दीपावली का त्यौहार इस बार कोरोना समय में आया है। पिछले सात आठ महीनों में हम सब ने वह देखा है जिसकी शायद हमने कल्पना भी नहीं की होगी। चारों तरफ़ एक डर का वातावरण है। और इस डर के साए में ही इस बार दीवाली मनाई जाएगी। पूरी दुनिया ने एक भयानक समय की आहट को सुना और भोगा है। यह समय किसी भी रूप में कठिन ही रहा। लेकिन ज़िंदगी सब कुछ होने के बाद भी हँसती है खिलखिलाती है। ज़िंदगी के अंकुर हर कठिन समय में कहीं न कहीं से फूटने लायक नमी तलाश ही लेते हैं। जिस प्रकार हम इस बार तरही के माध्यम से तलाश कर रहे हैं। यह जीवन इसी प्रकार चलता है, अँधेरे और उजाले के बीच से गुज़रता हुआ। बहुत कुछ ऐसा है जो इन सब के बीच चमकता है। हमारी रचनाधर्मिता भी ऐसी ही होती है, वह भी हर कठिन समय में कहीं न कहीं से नमी तलाश कर बाहर निकल आती है अंकुर के रूप में। दीपावली का यह समय भले ही कठिन है मगर इस कठिन समय में भी हमारी रचनाधर्मिता का उल्लास इस उत्सव को उत्सव बना देगा।
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
इस बार का तरही मुशायरा ऐसा लग रहा था कि शायद हो ही नहीं पाएगा। उस पर देर से मिसरा देने के कारण भी लगा था कि जाने क्या होगा इस बार। मगर फिर भी इतनी ग़ज़लें तो आ ही गई हैं कि हम मुशायरे को तीन दिन तक चला सकें। आज धनतेरस है आज से दीपावली का त्यौहार प्रारंभ होता है आज से हम भी शुरू करते हैं दीपावली का तरही मुशायरा राकेश खण्डेलवाल जी के गीत के साथ।
राकेश खण्डेलवाल जी
एक अदेखे भय से जकड़ी हुई गली से पगडंडी
हर चौराहे पर हर दिशि में लटकी हुई लाल झंडी
पग झिझका करते हैं करने पार द्वार को देहरी को
होता है प्रतीत मोड़ों के पार खड़ी आकर चण्डी
बीते हुए बरस आँखों में आने दूभर होते हैं
आँखो पर दस्तक देते हैं सपने बीत चुके कल के
“दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते थे
रही थरथराती दीपों में प्रज्ज्वल हुई वर्तिकाएँ
क्या जाने किस खुली डगर से आएँ उमड़ी झंझाएँ
खील बताशे खाँड़ खिलौने बाज़ारों में नहीं दिखे
हलवाई की दूक़ानों पर गिफ़्ट बाकस भी नहीं चिने
होंठों तक आते आते शुभ के स्वर पत्थर होते हैं
गल्प समझते हैं बच्चे भी सिमट रह गए कमरों में
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते थे
बुझी हुई आशाओं के सारे ही स्पंदन रुके लगे
लेकिन फिर भी मन की अँगनाई में इक विश्वास जगे
तिमिर हटाने को काफ़ी है एक दीप की जली शिखा
एक किरण से दीपित होती है कोहरे में घिरी दिशा
यही आस्था लिए आज हम गति को तत्पर होते हैं
खींचें स्याह कैनवस पर हम चित्र आज वे बहुरंगी
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं
वाह वाह वाह, बहुत अच्छा चित्र बनाया है वर्तमान समय का अपने गीत में राकेश जी ने। सचमुच ऐसा ही तो समय है इस बार कि एक अदेखे भय से जगकड़ी हुई है गली से लेकर पगडंडी तक और हर दिशा में खतरे की लाल झंडी लगी हुई है। राकेश जी ने मिसरे को इस गीत के पहले दो बंदों में भूतकाल की तरह लिया है और है की जगह थे कर दिया है। ज़रूरी भी था क्योंकि बात विगत की करनी थी कि पिछले सालों में किस प्रकार से यह त्यौहार मनाया जाता