बुधवार, 15 नवंबर 2023

आइये आज बासी दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों तिलक राज कपूर जी, चरण जीत लाल जी और रेखा भाटिया जी के साथ

हमारे यहाँ हर त्योहार का बासी संस्करण मनाने की परंपरा रही है और यह परंपरा है उन लोगों के लिए जो देर से स्टेशन पर पहुँचते हैं और दौड़ते हुए ट्रेन को पकड़ते हैं। हमारी तरही की ट्रेन भी ऐसी ही है, जिसमें कई रचनाकार दौड़ते हुए आते हैं, कुछ चढ़ जाते हैं तो कुछ बाद में बासी दीपावली के डब्बों में बैठ पाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है कुछ रचनाकार बासी दीपावली में शामिल हो रहे हैं। आप सभी को दीपावली के पाँच दिवसीय पर्व के अंतिम ​दिवस भाई दूज की शुभकामनाएँ। 
  आइये आज बासी दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों तिलक राज कपूर जी, चरण जीत लाल जी और रेखा भाटिया जी के साथ 
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
तिलक राज कपूर
 घूमकर गलियों में देखी है दिवाली रात भर
हमने अक्सर ही दिवाली यूं मनाई रात भर।
इक ग़ज़ल तुझ पर लिखी और गुनगुनाई रात भर
रस्मे उल्फत इस तरह हमने निभाई रात भर।

दर्द में खुद के समेटी बेजुबानी रात भर
खुद सुनाई, खुद को ही अपनी कहानी रात भर।
राम हैं सबके हृदय में तो भला क्यूँ हर बरस
किसके स्वागत में मनाते हैं दिवाली रात भर।

द्वार पर इक दीप रखकर सोचता हूं रोज मैं
आज किसकी याद कुछ बातें करेगी रात भर।
देखना है आज का दिन क्या मुझे दे जाएगा
एक बुलबुल द्वार पर बैठी रही थी रात भर।

सांझ की वेला में जिन प्रश्नों का उत्तर मिल गया
रौशनी उनकी दिया बनकर दिखेगी रात भर।
रात लंबी है मुझे अहसास है इसका मगर
प्रश्न है, क्या ज़िंदगी उलझी रहेगी रात भर।

दीप कुछ देकर गयी हैं दोपहर की कोशिशें
''रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर''।

 बचपन की दीपावलियों की याद दिलाता हुआ मतला है, गलियों में बेपरवाह घूमते रहने का आनंद अब कहाँ रहा। अगले ही शेर में रस्मे उल्फ़त को लिभाने का बहुत ही सुंदर तरीक़ा सामने आया है, किसी पर कुछ लिखना और गुनगुनाना, इससे अच्छा क्या होगा। अपनी कहानी अपने आप को ही सुनाने से अच्छा कुछ नहीं होता। अगले शेर में बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि राम सबके ही दिन में हैं तो फिर यह अगवानी किसकी हो रही है। रात भर किसी की यादों से बातें करना शायद सबसे अच्छा तरीक़ा है रात काटने का। किसी बुलबुल के रात भर द्वारा पर बैठे रहने से अगले दिन को लेकर एक सुंदर संभावना की प्रतीक्षा का शेर बहुत सुंदर बना है। जिन प्रश्नों का उत्तर दिन में तलाश लिया जाता है उनकी रौशनी रात में रास्ता दिखाती है। और एक ही प्रश्न में रात भर उलझे रहने की बात बहुत सुंदर है। अंतिम शेर में गिरह भी बहुत ही सुंदर बाँधी गयी है। वाह वाह वाह सुंदर ग़ज़ल।
 

चरनजीत लाल
 रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हुस्न के जलवों से होगी चाँदनी सी रात भर
चाँद-तारे हैं फ़लक पर आज रक़्साँ ओ सनम    
कहकशां बज़्म-ए-जवाँ में चूर होगी रात भर

सुर्ख़ लब ऐसे हैं तेरे जैसे माणिक हों जड़े
दिल पे ये करते रहेंगे गुल-फ़िशानी रात भर
देख तेरी नरगिसी आँखें ए ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं
जलवों की जादूगरी दिखती रही थी रात भर

ये दुआ दीपावली पर माँगते हैं कुमकुमे
ऐ ख़ुदा तेरी इनायत बरसे यूँ ही रात भर
ज़ुल्फ़ में रश्क-ए-क़मर की इश्क़ है उलझा हुआ
हुस्न की ये फुलझड़ी जलती रहेगी रात भर

