समय की अपनी ही एक रफ़्तार होती है । उसको बीतना होता है सो बीतता जाता है । पता नहीं क्या उम्र रही होगी तब, जब 1983 में भारत ने वो विश्व कप जीता था । उस समय आज की तरह क्रिकेट का इतना क्रेज़ नहीं था । हां लेकिन इतना याद है कि उस समय तक 1982 के एशियाड के कारण टीवी आ चुका था भोपाल में । तब की बहुत धुंधली यादें हैं । यादें ये कि हम दोनों भाई सारणी से इछावर लौट रहे थे और रात होने के कारण भोपाल ताऊ जी के घर रुक गये थे । तब वहीं पर ये क्रिकेट का फाइनल चल रहा था । उस समय कपिल देव, सुनील गावस्कर जैसे नाम याद तो थे लेकिन उम्र ऐसी नहीं थी कि वो जुनून होता । खैर रात को भारत जीता । और ताऊ जी ने उठकर अपनी बंदूक से दो फायर किये थे । उसके बाद तो बहुत कुछ हुआ । क्रिकेट का शौक चढ़ा और अपनी टीम का कैप्टन बना, लगभग बीस टूर्नामेंटों में विजेता रहे । जब भी जीत की शील्ड उठाते थे तो मन के अंदर जाने क्या क्या होता था । दूर दूर तक खेलने जाते थे । हमारी टीम अपनी गेंदबाजी के दम पर मैच जीतती थी । कई बार ऐसा होता था कि हम 15 रन पर आउट हो जाते थे और सामने वाले को 10 पर चटका देते थे । स्पिन का कोई काम नहीं सात फास्ट बालरों के साथ खेलते थे हम । बाद में क्रिकेट के साथ एक और खेल का जुनून चढ़ा और वो थी फुटबाल । फिर ये भी हुआ कि क्रिकेट पर फुटबाल हावी हो गई । फिर उम्र के साथ धीरे धीरे सब कुछ कम होता गया ।
ये बात इसलिये कि भारत को विश्व विजेता बनते देखने का सपना उस समय परवान चढ़ा था अर्थात 1983 के बाद । 1983 के बाद इसलिये कि उस समय ही ठीक ठाक होश आया था । 1987 में जब भारत अपने ही देश में विश्व विजेता बनने के बाद खेल रहा था तब उत्साह चरम पर था । उस समय कुछ आठ टीमें थीं । पूल ए के सारे मैच भारत में और पूल बी के सारे मैच पाकिस्तान में होने थे । मुझे याद है कि ऐन दिवाली के दिन भारत अपना पहला ही मैच केवल 1 रन से आस्ट्रेलिया से हारा था । हालांकि बाद में भारत और पाकिस्तान दोनों ही अपने अपने पूल में नंबर वन रहीं थीं और सेमी फाइनल में दोनो ही हार गई थीं । रिलायंस वर्ल्ड कप के लिये इंग्लैंड के खिलाफ सेमी फाइनल में गावस्कर और कपिल देव का कुछ विवाद हुआ था और बाद में भारत फाइनल में भी नहीं पहुंच पाया था । याद है कि इसी वानखेड़े स्टेडियम पर 5 नवंबर को भारत और इंग्लैंड का सेमी फाइनल हुआ था । ग्राहम गूच ने भारतीय गेंदवाजों की धुनाई करते हुए शतक बनाया था । लगभग ढाई सौ के स्कोर का पीछा करते हुए भारतीय बल्लेबाज किसी योजना बद्ध तरीके से आउट होते गये । ( योजनाबद्ध इसलिये कि बाद में मैदान पर ही गावस्कर तथा कपिल के बीच कुछ कहा सुनी हुई थी ) भारत हारा, इंग्लैंड ने फाइनल खेला और आस्ट्रेलिया ने जीता । ये वो समय था जब क्रिकेट के लिये मेरी दीवानगी चरम पर थी । फिर उसके हर चार साल बाद ये उत्साह बना रहता था । 1992 में हम सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच पाये, 1996 में सेमीफाइनल को दर्शकों के व्यवहार के कारण बीच में रोक कर श्रीलंका को जीता घोषित किया गया, 1999 में फिर सेमीफाइनल नहीं खेल पाये, 2003 में पूरे मैचों में धमाके दार प्रदर्शन करने वाले हम फाइनल में हार गये और उसके बाद 2007 के शर्मनाक प्रदर्शन की क्या कहें । अब जाकर क्रिकेट का वो उत्साह पूरा हुआ । मेरे जैसे लोगों का ये लगभग 25 सालों का इंतजार था ।
