बहुत दिनों बाद आज की ये पोस्ट । बहुत दिनों बाद होने के पीछे भी कई सारे कारण हैं । शिवना प्रकाशन की नयी सात आठ पुस्तकों पर काम एक साथ चालू हो गया है । जिनमें से तीन तो जनवरी के प्रथम सप्ताह तक ही आने की संभावना है । और फिर उलझनें तो उलझनें हैं सुलझ जाएं तो फिर उनको उलझनें कहा ही क्यों जाये । खैर ये सब बातें बाद में आज तो कुछ अच्छी बातें और भी हैं करने के लिये ।
राकेश खंडेलवाल जी का सीहोर आगमन : दिनांक 11 दिसंबर को राकेश खंडेलवाल जी सीहोर आ रहे हैं । जहां पर उनको शिवना सारस्वत सम्मान 2010 प्रदान किया जायेगा । शिवना प्रकाशन द्वारा हर वर्ष शिवना सारस्वत सम्मान तथा शिवना पुरस्कार प्रदान किया जाता है । वरिष्ठ हिंदी सेवी को सम्मान तथा युवा हिंदी सेवी को पुरस्कार । इस वर्ष मई में डॉ आज़म को शिवना पुरस्कार प्रदान किया गया था तथा अब श्री राकेश खंडेलवाल जी को सम्मान प्रदान किया जायेगा । इस अवसर पर गौतम राजरिशी, वीनस केशरी, अंकित सफर, रविकांत पांडेय के भी आने की स्वीकृति मिल चुकी है । आप सब भी सादर आमंत्रित हैं । ये केवल औपचारिकता नहीं है बल्कि दिल से आग्रह है कि यदि आप आ सकते हों तो अवश्य आयें । यदि आप नजदीक में भोपाल या आस पास हैं तो अवश्य आने की कोशिश करें । सम्मान के पश्चात एक काव्य संध्या का भी आयोजन किया जायेगा ।
शिवना प्रकाशन की अगली पुस्तकें : शिवना प्रकाशन की जो तीन पुस्तकें बिल्कुल आने को तैयार हैं वे हैं संगीता स्वरुप जी की उजला आसमां, रजनी नैयर जी की स्वप्न मरते नहीं और और और जी हां श्री समीर लाल जी की लघु उपन्यासिका देख लूं तो चलूं । ये तीनों ही पुस्तकें जनवरी के प्रथम सप्ताह में आने के लिये तैयार हैं । दो काव्य संग्रह तथा एक उपन्यासिका के साथ नये साल की शुरूआत शिवना प्रकाशन द्वारा की जा रहीहै । बाकी की पुस्तकें फरवरी में आने की संभावना है ।
छपास की भड़ास: पिछले दिनों भारतीय ज्ञानपीठ से दो नयी पुस्तकें आईं हैं तथा ये दोंनों ही कहानी संकलन के रूप में आये हैं । जिनमें विभिन्न लेखकों की कहानियों का संकलन किया गया है । तथा दोनों ही संकलनों में आपके इस मित्र की एक एक कहानी को स्थान दिया गया है । पहली पुस्तक है लोकरंगी प्रेम कथाएं तथा दूसरी ही युवा पीढ़ी की प्रेम कथाएं । इस प्रकार अब आपके इस मित्र की ज्ञानपीठ से आई पुस्तकों की संख्या 4 हो गई हैं । हंस पत्रिका के दिसंबर अंक में आपके इस मित्र की एक कहानी प्रकाशित हुई है सदी का महानायक उर्फ कूल कूल तेल का सेल्समेन । कहानी कुछ अलग तरीके से लिखने की कोशिश है । अभी हंस की वेब साइट पर दिसंबर का अंक नहीं अपलोड किया गया है । एक दो दिन में हो जाएगा । अवश्य पढ़ें तथा बताएं कि कैसी लगी । वर्ष में दो या तीन कहानियां लिखना बहुत होता है इससे अधिक लिखना मतलब अपने आप को अपव्यय करना । और हां अभी आंध्रप्रदेश से प्रकाशित एक पत्रिका जो तेलगू में है उसके लिये एक कहानी लिखी थी भोपाल गैस कांड पर फरिश्ता जो शांता सुंदरी जी ने अनुवाद करके पत्रिका में प्रकाशित की है । सदी का महानायक.... जुरूर पढ़ें और अपनी राय से अवगत कराएं ।
सौती मुशायरा : इसके बारे में कई बार सुनता रहा हूं लेकिन कभी प्रयोग नहीं किया । अभी कहीं पढ़ा कि फैज़ साहब जैसे शायर भी सौती मुशायरे में भाग लेते थे । तो बड़ी इच्छा हो रही है सौती तरही मुशायरे करवाने की । सौती तरही मुशायरे में दी गई बहर पर ग़ज़लें लिखी जाती हैं । बहर का पूरा ध्यान रखा जाता है लेकिन कहन का बिल्कुल नहीं रखा जाता है । मतलब मिसरे का ही कोई अर्थ नहीं निकलता तो शेर तो दूर की बात है । कुल मिलाकर ये कि किसी मिसरे का कोई अर्थ न हो, शब्द केवल बहर की मांग के अनुसार तौल तौल कर वज़न के हिसाब से जमा कर रख दिये गये हों । ये मेरे ज्ञान के हिसाब से सौती मुशायरा है आपको यदि कुछ और जानकारी हो तो अवश्य बताएं ।
और अंत में दिनेश कुशवाह जी की एक कविता प्राणों में बांसुरी ( ये कविता कथाक्रम में छपी है लेकिन उसके बाद उन्होंने उसमें कुछ संशोधन किये हैं ) उन्होंने अपनी अद़भुत किताब इसी काया में मोक्ष के साथ ये मुझे अलग से भेजी है । श्री कुशवाह जी रीवा विश्वविद्यालय में हिंदी के विभागाध्यक्ष हैं और बहुत अच्छे कवि हैं । इसी काया में मोक्ष ये पुस्तक राजकमल प्रकाशन से आई है । पुस्तक में रेखा, हेलन, मीना कुमारी और स्मिता पाटिल पर लिखीं चार कविताएं मेरे विचार में हिंदी कविता में अब तक किया सबे अलग प्रयोग है । और कविता प्रेम में पड़ी हुई लड़की का तो कहना ही क्या है । मीना कुमारी नाम की कविता की कुछ पंक्तियां हैं जलते बलुवे पर नंगे पैर / चली जा रही थी एक मां / तलवों में कपड़ा लपेटे / जब हम उसे देख रहे थे अमराइयों से ।
प्राणों में बांसुरी
( श्री दिनेश कुशवाह)
कितने दिन हुए
धूल में खेलते किसी बालक को
उठाकर गोद में लिये हुए ।
मुद्दत हुई अपने हाथ से पकाकर
किसी को जी भर खिलाकर
अपनी आत्मा को तृप्त किये हुए ।
कितने दिन हुए
हाथ से बंदूक छुए
जबकि वह मुझे अच्छी लगती है ।
किसी जूड़े में फूल गूंथे हुए
कितने दिन हुए,
कितने दिन हुए
नदी में नहाए हुए ।
कितने दिन हुए
न रोमांच हुआ
न जी टीसा
न प्राणों में बांसुरी बजी ।
कितने दिन हुए
न खुलकर रोया
न खुलकर हंसा
न घोड़े बेचकर सोया ।
बहुत ही सुन्दर कविता कुशवाह जी की। वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो से इन्तजार था पोस्ट का। इतनी खुशखबरियाँ कि सम्भाले नही सम्भल रही। नई पुस्तकों का प्रकाशन,ग्यानपीठ की पुस्तकों मे आपकी कहानियाँ,शिवना प्रकाशन का सम्मान समारोह,कवि गोष्ठी--- वाह बहुत बहुत बधाई। हंस पत्रिका के आते ही पढते हैं सदी का महानायक । मुझे तो लगता है सदी के महानायक आप ही हैं। इसी तरह हर सदी मे महानायक की तरह डटे रहो--- बहुत बहुत आशीर्वाद और शुभकामनायें।-- निम्मो दी
जवाब देंहटाएंकार्य बड़े हों तो व्यस्तताएं, उलझने अाती जाती रहेंगी.
जवाब देंहटाएंअापकी हर पोस्ट नयी जानकारी के साथ खूब उत्साह भी देती है. शिवना के कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलते रहे, यही शुभकामनायें है. दिनेश कुशवाहा जी की कविता पढ़वाने के लिये शुक्रिया.
ग्यान पीठ और हंस में स्थान पाने के लिये ढेरों बधाई। 11 दिसंबर के कार्यक्रम की सफ़लता के लिये शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई जिनकी भी पुस्तकें छप रही हैं ……………कुशवाह जी के लेखन को नमन ………।क्या गज़ब का लिखते हैं……………आपका आभार सारी जानकारी यही उपलब्ध करवा दी।
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंआप को ढेरों बधाइयाँ
ये सौती मुशायेरा तो सुनने में ही रोचक और रोमांचक लग रहा है.
बहुत ही अच्छा लगा आकी कहानियों के बारे में जान कर ... इतनी सारी पुस्तकें भी प्रकाशन में हैं जान कर बहुत ही अछा लगा ...शिवना सारस्वत सामान को हम तो बस झलकियों में ही देख पायेंगे ... परीक्षा रहेगी ... इतना सब कुछ होना अच्छा संकेत है ..... आपको बहुत बुत शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु देव ,
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन तथा आपको बहुत बहुत बधाइयां !
सौती मुशायरे ने उत्सुकता बढ़ा दी है !
और साथ में रक्षा खंडेलवाल जी को भी शिवना सारस्वत सम्मान के लिए बधाई !
आपका
अर्श
राकेश खंडेलवाल जी, संगीता स्वरूप जी, समीर लाल जी व स्वयं आपको बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
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जवाब देंहटाएंहंस के लिंक के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. मुझे तो जैसे खजाना मिल गया. अगले अंक, जिसमें आपकी कहानी होगी, का इंतज़ार रहगा. राकेश जी को दिए जाने वाले सम्मान के बारे में जान कर बहुत खुशी हुई. काश मैं भी इस अवसर पर वहाँ आ पाता.
जवाब देंहटाएंअंत में एक प्रशन: सौती मुशायरे का उद्देश्य क्या होता है?
आप ने कहा:- "उलझाने तो उलझने हैं सुलझ जाएँ तो फिर उनको उलझने कहा ही क्यूँ जाए?
जवाब देंहटाएंहम कहते हैं:-
उलझनें उलझनें उलझनें उलझनें
कुछ वो चुनती हमें कुछ को हम खुद चुनें
खैर ये बातें बाद में. सबसे पहले शिवना प्रकाशन को नयी पुस्तकों के प्रकाशन की अग्रिम बधाई, भाई राकेश जी को शिवना सारस्वत सम्मान प्राप्ति की अग्रिम बधाई, काव्य संध्या की सफलता के लिए अग्रिम शुभकामनाएं.
मन में बहुत कसक है, सीहोर में इतना कुछ हो रहा है और मैं नहीं जा पा रहा हूँ...आप भी इसी तरह की कसक महसूस करते होंगे जब मेरे बार बार आग्रह करने के बावजूद भी आप चाह कर भी मुंबई नहीं आ पाते होंगे...मजबूरी का अब एक ही नाम रह गया है...चाहे नीरज कह लें चाहे पंकज...दोनों का एक ही मतलब है...(महात्मा गाँधी का नाम कब तक लेते रहेंगें )
हंस, ज्ञानपीठ आदि तो शुरुआत हैं..आप कहाँ से कहाँ जायेंगे आप को अभी मालूम नहीं है...हमारी शुभकामनाएं और आपकी प्रतिभा आपको एक दिन हिंदी साहित्य के शीर्ष पर जा बैठाएगी...देखना.
सौती मुशायरा के बारे में पढ़ कर मालूम पड़ा के हम तो अब तक सौती ग़ज़लें ही लिखते आ रहे थे...वाह...ये महान कारनामा हम अनजाने में ही किये जा रहे थे.
दिनेश जी की प्राणों में बांसुरी कविता पढ़ कर उनके चरण स्पर्श की इच्छा बलवती हो गयी है..अद्भुत लेखन है...वाह.
नीरज
sundar kavita!
जवाब देंहटाएंउलझनें दूर करने आ रहे हैं हम सब गुरूदेव....
जवाब देंहटाएं... bhaavpoorn rachanaa ... shaandaar post !!!
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो राकेश खंडेलवाल जी को सम्मान के लिए बधाई,
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन से प्रकाशित होने के लिए संगीता जी, रजनी जी और समीर लाल जी को भी ढेरों शुभकामनाएं|
गुरु जी आपको भी प्रकाशन के लिए बहुत बहुत बधाई, हंस का अंक अभी अपलोड नहीं हुआ है, आपके नाम के साथ उसमे गौतम साहब का भी नाम है इसलिए बेसब्री से प्रतीक्षा है|