रविवार, 12 नवंबर 2023

आइये आज दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, दिनेश नायडू, रजनी नैयर मल्होत्रा और गुरप्रीत सिंह जम्मू के साथ

दीपावली का पर्व आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाये। आप सभी रचनात्मकता के प्रकाश से जगमगाते रहें। सबसे बड़ा धन होता है आरोग्य धन, आप सभी इस धन से भरपूर रहें। आप सभी स्वस्थ तन, मन और धन के प्रकाश में रहें हमेशा। दीपावली का यह पर्व हमारे लिए नयी ऊर्जा के संचय का पर्व होता है। हम सभी इस पर्व से कुछ नया प्राप्त करें और हमेशा उस नूतन की खोज में बने रहें। आप सब सपरिपार स्वस्थ रहें, सानंद रहें और सुख से रहें, यही मंगल कामना है। 
  आइये आज दीपावली का पर्व मनाते हैं कुछ और रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, दिनेश नायडू, रजनी नैयर मल्होत्रा
और गुरप्रीत सिंह जम्मू के साथ 
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
गुरप्रीत सिंह जम्मू
मैं भी चुप था, वो भी चुप थी, एक चुप्पी रात भर।
हम ने मिलजुल कर ज़बान-ए-इश्क़ सीखी रात भर।
जिस्म पर जितनी भी गुम चोटें लगाईं वक्त ने,
गर्म होठों से हुई उनकी सिकाई रात भर।

रात भर मैने अनेकों रंग देखे हुस्न के,
गुल खिले, रिमझिम हुई और बर्क चमकी रात भर।
मदभरे और चुलबुले, आंखों के मयखाने खुले,
और फिर पीता रहा कोई शराबी रात भर।

हाथ में इक हाथ आते आते रह जाता रहा,
जाने कितनी बार मेरी नींद टूटी रात भर।
आपके जाते ही खिलवत कत्ल कर देगी मेरा,
पास मेरे बैठे रहना आप यूँ ही रात भर।

मेरे दर्द-ओ-ज़ख्म पल भर के लिए सोए नहीं,
सिसकियों की मैंने लोरी भी सुनाई रात भर।
उम्र भर जोड़ी थी जो अश्कों की दौलत ऐ सनम,
सारी तेरी याद पे मैंने लुटाई रात भर।

एक दिन पत्थर पिघल जाएगा, पागल, देखना!
दिल को मैं देता रहा झूठी तसल्ली रात भर।
अब मुझे अहसास होता जा रहा है दिन ब दिन,
क्यों पिता जी को नहीं थी नींद आती रात भर।

वाह! क्या मिसरा गुरु जी ने दिया है इस दफा,
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर।

 गुरप्रीत अभी एक बड़े दुख से बाहर आया है, हम सभी की संवेदनाएँ गुरप्रीत के साथ हैं। जीवन इसी का नाम है। मतले में ही क्या उस्तादाना रंग नज़र आ रहा है मिसरा सानी तो कमाल है। और उसके बाद का शेर जिसमें चोटों पर रात भर सिकाई हो रही है, उफ़्फ़.. निशब्द कर दिया इस शेर ने। फिर अगले ही शेर में वस्ल की रात की मंज़रकशी तो जानलेवा है। वस्ल की ही रात को शराबी के प्रतीक के माध्यम से कहता अगला शेर सुंदर है। सच है कि किसी के जाने के बाद ऐसा ही लगता है जैसे क़त्ल हो चुका है। यहाँ से जुदाई के तीन शेर आते हैं तीनों अलग-अलग तरीक़े से जुदाई की बात करते हैं, और बहुत सुंदरता से करते हैं अश्कों की दौलत लुटाने की बात हो, सिसकियों की लोरी की बात हो या पत्थर के पिघलने की बात हो, बहुत सुंदरता के साथ शब्दों में भाव व्यक्त हुए हैं। पिता वाला शेर कलेजे में उतर रहा है सीधे, सच है किसी के जाने के बाद ही आपको पता चलता है उसके बारे में। और अंत में गिरह का शेर किस खिलंदड़ अंदाज़ में कहा है, कमाल। सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह। 
 

