गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

11 दिसंबर और 12 दिसंबर, यादों के गलियारों में सुनहरे फ्रेम में जड़ कर मानो किसीने इस प्रकार टांग दिये हैं कि आते जाते उन पर नज़र पड़ रही है । आइये चलें यादों के उसी गलियारे की सैर पर ।

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शिवना प्रकाशन का कार्यक्रम बहुत ही अच्‍छा रहा । आदरणीय राकेश जी को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान करने की योजना इस वर्ष के प्रारंभ से ही बन रही थी लेकिन हर बार किसी न किसी कारण ये कार्यक्रम नहीं हो पाता था । और अंतत: वर्ष बीतते बीतते कार्यक्रम हो ही गया । और बहुत ही गरिमामय कार्यक्रम हो गया । हालांकि कार्यक्रम को और अधिक बड़े स्‍तर पर करने की योजना थी  । कई लोग आये और कार्यक्रम सफल तथा सुफल हो गया । कार्यक्रम की विस्‍तृत रपट तो आप पिछले अंक में पढ़ चुके है सो आज कुछ वो बातें जो बाकी के दो दिनों की यादें हैं ।

गौतम, रवि, अंकित, अर्श, वीनस ने ज़ोरदार तरीके से काव्‍य पाठ किया मुशायरे में । अंकित के संचालन में मुशायरा संपन्‍न हुआ । अंकित अब धीरे धीरे परपिक्‍व होता जा रहा है । हालांकि संचालन के लिये अभी भी बहुत परिष्‍कृत होने की आवश्‍यकता है । किन्‍तु बात वही है कि नई पीढ़ी को अंतत: तो बैटन पिछली पीढ़ी से संभालना ही पड़ता है इस रिले रेस में । यदि पिछली पीढ़ी बैटन देने में और नई पीढ़ी लेने में हिचकिचा गई तो रेस हारने की संभावना हो जाएगी ।

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गोष्‍ठी में वीनस ने धमाकेदार शुरूआत की । फिर प्रकाश अर्श का शानदार प्रदर्शन ( गौतम की झिड़की एक शेर पर रात को मिली) और फिर रविकांत ने अपना आइआइटी वाला प्रदर्शन एक बार फिर जोरदार तरीके से दोहराया ( जिसका विवरण बाद में गौतम ने गुंजन को विस्‍तार से प्रस्‍तुत किया ) । फिर गौतम ने कुछ ग़ज़लें पढ़ीं, और सीहोर के कुछ कवियों ने भी अपना न समझ में आने वाला कलाम पढ़ा । गोष्‍ठी को लूटा सीहोर के वरिष्‍ठ तथा मेरे पसंदीदा शायर भाई रियाज़ मोहम्‍मद रियाज़ साहब ने । उनके जो शेर खूब पसंद किये गये वो ये थे

तसव्‍वुर पर किसी का बस नहीं है, मैं जब चाहूं उसे आना पड़ेगा

इक शेर भी ग़जल का मुकम्‍मन न हो सका, इतना भी वक्‍त जाने ग़ज़ल ने नहीं दिया

दो क़दम बच कर चलो कमज़र्फ के एहसान से, फायदा थोड़ा ही अच्‍छा है बड़े नुकसान से

जब भी लगता है कि दिल के ज़ख्‍़म कुछ भरने लगे, लोट आता है कोई यादों के क़ब्रिस्‍तान से

उसके आ जाने से घर में खैरो बरकत आ गई, रहमतों का कुछ तो रिश्‍ता है मेरे मेहमान से

तीसरे नंबर के मतले ने तो मुशायरे की दाद और वाह वाह से छत ही उड़ा दी । उसके बाद फिर मैं, नारायण कासट जी और राकेश खंडेलवाल जी ने भी अपनी रचनाएं पढ़ीं । और हमारी कवि गोष्‍ठीयों के सबसे धुरंदर श्रोता श्री जयंत शाह के आभार के साथ गोष्‍ठी का समापन हुआ । और चित्र खिंचवाए गये । ( जांच जारी है कि फोटो में वीनस को किसने काटा ।फिलहाल कह सकते हैं कि जो कान नज़र आ रहा है वो ही वीनस है )

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इस गोष्‍ठी में एक और बात हुई और वो ये हुई कि गौतम राजरिशी को सम्‍मानित किया गया । सम्‍मानित किया गया इस कारण कि अब बच्‍चा बड़ा हो गया है । हमारा ये फौजी जो अभी तक मेजर गौतम राजरिशी कहलाता था अब इसका नाम कुछ बदल गया है अब वो लेफ़्टीनेंट कर्नल गौतम राजरिशी के नाम से जाना जायेगा । क्‍योंकि अब प्रमोशन के बाद नाम यही कुछ हो गया है । तो इस अवसर को भी गोष्‍ठी के दौरान सेलीब्रेट किया गया । गौतम को राकेश जी, डॉ पुष्‍पा दुबे जी ने मंगल तिलक लगाकर शॉल उढ़ाकर सम्‍मानित किया ।

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गोष्‍ठी रात लगभग साढ़े ग्‍यारह बजे तक चली और उसके बाद फिर सबने घर की ओर प्रस्‍थान किया जहां पर भोजन प्रतीक्षा कर रहा था ( मेरे ऑल टाइम फेवरेट मेथी के परांठे और गाजर का हलवा ) । भोजन के दौराना पता चला कि विश्‍व में एक ऐसा व्‍यक्ति ( गौतम राजरिशी ) भी है जिसे गाजर का हलवा बिल्‍कुल भी पसंद नहीं है । भोजन के पश्‍चात कार्यक्रम का चौथा चरण प्रारंभ हुआ ( 1 शिवना सारस्‍वत सम्‍मान, 2 गोष्‍ठी, 3 भोजन, 4 रात्रि जागरण फार बतौलेबाज़ी ) ये चौथा चरण सबसे दिलचस्‍प था । राकेश जी इस चौथे चरण में रात 2 बजे तक शामिल रहे और फिर नींद ने उनको पुकार लिया । दूसरा विकेट भी बहुत जल्‍द गिरा रविकांत पांडेय का जो आधे घंटे बाद लगभग ढाई बजे नींद के हाथों शहीद हुए । उसके बाद सुब्‍ह 6 बजे तक बाकी के लोग जागरण करते रहे । बीच में एक बार अंकित ने बहुत ही घटिया टाइप की चाय भी बना कर पिलाई जो कि स्‍वाद में कहीं से चाय नहीं थी लेकिन कप में आई थी इसलिये उसे चाय कहा जा सकता है । अर्श के आलोचक होने पर सबने बधाई दी । इछावर के मेरे पत्रकार मित्र परवेज भी इस सब में फंसे हुए थे । सुब्‍ह लगभग साढ़े 6 बजे सब भांति भांति के स्‍थानों ( सोफा, पलंग, जमीन) पर भांति भांति की चीजें ओढे कर सो गये ।

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रविवार की सुबह 9 बजे एक बार फिर बतौलेबाज़ी की शुरूआत हो चुकी थी जो जहां था वहीं से बतिया रहा था । और बीच बीच में खाना पीना भी चल रहा था । दोपहर का मीनू ( दाल बाटी, कढ़ी, चूरमा, भटे का भरता) तैयार होते तक राकेश जी की ट्रेन का समय हो चुका था । सबसे पहले राकेश जी ने भोजन किया ( रात को टमाटर की सब्‍ज़ी में मिर्च तेज़ होने के कारण उनको तथा अर्श को गाज़र के हलवे के साथ मेथी के परांठे खाने पड़े थे, अद्भुत कॉम्बिनेशन ) । उसके बाद माताजी ने उनको मंगल तिलक कर अंगवस्‍त्र उढ़ा कर विदाई दी । आंखें नम थीं भीगी हुईं थीं, और उदासी छा रही थी । कलीम ( ड्रायवर) के साथ राकेश जी भोपाल रवाना हुए ।

पीछे बची जनता अब ड्राइंग रूम में गोला बनाकर, दस्‍तरखान बिछा कर दावत में जुट गई । क्‍योंकि अब एक एक कर सबकी ट्रेनों का समय था । चूरमे के लड्डू कुछ जियादा अच्‍छे बन जाने के कारण डिमांड में रहे । और खाने के बाद एक बार फिर बतौलेबाज़ी, वीनस ( इलाहाबाद का होने के बाद भी ) पहली बार अमरूद के पेड़ पर चढ़ा और उसके सौजन्‍य से सबने अमरूद खाये ( डॉ राहत इन्‍दौरी साहब को याद करते हुए ) ।

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अगली ट्रेन अंकित की थी जिसे भोपाल से ट्रेन पकड़ना था । सो अगली विदाई अंकित की हुई ( बाद में पता चला कि भोपाल में ट्रेन लेट हो जाने के कारण अंकित काफी देर अटका रहा । ) बाकी के लोग ऑफिस आये जहां फोटो अपलोड शपलोड चलता रहा । और जहां पर सनी अकेला ऑफिस को वापस पूर्व का स्‍वरूप देने में जुटा था ।  अब अगली ट्रेन रविकांत, गुंजन, वीनस और प्रकाश की थी । ये ट्रेन भी भोपाल से ही थी सो ये लोग भी रवाना हुए । ( इससे पहले महिलाओं की जो गोष्‍ठी जिसमें गुंजन, संजीता, और मेरी धर्मपत्‍नी शामिल थीं, जिसे कमरे में जमी थी वहां से बकौल रविकांत इस प्रकार के ठहाके आ रहे थे मानो पुराने बरगद की ..... हंस रहीं हों ) । एक बार फिर भीगी आंखों के साथ तीसरा दल अपनी ट्रेन पकड़ने भोपाल रवाना हुआ ।

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और इधर गौतम संजीता, पीहू की ट्रेन का भी समय हो चुका था जो सीहोर से ही थी । समय इस प्रकार हो चुका था कि ट्रेन के समय पर हम लोग घर पर ही थे । कलीम राकेश जी को छोड़कर वापस आ चुका था, उसीने बताया कि स्‍टेशन पर राकेश जी की आंखें भर आईं थीं ।  भारतीय ट्रेन ने एक बार 15 मिनिट लेट होकर साथ निभाया । और मैं सोनू कलीम इन लोगों को लेकर भागत हुए स्‍टेशन पहुंचे । जयपुर चैननई के कोच में जब ये सब सवार हुए तो मानो दो दिन से चल रहे एक उत्‍सव का समापन हो गया । मन खाली था, आंखें भरी हुईं । धीरे धीरे ट्रेन सरकी और हाथ हिलाते हुए चेहरे धुंधले हो गये । खामोशी से मैं, सोनू और कलीम स्‍टेशन से बोझिल क़दमों से लौट रहे थे, चुप्‍पी को तोड़ते हुए सोनू ने पूछा ' कौन से रिश्‍ते होते हैं ये ? ''

मेरे पास उसके इस प्रश्‍न का कोई उत्‍तर नहीं था । आपके पास हो तो अवश्‍य बताइयेगा ।

19 टिप्‍पणियां:

  1. कौन से रिश्ते होते है ये --------इसका उत्तर तो शायद ही किसी के पास हो…………प्रेम के रिश्तो के नाम नही होते सिर्फ़ यही कहा जा सकता है……………जीवन्त चित्रण कर दिया ऐसा लगा आंखो देखा हो सब और हम भी उसमे शामिल हों।

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  2. आपके साथ यादों के गलियारे में घूम आये ..आभार

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  3. आपने तो जला कर खाक कर दिया गुरुदेव ... देखिए कैसा दुर्भाग्य है हमारा ... इतनी यादगार हसीन शाम से हम हमेशा महरूम रह जाते हैं ... सभी का आनंद दिखाई दे रहा है ... सभी से जलन हो रही है ...

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  4. कौनसा रिश्‍ता है ये, बूझने की कोशिशें
    उम्र भर करता रहा, उत्‍तर नहीं पाया कभी।

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  5. अद्भुत रिश्ते। विस्तार से रिपोर्ट पढ कर अपनी बेबसी पर रोना आया। बस इतना ही कह सकती हूँ। सब को बधाई यथायोग्य आशीर्वाद। रिश्तों का प्यार का गुरू कुल का ये सिलसिला निरन्तर चलता रहे। गौतम को प्रोमोशन की बहुत बहुत बधाई।

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  6. मैं इसे क्या कहुं... इस पर.... खुद पर क्या कहुं.

    जब दो महिने अक्तूबर नवंबर मै इधर उधर भ्रमण करता रहा...अाचार्य जी से बातें भी होती रही अौर जब बात सीहोर समारोह की हो रही है तो मै दिसंबर चढ़ते वापस काम पर पहुंच खाली हाथ महसुस कर रहा हुं....

    ..लेकिन मैं बताये देता हु्. इस वक्त मेरी अाँखें नम है. बिना मिला ही अापसे बहुत कुछ जुड़ जाता है, जुडा़ रहता है कौनसा रिश्ता है ये ?

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  7. काश!! हम भी वहाँ होते...आनन्द आ गया पढ़ देख कर.

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  8. ऐसे रिश्ते जिनका कोई नाम नहीं होता सबसे मजबूत होते हैं क्यूँ के इन्हें बनाने में आपकी पैदाइश का कोई योग नहीं होता इन्हें आप स्वयं बनाते हैं...

    आपकी रिपोर्ट पढ़ कर भाव विभोर हो गया...कैसे हसीन लम्हें मेरी पकड़ से छूट गए...

    आनंद आ गया रियाज़ साहब के शेर पढ़ कर...जब भी लगता है दिल के ज़ख्म...शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ...

    अंकित बड़ा हो गया है और उस्ताद भी...शेर कहने में बड़े बड़ों के कान काटने लगा है...

    गौतम के प्रोमाशन को पढ़ कर दिल खुशी से नाचने लगा...दुआ करते हैं वो कामयाबी की सीढीयां यूँ ही चढ़ता रहे....

    वीनस की फोटो बहुत मजेदार लगी जैसा चुलबुला वो बातों से लगता है वैसा अपनी हरकतों से लगने लगा है...

    अर्श और रवि सदा की भाँती धीर गंभीर लगे.

    राकेश भाई तो राकेश भाई हैं उनके बारे में क्या कहूँ...शब्द ही छोटे पड़ जाते हैं...

    मेथी के परोंठे और गजार का हलवा मुझे भी प्रिय है...आज नहीं तो कल कभी तो खाऊंगा ही...मन में है विश्वाश...पूरा है विशवास...


    नीरज

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  9. यादो के गलियारे से हम भी गुजर लिए.....बेहद सुन्दर चित्रण....इस सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई....
    regards

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  10. रिश्ता वो ही निभाएगा देवी
    जिसको रिश्ता समझ में आया है.
    सीवन प्रकाशन के सभी सदसिओं को मेरी शुभकामनाएं!
    राकेश जी इस सन्मान के हक़दार है और सुबीर्जी आप तो अब देस-परदेस के बीच की पुल बन गए हैं. हाँ एक अफ़सोस रहेगा की हम वहां नहीं थे.

