सीहोर के कवि सम्मेलन ने अभी तक के सारे रिकार्ड तोड़ दिये । आस पास के लगभग सौ किलोमीटर के इलाके से लोग कवि सम्मेलन को सुनने आये थे । दस से पन्द्रह हजार की जनता बात की बात में जुट गई । और सुबह के पांच बजे तक चलता रहा कवि सम्मेलन । मेरे लिये बहुत अविस्मरणीय रहा ये । क्योंकि मैं पिछली रात भर दतिया के कवि सम्मेलन का थका होने के कारण यहां पर पढ़ने से बच रहा था । घरेलू जनता लोकल कवियों को ज्यादा नहीं सुनती है कहीं न कहीं ये भी मन में था । किन्तु जब मैं चार पंक्तियां पढकर वापस बैठने लगा तो हंगामा हो गया, जनता ने बैठने ही नहीं दिया । फिर चार पंक्तियां फिर चार पंक्तियां और फिर फरमाइशें, फरमाइशें । इतना प्यार मिला कि लगा कि अब रो ही पड़ूंगा । मेरा शहर मुझे इतना प्यार करता है ये मुझे पता ही नहीं था । मेरी कविताएं उनको याद हैं ये पता ही नहीं था । एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा राम और हनुमान वाला अपना छंद सुनाइये, मैं तो हैराना रहा गया । खैर मन ने मानो आने वाले साल भर के लिये ऊर्जा एकत्र कर ली है । फोटो तो आपने http://babbalguru.blogspot.com/2010/10/blog-post_31.html यहां देख लिये होंगे ही । अपने मित्र डॉ. कुमार विश्वास पर अलग से लिखूंगा बावजूद इसके कि पिछली बार जब मैंने लिखा था तो काफी लोगों को अच्छा नहीं लगा था । लेकिन डॉ कुमार विश्वास ने एक बार फिर अपने इस मित्र को अभिभूत कर दिया । डाक्टर मेरा सलाम तुम्हें ।
शुभ दीपावली तरही मुशायरा
जलते रहे दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
आज हम तीन शायरों के साथ तरही को आगे बढ़ा रहे हैं । श्री गिरीश पंकज, श्री राणा प्रताप और श्री अजमल हुसैन खान ।
गिरीश पंकज जी का नाम मुशायरे के लिये नया नहीं है । वे हर बार आते रहे हैं और छाते भी रहे हैं । उनके शेरों में कुछ नया होता है ।रायपुर छत्तीसगढ़ के हैं और साहित्य के क्षेत्र में अत्यंत सक्रिय हैं । आइये उनसे सुनत हैं उनकी ये ग़जल़ ।
चलती रहे कुछ इस तरह सबकी यहाँ पे ज़िंदगी
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
दीपक हमें सिखला रहा है ज़िंदगी का पाठ ये
हर इक खुशी तू बाँट दे जो आई है चल कर अभी
आना तिरा ऐसा हुआ फ़ैली हुई है रौशनी
खुश है बड़ी इस शहर की अब आजकल यह चाँदनी
पूजा यहाँ करता रहे इनसान या आराधना
दिल से रहे सच्चा अगर बेकार है हर बंदगी
रिश्ता नहीं यह बोझ है गर पाप है मन में भरा
दिल में अगर है बात कुछ कह दो तभी हो आदमी
नफ़रत नहीं हम प्यार के प्यासे बड़े हैं दोस्तो
इक बार तो हमसे करो दिल से जरा तुम दोस्ती
वो आपके सब चाहने वाले कहाँ गुम हो गए
सोचो ज़रा आखिर कहाँ कुछ रह गई मुझमें कमी
हर इक घड़ी बस दिल मिरा आवाज़ दे आ जाओ तुम
देखा तुम्हें तब-तब मुझे सचमुच मिली सच्ची ख़ुशी
अब आपके तो रोज ही किस्से गढ़े जाने लगे
पंकज ज़रा घर पर रहो अच्छी नहीं आवारगी
अहा अहा क्या शेर निकले हैं । मकते ने ग़जब ढा दिया है । रिश्ता नहीं ये बोझ है और दीपक हमें सिखला रहा जैसे शेर बहुत ही सुंदर बन पड़े हैं । वाह वाह वाह क्या शेर कहे हैं । बधाई ।