रहा और इस साल की क्या स्थिति है। होंठो तक आते आते शुभ के स्वर पत्थर होते हैं, वाह क्या बात कही है, इस समय में सचमुच हम शुभ की बात करते हुए भी डर रहे हैं। इस गीत की सबसे अच्छी बात यह है कि अंतिम बंद में कवि ने सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान कर लिया है। तिमिर हटाने को काफी है एक दीप की जली शिखा। वाह क्या बात है। एक किरण से दीपित होती है कोहरे में घिरी दिशा… सच कहा राकेश जी ने। इस समय में सबसे ज़रूरी यही है कि हम विश्वास को कायम रखें और अँधेरे से लड़ाई को जारी रखें। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।
आज राकेश जी के इस गीत ने समाँ बाँध दिया है। आपका काम है कि जी भर के दाद दीजिए इस गीत पर और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का। धनतेरस के साथ आज शुरू हो रहे पाँच दिवसीय दीप पर्व की आप सबको शुभकामनाएँ।
इस बार के दीपावली के मुशायरे का फीता काटा है आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी ने अपने सुंदर गीत से। गीत में कोरोनाकाल से पूर्व की दीपावली की उमोंगों और यादों को उभारते हुए आशावादी रवैये से गीत का सुंदर समापन किया है। इस गीत की आपको हृदयतल से बधाई।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक मधन्यवाद वासुदेवजी
हटाएंशानदार गीत।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
हटाएंवाह वाह आदरणीय खंडेलवाल जी, शानदार गीत। खासकर अंतिम बंद के भाव तो लाजवाब।
जवाब देंहटाएंअनंत बधाई
हार्दिक आभार त्यागीजी
हटाएंतरही में राकेश जी के मंत्रमुग्ध करने वाले गीतों का अलग स्थान हमेशा से रहा है और बना हुआ है। गीत में तरही मिसरा तीनों बार खूबसूरती से बंधा है। वाहः वाहः और वाहः ही एकमात्र विकल्प है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गीत से शुभारंभ हुआ है।
सभी को धनतेरस की हार्दिक बधाई।
तिलकजी, यह आपका अनुराग , पंकजजी का विश्वास और माँ शारदा का आशीष है जो शब्दों को संयोजित कर देता है. सादर नमन
हटाएंहर बार की तरह राकेश जी का गीत मनभावन है...माँ सरस्वती के लाडले पुत्र हैं राकेश जी...भावों को शब्द देने का उनका अपना एक अलग दिलकश अंदाज है...नमन है उनकी लेखनी को
जवाब देंहटाएंनीरज भाई,
हटाएंमाँ सरस्वती के दरबार में हम साथ ही खड़े हैं। मैं छोटा हूँ तो माँ का विशेष दुलार है आपसे सूट भर ज्यादा. सादर प्रणाम
बहुत सार्थक।
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सादर आभार माननीय
हटाएंवाह वाह वाह बहुत सुन्दर गीत । राकेश जी के इस गीत के साथ इस बार के मुशायरे का आग़ाज़ बहुत ही खूबसूरत ढंग से हुआ है । बहुत बहुत मुबारकबाद । सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुरप्रीतजी. आपकी ग़ज़ल की प्रतीक्षा है
हटाएंराकेश जी की तो बात ही अलग है ... और मुशायरे का आगाज़ लाजवाब गीत के साथ हो तो बात ही अलग हो जाती है ... माहोल अलग हो जाता है ... राकेश जी अपने गीत में एक अलग सा केनवास खड़ा कर देते हैं ... जैसे कोई चलचित्र हो सामने जहाँ शब्द खेलने लगते हैं ...
जवाब देंहटाएंसभी को दीपावली की हार्दिक बधाई ...