शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

"वक्त की पाठशाला में एक साधक"-श्री समीर लाल ’समीर' , बिखरे मोती की समीक्षा सुप्रसिद्ध शायरा आदरणीया देवी नागरानी जी की क़लम से । पंकज सुबीर

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श्री समीर लाल समीर काव्‍य संग्रह बिखरे मोती समीक्षक देवी नागरानी जी

कलम आम इन्सान की ख़ामोशियों की ज़ुबान बन गई है. कविता लिखना एक स्वभाविक क्रिया है, शायद इसलिये कि हर इन्सान में कहीं न कहीं एक कवि, एक कलाकार, एक चित्रकार और शिल्पकार छुपा हुआ होता है. ऐसे ही रचनात्मक संभावनाओं में जब एक कवि की निशब्द सोच शब्दों का पैरहन पहन कर थिरकती है तो शब्द बोल उठते हैं. यह अहसास हू-ब-हू पाया, जब श्री समीर लाल की रचनात्मक अनुभूति ’बिखरे मोती’ से रुबरु हुई. उनकी बानगी में ज़िन्दगी के हर अनछुए पहलू को कलम की रवानगी में खूब पेश किया है-

हाथ में लेकर कलम, मैं हाले-दिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता, आप ही बहता गया.

यह संदेश उनकी पुस्तक के आखिरी पन्ने पर कलमबद्ध है. ज़िन्दगी की किताब को उधेड़ कर बुनने का उनका आगाज़ भी पाठनीय है-

मेरी छत न जाने कहाँ गई
छांव पाने को मन मचलता है!

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( श्री समीर लाल  को शिवना सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान करते श्री राकेश खंडेलवाल तथा श्री अनूप भार्गव )

इन्सान का दिल भी अजब गहरा सागर है, जहाँ हर लहर मन के तट पर टकराकर बीते हुए हर पल की आहट सुना जाती है. हर तह के नीचे अंगड़ाइयां लेती हुई पीड़ा को शब्द स्पष्ट रुप में ज़ाहिर कर रहे हैं, जिनमें समोहित है उस छत के नीचे गुजारे बचपन के दिन, वो खुशी के खिलखिलाते पल, वो रुठना, वो मनाना. साथ साथ गुजरे वो क्षण यादों में साए बनकर साथ पनपते हैं. कहाँ इतना आसान होता है निकल पाना उस वादी से, उस अनकही तड़प से, जिनको समीर जी शब्द में बांधते हुए ’मां’ नामक रचना में वो कहते हैं:

वो तेरा मुझको अपनी बाहों मे भरना
माथे पे चुम्बन का टीका वो जड़ना..

जिन्दगी में कई यादें आती है. कई यादें मन के आइने में धुंधली पड़कर मिट जाती हैं, पर एक जननी से यह अलौकिक नाता जो ममता कें आंचल की छांव तले बीता, हर तपती राह पर उस शीतलता के अहसास को दिल ढूंढता रहता है. उसी अहसास की अंगड़ाइयों का दर्द समीर जी के रचनाओं का ज़ामिन बना है-

जिन्दगी, जो रंग मिले/ हर रंग से भरता गया,
वक्त की है पाठशाला/ पाठ सब पढ़ता गया...

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पुस्‍तक का अमेरिका में विमोचन

इस पुस्तक में अपने अभिमत में हर दिल अज़ीज श्री पंकज सुबीर की पारखी नज़र इन सारगर्भित रचनाओं के गर्भ से एक पोशीदा सच को सामने लाने में सफल हुई है. उनके शब्दों में ’पीर के पर्वत की हंसी के बादलों से ढंकने की एक कोशिश है और कभी कभी हवा जब इन बादलों को इधर उधर करती है तो साफ नज़र आता है पर्वत’. माना हुआ सत्य है, ज़िन्दगी कोई फूलों की सेज तो नहीं, अहसासों का गुलदस्ता है जिसमें शामिल है धूप-छांव, गम-खुशी और उतार-चढ़ाव की ढलानें. ज़िन्दगी के इसी झूले में झूलते हुए समीर जी का सफ़र कनाडा के टोरंटो, अमरीका से लेकर हिन्दोस्तान के अपने उस घर के आंगन से लेकर हर दिल को टटोलता हुआ वो उस गांव की नुक्कड़ पर फिर यादों के झरोखे से सजीव चित्रकारी पेश कर रहा है अपनी यादगार रचना में ’मीर की गजल सा’-

सुना है वो पेड़ कट गया है/ उसी शाम माई नहीं रही
अब वहां पेड़ की जगह मॉल बनेगा/ और सड़क पार माई की कोठरी
अब सुलभ शौचालय कहलाती है,
मेरा बचपन खत्म हुआ!
कुछ बूढ़ा सा लग रहा हूँ मैं!!
मीर की गज़ल सा...!

