महाराष्ट्र की कौरव सभा में दु:शासन चीरहरण करता रहा और हम अर्जुन की तरह हतवीर्य, भीम की तरह कायर, युधिष्ठिर की तरह नपुंसक, नकुल की तरह कापुरुष और सहदेव की तरह किन्नर बने बैठे तमाशा देखते रहे, हमें क्षमा करना मां हिंदी हम नपुंसक हैं ।
सुबीर जी ये क्षमायोग्य अपराध नहीं है कहाँ क्षमा कर पायेगी मां हिन्दी।मेरी कविता से चंद पँक्तिया तेरी बली पर बाइतबार, तेरे शाप की हक् दार, देख रही हू लोमहर्षक, दावानल हो उदभिज , इस देश की अस्मिता,राष्टृ्भाषा को निगल जायेगा तेरा अभिशाप नहीं विफल जायेगा मैं जडमत लाचार हूं शर्म सार हूं . आज नई सज धज के साथ ब्लोग से बहुत सुन्दर संदेश दिया है बधाई और शुभकामनायें
ये राजनीति है...इसमें ये ही सब होता है...राजनेता अपने स्वार्थ के लिए किसी का भी अपमान कर देते हैं...हमारी संस्कृति इतिहास भाषा इनके लिए कोई मायने नहीं रखती...इंसानियत ही कोई मायने नहीं रखती तो फिर बाकी की बातें तो बाद की हैं...अपराधी पैरोल पर रिहा हो कर नाईट क्लब में पाए जाते हैं....विधान सभा अखाडा बन जाती है...सच्चे लोग चौराहों पर जूते खाते हैं...कुछ नया नहीं हुआ है सुबीर जी...ये रोज मर्रा की बातें हैं...जब इन्हें चुनने वाली जनता ही नहीं समझती या समझना चाहती तो फिर आप हम इनका क्या कर लेंगे...जिसकी लाठी उसकी भैंस...ये आज का मुहावरा नहीं है... तब का है जब से इंसान ने भैंस पालना शुरू किया था...आप ही नहीं हम सब आहत हैं इस घटना से...बहुत आहत...
शर्मनाक! मैं अपना विरोध दर्ज करती हूँ. राजभाषा का यह अपमान (वह भी राष्ट्रवाद का दंभ भरने वाली पार्टी के जनप्रतिनिधि द्वारा )किसी देश में ऐसा अंधेर न हुआ होगा.
उरूजे क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा, रिहा सय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा। कभी वो दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे, जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा। हम सब आहत हैं।
ये काला दिन पूरे भारत वासियों के लिए शर्म का दिन है ........... राजनीति और नेता दोनों ने मिल कर बस स्वार्थ के चलते राष्ट्र भाषा के साथ ये खेल खेला है .......... नीरज जी ने सच कहा है ............ये रोज मर्रा की बातें हैं...जब इन्हें चुनने वाली जनता ही नहीं समझती या समझना चाहती तो फिर आप हम इनका क्या कर लेंगे............... ऐसे मोटी चमड़े वाले नेताओं को शर्म नहीं आएगी ...........
Pankaj jee ,aapkee aawaaz jantaa kee aawaaz hai lekin jantaa bhee kya kare? Jaesa rajaa vaesee praja. Hum sharmsaar to hain lekin apne- apne dil mein jhaanke to baat bane. Angrezee bhasha ko to hum sab apnee-apnee god mein to bade pyar se bithaa rahe hain lekin Hindi ko aaj tak Bharat kee rashtrabhasha nahin banaa sake hain.Nirmla kapila jee ne theek hee kahaa hai-- Dekh rahee hoon lomharshak davanal ho udbhij is desh kee asmita ,rashtra bhasha ko nigal jaayega tera abhishaap
मनुष्य के स्वभाव के दर्शन पर चर्चा न करते हुए संक्षिप्त में कहूँ तो यह स्थिति अनादिकाल से है। मुनष्य की सत्ता, और फिर उसमें बने रहने की चाह जो न कराये सो थोड़ा। इस चाह में उजाले का मार्ग अपनाया जाय या अंधियार का यह व्यक्तिगत सोच और चयन का विषय है। हॉं अगर कोई परिस्थिति विशेष हमें आहत करती है तो आवश्यकता यह पहचानने की है कि हम ऐसा क्या सकारात्मक कर सकते हैं जो इस स्थिति का निराकरण करे।
इस विषय में इपीक्टीटस का एक संदर्भ दिये बिना मैं रह नहीं पाता कि 'हे ईश्वर मुझे सहजता दे उन स्थितियों को स्वीकारने की जिन्हें मैं बदल नहीं सकता, साहस दे उन स्थितियों को बदलने का जिन्हें मैं बदल सकता हूँ, और विवेक दे इन स्थितियों का अंतर समझने का।
साहित्यकर्मी अपनी सीमा में ऐसा करते आये हैं, इसमें नया कुछ नहीं है। दया के पात्र हैं वे जो अंधियार और उजियार में अंतर नहीं कर सकते। तिलक राज कपूर
ati khedjanak, aur uspe bhi abhi tak na hi rajya na kendra sarkaar dwara koi virodh darz kiya gaya... Maa Hindi Begaani ho gayin apnon ke beech me hi.. Jai Hind..
किसकी असली मंशा क्या है, कौन जानता है ! और किसी के अपमान करने से, भैया, हमारी हिन्दी को कुछ नहीं होगा. पर हाँ, राजनीति में घिसटने से भाषा को कष्ट होता होगा चाहे वह हिंदी हो या मराठी, ये सोच कर मन व्यथित है.
आपके कथन से सम्पूर्णता: सहमति -- -- क्या समाचार घटा , वह नहीं जानती थी -- -- आप हर सामायिक घटना पर पैनी नज़र रखते हैं और सभी की सुरक्षा की चिंता भी करते हैं क्या किया जाए ताकि भविष्य के लिए " हिन्दी भाषा भारती " का गौरव अक्षुण्ण रहे ? इस पर भी ठोस विचार हो --- हम सभी आपके साथ हैं पंकज भाई -- विक्षुब्ध :-( - लावण्या
nafrat ka ant nahi hota hai, jo log pahle dharm, varg, jaati ko adhar banakar samaj me ghruna failane ka karya karte rahe hai unki nafrat bhasha pe jaakar khatm nahi hone wali, aur nafrat ka muqabla nafrat se nahi sirf pyar se hoga isliye isko itni pramukhta mat dijiye, hitler ke prashansako se aur kya ummeed karte hai?
किसी भी देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक राष्ट्र-भाषा को मान्यता देना आवश्यक है. शर्म की बात है कि ६२ वर्ष हो गए और प्रशासन और सत्ताधारी नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. राष्ट्रभाषा के प्रति उदासीनता के व्यवहार से देश बंटता जा रहा है. इस प्रकार प्रदेशों की भाषाओं के झगड़ों में जिस देश की राष्ट्रभाषा का निरादर हो तो वेदेशी हंसते हैं हमारी मूर्खता पर जब देखते हैं कि हिन्दी पर आज भी अंग्रेजी विराजमान है. भारत देश में ही भारतीय अंग्रेजी स्कूलों में भारतीय बच्चों को मातृभाषा बोलने की अनुमति नहीं है बल्कि मातृभाषा बोलने पर सजा मिलती है - कैसी विडम्बना है! यह वही स्कूल हैं जहाँ हमारे नेताओं, देश की बागडोर सँभालने वाले लोगों के बच्चे पढ़कर देश की बागडोर लेंगे- उनसे आप क्या आशा कर सकते हैं. यह देखकर हृदय और भी खिन्न होता है जब एक विदेशी पत्रकार, मार्क टली के मुंह से हिंदी की दशा देख कर यह सुनते हैं: 'जो बात मुझे अखरती है भारतीय भाषा के ऊपर अंग्रेजी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषा के 'भारतीय संस्कृति' जिंदा नहीं रह सकती। दिल्ली में जहां रहता हूं, उसके आसपास अंग्रेजी पुस्तकों की तो दर्जनों दुकानें हैं, हिन्दी की एक भी नहीं। हकीकत तो यह है कि दिल्ली में मुश्किल से ही हिन्दी पुस्तकों की कोई दुकान मिलेगी।" देश की किस को फिक्र है, बस कुर्सी बनी रहे! अमेरिका और अन्य देशों में हिन्दी पढ़ने और पढ़ाने का कार्य शुरू हो गया है और हमारे अपने ही देश में हिन्दी को कुचलने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र ढूँढ रहे हैं. पंकज जी, इस घटना से सभी आहत हैं, देश-विदेश में सभी आपके साथ हैं. जय भारत, जय हिन्दी!
LEKIN SANJAY BENGANEE SE SAHMAT HOON . YE BHASHA KA NAHEEN BALKI DO GUNDE ,( JO AAPAS ME DOST HAIN ) UNKEE NOORA KUSHTEE HAI .
BATA DOON KI TEEN SAAL PAHALE YAHEE DONO KEE PARTIYAN ,INKE SAMET , THANE KE STHANEEY NIKAY CHUNAV ME GADHBANDHAN KAR SAATH LADEEN THEEN .BAAT NAHEEN BANEE.
AB DONO APNE APNE VOTE BANK KO BEWAKOOF BANANE KE LIYE YE DRAMA KAR RAHE HAIN .
NA AAZMEE KA HINDEE SE KOYEE SAROKAR HAI NA RAJ THAKRE KA MARATHEE SE.
@ NEERAJ JEE HAAN YE KHEL HAI . BEWAKOOF TO JANTA HAI JO SAMAJHTEE NAHEEN .
HAAN IS KHEL KEE SOOTRADHAR KANGRESS BHEE HAI .BANTO AUR RAJY KARO ' .
हिन्दी के अपमान पर अनमने हैं पर केवल विरोध ही दर्ज कर सकते हैं और शर्म ही महसूस कर सकते हैं। ऐ मातृभाषा हिन्दी हम बेबस हैं इन भाषाई कसाईयों के आगे, पर हम तेरे सेवक हैं।
हिंदी अपमान का विरोध हर स्तर पर होना चाहिए | पर वर्त्तमान मराठी और हिंदी विवाद नहीं है | यहाँ ठाकरे और अबू आजमी अपनी गन्दी राजनीति मैं मराठी और हिंदी को घसीट रहे हैं | हम हिंदी प्रेमियों को इस चाल को भली भांति समझ लेना चाहिए |
Koyee bhee padha likha aur suljha hua insaan wohi mehsoos karega jo aap kar rahey hain.
Aaj tak Tamil Nadu ko chhor kar (woh bhee raajneetik kaarno se) kisi bhee pradesh meiN Hindi ke saath aisa durvyavhaar nahin huaa jo ki Mahrarashtra Vidhan Sabha mein hua.
Aaj tak hum Hindi aur Angrezi ke beech kee ladaai lad rahey thay.Hamein kaha jaata thaa ki Hindi Bharat ke Rulers kee bhasha kabhi nahin thee - Pharasi, Urdu aur angrezi ki misaal dee jaati thee.
Aaj haalaat bahut bigad gaye hain. Raajneetigya apney faaydey ke liye kuchh bhee kar sakta hai aur jaanta hai ki pratyek party Popularity competition mein lagi hai. Congress, BJP, SP, BSP, NCP kisi mein dum nahin hai ki khul kar iss baat mein MNS kee policy aur aacharan ke viruddh kuchh keh sakein.
Aise RaajneetigyoN ke viruddh Inqalaab zaroori hai.
kye behtar ho ki mere boss mujhey tamil me order karen fir main unsa bhojpuri me jawab dun unhe samajh na aye to wo apne seceretory se pochey fitr wo uuska maithili me jwab de. huh. " rajbhasha ki hai sewa ka puruskar yehi main apne ghar ke liye chat bhi nahi le paya. satya
aaj yadi rashtrabhasha ke apman ki jagah aur kuch hota to na jaane kitna bawela khada ho jata...........magar aaj ke halat ke hum khud jimmedar hain jab tak hum khud jagruk nhi honge tab tak sirf apman hi sahte rahenge........hamein ek baar phir badlaav lana hoga tabhi disha milegi...........sabko badalna hoga phir chahe sarkar ho ya janta.
सुबीर जी ये क्षमायोग्य अपराध नहीं है कहाँ क्षमा कर पायेगी मां हिन्दी।मेरी कविता से चंद पँक्तिया
जवाब देंहटाएंतेरी बली पर
बाइतबार,
तेरे शाप की हक् दार,
देख रही हू लोमहर्षक,
दावानल हो उदभिज ,
इस देश की
अस्मिता,राष्टृ्भाषा
को निगल जायेगा
तेरा अभिशाप
नहीं विफल जायेगा
मैं जडमत लाचार हूं
शर्म सार हूं .
आज नई सज धज के साथ ब्लोग से बहुत सुन्दर संदेश दिया है बधाई और शुभकामनायें
हमसब शर्मसार हैं!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये राजनीति है...इसमें ये ही सब होता है...राजनेता अपने स्वार्थ के लिए किसी का भी अपमान कर देते हैं...हमारी संस्कृति इतिहास भाषा इनके लिए कोई मायने नहीं रखती...इंसानियत ही कोई मायने नहीं रखती तो फिर बाकी की बातें तो बाद की हैं...अपराधी पैरोल पर रिहा हो कर नाईट क्लब में पाए जाते हैं....विधान सभा अखाडा बन जाती है...सच्चे लोग चौराहों पर जूते खाते हैं...कुछ नया नहीं हुआ है सुबीर जी...ये रोज मर्रा की बातें हैं...जब इन्हें चुनने वाली जनता ही नहीं समझती या समझना चाहती तो फिर आप हम इनका क्या कर लेंगे...जिसकी लाठी उसकी भैंस...ये आज का मुहावरा नहीं है... तब का है जब से इंसान ने भैंस पालना शुरू किया था...आप ही नहीं हम सब आहत हैं इस घटना से...बहुत आहत...
जवाब देंहटाएंनीरज
शर्मनाक! मैं अपना विरोध दर्ज करती हूँ. राजभाषा का यह अपमान (वह भी राष्ट्रवाद का दंभ भरने वाली पार्टी के जनप्रतिनिधि द्वारा )किसी देश में ऐसा अंधेर न हुआ होगा.
जवाब देंहटाएंउरूजे क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा,
जवाब देंहटाएंरिहा सय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा।
कभी वो दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा।
हम सब आहत हैं।
पैर पटकने ,खिसियाने के इलावा हम कर क्या सकते हैं ?
जवाब देंहटाएंपंकज जी शुक्रिया इस पोस्ट के लिए...
ये उनकी राजनीति है
जवाब देंहटाएंहम यथा संभव अपना कार्य करते रहेंगे.
दुखद है, विरोध दर्ज करता हूँ.
प्रशासन शांत है..नेता शांत हैं...सत्ताधारी शांत है....! ये तटस्थता नही कायरता है। लोभ है कुर्सी का। मुखर विरोध एक राज्य के वोट को खतम कर देगा।
जवाब देंहटाएंराजभाषा के लिये किये जाने वाले वाले बड़े समारोहों और भाषणबाजी के खोखले व्यवहार की पोल है और इसके झूठे आयजकों के मुँह पर तमाचा.....!!!!
और यहाँ हमें शतप्रतिशत राजभाषा में कार्य करने के खत पे खत भेजे जाते हैं मंत्रालय से....!
समझ नही आ रहा शर्म करूँ किस पर ??? खुद पर ही कर सकती हूँ...!!!!!!!!!!!!!
Hindi itihaas pe tamacha... sach me hindi ham napunsak hain...
जवाब देंहटाएंarsh
ये काला दिन पूरे भारत वासियों के लिए शर्म का दिन है ........... राजनीति और नेता दोनों ने मिल कर बस स्वार्थ के चलते राष्ट्र भाषा के साथ ये खेल खेला है .......... नीरज जी ने सच कहा है ............ये रोज मर्रा की बातें हैं...जब इन्हें चुनने वाली जनता ही नहीं समझती या समझना चाहती तो फिर आप हम इनका क्या कर लेंगे............... ऐसे मोटी चमड़े वाले नेताओं को शर्म नहीं आएगी ...........
जवाब देंहटाएंहम इसकी तीव्र भर्त्सना करते हैं !!! भारत माता के ऐसे कुपुत्रों का नाश हो !!!
जवाब देंहटाएंयह दो गुण्डों की मात्र लड़ाई है.
जवाब देंहटाएंहिन्दी अपनी है तो मराठी क्या पराई है?
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंशायद यह पंक्तियाँ जो उद्दत की गई हैं इसी दिन के लिये ही लिखी गई हों।
क्षैत्रियता का बँटवारा अब भाषाई आधार पर भी बाँटेगा और हम बिना किसी विरोध के कत्लखाने में बंधे जानवर से असहाय निहारेंगे।
समर शेष है.....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Pankaj jee ,aapkee aawaaz jantaa
जवाब देंहटाएंkee aawaaz hai lekin jantaa bhee
kya kare? Jaesa rajaa vaesee praja.
Hum sharmsaar to hain lekin apne-
apne dil mein jhaanke to baat bane.
Angrezee bhasha ko to hum sab
apnee-apnee god mein to bade pyar
se bithaa rahe hain lekin Hindi ko
aaj tak Bharat kee rashtrabhasha
nahin banaa sake hain.Nirmla kapila
jee ne theek hee kahaa hai--
Dekh rahee hoon lomharshak
davanal ho udbhij
is desh kee
asmita ,rashtra bhasha
ko nigal jaayega
tera abhishaap
इक डाल पे उल्लू काफ़ी है बर्बाद गुलिस्तां करने को
जवाब देंहटाएंहर डाल पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा
मनुष्य के स्वभाव के दर्शन पर चर्चा न करते हुए संक्षिप्त में कहूँ तो यह स्थिति अनादिकाल से है। मुनष्य की सत्ता, और फिर उसमें बने रहने की चाह जो न कराये सो थोड़ा। इस चाह में उजाले का मार्ग अपनाया जाय या अंधियार का यह व्यक्तिगत सोच और चयन का विषय है। हॉं अगर कोई परिस्थिति विशेष हमें आहत करती है तो आवश्यकता यह पहचानने की है कि हम ऐसा क्या सकारात्मक कर सकते हैं जो इस स्थिति का निराकरण करे।
जवाब देंहटाएंइस विषय में इपीक्टीटस का एक संदर्भ दिये बिना मैं रह नहीं पाता कि 'हे ईश्वर मुझे सहजता दे उन स्थितियों को स्वीकारने की जिन्हें मैं बदल नहीं सकता, साहस दे उन स्थितियों को बदलने का जिन्हें मैं बदल सकता हूँ, और विवेक दे इन स्थितियों का अंतर समझने का।
साहित्यकर्मी अपनी सीमा में ऐसा करते आये हैं, इसमें नया कुछ नहीं है।
दया के पात्र हैं वे जो अंधियार और उजियार में अंतर नहीं कर सकते।
तिलक राज कपूर
शर्मनाक!! दुखद!!
जवाब देंहटाएंवाकया शर्मनाक है!
जवाब देंहटाएंआपकी अभिव्यक्ति दमदार!
ati khedjanak, aur uspe bhi abhi tak na hi rajya na kendra sarkaar dwara koi virodh darz kiya gaya...
जवाब देंहटाएंMaa Hindi Begaani ho gayin apnon ke beech me hi..
Jai Hind..
किसकी असली मंशा क्या है, कौन जानता है ! और किसी के अपमान करने से, भैया, हमारी हिन्दी को कुछ नहीं होगा. पर हाँ, राजनीति में घिसटने से भाषा को कष्ट होता होगा चाहे वह हिंदी हो या मराठी, ये सोच कर मन व्यथित है.
जवाब देंहटाएंdukhad............
जवाब देंहटाएंatyant dukhad
_______________ye sharm ka nahin
_______________krodh ka vishya hai
jai hind
jai hindi !
आपके कथन से सम्पूर्णता: सहमति -- -- क्या समाचार घटा , वह नहीं जानती थी -- --
जवाब देंहटाएंआप हर सामायिक घटना पर पैनी नज़र रखते हैं और सभी की सुरक्षा की चिंता भी करते हैं
क्या किया जाए ताकि भविष्य के लिए " हिन्दी भाषा भारती " का गौरव अक्षुण्ण रहे ?
इस पर भी ठोस विचार हो --- हम सभी आपके साथ हैं पंकज भाई --
विक्षुब्ध :-(
- लावण्या
माँ तो श्रधेय रही है हमेशा से, उसका
जवाब देंहटाएंआँचल उजला रहे, यही हमारी सम्पति है
हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये
जहाँ हिंदी भाषा के महकें सुमन
वो सुंदर हमें गुलसिताँ चाहिये
मुहब्बत के बहती हों धारे जहाँ
वतन ऐसा जन्नत निशाँ चाहिये
देवी नागरानी
nafrat ka ant nahi hota hai, jo log pahle dharm, varg, jaati ko adhar banakar samaj me ghruna failane ka karya karte rahe hai unki nafrat bhasha pe jaakar khatm nahi hone wali, aur nafrat ka muqabla nafrat se nahi sirf pyar se hoga isliye isko itni pramukhta mat dijiye, hitler ke prashansako se aur kya ummeed karte hai?
जवाब देंहटाएंगुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंजो प्रकरण घटित हुआ उसमे केवल ओछी राजनीति है
वीनस केशरी
किसी भी देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक राष्ट्र-भाषा को मान्यता देना आवश्यक है. शर्म की बात है कि ६२ वर्ष हो गए और प्रशासन और सत्ताधारी नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. राष्ट्रभाषा के प्रति उदासीनता के व्यवहार से देश बंटता जा रहा है. इस प्रकार प्रदेशों की भाषाओं के झगड़ों में जिस देश की राष्ट्रभाषा का निरादर हो तो वेदेशी हंसते हैं हमारी मूर्खता पर जब देखते हैं कि हिन्दी पर आज भी अंग्रेजी विराजमान है. भारत देश में ही भारतीय अंग्रेजी स्कूलों में भारतीय बच्चों को मातृभाषा बोलने की अनुमति नहीं है बल्कि मातृभाषा बोलने पर सजा मिलती है - कैसी विडम्बना है! यह वही स्कूल हैं जहाँ हमारे नेताओं, देश की बागडोर सँभालने वाले लोगों के बच्चे पढ़कर देश की बागडोर लेंगे- उनसे आप क्या आशा कर सकते हैं.
जवाब देंहटाएंयह देखकर हृदय और भी खिन्न होता है जब एक विदेशी पत्रकार, मार्क टली के मुंह से हिंदी की दशा देख कर यह सुनते हैं: 'जो बात मुझे अखरती है भारतीय भाषा के ऊपर अंग्रेजी का विराजमान! क्योंकि मुझे यकीन है कि बिना भारतीय भाषा के 'भारतीय संस्कृति' जिंदा नहीं रह सकती। दिल्ली में जहां रहता हूं, उसके आसपास अंग्रेजी पुस्तकों की तो दर्जनों दुकानें हैं, हिन्दी की एक भी नहीं। हकीकत तो यह है कि दिल्ली में मुश्किल से ही हिन्दी पुस्तकों की कोई दुकान मिलेगी।"
देश की किस को फिक्र है, बस कुर्सी बनी रहे! अमेरिका और अन्य देशों में हिन्दी पढ़ने और पढ़ाने का कार्य शुरू हो गया है और हमारे अपने ही देश में हिन्दी को कुचलने के लिए अनेक अस्त्र-शस्त्र ढूँढ रहे हैं.
पंकज जी, इस घटना से सभी आहत हैं, देश-विदेश में सभी आपके साथ हैं.
जय भारत, जय हिन्दी!
SHARMNAK !
जवाब देंहटाएंLEKIN SANJAY BENGANEE SE SAHMAT HOON . YE BHASHA KA NAHEEN BALKI DO GUNDE ,( JO AAPAS ME DOST HAIN ) UNKEE NOORA KUSHTEE HAI .
BATA DOON KI TEEN SAAL PAHALE YAHEE DONO KEE PARTIYAN ,INKE SAMET , THANE KE STHANEEY NIKAY CHUNAV ME GADHBANDHAN KAR SAATH LADEEN THEEN .BAAT NAHEEN BANEE.
AB DONO APNE APNE VOTE BANK KO BEWAKOOF BANANE KE LIYE YE DRAMA KAR RAHE HAIN .
NA AAZMEE KA HINDEE SE KOYEE SAROKAR HAI NA RAJ THAKRE KA MARATHEE SE.
@ NEERAJ JEE
HAAN YE KHEL HAI . BEWAKOOF TO JANTA HAI JO SAMAJHTEE NAHEEN .
HAAN IS KHEL KEE SOOTRADHAR KANGRESS BHEE HAI .BANTO AUR RAJY KARO ' .
हिंदी के अपमान पर हम सब शर्मसार हैं और अपना विरोध दर्ज करते हैं।
जवाब देंहटाएंहिन्दी के अपमान पर अनमने हैं पर केवल विरोध ही दर्ज कर सकते हैं और शर्म ही महसूस कर सकते हैं। ऐ मातृभाषा हिन्दी हम बेबस हैं इन भाषाई कसाईयों के आगे, पर हम तेरे सेवक हैं।
जवाब देंहटाएंपंकज जी, इस विषय पर बस शर्म, शर्म शर्म वो उन्हें नहीं हम हिंदीभाषियों को. इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना.........................
जवाब देंहटाएंहिंदी अपमान का विरोध हर स्तर पर होना चाहिए | पर वर्त्तमान मराठी और हिंदी विवाद नहीं है | यहाँ ठाकरे और अबू आजमी अपनी गन्दी राजनीति मैं मराठी और हिंदी को घसीट रहे हैं | हम हिंदी प्रेमियों को इस चाल को भली भांति समझ लेना चाहिए |
जवाब देंहटाएंSubeer Bhai
जवाब देंहटाएंKoyee bhee padha likha aur suljha hua insaan wohi mehsoos karega jo aap kar rahey hain.
Aaj tak Tamil Nadu ko chhor kar (woh bhee raajneetik kaarno se) kisi bhee pradesh meiN Hindi ke saath aisa durvyavhaar nahin huaa jo ki Mahrarashtra Vidhan Sabha mein hua.
Aaj tak hum Hindi aur Angrezi ke beech kee ladaai lad rahey thay.Hamein kaha jaata thaa ki Hindi Bharat ke Rulers kee bhasha kabhi nahin thee - Pharasi, Urdu aur angrezi ki misaal dee jaati thee.
Aaj haalaat bahut bigad gaye hain. Raajneetigya apney faaydey ke liye kuchh bhee kar sakta hai aur jaanta hai ki pratyek party Popularity competition mein lagi hai. Congress, BJP, SP, BSP, NCP kisi mein dum nahin hai ki khul kar iss baat mein MNS kee policy aur aacharan ke viruddh kuchh keh sakein.
Aise RaajneetigyoN ke viruddh Inqalaab zaroori hai.
saadar
Tejendra Sharma
General Secretary
Katha UK
London
सुबीर भाई,
जवाब देंहटाएंजो आवाज़ आप ने बुलंद की है, वह हर भारतीय को, हिंदी प्रेमी को करनी चाहिए थी,
पर यह हमारी बदकिस्मती है-
kye behtar ho ki mere boss mujhey tamil me order karen fir main unsa bhojpuri me jawab dun unhe samajh na aye to wo apne seceretory se pochey fitr wo uuska maithili me jwab de.
जवाब देंहटाएंhuh.
" rajbhasha ki hai sewa ka puruskar yehi main apne ghar ke liye chat bhi nahi le paya.
satya
aaj yadi rashtrabhasha ke apman ki jagah aur kuch hota to na jaane kitna bawela khada ho jata...........magar aaj ke halat ke hum khud jimmedar hain jab tak hum khud jagruk nhi honge tab tak sirf apman hi sahte rahenge........hamein ek baar phir badlaav lana hoga tabhi disha milegi...........sabko badalna hoga phir chahe sarkar ho ya janta.
जवाब देंहटाएं