बुधवार, 7 मार्च 2012

बिल्‍कुल टैम नइ है ये फाइनल होली है रइ हेगी । उदर देस भर के किन्‍नर हमारे शहर में आये हैं किन्‍नरों का राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन चल रया है । चा करें चा मर जाएं काम कर कर के ।

सब लोग लुगाइन को चूसित किया जाता है कि भड़भड़ी जान घुस्‍से की भौत तेज है । कोई भी मिजाक विजाक नी करे । भभ्‍भडी़ जान को मिजाक पिसंद नी है।   तो मिजे इस बात पे घुस्‍सा कल से आ रिया था कि । कौन कौन ने मिझे कल किंकौरी मारी, मेरी बीड़ी चुराई । आज एसा कुछ नी होना चइये । सिमझे ।

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अश्विनी रमेश

चों री ऐसे सराफत से चों खडी है । होली पे आई है कि किसी की शोक सभा में आई है । इत्‍ती मोटी गरदन हो गई है बैल जैसी पर अकल कोड़ी की नी आई । अब मेरा मूं चा देख रइ है सुना दे जो सुनाना है । सारे सरोता आ गय हैं । कब सुनायेगी ।
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल जमाता है
कोई गाली खिलाता है कोई कीचड़ लगाता है
रंगे होली  रंगों में सभी रंगते यहाँ तो हैं
कोई ढोलक बजाता है कोई गाना सुनाता है
ये पिचकारी है रंगों की बरसतीं झूम कर जब ये 
नहीं मंजर भला किसको सुहाता है लुभाता है
नज़ारा ये अनोखा है निराला है समां रंगीं
रंगों में रंग गये सब हैं खुशी की  रंगशाला है
बहारें हैं बसन्ती शोख ये मौसम अजब ही है 
भला रंगों में रंगने का नहीं दिल किसका करता है
बड़े महंगे से रंगों की वो होली छोड़ देंगे हम
के अब मिट्टी के रंगों का हँसी रंग देख् लगता है
गरीबों संग मना कर देख ये लुत्फे होली तू एक दिन
खुशी का ही खुमारे रंग  कैसे दिल पे चढ़ता है
रंगे होली बसन्ती रंग पहने आई दुल्हन सी 
मज़ा इसकी रंगीनी का बहत दिल शाद करता है !!

अरी ये कां से ले आई । चा सुना रई है किसीको समझ में ही नी आ रिया है । चल हीट तो ले माइक के सामने से । हीट झल्‍दी हीट नइ तो पेले ही दिन किन्‍नर सम्‍मेलन का सत्‍यानाश हो जायेगा । सूचना - किन्‍नर सम्‍मेलन में पधारे सभी लोगों को सूचित किया जाता है कि कोई भी जदी राजनीति छोड़ कर किन्‍नर बनना चाय तो उनका स्‍वागत हेगा, काय कि उनको किन्‍नर बनाने में हमको अधिक मेहनत नइ लगती हेगी, वो तो पेले से ही...। सूचना समाप्‍त भई । चलो कौन है आगे ।

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द्विजेन्‍द्र द्विज और नवीन सी चतुर्वेदी

चों रे तुम दोनों से मैंने कई थी कि दरवाजे पे इ खड़े रेना । तुम यां कां घुसे चले आ रय हो । और ये तलवार कां से लाये । अरे अपना साइज देखो और तलवार का साइज देखो । ए छोटे वाले कमर पे हाथ रख के क्‍या देख रया है तेरे घर में बाप भाई नीं हैं क्‍या । चौं रे तुम दोनों को कई थी कि किन्‍नर सम्‍मेलन में गेट पर खड़े रैने की ड्यूटी है तो अंदर चौं आये । अरी रजिया लगा तो दो इन दोनों को ।  

घड़ी में याँ ठुमकता है घड़ी में वाँ मटकता है
मेरा महबूब है या कोई बे-पैंदे का लोटा है 
वो हथिनी है तो है, पर उस का चेहरा चाँद जैसा है
वो जब साहिल पे चलती है, समंदर भी उछलता है
बहुत सम्मान देता है रिवाजों को मेरा बलमा   
मुहूरत शोध कर ही वो मेरे नज़दीक आता है
बहुत ही ध्यान रखता है सफ़ाई का मेरा चिरकुट 
मुझे मिलने से पहले वो पसीनों से नहाता है
उसे लगता है बस उल्लू पे ही आती हैं लक्ष्मी माँ
बस इस कारन से ही वो बावला 'उल्लू का पट्ठा' है
नया फैशन बयानों का चला है जैसे दुनिया में
"कोई जूते जमाता है कोई चप्पल चलाता है"

चों रे ये किसकी बात कर रया है तू कि घड़ी में यं ठुमकता है, घड़ी में वां ठुमकता है । चौं रे पेले ही बता दी थी कि कोई भी पालीटिक्‍स पे बात नी करेगा । तुझे मालुम है नीं की वो हमारे परदेश का पुराना सीएम है वो यां ठुमके चाये तेरे जूपी में जाके ठुमके तेरे को क्‍या । चल निकल ले । गेट पे खड़ा हो जा जाके ।

द्विजेन्द्र द्विज
पिनक जब भाँग की उसके जनूँ को तूल देती है
उसे लगता है हर लैला उसी को फूल देती है
मियाँ मजनूँ  के सर पर इश्क़ जब-जब दनदनाता है
दुपट्टा देख लैला का दिल उसका  छ्टपटाता है
कि जैसे, क़ैद पिंजरे में परिन्दा फड़फड़ाता है,
खटारा-सी किसी टैक्सी का इंजिन भड़भड़ाता है
दुआएँ मन्नतें करता है वो  कस्में भी खाता है
इशारों से बुलाता है रिझाता है मनाता है
जतन करके भी लाखों बात जब  बनती  नहीं दिखती
कोई लैला उसे जब इस तरह पटती नहीं दिखती
तभी गुलफ़ाम चेहरे पर शरारत मुस्कुराती है
फिर इस अन्दाज़ से मजनूँ की हसरत चैन पाती है
दबी ख़्वाहिश मियाँ  की  एकदम  हाथों पर आती है
चिकोटी काट कर वो इश्क़ का इज़हार करता है
हदें शर्मो-हया की इस तरह वो पार करता है
सड़क पर जब मियाँ मजनूँ का ईमाँ डगमगाता है
तो लैला के किसी भाई का  चेहरा तमतमाता है
यही अंजाम होता है  यही सौग़ात मिलती  है
जुनूँ में बस मियाँ मजनूँ को ये ख़ैरात मिलती है
हर इक होली पे मजनूँ से यूँ मुक्का-लात होती है
जब अपना ही तमाशा यूँ मियाँ मजनूँ बनाता है
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल जमाता है
पिनक में भाँग की मजनूँ मियाँ यूँ चैन पाता है

