सबसे पहले तो जन्मदिन की बहुत बहुत सारी शुभकामनाओं के लिये सबका आभार । मुझे लगता है कि इस बार तो 11 अक्टूअर को अमिताभ बच्चन को भी उतनी शुभकामनाएं नहीं मिली होंगीं जितनी मुझे मिलीं । कई परिचित तो कई अपरिचित सबकी शुभकामनाएं मिलती रहीं । कंचन ने 10 अक्टूबर को अचानक चौंका दिया । 9 अक्टूबर को मैंने उसे बताया था कि मुझे टाम एंड जेरी देखना सबसे पसंद है और चाकलेट खाना भी । 10 अक्टूबर को पहले आदरणीय नीरज जी का आशिर्वाद प्राप्त हुआ, और फिर अचानक कंचन की भेजी हुई चाकलेट मिलीं । बस आनंद ही आ गया । सबको आभार दे चुका हूं किन्तु शाम को जब मोबाइल कार में छूट गया था तब एक नंबर से चार काल आये थे, नंबर के स्थान पर प्राइवेट नंबर लिखा हुआ मिला सो जवाब नहीं दे पाया । उस अज्ञात को भी आभार । जो भी हों यदि वे ये पोस्ट पढ़ रहे हों तो मेरा आभार स्वीकार करें । आदरणीय राकेश जी, गौतम, कंचन, रवि और अर्श सभी ने विशेष पोस्ट लगा कर अभिभूत कर दिया । इस बीच कंचन के कई फोन सुने ( सुने इसलिये कि कंचन का फोन आने पर बोला नहीं जाता केवल सुना ही जाता है । ) जन्मदिन की शाम इतना पैदल चलना पड़ा कि रात को पैरों ने जवाब दे दिया । सभी का आभार ।
दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें ।
इस बार का तरही और भी जोरदार होने की संभावना है इसलिये क्योंकि इस बार काफी ग़ज़लें मिल रही हैं । और कई सुंदर कविताएं भी मिली हैं । कई वरिष्ठों का आशिर्वाद मिला है और भी बहुत कुछ है । इस बार का मिसरा है दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें । बहरे मुतदारिक मुसमन सालिम । जिसका वजन है 212-212-212-212 या फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन । इसी बहर पर मेरी पसंद का एक गीत है जो मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में पहले नंबर पर है । हालांकि मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में पहले नंबर के लिये इसमें और खामोशी के हमने देखी है में जंग चलती रहती है । सुनिये ये गीत लता जी का गीत जो फिल्म शंकर हुसैन से लिया है । नहीं सुन पायें तो यहां http://www.divshare.com/download/8879681-ca5 से डाउनलोड कर लें ।
अनन्या
दीपावली का ये तरही मुशायरा प्रारंभ हो रहा है एक नन्हीं क़लम के साथ । विद्वानों की भीड़ में एक छोटी सी शायरा अपनी रचना लेकर के आ रही है । ये ग़ज़ल कंचन की भतीजी अनन्या (हिमांशी) ने लिखी है। १३ वें वर्ष में अभी अभी प्रवेश लेने वाली हिमांशी जो अभी ९ वीं कक्षा में पढ़ रही है । हिमांशी के विषय में यहाँ पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । हिमांशी ने अं की बिंदी के साथ रदीफ अर्थात रहें लिया है । इस बार स्वतंत्रता रखी गई थी कि रहें या रहे कुछ भी ले सकते हैं । हिमांशी के चित्र के दोनो तरफ मैंने मां सरस्वती की प्रतिमा क्यों लगाई ये आप जानें उसकी ग़ज़ल पढ़ के पढ़ें और आप भी मेरी तरह चमत्कृत होकर आनंद लें ।
बोल से आप अमृत छकाते रहें,
मग्न हो कर सभी गुनगुनाते रहें!