दर्द की दहलीज़ पर आकर मन थम सा जाता है. इन रचनाओं के अन्दर के मर्म से कौन अनजान है? वही राह है, वही पथिक और आगे इन्तजार करती मंजिल भी वही-जानी सी, पहचानी सी, जिस पर सफ़र करते हुए समीर जी एक साधना के बहाव में पुरअसर शब्दावली में सुनिये क्या कह रहे हैं-

गिनता जाता हूँ मैं अपनी/ आती जाती इन सांसों को
नहीं भूल पाता हूँ फिर भी/ प्यार भरी उन बातों को
लिखता हूँ बस अब लिखने को/ लिखने जैसी बात नहीं है.

अनगिनत इन्द्रधनुषी पहुलुओं से हमें रुबरु कराते हुए हमें हर मोड़ पर वो रिश्तों की जकड़न, हालात की घुटन, मन की वेदना और तन की कैद में एक छटपटाहट का संकेत भी दे रहे हैं जो रिहाई के लिये मुंतजिर है. मानव मन की संवेदनशीलता, कोमलता और भावनात्मक उदगारों की कथा-व्यथा का एक नया आयाम प्रेषित करते हैं- ’मेरा वजूद’ और ’मौत’ नामक रचनाओं में:

मेरा वजूद एक सूखा दरख़्त / तू मेरा सहारा न ले
मेरे नसीब में तो / एक दिन गिर जाना है
मगर मैं/ तुम्हें गिरते नहीं देख सकता, प्रिये!!

एक अदभुत शैली मन में तरंगे पैदा करती हुई अपने ही शोर में फिर ’मौत’  की आहट से जाग उठती है-

उस रात नींद में धीमे से आकर/ थामा जो उसने मेरा हाथ...
और हुआ एक अदभुत अहसास/ पहली बार नींद से जागने का...

माना ज़िन्दगी हमें जिस तरह जी पाती है वैसे हम उसे नहीं जी पाते हैं, पर समीर जी के मन का परिंदा अपनी बेबाक उड़ान से जोश का रंग, देखिये किस कदर सरलता से भरता चला जा रहा है. उनकी रचना ’वियोगी सोच’ की निशब्दता कितने सरल शब्दों की बुनावट में पेश हुई है-

पूर्णिमा की चांदनी जो छत पर चढ़ रही होगी..
खत मेरी ही यादों के तब पढ़ रही होगी...

हकीकत में ये ’बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोम लम्हात है, जिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है. ब्लॉग की दुनिया के सम्राट समीर लाल ने गद्य और पद्य पर अपनी कलम आज़माई है. अपने हृदय के मनोभावों को, उनकी जटिलताओं को सरलता से अपने गीतों, मुक्त कविता, मुक्तक, क्षणिकाओं और ग़ज़ल स्वरुप पेश किया है. मन के मंथन के उपरांत, वस्तु व शिल्प के अनोखे अक्स!!

उनकी गज़ल का मक्ता परिपक्वता में कुछ कह गया-

शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया
पी मिलन की आस लेकर, रात जगता रह गया.

वक्त की पाठशाला के शागिर्द ’समीर’ की इबारत, पुख़्तगी से रखा गया यह पहला क़दम...आगे और आगे बढ़ता हुआ साहित्य के विस्तार में अपनी पहचान पा लेगा इसी विश्वास और शुभकामना के साथ....

शब्द मोती के पिरोकर, गीत तुमने जो गढ़ा
मुग्ध हो कर मन मेरा ’देवी’ उसे पढ़ने लगा

तुम कलम के हो सिपाही, जाना जब मोती चुने
ऐ समीर! इनमें मिलेगी दाद बनकर हर दुआ..