चौंरे तू तो अच्‍छा था रे । गजल वजल लिखता था । तुझे क्‍या हो गया मुन्‍ना जो तू हदें पार करने लगा । सुन रे गुड्डू तेरे को तो चशम विश्‍मा लगा था नी, तेरा चश्‍मा कैसे हीट गया रे । चौं रे बताय नी क्‍या हो गया है । सूचना - किन्‍नर सम्‍मेलन में आये हुए एक किन्‍नर को कोई लड़की सिमझ के भगा ले गया है । इससे पहले की 'सच का सामना' हो वो किन्‍नर को सही सलामत छोड़ जाये । सूचना समाप्‍त भई । चलो कौन है री आगे ।

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नाम  - फरमूद इलाहाबादी
सम्प्रति - दूरदर्शन केन्द्र में इंजीनियर

चौं री तू तो पेली बार आ री हेगी । इससे पेले तो नी दिखी कभी किन्‍नर सम्‍मेलन में । क्‍या अभी बनी है किन्‍नर । किसने बनाया , अच्‍छा इलाहबाद वाली वीनस जान ने बनाया है । देख री उसके साथ जियादा मत रेना । वो एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज ऊपर वाला भी अभी ढूंड ही रया है । चल अब आ गइ है तो सुना । अरी शरमा मत ।

भरस्टाचार नेताओं को ये दिन भी दिखता है
कोंई जूते जमाता है कोंई चप्पल लगता है
मेरा माशूक खूने दिल कि लीपिस्टिक लगता है
तभी तो मक्खियों का झुण्ड मुंह पर भिनभिनाता है
वतन से जो वफादारी की कसमें खूब खाता है
सुना है हमने स्विट्ज़रलैंड में उसका भी खाता है
ये मत समझो कि मच्छर रात दिन हमको सताता है
हकीकत में वो हमसे खून का रिश्ता निभाता है
मियां की वल्दियत जो है वही बीवी कि लिख डाली
चुनाव  आयोग तो वाईफ को भी सिस्टर बताता है
कुड़ी है या कि उसका भाई हो जाता है कन्फ्यूजन
जवां सरदार अपने बाल जब छत पर सुखाता है
मियां फरमूद अब हो जाओ होमो सैक्चुअल तुम भी
किरण लड़की पटाती है मदन लड़का पटाता है

चों री ये मकता किन्‍ने लिखवाया तुझसे ऐसा भयानक । अरी अभी तो  कोर्ट और सरकार में ही जूतम पैजार चल री है इस भिषय में । तू कायको बरैया के छत्‍ते में हाथ दे रई है । चों री तू तो इलाहाबाद की है इधर भोपाल की नी है फिर तेरे में ये गुण किदर से आया री । सूचना - कल्‍लू पठान ने फरमूदा जान के मकते तो तकते हुए सौ रुपये इनाम में हेड़ के दिये हेंगे । कल्‍लू पठान को सारा किन्‍नर मंडली सुकरिया करता हेगा । और कल्‍लू पठान से निभेदन है कि मकता ही ऐसा है, फरमूदा ऐसी नई है । चलो री अब कौन है ।

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गिरीश  पंकज
चौं री तेरा काम एक नाम से नइ चल रया था जो तूने दो दो रख लिये । अब बता कौन से नाम से बुलायें तुझको । छत्‍तीसगढ़ से आई है तो हम चा करें, तेरी जैसी छत्‍तीस देखी हैं भभ्‍भड़ी ने । गिन के छत्‍तीस लगाऊंगी ना तो काली बिलौटी को भूल जायेगी । चल अब सुना क्‍या सुनाना है ।

वो मजनूं का भतीजा है, हमेशा मार खाता है
''कोई जूते लगाता है, कोई चप्पैल जमाता है''
वो होली पर मिला हमसे मगर क्या रंग मैं डालूँ
भला काले पे काला रंग भी कब रास आता है
किसी के हुस्न पर उसकी नज़र अक्सर बुरी देखी
सियासी आदमी से हर कोई दूरी बनाता है
वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है
बिना खाए बेचारा एक पल भी रह नहीं सकता
न हो रिश्वत का मौक़ा तो सभी की जान खाता है
यहाँ जो भ्रष्ट है जितना वही 'अन्ना' का चेला है
जो 'घपलू' है सभाओं में वही 'पपलू' बिठाता है
वो हीरोइन भी गाँधीवाद के रस्ते पे चलती है
उसे तन पे अधिक कपड़ा नहीं बिलकुल सुहाता है
सुना है उसका सौहर है बड़ा अफसर तभी तो जी
हमेशा घर पे मैडम के मुफ्त का माल आता है
वो बचपन से हमेशा झूठ कहने में ही माहिर था
वो अपनी बस्ती का अब तो बड़ा नेता कहाता है
हमेशा लूटने की इक कला में वो लगा रहता
कभी घर पर कभी इज्ज़त पे डाका डाल आता है
वो है इक 'आदमी' जिसको यहाँ सब 'आम' कहते हैं
मगर वो 'आम' तक भी गर्मियों में खा न पाता है
ये दुनिया मसखरो की है समझ में बस यही आया
यहाँ है दर्द में कोई तो दूजा मुस्कराता है
है पंकज नाम उसका आम है इंसान बेचारा
जो अक्सर टूट जाते हैं वही सपने सजाता है

चौं री ये होली की कविता है कि और कुछ है । आम आदमी, आम आदमी अरी क्‍या कर रई है सब सरोता भगायगी क्‍या । चल निकल ले ।

सूचना : अब आने वाली चार प्रस्‍तुतियां शालीनता से सुनी जाएं । होली को लेकर ये  प्रार्थनाएं हैं जो सुहागन बहनो द्वारा ईश्‍वर से की जा रहीं हैं । हमारा सौभाग्‍य है कि हमारे मंच पे ये आईं हैं । इन प्रस्‍तुतियों तक छिछोरापन रोकते हुए हम भी शालीन हो रहे हैं ।