राणा प्रताप सिंह
राणा प्रताप सिंह कुछ समय से हमारे मुशायरों में नियमित आ रहे हैं ।पिछले दिनों जब बात हुई तो पता चला कि ये भारतीय सेना में हैं और एयर फोर्स में हैं । हालांकि मुझे इनके शेरों से कुछ कुछ तो लगता था कि मामला फौज जैसा ही कुछ है। आइये सुनते हैं इनकी ग़ज़ल ।
दीपावली के पर्व पर मांगें दुआ ये हम सभी
जलते रहे दीपक सदा कायम रहे ये रोशनी
शुद्ध मात्राओं वाला शेर
ताने हुए सीना हमारी सरहदों पर जो खड़े
उनके लिए तो रोज होली रोज ही दीपावली
मंदिर गया मस्जिद गया मै और गिरजाघर गया
पर स्वर्ग तो मुझको मिला माँ बाप के चरणों में ही
मायूस मत होना कभी भी जिंदगी की दौड़ में
मिल जाएगी मंजिल अगर तू राह जो चुन ले सही
कर ले इबादत लाख तू पर ये भी संग संग याद रख
करनी मदद लाचारों की साहब की ही है बंदगी
कुछ काम ना आयी यहाँ वाइज ने दी जो घुटटियां
रहबर थे जितने भी यहाँ करते रहे वो रहजनी
महबूब की बातें नहीं और ना ही मैखाने की हैं
शायर के आशारों से अब तो झांकती जिन्दादिली
निश्चल ह्रदय नारी का हर इक रूप में दिखता यहाँ
ममतामयी माँ, प्यारी बहना या हमारी सहचरी
दुःख और सुख को बांटती शौहर के संग बीवी सदा
बनवास पाया राम ने और साथ चल दीं जानकी
वैसे तो मेरे विचार में मतले में ही गिरह को इतना जबरदस्त तरीके से बांधा गया है कि ऐसा लग रहा है जैसे ये मिसरा इसी मिसरे के लिये बना था । और दूसरा सबसे सुंदर शेर है आखिर का शेर । अहा अहा क्या लिखा है बनवास पाया राम ने और साथ चल दीं जानकी। बाकी के शेर भी बहुत सुंदर हैं लेकिन इन दोनों ने मन को बांध लिया ।
डॉ अज़मल खान लखनऊ के हैं और पिछले एक दो मुशायरों से बराबर आ रहे हैं । मगर इनका कोई पूरा फोटो उपलब्ध नहीं है एक आधा अधूरा सा फोटो है जो इनकी प्रोफाइल पर लगा है । पता नहीं क्यों इन्होंने अपनी पहचान को गोपनीय बना रखा है । खैर आइये ग़ज़ल सुनें ।
रौशन ज़मी पर कहकशां जज़्बों पे है दीवानगी
हर सिम्त से इक शोर है लो आ गई दीपावली ।
है ये दुआ लब पर मिरे बदले न ये मंज़र कभी
जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रौशनी ।
है रोज़ कब होती यहाँ ईदे चरागाँ यार अब
उठ कर मिलो हम से गले छोडो ज़रा ये बेरुखी ।
कहते सभी हैं डाक्टर मत खाइये है ये मुज़िर
इतनी मिठाई देख कर काबू रखें कैसे अजी ।
ऐ मालिके दोनों जहां चमके मिरा हिन्दोसिता
बढ़ता रहे फूले फले बिखरी रहे हर सू ख़ुशी ।
दीपक अजी ये शेर हैं याराने महफ़िल लीजिये
“अजमल” ने भेजी नज्र है क़ाइम रहे ये दोस्ती ।
मतला मकता और गिरह का शेर तीनों ही जबरदस्त बने हैं । विशेष कर गिरह तो बहुत ही सुंदर तरीके से लगी है । भारत के लिये जो दुआ मांगी है वो भी बहुत ही खूबसूरत तरीके से मांगी गई है । ऐ मालिके दोनों जहां ये शेर तो जबरदस्त है । वाह वाह वाह ।
तो ये आज के तीनों ही शाइर हैं तीनों ने ही आनंद की ग़ज़लें कहीं हैं । तरही को नया मुकाम दे दिया है । तो चलिये आनंद लीजिये इनका और कल सुनिये बाकी के शायरों को ।
बहुत बढ़िया लगा सबसे मिलकर ! आप ऐसे ही साहित्य की शोभा बढ़ाते रहें !
