सबको दीपावली के इस पावन पर्व पर शुभकामनाएं
आज दीपावली के दिन मेरी चार अग्रजाओं तथा चार अग्रजों की रचनाएं, इससे बेहतर दीपावली और क्या हो सकती है । वैसे पहले मैं दो पोस्ट में इन आठों को लगाना चाहता था लेकिन मलेरिया के वार ने और तेज बुखार ने उसकी अनुमति नहीं दी, सो एक ही पोस्ट में लगा रहा हूं । ( इनमें से दो रचनाएं कानूनी नोटिस भेज कर निकलवाई गईं हैं । ) तेज बुखार है अत: कोई गलती हो तो पूर्व में ही क्षमा । आज की पोस्ट में कई रंग हैं ग़ज़ल हैं, गीत हैं, मुक्तक हैं और मुक्त काव्य भी है ।
श्री महावीर शर्मा जी 'दादा भाई'
हर दिशा में अँधेरे मिटाते रहें
दीपमाला से धरती सजाते रहें
गर किसी झोंपड़ी में अँधेरा मिले
प्रेम का दीप उसमें जलाते रहें
भूल जाएँ गिले हम सभी आज दिन
बस दिलों से दिलों को मिलाते रहें
ईद हो या दिवाली जहां में कहीं
सब गले मिलके उत्सव मनाते रहें.
आज दीपावली का ये सन्देश है
प्यार की जोत दिल में जगाते रहें.
दीपमाला पहन कर सजी है धरा
दीप जलते रहे झिलमिलाते रहें
बस 'महावीर' की तो यही है दुआ
प्यार का हम ख़ज़ाना लुटाते रहें.
लावण्य दीदी साहब
मोरे आँगन में आई दीवाली की रात
मन में उमंगों के रंग , मुस्कुराने लगे हैं,
रहेंगें ~ रहेंगें , सदा , मुस्कुराते
है दीवाली की रात, बिछी रंगोली की बिछात,
जश्न की रात में ,रंग , जगमगाने लगे हैं
रहेंगें ~ रहेंगें, सदा जगमगाते
स्याह आसमान पर, चांदनी तो नहीं,
दीप भूमि पर सैंकडों, झिलमिलाने लगे हैं
रहेंगें ~ रहेंगें, सदा झिलमिलाते
बजे आरती की धुन, दीप धुप से भवन
पाकर लक्ष्मी का वर , हरषाने लगे हैं
रहेंगें ~ रहेंगें, हर्षाते रहेंगें
किये निछावर ये मन प्राण और तन
दिया ~ बाती बन , सजन , सुख पाने लगे हैं
रहेंगें ~ रहेंगें, हम , सदा सुख पाते
आस का दीप है, आस्था धृत से जला
भाव गीत बन मेरे गुनगुनाने लगे हैं
रहेंगें ~ रहेंगें, हाँ सदा गुनगुनाते
आदरणीय प्राण शर्मा भाई साहब
रोशनी हर तरफ ही लुटाते रहें
लौ से अपनी सभीको लुभाते रहें
हर किसी की तमन्ना है अब साथियो
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें
दीप जलते रहें और जलाते रहें
धज्जियाँ हम तिमिर की उडाते रहें
आज दीवाली का भव्य त्यौहार है
भव्य बनकर सभी को सुहाते रहें
सब के चेहरों पे मुस्कान की है छटा
मन करे,हम भी यूँ मुस्कराते रहें
यूँ ही दिल में रहें प्यार के वलवले
जश्न नजदीकियों के मनाते रहें
प्यार जैसा निभा है खुशी से भरा
साथ ऐसा सदा हम निभाते रहें
एक दिन के लिए घर सजाया तो क्या
बात तब है कि घर नित सजाते रहें
यादगार आज की रात हो साथियो
कंठ लगते रहें और लगाते रहें
रोज़ ही " प्राण" दीवाली की रात हो
रोज़ ही हम पटाखें चलाते रहें
आदरणीय सुधा दीदी
आतंक से पीड़ित मानवता
सूखे से भूखा किसान,
धर्म के नाम पर कटता मनुष्य
राजनीति की बलि चढ़ता युवा.
विश्व में झगड़ते देश और
मिटता निरीह मानव,
अहम् संतुष्ट करते नेता
और जान लुटाते सैनिक,
कुलों के बुझते दीए
और बिलखते परिवारजन.
इंतज़ार करती आँखें,
पुकारती आँखें,
आशा की जोत जलाए आँखें,
क्रांति पुरुष को खोजती आँखें
जो आए और
मनुष्यता का तेल,
शांति की बाती डाल,
इंसानियत,
प्रेम से भरपूर
सुरक्षा के दीप जलाए,
वे दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें.
श्रद्धेय राकेश भाई साहब
दीप दीवली के जलें इस बरस
यूँ जलें फिर न आकर अँधेरा घिरे
बूटियाँ बन टँगें रात की ओढ़नी
चाँद बन कर सदा जगमगाते रहें
तीलियाँ हाथ में आ मशालें बनें
औ तिमिर पाप का क्षीण होने लगे
होंठ पर शब्द जयघोष बन कर रहें
और ब्रह्मांड सातों गुँजाते रहें
दांव तो खेलती है अमावस सदा
राहु के केतु के साथ षड़यंत्र कर
और अदॄश्य से श्याम विवरों तले
है अँधेरा घना भर रही सींच कर
द्दॄष्टि के क्षेत्र से अपनी नजरें चुरा
करती घुसपैठ है दोपहर की गली
बाँध कर पट्टियां अपने नयनों खड़ी
सूर समझे सभी को हुई मनचली
उस अमावस की रग रग में नूतन दिया
इस दिवाली में आओ जला कर धरें
रश्मियां जिसकी रंग इसको पूनम करें
पांव से सर सभी झिलमिलाते रहें
रेख सीमाओं की युग रहा खींचता
आज की ये नहीं कुछ नई बात है
और सीमायें, सीमाओं से बढ़ गईं
जानते हैं सभी, सबको आभास है
ये कुहासों में लिपट हुए दायरे
जाति के धर्म के देश के काल के
एक गहरा कलुष बन लगे हैं हुए
सभ्यता के चमकते हुए भाल पे
ज्योति की कूचियों से कुहासा मिटा
तोड़ दें बन्द यूँ सारे रेखाओं के
पीढ़ियों के सपन आँख में आँज कर
होम्ठ नव गीत बस गुनगुनाते रहें
भोजपत्रों पे लिक्खी हुई संस्कॄति
का नहीं मोल कौड़ी बराबर रहा
लोभ लिप्सा लिये स्वार्थ हो दैत्य सा
ज़िन्दगी भोर से सांझ तक डँस रहा
कामना न ले पाई सन्यास है
लालसा और ज्यादा बढ़ी जा रही
देव के होम की शुभ्र अँगनाई में
बस अराजकता होकर खड़ी गा रही
आओ नवदीप की ज्योति की चेतना
का लिये खड्ग इनका हनन हम करें
और बौरायें अमराईयाँ फिर नई
सावनी हो मरुत सरसराते रहें
आदरणीय निर्मला दी
फूल यूँ ही सदा खिलखिलाते रहें
बाग ये इस तरह लहलहाते रहें
इस ज़ुबां पे रहे तू गज़ल की तरह
हम हमेशा इसे गुनगुनाते रहें
राह जितनी कठिन क्यों न हो यूँ चलें
होंठ अपने सदा मुस्कुराते रहें
प्यार से बैठ कर यूँ निहारो हमे
मौज़ आती रहे हम नहाते रहें
कुछ शेर रहे रदीफ पर
याद उस की हमे यूँ परेशाँ करे
पाँव मेरे सदा डगमगाते रहे
हम फकीरों से पूछो न हाले जहाँ
जो मिले भी हमे छोड जाते रहे
हाथ से टूटती ही लकीरें रही
ये नसीबे हमे यूँ रुलाते रहे
वो वफा का सिला दे सके क्यों नहीं
बेवफा से वफा हम निभाते रहे
शाख से टूट कर हम जमीं पे गिरे
लोग आते रहे रोंद जाते रहे
जब चली तोप सीना तना ही रह (ये गौतम राज रिशी जी के लिये है)
लाज हम देश की यूँ बचाते रहे
आदरणीय नीरज भैया
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें
तम सभी के दिलों से मिटाते रहें
हर अमावस दिवाली लगे आप जब
पास बैठे रहें, मुस्कुराते रहें
प्यार बासी हमारा न होगा अगर
हम बुलाते रहें, वो लजाते रहें
बात सच्ची कही तो लगेगी बुरी
झूठ ये सोच कर क्यूँ सुनाते रहें
दर्द में बिलबिलाना तो आसान है
लुल्फ़ है, दर्द में खिलखिलाते रहें
भूलने की सभी को है आदत यहाँ
कर भलाई उसे मत गिनाते रहें
सच कहूँ तो सफल वो ग़ज़ल है जिसे
लोग गाते रहें, गुनगुनाते रहें
हैं पुराने भी ‘नीरज’ बहुत कारगर
पर तरीके नये आज़माते रहें
शार्दूला दीदी
प्रीत के खेत में नेह की बालियाँ
ज्योति पूरित फसल नित उगाते रहें
वर्तिका बोध देती रहे हर निशा
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें
बालपन की गली निष्कपट चुलबुली
बन सरल बारिशों में नहाते रहें
भाव से शून्य हो जो विलग हो गए
खोल उनको भुजाएं बुलाते रहें
मानती हूँ सहज भाष्य, करना जटिल
जोड़ आंगुर कड़ी पर बढ़ाते रहें
और माँगें दुआ विश्व भर के लिए
दीप का पर्व यूँ ही मनाते रहें !
सभी को दीपावली की शुभकामनाएं । आनंद लीजिये इन आठ श्रेष्ठ रचनाकारों का और दीपावली के दीपों का एहसास कीजिये ।
इन आठ श्रेष्ठ रचनाकारों की सुंदर कृतियां मानो अष्ट-सिद्धियों की तरह हैं और इसमें गुरूवर का स्नेह भी मिला दें तो पूरी नव-निधियां पाकर मैं निहाल हूं इस दीपावली में। ये दीप ऐसे ही जगमगाते रहें और अंतस एवं बाहर के हर तम को यूं ही मिटाते रहें। किसी भी रचना से एक दो लाइन छांटने का अपराध तो मुझ अल्पज्ञ से करते न बनता है, सारी की सारी बेजोड़ हैं और मैं बस "तोहरे सरिस एक तू ही माधव" कहकर वाणी को विराम देता हूं।
जवाब देंहटाएंपुनश्च,दीपावली के अवसर पर इस अष्टांग योग परिपूर्ण उपहार के लिये गुरूदेव सहित सभी कवियों का हृदय से आभार।
आदरणीय महावीर शर्मा जी की ग़ज़ल पर टिप्पणी करूँ तो ऐसा लगेगा कि एक दीपक सूर्य की रौशनी पर टिप्पणी कर रहा है फिर भी एक शेर में अपनी भावना व्यक्त करने से बाज नहीं आउँगा कि-
जवाब देंहटाएंमेरा तो सर भी वहॉं तक नहीं पहुँच पाता
जहॉं कदम के निशॉं आप छोड़ आये हैं।
तिलक राज कपूर
निशि दिन खिलता रहे आपका परिवार
जवाब देंहटाएंचंहु दिशि फ़ैले आंगन मे सदा उजियार
खील पताशे मिठाई और धुम धड़ाके से
हिल-मिल मनाएं दीवाली का त्यौहार
आज तो दिवाली के अनार फ़ुट रहे हैं ........... ऐटम बम्ब फूट रहे हैं .......... टिप्पणी करना हमारे बस की बात ही नहीं है आज ...... आकाश में आज तारे नहीं ग्रह चमक रहे हैं .......... अलग अलग रौशनी बिखेर रहे हैं ...........
जवाब देंहटाएंसब को दीपावली की शुभकामनाएं ...............
बहुत ख़ूब कहा........
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
पंकज सुबीर जी
जवाब देंहटाएंदीपावली के अशेष शुभ कामनाएँ.
आज से पूर्व मैं आपके ब्लॉग पर भले ही नहीं आया,लेकिन जबलपुर के ही मित्रों से आपके बारे में काफी कुछ सुन चूका हूँ.
मैं भी जबलपुर निवासी हूँ.
आज चिट्ठाजगत पर प्रस्तुत आलेख देख कर आपके ब्लॉग पर आया और आते ही दादा भाई महावीर शर्मा जी, प्राण शर्मा भाई साहब, राकेश खण्डेलवाल भाई साहब, नीरज गोस्वामी भैया और लावण्य शाह दीदी साहब, सुधा ढींगरा दीदी,निर्मला कपिला दीदी, शार्दूला नोगजा दीदी, की रचनायें पढ़ कर पूर्णरूपेण दीपावली के परिवेश में ही समाहित हो गया, इससे बेहतर मेरे लिए दीपावली और क्या हो सकती है कि एक साहित्यकार को सामयिक और श्रेष्ठ रचनाओं का रसास्वादन करने मिल जाए.
आपकी बेहद अच्छी प्रस्तुति के लिए साधुवाद देता हूँ.
- विजय , जबलपुर .
अहाहा...परम आनंद...बस इतना ही कहूँगा.
जवाब देंहटाएंनीरज
आज कुछ नहीं कह पाउँगा गुरु देव बस पढ़े जा रहा हूँ और सिख रहा हूँ ,,... क्या खूब तबियत से बात कही गयी है ...तरही ने दिवाली को खूब रौशन किया है .... आपकी तबियत की चिंता है बस...सादर चरणस्पर्श
जवाब देंहटाएंअर्श
जिस बहन के सिर पर प्राण भाई साहिब का हाथ हो और सुबीर जी जैसे छोटे भाई का साथ हो उस के लिये तो हर दिन ही दिवाली है। दोनो के प्रयास से मुझे जो आप सब के बीच आ कर गर्व हो रहा है उसे शब्दों मे ब्यान नहीं कर सकती बरसों से इस स्नेह से वंचित थी। गज़ल पर और गज़लकारों पर कुछ कहने की सामर्थ्य मुझ मे और मेरी कलम मे नहीं है। दो दिन से वायरल से पीडित थी आज ये तोहफा पाते ही एक दम स्वस्थ महसूस कर रही हूँ मुझे पता होता तो सुबह् से मुझे बिस्तर पर लेटना न पडता। सुबीर जी को धन्यवाद कहूँगी । उनका ये तोहफा सदा याद रहेगा और मुझे उत्साह देता रहेगा। सभी की गज़लों की जगमगाहट मे मेरी गज़ल को जो रोशनी मिली है उस के लिये सभी का धन्यवाद और दीपावली की सभी को शुभकामनायें और सुन्दर गज़लों के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंमेले हैं चरागों के रंगीन दिवाली है,
जवाब देंहटाएंमहका हुआ गुलशन है, हंसता हुआ माली है।
सुबीर जी (गुलशन के माली)ये दिल मांगे मोर। यह दुआ है मेरी कि हश्र तक तेरी बज़्म यूं ही सजी रहे,
सभी अहले बज़्म मगन रहें कि अभी तो हश्र उठा नहीं।
वाह वाह!! एक से एक गज़ब!!
जवाब देंहटाएंइससे बेहतर दीपावली की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती.
जबरदस्त मास्साब!!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
सादर
-समीर लाल 'समीर'
बहुत बढ़िया आयोजन। एक से एक आशा की रोशनी से जगमगाती पंक्तियां...
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई, सुबीर जी को धन्यवाद ....
दीप की स्वर्णिम आभा
जवाब देंहटाएंआपके भाग्य की और कर्म
की द्विआभा.....
युग की सफ़लता की
त्रिवेणी
आपके जीवन से आरम्भ हो
मंगल कामना के साथ
श्रेष्ठ रचनाकारों को एक ही स्थान पर पढना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंआठ श्रेष्ठ रचनाकारों की सुंदर कृतियां खासकर लावण्या दीदी, महावीरजी, निरजजी को तो फैन हू मेरे लिऍ आज इनकी कृतियो को पढना सोने मे सुहागा जैसा है। डबल दिवाली है जी... इन सभी श्रेष्ठ एवम जेष्ठो का सगम पाकर.
जवाब देंहटाएंआभार
वाह, एक से बढ़कर एक!
जवाब देंहटाएंसाल की सबसे अंधेरी रात में
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी
कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी
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दीपावली पर समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ!
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इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए
जवाब देंहटाएंजिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए
हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए
सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए
चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए
और सारे गिले-शिकवे भूल जाए
सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई
उत्कृष्ट सांस्कृतिक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं*महेंद्रभटनागर
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
GWALIOR — INDIA
गुरुजनों, अग्रजों और दीदियों की रचनाएँ पढ़ के अभिभूत हूँ. दीपावली की श्रेष्ठ भावना से ओतप्रोत गीत और ग़ज़लें ! अभी बस सादर वंदन और धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआशा है सुबीर भैया आप अब ठीक होंगे. दीपावली कैसी रही?
सादर शार्दुला
पंकज भाई ,
जवाब देंहटाएंएक दीपावली क्या , आपने तो पूरा साल ही झिलमिल बना दिया ,इतने दीप मुखर हैं . क्या कहूं ? इस नाचीज के लिए तो यह आयोजन ' गूंगे का गुड ' है .आस्वादक भी तृप्तिदायक भी .
( भीतर के काव्य मन के लिए पुष्टिकारक भी )
सभी को दीप पर्व की शुभ कामनाएं .
गुरूदेव, ये बस आपके ही वश की बात इन दिग्गजों को एक साथ एक मंच पर लेकर आना। इस दीपावली पर हमारा मुशायरा तो एकदम खासम-खास हो गया।
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय महावीर साब और प्राण साब का आशिर्वाद रूपी तरही, लावण्या दी का उनकी ही खास हँसी की तरह स्नेह लुटाता गीत, सुधा दी की सामयिक कविता, आदरणीय राकेश जी का मधुर गीत, शार्दुला जी और निर्मला जी के बेमिसल ग़ज़ल और नीरज जी का खास अंदाज़...आह! हमारी किस्मत पे किसको न रश्क होगा...
अपनी ग़ज़ल में मुझ को जगह देने के लिये निर्मला जी का स्नेह पलकें नम कर गया।
शार्दूला दीदी का ये शेर "बालपन की गली निष्कपट चुलबुली.." बहुत पसंद आया। एकदम हटकर और दिल को छूता हुआ....
...और गुरूदेव तनिक अपना ख्याल रखें।
जवाब देंहटाएंइस तरही ने अपने चरम को छु लिया है, इन सभी दिग्गजों ने इस तरही में अपना प्यार भेजकर हम सभी धन्य कर दिया है. ये दीपावली वाकई खास हो गयीहै.
जवाब देंहटाएंदीपावली की मंगलकामनाएं । ८ सुंदर रचनाओं का आनंद मिला ,अहेदिल से शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंकुछ अपना स्वास्थ्य कुछ बड़े भईया का बहुत देर से आना हो पाया गुरु जी...! और आ कर भी कुछ कहने के काबिल नही हूँ....! मैं क्या कह पाऊँगी भला दिग्गजों के विषय में..इन सब से तो बस आशीर्वाद लेने के लिये खड़ी रहती हूँ मैं....!!
जवाब देंहटाएंहाँ निर्मला दीदी का ये पहला प्रयास है तो आगे क्या होगा ... मै नही समझ पा रही..!
और शार्दूला दी......! आप समझ रहीं हैं ना मैं क्या कह रही हूँ...!
सुबीर साहब
जवाब देंहटाएंआठ रचनाकार एक साथ , सारी रचनाएँ अच्छी......
बहुत शानदार ....................बधाई
आदरणीय गुरूवर,
जवाब देंहटाएंइस तरही में इतनी अच्छी गजलें माहिर उस्तादों से पढ़ने को मिली कि दीवाली में मिठास और घुल गई।
मेरा तो यह पहला प्रयास था, लेकिन आपने इस महफिल में शिरकत करने का मौका देकर जो अहसान किया है मैं उससे कभी उऋण नही हो सकूंगा।
इस अंक में सभी गज़लें हम जैसे को लिये तो नज़ीरों की तरह है जिनके प्रकाश में अपने अंधेरों को दूर किया जा सकता है।
दीपावली और नववर्ष की मंगलकामनायें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
waah bahut bahut maza aaya itne badhe badhe diggaj ke kalaam ek saath padh kar
जवाब देंहटाएंDeri se aane ke liye kashma parrthi hun .................
Deepawali par hardik shubhkamanye
aapki tabiyat nasaaj hai pata chala
dua hai aap sada swasth rahe
वाह-वाह ये तो मजा आ गया भाई जी............ विलंबित बधाई स्वीकारें और अपनी सेहत का ध्यान रखें...
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