क्रिकेट के बारे में चाहे जो कुछ भी कहा जाये लेकिन ये तो सच है कि ये भारत में अब पैशन बन चुका है । इसको लेकर जो दीवानगी है वो किसी और चीज़ में नहीं है । और अब तो भारत विश्व विजेता है । हालांकि इस दीवानगी को कई बार मीडिया ने अत्यंत फूहड़ भी कर दिया है । फिर भी कुछ तो है कि सारा देश एक ही ताल पर नाचने लगता है । मेरे जैसा व्यक्ति फाइनल मैच में भारत की पारी के दौरान 2 विकेट गिर जाने पर कमरे को अंदर से बंद करके और टेप रिकार्डर को फुल वाल्यूम पर चलाकर बैठ जाता है कि बाहर का कुछ न सुनाई दे, बीच बीच में बाहर से फटाकों की आवाज़ आती है तो राहत मिलती है ।( पाकिस्तान के खिलाफ सेमी फाइनल भी ऐसे ही देखा था । ) जब छोटा भतीजा आकर दो ओवर पहले दरवाज़ा पीटता है कि काका अब तो देख लो दो ओवर बचे हैं भारत जीत रही है । तब भी मैं पूछता हूं विकेट कितने गिरे हैं उत्तर में 4 विकेट पता चलने पर आखिर के दो ओवर देखने कमरे से निकलता हूं । ये सब केवल तनाव के कारण । जीत के बाद रात दो बजे तक टीवी देखना और बाद में फिर दूसरे दिन यू ट्यूब पर ढूंढ ढूंढ कर पूरा मैच देखना । एक दीवानगी तो है । जैसा मैंने पहले कहा कि मीडिया ने इस दीवनगी को फूहड़ बना दिया है । लेकिन ये दीवानगी मीडिया ने पैदा की है ये भी ठीक नहीं है । वे लोग जिन्होंने क्रिकेट या फुटबाल को क्लब स्तर पर खेला है वो जानते हैं कि ये दोनों खेल किस प्रकार की दीवानगी पैदा करते हैं । मैं बैडमिंटन, क्रिकेट, व्हालीबाल, क्रिकेट, के से ये चार खेल तो क्लब स्तर पर खेल चुका हूं मगर उनमें से भी मैं दो ही खेलों को चुनता हूं जो दीवानगी पैदा करते हैं ।
तो बधाई इस विश्व विजय की इस गीत के साथ जो 1983 में लता जी के साथ उस समय के विजेताओं ने गाया था ।
चलिये ये तो क्रिकेट की बात हो गई । क्रिकेट की बात के बाद आइये अब ग़ज़ल की बात करते हैं । पिछला मुशायरा जो होली का मुशायरा था वो सब कुछ होने के बाद भी बहर को लेकर कुछ फीका रहा । कई लोगों ने प्रयास किया तो कई लोगों ने किनारे पर बैठकर आनंद लिया । तो ऐसा लग रहा है कि कुछ और हो जाये । ग्रीष्म्कालीन मुशायरा जिसमें कि अब मुरक्कब बहरों से शुरूआत हो । तथा मुरक्कब बहरों से शुरू करने से पहले एक बार ग़ज़ल का सफ़र पर भी कुछ काम करना होगा ताकि वहां पर मुरक्कब बहरों के बारे में विस्तार से बताया जा सके । वैसे भी इस ब्लाग पर कुछ काम उस प्रकार से नहीं हो पा रहा है जैसा सोच कर इसको शुरू किया गया था । ग़ज़ल का सफ़र पर कुछ नया लगाना अब शुरू करना है । और उसके साथ ही ग्रीष्मकालीन तरही मुशायरे की भुमिका भी ।
इसी बीच एक कहानी को लेकर काफी मानसिक श्रम हो गया । कहानी अडि़यल घोड़ें की तरह क़ाबू में नहीं आ रही थी । लगभग दो माह का श्रम हुआ उसके बाद कहानी कैसी हुई ये तो अब समय के हाथों में है । कहानी के नायक 'ढप्पू' में कायांतरण कर लेने के बाद भी कहानी ने इतना परेशान किया । दरअसल में पिछले पूरे साल भर जो मानसिक तनाव झेला है उसके बाद कुछ विशेष नहीं लिख पाया । हां इस बीच चौथमल मास्साब तथा कूल कूल लिखा गईं । जिसमें से भी अब सदी का महानायक पर एक टैली फिल्म बनने की प्रक्रिया चालू हो गई है । इन्हीं सब कारणों के चलते कई बार आप सब के मेल का जवाब नहीं दे पाया, कई बार रात को जब कहानी पर लगा होता था तो मोबाइल अटैंड नहीं कर पाया । काफी कुछ इस्लाह का काम भी पेंडि़ग हो गया है जिस पर अब कुछ कुछ काम करना शुरू कर रहा हूं । खैर ये सब तो होता है । तो अब ग्रीष्मकालीन तरही के लिये कोई ऐसी ग़ज़ल जिसमें गर्मी की चटकती दोपहर हो, रातों में महकते मोगरे हों, गलियों में दौड़ते धूल के बगूले हों और बहुत कुछ हो । कुल मिलाकर गर्मियों का पूरा आनंद हो ।
तो आप सब को नववर्ष की शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयों इस विश्व विजय की ।
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंजब तक बात ग़ज़ल पर नहीं आ गई ये सोचता रहा की क्या यह ब्लॉग गुरु जी का ही है और यह पोस्ट गुरु जी ने ही लिखी है ?
