मंगलवार, 2 नवंबर 2010

शुभ दीपावली तरही मुशायरे का क्रम आज आगे बढ़ाते हैं । आज की दीपावली नारी शक्ति के नाम आदरणीया देवी नागरानी जी, नुसरत मेहदी जी, इस्‍मत ज़ैदी जी और निर्मला कपिला दी

तरही मुशायरा अपनी गति से चल रहा है और अब केवल चार दिन बाकी हैं दीपावली में सो अब कुछ और गति से चलाना होगा । अब जो ग़ज़लें आई हैं वो सब आने वाले चार दिनों के लिये शेड्यूल कर दी गई हैं । सो अब नई ग़जल़ें लेने की कोई गुंजाइश नहीं बची है । भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के तो आवारगी करते फिर रहे हैं देश भर में सो अब उनकी ग़ज़ल मिलने की तो कोई संभावना ही नहीं है । तो चलिये आज सुनते हैं आदरणीया देवी नागरानी जी, नुसरत मेहदी जी, इस्‍मत ज़ैदी जी ( एक राज की बात ये है कि नुसरत दीदी भी शादी से पहले नुसरत ज़ैदी ही थीं )  और निर्मला कपिला दी को ।

शुभ दीपावली तरही मुशायरा

जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रोशनी

451

देवी नागरानी जी

devi_nangrani

देवी जी का परिचय देने की धृष्‍टता नहीं करूंगा । कौन नहीं जानता है उनको । ग़ज़ल की दुनिया में उनका नाम सितारे की तरह जगमगा रहा है । सो आइये इस दीपावली सुनते हैं उनकी ये ग़ज़ल ।

मेरे खुदा कुछ ऐसा कर मन से मिटा दे तीरगी

जलते रहें दीपक सदा कायम रहे नित रोशनी"

ग़ुरबत के घर में दोस्तो फाक़े अभी तक चल रहे

हालात गर यूँ ही रहे कैसे मिटेगी भुखमरी

लेकर उदासी आँखों में बैठे रहे हम बज़्म में

आया, गया कोई नहीं मुद्दत से झेली ख़ामुशी

गिरते रहे, उठते रहे, खुद से सदा लड़ते रहे

इस ज़िन्दगी की जंग में हारे कभी, जीते कभी

कुछ इस तरह से बाग़ में गिरने लगी हैं बिजलियाँ

डरने लगे हैं गुंचे सब, डरने लगी है हर कली

इक बेख़ुदी में डूबकर, ढूँढा किये ख़ुद को सदा

सहरा में भटके इस तरह, हो प्यास जैसे अनबुझी

उस्‍तादाना रंग लिये हैं शेर । गिरते रहे उठते रहे हारे कभी  जीते कभी, लेकर उदासी आंखों में जैसे शेर डूब कर लिखे गये हैं तभी तो सुनने वाले को बेसाख्‍ता वाह वाह करने पर मजबूर कर रहे हैं । वाह वाह वाह ।

इस्‍मत ज़ैदी जी

ismat zaidi

इस्‍मत जी किसी कारण से बहुत खामोश होकर ही काम करना चाहती हैं । इसीलिये उनका चित्र भी उपलब्‍ध नहीं है । उन जैसे लोगों के लिये ही कहा गया है '' वही लोग रहते हैं ख़ामोश अक्‍सर ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं ''  । देखिये पोस्‍ट लगने के बाद कमेंट से उनका फोटो भी प्राप्‍त हो गया ।

ये जान लो किस वास्ते रब ने अता की ज़िंदगी

और काम कुछ ऐसे करो जो बन सकें संजीवनी

बस दोस्ती हो,प्यार हो,विश्वास का इज़हार हो

हर शख़्स अपना ही लगे ,कोई रहे क्यों अजनबी

उलझा  रहा वो ज़िंदगी के इम्तहानों में सदा

और दूसरों के वास्ते क़ुर्बान कर दी ज़िंदगी

हर गांव में ,हर शह्र में,सद्भाव के और प्रीत के

"जलते रहें दीपक सदा ,क़ायम रहे ये रौशनी"

भगवान है कोई यहां,कोई फ़रिश्ता बन गया

मालिक मेरे रखना मुझे,इस दौर में बस आदमी

रिश्ता हो क्यों इक राएगां* ,ख़ामोश लब खोलो ’शेफ़ा’

