हर चीज़ अपनी उम्र लेकर आई है । धीरे धीरे समापन की और बढ़ना सबकी नियति है । किन्तु इस नियति के बीच जीवन को जी लेना उसके आनंद को अपने अंदर संचित कर लेना यही रसिक होने की पहचान है । रसिक शब्द को बहुत ग़लत तरीके से लिया जाता है । रसिक शब्द का अर्थ होता है कला के हर रूप के रस का पान करने वाला । वो जो बांसुरी से लेकर ग़ज़ल तक हर कला का रसिया हो । रस जो हर कहीं बिखरा पड़ा है । और जिसके बिना जीवन नीरस हो जाता है । ये जो नई पीढ़ी आ रही है कम्प्यूटर और इंटरनेट की मुझे इनके लिये बस एक ही दुख है कि सब कुछ होते हुए भी इनके जीवन में रस नहीं है । मैं सोच कर ही कांप जाता हूं कि 40 साल की उम्र तक आते न आते इनका जीवन कैसा हो जायेगा । बाकी सब चीजें उबा देती हैं लेकिन कला और उसका रस कभी नहीं उबाता ।
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये
आज हम दो रचनाएं सुनने जा रहे हैं । इनमें से एक ग़ज़ल है तो दूसरी छंदमुक्त कविता है । श्री अश्विनी रमेश जी और आदरणीया लावण्या शाह जी तरही मुशायरों के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं सो किसी परिचय की आपश्यकता नहीं है ।
अश्विनी रमेश
प्रीत की अल्पना यूं सजी है प्रिये
वस्ल की आस फ़िर से बंधी है प्रिये
मैं पपीहा बना ही रहा उम्र भर
प्रेम की सिर्फ इक बूंद पी है प्रिये
मानता हूँ कि तुम हो बहत दूर पर
दिल में चाहत मिलन की बड़ी है प्रिये
हीर रांझा अगर हम न हों क्या हुआ
प्रीत किसको नहीं बांधती है प्रिये
वो बसन्ती महकते गुलों की खुशी
आशना की अजब सी खुशी है प्रिये
ये सुरीली मधुर धुन सुनो तो ज़रा
प्रेम की बज रही बांसुरी है प्रिये
प्रेम की डोर बांधे न हमको अगर
तो ये नीरस बड़ी जिन्दगी है प्रिये
सुंदर ग़ज़ल कही है अश्विनी जी ने । पपीहे द्वारा प्रेम की एक ही बूंद पीने का चित्र बहुत सुंदर बन पड़ा है । प्रेम की डोर यदि न बांधे तो जिंदगी के नीरस होने की बात खूब तरीके से कही गई है । अश्विनी जी को इस तरही के दौरान ही एक गहन दुख का सामना करना पड़ा । लेकिन उन्होने खेल भावना का प्रदर्शन करते हुए अपनी ग़ज़ल तरही के लिये भेजी उसके लिये हम उन्हें सैल्यूट करते हैं ।
आदरणीया लावण्या शाह जी
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
मौन हो तुम, कहूंगा तुम्हें बार बार
आ भी जाओ प्रिये आभी जाओ
थे मूंदें नयन में जो सपने पले
वे सपने मैंने औ' तुमने बुने
सजा आरती साँसों की ओ प्रिये
वे पल छीन जो मैंने औ तुमने गिने
सुख हो या दुःख वे हमने पल जिए
अब ना दूरी रहे सफर पूरा ये कटे
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नील नभ तारक सी जगमगाती
हरी दूब सी सिहर लहराती
सिंदूरी संध्या सी हो लजाती
शुक्र चन्द्र युति झिलमिलाती
धानी चुनरिया सरसराती हुई
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
नव रंग नव रस नव उमंग लिए
प्रीत की अलपनाएं सजी हैं प्रिये
कल्पना सी सजी अलपनाएं हैं
प्रीत के हर रंग हैं तुम्हारे प्रिये
आ भी जाओ प्रिये आ भी जाओ