देवी नागरानी
न्यू जर्सी, dnangrani@gmail.com

॰॰
कृति: बिखरे मोती, लेखक: समीर लाल ’समीर’, पृष्ठ : १०४, मूल्य: रु २००/ ,
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, पी.सी. लेब, सम्राट कॉम्पलैक्स बेसमेन्ट, बस स्टैंड के सामने, सिहोर, म.प्र. ४६६ ००१

शिवना प्रकाशन की आगामी पुस्‍तकें : विरह के रंग- सीमा गुप्‍ता, चांद पर चांदनी नहीं होती- संजय चतुर्वेदी, खुश्‍बू टहलती रही- मोनिका हठीला, अनाम- दीपक मशाल

28 टिप्‍पणियां:

  1. किताब को चार चाँद लगा दिये...देवी जी ने समीक्षा करके और आपने छाप करके!!

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  2. बहुत अच्‍छा लगा पढकर .. समीर जी को बधाई !!

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  3. बहुत दिन पहले जब बि्खरे मोती मुझे सुबीर जी ने भेजी थी तब से कई बार पढी। हर बार उन से एक छवि की माला गूँथने की कोशिश करती रही फिरब्लाग पर उनकी रचनायें पढती तो ये तय नहीं कर पाति कि उन के छवि किस रूप मे बने समीर जी तो बहुआयामी प्रतिभा के स्वामी हैं उन्हें किसी एक छवि मे बाँध पाना सही नहीं होगा। रंग बिरंगे मोतियों से गुँथी उन की इस कृ्ति को नागरानी जी जैसी प्रतिभा ने और भी सुन्दर बना दिया है। और फिर सुबीर जी ने उसे प्रकाशित किया हो तो उसकी चमक दुनियां भर मे जरूर फैलेगी। समीर जी , नागरानी जी और सुबीर जी को बहुत बहुत बधाई। समीर जी की अगली पुस्तक का इन्तज़ार है । शुभकामनायें

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  4. ऐसी अद्भुत काव्यात्मक समीक्षा देवी दीदी ही कर सकती हैं...शब्द फूलों की मानिंद उनकी कलम से झड़ते हैं...मैंने किताब तो नहीं पढ़ी लेकिन समीक्षा पढ़ कर जो आनंद आया है उसे शब्दों में बांधना असंभव है...
    नीरज

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  5. BIKHARE MOTI , IS HASMUKH INSAAN KO AGAR KO JANANAA CHAHTA HAI TO USE BIKHARE MOTI JARUR PADHANI CHAHIYE TABHI PATA CHALEGA KE SAMEER JI KITANE GAMBHIR INSAAN HAIN AUR SAATH ME SAMVEDANSHIL BHI... AUR YAHI SACHCHE KALAMKAAR KI PAHCHAAN HOTI HAI... BIKHARE MOTI KO MUJHE BHI PADHANE KA MAUKAA MILAA HAI SAMEER JI KE HASTAKSHAR WALI PUSTAK MERE PAS BHI HAI ... INKI KUCHH RACHANAAYEN ITANI GAMBHIR HAIN KE KYA KAHUN KUCH EK SHE'R KA CHARCHA KARNAA CHAHTA HUN USKE LIYE FIR SE AATA HUN LAMBHI BAAT KAHNI HAI INKE BAARE ME ...
    INKI LEKHANI AUR SHIVANAA PRAKASHAN KHUB TARAKKI KAREN YAHI KAMANAA HAI ... AAGAMI SHIVANAA PRAKASHAN KI PUSHTAKON KE INTAZAAR ME ...

    ARSH

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  6. उफ्फ, ये समीक्षा थोड़े है सुबीर भैया, ये तो इक नज़्म लिखी है देवी नागरानी जी ने. कितनी ख़ूबसूरत बहती हुई सी बातें. उनको बहुत धन्यवाद इस सुन्दर दृष्टि के लिए!
    अफ़सोस कि समीर लाल जी को अब तक पढ़ा नहीं है मैंने, पर ऊपर जो भी पढ़ा है उनका लिखा, बहुत सुन्दर और गहरा लगा! उनको भी बहुत बधाई और किताब की सफलता की शुभकामनाएँ. "सुना है वो पेड़ कट गया है . . " , "माथे पे चुम्बन का टीका", : चांदनी छत पे चढ़ रही होगी . . " बहुत सुन्दर!

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  7. मुझे अभी यह सौभाग्‍य नहीं मिला 'बिखरे मोती' पढ़ने का, लेकिन आज यह पुस्‍तक समीक्षा पढ़कर बहुत ही अच्‍छा लगा, बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  8. आदरणीय सुबीर साहब,
    आज देवी जी की यह समीक्षा पढ़कर यूँ लग रहा है जैसे मैं अपने परम प्रिय मित्र और बढ़े भाई समीरलाल से अब तक नावाकिफ़ ही रहा। उनके कितने ही आयाम और हैं जो अनछुए हैं। उन्होंने जो बिखेरे हैं वे वास्तव में मोती ही हैं। आपका बहुत बहुत आभार इस सुन्दर समीक्षा को पढ़वाने के लिए।

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  9. गद्य लिखते समय समीर भाई जितने ही हंसोड़ दीखते हैं,पद्य लिखते समय उतने ही धीर गंभीर संवेदनशील...गद्य जैसे समुद्र की लहरें और पद्य जैसे उसकी शांत धीर अतल गहराई....वो तो जो भी लिखते हैं,बस कमाल ही लिखते हैं....परन्तु आदरनीय विदुषी देवी जी ने जो अप्रतिम समीक्षा लिखी,उसे पढ़ तो बस मन मुग्ध ही हो गया....

    अति सुन्दर और सटीक समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार...

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  10. समीक्षा ऐसी.. तो पुस्तक वैसी होगी ही........ बधाई प्रस्तुति के लिये आपको.. समीक्षा के लिये देवी जी को.. और लेखन के लिये समीर जी को..

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  11. AGAR SAMEER LAL SAMEER KEE KAVITAON
    KAA JADOO SAR PAR CHADH KAR BOLTA
    HAI TO DEVI NANGRANI KEE SMEEKSHA
    DIL MEIN UTARTEE HAI.BIKHRE MOTIYON
    KO SMETNA DEVI JEE KHOOB JAANTEE
    HAIN.

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  12. 'बिखरे मोती' दो दिन पहले ही प्राप्त हुई,
    एक ही बैठक में पढ़ गई..देवी दीदी ने
    इतनी खूबसूरत समीक्षा की है कि मेरे ही भाव
    जैसे उड़ेल दिए हों. देवी दीदी, समीर जी, सुबीर जी
    बहुत -बहुत बधाई..शुभकामनाएँ.

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  13. हर दिल अज़ीज़ सुबीर जी कि तहे-दिल से शुक्र गुजार हूँ इस पोस्ट को अपनी साईट पर लगाने के लिए और इसी मंच पर समीर लाल जी को को बधाई देती हूँ जो मुझे अपनी कलम कि रवानी से परिचय करवाया. उनको जानती तो थी, मुंबई के काव्य गोष्टी में एक मंच पर रहे हैं और हमारे साथ अनुज नीरज गोस्वामी भी रहे हैं. मैं श्री प्राण शर्मा जे कथन को सजदा करती हूँ "बिखरे मोती को समेटना अगर मुझे आता है तो आप कि दुआओं का और स्नेह का असर है."
    अब मेरे मन में भी एक लालच उठी है शिवना प्रकाशन कि प्रस्तुति को ऐसे सुधि पाठक अपनी टिप्पणी से नवाजेंगे तो मुझे सोचना पड़ेगा अगले ग़ज़ल संग्रह के बारे में..................!!!
    सस्नेह
    देवी नागरानी

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  14. समीर जी के अनमोल 'बिखरे मोती' जानी-मानी ग़ज़लकार, समीक्षक और कहानीकार देवी नागरानी जी की समीक्षा में खूबसूरत शब्द नगीनों की तरह जड़े हुए हैं. मैंने 'बिखरे मोती' पढ़ी तो नहीं है लेकिन देवी जी ने पूरी किताब की रचनाओं का निचोड़ इस खूबी से दिया है कि पढ़ने की उत्सुकता स्वत: ही बढ़ जाती है.
    समीर जी की इस कृति के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं और साथ में आशा है उनकी लेखनी इसी प्रकार साहित्य में रौशनी फैलाती रहेंगी.
    देवी जी ऐसे ही विभिन्न विधाओं में साहित्य की सेवा में संलग्न रहते हुए आनंद की वृष्टि करती रहें, यही कामना है.
    सुबीर जी को धन्यवाद देना आवश्यक है जिन्होंने समीक्षा को 'सुबीर संवाद सेवा' में स्थान देकर पाठकों तक पहुंचाई है. आशा है, आप इसी तरह 'सुबीर संवाद सेवा' द्वारा शिवना प्रकाशन की पुस्तकों और उनके रचयिताओं से मुलाक़ात कराते रहेंगे.
    महावीर शर्मा

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  15. देवी नागरानी साहिबा का बिखरे हुए मोतियों को पिरोने का
    अंदाज़ निराला है देवी की कलम से निकले अल्फाज़ लब कुशाई करते
    कानों में मिसरी सी घोल देते हैं समीर साहिब के कलाम में कोई तो बात होगी
    वर्ना कौन लिखता है किसी के लिए आज कल .

    वोह समीर है या कबीर है
    वोह सुबीर है या वोह मीर है
    मेरे दिल से हैं निकल रहीं
    मुबारकें मुबारकें

    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

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  16. धन्यवाद -- इस सुन्दर सार गर्भित लिंक के लिए --
    देवी नागरानी जी बढिया गज़लकारा ही नहीं ,
    बेहद पाक - साफ़ दिल की मल्लिका भी हैं ..........
    उनकी समीक्षा समीर लाल समीर " उड़न तश्तरी " जाल घर + स्वर्ण कलम विजेता , हर दिल अज़ीज़, :) हमारे समीर भाई के रचनाकार रूप
    पुस्तक " बिखरे मोती " के लिए आर्शीवाद ही समझिये.
    जिसे शिवना प्रकाशन के तहत , सशक्त रचनाकार भाई श्री पंकज जी ने
    अपने जाल घर प्रस्तुत किया है
    यह , "बिखरे मोती " की प्रतिष्ठा की विजय पताका है --
    आप तीनों को , मेरे अनेकों स्नेहभरे सद्भाव व आशिष ,
    मंगल कामना सह:
    आपकी लावण्या दी

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  17. bahoot hi sundar samiksha hai ... aisa lag raha hai jaise pustak ke maayne nikal aaye hain ... kisi kaaran vash pustak abhi tak nahi padh paaya .... par jaise jaise iske baare mein jaan raha hun ... utsukta badhti jaa rahi hai .... itni lajawaab rachnaaon ki samiksha anoothe andaaz mein hai ....

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  18. जितनी अच्छी पुस्तक
    उतने अच्छे लेखक
    कितनी अच्छी चर्चा की
    सहृदयी हैं समीक्षक
    चलो लेकर एक प्रति
    बने सबसे बड़े पाठक !!

    देवी नागरानी जी, समीर जी, सुबीर जी को बहुत बधाई ! और शुभकामनाएं.

    - सुलभ

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  19. देवी जी को डॉ सरिता मेहता द्वारा भेजा गया ईमेल संदेश:

    Devi, Bahut hii khubsurat samiksha likii hai. Samiksha pad kar dil karta habi, poori pustak samanee aa jai. Kuch bhi kahie, aap kii kalam kaa jadu easa hai kii eek eek harf mil kar nagine se muskrane lagte hain. kuch mera bhi kahne kaa man hai,

    " Akshar jab shabd bante hain,
    Shabd jab mil kar chalte hain,
    Shabdo kee arth badal jaate hain,
    jab mil kar sab gaate haii,

    Aur voo madhur sangeet aap kii samisha me sunaaii diaa, jis ne samir ji ki pustak kaa iss tarha varnan kyaa hai. Badhi hoo Devi Ji aap koo bhii aur Samir ji koo bhi. agar unkii putak mil sakegi to bahut achha lagega.
    Payar aur shubh kaamnaayon ke saath.
    Sarita

    Dr.Sarita Mehta,
    President,Vidya Dham, N Y
    Ph.718-397-5833
    www.hindi4us.com

