शनिवार, 14 नवंबर 2020

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आइए आज हम पाँच रचनाकारों के साथ दीपावली का यह त्यौहार मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी, गिरीश पंकज जी, तिलकराज कपूर जी, सुधीर त्यागी जी और अश्विनी रमेश जी के साथ


दीपावली का त्यौहार आज आ ही गया है। हर वर्ष आता है और बीत जाता है। लेकिन बीतने के साथ ही उम्मीद दे जाता है कि जो बीत रहा है वो एक बार फिर आएगा। इन त्यौहारों की प्रतीक्षा ही हमें अंदर से ऊर्जावान रखती है। हम इन त्यौहारों से ही आशा के दीपक जलाए रखते हैं। दीपावली हमारे देश का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह किसी धर्म का त्यौहार नहीं है, यह तो प्रकृति का त्यौहार है। यह तो फसल कट कर घर आने का त्यौहार। यह तो आनंद का त्यौहार है। एक त्यौहार जो अमावस को आता है। बाकी सारे त्यौहार पूर्णिमा को आते हैं। लेकिन यह अमावस पूर्णिमा से भी ज़्यादा रौशन हो जाती है। आइए इस दीवाली सारे विश्व के लिए आरोग्य की प्रार्थना करें क्योंकि वही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है आज।

शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते

दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं 

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आइए आज हम पाँच रचनाकारों के साथ दीपावली का यह त्यौहार मनाते हैं राकेश खण्डेलवाल जी, गिरीश पंकज जी, तिलकराज कपूर जी, सुधीर त्यागी जी और अश्विनी रमेश जी के साथ

राकेश खण्डेलवाल जी


 

बंद पड़े कमरों की जैसे सहसा ही खुल गई खिड़कियाँ
चीर कुहासे को चमकी है उगी भोर की प्रखर रश्मियाँ
उत्तर पश्चिम की शरदीली हवा छू गई तन को आकर
झरते पत्तों ने छेड़ी है सारंगी की धुने बजाकर
सुधियों में आकर तिर आए वे पल जो सुखाकर  होते हैं
आतुर हुआ ह्रदय जाने को लौट उन्ही गलियों में फिर से
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे ही  घर होते हैं

लगा कि जैसे छँटने को हैं झुलस रहे बदरंग क़ुहासे
आशाओं के झरे पुष्प, फिर से अंगड़ाई लेकर जागे
उलटे पाँव लौट कर आइ लेकर विदा गई पुरवाई
नदिया की लहरों ने तट पर फिर अपनी पायल खनकाई
स्वप्न सजे वे ही नयनों में, जो बस सुंदर होते हैं
रांगोली से सजे द्वार, दहलीज़ें, अँगनाई सब ही
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

शरद पूर्णिमा ने रच डाली हर द्वारे पर रजत अल्पना
लगी शिल्प में ढलने दिन के सपनो की थी रही कल्पना
बंद पड़े बक्सों ने अपने स्वर्ण कोष की गठरी खोली
गिरी ओस से, चढ़ी अमावस ने अपनी परछाई धो ली
आए लौट वही दिन के पल जो की मनोहर होते हैं
पाँच दिनो के लिए चले मन लौट उन्ही गलियों में फिर
दीवाली पर जहां सभी घर जगमग जगमग होते हैं


वाह वाह वाह, राकेश जी लगातार गीतों की लड़ी सी लगा रहे हैं। यह गीत एकदम अलग तरह का गीत है। इस गीत में दीवाली के साथ साथ शरद ऋतु का भी सौंदर्य बिखरा हुआ है। झरते पत्तों द्वारा छेड़ी गई सारंगी की धुन तो कमाल ही है। और अगले बंद में बदरंग कुहासों के छँटने की आशा का संचार हो रहा है। आशाओं के झरे पुष्प अंग्ड़ाई लेकर जाग रहे हैं। नदियों की लहरों द्वारा तट पर पायल छनकाने का कमाल का बिम्ब इस ही बंद में आया है। अगला बंद शरद पूर्णिमा से प्रारंभ हुए इस दीपोत्सव की बानगी लिए हुए है। पाँच दिनों के लिए मन उन्हीं गलियों में लौट जाना चाहता है जहाँ रौशनी है। बहुत ही सुंदर गीत, दीपावली का पूरा दृश्य सामने आ गया है। वाह वाह वाह। 


गिरीश पंकज जी 



उस पल मुझको लगता उत्सव कितने सुंदर होते हैं
''दीवाली पर जगमग-जगमग जब सारे घर होते हैं''

