'र| 'छम से' वाला प्रयोग बहुत ही रुचिकर है प्रकाश भाई| आम आदमी की बात उसी की ज़ुबान में| बहुत बहुत मुबारकबाद|

    अंकित जी:
    वो धर्मेन्द्र का संवाद है ना "कमीने मैं तेरा खून पी जाऊँगा", इसे कितनी भी बार सुनो, किसी से भी सुनो - हमेशा अच्छा लगता है| ठीक उसी तरह की एक बात को आप ने उतारा है अपने इस मिसरे में:-
    मतलब भरी हर बात में तू घोलता है चाशनी|
    तुम उस नज़र का ख्वाब................. वाले शे'र के लिए आप को ख़ास तौर पर दाद देनी होगी भाई| क्या सोच, क्या समझ और क्या अदायगी, वाह वाह|
    हल्लात भी करवट बदल.............. वाले शे'र में संवेदना अपने उच्च शिखर पर दिखती है|

    वीनस केशरी जी:
    चटनी सी ग़ज़लें आपकी| निदा साहब के आशार में सुना था इस अल्फ़ाज़ [चटनी] को और अब आप के द्वारा| शब्द का सही जगह पर प्रयोग करने में माहिर लगते हैं आप| पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको, इसलिए ऐसा लिख रहा हूँ भाई|
    चिलम पर चाँद......... क्या कहने भाई, बहुत ही उम्दा प्रयोग है ये तो|
    भूख और तकनीक से जुड़े शे'र भी दाद के हकदार हैं|


    मित्रो जब कोई रचनाकार कुछ गढ़ता है, तो अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा समर्पित करता है उस रचना को| ऐसे में अगर हम उस रचनाकार के काम को बकायदा सराहें, तो ऐसा करने से उस रचनाकार को बड़ी ही तसल्ली मिलती है|

    सभी मित्रों को दीपावली की ढेरों शुभ कामनायें|

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  23. @ गौतम जी -

    सच कह रहा हूँ जब मैंने मतला पढ़ तो मुझे सामान्य सा लगा, कोई नई बात नहीं लगी
    मगर भैया गज़ब हो गया
    दूसरे शेर से आठंवें शेर तक जो आपकी गज़ल ने मुझे झुमाया है
    जो नशा चढा है वो अभी तक नहीं उतरा, खुमारी ऐसी छाई है की क्या कहूँ
    दीदी से आपाका नया मोबाइल नंबर माँगा तो मिल नहीं पाया गुरु जी को फोन करता रहा की आपसे भी बात हो जाए मगर वो भी न हो पाया
    तो अब यही अपने उदगार निकाल रहा हूँ

    मैं बेहिचक इसे आपकी आज तक की ग़ज़लों में सर्वश्रेष्ठ गज़ल कह रहा हूँ, कोई संशय नहीं :)

    पूरा गुरु कुल एक तरफ कर दें और आपकी गज़ल एक तरफ फिर भी आप बाज़ी मार ले गए

    वाह वाह मज़ा आ गया

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  24. आप सभी ने मेरी गज़ल को पसंद किया व हौसला अफजाई की बहुत बहुत शुक्रिया

    दे दो इजाजत मैं भी कर लूं इश्क का मीठा नशा
    रख दो चिलम पर चांद तो पी लूं ज़रा सी चांदनी

    इस शेर ने मुझे दो दिन और दो रात तक परेशान किया था
    देख कर सुकून मिला की आप सभी को यह शेर पसंद आया