दिनेश नायडू
मेरी नज़रें और सितारे, चांदमारी रात भर  
आरज़ू करता रहूँगा मैं तो उसकी रात भर
घुप्प अंधेरे में उसकी याद का जुगनू मिला
बाद उसके रौशनी ही रौशनी थी रात भर

सब मुझे अपनी सहर का ख़्वाब दिखलाने लगे
सुन नहीं पाया कोई मेरी कहानी रात भर
क्या पता ये लोग अंधेरों में जीना छोड़ दें  
बात तो चलने लगी है रौशनी की रात भर

सूर्ख़-रू आँखों में तेरा अक्स रोशन है अभी
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हर कहीं उसका ही चेहरा हर कहीं उसका ही नूर
रात ये लगती नहीं है रात जैसी रात भर
दिनेश बहुत दिनों बाद मुशायरे में आये हैं। लेकिन कह सकते हैं देर आयद दुरस्त आयद। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लेकर आये हैं। मतले में ही एक पूरी रात की तस्वीर नौजवान प्रेमी की आँखों से देख कर बनायी गयी है। अगले शेर में किसी की याद कपा जुगनू मिल जाने पर रात भर रौशनी ही रौशनी रहने की बात बहुत सुंदर बनी है। अगला शेर बहुत गूढ़ अर्थ लिये है, सब मुझे अपनी सहर का ख़्वाब दिखलाने लगे बहुत अच्छे से अपनी व्यथा को व्यक्त किया है। अंधेरों में जीना छोड़ देने की बात उम्मीद की एक लौ की तरह सामने आ रही है क्योंकि बात रौशनी की होने लगी है, बहुत ही सुंदरता से प्रतिरोध की बात कही है। गिरह का शेर भी बहुत सुंदर बना है, किसी का अक्स यदि आँखों में हो तो रौशनी की नदी सी ही बहती है आँखों में। अंतिम शेर में मिसरा सानी में क्या उस्तादाना तरीक़े से मिसरा बनाया गया है, ग़ज़ब। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

सौरभ पाण्डेय
कुछ मचलती कुछ चहकती फिर पुलकती रात भर
माह कातिक की अमा कितनी गुलाबी रात भर
कसमसाती चूड़ियों की टूट के संगीत में
दर्द की तासीर बेसुध गा रही थी रात भर

दायरा दिन का बड़ा था हाथ में आना न था
किंतु मुट्ठी बाँध अकसर आस रोयी रात भर
धूप-छाँवों से बढ़ी दिन भर ऊ’बड़-खाबड़ चली
जिंदगी के स्वप्न में पर रोशनी थी रात भर

नम तरंगों का असर कुछ यों हुआ उस दौर में
बोलते अधरों को सुनती देह जागी रात भर
शाम ही से बाग का माहौल फिर ऐसा हुआ
हर कली सहमी हुई थी, थरथरायी रात भर

कौन कब कितना कहाँ किससे मिला किस शर्त पर
बात कानों कान थी पर खूब फैली रात भर
यों अँधेरा लाख तम का पाश फैलाता रहे
’रोशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर’
बहुत ही काव्यात्मक तरीक़े से मतला कहा गया है, कार्तिक की अमावस्या का पूरा चित्र आँखों में सामने आ गया है। उसके बाद अगला ही शेर मिलन यामिनी का एक सजीव चित्र सामने ला रहा है। चूड़ियों के टूटने का संगीत और उसके बाद दर्द तासीर का गाना, वाह क्या बात है। आस का रात के अँधेरे में रोना हम सब की कहानी कहता है। अगला शेर भी दिन के अकेलेपन और रात की रौशनी के पक्ष में बहुत सुंदर बयान है। और शायर अगले शेर में एक बार फिर अतीत में चला गया है जब अधरों को देह सुनती थी, क्या कमाल बात कही है। शाम से ही बाग़ का माहौल ख़राब होना और कलियों का रात भर थरथराना जैसे हमारे आज के समय पर ही टिप्पणी है। बात कानों कान थी पर ख़ूब फैली रात भर, क्या ही ग़ज़ब का मिसरा है, जैसे कोई कहावत हो। और अंतिम शेर में बहुत ही सुंदरता के साथ गिरह लगायी गयी है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

