इस बार का मुशायरा अर्श और माला को समर्पित है और साथ में प्रेम को भी । आज की ये पोस्ट कंचन के लिये क्योंकि आज उसके लिये बड़ा दिन है । आज वो एक और पड़ाव पर मुम्बई में क़दम रखने जा रही है । अनंत शुभकामनाएं कंचन को आज के लिये । जाओ अपने हौसलों से उड़नपरी बन कर दिखाओ ।
इस बार का तरही मिसरा देने के बाद यूं लगा कि लोगों के मन में इस शुद्ध हिंदी के मिसरे के प्रति वो उत्साह नहीं देखने को मिला जो सामान्य रूप से देखा जाता है । हालांकि मिसरा उतना कठिन नहीं था । एक बहुत लोकप्रिय बहर पर लिखा जाना था । बाद में भी मिसरे को लेकर लोगों ने उतना उत्साह नहीं दिखाया । जब ये लगा कि मिसरे को लेकर उलझनें हैं तो जितनी ग़जलें आईं उनके ही साथ मुशायरा शुरू करने की सोच ली । हालांकि अभी भी मौसम खुशगवार नहीं हो पाया है । गर्मी उतनी ही पड़ रही है । और प्रतीक्षा चल रही है कि कब घन गहन गरज के बरसेंगे ।
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये
इस बार की ये तरही जैसा कि आप सबको पता है कि अर्श और माला को समर्पित है । दोनों ने कुछ ही दिनों पूर्व अपना दांपत्य सफर प्रारंभ किया है । और अब दिल्ली में पड़ रही सड़ी हुई गर्मी इस बात की प्रतीक्षा कर रही है कि कब पटना की तरफ से कोई बदली ठंडी फुहार लेकर आये और दिल्ली के मौसम को खुशगवार कर दे । अभी हालांकि पटना की तरफ से आने वाले बादलों के स्वागत की तैयारियां दिल्ली में चल रही हैं । और जैसी की सूचना मिल रही है कि तैयारियां जोरों शोरों पर हैं ।
तो आइये प्रीत की बांसुरी से निकल रहे स्वरों को हम भी सुनते हैं । जिंदगी के कठिन समय में ये प्रीत ही होती है जो लड़ने का हौसला और जीतने का विश्वास प्रदान करती है । समय की शिला पर अपने निशान छोड़ते हुए ये प्रीत बरसों बरस से किसी नदी की तरह बह रही है । जिसको लेकर गुलजार ने कहा 'नूर की बूंद है सदियों से बहा करती है ' । इसी प्रीत को कुछ शायर यहां अपने अपने ढंग से ग़ज़लों में बांध कर लाएंगे । आइये सुनते हैं ये प्रीत भरी ग़ज़ल ।
सुलभ जायसवाल
सुलभी की ग़ज़ल से शुरूआत करने के पीछे भी एक कारण है । कारण ये कि सुलभ की ग़ज़ल ने मुझे चौंका दिया । चौंकने का कारण भी ये कि सुलभ के शेरों से ये पता चल रहा है कि जनाब अब कहन के साथ कहना सीख गये हैं । कहन के साथ कहना सबसे ज़रूरी परिवर्तन होता है किसी शायर के जीवन में । और ये परिवर्तन जितनी जल्दी हो जाये उतना ही ज़ुरूरी है । आइये सुनते हैं सुलभ से प्रीत भरी ग़ज़ल ।
जिंदगी कब हमारी थमी है प्रिये
आपके नाम की संगिनी है प्रिये
हो खड़ी संग तुम और क्या चाहिये
चाँद से चांदनी मिल रही है प्रिये
हर नगर हर गली प्रेम की जीत हो
नेह की बांसुरी बज रही है प्रिये
दो कदम तुम चलो दो कदम मैं चलूँ
राह ये दूर तक शबनमी है प्रिये
अधखुले होठ हैं दरमयां फासले
धड़कनों में मगर खलबली है प्रिये
फर्श से 'अर्श' तक व्योम के पार तक