जवाब देंहटाएंपंकज जी को पढना हमेशा अच्छा लगता है। उनकी हर गज़ल ज़िन्दगी का सच ब्याँ करती सी लगती है।
जवाब देंहटाएंपूजा यहा करता ----
रिश्ता नही---
उमदा शेर वैसे पूरी गज़ल ही अच्छी लगी। पंकज जी को बधाई।
जब भी फौजियों को पढती हूँ सिर श्रद्धा से झुक जाता है इतनी कठिन परिस्थितिओं मे भी दिल का जज़्वा बनाये रखते हैं--
ताने हुये सीना--- वाह कितना उत्साह है इस शेर मे
महबूब की बातें----
निश्छल हृदय---- वाह
लाजवाब गज़ल है। प्रताप जी को बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद।
ड. अजमल हुसैन जी की गज़ल किसी उस्ताद से कम नही।
रोज़ कब होती-----
कहते हैं डा. मत खाईये---कहीं हमे तो नही सुना रहे? क्या करें गर्म गरम जलेबियाँ देख कर मुंह मे पानी आ ही जाता है। बहुत अच्छी लगी गज़ल ड. साहिब को बधाई। दीपावली की सभी को शुभकामनायें।
क्या गज़ब का चल रहा है ये मुशायरा .... पंकज जी, राणा प्रताप और अजमल साहब ने तो धमाकेदार शुरुआत को नई बुलंदियों पर पंहुंचा दिया है ... तारीफ़ के लिए शब्द कम हैं .... बस आनद ले रहा हूँ ...
जवाब देंहटाएंपंकज सुबीर जी:
जवाब देंहटाएंपंकज जी आप के हनुमान और राम वाले छंद को सुनने के लिए तो मैं भी बेताब हूँ| कभी तो मौका मिलेगा| मेरा नंबर आपके पास है| कभी भी हमारे शहर की तरफ रुख़ करें, तो कृपया इत्तला कीजिएगा|
गिरीश पंकज जी:
पंकज सुबीर जी ने सही बताया आप के बारे में| आपकी ग़ज़ल पाठक से डाइरेक्ट बात करती है| जैसे कि:-
दिल में अगर है बात कुछ, कह दो, तभी हो आदमी|
या फिर:
इक बार तो हमसे करो दिल से ज़रा तुम दोस्ती|
और ये वाला मिसरा तो भैया लगता है मेरा है [मज़ाक कर रहा हूँ श्रीमान, क्षमा करें]| बहुत ही उम्दा बात कही है आपने:
सोचो ज़रा आख़िर कहाँ कुछ रह गयी मुझमें कमी|
वाह वाह वाह वाह| गिरीश भाई, आज की मेरी खरी कमाई आपकी यह ग़ज़ल| मज़ा आ गया|
राणा प्रताप सिंह:
आर पी यार तुम्हारे बारे में क्या लिखूं| तुम तो पहले से ही अपने दिल के बहुत ही करीब और अज़ीज भी हो| ये पहली मर्तबा नहीं है जब मैं तुम्हें पढ़ रहा हूँ| मैं पंकज सुबीर भाई की बात से सहमत हूँ, तुम्हारे अंदर का फ़ौजी बरबस ही न सिर्फ़ तुम्हारे आशारों में उतर आता है, बल्कि धमाका भी करता है|
बनवास पाया राम ने और साथ चल दीं जानकी|
भई, एक मिसरा और कितने सारे कथानकों का प्रतिनिधित्व| मैं कायल पहले से ही हूँ| कॉंग्रेट्स ब्रदर! हेट्स ऑफ!