राकेश खंडेलवाल
कक्ष की दीवार पर नव लेप चूने का चढ़ा
जो महीनों से जमा था गर्द का बादल उड़ा
फूल गमलों में उगे थे मुस्कुराने लग गये
सांझियों को ले गये टेसू करा कर के विदा
अल्पना आँगन में काढ़ी और दादी ने कहा
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर


स्वास्थ्य जब धनवन्तरी के स्वर्ण कलशों से गिरा।
तन बदन पर मन पे जैसे संदली उबटन लगा
कृष्ण पक्षी रूप की इस इक चतुर्दश को यहाँ
हीरजनियों सा दमकता गात का हर इक सिरा
पूर्णिमा होती अमावस लगती रहेगी थाल भर
रोशनी की अब नदी बहती रहेगी साल भर

देव पूजन के लिए मोदक इमरती हैं सजे
गुझिया, पपड़ी, सेंव, चिवड़ा, खुरमे शक्कर में पगे
बालूशाही, चमचमों के साथ रसगुल्ले लिये
देख छप्पन भोग सम्मुख दाँत में उँगली दबे
ख़ुश्बूएँ चुंबन यही जड़ती रहेंगी गाल पर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर


कृष्ण आये संग तो गिरी को नया यौवन मिला
लग गया छत्तीस व्यंजन, भोग छप्पन सिलसिला
सात परकम्मा समेटे सात कोसी दूरियाँ
जो तपस्या से न मिलता, एक इस दिन वो मिला
गोरधन की जय सदा होती रहेगी चाल पर
रोशनी की ये नदी बहती रहेगी साल भर

पूर्णता यह पर्व पाये यम ​द्वितिया सूत से
भाई की रक्षा करेगी बहन यम के दूत से
इक नया आयाम हर संबंध को अब के मिले
फिर सभी आयें निकट यूँ बंध हो मज़बूत से
शह तिमिर को भी न आये, हाँ मिलेगी मात पर
ओढ़नी की ये नदी बहती रहेगी रात भर


गिफ्ट के डब्बे तिलक, पंकज गुरु को भेजते
और नीरज इक गुलाबी मोहरे को खोजते
सर खुजाता है दिगंबर दूर से परदेश में
हाशमी जी चमचमों में चाशनी को ढूँढते
पूछते गुरुप्रीत अश्विन क़ाफ़िया चौपाल पर
रोशनी की ये सभा सजती रहेगी साल भर
राकेश जी पिछले दिनों अस्वस्थ रहे, और अभी भी देखने में कुछ समस्या है उनको। उसके बाद भी उन्होंने तीन रचनाएँ भेजी हैं तरही के लिए। आज के इस गीत में उन्होंने पाँच दिनों के दीवापली पर्व पर जैसे पूरा निबंध ही लिख दिया है। पहले छंद में दीपावली के आते ही घर की साफ सफाई होने का चित्र खींच दिया गया है। उसके बाद का छंद धनतेरस तथा रूप चतुदर्शी के बिम्ब लिये हुए है, कितनी सुंदरता से इन त्यौहारों के बारे में इनके ही प्रतीकों के माध्यम से बात की गयी है। और उसके बाद दीपावली पूजन के लिए सजाये गये मिष्ठान्नों का सजीव चित्रण है अगले छंद में। पड़वाँ या गोवर्धन पूजा की परंपरा अगले छंद इस दिन की पूरी कहानी कह रही है।  और उसके बाद यम द्वितिया या भाई दूज का पर्व राकेश जी के शब्दों का स्पर्श पाकर खिल गया है। और हाँ राकेश जी अपने गीत में हर बार इस ब्लॉग की परंपरा को भी स्थान देते हैं तो इस बार भी अंतिम छंद इस ब्लॉग और इसकी परंपरा को ही उन्होंने समर्पित किया है। राकेश जी जल्द स्वस्थ हों हम सबकी शुभकामनाएँ। बहुत सुंदर गीत, वाह वाह वाह।
 