"प्रीत ही प्रीत की माधुरी है प्रिये "
आसुरी शक्तियां नष्ट हो जायेंगी
आरती की महक उठ रही है प्रिये
सिलसिला चाहतों का रहे उम्र भर
बस यही कामना पल रही है प्रिये
फर्श से अर्श तक व्योम के पार तक, सुंदर प्रयोग किया गया है इसमें । व्योम के पार का बहुत खूब इस्तेमाल है । और उस पर एकवचन का तरही मिसरा अपने हिसाब से जो बनाया है वो भी सुंदर बन पड़ा है । हर नगर हर गली प्रेम की जीत के लिये बज रही नेह की बांसुरी का भी जवाब नहीं है । बहुत सुंदर बन पड़ी है । कुछ और प्रयोग भी अच्छे बने हैं जैसे धड़कनों की खलबली और आरती की महक । आरती की महक का प्रयोग इसलिये सुंदर है कि आरती के दीपक की चमक को तो प्रयोग में लाया गया है, यहां शुद्ध घी के दीपक या कर्पूर की आरती की महक की बात की गई है जिसकी अपनी सुवास है । सुंदर ग़ज़ल । बधाई ।
जिन आलसी लोगों ने किसी कारण ये ग़ज़ल नहीं भेजी है उनसे अनुरोध है कि आलस छोड़ें और ग़ज़ल भेज दें ।
बेहतरीन ग़ज़ल , (दो कदम तुम चलो दो कदम मैं चलूं, राह ये दूर तक शबनमी है प्रिये --लाज़वाब शे"र )सुलभ जायसवाल जी को मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंआज की भोर सज गयी.
जवाब देंहटाएंदिल्ली के ग्रीष्म की तपन को कल ही तो फुहारों का अवलेह मिला है. सो, आज का प्रात पुलकभरा प्रतीत हुआ. उस पर से मुशायरे का प्रारम्भ होना मानों मनोहारी भोर में तृणाग्र पर प्राकृतिक बूँद सी !
भाई सुलभ के सभी अश’आर जीवंत है. और, इसी कारण सहज हैं.
आसुरी शक्तियाँ नष्ट हो जायेंगी.. .. इस शे’र ने देर तक बाँधे रखा. कहना न होगा, बहुत उपट कर भाव निस्सृत हुए हैं.
दो कदम तुम चलो.. .. क्या कहूँ इस अन्योन्याश्रय समर्पण पर !
लेकिन जिस शे’र ने दृश्य चित्रित कर इस कैनवास पर वातावरण ही बना दिया, वह अवश्य ही अधखुले होंठ हैं दरमयां फ़ासले.. .. ही है.
भाई सुलभ को बारम्बार बधाइयाँ.
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बहन कंचन को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ. जीवन की राह सपाट नहीं होती, न कोई बरबस सरपट दौड़ पाता है. सतत लगन और अनवरत प्रयास ही पग को आदती बना देते हैं, बस.
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जिनके जीवन में आये आयाम इस तरही मुशायरे का कारण बने हैं, उन भाई अर्शजी और नवोढ़ा को मेरी हार्दिक शुभेच्छाएँ.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
बहुत शुक्रिया सौरभ जी !
हटाएंआने वाले दिनों के लिये मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ, कंचनजी.. .
हटाएंये जो मुम्बई है न, सभी अपने को अपने हिसाब से बहुत कुछ, बहुत-बहुत कुछ देती है. अपने वो ’मुम्बइया दिन’ मुझे शिद्दत से याद आते हैं ! कुछ ही शहर होते हैं, जो साथ न होने पर इस कदर कचोटते हैं..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल से शुरुआत हुई है..
जवाब देंहटाएंसच कहूँ? मुझे यकीन ही नहीं हुआ के मैं सुलभ की कही ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ...लगा जैसे गोपाल दास नीरज सामने बैठे ग़ज़ल सुना रहे हैं...अद्भुत...कमाल...वाह...शब्दों का ऐसा सुन्दर मनोहारी प्रयोग बहुत विरले ही देखने को मिलता है..रत्न जडित हार की तरह अनमोल है ये ग़ज़ल और इस शेरोन की तो बात ही क्या है: "अधखुले होंठ हैं..." "फर्श से अर्श तक..." "आसुरी शक्तियां...." इसमें आरती की महक के बिम्ब ने आनंद ला दिया...वाह वाह वाह...जियो सुलभ जियो...जिंदाबाद...
जवाब देंहटाएंनीरज
गुरुदेव आपका ब्लॉग आज तरही के अनुरूप ही सजा है और गज़ब ढा रहा है...गुलाबी पृष्ठ भूमि पर फूलों के चित्र प्रीत की अल्पनायें सजा रहे हैं...इस मन भावन प्रस्तुति के लिए कोटिश बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ही बढ़िया गज़ल के साथ मुशायरे की शुरुआत हुई है. मैं देरी का कारण पूछने ही वाला था.
जवाब देंहटाएंइतने खूबसूरत शेरों से सजी गज़ल के लिए सुलभ को बहुत बहुत बधाई..
कुछ मिसरे तो जानलेवा हैं.. "हो खड़ी संग तुम और क्या चाहिए.", "दो कदम तुम चलो दो कदम मैं चलूँ.", "फर्श से अर्श तक व्योम के पार तक.", "सिलसिला चाहतों का रहे उम्र भर." वाह.
दो कदम तुम चलो दो कदम मैं चलूँ ।
जवाब देंहटाएंराह ये दूर तक शबनमी है प्रिये...
बहोतही पसंद आया ये शेर
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प्रीतकी अल्पनाएं सजती रहें...
चॉंद से चॉंदनी के मिलने का खूबसूरत प्रयोग और नेह की बॉंसुरी, वल्लाह। और भाई ये राह दूर तक नहीं अंत तक शबनमी है, अब यदा कदा कुछ कॉंटे मिल जायें तो बात और है। और भाई अधखुले होंठ का तो ऐसा है कि:
जवाब देंहटाएंहोंठ खुल जायें तो बात कुछ और हो
जब तलक बंद हैं बात कुछ और है।
फ़र्श से अर्श तक तो सटीक संदर्भ संगत है। फिर आसुरी शक्तियों से आरती की महक की टक्कर के बाद आखिरी शेर की मंगल कामना; बहुत खूबसूरत।
सुलभ की दुर्लभ ग़ज़ल। भाई पक्के शायर वाली बात है, हर शेर सधा हुआ।
और हॉं, ब्लॉग-बहन (ये एक नया रिश्ता है, एक तो होती है ब्लॉगिया बहन यानि जो ब्लॉग के माध्यम से बहन बने; और एक होती है पूरे ब्लॉग की बहन, तो ये उसी की बात है) कंचन को विशेष बधाई नये बंबईया उद्यम के लिये (वैसे सभी भाईयों में बहने उद्यम से ज्यादह उधम के लिये जानी जाती हैं)।
जवाब देंहटाएंतिलक जी !
हटाएंइस नये रिश्ते से नवाज़ने का शुक्रिया ! हाँ बस उत्तर प्रदेश की बहन जी और बंगाल की दीदी ना बनाया जाये बाकी तो ब्लॉग बहन बनना तो सौभाग्य की बात है।
बंबई में बंबई के बाबू के साथ ऊधम ही तो मचाया था वैसे, उसी में चलते फिरते तथाकथित उद्यम भी कर लिये गये :D
तरही की शुरुआत और ब्लॉग का निखर-निखर रंग-रूप अलग ही छटा बिखेर रहा है.
जवाब देंहटाएंअर्श भाई और माला भाभी को समर्पित ये तरही निश्चय ही पटना से ठंडी फुहारों को दिल्ली तक पहुंचाएंगी.
सुलभ भाई ने बहुत खूब शेर निकाले हैं.
"हर नगर हर गली प्रेम की जीत..........." वाह वा
'आरती की महक', सही में चमत्कारिक प्रयोग किया है, बधाई स्वीकारें.
मगर हासिल-ऐ-ग़ज़ल शेर तो ये है.
फर्श से 'अर्श' तक व्योम के पार तक
"प्रीत ही प्रीत की माधुरी है प्रिये ".
क्या कहने.......उला में शब्दों का जादू अपने चरम पे है. वाह वा. ढेरों दाद कुबुलें.
बारिश की फुहारें, कंचन दीदी का मुंबई में स्वागत करने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंतूने तो शुक्रिया देने लायक भी नही रखा !!
हटाएंशुक्रिया उस ऊपर वाले का, जिसने तुम सब से मिलाया और शुक्रिया इस पन्ने और इस पन्ने के सूत्रधार का भी, जिसने एक ऐसे परिवार से मिलाया, जिसके बारे में सोचना पड़ता है कि क्या इनसे मिलने का बायस आभासी जगत ही है ??
गई थी कि कुछ बादल चुरा लाऊँगी, मेरे आने की खबर से वो सारे बादल भी छिप गये
हटाएंमेरा कमेन्ट कहाँ गया गुरुदेव...स्पैम में तलाशें...
जवाब देंहटाएंजिनकी तरही प्राप्त नहीं हुई है उनकी टिप्पणी डूब रही हैं। वैसे एक टिप्पणी आपकी दिख रही है तो कुछ समझ नहीं आ रहा।
हटाएंइस बार हम किनारे पर बैठ कर लहरें गिनने के मूड में हैं...हमें ना उकसायें...वरना...
हटाएंआप लहरें गिनें या चिडि़या उड़ायें, आपकी ग़ज़ल नहीं मिली तो कोई रद्दी सी ग़ज़ल लिखकर आपके नाम चिपका दी जायेगी; हॉं... फिर मत कहना कि बताया नहीं था।
हटाएंवाह...आपने तो मेरे मन से बोझ हटा दिया... आप धन्य हैं ...मेरे नाम से रद्दी सी ग़ज़ल ही चिपकाइयेगा...आपको कसम है...अगर अच्छी चिपका दी तो लोग समझ जायेंगे के आपकी है...
हटाएंप्ंगे का जवाब मेल पर देख लें।
हटाएंअच्छे खासे इंतज़ार के बाद आख़िरकार मुशायरा शुरू हुआ और क्या बढ़िया शुरू हुआ..सुलभ भाई ने ग़ज़ल के तमाम अशार प्रेम की चाशनी में डुबो के निकाले हैं..दाद कुबूल करें..प्रकाश भाई को एक बार फिर ढेरों मुबारकबाद और कंचन दीदी को नए सफ़र के लिए शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंसुलभ जी..बहुत ही अच्छे प्रयोग..सुंदर ग़ज़ल कही है आपने..मुशायरे का शुरुआत ही बेहतरीन ग़ज़ल से ..धन्यवाद पंकज जी..
जवाब देंहटाएंपूरी ग़ज़ल अच्छी लगी....सुलभ जी को हार्दिक बधाई...
अहा ... इंतज़ार था इस प्रीत भरी तरही का कई दिनों से ... गर्मी में शीतल एहसास के लिए इससे ज्यादा और क्या चाहिए ...
जवाब देंहटाएंसुलाभी जी की इस प्रीत भरी गज़ल से लग रहा है उन्होंने भी इस डोर कों थाम लिया है ... मतला ही संगिनी के नाम कर दिया ... प्रीत की बांसुरी हर जगह बजने लगे तो सच में शान्ति आ जाए दुनिया में ...
अध्खुले होठ हैं ... सच में दिल में खलबली मचाने के लिए काफी है ...
और फर्श से अर्श तक ... ये शेर तो गज़ब ढा रहा है ...
पूरी गज़ल जैसे माधुर्य का एहसास करा रही है ...
कंचन को बधाई और शुभकामनाये नए पढाव पे कदम रखने के लिए ... आशा है नया कदम खुशियां ले के आयगा ...
