शुभ हो दीपावली मंगलमय उल्लास से भरपूर हो ये पर्व । सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं । हर वर्ष बीतता है और हम उम्मीद लगाए बैठ जाते हैं पर्वों के फिर से आने की । इस बार भी ये पर्व पुन: आया है । हम सब पिछले समय परेशान रहे, मुश्किलों से जूझते रहे और लड़ते रहे । लेकिन अब पांच दिनों के लिये विराम लेकर मन से मनाएं पर्व को । इसलिये भी क्योंकि सामने तो फिर से वही संघर्ष है और वही समर है । तो आइये दीपको के झिलमिल प्रकाश और आनंद की रस वर्षा में विभोर हो जाएं । इस बार मेरे लिये तो दीपावली खास इसलिये है कि इस बार गौतम, बहू और बिटिया के साथ दीपावली मनाने सीहोर आ रहा है । 
  तो आइये मनाते हैं दीपावली आज इन महानुभावों के साथ । ये जो झिलमिलाते हुए सितारें हैं हमारे आकाश के और जिनके कारण हम अमावस में भी पूर्णिमा का एहसास करते  हैं । तो आज सुनते हैं राकेश खंडेलवाल जी, लावण्य शाह जी, नीरज गोस्वामी जी, तिलक राज कपूर जी और सबके चहेते समीर लाल जी को तरही की इस समापन किश्त में । और भभ्भड़ कवि भौंचक्के का एक छोटा सा मुक्तक । ये सातवीं किश्त है । और बहुत आनंद के साथ हम आ पहुंचे हैं आज दीपावली के तरही मुशायरे का ये क़ारवां लेकर एन दीपावली को । 
  शुभ दीपावली तरही मुशायरा 
  


  जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रोशनी 
  आदरणीय तिलकराज कपूर जी 
   
 
  तम दूर कर, खुशियां भरे, दिल से मने, दीपावली
  जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी।
  हमको रहा, उसपर यकीं, देखा नहीं, जिसको कभी
  गर राह से, भटके दिखे, वो आ गया, बनकर नबी।
  नबी- ईशदूत, अवतार, पैग़म्बर 
  उस महज़बीं, मग़रूर के, बस में न थी, ये जिन्दगी,
  मेरी मगर, ये कब रही, पल में हुई, जादूगरी। 
  हमने कभी, सोची न थी, खाने लगे, कस्में वही      
ये क्या हुआ, तुम ही कहो, थे कल तलक, हम अजनबी। 
  क्यूँ आपकी, तस्वीर ये, आठों पहर, मन में बसी, 
  रहकर अलग, भायी नहीं, क्यूँ जिन्दगी, ओ चॉंदनी।
  उसने मुझे, क्या क्या दिया, चर्चा कभी, मैनें न की
  रुस्वा न हो, ये सोचकर, मेरी ज़बां, चुप ही रही।
  इक याद से सिहरन उठे, इक याद से मिलती खुशी        
जीवन डगर, कटती रही, कुछ इस तरह, यादों भरी। 
  इस शह्र में, किस शख्स को, कब काम से, फ़ुर्सत मिली
  एक यंत्र के, पुर्ज़े बने, चलते दिखे, मुझको सभी। 
  तेरे नगर, में तो दिखी, चारों तरफ़, इक भीड़ सी
  ढूँढा बहुत, दिखता नहीं, इस भीड़ में, इक आदमी।
  पढ़कर मुझे, उसने कहा, सीखी कहॉं, ये शायरी,
  मैनें कहा, तुमपर फिदा, जबसे हुए, ये आ गयी।
  लगती सरल, थी ये बहुत, पर अब कठिन, लगने लगी
  आसॉं नहीं है शायरी, शब्दों की है, कारीगरी।
  इस शौक में, हम थम गये, जिस मोड़ पर, महफिल दिखी
  अब तो सभी कहने लगे अच्छी नहीं आवारगी।
  ‘राही’ अगर, दिल ये कहे, गल्ती करें अपनी सही 
  उस मोड पर, लौटें जहॉं तक साथ की थी रहबरी।
  
  सारे के सारे मतले और वो भी सब एक से बढ़कर एक । वाह किस पर करें और किस पर न करें । हमको रहा उस पर यक़ीं जिसको नहीं देखा कभी, दीपावली के दिन को सार्थक बनाता हुआ उस ईश्वर की परम सत्ता में भरोसा दिलाता हुआ सा शेर है मजा आ गया । 
    आदरणीय समीर लाल ’समीर’ जी
     
 
   जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी
  बोलो वचन ऐसे सदा घुलने लगे ज्यूँ चाशनी
  ऐसा नहीं हर सांप के दांतों में हो विष ही भरा
  कुछ एक ने ऐसा डसा ये ज़ात ही विषधर बनी
  सम्मान का होने लगे सौदा किसी जब देश में 
  तब जान लो, उस देश की है आ गई अंतिम घड़ी
  किस काम की औलाद जो लेटी रही आराम से 
  और भूख से दो वक्त की, घर से निकल कर मां लड़ी
  (CWG स्पेशल)
  सब लूट कर बन तो गये सरताज आखिरकार तुम  
  लेकिन खबर तो विश्व के अखबार हर इक में छपी
  वाह वाह समीर जी बड़े दिनो बाद तरही में आए लेकिन धमाका कर ही दिया । जिस देश में सम्मान का सौदा भी जब होने लगे अहा क्या बात कही है । आपके गद्य और पद्य दोनों में ही व्यंग्य का जो स्थाई भाव है वो गहरे तक उतर जाता है । 
  आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी 
   
 
  
    आस के पौधे बढे बढ़ कर उनहत्तर हो गए
    एक ही बस लक्ष्य बाकी दृश्य सारे खो गए
  वर्तिका जलती रही तैंतीस धागों में बंटी
  बंध गए बस एक डोरी में हजारों अजनबी
  फिर अमावस में खिली आ कर कहे ये चांदनी
  दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
  
  बाद मंथन के सदा ही रत्न जिसने थे उलीचे
  जब जलधि लगने लगा थक सो गया है आँख मीचे
  पर सतत भागीरथी आराधना फलने लगी तो
  इक नई सीपी उगाने लग गई नूतन फसल को
  मुस्कुरा गाने लगी वह धूप जो थी अनमनी
  दीप ये जलते रहें कायम रहे ये रोशनी
  
  ये घटित कहता न धीमी आग हो विश्वास की
  चूनरें धानी रहें मन में हमेशा आस की
  ठोकरों का रोष पथ में चार पल ही के लिए
  आ गए गंतव्य अपने आप जब निश्चय किये
  और संवरी है शिराओं में निरंतर शिंजिनी
  दीप ये जलते रहें,कायम रहे ये रोशनी
  वाह वाह वाह क्या गीत है । वैसे राकेश जी की एक ग़ज़ल भी प्राप्त हुई है । स्थानाभाव के चलते जब दोनों में से कोई एक लगाने की समस्या आई तो मन ने कहा कि दीपावली के दिन गीतों के राजकुमार कवि का गीत ही सुनना चाहिये । मिसरा ए तरह को किस प्रकार से गीत के मुखड़े में गूंथा है कि बस । ठोकरों का रोष पथ में अहा अहा अहा । राकेश जी की ग़ज़ल भी जल्द ही दीपावली पश्चात । 
  आदरणीय श्री नीरज गोस्वामी जी 
   
 
  
  
  संजीदगी, वाबस्तगी, शाइस्तगी, खुद-आगही
  आसूदगी, इंसानियत, जिसमें नहीं, क्या आदमी 
  (वाबस्तगी: सम्बन्ध, लगाव, शाइस्तगी: सभ्यता, खुद-आगही: आत्म ज्ञान, आसूदगी:संतोष)
  ये खीरगी, ये दिलबरी, ये कमसिनी, ये नाज़ुकी
  दो चार दिन का खेल है, सब कुछ यहाँ है आरिजी 
  (खीरगी: चमक, दिलबरी: नखरे, आरिजी:क्षणिक)
  हैवानियत हमको कभी मज़हब ने सिखलाई नहीं
  हमको लडाता कौन है ? ये सोचना है लाजिमी 
  हर बार जब दस्तक हुई उठ कर गया, कोई न था 
    
  तुझको कसम, मत कर हवा, आशिक से ऐसी मसखरी  
    हो तम घना अवसाद का तब कर दुआ, उम्मीद के 
  जलते रहें दीपक सदा कायम रहे ये रौशनी 
  पहरे जुबानों पर लगें, हों सोच पर जब बंदिशें 
  जुम्हूरियत की बात तब लगती है कितनी खोखली 
  फ़ाक़ाजदा इंसान को तुम ले चले दैरोहरम 
  पर सोचिये कर पायेगा ‘नीरज’ वहां वो बंदगी ?
  मतला और मतले के ठीक बाद का शेर उफ मार डाला । वाह वाह वाह क्या कह दिया है नीरज जी आपने, मतले के बाद का शेर तो क़ातिल है, खंजर लिये खड़ा है कि आओ मुझे पढ़ो और क़त्ल हो जाओ । सबसे अच्छी बात तो ये है कि जो आपने 2212 के वज़्न के मुकम्मल शब्द ढूंढे हैं वे तो कमाल के हैं । आपको प्रणाम । 
  आदरणीया लावण्या शाह जी 
  
   
 
  जलतें रहें दीपक सदा, काइम रहे ये रोशनी 
  अब के दिवाली आये यूं, हर ओर बिखरे बस खुशी 
  शिकवा नहीं, ना हो गिला, कोई परेशानी न हो  
  मिट जाएँ सारे फासले, कोई रहे न अजनबी 
  जगमग जलें, जब दीप तब, हर ओर फिर, हो नूर बस   
  मिल कर गले, यूं सब मिलें, दिल से मिटे हर दुश्मनी
  हर सिम्त अम्नो चैन हो, बच्चे किलकते झूमते 
  बन कर  बुजुर्गों की दुआ, घर घर में उतरे चांदनी 
  हिन्दू मुसलमां, पारसी, ईसाई, सिख और जैन सब  
  मिल कर रहें, घुल कर रहें, जैसे के मीठी चाशनी  
  इसीलिये तो कहा जाता है कि बहनें जहां भी हों उनका एक ही काम होता है दुआएं मांगना । बहनों का दुआएं मांगने का सिलसिला कभी रुकता नहीं है । लावण्य दीदी साहब ने भी पूरी ग़ज़ल में उस ऊपर वाले से किस के लिये नहीं मांगा । वाह वाह वाह । 
   
 
  सुख सम्पदा भरपूर हो, हर ओर बिखरी हो ख़ुशी 
  जगमग दीवाली की तरह रोशन हो सबकी जि़दगी 
  धन-धान्य से भरपूर हो, हर इक नगर, हर एक घर 
  जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रोशनी 
   
 
  भभ्भड़ कवि भौंचक्के 
  चलिये सबको दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनाएं । हंसते रहें मुस्कुराते रहें । मेरे हिस्से की मिठाई कोरियर से या जिस भी तरीके से भेजना चाहें तो स्वागत है । परिवार के साथ रहें । आनंद लें । बच्चों को उन छोटी छोटी खुशियों से जोड़ें जो आगे चलकर उनकी स्मृतियों में दर्ज रहें । सबको बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।