    **
    translated at Quillpad.com

    देवी, बहुत ही खूबसूरत समीक्षा लिखी है. समीक्षा पढ़ कर दिल करता है , पूरी पुस्तक सामानी आ गयी. कुछ भी कहिए, आप की कलाम का जादू ऐसा
    है कि एक एक हरफ़ मिल कर नगीने से मुस्कराने लगते हैं. कुछ मेरा भी कहने को मन करता है,
    " अक्षर जब शब्द बनते हैं,
    शब्द जब मिल कर चलते हैं,
    शब्दो की अर्थ बदल जाते हैं,
    जब मिल कर सब गाते हैं

    और वो मधुर संगीत आप की समीक्षा mein सुनाई दिया, जिस ने समीर जी की पुस्तक का इस तरह वर्णन किया है. बधाई हो देवी जी आप को भी और समीर जी को भी. अगर उनकी पुस्तक मिल सकेगी तो बहुत अच्छा लगेगा.

    प्यार और शुभकामनाओं के साथ.
    सरिता
    Dr.Sarita Mehta,
    President,Vidya Dham, N Y

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  20. हामारे बीच आज आगमान हुआ है जानी मानी साहित्य सरोवर में ओत प्रोत, शास्त्र‍ विध्या को छँद बध करने वाली अनुभूति जिसके शब्दार्थ से छलकती है सुर सुधा जो उन्होने अपने इस संदेश में मुझे भेजी है.....
    निःस्पृह विमल सौम्य देवी जी,
    वन्दे
    आप इतनी विदुषी है, भाषा पर गहरी पकड़ हैं, समीक्षा बहुत जीवंत और रचना को सौंदर्य प्रदान कर रही हैं. कहीं-कहीं लगता है कि यह तो मेरी बात थी, आप तक कैसे गयी ? यह तो मेरी पीर थी कसकन आपको हो गयी. मुंदरी में नगीने सी समीक्षा अच्छी लगी.

    मृदुल कीर्ति

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  21. "बिखरे मोती" की एक-एक रचना पढ़ गया था काफी पहले...आज देवी नागरानी जी की लाजवाब समीक्षा से वो पढ़ना फिर से जीवंत हो उठा।

    नागरानी जी को हृदय से शुक्रिया!

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  22. एक साधक की रचनात्मक साधना को शब्दों में बाँध कर एक सुन्दर साहित्यिक परख की अनुभूति से परिचित करवाया है देवी जी ने। "बिखरे मोती " तो मैंने पढ़ी नहीं किन्तु संग्रह से चुने हुए मोतियों की एक लड़ी की चमक को तो देखा है इस समीक्षा के द्वारा। अत: आदरणीय समीर जी, देवी जी तथा सुबीर जी सभी बधाई के पात्र हैं । मेरी और से हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें ।

    शशि पाधा

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  23. बिखरे मोती का तो पहले से ही कायल था, देवी जी की समीक्षा ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। श्री समीर लाल जी की बहुमुखी प्रतिभा का व्यापक दिग्दर्शन कराती पुस्तक का उतना ही मोहक वर्णन पढ़कर मन गदगद हो गया। शिवना प्रकाशन की आगामी पुस्तकों की सूची ने अभी से ही मन में हिलोरें उठा दी हैं। परमात्मा शिवना को नई बुलंदियों तक पहुंचाये।

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  24. समीर जी,
    बिखरे मोती की बहुत-बहुत बधाई हो और उस पर देवी जी की समीक्षा, आनन्द आ गया। कभी अवसर मिला तो ज़रूर पढ़ूँगा। एक बार फिर मुबारक हो।

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  25. एक तो ब्लॉग जगत के शहंशाह श्री समीर जी की हर दिल अज़ीज़ रचनाएँ... ऊपर से सुप्रसिद्ध शायरा देवी जी की समीक्षा.. ऐसा नहीं लगता जैसे 'सोने पे सुहागा' इसी को कहते हैं?
    जय हिंद...

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  26. Atyuttam pustak pratiit hotii hai. Nangrani ji kii prastuti gazab kii hai. Devi Nangrani ji ne mujhe yah samiiksha bheja kar adbhut a'nand diya'. Samiirlal ji se mera' parichay abhii du'r du'r se hii hua' hai. Agalii ba'r milane par ru'baru' hone ka' avasar milega'.

    Gopal Baghel 'Madhu'

    www.GopalBaghelMadhu.com
    www.AnandaAnubhuti.com

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