ग़ज़ल का पैरग्राफ पढ़ कर विश्वास हुआ
क्रिकेट, फ़ुटबाल भी
कुछ तो छोड़ा होता :)
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आपका वीनस केसरी
क्रिकेट के प्रति हमारी दीवानगी भी कम नहीं...पकिस्तान और फायनल के मैच के दौरान टी.वी के साथ साथ अपने और कान आँख बंद रखे...रात पौने ग्यारह बजे जब कोलोनी में पटाके चले ,ढोल पीटे गए तब जाकर टी. वी खोला और फिर रात तीन बजे तक हाइ लाईट देखते रहे...उन्नीस सौ तियासी का वर्ल्ड कप भूलता नहीं है जब गर्मियों में घर के बाहर दोस्तों के साथ कमेंट्री सुनी और भारत के जीतने पर नाचे कूदे पठाके चलाये...कुछ भी हो ये एक ऐसा खेल है जो पूरे देश को एक डोर में बाँध देता है...इस बार की जीत के बाद देश में एकता का अभूतपूर्व प्रदर्शन देखा गया...हम एक हैं गीत साकार हो गया.
जवाब देंहटाएंजब से आपके ब्लॉग की गतिविधि बर्फ में लगी है तब से रचनात्मकता का अंत सा हो गया लगता है. गुरुकुल के मेधावी छात्र रवि, गौतम, अंकित, वीनस, अर्श आदि सन्नाटे में हैं...वक्त आ गया के आप हुंकार लगा कर उन्हें गहरी निद्रा से जगाएं...
नीरज
kab shuru ho rahaa hai tarahi mushaira?
जवाब देंहटाएंगुरु जी आप भी मैच ना देखने वाले टोटके मे विश्वास रखते है?
जवाब देंहटाएंकितना मज़ा आएगा पसीने की टपटपाती बूंदों के साथ गज़ल लेखन| इसका भी आनंद लेना पड़ेगा|
आदरणीय सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंआज कौन नहीं है दीवाना क्रिकेट का
हमें भी अपने जैसा ही समझिए
और http://ghazalguru.blogspot.com/ इस ब्लॉग को देखने की अनुमति प्रदान कीजिए।
सादर
दीवानगी, क्रिकेट की।
जवाब देंहटाएंसुबीर भाई नमस्कार सबसे पहले दुर्ग में ख़ूबसुरत अन्दाज़ से ख़ूबसूरत कवितायें व गीत पढ कर महफ़िल लूटने के लिये बधाई। आपके "ग़ज़ल का सफ़र " व मुरक्कब बहर के मिसरे का इन्तज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएंमुरक्कब बहर !
जवाब देंहटाएंगुरु जी आपने कहा था अगली बार,, "रमल मुसम्मन सालिम" का मिसरा देंगे
गुरू जी! मैं कहती हूँ ना कि मुझे चुप ही रहने दिया करिये वर्ना मैं चुप नही हो पाती..... :)
जवाब देंहटाएंवो आपकी आपकी पोस्ट पर टिप्पणी थोड़ी बड़ी हो गयी, तो यहाँ लगानी पड़ी
http://kanchanc.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
क्रिकेट की दीवानगी तो आपको भी है ... हमें भी है सभ को है ... देश के जीतने की बधाई ... नाव वर्ष की भी बधाई ... आपकी कहानियाँ पढ़ने को मिलेंगी इससे अच्छा और क्या हो सकता है ... नई बहर पर काम करने के लिए हम तैयार हैं ... बस आपके आदेश का इंतेज़ार रहेगा ....
जवाब देंहटाएंपंकज भाई हम आपके ग़ज़ल वाले ब्लॉग पर भटकते हुए जैसे ही पहुँचे, दरवाजा खटखटाया तो आवाज़ आई हेंगे कि भैया ये दरवाजा की चाबी भी साथ में लाना ज़रूरी है, अब हमारे पास चाबी तो हेंगे नई|
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग से जोरदार और ज़्यादा ही रोचक जानकारी कंचन जी ने अपने ब्लॉग पर डाली है, कुछ सीक्रेट भी बताए हैं| और वहीं पर नीरज जी ने भी कुछ खास राज साझा किए हैं| आप खुद पढ़ लो|
सौरव गांगुली के बारे में भला क्या कहें - देखिए जिंदगी भी क्या क्या रंग दिखाती हैं| १ सेकंड पहले इंडियन क्रिकेट यानि सौरव गांगुली और पलक झपकते ही कप्तान तो छोड़िए जी बंदा ही टीम के बाहर...............
ओफ्फ बहुत तकलीफ़ हुई थी उस दिन - इसलिए नहीं क़ि मैं उस का फेन था/हूँ, इसलिए भी नहीं कि उस के बिना टीम इंडिया गर्त में जाने वाली थी - बल्कि इसलिए कि बरास्ते गावसकर, डालमिया वग़ैरह वग़ैरह प्रोफेशनल क्रिकेट वहाँ पहुच गई थी जहाँ सरोकारों के लिए कुछ स्थान ही नहीं बचा था| सिर्फ़ और सिर्फ़ पेरफॉर्मेंस............और ताज्जुब न करना........धोनी ये जानता है|
आज भी क्रिकेट पहली पसंद ज़रूर है पायॅट्री के बाद, पर वो पहले वाली दीवानगी नहीं जबकि चेतन चौहान की बॉल पर जावेद मियाँदाद ने छक्का मारा और पूरे मोहल्ले में पिन ड्रॉप साइलेंस.................
तरही का इंतेज़ार रहेगा............तब तक एक शेर आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूँगा:-
सच्चिनी हुक शॉट है ये जिंदगी
मुरलीधर की फिरकी है ये जिंदगी
परवतों की चोटियों पे जा के फिर
निज पताका गाढ़ना है जिंदगी
१९८३ का गीत विश्व विजयी गीत भी अभी सुन लिया गुरू जी....!!
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ्फ़ गर्मी और ग़ज़ल .... मैंने तो सोच रखा था कि लिखने का सबसे अनुकूल समय गुरु जी के अनुसार मार्च और अप्रैल के साथ साथ सितम्बर और अक्तूबर है ! इस लिहाज़ से मार्च तो गया अप्रैल में भी कुछ दिन हैं निकल जायेंगे ... और जब आगे के वो दो महीने आयेंगे तो फिर कम से कम छः महीने का समय तो मिल ही जायेगा लिखने के लिए... विश्व विजेता बनाना वाकई अच्छा महसूस कराता है ! और गौरवान्वित भी !
जवाब देंहटाएंnamaskaar !
जवाब देंहटाएंaanand aaya padh kar , badhai.
saadar !
शिकायत है की इस बार इस पोस्ट की जानकारी मुझे ईमेल द्वारा नहीं मिली....कृपया मेरा नाम ईमेल नोटिफिकेशन में फिर से डाल दें.
जवाब देंहटाएंइस बार पूरा टूर्नामेंट पूरी पूरी रात जाग कर देखा है.. हमारे यहाँ मैच रात १ या २ बजे शुरू होता था.
जवाब देंहटाएंलगभग सारे मैच देखे. अंतिम तीन मैच में तो मज़ा ही ही आ गया... २००७ सात के प्रदर्शन के बाद और फिर लीग मैचों में भारत की बोलिंग देख कर तो लगता नहीं था की जीतेंगे.
पिछले १ अप्रैल से आज १८ अप्रैल कब हुआ कुछ पता न चला.
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सुन्दर घटित हुआ और इसमें शामिल है बहुत कुछ सुन्दर साक्षात घटना - बातें अपनों वाली. यादें खुशबू वाली. क्रिकेट और ग़ज़ल तो हाथ में हाथ लेके चलते रहे. ठुमकते रहे...
विजेता बनना हैं तो अपने आप को जगाएं ! Khaaskar Students Ke Liye Motivational Article
जवाब देंहटाएंhttp://gyanbazar.blogspot.com/2017/06/Wake-up-yourself-in-hindi.html