वक्त पड़े तो जो लोगों की मदद हमेशा कर देते
मिरी नज़र में वे धरती के इक पैगंबर होते हैं
खुशियों को हम जितना बांटें उतना ही होता अच्छा
कभी नहीं खुशबू के केवल खास-खास दर होते हैं

अपने हिस्से का थोड़ा भी दान नहीं जो कर पाते
होंगे वे धनवान भले ही दिल से जर्जर होते हैं
खुद्दारी से जीने वाले कभी नहीं झुकते केवल
एहसानों से दबे रहे तो दबे-दबे स्वर होते हैं

सब के जीवन में उजियारा लाए अपनी दिवाली
जो ऐसा सोचेगा उस के भीतर ईश्वर होते हैं


वाह वाह वाह,  क्या बात है वक्त पड़े जो लोगों की ममद करते हैं वही तो पैगंबर होते हैं। यह बात एक कवि ही सोच सकता है। अगले ही शेर में खुशियों को बाँटने का वही पुराना विचार है कि जितना बाँटोगे यह उतनी ही बढ़ेंगीं। और फिर यह बात कि जो किसी दूसरे को ज़रा सा दान भी नहीं दे पा रहा है वह कितना ही धनवान हो लेकिन अंदर से तो जर्जर ही कहलाएगा। वाह क्या बात है। खुद्दार लोगों को परिभाषित करता हुआ अगला ही शेर मानों स्वाभिमानी लोगों की पूरी कहानी कह रहा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है आदरणीय गिरीश जी ने। अलग अलग रंगों को पिरो कर इंद्रधनुष सा बना दिया है। वाह वाह वाह। 


तिलक राज कपूर जी



चूक हुई तो अरमानों के जिनपर जौहर होते हैं
दिखने में आसान वो रस्ते कितने दूभर होते हैं।

वो चेहरे जो दिखने में मासूम मनोहर होते हैं
सोच लिये जहरीली उनमें भी कुछ विषधर होते हैं।
कोई रोश्नी से तो कोई अंधियारे से डरता है
सबके अपने-अपने किस्से अपने ही डर होते हैं।

कुछ हिस्से अंधियारे में डूबे रहते हैं बस्ती में
"दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं।"
बतियाती दुनिया में यूँ तो शब्दों की है भीड़ बड़ी
दिल से दिल का मेल कराते ढाई आखर होते हैं।

होश में रहकर मुंह खोला कर सत्ता के गलियारों में
सच कहने वालों पर इनमें हमले अक्सर होते हैं।
इस नगरी की सड़कें चौड़ी, सोच बहुत संकरी देखी
अधरों पर मुस्कानें लेकिन दिल तो पत्थर होते हैं।


वाह वाह वाह,  क्या मतला कहा है, और उस पर कमाल यह कि काफियाबंदी भी बाकमाल है। उस पर अगला ही शेर मनोहर और विषधर जैसे कठिन काफियों को बाँध कर सामने आया है। रोशनी और अँधियारे वाला शेर तो देर ते दिमाग़ में बचा रह जाने वाला शेर है। क्या ख़ूब तरीक़े से मानव मन के अंदर उतर कर देखा है। गिरह का शेर भी कमाल बन पड़ा है। ढाई आखर वाला शेर तो एकदम ग़ज़ब शेर है। जो बात कई बार कही जा चुकी है उसे कितने नए अंदाज़ में कहा है तिलक जी ने। और सत्ता के गलियारों की पोल खोलता शेर भी सुंदर बना है। सड़कों और सोच की तुलना करने वाला अंतिम शेर महानगरों की पूरी कहानी कह रहा है। वाह वाह वाह क्या सुंदर ग़ज़ल।


सुधीर त्यागी जी



दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते है।
तो हर सू उगता सूरज और तारे ज़मीं पर होते है।

अर्श प बिखरे चाँद सितारे रात के ज़ेवर होते है।
लेकिन दीवाली की रात दिये ही अख़्तर होते है।
कहने को तो प्रेम में केवल ढ़ाई आखर होते है।

प्रेम किसी से हो जाए तो चर्चे घर-घर होते है।
ख़त लिखना, फिर पढ़ना, फिर से पढ़ना बस पढ़ते रहना।
इश्क के अब वो नजा़रे किसको यार मयस्सर होते है।
दुनिया भर में फैली घातक बीमारी कोरोना की।
सूझती कोई राह नहीं, बेबस चारागर होते है।

सहरा में चलने जैसा है ईमां के बदले रोज़ी।
ये वो सफ़र है जिसमें पग-पग कांटे पत्थर होते है।
इश्क ही ईमान-ओ-मज़हब है, तोड़े बंधन नफ़रत के।
इश्क प दुनिया भर में पहरे जाने क्योंकर होते है।