वक्त देखो कभी भी है रुकता नही
अपने जीवन का सपना सजाते रहें।
जिंदगी में है झगड़ों से क्या फायदा,
मिल के शिकवे गिले सब भुलाते रहें।
अपने जीवन को करना है रोशन अगर
खुद जलें, जल के खुश्बू लुटाते रहें।
दो ही लोगों से बनती नहीं जिंदगी
सारे जग से ही रिश्ते बनाते रहें।
प्रेम का घी पड़े अबके दीवाली में
दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें।
कंचन के अनुसार ये ग़ज़ल हिमांशी ने पन्द्रह मिनट में लिखी है । मुझे बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा है कि ऐसा हो सकता है यदि ये सच है तो हिमांशी एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवियित्री है । पूरी ग़ज़ल बहर में और कहन में है । सारे शेर खुद बात कर रहे हैं । बुआ से कई क़दम आगे निकल गई है भतीजी, बुआ तो चटर पटर बातें करने में लगी हैं और ये ठोस काम कर रही हैं । सबसे अच्छी बात ये है कि पूरी ग़ज़ल सकारात्मक विचारों से भरी है । गिरह भी जबरदस्त बांधी है । बहुत अच्छी सोच है कि प्रेम का घी इस बार दीपों में भरा जाये । प्रेम का घी सारे विश्व के दीपकों में यदि हो जाये तो फिर तो इतिहास की आठ हजार छोटी बड़ी लड़ाइयों का सारा कलुष ही घुल जाये । अनुरोध है कि इस नन्ही शायरा के लिये छोटी टिप्पणियों से काम नहीं चलाएं, ये नन्हा पौधा आपके नेह जल से ही पल्लवित होगा इसलिये अपना आशिर्वाद इसको खुल कर प्रदान करें । वरिष्ठ लोगों से अनुरोध है कि वे अपना आशीष ज़रूर दें क्योंकि वही तो इस पौधे के लिये असली खाद होगा । ये पौधा हमारे उस विश्वास का जिंदा रखे है कि साहित्य की ध्वजा थामने वाले हाथ नई पीढ़ी में भी आ रहे है, निराश होने की ज़रूरत नहीं हैं ।
अनुरोध - जिन लोगों ने तरही के लिये रचनाएं भेजी है उनसे अनुरोध है कि वे अपना एक चित्र भी भेजें क्योंकि मेरे पास वही पुराने चित्र हैं जो कई बार दोहराये जा चुके हैं । जैसे कंचन ने दीप जलाते हुए एक चित्र भेजा है । कुछ नये लोगों की भी रचनाएं मिली हैं वे भी अपने चित्र भेजें तथा परिचय भी ताकि उनका परिचय भी दिया जा सके । तो आनंद लें हिमांशी की ग़ज़ल का और कल मिलिये कुछ और शायरों से । चित्र तुरंत भेजें ।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
जवाब देंहटाएंहिमांशी की ग़ज़ल देख कर सुखद आश्चर्य हुआ। भावी उपलब्धियों के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
तरही की शुरुआत की सबसे पहले तो बधाईयाँ , काफी लम्बे समय के इंतज़ार के बाद आज से आखिरकार यह उत्सव मनाने का मौसम शुरू हो गया ...हिमांशी की करतबों के बारे में बहन जी से पहले से ही मुखातिब हूँ , सच में यह नयी कलमकार साबित होने वाली है भविष्य में , यह नन्हा पौधा वाकई एक खुबसूरत और छायादार पेड़ का रूप लेने वाला है बशर्ते की यह कलम बिना रुके चलती रहे... आपके आर्शीवाद का इसको बहुत जरुरत पड़ेगी गुरु देव... और जहां तक अपने बुआ से आगे निकलने की बात है तो वो तो पढ़ के ही पता चल रहा है .. :) :)
जवाब देंहटाएंमुशायरे की शुरुआत की सबको बधाई और आपको जन्म की एक बारी फिर से ढेरो बधाई ,,.. सच में गिरह कमाल का लगाया है इसने ... पढ़ के ऐसा लग रहा है के नन्हा मन कितना कोमल है और सांसारिक दुनिया से अभी तक अछूता है तबी ऐसे शे'र जंक लेते हैं .... हिमांशी को बहुत बहुत बधाई खुबसूरत अश'आर कहने के लिए...
अब मैं अपनी कोई नयी तस्वीर कहाँ से लाऊं गुरु देव .. स्टूडियो वाले भगा देते हैं कहते है शकल तो अछि लेकर आवो..//?
आपका
अर्श
आप सबको दीपावली और उसके साथ जुड़े पर्वों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं*****
ये होनहार बिटिया हिमांशी के लिए :
"बहुत ही खुशी हुई आपकी रचना पढ़ के! तहे दिल से आपको ढेर सी दुआएं ! "बोल से आप..., वक्त देखो कभी..., दो ही लोगों ...." कितनी प्यारी सोच और कितनी सुन्दर ग़ज़ल ! जीते रहिये बेटा और लिखते रहिये! बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं! अन्य बड़े लोगों और गुरुजनों को पढ़ते रहिये, पर अपनी सोच और अपना लिखने का ढंग हमेशा मौलिक(original) ही रखिये! यही आपका हस्ताक्षर(signature) होगा !"