ओह ... टिप्पणी गायब हो गयी ... दुबारा डालता हूँ ...
जवाब देंहटाएंअहा ... इंतज़ार था इस प्रीत भरी तरही का कई दिनों से ... गर्मी में शीतल एहसास के लिए इससे ज्यादा और क्या चाहिए ...
सुलाभी जी की इस प्रीत भरी गज़ल से लग रहा है उन्होंने भी इस डोर कों थाम लिया है ... मतला ही संगिनी के नाम कर दिया ... प्रीत की बांसुरी हर जगह बजने लगे तो सच में शान्ति आ जाए दुनिया में ...
अध्खुले होठ हैं ... सच में दिल में खलबली मचाने के लिए काफी है ...
और फर्श से अर्श तक ... ये शेर तो गज़ब ढा रहा है ...
पूरी गज़ल जैसे माधुर्य का एहसास करा रही है ...
कंचन को बधाई और शुभकामनाये नए पढाव पे कदम रखने के लिए ... आशा है नया कदम खुशियां ले के आयगा ...
thanks Digambar Ji ! yes the moments gave happiness yesterday
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जवाब देंहटाएंइस सुन्दर गज़ल पर सभी की टिप्पणियाँ पढ़ीं. गज़ल के दिग्गजों ( कपूर साहब और गोस्वामीजी ) की हाँ में हाँ मिलाते हुये तो गज़ल की तारीफ़ करूंगा मगर इस सुन्दर गज़ल में दो बातें खटकीं
जवाब देंहटाएंपहली तो यह कि इस मुसलसल गज़ल में एक जगह आप का सम्बोधन है और दूसरी जगह तुम का जो कि तकनीकी दोष है. दूसरे मिसरा तरह मुझे ढूँढ़ने पर भी नजर नहीं आया.
कुल मिला कर भाव सुन्दर हैं और कहने का अन्दाज़ भी.
आदरणीय भाई राकेश जी,
हटाएंदो अलग अलग शेर में तो ये आप और तुम वाली समस्या नहीं होनी चाहिये। फिर भी आपने बात उठाई है तो इसे ठीक किया जा सकता है 'जब तेरे (तिरे) नाम की संगिनी है प्रिये' द्वारा।
एकवचन के लिये छात्रों को मिसरा-ए-तरह की छूट थी।
छोड़ भी दीजिये, बच्चा गर्मी में पसीने से तरबतर भरी जवानी में श्रागार के शेर कह रहा है यह क्या कम है।
प्रभु पता नहीं हमारी नज़रें आपकी तरह पारखी कब होंगीं...आप सच्चे जोहरी हैं...
हटाएंआदरणीय भाई तिलकजी,
हटाएंकोई भी रचना चाहे गज़ल हो या गीत - जब एक विषय पर लिखी जाये तो व्याकरण का निर्वाह आवश्यक है. गज़लों में जब स्वतंत्र शेर कहे जाते हैं तब कोई परेशानी नहीं होती ( वैसे गज़ल की तकनीक के बारे में मेरा ज्ञान आपके समक्ष नगण्य है ) परन्तु मुसलसल रचना में यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है. आपके सुझाव में भी तकनीकी दोष इस कारण है कि आप्ने तेरे का सुझाव दिया और दूसरे शेर में तुम का प्रयोग है.
सुलभ की गज़ल में निहित भावनायें, कल्पना और शेर कहने का कौशल सुनिश्चित तौर पर प्रशंसात्मक है. मैने इस त्रुटि की ओर केवल इसलिये ध्यान आकर्षित किया क्योंकि सुलभ के लेखन में और भी संभावनायं सहज रूप से नजर आ रही हैं.
मंच की सुन्दर प्रीत भरी छटा हम सबके लिए मनमोहक है. तरही के आरम्भ में अपनी ग़ज़ल देख चौंक तो मैं गया.
जवाब देंहटाएंइस ग्रीष्म में इससे शीतल और कुछ नहीं हो सकता मेरे लिए.