    एक बार फिर से धन्यवाद

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  25. दीपावली की असीम शुभकामनाएं आप सभी को ... और फिर हुई ये लाजवाब शाईरी गौतम भाई की तरफ से ... दूसरा शे'र तो वो मुझे एस . एम् .एस करके सुनाये थे और फिर तिश्नगी बढ़ा दी थी बाकी के शे'र पढने के लिए... मगर जिस नाज़ुक और हसीन लम्हों में उन्होंने इन शेरों को बुना है उन लम्हों को बारे में सोच रहा हूँ ....कमाल के सही शे'र हैं अब ये बस कहने भर की बात रह गई है पुरी ग़ज़ल इन सभी बातों से कहीं और ऊपर ... पर जल भुन रहा हूँ ऐसी शाईरी पर और गुरु जी की बड़ाई सुनकर ... मगर जिसके वो हकदार हैं ये मैं भी मानता हूँ ...
    बहन जी की गज़लें हो गीत हो या नज़्म हमेशा प्रभावित करती हैं सभी रचनाएँ ! ख़ास जो बात होती है इन सभी में वो है कहन , अजीब एहसासात होते हैं सभी में ... जो आपको डंक मरती हैं दर्द भी होता है मगर ज़ख्म का नामों निशाँ नहीं ... आखिर तक ये तरही में उपस्थित हो गईं अच्छा लगा ... इन्हें विशेष तौर पर बधाई दूंगा !
    रवी भाई जिस तरह से गंभीर हैं मैं सकते में आजाता हूं अपनी गंभीरता पर ... विषय का चुनाव हमेशा ही आला दर्जे का होता है इनका !तमाम व्यस्तताओं के बावजूद वो गुरूकुल में तरही की ग़ज़ल लेकर हाज़िर हैं बधाई के पत्र हैं ! सच में गिरह जानलेवा है ! बेहद उस्तादाना !
    तुम उस नज़र का ख्वाब हो जी रौशनी से दूर है ... ये स्टाइल ही है अंकित का जो हमेशा ही चौकाने वाला शे'र कहने में माहिर है ... मैंने किसी की आँख में देखा तुझे ऐ ज़िंदगी .. ये दोनों ही शे'र कमाल के हैं ... खूब खुश रहो भाई ...
    सबसे पहले तो वीनस को शुक्रिया की उसने मेरे ऊपर ही शे'र कह डाले ... ये बहुत ही मुश्किल होता है की आप किसी इंसान के ऊपर शे'र कहें नफासत के साथ !
    मतला फिर से अच्छा कह गया है वीनस ,दे दो इजाज़त मुझको भी ... इस शे'र ने मुझे सोचने पर मजबूर किया है क्या वाकई इसने कहा है यह शे'र है मैं कहना चाहता था जो कह नहीं पाया कभी ... :)...... दो रात जाया करने के अगर ये फल है तो दो चार और जाया करलो भाई ....

    गुरु जी को मेरी ग़ज़ल पसंद आयी इससे बड़ी बात क्या हो सकती है मेरे लिए...अपनी इस ग़ज़ल का एक शे'र जो मुझे ख़ास पसंद है ...

    क़ाबिज हुआ चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जह्न में ,
    खीचूं लकीरें जैसी भी बन जाती हैं तस्वीर सी !!

    आप सभी चाहने वालों ने जिस तरह से हम सभी को आशीर्वाद और प्यार दिया है इस तरही में मैं गुरूकुल के सभी लोगों के तरफ से आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूं... ऐसे ही आप सभी का प्यार और आशीर्वाद मिले ... यही उम्मीद के साथ

    अर्श

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  26. वाह !
    गौतम राजरिशी ने ग़ज़ल को एक नया आयाम दिया है. बहुत रोचक एवं गुदगुदाता सा अहसास !
    कंचनजी सचमुच चोंका गयी !
    रविकांतजी की गिरह पर मुझे अपना एक शेर याद आ गया
    "चाँद निकले या कि मेरा घर जले
    रात को तो रौशनी दरकार है:"
    प्रकाश अच्छे हैं.
    "सफ़र" का सफ़र अलौकिक आनंददायक है.
    और वीनस (गुरूजी का लाडला)......................
    "ग़ज़लों से पहले दोस्ती फिर प्यार अब दीवानगी
    मुझको ये बढ़ती तिश्नगी जाने कहाँ ले जा रही"
    ईश्वर उसकी मदद करे और उसका "ग़ज़लों का सफ़र" इसी खूबसूरती के साथ जारी रहे !
    उसकी चिलम ने तो जैसे मुशायरा लूट ही लिया है ! वाह !! ग़ज़ब !!!

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