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रजनी नैय्यर मल्होत्रा

रजनी जी ने कुछ दिनों पहले चुनाव लड़ा था । ऐसा उन्‍होंने मुझे फोन पर बताया था । लेकिन उसके बाद चुनाव का परिणाम क्‍या आया ये नहीं बताया । लेकिन नहीं बताने से ये पता चल गया कि चुनाव परिणाम क्‍या रहा । हालांकि मुझे ये भी नहीं पता कि उन्‍होंने कौन सा चुनाव लड़ा था । किन्‍तु अब पूछने से फायदा भी क्‍या है ।


कोई   जूते  लगाता  है, कोई  चप्पल   जमाता है,
कोई  झाड़ू  ही खाता  है,  कोई  बेलन     खाता  है 
कोई   तो रंग लगाता   है,      कोई   भंगिया   चढ़ाता  है ,
कोई   बिरयानी खाता  है,   कोई  पकवान खाता है 
कोई   गोबर  लगाता  है,  कोई   कीचड़   नहाता है ,
कोई   देशी चढ़ाता    है, कोई    इंग्लिश  चढ़ाता है 
कोई   यूं फाग  गाता  है,    कोई   ठुमका  लगाता  है ,
कोई    कपड़े   फडा़ता है,   कोई    पीट   जाता    है 
भरे    फागुन   कोई बूढ़ा,        मुझे   देवर  बताता  है 
कोई   साली  बुलाता    है,  कोई  भाभी  बुलाता   है,

इस बात को लेकर एक उच्‍च स्‍तरीय समिति बिठा दी गई है कि जो कुछ ऊपर रजनी जी ने सुनाया है उसे क्‍या कहा जाये । क्‍या ये गजल है । क्‍या ये कविता है । क्‍या ये छंदमुक्‍त है । ये क्‍या है । धन्‍यवाद रजनी जी आपने अठहत्‍तर श्रोता मार भगाये हैं ।

इस्‍मत जैदी दीदी

इस्‍मत दीदी का और मेरा इस बात पर झगड़ा हुआ कि वे होली पर कुछ भी नहीं लिख रहीं थीं । पर मैंने अपने भाई होने के अधिकार का उपयोग करते हुए उनसे एक कविता निकलवा ली है ।

है होली रंगों का त्योहार
ये रंग बाँटे हैं सब में प्यार
न इन में द्वेष घोलना
ये सुंदर भावों का संचार
ये इक दूजे की है मनुहार
न इन में द्वेष घोलना
है होली नफ़रत से इंकार
दिलों के बीच न हो व्यापार
न इन में द्वेष घोलना
ये पिचकारी वो प्रेम की धार
गिरा दे नफ़रत की दीवार
न इन में द्वेष घोलना
नहीं हैं केवल ये बौछार
हैं इन रंगों के अर्थ हज़ार
न इन में द्वेष घोलना

एक बार फिर से समिति चक्‍कर में पड़ गई ही कि ऊपर सुनाई गई वस्‍तु को क्‍या कविता कहा जाय या कुछ और । मगर चूंकि एक स्‍थापित शायरा ने ये रचना कही है तो ग़जल कहने पर दो सदस्‍यो की बात सामने आई है । अगली होली तक हम इस बात का फैसला कर लेंगें कि ये क्‍या है । फिलहाल । हे हे हे ।

सूचना - इस्‍मत दीदी और फरमूद भाई का इस मुशायरे में होना इस बात का सुबूत है कि लाठी मारने से पानी नहीं कटता । हमारी संस्‍कृति सांझी है । हमारी विरासत सांझी है । पूरा सदन खड़े होकर इन दोनों के सम्‍मान में तालियां बजा रहा है ।

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लावण्या शाह दीदी साहब

इनके बारे में पहले से ही बता दिया जाता है कि कोई भी इनकी कविता को समझने की कोशिश नहीं करे । क्‍योंकि इनको खुदको ही अपनी कविता समझ में नहीं आती है तो दूसरों की क्‍या कहें । उनका होना हमारे मुशायरों में एक आशीर्वाद की तरह होता है । सो आइये सुनें ।

मनाओ मनाओ जी खेलो रंगों से होली 
सुनाओ सुनाओ जी कोयी  ठिठोली
सुना है कि आजकल के लडके निडर हैं
पर आजकल की कन्या भी बड़ी चतुर हैं
छेड़ोगे कुडीयों को तो क्या पाओगे जी ?
कोयी चप्पल गालों पे जमाता मिलेगा
कोयी गालों को अपने सहलाता दीखेगा
कोयी जूते लगाएगा  बचके रहना जरा 
होली में आपका न बन जाये  जी भुरता
सभी को होली की हार्दिक  शुभकामनाएं

आपको समझ में आई नहीं आई । कोई बात नहीं हम भी अभी समझने की कोशिश कर रहे हैं । जैसे ही हमें समझ में आयेगी हम आप सबकों संदर्भ सहित व्‍याख्‍या कर देंगे ।

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शार्दूला नोगजी दीदी

परम आलसी बड़ी बहन के आगे छोटे भाइयों की सारी कोशिशें हार जाती हैं । आलस मनुष्‍य का शत्रु है कह कह कर हार गये लेकिन सुनने वाले के कान पर जूं भी नहीं रेंगती है । सिंगापुर को आलसियों का देश बना देने का संकल्‍प लेकर जुटी हुई हैं ।

कभी जब वक्त बन्दे का बड़ा मनहूस आता है
तभी ओले बरसते हैं, मुंडाता जब वो माथा है 
जिधर मेरी उधर तेरी ये लूना काहे जाती है
हुआ ये जैसे मन्नू देश को टो में चलाता है
गिला हो आपसे क्या आप तो वैसे भी टकलू हैं
जहाँ ना केश उपजें  वां कोई अक्कल उगाता है!
अमां वो बात दूजी है झगड़ के ट्रेन में चढ़ना
सिमट के प्लेन चढ़ने में मज़ा क्या ख़ाक आता है!
नवाबों की नज़ाकत "आप", "पहले आप" चलती है
बिहारी झट से खाली सीट पे कब्ज़ा जमाता है
बहुत दिन से रंभायल जा रहा ये प्रश्न कानों में
है कहती भैंस क्या भैंसे से मिलने जब वो आता है
नज़ाकत औ' नफ़ासत उस गधे की देख तो लालू
जो चारा उसका होता है उसी पे मूँ लगाता है
खुली जो पोल नेता की तो देखा एक दिन साहब
कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है
रसीले होठ तेरे पर कटीली बात तेरी है
कि जैसे रेशमी धागा कलाई काट जाता है
जमाले-हुस्न की चिंता तो नक्को खेलना होली! 
बड़ा जिद्दी सिहोरी रंग महीनों तक न जाता है
नहीं भभ्भड़ सा कोई भूत है बदमाश दुनिया में
लटक कर ढाक से होली में ये हज़लें सुनाता है
जवाबी हाज़िरी तेरी, मेरी हाज़िर जवाबी है
मुझे जो दाद मिलती है तो काहे ख़ार खाता है !