घुट घुट के यूं रह जाए फिर क्यों बात कोई अनकही

*व्यर्थ

इस्‍मत जी की ग़ज़लों का और शेरों का तो मैं शुरू से ही प्रशंसक रहा हूं । वे जिस भाव भूमि पर शेर निकालती हैं उस भाव भूमि तक पहुंच पाना ही मेरे जैसे लोगों को मुश्किल लगता है । भगवान है कोई यहां कोई फरिश्‍ता बन गया वाह वाह वाह क्‍या शेर कहा है आनंद ही आ गया ।

नुसरत मेहदी जी

nusrat mehdi 

क्‍या कहूं नुसरत दीदी के बारे में कई बार मैं उनसे कहता हूं कि दीदी मेरे लिये तो यह ही तय करना मुश्किल हो जाता है कि आप ज्‍यादा अच्‍छी बहन हैं या फिर ज्‍यादा अच्‍छी शायरा हैं । इन दिनों सफलता की नई पायदानें तय करते हुए वे खाड़ी के देशों के मुशायरों में व्‍यस्‍त हैं । आइये सुनते हैं उनकी ये ग़ज़ल ।

गम की अँधेरी रात में लायी उजाले ज़िन्दगी
जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रौशनी
दुनिया हमारी आजकल बारूद के मौसम में है
कैसे खिले लफ्जों के गुल मुस्काये कैसे शायरी
फिर नम हुई सांसे मेरी भीगा मेरे दिल का वरक़
लो आई फिर से बारिशें फिर याद तेरी आ गयी
यारब दुआ सुन ले मेरी दोनों को पुरवाई बना
वो भी हवाये तुन्द है मैं भी हवा हू सरफिरी
सच मानते हैं आज भी झूठे बहाने आपके
उफ़ ये हमारा भोलापन उफ़ ये हमारी सादगी

तकदीर अपनी जाने क्यों तब्दील होती ही नहीं
ओढे हुवे हैं आज भी हम तो गमो की ओढ़नी
दौलत वो करता है अता ज़रफे तलब को देख कर
हर शख्स को मिलता नहीं नुसरत शऊरे बन्दगी

क्‍या कहूं और क्‍या न कहूं । किस शेर को उठा कर उसकी तारीफ करूं । मगर फिर भी सच मानते हैं आज भी झूठे बहाने आपके इस शेर में जो भोलापन है जो सादगी है वो रस विभोर करती हुई गुज़र रही है । वाह वाह वाह ।

निर्मला कपिला जी

Nirmla Kapila di

निर्मला दीदी के बारे में जितना जानता हूं उतना ही उनके लिये मन में इज्‍़ज़त बढ़ती जाती है । एक साल पहले जब उन्‍होंने ग़ज़लें लिखना शुरू किया तो मैं संशय में था कि पता नहीं कैसे सीखेंगीं । लेकिन आज की ये ग़ज़ल बता रही है कि दुष्‍यंत ने सही कहा था ''एक पत्‍थर तो तबीयत से उछालो यारों ।

जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
आयेँ उजाले प्यार के चलती रहे ये ज़िन्दगी

एक दूसरे के साथ हैं खुशियाँ जहाँ की साजना
तेरे बिना क्या ज़िन्दगी मेरे बिना क्या ज़िन्दगी
अब क्या कहें उसकी भला वो शख्स भी क्या चीज़ है
दिल मे भरा है जहर और  हैं बात उसकी चाशनी
है काम दुनिया का बिछाना राह मे काँटे सदा
सच से सदा ही झूठ् की रहती ही आयी दुश्मनी
बातें सुना कर तल्ख सी यूँ चीर देते लोग दिल
फिर दोस्ती मे क्या भली लगती है ऐसी तीरगी?
जब बात करता प्यार से लगता मुझे ऐसे कि मैं
उडती फिरूँ आकाश मे बस ओढ चुनरी काशनी 
सब फर्ज़ हैं मेरे लिये सब दर्द हैं मेरे लिये
तकदीर मे मेरे लिखी बस उम्र भर की आज़िजी
उसने निभाई ना वफा गर इश्क मे तो क्या हुया
उससे जफा मै भी करूँ मेरी वफा फिर क्या हुयी