तीनों ही शायरों के कलाम दिल को सुकून और दिमाग को वर्जिश देने वाले बयान हैं! कमाल बहूत खूब।
जवाब देंहटाएंडा. अजमल हुसैन:
जवाब देंहटाएंउठ कर मिलो हमसे गले, छोड़ो ज़रा ये बेरूख़ी - आज के तथाकथित धर्म निरपेक्ष लोगों को पढ़ानी चाहिए ये पंक्ति|
इतनी मिठाई छोड़ कर काबू रखें कैसे अजी - अजमल भाई मैं आप से सहमत हूँ| काबू करने की कोई ज़रूरत नहीं, और अगर आप तक जाएँ तो मुझे याद कर लीजिएगा| मथुरा का हूँ, पीछे नहीं हटूँगा|
दीपक अजी ये शे'र है..................... यार दिल जीत लिया आपने| भई बहुत खूब|
पंकज सुबीर भाई एक बार फिर आप को बहुत बहुत शुक्रिया इस साहित्यिक यज्ञ के सफल आयोजन के लिए|
एक बार फिर तीन बेहतरीन तरही ग़ज़लें, और एक से बढ़़कर अश'आर, कितना वृहद् दायरा होता है ग़़ज़लों में कहने लायक विचार का। आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंमुझे उम्मीद ही नहीं पक्का विश्वाश है के पिछली बार की तरह इस बार भी ये तरही मुशायरा क़यामत ढाने वाला साबित होगा...और शायरी के नए कीर्तिमान स्थापित करेगा...अब तक के हुए मुशायरे में बहुत से चौंकाने वाले अद्भुत शेर आ चुके हैं और ये सिलसिला आज भी जारी है...
जवाब देंहटाएंगिरीश भाई तो हमेशा अपनी गज़लों में इंसानी रिश्तों में गर्माहट लाने की बातें करते रहे हैं हमेशा जिंदगी जीने के गुर सिखाते रहे हैं और इस बार भी उन्होंने अपनी गज़ल में गज़ब ढाया है...
युवा शायरों को पढ़ने का अपना मज़ा होता है...उनकी सोच से नयी दिशाएँ मिलती हैं...ऊर्जा मिलती है...आज के दोनों शायरों ने कमाल के शेर कहें हैं आप ने जिन शेरों का जिक्र किया है वो यकीनन हासिले मुशायरा शेर होने जा रहे हैं...वो इसी तरह लिखते रहें और पढते रहें बस ये ही कामना करता हूँ...
सीहोर के कविसम्मेलन के फोटो देख कर मन पुलकित हो गया...आप अपने आपको अपनी क्षमताओं को जरा कम आँक के चलते हैं ये आपका बड्डपन है, हकीकत में लोग आपको, आपकी रचनाओं को तहे दिल से प्यार करते हैं...चलिए इस बार आपका ये मुगालता तो टूटा के लोग स्थानीय रचना कारों को कम सुनना पसंद करते हैं...दरअसल लोग उनकी बार बार दोहराई गयी रचनाएँ नहीं सुनना चाहते लेकिन जब उन्हें पता हो के स्थानीय कवि गज़ब का प्रतिभाशाली है और अपने आपको दोहराता नहीं है तो वो उसका वैसे ही इस्तेकबाल करते हैं जैसा के आपका सीहोर वालों ने किया....
इस कार्यक्रम की डी.वी.डी. मिलने की क्या संभावनाएं हैं ये बताएं....
