इस बार का पूरा तरही मुशायरा प्रेम पर केन्द्रित है । और उसके ही लिये इस बार का मिसरा प्रेम की चाश्ानी में पगा हुआ दिया गया है । हालांकि इस बार भी एकवचन तथा बहुवचन को लेकर कई मेल प्राप्त हुए हैं । सो बात वही है कि यदि आप एकवचन में लिखना चाहें तो लिख सकते हैं । जिस में आप अपने आप को सहज मेहसूस करें । हालांकि एकवचन में लिखने में बस एक दिक्कत है कि उसमें मिसरा ए तरह पर गिरह नहीं लग पायेगी । क्योंकि मिसरा ए तरह में अल्पनाएं हैं जो कि बहुवचन के रूप में लिया गया है । मगर यदि आप एकवचन में लिखते हैं तो फिर ये भी आपको ही करना है कि आप अब इस मिसरे को किस प्रकार से सजाते हैं कि ये एकवचन में प्रयुक्त हो जाये ।
प्रेम का हमारे जीवन में स्थान कितना रूखा हो गया है कि हम प्रेम की कोमलता समझ नहीं पा रहे हैं । जैसे इस बार के मिसरे को लेकर एक मेल मिली कि 'इस बार के मिसरे में प्रिये शब्द भर्ती का है ' । पहले तो बहुत गुस्सा आया । गुस्सा इस बात पर कि प्रेम में प्रिय भर्ती का कब से होने लगा । फिर लगा कि ये आज का प्रेम है जिसमें संबोधनों के सौंदर्य से प्रेम परिचित ही नहीं है । इस मिसरे में सबसे सुदंर शब्द 'प्रिये' है । परिमल काव्य में संबोधन की कोमलता छंद में शहद भर देती है । लेकिन अब तो परिमल काव्य बीते जमाने की बात हो गये । तो बात चल रही थी संबोधन की । इस बार मिसरा किसी को संबोधित मिसरा है । यदि उसमें से प्रिये को हटा दें तो फिर वो सार्वजनिक हो जायेगा । और जो सार्वजनिक होता है वो और कुछ भी होता रहे पर प्रेम तो नहीं होता । प्रेम नितांत व्यक्तिगत मामला होता है । यदि हम इस मिसरे में से प्रिये शब्द को हटा दें तो मिसरा हो जायेगा 'प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं' बात यकीनन पूरी हो रही है । मिसरे का कहने का उद्देश्य ये बताना था कि यहां पर प्रीत की अल्पनाएं सजी हुई हैं । लेकिन फिलहाल ये मिसरा केवल सूचनाप्रद मिसरा है । अर्थात ये केवल एक सूचना है, समाचार है, खबर है । अभी ये कविता नहीं है । कविता बनाने के लिये इसमें प्रिये शब्द जोड़ना होगा । प्रिये शब्द इसे कविता बना देगा । बात वही है कि हर खबर के पीछे एक कहानी होती है लेकिन खबर और कहानी में अंतर होता है । एक और बात ये कि इस बार का मिसरा कोमलकांत मिसरा है, इसे जब ग़ज़ल में गूंथा जायेगा तो कोमलकांत मिसरों के साथ ही गूंथा जायेगा । मोगरे की वेणी में गेंदा नहीं गूंथा जाता क्योंकि दोनों की प्रवृत्तियां भिन्न हैं । तो इस बार मिसरे में रेशम की डोर लेकर गिरह बांधनी होंगीं । ये प्रेम का मामला है ।
तो फिलहाल के लिये बात ये कि यदि आप 'सजी हैं' के स्थान पर 'सजी है' करना चाहें तो उसके लिये आप स्वतंत्र हैं लेकिन मिसरा ए तरह को आप किस प्रकार गूंथते हैं ये देखने वाली बात होगी । जल्दी करें क्योंकि जून के प्रथम सप्ताह से मुशायरा शुरू करना है ।
और एक जानकारी
बहुत दिनों से इस प्रयास में था कि हिंदी में ग़ज़ल कह रहे ग़ज़लकारों के लिये देवनागरी में ही एक ऐसी पुस्तक हो जिसमें ग़ज़ल से संबंधित सम्पूर्ण तकनीकी जानकारी उपलब्ध हो । उर्दू में तो इस प्रकार की कई पुस्तकें हैं लेकिन हिंदी में कोई सम्पूर्ण पुस्तक नहीं है । इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया हिंदी और उर्दू के साथ साथ ग़ज़ल पर समान अधिकार रखने वाले शायर डॉ आज़म ने । पुस्तक पर वे पिछले दो सालों से काम कर रहे थे । और होते होते ये पुस्तक अब एक मोटे ग्रंथ की शक्ल ले चुकी है । आसान अरूज़ के नाम से प्रकाशित ये पुस्तक हिंदी में ग़ज़ल कहने वालों के लिये एक मुकम्मल ग्रंथ है । जिसमें लगभग सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे और वो भी आसान तरीके से । पुस्तक का प्रारंभ में सीमित संस्करण छापा जा रहा है । पुस्तक को मिलने वाले प्रतिसाद के बाद और प्रकाशित किया जायेगा ।
पुस्तक की जानकारी
नाम - आसान अरूज़ ( ग़ज़ल का छंद विधान तथा तकनीकी जानकारी )
लेखक - डॉ. आज़म ( सुकून, आई-193, पंचवटी कॉलोनी, एयरपोर्ट रोड, भोपाल, 426030, दूरभाष 09827531331)
मूल्य - 300 रुपये, पृष्ठ संख्या – 196 हार्ड बाउंड, ISBN -978-93-81520-02-4
प्रकाशक - शिवना प्रकाशन, पीसी लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, बस स्टैंड के सामने, सीहोर, म.प्र. 466001 दूरभाष 07562405545
vaवह वाह इतनी अच्छी जानकारी के साथ एक तोहफा भी। मेरी पुस्तक तो आज ही वी वी पी करवा दीजिये\ भले ही पिछले दिनो लिखने का क्रम थम गया है लेकिन अभी हार नही मानी फिर से कुछ गुम हुये शब्देकत्रित कर र्5ाही हूँ । क्षमा चाहती हूँ इस बार केवल पाठक ही रहूँग्री। डा. आज़म और शिवना प्रकाशन को बहुत बहुत बधाई। तो पुस्तक का इन्तज़ार करूँ? शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंएक बात कहना भूल गयी भाई ब्लाग पर तस्वीरों मे बहुत जंच रहे हो लगता है मुशायरा अपना असर दिखा रहा है ऐसी मुस्कान यूँ ही नही आती।:सदा ऐसे ही किहुश रहो मेरे भाइ।
जवाब देंहटाएंजी, एकवचन और बहुवचन तो अपने विवेक से बांधना है. विस्तार होता हुआ ये श्रृंखला स्पष्ट और सुरुचिपूर्ण है.
जवाब देंहटाएंडा. आजम साहब की ये पुस्तक बड़े काम की है. शिवना प्रकाशन का ध्येय और संकल्प प्रशंसनीय है
जवाब देंहटाएंजून के आरम्भ में? मर गए! अभी तो चार मिसरे ही हुए हैं.
जवाब देंहटाएं//और जो सार्वजनिक होता है वो और कुछ भी होता रहे पर प्रेम तो नहीं होता. प्रेम नितांत व्यक्तिगत मामला होता है.//
जवाब देंहटाएंपंकजभाईजी, इन पंक्तियों का शाश्वत भाव अभिभूत कर गया.
सही है, विशुद्धता को समझने और फिर हृदयंगम करने के लिये विशुद्ध मनस का होना भी उतना ही आवश्यक है. है न?
सादर
मेरा तो भाषा ज्ञान सीमित है। हॉं हिन्दी, उर्दू, पंजाबी और इंग्लिश छोड़कर विश्व की सभी भाषाओं पर समान अधिकार है (किसी भी भाषा के बारे में कुछ भी नहीं पता)। जितनी हिन्दी आती है उसके अनुसार इस प्रकार के वाक्यों की पूर्णता संबोधन के साथ ही होती है अन्यथा सूचना और संवाद में अंतर करना कठिन होगा।
जवाब देंहटाएंएकवचन करने के लिये एक विकल्प तो यह रहेगा कि इसे 'प्रीत की अल्पना यूँ सजी है प्रिये' कर दिया जाये। अब ये तो शायर को ही देखना होगा कि बहुवचन को एक वचन कैसे करता है।
गुरुदेव प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही मिसरा मिलाने के बाद वाली पोस्ट का इंतज़ार था ...
एकवचन ने काम आसान कर दिया बिलकुल वैसे ही जैसे मो.आज़म साहब ने अपनी किताब से अरूज को आसान कर दिया :)
अब चाहे एकवचन में लिखी जाए या बहुवचन में, बस तरही लिखने का स्वयं से वचन निभ जाए.
जवाब देंहटाएं` AASAAN AROOZ ` KE PRAKAASHAN PAR AAPKO AUR DR. AAZAM KO BADHAEE AUR SHUBH KAMNA .
जवाब देंहटाएंएक वचन में कहने की सहूलियत का ही तो इंतज़ार था. अब शायद मैं भी कुछ कह सकूँ.
जवाब देंहटाएंअपने कों तो दोनों ही वचन चलेंगे ... जब सात वचन हो गए तो दो की क्या बात है ... हा हा ...
जवाब देंहटाएंगर्मी का महीना इस बार प्रेम की अल्पनाएं सजाते हुवे बीतने वाला है ... मज़ा ही आ जायगा ... और किताब की प्रति कैसे मिल सकती है इसका खुलासा जरूर करें ...
I want this book. How can I get it.
जवाब देंहटाएंगुरुदेव टिप्पणियाँ फिर स्पैम में जा रही हैं लगता है ...
जवाब देंहटाएंगर्मियां में प्रेम की ठंडी बुहार शुरू होने वाली है कुछ ही दिनों में ..
जवाब देंहटाएंआहा ... मज़ा आ जायगे इस बार ...
गुरूजी
जवाब देंहटाएंगज़ल भेजने की अंतिम तिथि क्या है?
"और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी"
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