उपस्थित सभी साथियों से मिली दाद के लिए - शुक्रिया ... शुक्रिया ... शुक्रिया...
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कंचन दी, आपको अगले सफ़र के लिए मेरी तरफ से ढेरों शुभकामनाएं !!
कौन सा सफर समझ रहे हो मेरे भाई ! कोई नया सफर नही है, पुराने सफर की एक और सीढ़ी है, बस ! और पुराना सफर, यही ग़ज़ल का... समझे ??
हटाएंक्या जानदार और शानदार अश’आर हैं। बहुत बहुत बधाई सुलभ जी को। अब लगता है कि गर्मी के बाकी दिन प्रेम रस में भीगकर आसानी से कट जाएँगें वरना लग रहा था कि "और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी"। हर शे’र के लिए ढेरों दाद
जवाब देंहटाएंमखमली एहसासों से सजी खूबसूरत गज़ल के लिये सुलभ को बहुत बहुत बधाई} उसने अर्श से ले कर फर्श तक प्रीत की जो माला पिरो कर अर्श को पहनाई है वो उम्र भर यूँ ही इस माला से सुशोभित रहे। अर्श और माला की तस्वीर बहुत सु8न्दर है दोनो को ढेरों आशीर्वाद।कंचन किस सफर पर जा रही है ये तो नही जानती मगर उसे भी ढेरों आशीर्वाद,हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमाताओं का शुक्रिया तो वैसे भी नही देते ना ?? :) :)
हटाएंअर्श और माला अर्श से फर्श तक यूं ही छाये रहें ,मुस्कातें रहें . अच्छी प्रस्तुति .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंबुधवार, 20 जून 2012
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
क्या गड़बड़ है साहब चीनी में
http://veerubhai1947.blogspot.in/
और फिर इंतज़ार का फल मीठा होता है और यही हुआ भी ! ब्लोग की छटा आसाढ महीने की तरह ही है... गुरु देव ने इस तरही को हम दोनों के लिये जिस तरह से तोहफ़े मे दिया है उसके लिये मेरे पास कोई शब्द नहीं है... निश्चित तौर पर सुलभ की इस ग़ज़ल ने चौंका दिया है... यह ग़ज़ल बता रही है की सुलभ कितनी मेहनत कर रहा है ! श्रृंगार रस में डूबे इस ग़ज़ल के लिये बहुत बधाई सुलभ को हम दोनों की तरफ से ! विलम्ब से आने के लिये आप सभी से क्षमा भी चाहूंगा !
जवाब देंहटाएंसादर
अर्श
बहुत सारी शुभकामनाएं देख कर दिमाग ठनका और एयरपोर्ट पर जब मोबाइल से एफबी चेक किया तो वही हुआ था, जो सोच रही थी।
जवाब देंहटाएंपढ़ने के बाद अगर कोई भी व्यक्ति आँखें नम होने से खुद को रोकने में सक्षम हो सकता, तो शायद मैं भी हो जाती।
इतना स्नेह उत्तरदायित्व बढ़ा देता है आपका। ये स्नेह, ये आशीष बनाये रखियेगा गुरुवर सह अग्रज, शायद कुछ कर ही गुज़रूँ।.. अपने किये तो कुछ होता नही मुझसे।
सुलभ ने चौंका दिया ...एकदम से चौंका दिया ! जीयो ! बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है प्यारे...ये मिसरा इतना आसान भी नहीं था जितना गुरूदेव बता रहे... क्योंकि पूरी ग़ज़ल में एक हिन्दी मूड को बरकरार रखना है....बहुत अच्छे सुलभ !
जवाब देंहटाएंसुलभ एक बहुत सुंदर ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करो
जवाब देंहटाएंऔर
कंचन अल्लाह तुम्हें दुनिया की सारी कामयाबियाँ दे
जवाब देंहटाएं♥
बंधुवर सुलभ जायसवाल जी
नमस्कार !
अच्छा लिखा है … बधाई !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार