शनिवार, 19 मार्च 2011

होली है भाई होली है तरही वाली होली है , कुल नौ शायर आये हैं अबके अपनी तरही में । आओ इनके संग चलें हम ग़जलों की महफिल में । होली है भई होली है ग़ज़लों वाली होली है ।

होली के मुशायरे को लेकर जितनी बहस इस बार हुई है उतनी तो सिर्फ कला फिल्‍मों के समीक्षक ही करते हैं, और जिस प्रकार से कला फिल्‍मों के साथ होता है कि लोग उसको देखते हुए डर जाते हैं कि पता नहीं समझ में नहीं पड़े तो क्‍या होगा ठीक उसी प्रकार से इस बार तरही में लोग ग़ज़ल लिखते हुए डर गये कि ये जो लोग बहस कर रहे हैं न जाने क्‍या बात है । तो खैर होली का त्‍यौंहार सर पर आ ही गया । इस बार की तरही को लेकर होली पर एक पत्रिका निकालने का मन था जो पीडीएफ के रूप में बांटी जाती लेकिन तरही को लेकर ग़ज़लें इतनी कम आईं कि पीडीएफ का विचार ड्राप हो गया । खैर ये तजुरबे खाते में लिख लिया गया है कि होली के समय ना तो कठिन बहर ही देना है ना ही कठिन मिसरा । क्‍योंकि होली के समय आदमी का दिमाग कुछ भन्‍नाया रहता है । चलिये अब होली के मुशायरे की ओर चलते हैं ।

इस बार कुल 9 ग़ज़लें मिली थीं जो सारी ही आज के अंक में लगी हैं ।

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वे सभी जो इस बार तरही में नहीं आये तथा बाहर खड़े होकर तरही देख रहे हैं सुन रहे हैं ( ये आपको हर शायर के आस पास नज़र आएंगें, कृपया फोटो पहचान कर बताएं कि किस किस शायर के साथ कौन कौन सा श्रोता है । )

होली का तरही मुशायरा

भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र

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गौतम राजरिशी

बचचे का नाम गौतम राजरिशी है फौज में है और ग़लतफहमी ये है कि विश्‍व की हर कोमलांगी इस समय जिस एक मात्र शख्‍सियत पे मर रही है वो शख्‍सियत इनकी ही है । ग़लतफहमी पालने पर यदि सरकार टैक्‍स लगाने लगे तो अगले को भर भर के परेशानी होने लगे । पिछले दिनों एक पत्रिका में अत्‍यंत फूहड़ सी कहानी छपने के बाद अपने को कहानीकार समझ लेने कि अतिरिक्‍त ग़लतफहमी और पाल चुके हैं । भली करे करतार ।

है जादू अजब, या टोना ग़ज़ब, गुमाए है सुध तिलस्मी नज़र

मिला हो धतूरा, भंग में जैसे, ऐसी है वो नशीली नज़र

भुलाए इसे, हटाए उसे, फंसाए किसे, सटाए जिसे

भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र

उफनती हुई लहर है कोई, धधकती हुई या है कोई आग

भिगोये कभी, जलाए कभी, मुझे ये तेरी शराबी नज़र

कभी ये लगे है सुब्ह की चाय और कभी ये जूस लगे

थके हुये रतजगों में कभी, ये आती है बन के कॉफी नज़र

गुलाल उड़े, अबीर उड़े, उड़े है जो रंग चार दिशा

तो डोरे ये लाल-लाल लिए लुभाती है हमको तेरी नज़र

वाह वाह वाह क्‍या नये प्रयोग किये है अपनी ग़ज़ल को बदतर से बदतरीन बनाने में । उफ कितनी घटिया है ये समग्र गजल जैसे कि हम रितिक रोशन की फिलम काईट्स का सिक्‍वल देख रहे हों । सच में हमारी भारतीय फौज इस समय सही हाथों में है ।

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नवीन सी चतुर्वेदी

मुम्‍बई में निवास करते हुए मुम्‍बई को बदलने की कोशिश कर रहे हैं । हिंदी को लेकर बहुत काम कर रहे हैं । राज ठाकरे को इनका पता बताना ही पड़ेगा कि आपकी मुम्‍बई में एक और आदमी ऐसा है जो हिंदी हिंदी चिल्‍ला रहा है कपड़े फाड़ के । पिछले दिनों इन्‍होंने लगभग ब्‍लैकमेल करके मुझे जैसे लगभग शरीफ आदमी ( ? ) से गंदे गंदे दोहे लिखवा लिये जिस पर ब्‍लाग जगत की सारी महिलाएं मुझसे नाराज हैं ( साजिश किसकी थी । )

खली सा बदन, अली सा वदन, नली सी है नाक, टेढ़ी नज़र|

तमाम जहान ढूँढा मगर, न तुझ सी हसीन आई नज़र|१|

थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ|

करीब से जो, निहारा उसे, तो पाया, वहाँ - जमीँ थी न जर|२|

करूँ क्या तरीफ, तेरी भला, गजब की तेरी मटकती नज़र|

भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र|३|

वसन्ती पवन, महकता चमन, दिलों का मिलन, मिटाए अगन|

ये होली सा पर्व जिसने दिया, करूँ मैं उसे खुदाई नज़र|४|

निहायत ही टुच्‍ची और छिछोरी ग़ज़ल । ऐसी ग़ज़ल जिसमें न सर है और न स्‍वाद । ऐसा लगता है कि जैसे ग़ज़ल न होकर किसी नामाकूल से कव्‍वाल द्वारा रात दो बजे के बाद की जा रही शायरी हो । क्‍यों लिखते हो भैया ग़ज़ल किसी डाक्‍टर ने कहा है क्‍या ।

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रविकांत पांडेय

गौतम की केटेगिरी में शामिल इस खरगोश को भी एक बड़ी ग़लतफहमी इन दिनों पली हुई है और वो गलतफहमी ये है कि ईश्‍वर ने विश्‍व का सबसे सुरीला गला इनको ही दिया है । हालांकि इस गलतफहमी को सबसे पहले घर में ही बाकायदा घोषणा कर कर के इनकी धर्मपत्‍नी खंडित करती रहती हैं और मंच पर इनके श्रोता भी टमाटरों तथ अंडों से खंडित करने में देर नहीं लगाते हैं । मगर फिर भी गलतफहमी के दूर होने के अभी कोई आसार नहीं हैं ।

निकालने पर तुली है ये जान तेरी चुड़ैल जैसी नज़र
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र
कमाल है जी कमाल है ये, धमाल है जी धमाल है ये
कड़ाह में प्यार वाली मुझे पकौड़ा समझ के तलती नज़र
है मिलती वो "भैंस" जब "किसी राह में किसी मोड़ पर" तो वहां
उपाय कई करूं तो क्या मेरी अक्ल की घास चरती नज़र

उफ मेरे छंद शास्‍त्र के प्रकांड पंडित, उफ मेरे छंद विधान के विश्‍व के एकमात्र बचे जानकार क्‍या ग़ज़ल लिखी है । जहां तक चुड़ैल का प्रश्‍न है वो तो ये सीहोर में मुझे बता चुके हैं कि चुड़ैल कौन है । जाहिर सी बात है जो खून चूसने का जो काम करे वही चुड़ैल है ।

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राणा प्रताप सिंह

भारतीय वायु सेना को लेकर इन दिनों मुझे जो चिंता रहने लगी थी वो इनके ही कारण अब दूर हो गई है । आकाश में उड़ते हुए जब दुश्‍मन के हवाई जहाज को बम से उड़ाना होगा तो उसकी जगह ये अपना कोई बहुत ही घटिया सा शेर ( जो इनके पास बहुत से हैं ) सुना देंगें, वो बिचारा सुनते ही अपना हवाई जहाज खुद अपने हाथ से ज़मीन पर गिरा देगा । देश का कितना भला होगा बम की भी बचत होगी और दम की भी ।

गधों से बचा के नज़रें चलो वगरना तुम्हारी होगी नज़र

भटकती नज़र अटकती नज़र, खटकती नज़र,सटकती नज़र

नज़र ही नज़र से पीछा किया उठाई नज़र गिराई नज़र

नसीब हमारे फूट गए जो उसने मिलाई भेंगी नज़र

जो झाडू लगा के पोछा लगा के चाय बना के पेश किया

प्रसन्न हो श्रीमती जी अगर मिलेगी बहुत ही प्यारी नज़र

लगा के खिजाब मूछों पे भी जवान दिखें हैं बूढ़े सभी

मोहल्ले में एक हुस्न परी ने जब से उठाई अपनी नजर

मियाँ ये जो हैं ये कीड़े तलें औ पेश करें ये गुझिया हमें

इन्हें न पता हमें है खबर इन्होने जहां बचाई नज़र

जुगाड किया, उधार लिया, पसारे है कर, न काम बना

ये लफ्ज़ कहाँ छुपे है भला तलाश रही हमारी नज़र

मियां एकाधा श्‍ोर तो ऐसा कह देते कि जिसको कोट किया जा सके । मगर नहीं आपने तो क़सम खा रखी है कि जब भी तरही में आऊंगा तो ऐसी ग़ज़ल कहूंगा कि संचालक एक भी शेर को कोट न कर सके । क्‍यों भैया क्‍या संचालक से पिछले जनम का कोई पंगा है क्‍या ।

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वीनस केशरी

उफ .... ये कौन आ गया । गालिब और मीर के बाद यदि कोई शायर हुआ है तो यही है । अमिताभ बच्‍चन के बाद यदि इलाहाबाद में कोई पीस ठीक ठाक पैदा हुआ है तो यही है । आपके गले की क़सम कैसे कैसे दर्दनाक शेर निकाल रहा है इन दिनों की क्‍या बताएं । हालांकि अभी भी कन्‍फ्यूज है । मगर फिर भी बात यही है कि जब इतना कनफुजियाआ हुआ है तब गालिब जैसा है, ठीक हो गया तो क्‍या होगा ।

मेरा तो नसीब फूट गया जो पड़ गई मुझ पे उसकी नज़र

भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र

कभी तो मुझे गले से लगा कभी तो मुझे भी रंग लगा

ये क्या की मुझे बुला के करीब डांटे तेरी मटकती नज़र

झिंझोड मुझे, उछाल मुझे, उठा के मुझे पटक दे मगर

बिखर जो गया, समेत सकेंगी क्या तेरी सिसकती नज़र ?