रिश्तों को अनमोल बनाने की खातिर जीना सीखो।
सिर्फ निभाने की कोशिश में बद से बदतर होते है।
दमखम वाले औरों से हरगिज़ मरऊब नहीं होते।
बरगद के नीचे कुछ जिद्दी पौधे अक्सर होते है।


वाह वाह वाह,  बहुत अलग तेवर में ग़ज़ल कही है। मतले में ही सूरज के उगने और तारों के ज़मीं पर उतर आने की बात बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। आगे हुस्ने मतला में क्या कमाल अंदाज़ है चाँद और सितारों का रात का ज़ेवर बनना और मिसरा सानी में चराग़ों का अख़्तर होना, एकदम उस्तादाना अंदाज़ है। अगले हुस्ने मतला में एक शाश्वत सत्य है प्रेम के चर्चे सचमुच इस प्रकार फैलते हैं जैसे कोई दावानल हो। ख़त लिखना शेर का मिसरा ऊला ही ऐसा ग़ज़ब है कि बस ठिठक कर उसी को पढ़ते रहने की इच्छा होती है। सहरा में चलने की कड़वी और आज की सचाई को सामने लाता शेर मिसरा सानी में जाकर और सुंदर हो गया है। रिश्तों को अनमोल बनाने की खातिर जीना सिखाने का शेर भी सुंदर बना है। और बरगद के नीचे जि़द्दी पौधों का होना वाह क्या कमाल है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है वाह वाह वाह। 


 

अश्विनी रमेश जी

हर दम जलती धूप तले सड़कों पर बाहर होते हैं  
और खुले आकाश तले धरती पे बिस्तर होते हैं

नहीं पिघलते दर्द किसी का देख के अपनी आँखों से
उनके सीने में दिल के बदले बस पत्थर होते हैं
मिटे अँधेरा मावस का हर तरफ़ उजाला बस बिखरे
दीवाली पर जगमग जगमग जब सारे घर होते हैं

सोचा करते  सबका हित अपने हित से ऊपर उठकर
ऐसे लोग जहाँ में गिनती के उँगली पर होते हैं  
इस महंगाई में आसानी से घर कब चल पाता है
मुफ़लिस की आँखों में हरदम फाकों के डर होते हैं

भूखे मरते कब हैं जीवन में मेहनत करने वाले
उनके संघर्षों के आगे पर्वत नत सर होते हैं
अपने मतलब से जीते हैं दुनिया में जीने वाले
जो औरों की ख़ातिर जीते हैं पैग़ंबर होते हैं 

 वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है रमेश जी ने। सबसे पहले तो मतले में ही उन लोगों की ज़िंदगी का बहुत अच्छा चित्र बनाया है जो किसी  घर में नहीं रहते हैं, हरदम बाहर होते हैं। उसके बाद उन लोगों पर बहुत तीखा व्यंग्य किया है जो दूसरों के दुख को देख कर ज़रा भी नहीं पिघलते हैं। और उसके बाद गिरह का शेर भी बहुत ही कमाल का बना है। अगला ही शेर उन लोगों को समर्पित है जो दूसरों के लिए ही हर पल जीते हैं। अगले दो शेर दो अलग तरह के भाव लिए हुए हैं। एक में भूख के सामने हथियार डाल देने का चित्र है तो दूसरे में जीवन के संग्राम में लड़ते रहने की बात है। दोनों ही शेर बहुत सुंदर बने हैं। और अंतिम शेर में बहुत अचछे से सकारात्मकता की बात कही गई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली आप सबको दीपावली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। आप सब को दीवाली के इस पावन पर्व की बहुत बहुत मंगल कामनाएँ। आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि की बरसात रहे, आप हमेशा जगमगाते रहें, खिलखिलाते रहें। शुभ हो मंगल हो। शुभ दीवाली।



14 टिप्‍पणियां:

  1. आज दीपोत्सव के शुभ अवसर का शुभारंभ आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी ने शरद की अगवानी करते गीत से किया है। बहुत बहुत बधाई।
    आदरणीय गिरीश पंकज जी आपकी विभिन्न रंगों को समेटती ग़ज़ल की असीम बधाई।
    आदरणीय तिलक राज जी की ग़ज़ल का क्या कहना। बिल्कुल नये अंदाज के अशआर। वाह वाह!!
    आदरणीय सुधीर त्यागी जी इस सुंदर अशआर से सजी ग़ज़ल की आपको हृदयतल से बधाई।
    आदरणीय अश्विनी रमेश जी आपने बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है। बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बासुदेव साहब दाद के लिए आपका दिली शुक्रिया।

      हटाएं
  2. राकेश खण्डेलवाल जी तिलकराज कपूर जी, सुधीर त्यागी जी और अश्विनी रमेश जी की सुंदर रचनाएँ पढ़ कर खुशी हुई। बधाई सब को।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गिरीश जी दाद के लिए आपका दिली शुक्रिया।

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-11-2020) को   "गोवर्धन पूजा करो"   (चर्चा अंक- 3886 )     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    दीपावली से जुड़े पञ्च पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
  4. दीपावली के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक बधाई।

    राकेश जी यह गीत भी पहले दो गीतों की तरह मनमोहक है। अगर अगली दीवाली का तरही मिसरा अगर राकेश जी को अभी से दे दिया जाए तो पक्का है कि अगली दीवाली तक एक गीत संग्रह तो मिल ही जाएगा। गीत लिखना तो राकेश जी में ऐसा रच-बस गया लगता है कि बस ये बैठ जाएं गीत बने बिना रह ही नहीं सकता।
    एक बार फिर वाहः-वाहः।

    गिरीश पंकज जी ने सरल और सहज जीवन को बड़ी सहजता से बांधा है और आखिरी शेर में बहुत ही खूबसूरत बात कही कि
    सब के जीवन में उजियारा लाए अपनी दिवाली
    जो ऐसा सोचेगा उस के भीतर ईश्वर होते हैं
    वाहः क्या बात कही। वाहः।

    सुधीर त्यागी जी की ग़ज़ल में "अर्श प बिखरे चाँद सितारे रात के ज़ेवर होते है" में बहुत ही खूबसूरत दृश्य निर्मित हुआ है इसी तरह "ख़त लिखना, फिर पढ़ना, फिर से पढ़ना बस पढ़ते रहना"
    विशेषकर बहुत ही खूबसूरत मिसरे हुए।
    वाहः, वाहः और वाहः।

    अश्विनी रमेश जी की ग़ज़ल का मत्ला इस काल की त्रासदी का सटीक चित्रण है।
    यही बात
    इस महंगाई में आसानी से घर कब चल पाता है
    मुफ़लिस की आँखों में हरदम फाकों के डर होते हैं
    में है।
    ये दो शेर विशेष रूप से बहुत खूबसूरत हुए। वाहः, वाहः और वाहः।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तिलकराज कपूर साहब ,दाद के लिए आपका दिली शुक्रिया।

      हटाएं
  5. वाह वाह दीपावली के दिन पाँच महारथियों की रचनाएँ। आदरणीय राकेश जी के गीत इस तरही मुशायरे की जिंद जान हैं । तीन गीतों का अब तक हम आनंद ले चुके हैं और तीनों एक से बढ़कर एक । वो जो भी लिखते हैं सच में दृश्य साकार कर देते हैं । आदरणीय गिरीश पंकज जी के पैगम्बर वाले और दान करने वाले और मक्ते का शेअर बहुत पसंद आए । आदरणीय तिलक राज कपूर जी ने बहुत ही खूबसूरत तरीके से मतला कहा है ।बार बार पढ़कर आनंद ले रहा हूँ । और ये शेर तो बहुत जी कमाल

    सबके अपने अपने किस्से अपने ही दर होते हैं ।
    आदरणीय सुधीर त्यागी जी ने बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है । बेहद पसंद आई ये सारी की सारी ग़ज़ल । तारे जमीं पर, रात के ज़ेवर,ख़त लिखना, रिश्तों वाला शेर सभी के सभी शानदार हैं । अश्विनी रमेश जी ने भी बहुत खूबसूरत जज़्बात भरे हैं अपनी ग़ज़ल में । धरती पर बिस्तर, दिल की जगह पत्थर, औरों के ख़ातिर जीने वाले सहित सभी अशआर बेहतरीन हैं जी ।
    इतनी सुन्दर रचनाएँ पढ़वाने के लिए आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद ।
    अब आदरणीय नीरज जी, भब्बड़ कवि, हाश्मी जी और अन्य रचनाकारों की रचनाओं का इंतज़ार है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गुरप्रीत जी ,दाद के लिए आपका दिली शुक्रिया।

      हटाएं
  6. आदरणीय खंडेलवाल जी, गिरीश पंकज जी,अश्विनी जी तथा तिलक राज जी सभी अति सुन्दर रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. सुधीर जी दाद के लिए आपका दिली शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  8. दीपोत्सव की शुभकामनाओं के संग उम्दा रचनाओं के लिए साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी रचनाकारों को इन अद्भुत रचनाओं के लिए तहे दिल से बधाई और दीपावली की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

परिवार