हुस्न-ए-ताबाँ ने हमें जलवे दिखाए बे-हिसाब
अब हवा चलती रहेगी भीगी-भीगी रात भर
रूह हर रौशन हुई जश्न-ए-चरागाँ से “चरन”
नूर की रहमत बरसती ही रहेगी रात भर
मतले में ही गिरह को बहुत ही सुंदर तरीक़े से बाँधा गया है, हुस्न के जलवों से अगर चाँदनी हो रही हो, तो फिर तो रौशनी की नदी को रात भर बहना ही है। अगर रात भर फ़लक पर चाँद और तारे झूम रहे हों तो कहकशाँ को भी उस नशे में रात भर चूर ही रहना है। किसी के दो सुर्ख़ लब अगर आपके साथ हैं तो रात भर आप पर फूलों की बारिश होते ही रहना है यह तो तय है। जलवों की जादूगरी रात भर दिखती है यदि किसी की नरगिसी आँखों को देख लिया हो, नज़रें मिल गयी हों। सच है कि दीपावली पर दीप केवल यही दुआ माँगते हैं कि रब की इनायत रात भर बरसती रहे और अँधेरे से लड़ाई होती रहे। हुस्न के जलवे देख लेने के बाद यह तो होना ही था कि रात भर भीगी भीगी हवा चलती रहे। मकते का शेर भी बहुत अच्छे से दीपकों के प्रकाश में ईश्वर का नूर तलाश रहा है और उसके रात भी बरसते रहने की दुआ माँग रहा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
रेखा भाटिया   
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर

शब्दों के जाल बिछे रहेंगे चुनावी बाज़ारों में
होगा सुखद समय उज्ज्वल भविष्य बच्चों का
मुफ्त में होगा बिजली, पानी, शिक्षा, राशन
औरतों को दिया जाएगा भत्ता औरत होने का
मुफ्त का बस टिकट खाते में पैसा घर बैठे
गैस सिलेंडर सस्ता होगा पेट्रोल सस्ता होगा
ऊँचे -ऊँचे प्रलोभनों से खूब सजा है बाज़ार
कई और नेक इरादे हैं आने वाली सरकार के  

झूठे-सच्चे वादों की फुलझड़ियाँ जगमगाएगी
जात पात, धर्म भेद के पटाखों से मनेगी दीवाली
विकास, अमीरी, ताकत की मिठास बहुत है
लिपे-पुते नए कटघरों में छिप गई है गरीबी
तोपों, बंदूकों की रंगोली का नया चलन है
पैसे की पूजा एक ज़रूरत बन निभ रही
ऊँचे दामों में बिक जाता है युवा शहर में
लक्ष्मी माँ अब  घर-गाँव ढूँढती किसान है
रौशनी की एक किरण को तरसे जन -जन
चुनावी बंदनवार बंधा है राजधानी के द्वार पर
कोई नेता जेल में कोई जेल के बाहर खेल में

राम राज्य की स्थापना का दिवा स्वप्न दिखा
खेल रहीं हैं सियासी ताकतें रोज नए खेल
आपकी ही चुनी सरकार आपका ही सिर दर्द
वोटों की जुआ का खेल है मज़ेदार सभाओं में
घर-बाहर व्यस्त है जनता खूब मन रही दीवाली
पार्टियों में सिमट आई है घर-आँगन की दीवाली


काल में एक महामारी आई विध्वंस मचा चली गई
एक यह  दूसरी महामारी जिससे जूझ रहा है इंसान
राम राज्य को लाने से पहले राम को समझना होगा
बाहर से पहले भीतर स्थापित करनी होगी मर्यादा
वचनबद्धता, अनुशासन, कृतज्ञता की रौशनी से
राम पहुँचे जन-जन तक और जन -जन के मन तक
हम तो ठहरे प्रवासी तिमिर से लड़ता है देशवासी
यहाँ भी वही हाल है हिंसा का आतंक लेता जान है
घिर आई इस अमावस की रात में प्रज्वलित करें
हिल मिल कर दृढ़ता के दीप बह जाएँगे विकार
तब रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
बहुत ही सुंदरता के साथ हमारे समय को दीपावली के गीत में चित्रित किया गया है। हमारे समय की सारी चिंताओं को इस गीत में स्थान प्रदान किया गया है। पहले की बंद में एक बहुत महत्त्वपूर्ण पंक्ति आयी है- औरतों को दिया जायेगा भत्ता औरत होने का, वाह वाह क्या कमाल की पंक्ति लिखी है, पूरे गीत को सार्थक कर दिया इस पंक्ति ने। अगले ही बंद में चुनाव के शोर के बीच बिक रही इंसानियत का बहुत अच्छा चित्रण है, राम राज्य का सपना ​दिखाने वाले असल में क्या खेल खेल रहे हैं इसकी बहुत अच्छे से बात की गयी है। हमारी चुनी हुई सरकारें ही हमारा सिर दर्द हो जाती हैं। अंतिम बंद में कुछ दिनों पहले आयी कोरोना महामारी पर बहुत अच्छे से बात की गयी है और उसके बहाने से इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि असल में हम किसी रौशनी की तलाश में हैं, वह रौशनी जो हमको अंदर से प्रकाशित कर देती है। बहुत ही सुंदर कविता, वाह वाह वाह।
आज के सभी रचनाकारों ने बासी दीपावली का समाँ बाँध दिया है। बहुत सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। आप सभी को भाई दूज के इस पर्व की मंगलकामनाएँ। रचनाकारों को दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए भभ्भड़ कवि भौंचक्के का। 


8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह आदरणीय तिलक राज जी समां बांध दिया है, क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है।
    घूमकर गलियों में देखी है दिवाली रात भर

    इक ग़ज़ल तुझ पर लिखी और गुनगुनाई रात भर

    खुद सुनाई, खुद को ही अपनी कहानी रात भर।
    वाह क्या मिसरे बुने हैं। पूरी ग़ज़ल ही शानदार हुई है जी।

    आदरणीय चरनजीत लाल जी ने भी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है। उर्दू के शब्दों का बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल करते हुए बहुत शानदार ग़ज़ल कही है उन्होंने ने भी.

    और राकेश जी गीतों के इलावा इस बार आदरणीया रेखा भाटिया जी का भी बहुत ही सुंदर गीत पढ़ने को मिला है।
    तो अब इंतज़ार है हमारे भभ्भड़ कवि जी का

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  2. पोस्ट पर विलंब से आने के लिए क्षमा।

    आ० तिलकराज जी की प्रस्तुति के लगभग सभी शे’र प्रभावी हैं। विशेषकर, दर्द में खुद के समेटी बेजुबानी..’, ’साँझ की वेला में..’, ’रात लम्बी है मुझे अहसास है इसका..’
    वाह वाह वाह !
    लेकिन जिस शे’र ने मुग्ध कर दिया है, वह है, ’देखना है आज का दिन क्या मुझे दे जाएगा..’ जिस भावमय कुशलता के साथ इस शे’र का होना संभव हुआ है वह चकित कर रहा है।
    तिलकराज जी को हार्दिक बधाइयाँ
    शुभातिशुभ
    सौरभ

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    1. आपका बहुत बहुत आभार सौरभ भाई। आप सभी की मोहब्बतें कुछ शेर कहलवा ही लेती हैं अन्यथा इतनी प्यारी बहर होते हुए भी कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या कहा जाए। यह यहां प्राप्त आत्मीयता का परिणाम ही है।

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  3. ’सुर्ख लब ऐसे हैं तेरे जैसे माणिक हों जड़े..’
    ’जुल्फ में रश्क-ए-कमर की..’
    ऐसे-ऐसे शे’र, वाह वाह वाह !
    चरनजीत लाल जी ने वयसपरक उत्साह को वाकई खूब-खूब ढंग से शाब्दिक किया है।
    हार्दिक बधाइयाँ ..
    शुभातिशुभ
    सौरभ

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  4. रेखा भाटिया जी की प्रस्तुति में कई-कई बिन्दु पिरोये गये हैं। हालाँकि आपकी प्रस्तुति प्रदत्त मिसरे की बहर के अनुपालन से स्वतंत्र है, लेकिन कथ्य वस्तुतः सम्प्रेषणीय है।
    हार्दिक बधाइयाँ
    शुभ-शुभ
    सौरभ

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    उत्तर
    1. सौरभ जी आपके शब्दों के लिए सादर धन्यवाद ।मैं मुक्त छंद में लिखती हूँ हमेशा । कभी मिसरे के साथ ग़ज़ल लिखने की कोशिश करूँगी , शायद सफ़ल हो पाऊँ एक दिन 🙏

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  5. तीनों ग़ज़लकारों को उनकी अच्छी गजलों के लिए बधाइयाँ।

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