बिसरा दिये गये शब्दों का प्रयोग करके लावण्या जी अपनी रचनाएं कहती हैं । इस रचना में भी नील नभ तारक, शुक्र चन्द्र युति जैसे शब्द सुंदरता के साथ आये हैं । वे छांदिक और छंदमुक्त के बीच की विधा में रचनाएं कहती हैं । उनकी रचनाएं हिंदी गीतों के स्वर्णयुग की ध्वनियां लिये होती हैं । इस रचना में भी वही बात है । सुंदर बहुत सुंदर ।
अगले अंक में तरही का समापन होगा ।
श्री अश्विनी जी की गज़ल बहुत सुन्दर है
जवाब देंहटाएंमै पपीहा बना ---\
वो बसन्ती---- वाह बहुत अच्छे शेर।
लावण्या जी के तो क्या कहने हमेशा ही दिल तक उतर जाती हैं।
हरी दूब सी--
\शुक्र चन्द्रमा सी --- हर एक शब्द प्रीत लडी मे गुंथा हुया। दोनो को बधाई।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम में तो मैं रमेश जी के दु:ख के प्रति संवेदना प्रस्तुत करता हूँ।
जवाब देंहटाएंद्वार पर अल्पना सजाये प्रतीक्षारत ऑंखों में मिलन के सपने लिये आरंभ हुई रमेश जी की ग़ज़ल आखिर शेर तक पहुँचते-पहुँचते दार्शनिक हो उठी। बधाई।
जवाब देंहटाएंलावण्या शाह जी के गीत की प्रतीक्षा थी। यहॉं अल्पना सजा कर निमंत्रण से प्रारंभ होता हुआ गीत मनमोहक दृश्य खींचता हुआ उपयुक्त गृह स्थिति का संदेश देकर आमंत्रित करता हुआ स्वागत में खड़ा है। बधाई।
बहुत आनंद आया
जवाब देंहटाएं--- शायद आपको पसंद आये ---
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2. मुहब्बत में तेरे ग़म की क़सम ऐसा भी होता है
3. तख़लीक़-ए-नज़र
जैसे भी हो जीवन रसमय बना रहे. तरही का हम स्वागत करते हैं, निभाते हैं और विदा लेते हैं.
जवाब देंहटाएंप्रीत किसको नहीं बांधती है प्रिये... श्री अश्विनी रमेश जी की पंक्तियाँ इसकी पुष्टि कर रहे हैं.
आदरणीया लावण्या जी के गीत में शब्द सुन्दरता के साथ प्रेम आग्रह और अन्य दृश्य हैं.
--
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है अश्विनी जी ने। लावण्या जी की रचना भी शानदार है। दोनों रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंतरही का समापन संचालक जी की ग़ज़ल के बिना कैसे हो सकता है। ऐसा करने के कुछ विशेष कारण भी हैं जो नीचे दिए गए हैं।
जवाब देंहटाएं१. विषय तो देखिए
२. मौसम तो देखिए
३. नवयुगल को आशीर्वाद स्वरूप एक ग़ज़ल तो होनी ही चाहिए
मैं संचालक महोदय को सादर आमंत्रित कर रहा हूँ। उम्मीद है कि आप सब मेरा साथ देंगे।
धर्मेन्द्र जी की बात पर पूर्ण सहमत !
हटाएंअरे भाई इसमें संदेह क्यों
हटाएंतीनों विन्दु मानक सदृश हैं. जय होऽऽऽ
हटाएंअश्विनी जी के दु:ख पर गहरा दु:ख प्रकट !
जवाब देंहटाएंउनकी ग़ज़ल का शे'र पपीहा ... ने कमाल कर दिया है ! क्या ख़ूब शे'र कहे हैं इन्होनें ! और इसके बाद के शे'र में "पी" को जिस तरह से काफ़ीये में प्रयोग किया है वो भी बेहद ख़ूबसूरत है !
एक अच्छी ग़ज़ल के लिये इन्हें बहुत बधाई !
आ. लवण्या दी के द्वारा लिखी कविता वाह वाह कहने का मन हो उठता है !
सर्वप्रथम आदरणीय सुबीर जी का आभारी हूँ जिन्होंने न केवल विलम्ब से भेजी मेरी इस गज़ल को स्वीकार किया बल्कि जब मैंने उन्हें बताया कि 23 मई ,2012 को मेरी पूजनीय माता जी का देहांत हुआ है, तो उन्होंने जो सान्त्वनात्मक शब्द कहे ,वे मेरे लिए सकून देने वाले थे !