मुच्‍ची बात कहूं तो सुंदर निकाली है गजल तो । जरो सोचिये कि आलस आलस में ऐसी गजल कह दी है तो जदी सच्‍ची में लिखेंगी तो कैसा लिखेंगी । अति सुंदर ।

तो बहनों को भाई दूज के दो दिन पहले प्रणाम करते हैं कि अपना आशीष बनाये रखें । और अब हम वापस अपनी औकात पर आते हैं ।

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नीरज गोस्‍वामी जी  और राकेश खंड़ेलवाल जी

अरी हमीदा जरा ला तो री मेरा सोंटा, अभी बताऊं इन दोनों को । अरी ये किन्‍नरों का सम्‍मेलन चल रिया है कोई शादी ब्‍याह का टैंट नइ है । चों रे तुम दोनों कां से आ रिये हो इदर में । अरी बिब्‍बन मैं तो लुट गई बरबाद हो गई । आज तक ऐसा नहीं हुआ था री कि हमारे समाज में कोई शादी बियाह कर ले । पर दोनों ने तो मेरी नाक ही कटवा दी । अरी कटोरन लगा तो दो झाड़ू दोनों को ।

नीरज गोस्‍वामी जी
हुआ जो सोच में बूढा उसे फागुन सताता है
मगर जो है जवां दिल वो सदा होली मनाता है
अपुन तो टुन्न हो जाते भिडू जब हाथ से अपने
हमें घर वो बुला कर प्यार से पानी पिलाता है
उसे बाज़ार के रंगों से रंगने की ज़रूरत क्या
फ़कत छूते ही मेरे जो  गुलाबी होता जाता है
हमारे देश में कानून तो है इक मदारी सा
तभी वो बेगुनाहों को बंदरिया सा नचाता है
गलत बातों को ठहराने सही हर बार संसद में
कोई जूते लगाता है कोई चप्पल चलाता है
सियासत मुल्क में शायद है इक कंगाल की बेटी
हर इक बूढा उसे पाने को कैसे छटपटाता है
बदल दूंगा मैं इसका रंग कह कर देखिये नेता
बुरे हालात सी हर भैंस पर उबटन लगाता है
बहुत मटका रही हो आज पतली जिस कमरिया को
उसे ही याद रख इक दिन खुदा कमरा बनाता है
दबा लेते हैं दिल में चाह अब तुझसे लिपटने की
करें कितनी भी कोशिश बीच में ये पेट आता है
सुनाई ही नहीं देगा किसी को सच वहां "नीरज"
तू क्यूँ नक्कार खाने में खड़ा तूती बजाता है

हां रे अब तो तूती बजाने की बात करेगा ही करेगा । अरी ममता कां गई री हटा दोनों को मेरे आगे से । अरी ऊपर वाले से डरो री । सूचना - घायल जान के नाच पर जो बीरू पान वाले जी द्वारा सौ सौ के नोट लुटाये गये वे सब नकली निकले हैं । बीरू भाई से निभेदन है कि असली नोट खीसे में नइ हों तो कलटी मार लें ।

राकेश खंडेलवाल जी
ये मौसम मस्तियों का इक बरस के बाद आता है
सुबह होते ही हर कोई बड़ा अन्टा   चढ़ाता है
तमन्ना है  गली में जाके उससे  रंग खेलें हम
मगर कम्बख्त कुत्ता है कि  झट  से काट खाता है
गए सीहोर तो उम्मीद थी हलवा -ए-  गाजर की
वहां हलवाई अब केवल समोसा ही बनाता है
कचहरी का बड़ा मुंसिफ़ बड़ा आलिम है देखो तो
किया जो फ़ैसला, उसपर अंगूठा ही लगाता है
ये संसद है कि बस्ती मोचियों की कोई बतलाये
कोई चप्पल जमाता है कोई जूता चलाता है

सूचना - इनका एक अति लम्‍बा गीत और है जो स्‍थानाभाव के कारण यहां नहीं दिया जा रहा है उसे आप आज जारी होने वाला पत्रिका में पढ़ पाएंगे ।

अरी किन्‍नरों के सम्‍मेलन में गाजर का हलवा की उम्‍मीद लेकर आई है । अरी यां जो समोसा मिल रा है उसे ही भकोस ले । सूचना - कल्‍लो कटारी की जुल्‍फों के चक्‍कर में रम्‍मू ठेले वाले घनचक्‍कर हो गये हैं । रम्‍मू जी से निभेदन है कि कल्‍लो कटारी ने अपना विग निकाल के रख दिया है वे हजार रुपये जमा करवा के कल्‍लो की जुल्‍फें प्राप्‍त कर सकते हैं ।

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तिलक राज कपूर जी समीर लाल ’समीर’ जी

अरी आज तो मेरे सम्‍मेलन की जिसे देखो वो इ वाट लगाने पर तुला है । अरी ये कां से आ गई शादी करके । अरी मैंने सबको समझाया था कि अपना काम नाचना गाना है शादी बियाह करना नहीं । सबको सम्‍मेलन में आने से पेले समझाया था पर नी मानो तो भाड़ में जाओ ।

समीर लाल ’समीर’ 
कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है
मगर दीवानगी देखो वो फिर भी रंग लगाता है...
ये है त्यौहार होली का, अजब है हाल लोगों का
कहीं पर भर भांग की मस्ती, कोई दारु पिलाता है.
जिन्हें छूना नहीं संभव, मय्यसर स्वपन में भी था
उन्हीं को घेर लेता है,  वो खुल के  रंग लगाता है.
निकलती टोलियाँ कितनी, नगाड़ों पर लगा ठुमके
कहीं गुजिया की खुशबू है, कोई मठरी खिलाता है. 
वतन से दूर बैठा मैं, सभी को याद करता हूँ
है होली आज जब सोचूं,  तो पूरा भीग जाता हूँ....

मुच्‍ची कई रे । मुच्‍ची कई । देश से दूर होकर ही पता चलता है कि देश क्‍या है । पर फिकर मती करे । इक दिन सब मिल जाएंगे । सूचना - शिल्‍पा आठकली के नाच पर बिश्‍नू बंजारे ने एक बकरी देने की घोसना की है । घोसना को किन्‍नर लोग नइ मानते, घोसना को केवल जनता मानती हे । बिश्‍नू बंजारे से निभेदन है कि बकरी को लेकर मंच पर आयें और अपने कर कमलों से शिल्‍पा को सौंपे । पुन्‍न प्राप्‍त करें ।

तिलक राज कपूर
तरही हज़ल
नये युग का हरिक मजनूँ, यही ईनाम पाता है
कोई जूते लगाता है, कोई चप्प ल जमाता है।
गली में झॉंकते तेरी, कलेजा मुँह को आता है
जहॉं देखूँ, वहॉं बैठा, तेरा अब्बाह डराता है।
समझता कुछ नहीं लेकिन, हर इक छोरा घुमाता है
सरे बाज़ार सल्लू को तेरा अंकल बताता है।
गुलालों से भरी थाली लिये जब कोई आता है
गले मिलने का मौका फिर कहॉं कोई गँवाता है।
भरा था हर कहीं ज़ुल्फ़ों  भरा ये सर मेरा लेकिन
हज़ामत के समय हज्जाम अब चश्मा लगाता है।
तकाज़ा उम्र का शायद यही होता है शह्रों में
बदन इक ढेर चर्बी का बना बढ़ता ही जाता है।
करो शादी बड़े ही शौक से बेटा मगर सुन लो
ये रिश्ताब उम्र भर फिर बोलने का हक़ छुड़ाता है।
नयी साड़ी की ख्वाहिश गर कभी पूरी न कर पाऊँ
मुझे रोटी मिले सूखी औ कुत्ताश केक खाता है।
सफ़ेदी आ गयी बालों में, गालों की चमक गायब
मगर दिल है जवॉं, आईटम दिखे तो आ ही जाता है।
बुढ़ापे की जवानी का नशा छाया है अफ़सर पर
अगर आये न स्टैननो तो दिन भर कुड़कुड़ाता है।
पड़ोसी के सवालों की शरारत पर कहे 'राही'
कहॉं अब खाट प्या रे बस बदन ही चरमराता है।

तरही हज़ल-2
हुआ मुँह पोपला उसका, बदन भी पिलपिलाया है
मुआ मरदूद लेकिन आज भी सीटी बजाता है।
हुए शादी को पच्चिस साल तब ये होश आया है
करी जिसने भी ये ग़लती, सदा का सुख गँवाता है।
बहुत नाज़ो अदा से फ़ोन पर उसने बताया है
लगी है सेल जिसमें लुट रहा साड़ी-खजाना है।
पहन 'रूपा' के अन्तसर्वस्त्र  वो गदहे पर आया है
कभी सन्नील कभी सलमान बन डौले दिखाता है।
शरारत वो कभी ऐसी करेगी ये न सोचा था
मगर गुझिया में गोला भॉंग का उसने खिलाया है।
किया आगाह पंडित ने, हमेशा, बाद फेरों के
लगे कड़वा लगे मीठा, तुझे बस मुस्काराना है
हुए जब चार दिन शादी किये वो प्यातर से बोली
उठो जानम तुम्हें  ही आज से खाना बनाना है।
कहा बीबी ने होली पर उसे है मायके जाना
मगर हमने न बतलाया कि साली को बुलाया है।
रकीबों औ रफ़ीकों से नहीं रिश्ताल बचा 'राही'
गया वो काम से, दिल आपसे जिसने लगाया है

सूचना इनकी कुछ और रचनाएं भी आपको होली की पत्रिका में मिलेंगीं ।

अरी बस कर बस कर कित्‍ती सुनायेगी । सुनाती ही जायेगी क्‍या । अरी रूपा के अर्न्‍तवस्‍त्र की तो बात ही तूने क्‍या के दी है । अरी कां से लाती है तू ये सब बातें । अरे मैं तो भूली तू भी तो भेपाल में ही रैती है । सूचना - दामोदर दूध वाले की गाय ने इदर हमारे किन्‍नर सम्‍मेलन में पटना से आई पट्टो पटवारिन को सिंगवा मार दिया है । दामोदर दूध वाले अपनी गाय संभाले कर रखें । ई किन्‍नर सम्‍मेलन है हमारा देश नहीं है कि चाहे जो सिंगवा उठाये चला आये ।

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सौरभ पाण्डेय जी

तो ई हाथ बांधने से कुछ नहीं होले वाला है मुनिया । झां पे कविता उविता सुनानी पड़ती है । झां पे इस सबसे नहीं होने वाला । अरी सुसुर तू भी तो ऊ वीनस जान के शहर से आई है । अरी कै रइ हूं तुम सबसे कि दूर रओ उससे । मत मानो हमें क्‍या है ।

कोई जूते लगाता है, कोई चप्पन जमाता है
हुए हम फागुनी वाहन, मगर सीधे न जाना है
बड़ा दिलचस्प फागुन है मताये इस कदर हैं हम
जिसे समझे थे कंठाहार, पैजामे का नाड़ा है
ये जाने प्यास क्या मेरी पिलाओ पर नहीं जाती
भला महुए की जय बोलो वो जाने क्या पिलाना है
सुशीला है, सुमोही है, सुनयना नाम से सुन्दर
हसीं हर खास के आगे सुनो ’सू-सू’ बनाना है
बसंती है फ़िजां चुलबुल, कि मौसम गुदगुदाता है
औ’ उसपे भांग की बूटी करेला-नीम नाता है
लहर उठती है दरिया में, उसे कुछ-कुछ क्यूँ होता है
चढ़ा ऐनक, लगा ली दाँत, जताने क्या नज़ारा है

चों रे तुम इलाहाबाद वोल पजामे के पिच्‍छू भोत पड़ रहते हो अर्ज किया है धोती ने कहा पजामे से हम दोनों बंधे हैं धागे, है फर्क तो केवल इतना है तूपीछे से मैं आगे से । सूचना - अभी नशीली नीलो की नाच पे किसी ने फूल फैंका है । चूसित किया जाता है कि फैंकना है तो गोभी के फूल फैंके ताकि सम्‍मेलन में एक टैम की सब्‍जी बन सके ।

सूचना - किन्‍नर सम्‍मेलन में आये हुए किन्‍नरों के नहाने से जो जल प्राप्‍त हो रहा है उसे नगरपालिका की तरफ से बोतलों में बंद करके बेचने की व्‍यवस्‍था की जा रही है । जिन को प्राप्‍त करना है वे एडवांस बुक करें ।

सूचना - कल जिन लोग लुगाइन ने दाद नहीं दी है वे आज दाद दे जाएं । हम किन्‍नर सम्‍मेलन में ये घोसना करते हैं कि जो भी आज ताली नहीं बजाएंगे वो सब अगले जनम में हमारी तरह घर घर जाके ताली बजाएंगे ।

सूचना - आज रात को यश शाम तक होली का अंक जारी हो जाएगा ।

सूचना - होली की सभीको शुभकामानाएं ।

58 टिप्‍पणियां:

  1. हां-हा-हा-हा... बहुत खूब आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाये !

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  2. अद्भुत है आपकी मेहनत. सचमुच दिल से खेली है आपने होली. बधाई. सभी मित्रों को.

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  3. सुंदर और सुहानी होली की सब को मुबारक हो .....
    शर्म से जो आ गई ,उनके गालों पे लाली .
    खुशी में हम से भी ,बज गई हाथों से ताली ||

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  4. होली की चुहल शरारत, किसी को भी चुभी हो या बुरी लगी हो तो क्षमा ।

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    1. जो बुरा मने, वो भांग खा कर गम गलत करे....

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    2. क्षमा मांग कर इस किन्नर-मण्डली को बदनाम न किया जाय की घोषणा तो हो चुकी थी. फिर इस बिल्लले क़ानून को तोड़ने की ज़ुर्रत हुई कैसे ??
      मेरे सवालों का ज़वाब दोऽऽऽ.. .. दो नाऽऽऽऽ !!!

      हा हा हा हा हा..................

      हटाएं
    3. बुरा तो हमका खूब लगा है मगर हमहू गिन गिन के चुन चुन के बदला लिया है
      दरोगा से दरोगई न चली

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  5. हाय दैय्या कैसी बात कर दी...होली पे कोई बात चुभा या बुरी लगा करे है का...मस्ती में जो हो जाय कम है री...आप सभन को होली मुबारक...

    नीरज

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    1. नीरज जी ये एक औपचारिकता है जिसे निभा लेना चाहिये । क्‍योंकि मजाक तो मजाक है हमें पता नहीं होता कि वो कभी कभी कहां चुभ जाये ।

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    2. आये होय ... हमें तो चुभ गई ... बड़ी जोर के चुभी है ... अब इन किन्नरवा में कोई दागदर बाबू है तो ऊ को कहो अभई निकाल दे ...

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  6. उत्तर
    1. अब ई का हो गया ... जोगीरा कौन है ... कोई नया किन्नर है का ...

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  7. पंकज जी सादर, बहुत ही अच्छे ढंग से आपने इस प्रस्तुति को पूर्ण किया ,हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए |
    होली की आपको , और सभी साथियों को हार्दिक बधाई ...........

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    उत्तर
    1. ये पंकज जी कौन हैं भाया... ??????????????

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    2. भाया सकल तो भडभडी जान से मिलती है ...

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    3. रजनी जी,
      इ सारा क्रियाकर्म हमार मतलब है कार्यक्रम आपका हँसाय हंसाय के लोट पोट करय के खातिरे तो किया गवा है
      भडभड़ी जान अप्पने मनोरथ में सफल हुई

      तो रजा बांटो मिठाई

      हटाएं
  8. ये होली का नशा है ... या फागुन की मस्ती ... बस हँसते हँसते पेट में दर्द हो रहा है ... अब इस दर्द का कुछ और मतलब नहीं निकालना ... और निकाल भी लोगे तो हमें क्या फर्क पढ़ेगा ... हा हा ...

    इस यादगार होली की सभी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ...

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  9. हम तो हो गये आपके दीवाने, पंकज भाईजी.. .
    वाह-वाह, क्या मण्डली जमी है, क्या अंदाज़ तारी है !!
    सभी किन्नरों को और तमाशाई/ सामयिन होली की ’सादर’ शुभकामनाएँ !!!

    कोई चटनी चटाता है, कोई सुंघनी सुंघाता है
    जिसे भी देखिये वोही मुआँ ’सादर’ बजाता है !!
    हा हा हा हा हा हा.... :-))))))))))

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    1. हमें भी बजाने का मौका मिलना चाहिए
      सादर :)))))))))))))))))

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  10. तबियत उफान पे आ गई हैं......मियाँ होत के चुके हो......देख लेना अब क्या कल मंगलवारा और शनिवारा के सरदारों का मुकाबला करवाओगे के?

    वाकई, शानदार प्रस्तुतियाँ ऐसे ही के रिया हूँ.....अभी हाल तो केवल टिप्पणियाँ पढ़कर होली का माहौल बना रहे हैं, कल जब चढ़के उतरेगी तो बैठके पढ़ी जायेगी (लेट के पढ़ने नींद भी आ सकती है या......लिखूं या समझ लेओगे)

    होली की पुनश्च रंगभरी शुभकामनायें,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  11. नहीं भभ्भड़ सा कोई भूत है बदमाश दुनिया में
    लटक कर ढाक से होली में ये हज़लें सुनाता है

    - शार्दूला नोगजी दीदी

    ज्जे ब्ब्बात :))))))))))))

    दरोगा प्रसन्न भया

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  12. सबसे पहले -
    अखिल भारतीय ताबड़तोड़ किन्नर मंच में पधारे
    सभी शायर और सभी श्रोताओं को होली की
    रंगारंग बधाई !!!

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  13. भडभड़ी जान के आयोजन में शामिल हो अपना सुध बुध खो चुके हैं कल जो मुझे जूते पड़े स्वाद ऐसा भाया कि आज फिर से खाने अ गए,
    शुक्रिया रमेश जी, द्विज जी, नवीन जी, फर्मूद जी, गिरीश जी.
    और ये होली में विशेष पकवान जो बनाया गया है इसके लिए रजनी जी,
    इस्मत दीदे जी, लावण्या दीदे जी, शार्दूला दीदे जी का आभार!

    और बुढऊ लोग (नीरज जी, राकेश जी, समीर जी, तिलक जी और दादा सौरभ जी) फेर से जवान हो गए इनका विशेष अभिनन्दन .