रजनी नैयर मल्होत्रा
रौशनी की ये नदी बहती रहेगी रात भर
हो घनी कितनी अमावस ये लड़ेगी रात भर
चाहते कुछ और हैं हम किन्तु होता और कुछ
आज तो मुझ पर हंसेगी ये उदासी रात भर
तुम वहां हो मैं यहां हूं पर्व ये फीका लगे
याद में तेरी ये आँखें अब बहेंगी रात भर
दूर हैं जो घर से बच्चे आने में लाचार हैं
बेबसी की वो कहें अपनी कहानी रात भर
इस तरह भी जीत अपनी आज़माने के लिए
फिर जुए की कोई तो महफिल जमेगी रात भर 
बहुत ही सुंदर तरीक़े से इस ग़ज़ल में अपनी बात को कह दिया है रजनी जी ने। मतले में ही घने अंघकार से लड़ने की बात कही है और फिर उसी में गिरह भी बाँध दी है मिसरा ऊला के रूप में। यह बात भी सच है कि हम चाहते कुछ और हैं लेकिन जीवन में और कुछ ही होता है, और उसी कारण उदासी होती है। हम जिससे प्रेम करते हैं यदि उससे हम दूर हैं तो पर्व त्यौहार सब फीके हो जाते हैं, और फिर बस रात भर आँखें बहती रहती हैं। हमारे बच्चे यदि त्यौहार पर नहीं आ पायें तो हमारे लिए त्यौहार एकदम बेकार हो जाता है। उधर बच्चे भी पर्व पर घर से दूर रह कर अपनी बेबसी की कहानी कहते हैं। और अंत में एक खराब परंपरा की बात भी कही गयी है जिसको दूर करना हम सब के लिए बहुत ज़रूरी है। जुए की परंपरा कब शुरू हुई यह ज्ञात नहीं लेकिन अब इसे समाप्त करना बहुत ज़रूरी है, अच्छी शेर कहा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
आज के सभी रचनाकारों ने दीपावली का समाँ बाँध दिया है। कितनी सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। आप सभी को दीपावली के इस पर्व की मंगलकामनाएँ। आप सभी स्वस्थ रहें सानंद रहें। रचनाकारों को दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए बासी दीवाली की ग़ज़लों का। 


19 टिप्‍पणियां:

  1. गुरप्रीत सिंह,राकेश खंडेलवाल , सौरभ पाण्डेय , दिनेश नायडू, और रजनी नैयर मल्होत्रा की रचनाएँ पढ़ कर खुशी हुई। सब को बधाई।

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  2. आपसे मिला उत्साहवर्द्धन सदा सचेत रहेगा, गुरप्रीत जी। हार्दिक धन्यवाद।

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  3. सभी गज़ल कारों को उनकी बेहतरीन ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई।

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  4. सभी सुधि

    सभी सीधी रचनाकारों को बधाई और सादर शुभकामना

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  5. नाम तो बनाम नहीं है राकेश खंडेलवाल

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  6. कमाल की रचनाएं पेश की हैं सभी रचनाकारों ने। गुरप्रीत जी ने शानदार मतला कहा है उसके बाद शेर दर शेर प्रेम के रंग में रंगी ग़ज़ल बहुत सुंदर हुई है।

    दिनेश नायडू जी ने कमाल के शेर कहे हैं। यादों के जुगनू तो बस वाह भाई वाह। पूरी ग़ज़ल ही कमाल की हुई है।

    आदरणीय सौरभ जी ने शानदार ग़ज़ल कही है। सुंदर मतले के साथ शेर दर शेर अच्छी ग़ज़ल हुई है और गिरह तो बहुत ही शानदार बांधी है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी को

    राकेश जी हमेशा के तरह इस बार भी शानदार|

    आदरणीया रजनी जी ने बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है। रंग जमा दिया सभी रचनाकारों ने। सभी को पुनः बधाई।

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    1. आयोजन में अपनी प्रस्तुति पर आपसे मिले अनुमोदन से मेरा जो उत्साहवर्द्धन हुआ है उसके लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय धर्मेन्द्र जी।