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ये आपके लिए सुबीर भैया,
पहले तो "आप यूं फासलों से . . ." सुनवाने के लिए बहुत धन्यवाद, कितने दिन हो गए थे ये गाना नहीं सुना था! मज़ा आ गया:) आपकी कविता और ग़ज़ल सुनी गौतम जी के पोस्ट पे. दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.
गुरुजी की पोस्ट तो पहले ही पढ़ चुकी थी! कंचनजी की और दूसरी पोस्ट घर से पढ़ के लिखूंगी. लंच ख़तम हो गया !!
सादर सस्नेह ...
हिमांशी जी की ग़ज़ल से बेहतर इस मुशायरे की शुरुआत हो ही नहीं सकती थी. एक एक शेर मोती की तरह पिरो दिया इस ग़ज़ल हार में...वाह...बहुत खूब...सुभान अल्लाह...जैसी दाद के बहुत ऊपर है ये ग़ज़ल...प्यारी गुडिया सी हिमांशी को ढेरों बधाईयाँ...इश्वर से प्रार्थना है की उसका जीवन ज्ञान दीप से सदा आलोकित रहे...
जवाब देंहटाएंमुझे आर्श्चय हुआ ये जान कर की आपको टॉम और जेरी देखना बहुत पसंद है..क्यूँ की ये मिष्टी और उसके दादा की भी पहली पसंद है...इस बार उसका जनम दिन भी इसी थीम पर था...पूरे आयोजन में टॉम और जेरी छाये रहे...आपको कुछ तस्वीरें भेजता हूँ...
मुशायरे में शिरकत के लिए अपने आपको तैयार कर रहा हूँ...सफलता मेरे हाथ में नहीं है...लेकिन एक बात पक्की है इस बार ये तरही मुशायरा धूम मचा देने वाला होगा...
नीरज
आज् आखिरिन्तज़ार खत्म हुया। दिवाली के शुभ अवसर पर एक नया दीप और जला । आज मुझे सब से अधिक इस लिये खुशी हो रही है कि मैं कई बार निराश हो जाती हूँ कि मुझे गज़ल नहीं आयेगी मगर आज हिमाँशी मेरे लिये एक प्रेरण और आशा का दीप ले कर आयी है जब ये नन्हीं बालिका इतनी अच्छी गज़ल लिख सकती है तो मैं साठ साल की हो कर भी क्यों नहीं सीख सकती बेशक हिमाँशी जैसी सुन्दर ना ही सीख सकूँ हिमाँ शी, कैसे तुम्हारा धन्यवाद करूँ? बस आशीर्वाद दे कर ही कह सकती हूँ कि तुम आने वाले समय का उभरता हुया सितारा हो। क्या खूबसूरत सकारात्मक गज़ल लिखी है बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी के झगडोंसेक्या फायदा
मिल के शिकवे गिले सब भुलाते रहें
आज इस बात की जहाँ दुनिया को जरूरत है वहाँ हमारे ब्लाग जगत को भी है बहुत अच्छा संदेश दिया है
अपने जीवन को करना है रोशन अगर
खुद जलें जल के खुश्बू लिटाते रहें
इस प्रेरणा के लिये बधाई और बहुत बहुत आशीर्वाद्
प्यारी हिमांशी बिटिया को इस ख़ूबसूरत रचना के लिए हमारी जानिब से ढ़ेर सारा शुभाशीर्वाद। और आपको भी बहुत बहुत बधाई सुबीर साहब। तरही मुशायरे में इस मिसरा तरह को लेना इस नन्हीं कवियित्रि को भी प्रोत्साहित करेगा। आपके आशीर्वाद और सानिध्य ने जिस तरह प्रिय "अर्श" भाई को संवारा है वही इस नई साहित्यिक कली को भी पल्लवित करेंगे, इसी कामना के साथ आपको प्रणाम सहित।
जवाब देंहटाएं---आपका बवाल
अभी तो अभिभूत हूँ गुरु जी....! पहले सोचा कि अपनी ही भतीजी की प्रशंसा क्या करूँ...! मगर रुक नही पाई...!
जवाब देंहटाएंजब तक सच का कोई विकल्प ही ना बचे तब तक मेरी क़लम झूठ कम ही बोलती है। मैं दुनियाँ अपनी क़लम के प्रति उतनी ही ईमानदार हूँ, जितनी अपने परिवार के प्रति...!