जीना वतन के वास्ते मरना वतन के वास्ते
रख ले हथेली जान, सिर पर बाँध पगडी केसरी
ये आदमी का लोभ भी क्या कुछ कराये आजकल
जिस पेड़ से छाया मिली उसकी ही जड़ है काट दी

निर्मला दीदी को लेकर मैं हर बार एक ही बात सोचता हूं कि किस निश्‍चय के साथ उन्‍होंने ग़ज़ल का व्‍याकरण सीखा है । और आज उसने निभाई ना वफा जैसे शेर वे किस खूबसूरती के साथ निकाल रही हैं । उड़ती फिरूं आकाश में जैसे मिसरे आनंद के मिसरे हैं । वाह वाह वाह ।

आज सुनिये चारों नारी शक्ति ग़ज़लों को और दाद दीजिये । कल फिर मिलते हैं कुछ और शायरों के साथ ।

26 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...
    आज की महफ़िल यादगार बन गई...
    सभी का कलाम एक से बढ़कर एक...
    फिर भी
    देवी नागरानी जी-
    गिरते रहे, उठते रहे, खुद से सदा लड़्ते रहे
    इस ज़िन्दगी की जंग में हारे कभी जीते कभी
    इस्मत साहिबा-
    भगवान है कोई यहां कोई फ़रिश्ता बन गया
    मालिक मेरे रखना मुझे इस दौर में बस आदमी
    नुसरत साहिबा-
    दौलत वो करता है अता ज़रफ़े त्लब को देखकर
    हर शख़्स को मिलता नहीं नुसरत शऊरे बन्दगी
    और निर्मला कपिला जी-
    इक दूसरे के साथ हैं खुशियां जहां की साजना
    तेरे बिना क्या ज़िन्दगी, मेरे बिना क्या ज़िन्दगी
    ये शेर खास तौर से पसंद आए.

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  2. charon deviyon ne kamaal kar diyaa. kamaal ke sher nikale hai sabhi ne. devi nagrani, ismat ji, nusarat sahiba aur nirmala kapilaa subko badhaiyaa aur deepavalee ki shubhkamanaye.

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  3. गुरुदेव कमाल कर दिया है आपने...गज़लों की शेह्जादियों को आपने पूरे शबाब में पेश किया है...आँखें चकाचौंध हैं...

    देवी नागरानी जी, जिन्हें मैं दीदी कहता हूँ, जितनी सुरीली हैं उतनी ही मिठास भरी ग़ज़लें कहती हैं...हर शेर लय लिए हुए है और गुनगुनाने को मजबूर कर रहा है...दिल से निकले अलफ़ाज़ दिल पर दस्तक दिए बिना सीधे अंदर चले आ रहे हैं...
    "गिरते रहे उठते रहे..."अद्भुत शेर है...उन्हें मेरा प्रणाम.

    इस्मत जी को जितना भी मैं उनकी गज़लों से जाना हूँ उससे कह सकता हूँ के वो एक बेहतरीन इंसान हैं जिसके दिल में सबके लिए दोस्ती और प्यार का ज़ज्बा कूट कूट कर भरा हुआ है. ये बात उनके " बस दोस्ती हो..." शेर में साफ़ देखी जा सकती है." "भगवान है कोई यहाँ..." जैसा शेर कहने में हम जैसों की शायद उम्र ही निकल जायेगी...वाह...उन्हें इस बेहद खूबसूरत गज़ल के लिए दिली दाद देता हूँ.

    नुसरत जी का क्या कहना...उन्हें सबसे पहले सीहोर में हुए मुशायरे में सुना और पाया के जब वो शेर पढ़ती हैं तो उनके मुंह से फूल झड़ते हैं...वो आज जिस मकाम पर हैं उसकी वो पूरी तरह हकदार हैं, दुआ करता हूँ के वो तमाम दुनिया में उर्दू शायरी और हमारे देश का नाम रोशन करें.
    "फिर नम हुई साँसे..." वाला शेर, पढ़ने वाले की साँसे रोकने में सक्षम है,अद्भुत है और "यारब दुआ सुन ले मेरी..." ने तो समझो जान ही निकाल ली है. इस कामयाब शायरा को मेरा सलाम.