नीरज
तीनों शायरों को पढना बहुत अच्छा लगा……………आभार्।
जवाब देंहटाएंआज के तीनों शायरों के कलाम अपनी पुख्तगी का अहसास करा रहे हैं। पंकज जी , राणा जी और अजमल जी को मेरा सलाम।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा चल रहा मुशायरा.आनद आ रहा है.
जवाब देंहटाएंवाह गिरीश पंकज जी, कितने खूबसूरत अश’आर हैं...
जवाब देंहटाएंराणा प्रताप जी का कलाम भी पुख्तगी का दस्तावेज है...
अज़मल साहब के शेर भी दिल को छूने वाले हैं.
सबसे पहले तो जोरदार तालियां सीहोर के लिए.
जवाब देंहटाएंअाज के तीनो शायर गिरिश जी, राणा जी अौर अजमल जी ने नये नये सुंदर सुंदर अशअार से मुशायरे को खूब रौशन कया है. अाप तीनो बस अाते रहिये हम सुनते रहेंगे!!
नफ़रत नहीं हम प्यार................
जवाब देंहटाएंपूरी ग़ज़ल ही अच्छी है गिरीश जी लेकिन ये शेर सब से ज़्यादा अच्छा लगा
मंदिर गया मस्जिद गया...............
बिल्कुल सच कहा राणा प्रताप जी
अच्छी ग़ज़ल!
ऐ मालिक ए दोनों जहां ............
इंशाअल्लाह!!!!!!!!!!!!
हमारा मुल्क अभी भी ऊंचे मक़ाम पर फ़ाएज़ है
और हमेशा रहेगा
पंकज जी,आप चाहे बाहर कविता पाठ करें या अपने गृह क्षेत्र में हर जगह लोगों के दिल में जगह बना लेते हैं क्योंकि बात कविता,भाव,लय और छन्द की है और आप उन सबमें पारंगत है...इस बड़े कार्यक्रम के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ..
जवाब देंहटाएंदूसरी बात तरही मुशायरे के बारे में करता हूँ, आज भी कमाल की ग़ज़लें आई हैं, हर शेर अपने में कुछ कहता हुआ ..
गिरीश जी से मैं निरंतर कुछ ना कुछ सीखता रहा हूँ..शब्द और भाव दोनों का संतुलन और फिर एक बेहतरीन ग़ज़ल..नमन करता हूँ ऐसे शायर को....खास कर के पूजा और आराधना वाला शेर और मकते का भी शेर बहुत लाज़वाब बन पड़ा है,
राणा प्रताप जी को पिछले मुशायरों में भी पढ़ा था..वहाँ भी कमाल के शेर कहें थे..आज भी बढ़िया..अंतिम शेर तो सच में बहुत सुंदर लगा..बधाई देना चाहूँगा राणा प्रताप जी को,
अजमल जी की प्रस्तुति भी बेहतरीन..ढेरों सारी बधाई शुभकामनाओं के साथ....बढ़िया मुशायरा ..पंकज जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
रामचंदर ने शम्बूक को मारा था वह जगह बता सकता है कौन ?
जवाब देंहटाएंवहां भी एक मजलूम का मंदिर बना सकता है कौन ?
पग पग मंदिर जुल्मियों के बने हों जहाँ
वहां इंसाफ का मंदिर बना सकता है कौन ?
रामचंदर ने शम्बूक को मारा था वह जगह बता सकता है कौन ?
जवाब देंहटाएंवहां भी एक मजलूम का मंदिर बना सकता है कौन ?
पग पग मंदिर जुल्मियों के बने हों जहाँ
वहां इंसाफ का मंदिर बना सकता है कौन ?