तो ये बिलकुल सच है, कि ये गज़ल सिर्फ १५ मिनट में लिखी गई। हुआ यूँ कि तरही पर मुझसे एक भी गिरह लग ही नही रही थी इस बार..! मतला और एक शेर बना भी तो गुरु जी के असिस्टेंट वीर जी को भेजा और जो जवाब आया उससे ज्यादा बुरा मैने कभी अपने लिये सुना ही नही था "इतना वाहियात तुम लिख कैसे सकती हो" तो जो कदम बढ़ने को सोच भी रहे थे, वो भी बैठ गये। इसके बाद भी जब लिखना ही है का आदेश मिला तो सच मानिये दो दिन तक कापी क़लम हाथ मे लिये बैठी रही और एक भी गिरह नही बँधी।
सामने बैठी भतीजी थोड़ा बहुत लिखना शुरु कर चुकी है। तो यूँ ही मनोरंजन के लिये समझाया कि देखो जो भी लिखना उसके अंत में आते रहें आना चाहिये। ज़रा देखो तुम से क्या बनता है? मुश्किल से तीन मिनट के अंदर वो सामने वाले सोफे पर बैठ कर अपने जीवन का सपना सजाते रहें, मिल के शिकवे गिले सब भुलाते रहें, सारे जग से ही रिश्ते बनाते रहें जैसी तीन लाईने लिख लाई। मुझे लगा मिसरा सानी तो बहर में ही है, लगता है कुछ कर लेगी मैने फिर से उसे अपनी एक गज़ल का उदाहरण दे कर समझाया कि इसके ऊपर की लाइने इस तरह बनाओ। तो अबकी बार अंदर कमरे में गई और १० मिनट में मिसरा उला हाज़िर एक शेर और भी बन गया था और तरही वाले मिसरे पर गिरह भी लग गई थी। अब मैने उसे मतले के विषय में बताया तो मतला भी बन के हाज़िर हो गया।
मुझे लगा शायद ये बहुत आगे जाने के लिये बनी है। तो तुरंत मैने गुरु जी को भेजी ये ग़ज़ल।
और बोलने में तो ये भी कम नही गुरु जी। कभी कभी मैं इससे पूँछती हूँ कि "तुम आब्जेक्टिव क्योश्चन कैसे सॉल्व कर पाती हो" हर बात विस्तार से बताती है।
गुरु जी चॉकलेट्स पहुँचने के लिये तो मै बार बार, हज़ार बार आभारी हूँ अपने अनुज राकेश की। जिससे मैने बस इतना जानना चाहा था कि क्या कोई कुरियर कंपनी भोपाल से सीहोर चॉकलेट का डिब्बा पहुँचा देगी ? उसने बताया कि संडे होने के कारण ऐसा संभव कम लग रहा है और दूसरे दिन अचानक उसकी और आपकी आवाज़ एक साथ सुनना मैं सच में नही बता सकती कि कितनी खुशी हुई। मैं बस इतना ही कह पाई कि मैं ऋणी हो रही हूँ तुम सब की
जवाब देंहटाएं@ अर्श यहाँ लखनऊ आ जाओ फोटो खिंचवाने एक स्टूडियो है यहाँ जहाँ बंदर को भी मना नही करते। उन्हे बस पैसे चाहिये। :)
शार्दुला दी...! कंचन तो मैं हूँ..ये कंचन जी कौन है ? सिंगापुर में छोटी बहनो को भी इतना रिगार्ड दिया जाता है क्या? यदि हाँ तो भी मुझे आदत नही अपनो से ये शब्द सुनने की।
हिमांशी बिटिया आपने तो कमाल कर दिया...हम तो आत्म समर्पण ही कर देते है...गुरुदेव अब तो परार्थना ही कर सकता हूँकि मुशायरे में मेरी रचना शामिल न की जाए...अब जब नन्हे मुन्ने शायरी में इतना कमाल दिखा रहे है तो हम रणछोड़ हो जाएँ तो ठीक रहेगा...बेटा आपकी कलम इसी तरह से कमाल दिखाती रहे ये ही शुभ कामनाएं है हमारी...दीपावली की शुभकामनाएं...!
जवाब देंहटाएंHIMAANSHEE JEE NE IS CHHOTEE UMR
जवाब देंहटाएंMEIN LAJWAAB GAZAL KAHEE HAI.
INKEE UMR MEIN MERE LIYE TO TUK SE
TUK MILAANEE MUSHKIL HO JAATEE THEE.HIMAANSHEE JEE NIKAT BHAVISHYA
MEIN KAEEYON KEE CHHUTTEE KARENGEE
SAMET MERE.UNHEN AASHIRWAAD.
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जवाब देंहटाएंअरे इतनी सारी बातों में ये कहना तो भूल ही गयी गुरु जी ..! कि गुरुकुल का वातावरण तो अद्भुत रूप से जगमग जगमग झिलमिल झिलमिल लग रहा है। ऊपर से नीचे तक कंदीलें....!!! माँ सरस्वती..! गणपति देव और लक्ष्मी जी का अद्भुत वास..! अहा..!
जवाब देंहटाएंऔर ये बगल में पहचान कौन कालम से फोटू लगा रखी है रानी मुखर्जी की दिया जलाते हुए ...! इन्हे कौन नही पहचानता..?? ये रेयर फोटोग्राफ आपको कहाँ मिला गुरु जी...???
...तो इंतजार खत्म हुआ। तरही की ऐसी हैरतअंगेज शुरूआत...उफ़्फ़्फ़! अनन्या के चमत्कृत कर देने वाले मिस्रे तो फोन पर ही सुन लिये थे, आज उसकी इतनी प्यारी, निश्छल हँसी के साथ पूरी ग़ज़ल को पढ़ना अपने आप में एक विशिष्ट अनिभव है। ये उम्र और मिस्रों की ऐसी बुनाई...हम तो क्या खाकर खुद को शायर कहेंगे गुरूदेव। इस उम्र में "शायरी" के "श" तक नहीं पहुँच पाये हैं और इस छुटकी को देख लो...इस अनूठी बेमिसाल शायरा को खूब सारा स्नेह और दुलार और एक उज्जवल भविष्य की समस्त शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंब्लौग के नये रूप-रंग ने एकदम से पूरे हिंदी ब्लौग-जगत की दीवाली सजा दी है। सोचता हूँ कि कोई और ब्लौगर भी है जो हर उपलक्ष्य, हर अवसर पर अपने ब्लौग को इतनी मेहनत से सजाता है और वो भी अपने लिये नहीं , वरन हम सब के लिये। गुरूदेव, आप को नमन और दीपावली की समस्त शुभकामनायें आपको भाभी को और परी-पंखुड़ी को...। अरे हाँ, वैसे ब्लौग में तनिक अतिरिक्त निखार तो ये साइड-बार पर बैठी दीप के संग हमारी अनुजा से भी आ रहा है...
शंकर हुसैन और इसका हर गीत तो अब ताउम्र मुझे आपके द्वारा रचित उस विलक्षण चरित्र "शायद जोशी" की ही याद दिलाता रहेगा।
अनन्या को आर्शीवाद , मुझे मात्राएँ, रदीफ़ और काफिये तो समझ नहीं पड़ते पर मेरा मन्ना है दिल कि निकली ही हर रचना अपना ले ले कर निकलती है, बिटिया इतना अच्छा सोच लेती है यह उसकी उम्र के हिसाब से काफी महत्त्व परक है. हमेशा दिल से इसे उनमान निकलते रहें.
जवाब देंहटाएंमात्र इसलिये नही कि एक बच्ची ने ग़ज़ल लिखी है, इस ग़ज़ल को इस नजरिये से देखना जरूरी है है कि यह प्रथम प्रस्तुति है किसी नवोदित (?) शायरा की, और फिर स्मरण करें आपकी प्रथम प्रस्तुति का, कहने को कुछ शेष (विशेष) नहीं रह जाता है । हृदय की गहराईयों में विद्यमान र्इमानदारी से अविवादित रूप से एक ही सच निकलेगा कि ग़ज़ल अद्वितीय है।
जवाब देंहटाएंजहॉं तक 15 मिनट में लिखने का विषय है, मुझे लगता है कि टिप्पणी कुछ लंबी हो जायेगी। फिर भी संक्षेप में कहूँ तो विद्वजनों को इस कथन पर एतराज न होगा कि यही वह स्थिति है जो मन और बुद्धि के अंतर को स्पष्ट करती है। ग़ज़ल लिखना बुद्धि का नहीं मन का खेल है और मन कभी व्यक्तिगत नहीं होता। यही मन है जो ऐसे जादू कराता है।
इस तरही में 'रहे' की तुलना में 'रहें' को निबाहना एक कठिन कार्य है जो हिमांशी ने अत्यन्त सरलता से कर लिया है।
बधाई ।
तिलक राज कपूर 'राही' ग्वालियरी
प्रणाम गुरुदेव
जवाब देंहटाएंसबसे पहले लम्बे समय की बाद मुशायरे की शुरुआत की बधाई...........हिमांशी की ग़ज़ल ने निःशब्द कर दिया ..........इतनी छोटी सी उम्र में इतनी प्रखर लेखनी ............ माँ सरस्वती की कृपा से ही मिलती है .......... अब आगे आपका आर्शीवाद उस कलम को निखारने में मिलेगा तो .............. कमाल के शब्द, गज़ब के शेर, लाजवाब ग़ज़लें पढने को मिलेंगी .............. सच में भविष्य उज्जवल है ............
आपको जनम दिन की दुबारा से बधाई ............ मैं इस बार अपनी ग़ज़ल भेज नहीं पाया इस बात का बहूत अफ़सोस हो रहा है ........... पर शुरुआत की ग़ज़ल से ही लग रहा है अच्छा किया इस बार नहीं मैदान में आया ........... इतनी लाजवाब ग़ज़ल है की क्या बताएं ........... .... हिमांशी को बहुत बहुत बधाई ............
बाँध कर राखियाँ हाथ में वक्त के
जवाब देंहटाएंआप रफ़्तार से पग मिलाते रहें
जो ह्रदय से उठे बस वही भावना
ढाल कर शेर में गुनगुनाते रहें
कामना है यही दीप के पर्व पर
शब्द को फ़ुलझड़ी सा जलाते रहें
और आनन्द लेते हुए हम सभी
मरहबा कह के ताली बजाते रहें
बेटी हिमांशी, मैं तो तुम्हारी कलम को सलाम करने में गर्व अनुभव कर रहा हूँ. तुमने सिद्ध कर दिया है कि किसी विधा को आत्मसात करने का उम्र से ताल्लुक नहीं है वर्ना तो दुनिया के सारे बूढ़े उच्च कोटि के लेखक, कवि, चित्रकार आदि बन जाते.
जवाब देंहटाएंजिज्ञासु पाठक तुम्हारी ग़ज़ल में भावों, विचारों और बहर का एक अपूर्व सामंजस्यपूर्ण गुम्फन देखकर चकित हो गए .विचारों के बिना भाव और भावों के बिना शक्तिहीन रह जाते हैं. तुम्हारी ग़ज़ल इस उक्ति को चरितार्थ करती है.
कुछ ब्लोगों पर कवियों/कवयत्रियों की जीवन की पहली रचना प्रकाशित की गई थी. सच मानिए तुम्हारी यह रचना यदि रख दी जाये तो इस पर एक दम निगाह टिक जायेगी, इसकी छवि निराली होगी.
एक और बात कहना चाहता हूँ. हो सकता है कि कुछ लोग इससे सहमत ना हों. माँ सरस्वती अपने माप-दंड, व्यक्ति के पूर्व-जन्म और सुकर्मों के अनुसार आशीर्वाद के लिया चुनती हैं.
दूसरी श्रेणी में उन लोगों को माँ का आशीर्वाद मिलता है जिसके लिए कहा गया है "करत करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान". गौर से देखा जाये तो तुम प्रथम श्रेणी में आती हो अर्थात तुम जन्म-जात कवयित्री हो.
यही कामना है कि माँ सरस्वती का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहे. कौन जनता है कि एक दिन तुम्हारी ही लेखनी से आज काव्य में विभिन्न वादों के जंगल को आच्छादित करके नई दिशा में एक नए युग का आविर्भाव हो.
अरे, मैं सुबीर जी को तो बिलकुल ही भूल गया. एक सशक्त भावी कवयित्री की ग़ज़ल से शुरुआत करने में आपकी पारखी नज़र का भी जवाब नहीं. बधाई.
श्रेय तो कंचन को भी जाता है कि एक छुपे हुए हीरे से साक्षात कराया, ठीक जैसे लन्दन के टावर आफ लन्दन के अन्य हीरों के बीच कोहनूर हीरा चमक रहा है.
(सुबीर जी, ब्लोगों पर कम समय देने के कारण आपका जन्म-दिन ही निकल गया. खैर, अपने दिल को यह कहकर तसल्ली दे लेता हूँ कि जन्म-दिन के साथ जो वर्ष जुड़ गया है, वह तो अगले जन्म-दिन तक चलता रहेगा. अत: जन्म-दिवस की विलंबित बधाई स्वीकारें.)
भाई श्री ,
जवाब देंहटाएंनमस्ते
विध्याराम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
माँ सरस्वती की कृपा का वरदान बिटिया अनन्या पर मधुर प्रसाद स्वरूप में उतरा है -
यह देखकर मन प्रसन्न है
दीपावली के शुभ दिनों का आरम्भ , आपके जाल घर पर , जग मग करते गीतों, शायरी ग़ज़लों के संग मनाना
सुखद लग रहा है .साथ साथ शायद जोशी में चर्चित गीत, " आप यूं फासलों से गुज़रते रहे ..." ने समा बाँध दिया ! वल्ललाह ..
" अनन्या बेटे ,
जीती रहो, खुश रहो,
इसी तरह मानवता का सन्देश , आपकी कलम से निकल कर
इस कलुषित जगत का बैर ईर्ष्या , धृणा , लालच और कुटिलता दूर करे ...
ये मेरी प्रार्थना है ...
आप पर ये जिम्मेदारी है के शाश्वत संस्कारों के विचार
इसी तरह कलम्बध्ध करतें रहें
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने ...
हर शेर पढ़कर , मन में , सहमति उमड़ी है ..
" सही कह रही है बिटिया " ..यही भाव उभरा है ..
अत: आपको इस दीपावली के मंगल पर्व पर ,
भविष्य में आशातीत सफलताएं मिलें
इस स्नेहभरे आर्शीवाद के साथ
अगली कृति कि प्रतीक्षा में,
सभी को
" शुभ दीपावली " कहते हुए,
आज्ञा लेती हूँ .........."
हमारे कर्मठ व अतीव गुणी ,
श्री पंकज भाई
तथा समस्त हिन्दी ब्लॉग जगत के साथियों को
" दीपावली की शुभकामनाएं " ......
विनीत,
- लावण्या
गज़ल की तो मुझे ज़रा सी भी समझ नहीं है लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि अनन्या की लिखी ये रचना मुझे बहुत पसन्द आयी।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ने के बाद लगा कि मैं एक सदाबहार उत्तेजना महसूस कर रहा हूं। कुछ चिनगारियां निकलीं और उत्तेजित करके चली गईं। एक तेरह साल की बच्ची से देश और समाज के प्रति इतने सकारात्मक विचार पढ़कर सुनकर एक भावनात्मक राहत मिलती है। यह ग़ज़ल एक प्रकार से निराशावादिता के विरुद्ध आशावादिता का प्रचार है। बेटी मैं तो यही कामना करूंगा कि
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो,
फसले कम रखो दिल मिलाते रहो।
जग में नाम अपना रौशन करो,
एक सितारा बनो और जगमगाते रहो।
दीपावली पर शुभकामनाएं।
फुर्सत से आपके ब्लॉग को देखने अभी आया हूँ करीब साढ़े ग्यारह हो रहे हैं सुबह सुबह थोडा जल्दी में था मगर मानस पटल पर तो आपके ब्लॉग का रूप निखारने के बाद जो नया रूप और रंग आया है उसे ही देखने आया हूँ... कितनी मेहनत करते हैं गुरु देव आप .. कुछ कलाकारियाँ इसतरह की हमें भी सीखा दें ... बगल में रानी मुखर्जी की तस्वीर अछि है मगर वास्तविक में रानी मुखर्जी मेरी पसंदीदा एक्ट्रेस नहीं हैं... मगर ये रानी मुकर्जी मुझे पसंद है ... क्युनके इनसे मुझे तरह तरह के उपमाएं मिलती जो रहती है यह उपमा भी सर आँखों पर ... आखिर बड़ी बहन जो ठहरीं... अनन्य को एक बारी फिर से बहुत बहुत प्यार और आर्शीवाद.... इसके ग़ज़ल को पढ़ने के बाद मेरी कलम तो रुक गयी है गुरु देव.... क्या करूँ...???
जवाब देंहटाएंगीत सुन नहीं पा रहा हूँ कोई परेशानी है लगता है ..मगर सुनाने की कोशिश जारी .......
आपका
अर्श
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंवास्तव में माँ सरस्वती की असीम अनुकम्पा और अपार स्नेह अनन्य को प्राप्त है १३ वर्ष की उम्र में ये गजल,,,, और कहन के तो कहने ही क्या .........
ख़ास बात ये की अनन्या ने हर एक शेर बेहतरीन कहा है अनन्या के साथ साथ कंचन जी को भी बधाई और धन्यवाद की आपने अनन्या को हमसे रूबरू कराया ........
गुरु जी ब्लॉग को आपने बहुत खूबसूरती से सजाया है .....
लम्बे इंतज़ार के बाद तरही मुशायरे का आगाज हुआ अब तो खूब धूम धडाका होना है
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
venus kesari
कहते हैं तेजस्वियों की उम्र नहीं देखी जाती। बालक ध्रुव ने अल्पकाल में जिस स्थिति को प्राप्त किया था उसमे बड़े-बड़े योगियों को भी कई जन्म लग जाते हैं। अनन्या जीवंत प्रमाण है इस मान्यता का। गज़ल की सुंदरता बताती है कि सरस्वती का वरद-हस्त इस कम उम्र शायरा को प्राप्त है। और भी ज्यादा आनंदित करनेवाली बात है इस शायरा का जीवन के प्रति विधायक दृष्टिकोण। सारे शेर अनमोल बन पड़े हैं और गिरह तो पूछिये ही मत, गज़ब का है! बहरहाल मैं तो विस्मित होकर पुनः-पुनः गज़ल का आनंद उठा रहा हूं। बहुत-बहुत बधाई अनन्या को।
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंतरही मुशायेरा शुरू हो गया है इसके लिए सभी को बधाई.........
शुरुआत में ही इस मुशायेरे के तेवर देखते ही बनते है, क्योंकि शुरुआत में ही इसे अनन्या की ग़ज़ल मिली है. वाकई शब्दों का संयोजन और उनपे पकड़ एक उज्जवल भविष्य की ओर इशारा कर रही है. हर शेर में ताजगी है, हर शेर में सादगी है जो एक असर छोड़ जा रहा है पढने वाले के मन मष्तिष्क पर. ग़ज़ल का मतला सबके लिए कामना कर रहा है, और शेर आस पास के समाज में ghatit होती घटनाओं पर अनन्या की पकड़ और समझदारी को इंगित कर रहे हैं. गिरह फिर से एक शुभ कामना कर रही है, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल............जो तारीफों से ऊपर है.
मेरी शुभकामनायें अनन्या के लिए, इस सफ़र का आगाज़ बहुत अच्छा किया है तुमने और इसे आगे बढाते चलो.
@ गुरु जी, पूरे ब्लॉग का रूप रंग दीपावली के रंगों से सजा हुआ है, वाकई गुरु जी आपकी सिर्फ गीत, बातें, ग़ज़लें ही नहीं बल्कि आपका ब्लॉग का चेहरा भी शुभकामनायें देता हुआ त्योहारों की ख़ुशी में रंग जाता है.
एक कामयाब तरही के लिए शुभकामनायें
खुश आमदीद हिमांशी,
जवाब देंहटाएंयह कलम यूँ ही रौशन रहे
गीत गज़लों का दौर चलता रहे
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
नन्हीं अनन्या की ग़ज़ल पढ़ कर यकीं ही नहीं हो रहा कि १२ वर्ष की बच्ची ने लिखी है, जिसने अभी तेरहवें में प्रवेश किया है--
जवाब देंहटाएंअनन्या ढेरों शुभ कामनाएँ--शीघ्र ही दूसरी ग़ज़ल पढ़ने को मिले.
वाह अनन्या.... वाह...
जवाब देंहटाएंजीती रहो बेटा...
इस बेल को फलने में कंचन ने जो अर्ध्य दिये उन्हें नमन करता हूं.....
सुबीर जी तो पारखी हैं ही निस्संदेह....
सभी को बधाई शुभकामनाएं....
bachchee में apaar chamatayen dikh rahee हैं .dua karoonga की एक दिन khoob ubhar कर आये.काफी कुछ तो कहा ही जा चुका है .मैं किसी भाषा की ,ग़ज़ल सहित , विधान और व्याकरण से कुछ खाश परिचित नहीं. .व्यक्तिगत रूप से कभी कभार कुछ लिख लेता हूँ पर अपने आप को अभी तरही मुकाबले के लिए अयोग्य ही पाया . मगर हाँ ग़ज़ल और उसमे बात कहने का अंदाज़ दोनों पर फ़िदा हूँ. ' मिज़ाजे कैश यारों बचपने से आशिकाना था ' .
जवाब देंहटाएंiseeliye बस itana ही kahoonga की इस
subeer जी के इस aayojan की जो भी तारीफ की जाये कम है.
हिमांशी की ग़ज़ल ने एक साकारात्मक वातावरण सा तैयार कर दिया है. उसके भावी उज्जवल साहित्यिक पथ के लिए शुभकामनाएं हैं.
जवाब देंहटाएंयह तरही तो मैं किसी क्लासिक सिनेमा के रूप में देख रहा हूँ. अब से उपस्थिति नियमित हो गयी है उम्मीद है आगे नए साल में भी सब सही होगा. तिलक राज कपूर जी का शुक्रिया जो उन्होंने मुझे आमंत्रितकिया. आप को प्रणाम और उपस्थित सभी को मेरी बधाई.
-सुलभ