आय हाय मेरे गालिबो मीर दो शेर में ही फूंक निकल गई । क्‍यों इलाहाबाद में इस बार अमरूद कम आये थे क्‍या । मियां अभी तो कुंवारे हो अभी ही अगर दो लिख पा रहे हो तो शादी के बाद तो केवल मिसरे से ही काम चलाओगे ।

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निर्मला कपिला दी

लो ये भी आ गईं । ये तीन महासागरों से घिरे भारतीय भूमंडल की अकेली तथा पहली महिला हैं जो रिटायरमेंट के बाद भजन लिखने के बजाय ग़ज़ल लिख रहीं हैं । ग़ज़ल के साथ काफी प्रयोग करने की ये शौकीन हैं । सबसे अच्‍छा प्रयोग इन्‍होने जो किया है वो ये है कि बजाय एक ही बहर पर पूरी ग़ज़ल लिखने के ग़ज़ल के हर मिसरे में अलग बहर लाने का काम किया है । इनसे ग़ज़ल को काफी उम्‍मीद है ।

शिवेशवरी महेशवरी करे तु अगर कृपा की नज़र
न हीन रहूँ न दीन रहूँ मिले तुझ से रहमती नज़र
रही मचली,मगर उलझी न प्यार किया जला ये जिगर
न रंग गिरा न भंग मिली मिली मुझको दहकती नज़र

उसे दिल ने सवाल किया उठा पलकें न तीर चला
कभी उठती कभी झुकती रही छलती सुलगती नज़र
सवाल करूँ जवाब नही अकड करती खडी पनघट
जनाब कहे मुझे मत तू बुला चल जा खटकती नज़र
कफूर हुया मुहब्बत का नशा मिल कर रहा पछता
कभी कुढती कभी सहती कभी बहती छलकती नज़र

मतले में धर्म कर्म की बात करके आपने अपनी उमर बता ही दी । बताओ ग़ज़ल में भी भगवान । ये बुढ़ापा शै: ही ऐसी है कि आदमी को उठते बैठते हर जगह भगवान ही दिखाई देता है । हर बात पर भगवान के पास प्रार्थना पत्र देना ही बुढा़पे की असली पहचान है ।

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दिगंबर नासवा

नाम से ही जो दिगंबर हो उससे कोई क्‍या कहे । दुबई में रहते रहते इनको भी ग़ज़ले लिखने का शौक तब लगा जब पता चला कि दुबई के शेखों को ऐसी ग़ज़लें सुनने का बहुत शौक है जो उनको समझ में बिल्‍कुल ही नहीं आये । और ऊपर वाले के फजल से इनके पास तो इस प्रकार की ग़ज़लों की इफरात है जो शेखों की तो छोडि़ये इनको खुद ही समझ में नहीं आतीं हैं । इन दिनों किसी सही शेख की तलाश में हैं ।

भटकती नज़र अटकती नज़र ख़टकती नज़र सटकती नज़र

तुझे न लगे ए जान जिगर फिसलती हुई ये मेरी नज़र

तू शोर मचा, धमाल मचा, अबीर उड़ा, गुलाल लगा

न अपने बदन पे रंग लगा न अटके कहीं छिछोरी नज़र

है चारों तरफ अजीब सी जंग न होली का रंग न मस्त उमंग

तू तीर चला, कटार चला, दिलों पे चला दे तिरछी नज़र

ये गाल रंगूँ, ये हाथ रंगूँ, है चाह मेरी ये माँग रंगूँ

जो बाप तेरा न थाने गया तुझी से चुरा लूँ तेरी नज़र

सुनो पप्‍पू, पहले तो बताओ कि कौन कौन सा शेर किस किस बहर पर लिखा गया है । मेरे विचार में तो तुम यदि मुशायरा पढ़ोगे तो कुछ इस प्रकार पढ़ोगे '' इस शेर पर ध्‍यान चाहूंगा इसका एक मिसरा रजज पर है और दूसरा हजज पर है ''।

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प्रकाश पाखी

क्‍या आपने कोई ऐसा बैंक मैनेजर देखा है जो कि ग़ज़लें भी लिखता हो, नहीं देखा हो ता ऊपर की तस्‍वीर को देख लीजिये । ये विश्‍व का एक मात्र बैंक मेनेजर है जो ग़ज़लें भी लिखता है । इसके कई फायदे हैं जैसे लोन लेने के लिये यदि कोई आया है तो उसे लोन का फार्म भरवाते भरवाते चार आठ ग़ज़लें पेल दो । उस समय तो उसकी हालत कीचड़ में फंसे शेर की ही तरह होती है ।

भटकती नजर अटकती नजर खटकती नजर सटकती नजर

ये हुस्न औ शबाब रंग औ जिस्म मिल गए तो फिसलती नजर

ये बढती उमर, लटकते है पाँव कब्र में, है जवानी बड़ी

खराब मन की जो ढूंढती है फिर लख्ते जिगर,शराबी नजर

महंगा है प्याज लहसुन मिलती ज्वेलरी की दुकान पे अब

फटे है नयन हमारे आई तिजोरी में फूल गोभी नजर

हुए गिर कर कमीने औ चोर हम तो शबाब पर न गयी

न ही धन पर गयी बस प्याज पर थी हमारी लोभी नजर

सी डब्लू जी टू जी कुछ तो मैं ले लू जी बड़ी भरी सेल लगी

मिले सब सस्ता लूट का माल अपना ये दिखता बोली नजर

आपको भी लगता है कि मुझे मेरे बचपन के कस्‍बे इछावर का एक मुशायरा पढवाना ही पड़ेगा जहां पर श्रोता जब बहुत गुस्‍से में आ जाते हैं तो शायर को एक बड़े बोरे में भर कर मंच के पीछे ले जाकर पूरे भक्ति भाव से उसकी धुलाई करते हैं ।

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संजय दानी

इनके बारे में क्‍या कहा जाये । इन्‍होंने अपनी ग़ज़ल के साथ जो अपनी मुखछवि ( फोटो) भेजी वो इतनी छोटी सी थी मानो फोटो के भी पैसे लग रहे हों । किसी ग्राफिक डिजायनर  की यदि हत्‍या करनी हो तो इनका ये वाला फोटो उसको भेज दो कि यार इस फोटो पर कुछ काम कर दों । फोटो का साइज ही देख कर अगला आत्‍महत्‍या कर लेगा । जहां तक ग़ज़ल का प्रश्‍न है तो वो तो आप देख ही लेंगें की वो क्‍या है ।

भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र,
ख़ज़ाने में होली के हैं तरह तरह के कई हटेली नज़र।
रगों का पहाड़ डोल रहा है भांग की मस्ती की दुआ से
खटाक से अर्श नापे, धड़ाम से ज़मीं फिर पकड़ती नज़र।
निकाह अमीर लड़की से करके पैसा तो आया , लड़की की पर
कमर बड़ी है ,दिमाग़ है खाली ,कांपते बोल, भैंगी नज़र।
तमीज़ो-हवस की गाड़ी का ब्रेक फ़ेल हुआ मरेंगे सभी,
ये देख मुहल्ले वालों की ख़ौफ़ से डरी अटकी सटकी नज़र।
मुहब्बतों के फ़लक पे अमीरी देता नहीं किसी को ख़ुदा
हसीनों के मुल्क में रहे हर अमीर की भी भिखारी नज़र।
लहू है तेरी जबीं को अजीज़ और क़बाब है ज़ुबां को,
ख़ुदा के करम से सिर्फ़ हसीनों को मिली है शिकारी नज़र।
अकेले चला है दानी तुझे गुलाल लगाने होली में पर,
अजीज़ है तुमको सैकड़ों मर्दों की ख़ता -ओ- हरामी नज़र।

आपसे तो कुछ इसलिये नहीं कहा जा सकता कि आपके तो नाम में ही दानी लगा हुआ है । वर्तमान में हर दानी आदमी वो है जो अपना कूड़ा कबाड़ दूसरों को दान देकर पुण्‍य कमाता है । आप तो दानी नहीं महादानी हो जो अपने दिमाग़ का कूड़ा कबाड़ श्रोताओं को दान कर रहे हो । जय हो ।

और अंत में सबको होली की शुभकामनाएं, रंग डालें अपने हर दोस्‍त को अपनेपन के रंग में, हर दुश्‍मन को दोस्‍ती के रंग में और जिंदगी को इस प्रकार जियें कि कहीं कोई दुश्‍मन ही नहीं हो ।

जय हो होली की ।

75 टिप्‍पणियां:

  1. गधा पच्चीसी देखी,खाया खाजा,लहराया खंजर,
    होली की तरही देख याद आया मूर्ख नगरी का मंजर,
    मजा सा खूब लगा!

