बुधवार, 18 नवंबर 2020

आइये आज बासी दीपावली मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी और सुलभ जायसवाल के साथ

दीपावली आती है और चली जाती है, पीछे एक सूनापन छोड़ जाती है। एक सन्नाटा सा छोड़ जाती है। शायद इसी कारण हमारे यहाँ हर त्यौहार का बासी संस्करण मनाने का भी रिवाज़ है। और दीपावली तो ख़ैर देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनाई जाती है। हर त्यौहार इसी प्रकार होता है जिससे कि हम उस त्यौहार के जाने के बाद सूनापन महसूस नहीं करें। दीपावली बीत गई है और अब कई त्यौहार उसके बाद आने को हैं। जीवन इसी प्रकार चलता रहता है। जीवन को इसीलिए तो कहा जाता है कि जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम।

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

आइये आज बासी दीपावली मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी और सुलभ जायसवाल के साथ

राकेश खण्डेलवाल जी

 


संस्कृति के पर्याय बदलते लेकिन किसने पहचाना है
दीवाली का अर्थ आज के कितने बच्चों ने जाना है
अपराधी अभिभावक देते प्रोत्साहन इस नव पीढ़ी को
एक था रामा, एक लक्षमना औ वानर इक हनुमाना है
कल ये ही तो गल्प कहेंगे एक समय कोई ऐसा था
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते थे

करता गर्व अपरिचियत होने का अपनी संस्कृतियों से जो
कान्वेंट में भेजा करता है अपने अबोध शिशुओं को
जहां मातृभाषा  के एवज मंदारिन या फ्रेंच सीख कर
दीप  नहीं क्रिसमस की केंडल घर पर रखे जला करके वो
उसके लिए ग्रंथ के वर्णन सिर के ऊपर ही होते है
कहाँ देख पाता दीवाली पर जगमग घर होते हैं

अंध अनुकरण में भूले हैं अपनी पैतृक मर्यादाएँ
ऐसे अज्ञानो को कितना है गहरा दर्शन बतलाएँ
चाटुकारिता में स्तुतियों में कितना है अंतर क्या जाने
जो बस क्षणिक पलों की ख़ातिर अपने जीवनमूल्य भुलाएँ
जान सकेंगे कैसे प्रतिमा में शिल्पित पत्थर होते है
दीवाली पर जगमग जगमग क्यों सारे ही घर होते हैं

राकेश जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हर बार तरही में पूरी ऊर्जा और पूरे मनोयोग से हिस्सा लेते हैं। यहाँ तक कि तरही की मिसरा घोषित नहीं किए जाने पर वे मेल कर याद भी दिलाते हैं कि दीवाली पास आ गई है और अभी तक तरही मिसरा नहीं दिया गया है। हमने तीन अंकों में उनका एक एक गीत पढ़ा और आज फिर वे अपना एक गीत लेकर उपस्थित हैं। गीत के बारे में क्या कहा जाए, राकेश जी के गीतों को बस मन के कानों से सुना जा सकता है और भाव विभोर होकर चुपचाप बैठा रहा जा सकता है। यह गीत भी एक अलग तरह की बात को लेकर सामने आया है। इसमें बदलते हुए समय के कारण सामने आ रही वे समस्याएँ हैं जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को समाप्त करने के लिए सामने आ रही हैं। कवि इसी को लेकर बेचैन है और अपनी भावनाओं को गीत में व्यक्त कर रहा है। तीनों बंदों में अंतिम पंक्ति को क्या कुशलता के साथ परिवर्तित किया गया है कमाल है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह। 


सुलभ जायसवाल

 

बिन तेरे यह आँगन कैसा खाली सब घर होते हैं
'घर की लक्ष्मी' ना हो घर पर हम भी क्या 'नर' होते हैं

हमतुम तुमहम इक दूजे से दूर जो पलभर होते हैं
बस इतने में ना जाने कैसे कैसे डर होते हैं
जिस पत्थर पर दुर्भाग्य लिखा जिसको छूना हो वर्जित
नींव उसी का डालो, देखो, तारे  उसपर होते हैं 

सालों साल कठिन मेहनत से मिलते हैं मखमल बिस्तर
सपनों के रस्ते में ढ़ेरो काँटे कंकर होते हैं
भय हरता आशा का दीपक अँधियारे से युद्ध करे
दीवाली में सब दीये मिलकर ऊर्जाघर होते हैं

झिलमिल झिलमिल चकमक चकमक नगरी झूमे नृत्य करे
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
भक्ति के सागर में डूबा तब गीत-कलश भर कर निकला
हम अनगढ़ मानुष के भीतर सच में दिनकर होते हैं

सुलभ ने बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है। मतले में ही घर की लक्ष्मी और नर की जो बात कही है वह बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। हुस्ने मतला में भी बहुत सुंदरता से एक दूसरे से दूर होने पर सामने आने वाले डरों की बात कही गई है। मेहनत को लेकर कहा गया शेर कि मखमली बिस्तर रातों रात नहीं मिलते हैं, उसके लिए बरसों बरस काँटों और कंकर पर चलना होता है। बहुत अच्छी बात कही है। दीपकों का ऊर्जाघर होने का शेर बहुत अच्छा है यहाँ अँधियारे से लड़ाई की बात को बहुत अच्छे से शेर में उपयोग किया गया है। गिरह के शेर में मिसरा ऊला बहुत अच्छे से बाँधा गया है। बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है सुलभ ने वाह वाह वाह।

दीपावली का यह तरही मुशायरा आज का अंक लेकर उपस्थित है दाद दीजिए वाह वाह कीजिए। अब शायद भभ्भड़ कवि भौंचक्के भी आ जाएँ, लेकिन वे तो हमेशा देव प्रबोधिनी एकादशी पर ही आते हैं, तो अभी मुशायरा कुछ दिन और चलने की तो उम्मीद की ही जा सकती है। 


7 टिप्‍पणियां:

  1. बासी दीवाली पर प्रथम रचना आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की है। फिर एक सदाबहार गीत। अपराधी अभिभावक और रामा लक्ष्मणा वाह कितना गहरा तंज।
    आदरणीय सुलभ जयसवाल जी की ग़ज़ल लाज़बाब है। दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।

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  2. बढ़िया। बधाई दोनों रचनाकारों को।

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  3. राकेश जी का एक और गीत और इस बार समय-संदर्भ में आये बदलावों की प्रतीकात्‍मक रूप से सशक्‍त प्रस्‍तुति की है, बधाई।
    सुलभ ने दीपाेें के साथ विभिन्‍न दृश्‍यों को प्रस्‍तुत कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और बहुत खूबसरत बातें कही हैं
    भय हरता आशा का दीपक अंधियारे को दूर करे, वाह। आशा का दीपक ही हर तरह के अंधियार से जूझने की शक्ति देता है।

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  4. आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की उर्जा को नमन,
    सुलभ जायसवाल जी सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई

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  5. माननीय तिलकजी,वासुदेवजी, त्यागीजी गिरीशजी और पंकजजी का सादर धन्यवाद और आभार 
    सुलभ को बेहतरीन अदायगी के लिए बधाई 

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  6. देव उठान ग्यारस पर प्रतीक्षा रही भभ्भड़ कवि भौंचक्के और नीरज भाई की ग़ज़ल की।
    🤔

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