वाह क्या हसीन इत्तेफ़ाक है कि आज गिरीश जी की गज़ल मुशायरे में पोस्ट हुई और आज ही यानि १ नवम्बर को गिरीश पंकज जी का जन्मदिन है
जवाब देंहटाएंगिरीश जी आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा अपने रंग में है, एक से बढ कर एक गज़ल पढ्ने को मिल रही है
गिरीश जी,
आपकी गज़ल का मकता मुझे बहुत पसन्द आया
अब आपके तो रोज ही किस्से गढ़े जाने लगे
पंकज ज़रा घर पर रहो अच्छी नहीं आवारगी
वाह वाह वाह वाह
राणा जी,
आप्की गज़ल भी खूब पसन्द आई
ताने हुए सीना हमारी सरहदों पर जो खड़े
उनके लिए तो रोज होली रोज ही दीपावली
दुःख और सुख को बांटती शौहर के संग बीवी सदा
बनवास पाया राम ने और साथ चल दीं जानकी
मिस्रा सानी और जनकी काफ़ियाबन्दी ने तो कमाल ध्माल कर दिया
मज़ा आ गया
बहुत सुन्दर शेर
खान साहब,
आपने गिरह इतनी सुन्दर बांधी है कि पढ कर मज़ा आ गया
है ये दुआ लब पर मिरे बदले न ये मंज़र कभी
जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रौशनी ।
वाह् वाह
तीनों ग़ज़लें बहुत पसंद आयीं.
जवाब देंहटाएंपंकज जी की ग़ज़ल वैसे तो पूरी की पूरी बहुत अच्छी है, लेकिन मक्ता तो बस कमाल है.
राणा प्रताप जी ग़ज़ल जी ने जो मतले में गिरह बाँधी है वो अभी तक की सबसे अच्छी गिरह लगी. मक्ता भी बेहद अच्छा है. सभी अशआर अच्छी लगे.
डा अजमल जी के ग़ज़ल भी पसंद आयी.
बहुत बहुत बधाई.
इन्तजार रहेगा कवि सम्मेलन पर और खबर का.....
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया तीनों गज़लें पढ़कर. एक से बढ कर एक...क्या समा बंधा है. वाह!
सबसे पहले तो मैं सभी हजरीने महफ़िल को आदाब पेश करता हूँ
जवाब देंहटाएंपंकज जी , और राणा प्रताप जी, के साथ मेरी ग़ज़ल शामिल होने की खुशी है
पंकज जी की ग़ज़ल बहुत ही शानदार है बहुत खूब .........
राणा प्रताप जी के कलाम में ज़िन्दगी की हकीक़त झलकती है, बहुत ही संजीदा शायरी .....
सुबीर जी का आभारी हूँ ग़ज़ल को शामिल करने के लिये .
और मुबारकबाद पेश करता हूँ मुशायरे के सफल आयोजन के लिये .
आप लोगों को ग़ज़ल पसंद आई मेरे लिये ये फख्र की बात है
आप सब पढने वालों का शुक्रिया .
आप सभी की दाद और दुआ का मुन्तजिर हूँ, आप सब अपना प्यार बनाये रखिये .
आप सभी को दीपावली की बहुत बहुत बधाई (हाँ मेरी मिठाई मत भूलियेगा ....)
pyar lutane valon ka dil se dhanyvaad... bana rahe yah sneh-bhav....shubh deepavalee
जवाब देंहटाएंगिरीश पाकज जी हमेशा ही अच्छा लिखते हैं, इस बार भी अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंराणा प्रताप जी की कहन पहली बार से ही अच्छी लगी। एयर फोर्स में है ये जानना अच्छा लगा।
ताने हुए सीना हमारी सरहदों पर जो खड़े
उनके लिए तो रोज होली रोज ही दीपावली
और नारी होने के कारण निश्चल हृदय नारी वाला शेर तो अच्छा ही लगना था।
मक़ता जब सबको पसंद आया तो मुझे क्यों नही आयेगा।
अज़मल जी चूँकि हमारे लखनऊ के हैं और शायरी तो लखनऊ में बसती है। सो उनकी गज़ल तो अच्छी होनी ही थी।
पहले तो मतला ही मुझे बहुत भाया
और ये इतनी मिठाई देख कर काबू रखें कैसे अजी....
बहुत बढ़िया कंफेशन
आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं