शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

और तरही मुशायरे के अंत में सुनिये एक स्‍थापित शायरा लता हया जी को, दीपक मशाल को तथा एक अज्ञात शायर को जिन्‍होंने ग़ज़ल तो भेजी किन्‍तु कोई नाम या परिचय नहीं भेजा ।

इस बार का तरही मुशायरा इस मामले में सफल कहा जा सकता है कि इस बार कई दिग्‍गज लोगों ने स्‍वयं आकर अपना आशिर्वाद दिया । कुछ ग़ज़लें देर से प्राप्‍त हुईं इसलिये दीपावली के पहले उपयोग में नहीं आ सकीं । सो वो ग़ज़लें अब लगाई जा रहीं हैं । एक शायर ने अपना नाम नहीं भेजा तथा उनकी ग़ज़ल के साथ कोई परिचय नहीं था इसलिये उसे यूं ही लगाया जा रहा है । उनके मेल पर कई मेल किये किन्‍तु कोई जवाब नहीं मिला सो अब अज्ञात नाम से ही ये ग़ज़ल लगाई जा रही है । यदि आप को पता हो कि ये ग़ज़ल किसकी है तो बताने का कष्‍ट करें ताकि उनका नाम लगाया जा सके ।

दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

लता हया जी का नाम कोई परिचय का मोहताज नहीं है। वे एक स्‍थापित शायरा हैं तथा मंचों पर अपनी शालीनता तथा गरिमा के कारण पहचानी जाती हैं । वे उन कुछ कवियित्रिओं में से हैं जिन्‍होंने आज भी मंच पर कवियित्रियों की गरिमा को बचा रखा है । आइये तरही के समापन में पहले उनकी ही एक सुंदर ग़ज़ल का आनंद लें ।

mushayra

लता हया जी

जब अँधेरे अना में नहाते रहे

दीप जलते रहे ,झिलमिलाते रहे

रात लैला की तरह हो गर बावरी

बन के मजनूं ये जुगनू भी आते रहे

रुह रौशन करो तो कोई बात हो

कब तलक सिर्फ चेहरे लुभाते रहे ?

इक पिघलती हुई शम्म कहने लगी

उम्र के चार दिन जगमगाते रहे

फ़िक्र की गोपियाँ रक्स करती रहीं

गीत बन श्याम बंसी बजाते रहे

कोई बच्चों के हाथों में बम दे चले

वो पटाखा  समझ खिलखिलाते रहे

दूध ,घी ,नोट ,मावा के दिल हो "हया".

अब तो हर शै मिलावट ही पाते रहे

नोट;;लैल रात को कहते हैं और रात काली होती है ;लैला का नाम इसीलिए लैला हुआ के वो काली थी

अना –घमंड  रक्स –नृत्य

दीपक मशाल

दीपक मशाल की ये तरही में पहली प्रस्‍तुति है और चूंकि इनकी भी प्रस्‍तुति कुछ बिलम्‍ब से मिली इसलिये दीपावली के मुशायरे में नहीं लग पाई अब लग रही है ।

dk 

दीप जलते रहे, झिलमिलाते रहे,
लोग मिलते रहे मुस्कुराते रहे.
चाँद आया नहीं आसमां में तो क्या,
तारे धरती के ही टिमटिमाते रहे.

भूखे बच्चे कई पेट खाली लिए,
नींद में रात भर कुलबुलाते रहे.

जो भी मदहोश थे वो तो सम्हले रहे,
होश वाले मगर डगमगाते रहे.
कुछ पलों को जो ख्वाबों से कुट्टी हुई,
भूली यादों को बस गुनगुनाते रहे.
आज रिश्ते 'मशाल' उनसे टूटे सभी,
खून जिनके लिए तुम जलाते रहे.

अज्ञात शायर

unknown

परिचय इसलिये नहीं दे सकता कि जिसका नाम ही नहीं पता हो उसका क्‍या परिचय हो भला । किन्‍तु बस ये कि दीपावली के तरही मुशायरे का इस अज्ञात शायर के साथ विधिवत समापन हो रहा है । चूंकि अब समापन हो रहा है इसलिये अब इस मिसरे पर कोई ग़ज़ल न भेजें । अगले तरही का मिसरा शीघ्र ही दिया जायेगा । तब तक सुनिये अज्ञात को । अज्ञात भी कोई विशुद्ध फुरसतिया प्राणी है जो थोक में एक सौ पचहत्‍तर शेर भेज कर नाम तक नहीं बता रहा है । खैर आप झेलिये अज्ञात को और मुझे आज्ञा दीजिये ।

सर झुकाते रहे, मुंह छुपाते रहे
कनखियों से नज़र भी मिलाते रहे

झूठे वादों से हमको लुभाते रहे
तीन रंगों का बाजा बजाते रहे

रात भर इक समंदर उमड़ता रहा
रात भर हम नदी बन समाते रहे

ठेकेदारी मिली रोशनी की उन्‍हें
जो चराग़ों को कल तक बुझाते रहे

जैसे भेड़ों के रेवड़ को हांके कोई
रहनुमा मुल्‍क को यूं चलाते रहे

उर्मिला का विरह किसने देखा भला
लोग सीता का गुणगान गाते रहे

मौत बच्‍चों की होती रही भूख से
देवता दूध घी से नहाते रहे

हो गई रक्‍त रंजित थी वर्दी हरी ( मेजर गौतम के लिये )
मौत से फिर भी पंजा लड़ाते रहे

कर भी सकते थे गांधी भला और क्‍या
छप के नोटों पे बस मुस्‍कुराते रहे

धर्मधारी युधिष्ठिर हर इक दौर में
दांव पर द्रोपदी को लगाते रहे

सांवला सा सलोना सा बादल था इक
वो बरसता रहा, हम नहाते रहे

जिस दिशा में थे बस दोस्‍तों के ही घर
सारे पत्‍थर वहीं से ही आते रहे

कोई काबा गया, कोई काशी गया
मां के चरणों में हम सर झुकाते रहे 

आंधियों की चुनौती को स्‍वीकार कर
दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे

 

32 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद उम्दा गज़लें , दिल बाग़ बाग़ हो गया

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  2. तरही मुशायरा संपन्न हुआ और आप का इतने दिनों बाद आगमन हुआ याने की मन प्रसन्न हुआ...लता जी के बारे में क्या कहूँ छोटी बहिन है और छुटपन से ही अच्छा लिख रही हैं...उनके इस शेर के लिए शाबाशी दूंगा...

    फ़िक्र की गोपियाँ रक्स करती रहीं
    गीत बन श्याम बंसी बजाते रहे
    लाजवाब...

    दीपक मशाल और अज्ञात साहब के शेर भी कमाल के लगे.इस प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.

    नीरज

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  3. दोनो ही गजलें बहुत अच्‍छी लगी, आपका प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  4. गुरुदेव दुबारा आ गया हूँ...पहली बार ये पोस्ट जरा जल्द बाज़ी में पढ़ी थी अब इत्मीनान से पढ़ी है...अज्ञात साहब के शेर पढ़ कर हैरान हूँ सोच में पढ़ गया हूँ की किस शेर की तारीफ़ कम करूँ...मेरी नज़र में ये ग़ज़ल हासिले तरही मुशायरा कहलाने लायक है क्यूँ की इस ग़ज़ल में इतने अलग अलग रंग बिखरे पढ़े हैं की इन्द्रधनुष भी शरमा जाये...
    १.रात भर एक समंदर...
    २.ठेकेदारी मिली...
    ३.उर्मिला का विरह....
    ४.मौत बच्चों की...
    ५.हो गयी रक्त रंजित....
    ६.धर्मधारी युधिष्टर....
    ७.सांवला सा सलौना...
    जैसे शे'र कोई ग़ज़ल साधक या उस्ताद ही लिख सकता है...हम जैसे नौसिखियों के बस की बात नहीं...इस अज्ञात शायर को ढूंढ़ना बहुत जरूरी है...ये खो न जाये... अगर आपसे न ढूँढा जाये तो खाकसार को खिदमत का मौका दें... वाह जो आनंद अब आया है उसका जवाब नहीं...जय हो...

    नीरज

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  5. अभी जल्दी में हूँ गुरु जी... दीदी के घर से लौट के आऊँ फिर पढ़ूँ....!!!

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  6. yun to har shayar ke sher lajawaab hain magar agyat ji ke sheron ne to gazab kar diya..........ek se badhkar ek sher hai.........jiski tarif na karo uske sath nainsafi hogi...........behtreen.

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  7. लता हया जी के व्यक्तित्व और लेखनी के सम्मुख तो स्वाभाविक ही मन नतमस्तक हो जाया करता है...यहाँ भी उन्होंने बेहतरीन लिखा है....

    दीपक जी ने भी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है...हर शेर पर दाद स्वाभाविक रूप से निकल गया मुंह से....

    परन्तु अनाम जी की रचना.....यह तो बस कायल ही कर गयी.....हर शेर जैसे मैया सबरी के बेर...स्वाद और स्नेह से विभोर कर देने वाले....वाह !!!

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  8. बेहद उम्दा ग़ज़लें। शायरों और प्रस्तुतकर्ता को धन्यवाद।

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  9. वाकई अग्यात सिंह का जवाब नहीं.... बाकमाल... वाहवा...

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  10. अरे ये तो सरप्राइज-आइटम निकल आया...

    लता हया जी को खूब-खूब सुना है नामचीन शायरों के संग स्टेज पर...मजा आ गया उनकी ग़ज़ल को पढ़कर। उनका ये शेर "रूह रौशन करो तो कोई बात हो/ कब तलक सिर्फ चेहरे लुभाते रहे"...लाजवाब है।

    मशाल जी को पहली बार पढ़ रहा हूं। ये तो मजे हुये शायर लगते हैं। उनका मक्ता बहुत भाया।

    ...लेकिन इस अज्ञात शायर बंधुन ने तो बस कयामत बरसा दिया है। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ! क्या शेर गढ़े गये हैं इनकी कलम से। मेरे ख्याल से तो कलम खुद परिचय दे रही उनका....किसी को ज्यादा गेस करने की जरूरत नहीं है, गुरूदेव!
    तीरंगे का जिस तरह से प्रतिक के तौर आप इस्तेमाल करते हैं{मेरा मतलब ये अज्ञात शायर साब करते हैं}, और कोई नहीं करता। "रात भर इक समंदर..." वाला शेर तो मन कर रहा है चुरा लूं। और मिथकों का प्रयोग तो कोई आपसे सीखे गुरूवर...{ओहो, मेरा मतलब इन अज्ञात शायर से सीखे कोई}...उर्मिला और द्रौपदी को लेकर बुना हुआ दोनों शेर कमाल का है। लेकिन जो व्यक्तिगत रूप से मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया है आपका शेर मेरा मतलब इस अज्ञात शायर का शेर वो है "सांवला सा सलोना सा बादल था इक..." वाला...आहहा।

    इस तरही का इससे अच्छा समापन और क्या हो सकता था।

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  11. मैं वही कहूँ गौतमजी कि सुबीर भैया किसी की ग़ज़ल के लिए झेलिये कहें, ऐसा होना तो नहीं चाहिए . . . :)
    ऐसा है सुबीर भैया, कि झेली नहीं जा रही है वह आखिर वाली ग़ज़ल, ज़रा उपाय बताएं कि क्या करें, फिर आगे की टिप्पणी लिखी जायेगी :) :)

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  12. तरही और फिर उम्मीद से कहीं ज्यादा .... गौतम जी उफ्फ्फ्फ्फ्फ चुरा रहा हूँ आपका यहाँ पर... लता जी को पहले भी पढ़ चुका हूँ उस्ताद शईरों में वो शुमार हैं जो हर शे'र उस्तादाना लिखे और क्या हो सकता है ... रूह रौशन करो तो कोई बात है... इस शे'र का क्या कहना ....
    मशाल जी ने आखिर में अपना मशाल जला ही दिया वाकई खूब बढ़िया शे'र कहे हैं इन्होने , इनका यह शे'र .. भूखे बच्चे कई पेट ... यह शे'र दूर तलक जाने वाला है ....बधाई इनको मेरे तरफ से ...

    जहाँ तक इस अज्ञात इंसान वाली बात है तो पहले तो नमन इनको मेरा ये आजक अज्ञात वास में है लीन... और इनके गज़ल्गोई के क्या कहने गुरु देव कमाल है ये तो कलम की नोक पे जैसे माँ सरस्वती खुद आकर बैठ गयी थी , क्यूँ आपका क्या कहना है ,.. ???
    उर्मिला वाला शे'र ने झकझोर के रख दिया क्या बारीक नज़र से कही गयी है यह शे'र...
    हाँ इस अज्ञात इंसान के बारे में यही कहूँगा के उनसे एक बारी बात हुई थी तो उन्होंने खुद ही यह शे'र सुनाया था मुझे के सांवला सा सलोना सा बदल था इक... यह शे'र सुनकर गुरु देव वाकई मै अवाक् और अचंभित रह गया था ... इनके बारे में अगर कुछ कहूँ तो कहीं कम ना रह जाये ... सलाम इनको मेरा भी कहें गुरु जी ... अगर आपको मिले तो मेरा सलाम कहें ... हठीला मैं से बात करके मन खुश हो गया था ... शायद उस अज्ञात इंसान को फीकी मिठाईयां बहुत ज्यादह पसंद है ... हा हा हा

    आपका ही
    अर्श

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  13. श्री पंकज भाई साहब,
    नमस्ते
    आप स्वस्थ हो गए होंगें --
    तरही मुशायरा शानदार रहा !

    " लता हया जी को
    " सबरंग " पे भी सुना
    और उनका शेर पढने का अंदाज़
    बहुत पसंद आया -
    काश वे भी अपने शेर पढ़ देतीं
    तो और आनंद आता ---

    - अज्ञात शायर साहब ने
    माँ के चरणों में ,
    अपनी सारी खूबियाँ समर्पित कीं हैं
    तो ,
    उन्हें मुशायरे का ताज पहनना
    मुक्कमल होना ही था :)

    - बहुत सुन्दर भाव लिए सारे शेर
    बहोत खूब हैं -

    भाई दीपक जी के शेर भी पसंद आये ..........
    अगली दीपावली तलक ,
    सभी स्वस्थ रहें,
    सुखी रहें
    इस आशा के साथ,
    आपका पुन: आभार
    सादर, स - स्नेह,
    - लावण्या

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  14. आदरणीय सुबीर साहब,
    यहाँ तो सिर्फ़ यही कहा जा सकता है कि मुशायरा अगर तरही हो तो ऐसा ही हो। लता हया जी की ग़ज़ल से मालूम पड़ता है कि मिसरा तरह शायद वहीं से आया है। गौतम जी से वाबस्ता शेर ख़ूबसूरत हुआ और मशाल मियाँ के क्या कहने! बाक़ी से बेहतर तो यह होगा के आप हमारे प्रिय अर्श मियाँ के कहे को हमारा कहा भी मानिएगा। उन्होंने बहुत उम्दा विश्लेषण किया है।
    जय हिन्द!

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  15. देर रात गये, आपका मेल पढ़ रहा हूँ और मुस्कुरा रहा हूँ।

    ...इस अज्ञात शायर साब को फिर-फिर पढ़ने का लोभ छोड़ न पाया। "छप के नोटों पे बस मुस्कुराते रहे" का thaought-process मुझे हठात चौंका गया। सोचता हूँ कि महात्मा का इस तरह से बिम्ब या प्रतिक के रूप में और कहीं पहले इस्तेमाल हुआ होगा...? i doubt! और फिर वो काबा-काशी वाला अशआर...आह!

    किंतु जान तो निकाले हुए है अब भी वो सांवला सलोना-सा बादल.... हायsssssss!

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  16. आदरणीय गुरुदेव,
    आपने अपेक्षित सुधार के बाद इस ग़ज़ल को यहाँ पे जो स्थान दिया उसका मैं कतई हकदार नहीं था. कहाँ लता दी जैसी स्थापित शायरा और आप(अज्ञात रूप में) की कलम से निकली एक महानतम कृति. लग रहा है जैसे दो स्वर्ण कलशों के बीच कोई लौह्पात्र रख दिया गया हो. अगर कुछ है तो आपका स्नेह वरना इन ६ अशआरों में मैं तो कुछ नहीं लिख पाया. लेकिन आपका आशीर्वाद और प्यार रहा तो अगली बार आपको निराश नहीं करूंगा.

    आपका शिष्य-
    दीपक 'मशाल'

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  17. बीमारी की अवस्था में भी सुबीर दीवाली के मुशायरे को सफल बनाने में कार्यरत रहे और आज कई दिनों के बाद उनकी उपस्थिति से दिल को बहुत खुशी हुई.
    वैसे तो दीवाली के नाम पर कई तरही मुशायरे इन्टरनेट पर देखते रहें हैं लेकिन सुबीर जी ने जिस लग्न और मेहनत से इस तरही को संपन्न किया है, मिसाल बन गई है. ईश्वर उन्हें हमेशा स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के साथ जीवन में हर कदम पर सफलता और यश प्रदान करें.

    पूरे मुशायरे में शायरों की खूबसूरत ग़ज़लों से दीवाली की रौशनी फैलाते रहे हैं और आज लता 'हया' जी की ग़ज़ल ने तो शुरू में ही मुशायरे को लूट लिया. हर शेर दिलकश सुरों में बोल रहा है. काश कि यह ग़ज़ल उन्हीं के मधुर सुरों में भी यहाँ सुनने को मिल जाती तो सोने पर सुहागे का काम करती. सारे ही आशा'र एक से एक बढ़ कर हैं, किसे तरजीह दें, मुश्किल है.
    अज़ीज़ दीपक की ग़ज़ल भी बहुत खूबसूरत है. हर तरह से नपी-तुली ग़ज़ल है. बहर पर अच्छा खासा उबूर है. भाव और शब्दों का सुन्दर सामंजस्य है.

    किसी को जब जाने पहचाने लोगों में अचानक से कोई अजनबी दिखायी देता है तो अनायास ही उसे पहचानने की कोशिश करने लगता है, उसकी हर बात से क़्यास लगाने लगता है कि यह किस किस्म का शख्श है, हर तरह से उसे आंकने लगता है जो स्वाभाविक है. किसी बेनाम शायर की एक खूबसूरत ग़ज़ल पढ़ते ही दिमाग में कितने ही सवाल खड़े हो गए. ये अज्ञात साहेब चाहे कोई भी हों, उनकी ग़ज़ल को देखकर उनकी शख्शियत, उनकी शायरी के असाधारण इल्म और उनकी कलम को सलाम करता हूँ. इसमें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ये सज्जन ग़ज़ल विधा के पूर्ण ज्ञाता हैं. इसी संदर्भ में मुझे स्व: बड़े गुलाम अली की बात याद आगई जिन्होंने एक बार लता मंगेशकर के बारे कहा था (मुझे पूरे शब्द तो याद नहीं) कि ये कभी तो बेसुर हो, कभी बेसुर हो ही नहीं पाती... बस, इन अज्ञात साहेब के बारे में भी मेरी धारणा कुछ ऎसी ही है: 'अरे, किसी एक मिसरे में कहीं तो बहर से खारिज हो मगर कोई ख़ामी मिलती ही नहीं.' तकनीकी की नज़कतों का इल्म तो इनकी कलम की नोक पर रखा हुआ है. ग़ज़ल कुछ इस अंदाज़ से कही है कि पढ़ने वाला इसमें पूरी तरह से डूब जाता है. अपनी निराली शैली के कारण ग़ज़ल की रंगत कुछ और ही हो गई है. कुछ बड़े ही गंभीर सवाल शेर के दो मिसरों में इस तरह समा गए हैं जैसे गागर में सागर भर दिया हो. लेकिन खूबी यह है कि पढ़ने वाले को दो मिसरे पढ़ते ही उसके पीछे छुपे हुए भावों का विस्तार चलचित्र की तरह स्वत: ही सामने आजाता है. कोई भी शेर देखिये, उसके पीछे एक पूरी कहानी है, एक फलसफा है. शब्दावली, कल्पना और भाषा की अद्भुत पकड़ देखिये:
    हो गई रक्त रंजित थी वर्दी हरी
    मौत से फिर भी पंजा लड़ाते रहे.
    यहाँ केवल मेजर गौतम ही नहीं, पूरे रणस्थल, हमारे जानबाज सिपाहियों के कारनामे, देश के लिए उनके जज़्बात - न जाने कितने ही ख़यालात इन दो मिसरों के पिटारे में से निकल निकल कर मस्तिष्क को झिंझोड़ने लगते हैं और आँखें नम हो जाती हैं.
    झूठे वादों से हमको लुभाते रहे
    'तीन रंगों' का बाजा बजाते रहे.
    इस शेर में 'तीन रंगों' को पढ़ते ही तिरंगे के लिए हमारे शहीदों की कुर्बानियों की पूरी कहानी सामने आ जाती है. उर्मिला को जिसे रामायण में पार्श्व में ही रखा गया है, उसे सामने लाकर स्त्री-मन की तड़प, चुभन और विरह के कष्ट का आभास कराया है. कई आशा'र में समाज की रुग्न-मानसिकता से फैली हुई अराजकता और भ्रष्टाचार की बड़े ही मार्मिक शब्दों में अभिव्यक्ति है.
    एक एक शेर पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है. बस यही कहा जा सकता है कि इस तरह की ग़ज़ल कोई विद्वान शायर, साहित्यकार ही लिख सकता है, इस विधा का उस्ताद ही हो सकता है.
    आखिर में उन्हीं के इस शेर के साथ ख़त्म करता हूँ:
    आँधियों की चुनौती को स्वीकार कर
    दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे.
    अज्ञात साहेब, बधाई हो. अब सस्पेंस दूर कीजिए और सामने आ जाईये.

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  18. आह महावीर जी, आपको नमन! क्या विश्लेषण किया है आपने!
    मन जो भैया की ग़ज़ल पढ़ के बहुत ही खुश था, नीरज जी, गौतम जी और आपकी टिप्पणी पढ़ के नाच उठा.
    बस जो आप लोगों ने कहा उसी में आवाज़ मिला रही हूँ.
    हाँ, अज्ञात जी :), एक बात जो नहीं कही गयी अब तक. ये बहुत अच्छा लगा " ... जिसका नाम ही न पता हो उसका परिचय क्या" ...बड़ी philosophical बात !
    और punch line ये "फ़ुरसतिया प्राणी जो थोक में १७५ शेर ...." .
    सही हो आप सुबीर भैया!!!
    आपकी बदमाशियों, संवेदनशीलता और सृजनशीलता, तीनों का ज़वाब नहीं :)
    सादर. . .

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  19. आदरणीय पंकज जी
    आपका स्वास्थ्य अब बेहतर है जानकार बहुत अच्छा लगा.... दीपावली पर तरही मुशायरा पढ़ाने और इतनी सुंदर नायाब ग़ज़लों से मिलने के लिए आपका धन्यवाद

    लता हया जी की ग़ज़ल और दीपक जी की ग़ज़ल पसंद आई

    मगर अज्ञात शायर की ग़ज़ल ने मन मोह लिया
    उर्मिला की वेदना
    गौतम जी के लिए कहा गया शेर
    मौत बच्चों की ..... देवता दूध से नहाते रहे
    ठेकेदारी मिली रोशनी की .... जो चराग़ बुझते रहे

    ये सारे शेर ही ....... कमाल की सोच लिए हुए हैं....... मन हर बार ही अचंभित सा रह गया की कितना गहरा लिखा गया है

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  20. अज्ञात को पढ़कर दिमाग़ के अन्‍तर्जाल पर ट्रैक किया तो बार-बार आई. पी. एड्रैस पंकज 'सुबीर' नाम के किसी शख्‍स पर जा कर अटकता है। कोई इन्‍हें जानता है क्‍या ?
    तरही कुल मिला कर अच्‍छी रही। हॉं कहीं कहीं कहन में शायरान 'रहे' और 'रहें' के उपयोग में चूक गये, इसकी संभावना स्‍पष्‍ट रूप से दिख रही थी।
    तिलक राज कपूर

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  21. GURUDEV पंकज जी
    बहुत अच्छा लगा जान कर आपका स्वास्थ्य अब बेहतर है .... दीपावली पर तरही मुशायरा की SHURUAAT और अब SAMAPAN वो भी इतनी सुंदर और नायाब ग़ज़लों से ...............आपका BAHOOT BAHOOT धन्यवाद.. .......... LATA जी, DEEPAK जी दोनों की SHAAYRI ने SAMA BANDH दिया और फिर ANJAANE SHAAYES ने तो इस MUSHAAYRE को LOOT ही लिया .......... आपके AGLE MISRE का इंतज़ार रहेगा ...........

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  22. गुरु देव इस अज्ञात महानुभाव को मेरा सलाम,
    सर झुकाते रहे मुह छुपाते रहे /कनखियों से नज़र भी मिलाते रहे ... इस शे'र को पढ़ने की लालसा लिए बरहा ब्लॉग पे आजाता हूँ... पढता हूँ झूमता और सीखता रहता हूँ , यही कहता हूँ अगर ग़ज़ल सीखनी है तो इस अज्ञात बाबा की ग़ज़ल को खूब मजे से और मखमली अंदाज से पढें.. क्या नहीं है इसमें ... अदा , मासूमियत, तेवर, जज्बात, नजाकत , क्या क्या नहीं है ,... शायर ने चांदनी रात में बालकनी में बैठ कर चाँद को निहारता शे'र कह रहा होगा ... कमाल की शायरी है प्रभु...चरणस्पर्श

    अर्श

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  23. PRIY PANKAJ SUBEER JEE NE JIS
    KHOOBSOORTEE SE TARAHEE MISRE
    KAA SMAAPAN KIYAA HAI VAH VASTUTA
    SRAHNIY HAI.DEEWALEE KO YAADGAAR
    BANAANAA AGYAAT JEE JAESA SHRIDAY
    KAVI V KAHANIKAAR HEE KAR SAKTA
    HAI.HAR SAAL VE YUN HEE DEWALEE
    MNAATE RAHEN .

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  24. कुछ दिन अस्वस्थ रहने के बाद आज कुछ देर के लिये अपनी मेल देखने आयी तो खुशी से भर उठी। तरही मुशायरे की अगली कडी सच मे सरपराईज़ ही है । खास कर दीपक मशाल के लिये तो हैरान हो गयी । हया जी और अग्यात जी के बारे मे कुछ भी टिप्पणी करने की मुझ मे क्षमता नहीं है ,शब्द नहीम है ना ही गज़ल की उतनी समझ है। मशाल की बाकी विधओं मे रचनायों की तो मैं कायल थी ही अब गज़ल मे भी कमाल करने लगा है । जिसके सिर पर अनुज सुबीर जी का हाथ हो वो कमाल क्यों नहीं करेगा? लाजवाब गज़लें हैं ।सब ने बहुत कुछ कह दिया है ।मैण तो शुभकामनायें और आशीर्वाद ही दे सकती हूँ। अगले मुशाय्ar के इन्तज़ार मे हैं

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  25. subir ji,
    jab neeraj bhaisaheb ne mujhse tarhi M.mein hissa lene ke liye kaha to pahele to maine dhyan nahin diya phir laga ke kabhi kabhi dimaag ki mashq bhi bahut zaruri hai,khud ko aazmate rahena chahiye aur bas .......
    lekin bahut anand aaya,logon ki tippaniyon ka bhi ek alag hi anand hai aur sach kahoon to HAR ZARRA JIS JAGAH HAI WAHIN AAFTAB HAI to
    radoi ka alag maza hai,t.v. ka alag ,stage ka apna to blog ka apna muqam hai.aur jaisa ki maine apne blog mein kaha hai mujhe logon ke dilon tak pahunchana accha lagta hai.
    DUSARI BAAT; tilak raj ji ne thik kaha hai ki hain aur hai ka dhyan nahin rakha gaya hai .kyonki mujhe bhi RAHEIN bheja gaya tha aur maine usi par kahne ki kosish ki.
    TEESARI BAAT .aapke blog par mere liye tamam hazraat ne jo rai di hai,jin comments se nawaZA HAI UN SABKA MAIN TAHE-DIL SE SHUKRIA ADA karti hoon.
    AUR AAKHIR MEIN.....agyaat sahab aapka jawab nahin.
    aap tamam bloggers khojte rahiye main khul kar pure yaqqen ke ssath aapko mubarakbaad deti hoon.
    aapki acchi sehat ki shubhkamnaaon ke saath
    LATA HAYA

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  26. केवट कहता है श्रीराम से-"रावरे दोष न पांयन को, पग धुरि को भूरि प्रभाउ महा है"...निःशब्द हूं, तरही के बेमिशाल समापन अंक को पढ़कर...लता हया जी, दीपक जी और फ़िर गुरूवर की गज़ल...उफ़्फ़! शब्दों में तारीफ़ कर पाना मुश्किल है इसलिये केवट से भाव उधार लेता हूं-न आपका दोष है न गज़ल का दोष है, ये तो आपकी लेखनी का कमाल है जिसका बार-बार कायल होता रहता हूं।

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  27. हाय तौबा ऊनके सीतम क्या कहे
    प्यार तो करते रहे मगर जताते रहे

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