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  7. गुरुप्रीत भाई की प्रस्तुति ने मुग्ध कर दिया है। मतले से प्रारम्भ हुआ सफर शे’र दर शे’र कितना सुगढ़ होता चला गया है कि मुँह से बार-बार वाह-वाह निकल रहा है। मतला और पहला शे’र अत्यंत गहन सोच की सहज अभिव्यक्ति है। किसी एक शे’र को इंगित करना अन्य शे’र के प्रति ज्यादती होगी। लेकिन, ’हाथ में इक हाथ आते-आते रह जाता रहा..’ .. उफ्फ, ऐसी अनुभूतियों को जीना और संयत शब्दों में बिखेर देना निस्संदेह किसी प्रौढ़ लेखिनी का परिचायक है। या फिर, ’एक दिन पत्थर पिघल जाएगा..’ से उमगती लगातार टूट रही उम्मीद को कितनी आसानी से शब्दों में पिरोया गया है। कमाल कमाल कमाल ! लेकिन मजा ये कि उसी असीम गहनता से आपकी श्रद्धा संसृत हो रही है - ’अब मुझे अहसास होता जा रहा है दिन-ब-दिन..’। अगर अन्यथा न लगे तो मुझे कहने दें, कि इस मुशायरे की गजल आ चुकी है। दिल से दाद कुबूल कीजिए, गुरुप्रीत भाई।
    शुभातिशुभ
    सौरभ

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    1. शुक्रिया सौरभ सर,आप से आशीर्वाद मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है

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  8. दिनेश नायडू जी की प्रस्तुति की तासीर वाकई चकित करती है। मतला तो शानदार है ही, ’घुप्प अंधेरे में उसकी याद का जुगनू मिला’, या, ’सब मुझे अपनी सहर का..’ जैसे शे’र आपकी अभिव्यक्ति में सशक्त लाक्षणिकता का सुंदर उदाहरण हैं। उसी रौ में आअपकी गिरह भी कमाल कर रही है। यह अवश्य है कि ’अँधेरा’ को मैं 122 में बाँधने का आदती हूँ। सो, इसे मगणात्मक के तौर पर बाँध सकने में तनिक समय लगा। फिर मैं समरस हो गया। एक सफल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, दिनेश भाई।
    शुभातिशुभ
    सौरभ

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  9. आदरणीय राकेश जी को गीतों का सम्राट कहना किसी तौर पर अतिशयोक्ति न होगी। प्रस्तुतीकरण का जो सशक्त ढंग मुखड़े से ही सामने आता है, वह गीति-प्रतीतियों को लेकर आपकी सामर्थ्य का परिचायक है। ’शह तिमिर को भी न आये, हाँ मिलेगी मात पर..’ जैसे पद/ मिसरे सुगठित सोच और तार्किक वैचारिकता का उत्तम प्रस्तुतीकरण है। आपकी इस प्रस्तुति के लिए आपको बार-बार बधाइयाँ सम्प्रेषित हैं, आदरणीय।
    शुभातिशुभ
    सौरभ

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  10. ’चाहते कुछ और हैं हम किन्तु होता और कुछ..’ जैसे अनुभवपगे मिसरे को सहज ही उकेर देने वाला कोई दीर्घकालीन अभ्यासी ही हो सकता है। रजनीजी की यह प्रक्रिया सतत बनी रहे और हम आपकी प्रस्तुतियों से बार-बार रू-ब-रू होना चाहेंगे। आयोजन में आपकी उपस्थिति एवं प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाइयाँ।
    शुभ-शुभ
    सौरभ

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  11. सभी रचनाकारों को उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई

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  12. हौसला अफजाई के लिए आप सभी को हृदय से 🙏😊धन्यवाद

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  13. सभी रचनाकारों की रचनाएं मज़ेदार हैं। इस बार 2011 से 2022 के बाद पहली बार हुआ कि अपनी ग़ज़ल न भेज पाया । चंद शेर लिखे भी पर खुद ही लगा कि इस बार ये मज़ेदार नहीं बने तो मिस कर दिया।

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  14. दीपावली दिवस की पोस्ट का आरंभ गुरुप्रीत जी की गजल से प्रारंभ होकर रजनी जी की गजल में एक से एक क़ाफिया लेकर शेर कहने की कला के उदाहरण हैं और इन्हीं के बीच राकेश जी का गीत जैसे एक जड़ाऊ कंगन के बीच सॉलिटेयर। एक से बढ़कर एक शेर और बंद।
    सभी को हार्दिक बधाइयां।

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