    दोहा है और जो न माने के अच्छा है, उसका ढीला कच्छा है!
    बोल स्स्स्स्स्स्स्स्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र र्र्र्र्र्र्र रा होली है!

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  2. बहुत ही सुन्दर होली का बाज़ार सजाया है आपने देखते हैं कौन सा सामान बिकता है । ग़ज़ल पर मुख्तलिफ़ टिप्पणी बाद में फ़ुरसत से करूंगा , आपका आभार और सबको होली की शुभकामनायें।

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  3. holi par ''nau-ratno'' ke ''hasyaspad'' vichar parh kar ''gadhatv'' jag raha hai. yah pahali baar hai, ki 'tarahi par kuchh soojhaa hi nahee. chalo, kuchh to maharathee nikale. sabko holi ki shubhkamanaye.

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  4. ऐसे सुधि श्रोता जिस महफ़िल की शोभा बढ़ा रहे हों उसकी क्या तारीफ़ की जाए...एक एक से बढ़ कर ग़लत फहमी के शिकार टुच्चे शायरों ने इस बार होली पर भांग सेवन कर तरही के मंच जो धमाल मचाया है उसे देख सुन कर हम जैसे सुधि श्रोता जमीन पर लोट रहे हैं,ख़ुशी के इज़हार में दुलत्तियाँ मार रहे हैं और ढेंचू ढेंचू कर आसमान सर पर उठाये फिर रहे हैं...

    जै हो गुरुदेव...कैसे कैसे गोंचूं चेले पाल रखें हैं आपने गुरुकुल में...जो इसका नाम पूरा मिटटी में मिलाय दे रहे हैं...आपके एक बौड़म चेले जिसका नाम "नी" से शुरू होता है और जो आपके चरणों की "रज" माथे पर लगाये घूमता है की पिछली दो तरहियों पर छपी ग़ज़लें "...तेरी गली में" और "...वो नाले याद आते हैं" क्रमश आज के दैनिक भास्कर और नव भारत टाइम्स के जयपुर और मुंबई अंक में छपी हैं...आपके लिए इस से अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है...

    हमारी और से रंग अबीर किसी चिड़ीमार टाइप चेले से गालों पर लगवा लीजियेगा और हमारा नाम लेकर भांग का एक गिलास पूरा बिना सांस लिए पी जियेगा...हम समझेंगे हमारी होली मन गयी...

    नीरज

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  5. आज हमको समझ में आ ही गया कि हम गधो का भी एक दिन होता है.
    साला सालभर हमलोग भ्रष्टाचार, महंगाई पर ढेचू ढेचू करते हैं तो कोई कान तक नहीं देता.

    सोचा आज निमंत्रण मिला है सुकुमार शायरों की तरही महफ़िल में बैठने सुनने का और वाह वाह (आह आह ) करने का तो देखिये न गुरूजी सब इधर ही भागे आ रहे हैं.

    अब हाउसफुल हो गया है तो हमरा सीट छिना जा रहा है जबकि पहला निमंत्रण हमें मिला था. साला होली जो न कराये.

    -
    रंग बरसे - मन बरसे - होली SSSSSSSSSSSS है

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  6. गुरु जी ये तो कमाल हो गया, हम तो सोच रहे थे हमारे ऊपर ही गरीबी का प्रकोप है ..यहाँ तो सभी बी पी एल हैं...भली करेंगे राम

    और जो बाहर खड़े होकर ढेंचू ढेंचू कर रहे हैं उन्हें भी होली की बधाई

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  7. गुरु जी ये तो कमाल हो गया, हम तो सोच रहे थे हमारे ऊपर ही गरीबी का प्रकोप है ..यहाँ तो सभी बी पी एल हैं...भली करेंगे राम

    और जो बाहर खड़े होकर ढेंचू ढेंचू कर रहे हैं उन्हें भी होली की बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. गौतम राजरिशी

    है जादू अजब, या टोना ग़ज़ब, गुमाए है सुध तिलस्मी नज़र
    मिला हो धतूरा, भंग में जैसे, ऐसी है वो नशीली नज़र

    धतूरा और भंग ..बाप रे बाप .....

    भुलाए इसे, हटाए उसे, फंसाए किसे, सटाए जिसे
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र

    ऐसी नज़रों से तो राम बचाए...काला चश्मा लगाना पडेगा

    उफनती हुई लहर है कोई, धधकती हुई या है कोई आग
    भिगोये कभी, जलाए कभी, मुझे ये तेरी शराबी नज़र

    ये जलने की बू कहाँ से आ रही है....पानी डालो जल्दी से

    कभी ये लगे है सुब्ह की चाय और कभी ये जूस लगे
    थके हुये रतजगों में कभी, ये आती है बन के कॉफी नज़र

    चाय सुबह की...रात की काफी...पर जूस कौन सा और कब का?......

    गुलाल उड़े, अबीर उड़े, उड़े है जो रंग चार दिशा
    तो डोरे ये लाल-लाल लिए लुभाती है हमको तेरी नज़र

    होली के माहौल में ...नज़र का धोखा भी हो सकता है ...ज़रा नज़रे बचाकर चलियेगा

    इस सटकेली गज़ल के लिए ढेरों बधाइयां

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  9. @नीरज भाई
    आपने क्‍या कया कहा अपने को कुछ समझ नहीं आया, आप तो बस ेये बता दें कि आप दॉंये हैं कि बॉंये, दूसरी तरफ़ तो मैं ही हूँ।
    बड़े ही ढीठ शायरों से पसलस पड़ा है, वाफि़र को भी नहीं छोड़ा, वो भी होली में।

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  10. नीरज जी दैनिक भास्‍कर ने ग़ज़ल के साथ जो आपका परिचय छापा है वो मस्‍त है । उस्‍ताद कहते थे कि पंकज हर अवसर के लिये कवि के पास रचनाएं होनी चाहियें । तरही का मेरा प्रयोजन ही यही है कि हर किसी के पास हर तीज त्‍यौहार, मौसम के लिये रचनाएं हों । क्‍योंकि समाचार पत्र पत्रिकाओं में अवसर विशेष की रचनाओं की काफी मांग रहती है ।
    तिलक जी आपकी और नीरज जी की जोड़ी तो सबसे ऊपर खड़ी है । आप वरिष्‍ठ जो ठहरे । अब कौन दांए है और कौन बांए ये तो आडिंएंस ही बताएगी ।

    जवाब देंहटाएं
  11. नवीन सी चतुर्वेदी

    खली सा बदन, अली सा वदन, नली सी है नाक, टेढ़ी नज़र|
    तमाम जहान ढूँढा मगर, न तुझ सी हसीन आई नज़र|१|

    ओहो तभी तो मैं कहू की आप इतनी जल्दी कैसे फ़िदा हो गए

    थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ|
    करीब से जो, निहारा उसे, तो पाया, वहाँ - जमीँ थी न जर|२|

    जर जमीन के चक्कर में हमें मत फंसाइए .....ये बताइए आपको करीब जाने पर कैसा लगा

    करूँ क्या तरीफ, तेरी भला, गजब की तेरी मटकती नज़र|
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र|३|

    यही तो तारीफ़ है ...इतने सारी नज़रे किसे नसीब होती हैं ..आप लक्की हैं

    वसन्ती पवन, महकता चमन, दिलों का मिलन, मिटाए अगन|
    ये होली सा पर्व जिसने दिया, करूँ मैं उसे खुदाई नज़र|४|

    गिला शिकवा मिटा दें हम मनाएं प्यार से होली
    गले मिलकर भुला दें गम मनाएं प्यार से होली

    जवाब देंहटाएं
  12. सब श्रोता लोग लुगाइन सुन लें कि सबसे ऊपर जो दो श्रोता खड़े हैं वो दोनों ही सबसे वरिष्‍ठ और गरिष्‍ठ हैं । इन पर कोई भी श्रोता गन्‍ना गंडेरी वगैरह फैंक कर नहीं मारे । नहीं तो कोई दुलत्‍ती खा सकता है ।

    जवाब देंहटाएं
  13. और हमने तो अभी अभी दो घिलास शिवबूटी के चढ़ाय लिये हैं सो भंतेलाल भड़भूंजे की कसम जोन भी हमसे उलझा तो अपनी इज्‍जत का पंचनामा बनवाय का झिम्‍मेदार खुदई होयगा । और हां कोई भी इन घजलों में जो बहर या कहन तलाश करबे की कोशिश करेगा वो पागलखाने में इलाज का बिल भी खुदइ भुगतेगा । तो सब लोग लुगाइन एक बार मिल के भक्ति भाव से कहें जोगिया सारा रारा जोगिया सारा रा रा, चली चल सारा रारा, चली चल सारा रारा

    जवाब देंहटाएं
  14. रविकांत पांडेय

    निकालने पर तुली है ये जान तेरी चुड़ैल जैसी नज़र
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र

    हाय राम ...आपका राबिता हमेशा भूत और
    चुड़ैलों से ही क्यों होता है


    कमाल है जी कमाल है ये, धमाल है जी धमाल है ये
    कड़ाह में प्यार वाली मुझे पकौड़ा समझ के तलती नज़र

    हा हा हा ..ये पकौड़ा बड़ा स्वादिष्ट बनेगा..बस इश्क की चटनी से खाइयेगा

    है मिलती वो "भैंस" जब "किसी राह में किसी मोड़ पर" तो वहां
    उपाय कई करूं तो क्या मेरी अक्ल की घास चरती नज़र

    आजकल जो अक्ल है न उसे भैंस भी नहीं चरती है ......हा हा हा हा

    जवाब देंहटाएं
  15. मन मलंग, हुलसै हिया, दूर होंय दुख-दर्द|
    सावन तिरिया झूमती, फागुन फडकै मर्द||

    सभी को होल्सेल में होली की बधाइयाँ| इस बार के मुशायरे में ग़ज़लों से ज़्यादा तारीफ संचालन की करनी होगी| एक एक को छाँट-छाँट कर जो तारीफें बाँटी हैं, भाई क्या कहने| पंकज भाई होली हो तो ऐसी| और फोटोग्राफी तो ऐसी कि हुसैन भी दंग रह जाएँ देख कर और बोले कि ये सीहौर वालों को हो क्या गया है भाई? मारे सिहरन के उम्र की स्पीड से दुगुनी स्पीड में सिहर उठें|

    मैं तो भाई इस बार दोस्तों की ग़ज़लों की बजाय सुबीर भाई की टिप्पणियों पर दाद [अरे यार वो खाज खुजली वाली नहीं, फिर कहोगे कि छिछोरा हूँ] देना चाहूँगा:-

    पंकज भाई टू:-

    गौतम - ग़लतफहमी पर टेक्स, काइट्स का सीक्वेल
    नवीन, हाँ यार मैं खुद - साजिश, कपड़े फाड़ के, राज ठाकरे, छिछोरा, डाक्टर नहीं मिला क्या
    रविकान्त - धर्म पत्नी का खंडन, चुड़ैल, सीहोर
    राणा - बम की जगह शे'र, संचालक से पंगा
    वीनस - इलाहाबाद का अजीब पीस, कनफुजिआया हुआ, अमरूद कम आए
    निर्मला जी - बुजुर्गों के बारे में बस यही कहेंगे - भली करें भगवान
    दिगंबर - दिगंबर, शेख
    प्रकाश - लोन देते वक्त, कीचड़ में फँसा शेर, इछावर का मुशायरा
    दानी जी - महादानी, फोटोग्राफर, आत्महत्या,

    पंकज भाई आप ने होली को सचमुच रंगीन बनाने में जी तोड़ मेहनत की है| ख़ास कर हम सभी के फोटोग्राफ तो आप की पसंद की दाद, हाँ भाई मुशायरे वाली ही, माँगते हैं|

    अंत में विशेष रूप से आदरणीय निर्मला कपिला जी के जीवट को शत शत अभिनन्दन| आप वाकई हम बच्चों को बहुत ही गंभीर संदेश दिए जा रही हैं| ईश्वर आप को लंभी आयु प्रदान करे|

    खुशियों का स्वागत करे, हर आँगन हर द्वार|
    कुछ ऐसा हो इस बरस, होली का त्यौहार||

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  16. वीनस केशरी

    मेरा तो नसीब फूट गया जो पड़ गई मुझ पे उसकी नज़र
    भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र

    हम कब से मना कर रहे थे की मत घूरो ..अब भुगतो अंजाम

    कभी तो मुझे गले से लगा कभी तो मुझे भी रंग लगा
    ये क्या की मुझे बुला के करीब डांटे तेरी मटकती नज़र

    अब जैसे करम होंगे वैसी ही नज़र मिलेगी न

    झिंझोड मुझे, उछाल मुझे, उठा के मुझे पटक दे मगर
    बिखर जो गया, समेत सकेंगी क्या तेरी सिसकती नज़र ?

    हा हा हा हा यूँ न बिखरना वरना कोई बचाने वचाने नहीं आने वाला है ....फेवी क्विक से भी नहीं चिपका पाएंगे

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  17. हूं अब सारे के सारे सरोता गण निकल निकल के साइड की पट्टी पर आ रहे हैं । पहले कहां छुपे थे । अब जब सर पे पड़ी तो निकल पड़े ।

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  18. निर्मला कपिला दी

    शिवेशवरी महेशवरी करे तु अगर कृपा की नज़र
    न हीन रहूँ न दीन रहूँ मिले तुझ से रहमती नज़र

    गुरु जी ये तो गज़लिया भजन ही है...भजनिया गज़ल है ...पता नहीं क्या है

    रही मचली,मगर उलझी न प्यार किया जला ये जिगर
    न रंग गिरा न भंग मिली मिली मुझको दहकती नज़र

    ओह रंग भंग के बदले दहकती नज़र ......भंग से क्या कम है

    उसे दिल ने सवाल किया उठा पलकें न तीर चला
    कभी उठती कभी झुकती रही छलती सुलगती नज़र

    बप्पा रे बप्पा..दैया रे दैया .....सुलगती नज़र.....आग लग गई तो?

    सवाल करूँ जवाब नही अकड करती खडी पनघट
    जनाब कहे मुझे मत तू बुला चल जा खटकती नज़र

    अभी तक खटक रही है

    कफूर हुया मुहब्बत का नशा मिल कर रहा पछता
    कभी कुढती कभी सहती कभी बहती छलकती नज़र

    हाय हाय हाय ...कुढती ,,,,सहती......

    इस भटकेली गज़ल के लिए खाज वाली दाद

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  19. पंकज, नीरज, रवि, तिलक, गौतम, राणा, अर्श|
    सुलभ, दिगंबर, निर्मला, पाख़ी दिखे सहर्ष||
    पाख़ी दिखे सहर्ष, किथलियो फर्श पे लोटे|
    वीनस का निष्कर्ष, काम करिए ना खोटे|
    दानी जी को देख गिरीषम करते अचरज|
    बोले सारा देश, आज वोंटेड है पंकज||

    नीरज ढेँचू कर रहे, तिलक दे रहे बाँग|
    याँ नवीन टुच्चा फिरे, गटक गले में भाँग||
    गटक गले में भाँग, टाँग फटकारे कोई|
    काउँ-काउँ चिल्लाय, म्याउँ बक्कारे कोई|
    छुपे हुए जो दूर, विलक्षण अवसर को तज|
    ढूँढ उन्हें भी पेश, करें कविता के नीरज||

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  20. हा हा हा हा गुरु जी मज़ा आ गया

    अब कहाँ छिपोगे ....हम टुच्ची टुच्ची गज़ल सुना के ही रहेंगे

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  21. अनुपस्थित जो हैं सभी कहीं दे रहे बांग
    ढेंचू ढेंचू कर रहे खूब छानकर भांग
    खून छानकर भांग गुरु जी इनको पकडें
    तरह तरह की सूरत देकर इनको जकड़े
    फ्रोक, घाघरा, चोली अपनी करें व्यस्थित
    इसीलिए तो ये सब थे अब तक अनुपस्थित

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  22. एक बहुत ही इम्‍पोटेंट ( जी हां इम्‍पोटेंट ) सूचना सभी लोग लुगाइयन को देनी है वो ये है कि हमारे पास अभी कल्‍लू भाई धोबी का फोन आया है । उनका कहना है कि ऊपर जो दो खड़े हैं वो दोनों उसी के हैं । अगर कोई लोग लुगाइन को कल्‍लू की बात पे ना इत्‍तेफाकी हो तो तुरंत हमें एसएमएस करे 420420 पर । जो आप कल्‍लू धोबी से सहमत हों तो अपने मैसेज बाक्‍स में भाई ( अंग्रेजी का अक्षर भाई ) लिख कर हमें 420420 पे भेज दें । जो भी लोग लुगाइन असहमत हों वे अपने मैसेज बाक्‍स में हेन ( अंग्रेजी का अक्षर हेन) लिख कर हमें 420420 पे तत्‍काल भेजें । हमारी सारी लाइन भांग पी पी के खुली पड़ी हैं ।

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  23. बोल दो कल्लू को, ना उस का गधा हो जाएगा|
    ज़्यादा कुछ बोला तो फिर वो पिलपिला हो जाएगा||

    हम तिलक जी से महोब्बत करते हैं जी जान से|
    सुन लिया नीरज ने तो खूँटा खुला हो जाएगा||

    और ये राणा भी कुछ कम है न, उस को बोल दो|
    खुल गया धोती से तो फिर घाँघरा हो जाएगा||

    भूल कर भी कल्लू को दावत न देना दोस्तो|
    टॉप गीयर में है वो, फट से खड़ा हो जाएगा||

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  24. गुरुदेव ... देख लो ... अब बस ये नौ ही बचे हैं जो आपके नाम का परचम पूरी दुनिया में रोशन ...( नही नही बदनाम ... ) करेंगे ... आप ने भी लगता है तरही के मिरसे में भांग लपेट कर पिलाई थी .... और मेरे जैसे तो नशे में उल्टियाँ ही कर बैठे ...पर मज़ा आ गया ... आज तो सब उल्टे पुल्टे हैं ... होली के रंग बिखरे नज़र आ रहे हैं ...
    सभी को बहुत बहुत मुबारक हो रंगों का त्योहार ...

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  25. @राणा
    थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ|
    करीब से जो निहारा उसे, तो पाया, वहाँ - जमीँ थी न जर||
    करीब जाने पर मालूम पड़ा कि हम जिसे नैनीताल समझ रहे थे, वो तो छतरपुर निकला भाई| सारा का सारा भाँग का नशा काफूर हो गया यार| हाहहहाहा|

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  26. ऐसा उच्च स्तरीय टुच्चापना तो न कभी देखा था न कभी सुना था

    गुरुदेव धन्य कर दिया

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  27. एक और इम्‍पोटेंट सूचना ये आई है कि कल्‍लू धोबी ने अपने गधे को लेकर अदालत में याचिका लगा दी है । उधर कल्‍लू धोबी के एक गधे का कहना है कि होली के मुशायरे में उसे खड़ा करके शायर गण उस पर सड़े गले शेर फैंक रहे हैं । समस्‍त सायरों को सूचित किया जाता है कि कोई भी इस प्रकार की कोसिस यदि अगेन करता हेगा तो हम से मत कहियेगा कि हमने नहीं चेताया था ।

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  28. छा गया छा गया!होली का फ़ुल रंग छा गया! मैं भी कितना भाग्यशाली हूँ! गर्दभ महफ़िल में बिना मेहनत के ही अव्वल स्थान पा गया! (तौ क्या अगर अव्वल इस्थान टिप्पी बाजी में मिला, अव्वल तो अव्वल ही है गधा हो या घोडा!)
    सब गधो और उन्के धोबी, धोबनों को होली की कीचड में लोट भरी बधाई,

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  29. देखिये दांए तरफ के घधे ने अगेन शिकायत की है कि कोन्‍हो सुंदरी ने उसके पास एक ठो लभ लेटर फैंका है । ये बहूत गलत बात है कि सुंदरी बाई साहब को लभ लेटर फैंकने के लिये कोनो दूसरा नही मिला । घधे का कहना है कि लभ लैटर फैंक के उसको इनसिलिट किया गया है । वो इतना भी घधा नहीं है कि इसक-बिसक के चक्‍कर में पड़े । तो सभी को सावधान किया जाता है कि कोन्‍हो भी अपनी कोई भी पर्सनल चीज किसी भी घधे पर नहीं फैंके । हम जेतना इज्‍जत से घधे को लाए हैं उतना ही इज्‍जत से लौटाना चाहते हैं । हमारे घधे को कोई भी सीडब्‍ल्‍यूजी का घध समझ कर ट्रीट नाहीं न करे ।

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  31. हम बोल रहे हैं डड्डू डिजाइनर, हमको एक ठो शिकायत पेट में गैस के गोले की तहर उठ रही है । कोई भी हमारे बनाऐ हुए तस्‍वीरों का भिस्‍तृत भिष्‍लेसन नहीं किया है । हम बहूत नाराज टाइप के हो रय हेंगें ।

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  32. रविकांत पांडेय
    निकालने पर तुली है ये जान तेरी चुड़ैल जैसी नज़र
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र .................... भाभी जी के साल भर के हिसाब किताब एके बार में चुकता

    कमाल है जी कमाल है ये, धमाल है जी धमाल है ये
    कड़ाह में प्यार वाली मुझे पकौड़ा समझ के तलती नज़र ....................... पकौड़ा के इंतजाम होय गवा, देसी चली के अंगरेजी ?

    है मिलती वो "भैंस" जब "किसी राह में किसी मोड़ पर" तो वहां
    उपाय कई करूं तो क्या मेरी अक्ल की घास चरती नज़र ................... घासे छीलो जिंदगी भर


    राणा प्रताप सिंह

    कल हमका फोन कर के बताएंन भईया वीनस हमार छै सेर होय गवा, अरे तो जरूरी रहा सब भेजना पढ़ पढ़ के दिमाग भन्नाय गवा

    गधों से बचा के नज़रें चलो वगरना तुम्हारी होगी नज़र
    भटकती नज़र अटकती नज़र, खटकती नज़र,सटकती नज़र ................हाँ भईया, अनुभव बोलता है

    नज़र ही नज़र से पीछा किया उठाई नज़र गिराई नज़र
    नसीब हमारे फूट गए जो उसने मिलाई भेंगी नज़र .......................... आपके सारा काम तो बचपन में निपट गवा ई नज़र कब भिड़ी

    (इनका बाल विवाह हुआ है किसी को विशवास न हो तो पूछ ले )

    जो झाडू लगा के पोछा लगा के चाय बना के पेश किया
    प्रसन्न हो श्रीमती जी अगर मिलेगी बहुत ही प्यारी नज़र .............. फिर से अनुभव बोला

    लगा के खिजाब मूछों पे भी जवान दिखें हैं बूढ़े सभी
    मोहल्ले में एक हुस्न परी ने जब से उठाई अपनी नजर ................. मारो ससुरन का जूते जूता

    मियाँ ये जो हैं ये कीड़े तलें औ पेश करें ये गुझिया हमें
    इन्हें न पता हमें है खबर इन्होने जहां बचाई नज़र ........................... ई लगाई बुझाई हमसे नै होय सकत, कहूँ और मुह मारो

    जुगाड किया, उधार लिया, पसारे है कर, न काम बना
    ये लफ्ज़ कहाँ छुपे है भला तलाश रही हमारी नज़र ............................ ऐसे पेलरों से भगवान बचाए

    वीनस केशरी

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  33. वीनस केशरी
    मेरा तो नसीब फूट गया जो पड़ गई मुझ पे उसकी नज़र
    भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र ................. उ तो भला हुआ की बगल के गली से सटक लिया, इज्ज़त लुट जात तो केका मुह दिखाईत

    कभी तो मुझे गले से लगा कभी तो मुझे भी रंग लगा
    ये क्या की मुझे बुला के करीब डांटे तेरी मटकती नज़र ....................... राहत साहब के एक मिसरा याद आय गवा, जाय देव असलील मतलब निकल रहा है

    झिंझोड मुझे, उछाल मुझे, उठा के मुझे पटक दे मगर
    बिखर जो गया, समेत सकेंगी क्या तेरी सिसकती नज़र ? ..................... ई सेर खारिज करो, होली में सीरियस सेर के का काम ?


    निर्मला कपिला दी
    शिवेशवरी महेशवरी करे तु अगर कृपा की नज़र
    न हीन रहूँ न दीन रहूँ मिले तुझ से रहमती नज़र ............................. इस नई बहर की खोज का श्रेय निर्मला जी को

    रही मचली,मगर उलझी न प्यार किया जला ये जिगर
    न रंग गिरा न भंग मिली मिली मुझको दहकती नज़र ........................... वाह वाह वाह वाह ,,, वैसे इसका अर्थ का है ?

    उसे दिल ने सवाल किया उठा पलकें न तीर चला
    कभी उठती कभी झुकती रही छलती सुलगती नज़र ............................... अरे ई सौती लिख दिया है का ?

    सवाल करूँ जवाब नही अकड करती खडी पनघट
    जनाब कहे मुझे मत तू बुला चल जा खटकती नज़र ............................. पक्का सौती

    कफूर हुया मुहब्बत का नशा मिल कर रहा पछता
    कभी कुढती कभी सहती कभी बहती छलकती नज़र ............................. भाग के शादी जो करे, सो पाछे पछताय

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  35. संजय दानी
    भटकती नज़र अटकती नज़र खटकती नज़र सटकती नज़र,
    ख़ज़ाने में होली के हैं तरह तरह के कई हटेली नज़र। ............................ जो पाओ पेले रहो

    रगों का पहाड़ डोल रहा है भांग की मस्ती की दुआ से
    खटाक से अर्श नापे, धड़ाम से ज़मीं फिर पकड़ती नज़र। ........................... अर्श भाई के लिए शेर कुर्बान

    निकाह अमीर लड़की से करके पैसा तो आया , लड़की की पर
    कमर बड़ी है ,दिमाग़ है खाली ,कांपते बोल, भैंगी नज़र। ............................. माल तो अंदर हुआ न ... जाईये प्याज खरीदिए

    तमीज़ो-हवस की गाड़ी का ब्रेक फ़ेल हुआ मरेंगे सभी,
    ये देख मुहल्ले वालों की ख़ौफ़ से डरी अटकी सटकी नज़र। ...........................तमीज की कमीज फट गई ? सूजा लाऊं क्या ?

    मुहब्बतों के फ़लक पे अमीरी देता नहीं किसी को ख़ुदा
    हसीनों के मुल्क में रहे हर अमीर की भी भिखारी नज़र। ............................ फटा पोस्टर निकला हीरो

    लहू है तेरी जबीं को अजीज़ और क़बाब है ज़ुबां को,
    ख़ुदा के करम से सिर्फ़ हसीनों को मिली है शिकारी नज़र। ......................... कभी कभी पासा पलट भी जाता है

    अकेले चला है दानी तुझे गुलाल लगाने होली में पर,
    अजीज़ है तुमको सैकड़ों मर्दों की ख़ता -ओ- हरामी नज़र। .......................... हाय राम ! भगवान दानी साहब के भला करे

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  36. गौतम राजरिशी

    है जादू अजब, या टोना ग़ज़ब, गुमाए है सुध तिलस्मी नज़र
    मिला हो धतूरा, भंग में जैसे, ऐसी है वो नशीली नज़र ............. कहाँ भईया कहाँ ? करूँ का भाभी जी को खबर

    भुलाए इसे, हटाए उसे, फंसाए किसे, सटाए जिसे
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र ......... पूरी बात गोल गप्पा बने दिए हैं कुछ पल्ले नै पड़ा

    उफनती हुई लहर है कोई, धधकती हुई या है कोई आग
    भिगोये कभी, जलाए कभी, मुझे ये तेरी शराबी नज़र ............... माचिस आपके, दिया आपके, जलावत बुझावत रहो

    कभी ये लगे है सुब्ह की चाय और कभी ये जूस लगे
    थके हुये रतजगों में कभी, ये आती है बन के कॉफी नज़र ............ चाय, जूस, काफी, हम्म्म्म और पैग-शैग की बात तो गोल कर गए ?

    गुलाल उड़े, अबीर उड़े, उड़े है जो रंग चार दिशा
    तो डोरे ये लाल-लाल लिए लुभाती है हमको तेरी नज़र ............... ई डोरी पतंग के लाल मंझा तो नै ना ?

    ----------------------------------------------------------------------------------------------------

    नवीन सी चतुर्वेदी

    खली सा बदन, अली सा वदन, नली सी है नाक, टेढ़ी नज़र|
    तमाम जहान ढूँढा मगर, न तुझ सी हसीन आई नज़र|१|.............. नवीन जी सूर्पनखा खोज रहे थे का ?

    थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ|
    करीब से जो, निहारा उसे, तो पाया, वहाँ - जमीँ थी न जर|२|.......... आसमान खा गया की जमींन निगल गई ?

    करूँ क्या तरीफ, तेरी भला, गजब की तेरी मटकती नज़र|
    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र|३| ...........कुछो कर देव, दुई चार तो दोहै लिख मारो ससुरी पे

    वसन्ती पवन, महकता चमन, दिलों का मिलन, मिटाए अगन|
    ये होली सा पर्व जिसने दिया, करूँ मैं उसे खुदाई नज़र|४|................ भईया होली तो होलिका आंटी के दें है, करौ उनके गुणगान

    १९ मार्च २०११ ३:०४ अपराह्न

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  37. प्रकाश पाखी

    का भईया ? हमका तो यही पता रहा की आप बस के कंडक्टरी करत हो,,, ई बैंक के नौकरी कब लगी ?

    भटकती नजर अटकती नजर खटकती नजर सटकती नजर
    ये हुस्न औ शबाब रंग औ जिस्म मिल गए तो फिसलती नजर .............. सरम करौ,, सरम

    ये बढती उमर, लटकते है पाँव कब्र में, है जवानी बड़ी
    खराब मन की जो ढूंढती है फिर लख्ते जिगर,शराबी नजर ....................... एही खातिर तो कहत रहे सरम करो,, सरम

    महंगा है प्याज लहसुन मिलती ज्वेलरी की दुकान पे अब
    फटे है नयन हमारे आई तिजोरी में फूल गोभी नजर .............................. लोहा लक्कड के सब्जी बनाओ रेट गिरा हुआ है

    हुए गिर कर कमीने औ चोर हम तो शबाब पर न गयी
    न ही धन पर गयी बस प्याज पर थी हमारी लोभी नजर ........................ लोहा लक्कड, लोहा लक्कड, लोहा लक्कड, लोहा लक्कड

    सी डब्लू जी टू जी कुछ तो मैं ले लू जी बड़ी भरी सेल लगी
    मिले सब सस्ता लूट का माल अपना ये दिखता बोली नजर ..................... तुझपे पड़े महंगाई की मार,,, तुझको अल्ला रक्खे

    १९ मार्च २०११ ३:५४ अपराह्न

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  38. दिगंबर नासवा


    भटकती नज़र अटकती नज़र ख़टकती नज़र सटकती नज़र
    तुझे न लगे ए जान जिगर फिसलती हुई ये मेरी नज़र ........................ अरे तो चस्मा कब काम आई ?

    तू शोर मचा, धमाल मचा, अबीर उड़ा, गुलाल लगा
    न अपने बदन पे रंग लगा न अटके कहीं छिछोरी नज़र ....................... फिर से चस्मा

    है चारों तरफ अजीब सी जंग न होली का रंग न मस्त उमंग
    तू तीर चला, कटार चला, दिलों पे चला दे तिरछी नज़र ......................... धक् धक् करने लगा.. ओ मोरा जियरा डरने लगा $$$$$$$ ओ .....$$$

    ये गाल रंगूँ, ये हाथ रंगूँ, है चाह मेरी ये माँग रंगूँ
    जो बाप तेरा न थाने गया तुझी से चुरा लूँ तेरी नज़र ......................... चोर चोर चोर ,, अबे तो पकड़ के पीटो चिल्लाय काहे रहे हो

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  39. रंग उडाये पिचकारी
    रंग से रंग जाये दुनिया सारी
    होली के रंग
    आपके जीवन को रंग दे,
    ये शुभकामनाये है हमारी.....
    regards

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  40. @ डड्डू डिजाइनर

    भईया डड्डू हमार मुह न खुलवाओ, भरे बैठे है, हाँ नहीं तो, हमार फोटो तो कहूँ दिखींन नय रही बगल के पट्टी में ?

    तो तारीफ़ हम केके करी ?

    बताव बताव ?

    कहत हैं की कोई तारीफ़ नय कर रहा ...

    अरे पाहिले तारीफ जीके होनी है ओके फोटू तो लगाओ फिर देखो ऐसी तारीफ़ होई की पूछो न ...

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  41. धौँताये [अलस्सुबह] सूं ढूँढ रिया हूँ, सबकी तस्वीरें दीखवे में आ री एं, सिरफ़ मेरी वाली को छोड़ के| ओ यार मैं हूँ भी कि नैइँ|

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  42. गुरु जी

    मेरे तीन टुच्चे से शेर में तीसरे शेर के मिसरा सानी में एक शब्द छूट गया है

    कृपया उसे सही कर दें और यह कर दें -


    बिखर जो गया, समेट सकेंगी क्या ये तेरी, सिसकती नज़र


    - आपका प्रिय गदहा,, वीनस

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  43. पंकज भाई, इस बार ब्लॉग पर चित्रों को ले कर आप ने वाकई काफ़ी अच्छा काम किया है| राधा किसन वाली छवि हो, या होरी खेलते लोग लुगाइयों के झुंड वाला फोटू हो, या फिर अपने चहेतों के विशिष्ट पोज़ वाले पिक्चर्स............कमाल किया है बॉस|

    आप की शान में कुछ टुच्चई भरी पंक्तियाँ पेश करता हूँ:-

    कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता था
    कि मूछें कैसी रखूँ मैं, समझ न पाता था

    बता दिया मुझे तुमने, हूँ जैसा, अच्छा हूँ
    घुमा के मूछें रखीं, तो लगेगा लुच्चा हूँ

    ये सींग हैं या कि एनक की न्यू डिजाइन है
    औ कान बोल रहे हैं न कुछ भी फाइन है

    यही कृपा है कि बालों को छोड़ डाला है
    वगरना हिप्पी है कोई तो कोई बाला है

    किसी की नाक पकौड़े को मात करती है
    किसी की आँख खुराफात से टुकरती है

    किसी की उम्र न चेहरे से मेल खाती है
    तो कोई शीश पे मणि का मुकुट सजाती है

    कोई लचक के निहारे यहाँ जमाने को
    किसी के बाल लटक के ठगें सयाने को

    किसी के बाल लगें मेहराब महलों की
    तरीफ और करूँ भी क्या नहलों-दहलों की

    किसी का चेहरा है औ बदन किसी का है
    लिबास है किसी का और तन किसी का है

    बहुत ही मेहनतों से जो जुगाड़ तुमने किया
    सुबीर जी यकीन मानिए दिल जीत लिया


    लो अब मैने तरीफ कर दी, अब न रूठना.................

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  44. एक इम्‍पोटेन्‍स सूचना सभी को दी जा री हेगी । द‍ेखिये कोई ने इस बार फिर से घधे को घुमा के मुहब्‍ब्‍त भरा एक शेर मारा है । घदे का ऐसा केना है कि इस प्रकार की छिछोरी हरकत करने वाला कोई पढ़ा लिखा शायर नहीं हो सकता है । अब मजबूरी ये है कि हमारी महफिल में तो सारे के सारे ही अनपढ़ हैं । अब ये कैसे पता चले कि किस ने ये मुहब्‍बत भरा शेर मारा है । हम सबसे फिर से नरम निवेदन करते हैं कि '' महोदय सेवा में नरम निवेदन है कि कोई भी घदे को इस प्रकार से मुहब्‍बत से न देखे । अभी देश के सारे साहित्यिक घदे गुलाब जामुन खाने में लगे हैं कोई भी उनको नहीं छेड़े । ''

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  45. सूखी होली ने जब रंग ही खेलने न दिया तो ग़ज़ल क्या ख़ाक होती, कुछ सूखे-सूखे ख़याल इस तरह से आते रहे ......

    # "खड़ा मैं इधर, तू मस्त उधर, मैं सूखा रहा और तू तरबतर,
    मैं जल बिन का 'मछला' गुलाल लिए,भटकता रहा बस इधर से उधर."
    ---------------------------------------------------------------------------------------------
    # आजा मल दूँ तुझे गुलाल ज़रा,
    जल नहीं? कर न तू मलाल ज़रा.

    # रंग सूखा ही अब छिड़कना है,
    हाथ मे रखियेगा रूमाल ज़रा.

    # लाली रूख्सार पर अधूरी सी,
    दूसरा अपना देदे गाल ज़रा !

    # चुनरी अपनी उड़ादी मस्ती मे,
    जो है बाकी उसे संभाल ज़रा.

    # मैरा कुरता तुझे ही धोना है,
    रंग तू भी संभल के डाल ज़रा.

    # क्यों न गुस्ताख मैं भी हो लेता?
    आ गया था तेरा ख़याल ज़रा!

    -mansoor ali hashmi
    http://aatm-manthan.com

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  46. अभी अभी घोषणा हुई है कि आज की महफ़िल के सभी नाबालिग शायरों को पुरस्कार दिया जा रहा है -

    गौतम गुलाबी के शेर - भुलाए इसे, हटाए उसे, फंसाए किसे, सटाए जिसे
    पर १०१ करोड़.

    नवीन नयनसुख के शेर - थी दूर खड़ी, तो ऐसा लगा, वो हुस्न परी, जमालेजहाँ
    पर १११ करोड़.

    रविकांत रतजगा के शेर - है मिलती वो "भैंस" ज...
    पर १२१ करोड़.

    राणाप्रताप रंगीन के शेर - जो झाडू लगा के पोछा लगा के चाय बना के
    पर १३१ करोड़.

    रुकिए जरा, भांग चढ़ा लें. फिर बोलते हैं.

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  47. एक और फूचना ( हमने भांग ज्‍यादा पी ली है फो हम फ को फ बोल रहे हैं, फमझ गये, नहीं फमझे अरे भाइ फ को फ बोल रहे हैं ) फूचना ये है कि कल फुबह फुबह ही फीहोर में ये फुलभ फतरंगी द्वारा घोफित किये गये पुरफ्कार फब जीतने वालों को प्रदान किये जाएंगें । कार्यक्रम में हमारे फाथ कई फारी हफ्तियां फामिल रहेंगीं । फब लोगों से हमारा नरम निवेदन है कि फुबह फुबह फीहोर पहुंच के अपने अपने पुरफ्कार प्राप्‍त करें । बाद में किफी को भी कुछ नहीं मिले तो हमारी जिम्‍मेदारी नहीं होगी ।

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  48. अरे गुरु जी आपको क्या हो गया है..और सुलब भाई दिवालिया होने का इरादा बनाय लिए हो का? .....सब बाटे दोगे तो भंग के लिए पिसे कहा से लाओगे .......वैसे सबसे ज्यादा हमहीं को मिला है...हम एक्को कौड़ी देब नाही समझ लियो...कल बिना भांगे के बितावे के पड़ी पूरा दिन....

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  49. हा हा हा

    राणा आप तो बिकुलई फर्जी हो

    आपको यहू नै पता के भाँग के गोली केवल १ रुपिया के मिळत है और २४ घंटा आपका घंटाघर बनाय सकत है

    और बड़ा घंटाघर बनाना है तो ५ रुपिया के गोला लील लेव, चाँद सितारा अन्त्रिच्छ के दरसन होय जाई


    तो एमें करोंड रुपिया के का जरूरत ?

    बांटों भईया सतरंगी, आप महान आदमी हो, महान आदमी तो नसे में चड्ढी भी नीलाम कर के पईसा गरीबन में बाँट देत है

    आप तो महान आतमा हो

    बांटो बांटो

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  50. तो भई टिप्‍पणियों की हाफ फैंचुरी तो हमहूं बनाइब दूसरा कौनो नहीं । ज्‍ल्‍दी टिपिया दें नहीं तो कोई फफुर का नाती टिपिया जाइफ ।

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  51. सुबीर भाई 23 तारीख़ को दुर्ग के कवि सम्मेलन में आपका तहे दिल स्वागत है आपसे रू-ब-रू होने का सौभाग्य मिलेगा ये सोचकर मैं रोमांचित हूं। आपसे महफ़िल लूटने का गुर सीखने का ग्यान प्राप्त होगा।
    आज के तरही मिसरा में ऐसे सुन्दर सुन्दर और नज़ाकत से भरी टिप्पणियां हो चुकी हैं कि उसके बाद कुछ कहना सिर्फ़ अपना पाजामा फ़ड़वा्ने के सिवाय कुछ नहीं होगा। मुझे आज सिर्फ़ इस बात का रंज है कि आपने 9 गधों का दर्शन तो कराया है
    पर ये 9 मिलकर भी होली के इस रावणी मंच को पूर्णता प्रदान नहीं कर पा रहे हैं आपका भी नया चेहरा मुनाज़िर होता तो हमारे दिल को ठंडक मिलती ।

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  52. हां भाई इ बात तो हमहूँ सोचत हैं कि सब लोग एक्कै साथे कहां गायब होय गये हैं...कहिन भांग वांग तो नाहिन घोटाय रहि है.....कुल जने एक साथ छान घोंट के आय जैहे तो हमार लोगन के तो शामतै समझ्यो। हे भैया तनिक पता तो लगावा। तब ले हमहू छान लेई।

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  53. लो भैया राणा जी पता लगाय लिया

    कुछ लोग तो नाले की शरण में चले गए हैं

    कुछ लोग रंग लगाने के दर से घर के अंदर छिपे बैठे है

    और कुछ लोग छान घोट में मस्त हैं :)

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  54. संजय दानी जी 23 को आपके शहर में अमर शहीद भगत सिंह के बलिदान दिवस पर आयोजित कवि सम्‍मेलन को लेकर मैं स्‍वयं भी रोमांचित हूं । आपके शहर पहली बार आ रहा हूं । पीछे से दो कवि सम्‍मेलन करता हुआ आपके शहर पहुंचूंगा ।
    वीनस तुम्‍हारा और अंकित का फोटो टाप पर लगा दिया गया है । डड्डू डिजायनर ने कैप्‍शन ग़लत लगा दिया है मैं कह रहा हूं बदलने का तो वो कह रहा है होली है ।
    सभी को होली की शुभकामनाएं । कल होली का अवकाश है सो मोबाइल से रोमन में लिख कर ही टिपियाने का काम करूंगा ।
    होली मुबारक, शुभकामनांएं, मगल कामनाएं ।

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  55. हा हा हा

    बड़ा खतरनाक मैसेज जा रहा है

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  56. बड़ी मुश्किल से एग घिलास जुगाड़ कर के लायें हैं, बात की बात में पहिले प्यास बुझा लें...

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  57. हम खरण जोहर बोल रहा हूं, ई जो पहिले फुटवा में दो लरिकवा खड़े रहिन हम अपना अगला सिक्‍वल में इन्‍हीं दोनों को लेकर काम करना चाह रहिन । हमारी फिलम की सीकवल के लिये दोनों नामाकूल बहुत ही माकूल हैं । सो किरपया दोनों का संपर्क क्रमांक कोई हमको प्रदान करे ताकि हम इनसे भार्तालाप टाइप का कुछ कर सकें । दोनों का पोज हमको बहुत ही भा गया है । दोनों ने जो शानदार पोज दिया उतना तो इबराहिम और बच्‍चनवा भी नहीं दिया था हमारा पहली फिल्‍म में । सो अब दूसरी में हम जो इमरनवा और रणबीरवा को लेने का आइडिया लिया सो अब ड्राप कर चुके हैं । अब हम इन्‍ही दोनों को फाइनल कर चुके हैं ।

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  58. ठीक है भईया खरण जोहर जी हम तो तैयार हैं

    कितना किस सीन देना है ?

    बेडरूम सीन ?

    का कहेव फैमिली पिच्चर है ?

    अबे तो पहिली में काहे ....

    तो अब हमार कुछ सर्त के बात भी सुन लेव

    पहिली सर्त - रोज़ हमार ४ ठो गजल सुने के पडी

    दूसरी सर्त - जोंन हमार गुरुकुल के बाकी लोग हैं उ सब भी फिलिम में रहियें

    तीसरी सर्त - हम रोज़ २ बजे सोय के उठीत है मंजन गुसल में १ घंटा खाना पीना १ घंटा,, बजगा ४ फिर हमार बिलागिंग के समय होय जात है फिर ८ बजे हम आजकल पतरिका पढत हैं फिर १० बजे से ४ बजे तक गज़ल लिखत हैं फिर ४ से सुबह २ बजे तक सोवत हैं

    तो हमाए ई सेडयूल न बिगडे के चाही अब एमे से एक्टिंग निकाल सको तो हमका कोई दिक्कत नै ना

    चौथी सर्त - हमार फीस २ लाख रुपिया (हर मिनट)है और कोई डिस्काउंट नै ना

    अंतिम में एक निवेदन - गुरु जी का भी छोटा मोटा रोल दे देव तो बढ़िया (मगर कौनो जरूरी नय ना)


    तो सब बड़ी सर्त स्वीकार होय तो ९२४२०९२४२० में संपर्क करा

    फिर छोटी छोटी बात तो हम तोहसे डिसकस कर लेबे

    तोहार हीरो नंबर १

    हीरो नंबर २ के लिए भी बात यही सब समझा जावे, बस उ बेचारे के सेड्यूल में ८ घंटा के नौकरी भी जोड़ देव

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  59. विशेष रूप से टिप्‍पणियॉं पढ़ने लौट कर आया हूँ। पंकज भाई आपने खरण जौहर को एपीग्‍लोटिस से नहीं लिखा (ओह; होली की पिन्‍नक में ध्‍यान नहीं दिया कि लिखते में एपीग्‍लोटिस नहीं लगता)शाहरुख़ ख़ान नाराज़ हो जायेगा। आपके लिये झंडू बाम लेकर निकल लिया है (झंडू बाम का कुछ और अर्थ न ले लीजियेगा, होली हो तब भी मज़ाक तो शिष्‍ट ही रहना चाहिये, वैसे आपकी उम्र में संभावना तो बनी रहती है झंडू बाम मिलने की)।
    ये जो आपने नीरज भाई और मुझे सम्‍मान दिया है उसके लिये आभार, आपने अस्‍ल में इस नस्‍ल को ठीक समझा है; ये कभी एक दिशा में नहीं चल सकते, या तो एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके खड़े होंगे या विपरीत दिशा में; एक दिशा में नहीं चल सकते।
    होली रंग पर है।
    इस बार की अनुपस्थिति का हर्जाना जल्‍दी ही भरने की कोशिश करूँगा, हो सका तो अगली तरही में हास्‍य ग़ज़ल देकर। वादा रहा।

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  60. अरे क्या हुडदंग मचा रखा है भई ....
    दूर देस से , आप सबों को रंगों भरी होली बधाईयाँ
    और नमस्ते
    आज तो जाल घर की साज सज्जा और फोटो देखकर खूब हंसी हूँ ..
    आप सब को भी होली के हर्षोल्लास की ढेरों बधाईयाँ
    समस्त परिवार जनों के लिए मेरी ओर से ,
    गुलाल का टीका .....
    स स्नेह ,
    - लावण्या

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  61. तन रंग लो जी आज मन रंग लो,
    तन रंग लो,
    खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
    प्यार के ले लो...

    खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...

    जय हिंद...

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  62. बहुत ही बढ़िया मुशायरा..
    गज़ब की ग़ज़लें.. मुश्किल बह्र में भी मिसरे निकालने के लिए हुनर चाहिए.. मैं तो बह्र देख कर ही घबरा गया था. तस्वीरें बहुत जोरदार हैं. टिप्पणियां और भी मजेदार.

    होली की बहुत बहुत बधाई.

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  63. भाई म्हारे के समझ कोनी आवे क़ि यो १११ करोड़ का करना क्या है? तो कोनो लोग एक ठो कन्‍सलटेन्‍टवा की व्यवस्था करवाय देऊ, तो हम के तनिक समझ परे क़ि का करने का है

    भाई लोग आज हमारे यहाँ धूल का त्यौहार है.....................आप समझ ही गये होंगे क़ि उस में क्या क्या होता है| भाई हम तो वैसे भी कल से लुटिया पे लुटिया चढ़ाए जा रहे हैं.....................आप में से किसी को वैसन ज़रूरत लगे नाही...............सब के सब मस्ती के मूडवा में हैं.......................फिर भी कोई के ज़रूरत होवे तो हम को भी वीनस वाले नम्‍बर पे ही फ़ोन घुमाय दिजो......................वो का है ना क़ि वीनस का नम्‍बर तोल फ्री है.......................

    मेरे जैसे टुच्चे लोगन की खातिर एक विशेष छन्‍द गौतम, वीनस और पंकज भाई को भेज दिया है और रिकवेस्ट भी कर दी है कि सभी वीआइपी टाइप लोगों से शेयर कर लें...............आप में से जिन्हें लगता हो कि वो भी टुच्चाई में अव्वल हैं, और उन्हें ये छन्‍द नहीं मिला है तो इन दोनो महान आत्माओं से संपर्क कर सकते हैं...............

    सभी को रंग वाली होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ

    मन मलंग हुलसै हिया, दूर होंय दुख दर्द|
    सावन तिरिया झूमती, फागुन फडकै मर्द||

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  64. मन मलंग हुलसै हिया, दूर होंय दुख दर्द|
    सावन तिरिया झूमती, फागुन फडकै मर्द|

    क्‍या बात कही है नवीन भाई। हमारा भी दोहा लीजिये:
    शादी पर पड़ जाय जब तीस बरस की गर्द
    न झूमे तिरिया कोई, और न फ़ड़के मर्द।

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  65. तिलक भाई साब आप ने तो नहले पे दहला मार दिया है
    इसे कहते हैं तजुर्बे वाला दोहा

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  66. @नवीन भैया सॉरी नवीन चच्चा ,

    उ का है कि हम गलती से करोड़ बोल गए. असल में हम बोलना चाह रहे थे...111 मरोड़ (कान मरोड़ मत समझिएगा )

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  67. मैं और बूढी? लो जी मेरे छोटे भाई को भी चढ गयी भाँग्\ इन्हेंने 16 और 61 को उलता कर के पढ लिया हा हा हा मेरी तस्वीर देखी? क्या हट्टा कट्टा पठान लग रही हूँ--- मैने सोचा आपके आठ रथन अच्छे अच्छी गजलें लिख रहे हैं तो साथ मे उन्हें पचाने के लिये अचार तो चाहिये न तो मैने सौती की जगह----- "अचारी गज़ल"--- बना दी बह्रों का अचार भजन , गज़ल की खुश्बो ---0- सब को स्वाद लगी इसके लिये सब का शुक्रिया
    आपके आठ रत्नों की चमक मे मेरी गज़ल भी चमक गयी। सब की गज़लें बहुत कमाल की लगी। सब को बधाई अब नाती नातिनें आयी हुयी हैं उनसे सिर्फ 5 मिन का वक्त ले कर सब का धन्यवाद करने आयी हूँ-- अब ये बूढी बच्चा बन जायेगी उनके साथ। होली की आप सब को हार्दिक शुभकामनायें। बधाई।

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  68. पहली बार कहीं पर रचना ना भेजने की खुशी हो रही है। हा हा हा। मैं बच गया, मैं बच गया, मैं बच गया। बहरहाल सभी शायरों ने क्या कमाल का दिमाग-ए-दही बनाया है। सभी को बहुत बहुत बधाई।

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  69. सज्जनपुरवाले धर्मेन्द्र जी, आप कहाँ बच गए. जरा आईने में अपना मुंह तो देखिये

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  70. जो "सज्जन" अपने आप को बचा हुआ समझ रहें हैं वो हम नौ रत्न के अगल बगल खड़ी अपनी प्रतिनिधि को भूल गए लगते हैं :)

    मेरे अगल बगल "अर्श भाई" और "अंकित भाई" है :)

    @ नवीन चच्चा
    111 मरोड़ (कान मरोड़ मत समझिएगा )

    ये पेट में उठने वाले मरोड़ हैं :)

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  71. तीसरी फोटो में जब "तिलकवा" मुस्कुरा कर मुन्नी बदनाम हुई गा गा कर मोटी कमर से ठुमका लगा रहे हैं तो उसे देख कर चौथी फोटो वाले बौड़म बुढाऊ नीरजवा कैसे प्रेम बाण न चलाते ? इन झटकों पे तो शैफू भी कुर्बान हो चूका है ...अपनी छमिया को छोड़ इनके पीछे चला आ रहा है...इस फोटू को हटाओ गुरुदेव वर्ना देश में बवंडर हो जायेगा...और हाँ उसके नीचे पांचवे लम्बर वाली फोटो में काले कपडे पहले मोटा सा घघा पतले मरियल घघे की सवारी कर रहा है...इस फोटू को फ़ौरन हटायें वर्ना क्रुएल्टी अगेंस्ट अनिमल अक्ट के अंतर्गत आपको सरकार धर के अन्दर कर देगी...

    आपने अच्छा किया जो तिलकवा की और हमरी बचपन की ओरिजनल फोटो शुरू में लगा दी जिसमें हम एक दूसरे की तरफ पीठ किये खड़े हैं...आज वाली फोटो लगाते तो कित्ती भी छोटी करते फिर भी पूरे पेज से कम पे ना आती...

    ये सब इसलिए बता रहा हूँ ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये...समझे के नहीं...?

    बुरा मान लो होली है...हुर्रे...

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  72. सप्तरंगी रंगों से सजी महफ़िल में सभी को होली मुबारक. Lajawaab !!


    ग़ज़लः होली
    झूमकर नाचकर गीत गाओ
    सात रंगों से जीवन सजाओ

    पर्व पावन है होली का आया
    भाईचारे से इसको मनाओ

    हर तरफ़ शबनमी नूर छलके
    कहकशाँ को ज़मीं पर ले आओ

    लाल, पीले, हरे, नीले चहरे
    प्यार के रंग ऐसे मिलाओ

    देवी चहरे हों रौशन सभी के
    दीप आशाओं के यूँ जलाओ
    देवी नागरानी

    ॰॰

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  73. गुरूवर,

    होली ऐसी ही होनी चाहिये........

    खूब छकी गज़लें यही तो चाहते थे हम सब और तस्वीरों को देख आनन्द आया।

    सभी सुधिजनों को होली की शुभकानायें और जो कुछ बाकी रहा हो उसकी कसर रंगपंचमी को निकाल सकते हैं....


    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  74. गाँव में इस नेट की कच्छप गति हमें चाह कर भी कमेंटबाजी करने नहीं दे रही थी....आह, आज जाकर फिर से लुत्फ उठाया हमने इस अद्भुत होली का| आपके ये ग्राफिक्स गुरूदेव हमारे नेट कनेक्षण की वाट लगा देते हैं| हमेशा की तरह ये छटा और सज्जा....लाजवाब बन पड़ी है|

    ...और इस बार यकीनन तरही ग़ज़लों के बजाय आपकी ईटिप्पणियों ने महफिल लूटी है| शेष कमेन्ट में भी सबके रंग दिख रहे हैं....कौन कितना लुढ़का, कितना गिरा....सब दिख रहा है :-)

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