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    उत्तर
    1. और हाँ
      जोगीरा सर्र्र्रर्र्रररर

      हटाएं
    2. सुलभवा...होली है तो क्या हुआ रे...कुछ भी मजाक करेगा...हैं...ये फिर से जवान हो गए मानी? ये फिर से जवान हो गए वाली बात हमें हज़म नहीं हुई...हमें बाकी इन सब से अलग रखा जाए...बाकी के लोग तो चलो मान लेते हैं आपने सही पहचाने...लेकिन उनके साथ हम?होली है सो छोड़ देते हैं वर्ना बुड्ढा होगा तेरा....

      नीरज

      हटाएं
    3. कहाँ अँगूठा चूस-चूस के पातर किये हम हलकान हुए जा रहे हैं.. ! आ ई कहते हैं ’दादा’..
      न बोल जादा !!
      :-))))))

      हटाएं
  14. इस बार आपके ब्लॉग की ये होली पूरे साल भर तक गुदगुदाती रहेगी...आप की इस विलक्षण प्रतिभा को बारम्बार प्रणाम....(इस प्रशंशा को कुछ लोग होली का मज़ाक समझें तो उनकी मर्ज़ी...हमने तो ये बात होली का टाइम होते हुए भी सिरिअसली की है)

    नीरज

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    उत्तर
    1. क्षिमा करें नीरज जी आपने 'अपने' ब्‍लाग के स्‍थान पर 'आपके' ब्‍लाग लिख दिया है । ई ब्‍लाग सार्वजनिक ब्‍लाग है, ई किसी की कानूनी संपत्ति नहीं है जो 'आपके' ब्‍लाग लिखा जाये । सो किरपया भूल सुधार कर लिखें कि ' इस बार भी अपने ब्‍लाग की ये होली......'

      हटाएं
    2. होली की पिनक में आपका ब्लॉग लिख दिया...कान पकडे जी...भूल चूक लेनी देनी...

      हटाएं
    3. काना पकड़ने से कुछ नइ होगा । कमेंट को फिर से लिखा जाये तब माफी मिलेगी ।

      हटाएं
    4. इस बार अपने ब्लॉग की होली साल भर गुदगुदाती रहेगी...(बहुत कड़क मास्टर है...जब तक दुबारा नहीं लिखवा लेता मुर्गा बनाये रखता है...)

      हटाएं
    5. कोनो कड़क नहीं है । कड़क होता तो पचीस बार लिखवाता । ई तो केवल एक बार लिखाया है ।

      हटाएं
  15. भडभडी जान भौंचकी तो आय हाय रे.... जान लेने पे तुली है... सबकी ... हा हा हा हा

    जवाब देंहटाएं
  16. इस बार की होली पर "साला मैं तो साब बन गया..." लेकिन हमको अपनी ये मूंछ वाली बाब कट बीवी पसंद नहीं आई...अरेंज्ड मेरिज का ये ही एक नुक्सान है...बीवी बावा जैसी हो तो भी निभानी पड़ती है...:-))

    नीरज

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    उत्तर
    1. अब ई उमर में अउर का ढूंड के ला दें ।

      हटाएं
    2. आप मत ढूंढें...हमई ढूंढ लेंगे लेकिन उमर को बीच में न लायें... अभी तो हमारे खेलने खाने के दिन है...आपके पेट में काहे गुब्बारे उठ रहे हैं?

      हटाएं
    3. एक बात का संतोष है...हमको तो मूंछ वाली बीवी मिली लेकिन टकलू बुढाऊ तिलकवा को तो दाढ़ी मूंछ वाली बीवी मिली है....हो हो हो हो...हा हा हा हा हा...ही ही ही ही ही ही...हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे...

      नीरज

      हटाएं
    4. पड़ोसी की बकरी मरनी चइये भले ही अपनी दीवार गिर जाये ।

      हटाएं
    5. ई लो ... गुरुदेव कोई अच्छी फोटू लगाओ तो नीरज जी पूरा घर भी फोड दें ... दीवार की का बात है ...

      हटाएं
  17. प्राण शर्मा जी का मेल से प्राप्‍त आशिर्वाद
    प्रिय पंकज जी ,
    आपकी होली मनाने की बात ही निराली है ! सच में किन्नरों का राष्ट्रीय संमेलन पहली बार देख रहा हूँ . कुछ
    जूते - वूते भी चलते दिखते तो देख कर मज़ा आ जाता . खैर , आपने धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान के होली
    अंकों की याद ताज़ा कर दी है . आपके दिए तरही मिसरे पर ये शेर देखिए -

    भई , ये भी कोई होली मनाने का तरीका है
    कोई जूते लगाता है , कोई चप्पल जमाता है

    सभी किन्नरों को सलाम और होली मुबारक .

    प्राण शर्मा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ई लो ... पतली गली से निकल गए प्राण जी तो ...

      हटाएं
    2. अबीर और गुलालों का जिक्र आया तो
      शरीफ़ लोग उठे दूर जाके बैठ गए

      हटाएं
  18. हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
    अभी तो फोटो देख कर ही हँस रहा हूँ
    मेरे साथ मेरे बच्चे भी हँस रहे हैं
    वाह सुबीर जी, खूब समां बाँधा है आपने

    अब पढ़ता हूँ पोस्ट.....................

    जवाब देंहटाएं
  19. हा हा!! बहुत ही बुरा लगा मगर क्या कर लेंगे...इसलिए हँस दिये....मस्त है जी होली का रंग...

    जवाब देंहटाएं
  20. ए कोई किन्नरों का मज़ाक नहीं उड़ाएगा और हँसेगा तो बिल्कुल नहीं। (हो हो हो, हा हा हा, हू हू हू, हे हे हे, पेट पकड़कर हँसी हः हः हः, लोट पोट कर हँसी हेहा, हेहा, हेहा)। बिना फल वाले पेड़ों की भी जरूरत होती है दुनिया में उनका कोई मज़ाक नहीं उड़ाता। कोई मज़ाक नहीं उड़ाएगा, कोई हँसेगा नहीं। (हा हा हा हा हा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हाहा हा हा हा.................)

    जवाब देंहटाएं
  21. गज़ब का सज्जन इंसान है...ये भांग खा के हंस रहा है या हंस के भंग खा रहा है...

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  22. पी.डी.ऍफ़... फ़ाइल में पास में रहने वालों को बेकार का भाव दिया गया है..जो सरासर नाइंसाफी है...हमें बताया जाय के किस कारण से जाड़िया तिलकवा के चार पांच फोटो उसमें लगाए हैं जबकि ब्लॉग पे एक ही लगाया है...ये मध्यप्रदेश वाद ना चलने देंगे...इस बार तो हाथ मल के छोड़ देते हैं लेकिन अगली होली में कड़ाई से निपटेंगे बता देते हाँ ...