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  11. कितनी आसानी से आपने बात को पूरी तरह से चित्रित किया है क्या मजाल की आपकी आँखें ना डबडबाई हो लिखते वक्त या दूबारा इसे पढ़ते वक्त ! अब भी सारे मंज़र आखों में हैं और यही चाहते हैं की काश वो दो दिन कभी ख़त्म ना हो पाते ! ज़िन्दगी के सबसे हसीं लम्हों में से वो दो दिन खुदा ने हमें बख्शा ! आपसे मिलना , भाभी जी से मिलना , परी, पंखुरी की वो मीठी शिकायते , अम्मा से मिलना , ओह कितनी आत्मीयता थी ! सोनू का सीहोर स्टेशन पर आपने तौर से आना ! उफ्फ्फ्फ़ ! आपके साथ पोहे समोसे और जलेबी का स्वाद चखना नाश्ते में हैरत ! राकेश जी का आना फिर सभी गुरु भाइयों से मिलाना अपना आप में एक सुखद अनुभूति थी ! सभी का एक साथ रहना दो दिन यक़ीनन तौर पर कोई नहीं भुला सकता ज़िंदगी भर कभी ! गुरु कुल में मात्र एक लाडली बहन के न आ पाने का दुःख किसे नहीं था ! मगर हालात ही ऐसे थे की वो आ नहीं सकी !
    मेरे आलोचक वाला नया रोल ने सभी का खूब मनोरंजन किया .. साथ में मेरा भी हा हा हा !
    बाटी ,चूरमा, कड़ी ,वो झालदार चटनी, मेथी के परांठे के साथ गाज़र का हलवा उँगलियों में खुशबु आजतलक हैं !
    रात भर का जागरण साहित्यिक चर्चाएँ उफ्फफ्फ्फ़ !
    परी पंखुरी के साथ मस्तियाँ सब कितने खुश गवार मंज़र थे !
    आदरणीय कसाट साब के साथ बातें अपने आप में गौरव की बात थी !
    सन्नी का वो विनम्र स्वाभाव , सच में कितना विनम्र है वो ! जिसे आप भी कहते हैं !
    वो अमरुद के पेड़ से अमरुद तोडना वीनस का आय हाय ... आपके साथ और सभी गुरु भाइयों के साथ झूले के पास बैठना नई ताकत भरता है जीवन में !
    संजीत भाभी का छोटी छोटी बातों पर चुटकी लेना गौतम भाई के साथ ... सच में उफ्फ्फ वाली बात थी !
    गुंजन भाभी से बातें तो सीहोर से भोपाल लौटते वक्त ही हो पाई ... सब कुछ कितना अच्छा लगा !
    सच में .. सोनू की तरह मैं भी यही सवाल करूँगा ' कौन से रिश्ते होते हैं ये "

    हो तो आप भी बताईयेगा ... :)

    कल से बेचैन था पढने के लिए और जब पढ़ा तो आँखें डबडबा गई !

    आपका
    अर्श

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  12. सारा विवरण पढ़ कर अच्छा लगा. इस बात का दुःख भी है मैं वहाँ नहीं था और वहाँ ना हो कर मैं अद्भुत अनुभव से वंचित रहा हूँ. राकेश जी जैसे ही वापिस आयेंगे, उनसे विस्तार में बातें होंगी.

    गौतम भाई को लेफ्टिनेंट कर्नल बनने पर बहुत बहुत बधाई.

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  13. इन्हीं रिश्तों की बुनियाद पर तो ये विश्व कायम है, सच पूछा जाये...

    ये दो दिन अविस्मरणीय रहेंगे सदैव-सदैव मेरी स्मृति-पटल पर,,,

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  14. गुरु जी, ये सुनहरी यादों का फ्रेम बहुत बेशकीमती है, सिहोर आना हमेशा खूबसूरत होता है क्योंकि यहाँ रहने वाले बेहद खूबसूरत है.
    इस बार गौतम भैय्या से पहली दफा मिला, मज़ा आ गया. ना जाने कब से ये मुलाक़ात इंतज़ार में थी.
    मेरी खुद्किस्मती कि आदरणीय राकेश जी से मुलाक़ात हुई. बातों ही बातों में बहुत कुछ सीखने को मिला, जो अपने साथ सहेज कर रख लिया है.
    रवि भाई, अर्श भाई और वीनस का साथ, हमेशा कमाल करता है. भोपाल से सिहोर आने में, गुंजन भाभी से बातें और रवि भाई की खिंचाई और रवि भाई का नया dialogue "आवाज़ नीचे......."
    घर पे, सभी से मिलना, और साथ बैठ कर खाना, गपशप.............अहा, आँखें बंद करता हूँ तो ख़ुद को वापिस सिहोर में ही पाता हूँ.
    देर रात की वो बातें, बैठक.............यादगार लम्हें हैं,
    और वो चाय...............वैसे मुझे थोडा बहुत शक तो हो गया था जब किसी ने चाय के बारे में कुछ नहीं कहा मतलब कुछ ना कुछ गड़बड़ होगी...मगर जैसा गुरु जी ने कहा कि घटिया टाइप कि मतलब इससे ये तो साफ़ होता है कि चाय वैसे कोई घटिया नहीं थी. थोड़ी इज्ज़त बची
    सोनू से मिलकर दिल खुश हो जाता है, सनी, विक्की का स्वाभाव मन छु लेता है.

    कमबख्त ट्रेन अगर बता कर लेट होती तो कुछ और वक़्त सब के साथ बिता लेता.....

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  15. चल अर्श...! मुझसे सबसे ज्यादा डाँट खाने के बावजूद मुझे तूने याद भी रखा... खुश हूँ... और दुःखी भी कि सिर्फ तूने ही याद रखा...!

    ना पहुँच पाने का अफसोस थोड़ा कम होता है, इसके बाद...!! :) :)

    विश्व का एक पुरुष जिसे गाजर का हलवा नही पसंद के साथ एक महिला ( I mean कन्या)का भी नाम जोड़ लिया जाये "कंचन"।

    ईश्वर ऐसे सिलसिले जोड़ता रहे....!

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  16. गुरु जी प्रणाम,

    इस पोस्ट पर कमेन्ट करने के लिये बहुत कुछ सोचा था कि ये और ये बात तो जरूर लिखूंगा मगर दिन बीतते गये और फ़िर गुरु भाएयों ने ही अधिकतर बात कह दी
    अपनी व्यस्तता को कोसता रहा

    अब तो बस यही कहना है कि जब हम एम्बेस्दर से भोपाल लौट रहे थे तो हमारी एक जुट राय थी कि
    (रवि भाई , भाभी जी, अर्श भाई और मेरी)
    कि हमें १ दिन और रुकना था
    शरीर साथ ले आये मन वहीं पर रह गया

    और फ़िर प्रण लिया कि अगले बार सिहोर का प्रोग्राम बनायेंगे तो तीन दिन से कम तो हो हि नहीं सकता चाहे जो हो जाये
    और हां यात्रा मे लगने वाला समय इस तीन दिन में नहीं जोडा जायेगा :)

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  17. @ कंचन दी,
    आप को सिर्फ अर्श भाई ही ने नहीं हर किसी ने मिस किया, भोपाल से सिहोर आते वक़्त वीनस मुझसे बोला कि "अंकित भाई, हर बार कुछ अधूरा-सा क्यूँ रह जाता है, सिद्धार्थनगर में किन्ही कारणों से आप नहीं पहुँच पाए और इस वक़्त कंचन दीदी किन्ही कारणों से नहीं आ पाई"........कुल मिलाकर कि सब लोग एकसाथ क्यूँ नहीं मिल पा रहे हैं.
    और उस दिन का हम सभी को इंतज़ार है, जब सब एक साथ होंगे.

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