    निर्मला जी हमउम्र हैं और इतेफाक से उन्होंने ने भी शायरी मेरी तरह उस उम्र में सीखी है जिस उम्र में लोग शायरी करना छोड़ देते हैं...:-)सच तो ये है के लगन और मेहनत से कैसे असंभव को संभव किया जा सकता है ये कोई उनसे सीखे. वो यकीनन सब के लिए प्रेरणा की स्त्रोत्र हैं."जब बात करता प्यार से..." जैसा शेर ये बताता है के वो दिल से अभी भी षोडसी हैं...काशनी लफ्ज़ का प्रयोग कमाल का है और शेर में पंजाब की मस्ती भर रहा है, उनके इस शेर से मुझे पंजाब का एक लोकगीत जिसे मेरी माताजी अभी भी मजे लेकर सुनाती हैं याद आ गया..." इक मेरी आख काशनी दूजे रात दे उनीदरे ने मारया, शीशे च तरेड पै गयी वाल वौन्दी ने त्यान जदों मारया..."( एक तो मेरी आँख गुलाबी है दूसरे रात भर के जागरण ने मार डाला, शीशे में दरार पड़ गयी जब मैंने बाल बनाते हुए अपने आपको उसमें निहारा)
    उनका "उसने निभाई ना जफा..." वाला शेर तो मैं अपने साथ ले जा रहा हूं.

    इस बेहद कामयाबी से चल रहे तरही मुशायरे के लिए आपको कोटिश धन्यवाद.

    नीरज

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  4. धन्यवाद सुबीर जी,
    १-देवी नागरानी जी की ग़ज़ल के ये अश’आर बहुत पसंद आए
    ग़ुरबत के घर में ........
    और
    गिरते रहे ,उठते रहे.......
    २-नुसरत साहेबा का मक़ता बहुत ख़ूबसूरत है
    बहुत ख़ूब!
    ३-उसने निभाई ना वफ़ा...........
    और
    जीना वतन के वास्ते.........
    बहुत उम्दा !
    ख़ूब्सूरत ग़ज़ल!

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  5. चारों ग़ज़लें बहुत पसंद आयीं.. धन्यवाद.
    देवी नागरानी जी का "गिरते रहे उठते रहे...", इस्मत जैदी जी का "भगवान है कोई यहाँ..", नुसरत जी का "सच मानते हैं .." और मकता, और निर्मला जी का "ये आदमी का लोभ.." खास तौर पर पसंद आये.

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  6. आज के मुशायरे मे तो नारी शक्ति ने अपनी शक्ति का परिचय दे दिया है…………किसी की भी गज़ल दूसरे से कम नही…………हर शेर जैसे दिल मे उतर रहा है……………आज का मुशायरा तो बेहतरीन रहा।

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  7. देवी नागरानी जी की ग़ज़़ल के सरोकार और आशादीप; इस्‍मत ज़ैदी जी के प्रश्‍न और संदेश; नुसरत मेंहदी जी के सरोकार और प्रश्‍न तथा निर्मला कपिला जी के अहसासात; कहने को कुछ नहीं है। कुछ कहूँगा तो वह आप या नीरज भाई कह ही चुके है, हॉं अगर चारों में से एक-एक शेर चुनना ही हो तो मैं ‘गिरते रहे, उठते रहे... हारे कभी जीते कभी’, ‘ये जान लो...... जो बन सकें संजीवनी’, ‘दौलत वो करता है अता......शऊरे बन्‍दगी’ और ‘ये आदमी का लोभ भी...... जड़़ है काट दी’ को चुनूँगा।
    नुसरत जी के चौथे शेर के मिस्रा-ए-सानी में टंकण-त्रुटि रह गयी है ‘हवाये तुन्‍द’ की जगह ‘हवा-ए-तुन्‍द’ रहा होगा।

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  8. सुबीर साहब
    इसद बार की महफ़िल खूब जमी है......देवी नागरानी जी , मेरी प्रिय गज़लकार आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी , नुसरत मेंहदी जी और निर्मला कपिला जी की ग़ज़लों को सुबीर संवाद पर दीयों की तरह इस दिवाली पर जगमगाने का शुक्रिया.........!!!! अगली प्रस्तुति का बेसब्री से इन्तिज़ार है......

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  9. मेरे जैसे नोसिखिये के लिए तो कुछ भी कहना दीये को चाँद दिखाने जैसा होगा .... आज नारी शक्ति को देख कर बहुत दिली ख़ुशी हो रही है ... गज्जल क़ि बारीकियां सीखने को मिल रही हैं ... देवी जी, इस्मत जी, मुसरत साहिबा और निर्मल जी सब अपने फन में माहिर हैं ...
    गिरते रहे उठते रहे .... देवी जी का ये शेर सदा कर्म करने को प्रेरित करता है ....
    और इस्मत जी का ये शेर ... भगवान् है कोई यहाँ ... चोट करता है समाज के इन ठेकेदारों पर ...
    सच मानते हैं आज भी झूठे बहाने आपके ... क्या गज़ब का अंदाज़ है नुसरत जी का ...
    और निर्मला जी के तो क्या कहने हैं ... मौलिक सोच और उम्र का तजुर्बा कूट कूट कर भरा है हर शेर में ... ये मुशायरा भी हर मुशायरे क़ि तरह गज़ब ढा रहा है ...

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  10. बहुत सुन्दर और मजबूत प्रस्तुति,चारों नारी शक्ति के द्वारा आप सबको तहेदिल मुबारक बाद।


    देवी जी-गिरते रहे उठते रहे,
    इस्मत जी- मालिक मेरे रखना --आदमी।
    नुसरत जी -उफ़ ये हमारा भोलापन,---सादगी।
    कपिला जी--तेरे बिन ज़िन्दगि मेरे बिन ज़िन्दगी

    ख़ूबसूरत पंक्तियां।

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  11. इक बेख़ुदी में डूबकर, ढूँढा किये ख़ुद को सदा
    सहरा में भटके इस तरह, हो प्यास जैसे अनबुझी

    ये जान लो किस वास्ते रब ने अता की ज़िंदगी
    और काम कुछ ऐसे करो जो बन सकें संजीवनी

    हर गांव में ,हर शह्र में,सद्भाव के और प्रीत के
    "जलते रहें दीपक सदा ,क़ायम रहे ये रौशनी"

    यारब दुआ सुन ले मेरी दोनों को पुरवाई बना
    वो भी हवाये तुन्द है मैं भी हवा हू सरफिरी

    सच मानते हैं आज भी झूठे बहाने आपके
    उफ़ ये हमारा भोलापन उफ़ ये हमारी सादगी

    जीना वतन के वास्ते मरना वतन के वास्ते
    रख ले हथेली जान, सिर पर बाँध पगडी केसरी

    ये आदमी का लोभ भी क्या कुछ कराये आजकल
    जिस पेड़ से छाया मिली उसकी ही जड़ है काट दी

    वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह,वाह वाह, :)

    जवाब देंहटाएं
  12. आज तो गज़ब समा बंधा है...चारों गज़लो को पढ़कर..सब एक से बढ़कर एक...

    बहुत शानदार!

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  13. ग़ुरबत के घर में दोस्तों फ़ाके अभी तक चल रहे !
    हालात गर यूँ ही रहे कैसे मिटेगी भुखमरी !!

    इस शे'र के लिए देवी दीदी के आगे फिर से नतमस्तक हूँ ... और कुछ बचता ही नहीं कहने को ... पूरी ग़ज़ल देवी दीदी के मूड में ...

    इस्मत जी को ज्यादा नहीं पढ़ा मगर जितना पढ़ा हूँ काईल हूँ इनकी ग़ज़लों का ... मतले ने चौंका दिया मुझे पहला मिसरा जिस तरह से उर्दू शाईराना के हिसाब के रंग में है दूसरे मिसरे में संजीवनी शब्द के साथ हिंदी की पराकाष्ठ को बढ़ा कर शे'र को और उंचा बना दिया गया है ...भगवान बस रखना मुझे इस दौर में बस आदमी ... कमाल का शे'र ...

    नुसरत दीदी के लिए कुछ भी कहना वाज़िब नहीं है मेरे लिए ... जिस मुकाम के हिसाब से वो शाईरी करती हैं वो लाज़वाब कर देने वाला होता है ...

    फिर नम हुई सांसें मेरी भीगा मेरे दिल का वरक ,
    लो आई फिर से बारिशें फिर याद तेरी आ गयी !!

    और सादगी वाला शे'र तो गज़ब का बना है ... उफ्फ्फ और मक्ते ने होश गुम कर रखें हैं मेरे अभी तक ....

    निर्मला माँ के लिए क्या कहूँ ... जिस हिसाब से वो ग़ज़ल लेखन में आगे बढती जा रही हैं मैं भय भीत हूँ ... उनसे ... :)
    एक दूसरे के साथ है ,/ सब फ़र्ज़ है मेरे लिए / उसने निभाई ना वफ़ा / जीना वतन के वास्ते / ये लोभ .... सभी अश'आर कमाल के हैं ...

    चारो देवीयों ko सलाम मेरा ...

    अर्श

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  14. वाह बहुत खूबसूरत महफ़िल है .इस्मत जी और निर्मला जी को तो पहले भी पढ़ा है पर नागरानी जी और नुसरत जी को पहली बार पढ़ने का मौका मिला
    आभार.

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  15. कहते हैं ' जहां न पहुंचे रवि,
    वहां पहुंचे कवि '
    तो ये उक्ति आज चरितार्थ हुई है

    आदरणीया देवी बहन का दिल,
    पाक है और भावनाओं की
    सतरंगी इन्द्रधनुष
    को सरगम में बांधे ,
    ये ' चरागे दील ' को
    रोशन किये हुए क्या खूब जल रहे हैं !
    वाह .......जी वाह !

    सुश्री इस्मत जी ,
    सुश्री नुसरत जी का
    तथा विदुषी निर्मला जी की लेखनी से
    जो भाव प्रकट हुए हैं
    उन्हें बार बार पढीयेगा
    पता है क्यूं ऐसा कह रही हूँ ? :)
    यकीन करीए,
    खुद ईश्वर भी ,
    नारी मन की थाह नहीं ले पाए !!
    (yes yes this is absolutely true)
    परंतु,
    जब् जब् ऐसी " शायरा "
    अपनी बात ग़ज़लों में पिरोती हैं,
    तब तब ,
    कुछ मोती, कुछ जवाहरात भी
    जगमगाते हुए साफ़ हो ही जाते हैं !
    अत: लुत्फ़ उठाईये और
    " डूब के जाना है "
    या कहें ' डूब ही जाना है ' .......
    ये दरिया - नारी मन
    तो खुद मुहब्बत का पर्याय है
    उस की बौछार में भीग जाईये

    मेरी हार्दिक बधाई आप चारों के लिए !

    मेरे गुणी अनुज को शाबाशी दे रही हूँ -

    ये मंच एक सुसभ्य महफ़िल है
    जहां पढनेवाले श्रोताओं की
    दिली मुबारकबाद भी
    पाक - साफ़ होकर
    समा बाँध रही है
    दीपावली मंगलमय हो !
    सादर, स स्नेह,
    - लावण्या

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  16. दीदी नागरानी जी ,इस्मत जी और नुसरत जी की गज़लें पडः कर तो मुझे शर्म आ रही है कि उनके साथ मेरी गज़ल जैसे --- क्या कहूँ। जो कुछ थोडा बहुत गज़ल का व्याकरण सीखा है वो अपने छोटे भाई से गज़ल के सफर पर ही सीखा है पहले तो बहर की नकल की और तुकबन्दी कर दी अभी बहुत कुछ सीखना है। तीनो बहनो की गज़लें एक से बढ कर एक हैं तय नही कर पा रही कि किस किस शेर को कोट करूँ। इस लिये उन्हें पूरी गज़लों के लिये बधाई। अपने छोटे भाई का शुक्रिया उनके मेरे बारे मे लिखे शब्द मेरे लिये राम वाण की तरह प्रेरक हैं। सब का धन्यवाद।

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  17. आज तो तरही में आनन्द आ गया.
    "ग़ुरबत के घर में दोस्तो फ़ाके अभी तक चल रहे,

    हालात ग़र यूं ही रहे कैसे मिटेगी भुखमरी"
    बहुत सुन्दर शेर है, नागरानी साहिबा आपका.

    " या रब दुआ सुन ले मेरी दोनों को पुरवाई बना,
    वो भी हवाएं तुन्द है मैं भी हवा हूं सिरफ़िरी"
    बढिया है नुसरत जी

    " बातें सुना कर तल्ख सी यूं चीर देते लोग दिल
    फिर दोस्ती में क्या भली लगती है ऐसी तीरगी?"
    सुन्दर शेर है निर्मला जी.

    और इस्मत साहिबा, क्या कहूं आपके लिये? मैं तो हमेशा से आपकी ग़ज़लों की दीवानी हूं. हर शेर मुझे पहले शेर से बेहतर नज़र आने लगता है. एक लिखती हूं, तब तक लगता है, नही ये दूसरा बेहतर है :( इस तरह पूरी गज़ल ही कॉपी होने को आ जाती है :(
    .
    "भगवान है कोई यहां कोई फ़रिश्ता बन गया
    मालिक मेरे रखना मुझे इस दौर में बस आदमी"
    और
    रिश्ता हो क्यों इक राएगां,खामोश लबखोलो शेफ़ा’,
    घुट घुट के यूं रह जाये फिर क्यों बात कोई अनकही
    बस कमाल ही है. बधाई. आप सब को.

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  18. आज की प्रस्तुति भी कमाल की....सभी को बधाई देना चाहूँगा और सभी को प्रणाम भी..

    जवाब देंहटाएं
  19. चारों ही ग़ज़लें बाक़माल हैं। हर शेर उम्दा क़िस्म के ख्य़ालात समेटे हुये है।
    बधाई हो,

    जवाब देंहटाएं
  20. .

    देवी नागरानी जी, इस्मत जी, नुसरत जी और निर्मला जी की गजलें पढ़ कर मन खुश हो गया। ये टैलेंट तो इश्वर प्रदत्त होते हैं। हम भी इन्हें पढ़कर अक्सर सोचते हैं , काश हम भी इतना खूबसूरत लिख सकते।

    सुबीर जी आपका आभार।

    .

    जवाब देंहटाएं
  21. सबसे पहले तो मैं देवी नागरानी जी , नुसरत जी ,इस्मत जैदी जी और निर्मला जी, को आदाब पेश करता हूँ .

    आप सभी की ग़ज़लें दिल को छू गईं .
    एक से बढ़कर एक अशार ,बहुत ही उम्दा कलाम
    वाह वाह वाह वाह......................

    जवाब देंहटाएं
  22. नागरानी जी सिर्फ कहने को नही वाक़ई नागरानी जी के सारे ही शेर अच्छे लगे।

    मतले में बँधी गिरह खू‌ब,

    गुरबत के घर में दोस्तों फाँके अभी तक चल रहे,
    हालात गर यूँ ही रहे, कैसे मिटेगी तीरगी।

    बहुत खूब

    ले कर उदासी आँख में बैठे रहे हम बज़्म में
    आया गया कोई नही, मुद्दत से झेली खामुशी

    वाह वाह

    इस्मत दी भी पहली बार जब नज़र में आईं तभी से लगा कि मुकम्मल गज़ल कहने वालों में हैं ये। इनके उर्दू के शब्दों के चयन की मुरीद रही हूँ मैं। मगर इस बार की तरही देखकर आश्चर्य मे हूँ कि हिंदी पर भी उतनी ही बढ़िया पकड़ है इनकी।

    मालिक मेरे रखना मुझे इस दौर में बस आदमी

    क्या दुआ की है..क्या बात है...!! बहुत खूब

    नुसरत दी का नाम आते ही बहुत सारी ममता, बहुत सारी मिठास आ जाती है ज़ेहन में। और शेरों में कैसे सीधे दिल की आवाज़ छिपी रहती है। मैं पहले ही खुश हो जाती हूँ कि अब नुसरत दीदी को पढ़ने को मिलेगा

    यारब दुआ सुन ले मेरी, दोनो को पुरावाई बना,
    वो भी हवा ए तुंद है, मै भी हवा हूँ सिरफिरी।

    दी बोलती हैं तो लगता है मेरे अंदर की औरत उनकी जुबाँ से बोल रही है। और ये शेर

    उफ ये हमारा भोलापन, उफ ये हमारी सादगी

    अहा अहा अहा... आनंद वाला शेर.. श्रोता के मुँह से मुकर्रर मुकर्रर कहलाने वाला शेर

    अब माँ...!!

    वाक़ई सीखना चाहिये इनसे। कम से कम हम से निकम्मो को तो सीख ले ही लेनी चाहिये।

    अब क्या कहें उसको भला, वो शख्स भी क्या चीज है,
    दिल में भरा है ज़हर और हैं बात उसकी चाशनी।

    सही कहा, कुछ लोगो के बारे में।

    आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं....

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  23. भाई पंकज सुबीर जी इस मुशायरे में तो जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं आनंद बढ़ता ही जा रहा है|

    देवी नागरानी जी:
    'तजुर्बे का पर्याय नहीं' कहावत को चरितार्थ करती आपकी ग़ज़ल के बारे में हम क्या बोलें| पंकज भाई ने पहले ही सब कुछ बता दिया है आपके बारे में|
    हालत गर यूँही रहे कैसे मितेगी भुखमरी||
    इस जिंदगी की जंग में हारे कभी जीते कभी||
    ये मिसरे दिल के ज़्यादा करीब लगे| आपकी लेखनी को हमारा भी सलाम देवी नागरानी जी|


    इस्मत ज़ैदी जी:
    और काम कुछ ऐसे करो जो बन सके संजीवनी||
    हर शख्स अपना ही लगे, कोई लगे क्यूँ अजनबी||
    मलिक मेरे रखना मुझे इस दौर में बस आदमी||

    मेरे जैसे आम इंसान के गले से रसमलाई की तरह उतरते आपके ये ख़यालात काफ़ी लुभावने लगे| पाठक से सीधा संवाद वो भी स्पष्ट भाषा में आपकी ख़ासियत लगी मुझे|


    नुसरत मेंहदी जी"
    लो आई फिर से बारिशें, फिर याद तेरी आ गयी||
    वो भी हवा-ए-तुन्द है, मैं भी हवा हूँ सरफ़िरी||
    हर शख्स को मिलता नहीं 'नुसरत' शऊरेजिंदगी||

    वाह वाह| कमाल के आशार पेश किए हैं आपने| हम तो वैसे भी आप लोगों के बीच नये हैं| फिर भी सभी लोगों को पढ़ कर दिल झूमे जा रहा है| साहित्य की यही तो ख़ासियत है, यहाँ कोई नया नहीं कोई पुराना नहीं| यहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ पर्फॉर्मेन्स बोलता है| पंकज भाई फिर से बहुत बहुत शुक्रिया अदब की इतनी जबरदस्त महफ़िल सजाने के लिए|


    निर्मला कपिला जी:
    दीदी का आशीर्वाद सब के साथ है| जैसा कि आपके बारे में लिखा गया है कि आपने ये मंज़िल महज पिछले एक साल में हासिल की है| आफरीन आफरीन के सिवा और कहूँ भी तो क्या? ताज़गी भरे आशार दिल को बरबस ही अपनी तरफ खींच रहे हैं:
    तेरे बिना क्या जिंदगी - मेरे बिना क्या जिंदगी||
    उड़ती फिरूं आकाश में, बस ओढ़ कुंआरी काशनी||
    रख ले हथेली जान, सिर पे बाँध पगड़ी केसरी||
    दीदी आप की लेखनी को बारम्बार प्रणाम|

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  24. ये शाइरी क्या चीज़ है? लगती मुझे जादूगरी
    कहता कोई आवारगी, मैं कहती हूं दीवानगी!

    सुबीर जी का धन्यवाद करना चाहती हूं जो समय के दायरे में मस्तिष्क को एक्सरसाईज़ का मोका देते हैं, सभी पाठशाला के सदस्य एक से बढ़कर एक हैं. सीखने का मंच मिले और प्रस्तुतीकरण भी लाजवाब हो, पुरअसर रँग तो पाठकों की क़द्रदानी और स्नेह है. नुसरत जी ,इस्मत जैदी जी और निर्मला जी आप सभी को मेरी दिली मुबारकबाद कबूल हो
    दिवाली की शुभकामनाओं के साथ

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  25. आदरणीया देवी जी,
    आदरणीया निर्मला जी,
    आदरणीया इस्मत जी,
    आदरणीया नुसरत जी,

    को एकसाथ पढने का स्वर्णिम अवसर लेकर अाया है ये दीवाली.

    इतने सारे खुबसूरत ग़जलें पढ भावविभोर हुं.

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