जवाब देंहटाएंमुझे लगा कि माँ ने ही तो मुझे फ़र्ज़ सिखाया है तो कविता या गज़ल लिखने का कर्म भी तो फ़र्ज़ ही तो है ! इसी भावना से प्रेरित होकर दुखी होते हुए भी माँ के कर्मठ जीवन से प्रेरित होकर कलम को अपना फ़र्ज़ समझकर गज़ल लिख और भेज डाली (जबकि पांच शेर तरही की घोषणा के एक दिन बाद ही लिख दिए थे, जब माता जी ज्यादा बीमार नहीं थे )
सान्त्वना के लिए तिलकराज कपूर जी और अर्श जी का भी आभार !
आने वाले कल की चिंता समेटे इस अंक की खूबसूरत पृष्ठभूमि बांधने के लिए सुबीर जी का फ़िर से आभारी हूँ !
निर्मला कपिला जी ,राजेश कुमारी जी , तिलकराज कपूर जी , विनय प्रजापति जी ,सुलभ जायसवाल जी ,धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी ,अर्श जी --आप सब का उत्साहवर्धन के लिए तह दिल से शुक्रिया !
लावण्या जी के गीत की रवानगी पढकर बहत अच्छा लगा !
अश्विनी रमेश जी को मेरी सम्वेदनायें! उन्हें पढना अच्छा लगा। लावण्या जी का तो नियमित पाठक हूँ। उनकी रचना बहुत पसन्द आई। आभार!
जवाब देंहटाएंजहाँ आदरणीय लावण्य जी की मधुर रचना बहा ले जाती है वहीं अश्विनीजी की गज़ल गहराई तक छूती है. भाई अश्विनीजी की मनस्थिति को समर्पित
जवाब देंहटाएंतू विद्यापति का अनुयायी
तुझे जायसी ने शिक्षा दी
तू ही तो जीवन्त रखे है
खुसरो,तुलसी की परिपाटी
तुझ में है कबीर का दर्शन
भक्ति भाव है योगक्षेम का
तूने मीरा से सीखा है
दीवानापन अमर प्रेम का
मिला विरासत में जो तुझको
उसका कर्ज चुकाया कर तू
पीढ़ी नई दिशायें पाये
ऐसे गीत सुनाया कर तू
अश्विनी जी सुन्दर
जवाब देंहटाएंराकेश खंडेलवाल जी ,आपके गीत ने मन बाग बाग कर दिया ,शुक्रिया !समार्ट इंडियन जी ,शुक्रिया ! रोशन जी यहाँ पर भी उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंtar-hi kya hota hai...mujhe kya pata
जवाब देंहटाएंradif.....kafiya se mera kya basta
mishri se mishre au' gur si gazal
guruji ke kuti me milte aisi hi fal????
sat-chitt-aanand.......
is bhaw-sagar ke sabhi khevan-har ko mera
hardik
pranam.
सर बहुत ही खूब है लिखा है ,आपने अपने प्रिये के इंतज़ार की ब्याकुलता को जो इस प्रेम प्रसंग में उतारा है अतुलनीय है..
जवाब देंहटाएंप्रीत की अल्पना में सजी ये लाजवाब गज़ल रमेश जी कुछ नया गुल खिला रही है ... प्रेम की इक बूँद की चाह में पपीहा बने .. गज़ब के शेर हैं सभी ... ये मुशायरा समापन की और अग्रसर है अपनी नई ऊँचाइयों को छूता हुवा ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय लावण्या जी ने प्राकृति के मोहक रंग ले के अल्पनाएं सजाई हैं ... उसको अनरस से महसूस किया जा सकता है ...
अश्विनी रमेशजी के प्रति सादर भाव रखता हूँ. आपकी इन दुखद घड़ियों में अपनी हार्दिक संवेदनाओं के साथ मैं आपके साथ हूँ. इस क्षति की पूर्ति ही नहीं है. यह आपकी रचनाधर्मिता का उन्नयन है कि प्रस्तुत साहित्य-यज्ञ में आपकी समिधा पड़ी है. सादर नमन.