    नीरज

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  23. जे कैसो रंगदार छिन्नट्टा सम्मेलन है रअयो है, किन्नरों के भेष में लोगन कूँ शामिल कियो भ्यो है? सगरे रंगन कौ मजा ले रय्ये हैं और हम ढाडे हैं, सूखे सूखे!पर रंगे भ्ये छिन्न्ट्टा देखबे कौऊ अपनो मजा है! होली की सब छिन्नट्टा और छिन्नट्टियन को रंग भरी बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  24. करनाल साब किसने कहा आप सूखे हैं, गौर से देखिये खुद को आप गिले हो चुके हैं.

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  25. भढभडी ने पता नहीं हमार खातिर इतनी महंगी और सुंदर ड्रेस खरीदने का कष्ट काहे कियो है,अपनी सहेली को पहना दियो होतो तो कितनी खुस होती!हम तो बीडी से जला हुआ जालीदार कुरता वही पहने है तब भी जब अपुन ने बीडी पीना छोड़ दियो है !हाँ भडभडी ने इ जो कहा की हमारी अकल कौड़ी की नहीं उ भी ठीक कहा है काहे कि भडभडी को देखते ही हमार अकल का खाना खाली हो गयो !

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  26. आदरणीय पंकज जी , बहुत खूब होली का मजा दुगना कर दिया आपने हर १ रचना तो बहुत खूब है ही साथ ही आपकी जो प्रस्तुति है वो तो क्या कहने , कई विधाओ को अपने अन्दर समेटे हुए है आप, बहुत बढ़िया मजा आ गया वाह वाह वाह वाह

    जवाब देंहटाएं
  27. अश्विनी रमेश जी ---
    गरीबों संग मना कर देख ये लुत्फे होली तू एक दिन
    खुशी का ही खुमारे रंग कैसे दिल पे चढ़ता है
    वाह वाह क्या बात है अश्विनी जी

    नवीन सी चतुर्वेदी जी --
    घड़ी में याँ ठुमकता है घड़ी में वाँ मटकता है
    मेरा महबूब है या कोई बे-पैंदे का लोटा है
    हे हे हे हे :) वाह वाह

    द्विजेन्द्र द्विज जी --
    पिनक जब भाँग की उसके जनूँ को तूल देती है
    उसे लगता है हर लैला उसी को फूल देती है


    फरमूद इलाहाबादी जी --
    वतन से जो वफादारी की कसमें खूब खाता है
    सुना है हमने स्विट्ज़रलैंड में उसका भी खाता है
    क्या बात है वाह वाह

    गिरीश पंकज जी --
    वो रिश्वत खूब लेता है मगर सबको पचाता है
    सुना है शख्स रोज़ाना ही त्रिफलाचूर्ण खाता है
    हे हे हे हे :) वाह वाह

    शार्दूला नोगजी जी --
    जवाबी हाज़िरी तेरी, मेरी हाज़िर जवाबी है
    मुझे जो दाद मिलती है तो काहे ख़ार खाता है !
    हे हे हे हे :)

    नीरज गोस्वामी जी

    हमारे देश में कानून तो है इक मदारी सा
    तभी वो बेगुनाहों को बंदरिया सा नचाता है

    क्या बात है वाह वाह

    राकेश खंडेलवाल जी
    ये संसद है कि बस्ती मोचियों की कोई बतलाये
    कोई चप्पल जमाता है कोई जूता चलाता है

    वाह वाह


    समीर लाल जी

    वतन से दूर बैठा मैं, सभी को याद करता हूँ
    है होली आज जब सोचूं, तो पूरा भीग जाता हूँ....

    क्या बात है क्या बात है वाह वाह वाह वाह

    तिलक राज कपूर जी

    गली में झॉंकते तेरी, कलेजा मुँह को आता है
    जहॉं देखूँ, वहॉं बैठा, तेरा अब्बाह डराता है।
    वाह वाह वाह वाह :) :))))))

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  28. रचनाओं से उन पर आये कमेन्ट ज्यादा दमदार हैं...क्यूँ न उनकी पी.डी.ऍफ़ फ़ाइल बना दी जाय...मेरा ये विचार विचारणीय है...भंग की तरंग उतरे तब विचारिएगा....

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  29. रचनाओं से उन पर आये कमेन्ट ज्यादा दमदार हैं...क्यूँ न उनकी पी.डी.ऍफ़ फ़ाइल बना दी जाय...मेरा ये विचार विचारणीय है...भंग की तरंग उतरे तब विचारिएगा....

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  30. तपन दूबे जी,
    मेरी गज़ल का शेर पसंद करने और दाद के लिए दिली शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  31. वाह! क्या रंग जमा है होली का। सभी लोगों को प्रणाम.. सबकी रचनाएं एक से एक मज़ेदार और रसीली लगीं।

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  32. तालियाँ ही तालियाँ...तालियाँ ही तालियाँ...तालियाँ ही तालियाँ...

    आसा करते हैं अब सराप (श्राप)नहीं व्यपेगा...

    बाकी तो क्या रंग जमाये...जय हो ,जय हो ,जय हो...

    ऐसा कोई रंग नहीं जो छूटा हो यहाँ...आपादमस्तक रंग से सराबोर कर दिया..

    कहें तो भोत भोत सुकुरिया इस लाजवाब क्रियाकरम के लिए....

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  33. पंकज भाई से तो पहले ही इज़ाज़त ले ली थी 13 मार्च तक अवकाश पर रहने की, और उन्‍हें पूरा अधिकार दे दिया था कि जाक करना कर लो इस हुरियारी पोस्‍ट में, 13 तक कोई टिप्‍पणी नहीं करूँगा।
    अब हाजिर हूँ तो कहने को कुछ नहीं है।
    और ये नीरज भाई को बुड्ढा किसने कहा भाई (ए. के. हंगल की आवाज़ में) हज़ल के शेर देखो जवानी पूरे उफ़ान पर है, ऐसे जवान शेर कोई बुढ़ऊ कह के दिखाये तो मानें।
    बहरहाल मज़ा आ गया।
    प्राण शर्मा साहब भी चुपके से टिप्‍पणी में आ कर 'आ' के काफि़या पर चुपचाप बहुत कुछ कह गये, खुदा इनकी जवानी बरकरार रखे।

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