जवाब देंहटाएंमानता हूँ कि तुम हो बहुत दूर पर.. . की व्यावहारिकता ने मोह लिया. बहुत सुन्दर.
प्रेम की डोर बाँधे न हमको अगर.. . वाह-वाह ! इस सनातनी पंक्तियों के लिये हृदय से बधाई.
आपकी प्रस्तुत प्रविष्टि के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.
**************
आदरणीया लावण्याजी की प्रस्तुत रचना एक अलग संसार में ले जाती है, प्रेमपगी टेर लगाती द्वैत के अद्भुत संयोजन को साधती हुई. हृदय से महसूस कर निरंतर झंकृत हो रहा हूँ. शब्दों का अंतर्निहित विस्तार अन्वर्थ को नया रूप दे रहा है. वाह !
सादर
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
सौरभ पांडे जी , आपके सान्त्व्नात्मक और संवेदनात्मक शब्दों के लिए आपका आभारी हूँ !आपने बिल्कुल सही कहा कि यह एक ऐसी क्षति है जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती ,माँ का रिश्ता संसार का सबसे सच्चा और अच्छा रिश्ता है !
जवाब देंहटाएंरचना पर टिप्पणी उद्धरण सहित देने और उत्साहवर्धन के लिए भी आभारी हूँ !
संजय झा जी , मेरा गम (यानि अशवनी भारद्वाज जी ),दिगम्बर नासवा जी का भी दिल से आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने मेरा उत्सावर्धन किया है !
जवाब देंहटाएंये मुशायरा अपने अंत की और बढ़ रहा है जान कर एक हूक सी उठी है मन में...इस से ऐसा जुड़ाव हो गया था के अब इसके समाप्त होने पर होने वाले खाली पन का एहसास अभी से विचलित कर रहा है.
जवाब देंहटाएंरमेश जी ने अपनी ग़ज़ल के प्रत्येक शेर में प्रेम की कोमल भावनाओं को बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है. सीधे सादे शब्दों में की गयी प्यार की बौछारों से सभी को भिगो दिया है. वाह...मेरी दाद उनतक पहुंचा दें.
लावण्या दी की तो बात ही निराली है. वो स्वयं स्नेह की मूर्ती है उनकी कलम से निकला हर शब्द स्नेहसिक्त है..."नील नभ तारिका सी..." से शुरू की गयी पंक्तियाँ धानी चुनरिया तक आते आते अपने जादुई आगोश में पाठक को बाँध लेती हैं...इस रचना की प्रशंशा में मुझे शब्द नहीं मिल रहे...हम सौभाग्य शाली है जो उन्हें पढने का मौका आपके ब्लॉग पर पा रहे हैं...उन्हें मेरा प्रणाम.
नीरज
नीरज गोस्वामी जी , गज़ल पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए तह दिल से आपका आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंभाई श्री अश्विनी रमेश जी
जवाब देंहटाएंआपकी पूजनीय माता जी की पावन स्मृति को मेरे सादर प्रणाम
माम तो बस माँ होती है उनका बिछोह मर्मान्तक वेध जाता है
और जीवन के अंतिम क्षण तक ह्दय में साथ रहतीं हैं ..
किन शब्दों में सांत्वना दें ?
परम कृपालु ईश्वर उन्हें अपनी महा ज्योत में स्थान दें
और आप उनके आशिष से निरंतर उत्कृष्ट रचना करते रहें
जैसी इस तरही में आपने प्रस्तुत की है ये कामना सहित
- लावण्या
आदरणीय लावन्या जी,
हटाएंसर्प्रथम तो क्षमा चाहता हूँ कि आपकी टिप्पणी देर से पढ़ सका ! आपने बिल्कुल ठीक कहा है कि माँ तो बस माँ होती है ! यह सत्य है कि यह संसार का सबसे प्रिय रिश्ता है ! कुछ भी हो माँ मेरी आत्मा में सदैव जीवित रहेगी ! संवेदना के अमूल्य शब्दों हेतु आभार !
रचना संसार के सभी सुह्रदय स्नेही साथियों के प्रोत्साहन भरे शब्दों को सर माथे लेते हुए
जवाब देंहटाएंसच्चे ह्रदय से आभार - लावण्या