बुधवार, 10 जून 2009

और ये रहा तरही मुशायरे का हासिले मुशायरा शेर जिसका चयन किया है उस्‍ताद शायर और अरूज के विद्वान श्रद्धेय प्राण शर्मा जी ने । पढि़ये प्राण जी की एक पचास साल पुरानी ग़ज़ल ।

( अगर ये ब्‍लाग इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर में एरर दे तो इसे मोजिला फायर फाक्‍स  या गूगल क्रोम में खोलें ।)

ओम व्‍यास जी की हालत अभी भी स्थिर है तथा डाक्‍टर अभी भी कुछ नहीं कह पा रहे हैं । सर पर, दोनों जबड़ों पर, आंख में तथा पैरों में घातक चोट होने के कारण वे अभी भी कोमा में हैं तथा वेंटीलेटर पर उनको रखा गया है । श्री ओम व्‍यास जी को देख कर लौट रहे वरिष्‍ठ कवि और प्रसिद्ध मंच संचालक श्री संदीप शर्मा कुछ देर के लिये मेरे पास रुके उनकी भाव भंगिमा ने बताया कि ईश्‍वर एक और अनर्थ करने के मूड में है । आइये ईश्‍वर से प्रार्थना करें कि अब वो बस करे । जानी बैरागी को अब आइ सी यू से हटा लिया गया है ये राहत की बात है ।  संदीप जी आते ही गले मिले और आंसू भरी आंखों से बोले पंकज भाई ये बहुत कठिन समय है हम लोगों के लिये  ।

इस बार के तरही मुशायरे में बहर मुश्किल थी लेकिन फिर भी अच्‍छा काम उस पर हुआ । इस बार जज की कुर्सी पर उस्‍ताद शायर तथा इल्‍मे अरूज के विद्वान श्रद्धेय श्री प्राण शर्मा जी विराजमान थे तथा उन्‍होंने ही इस बार के हासिले मुशायरा शेर का चयन किया है ।

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उस्‍ताद शायर तथा इल्‍मे अरू‍ज़ के विद्वान श्री प्राण शर्मा जी तथा उनकी चर्चित पुस्‍तकें

प्राण जी के बारे में कुछ कहना सूरज को चराग दिखाने के समान होगा । फिर भी बता दूं कि 13 जून 1937 को वज़ीराबाद (अब पकिस्तान में) जन्मे प्राण शर्मा 1955 से लेखन में सक्रिय हैं । आप हिन्दी ग़ज़लों और गीतों में शब्दों के विलक्षण प्रयोग के लिए जाने जाते हैं । यही नहीं आपके ग़ज़ल विषयक आलेख और पुस्तकें भी चर्चा में हैं । ग़ज़ल कहता हूँ (ग़ज़ल संग्रह) तथा सुराही (मुक्तक संग्रह) इनकी प्रसिद्ध तथा चर्चित किताबें हैं । विश्व भर की सभी प्रमुख हिन्दी पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं । साहित्‍य कुंज पर आपका मुक्‍तक संग्रह सुराही पढ़ा जा सकता है जिसमें अधिकाँश मुक्तक १९६० -१९६२ के बीच में लिखे हुए हैं ।उनकी कविताओं को यहां पढ़ा जा सकता है ।   वे स्‍वयं अपने बारे में कहते हैं १९६५ में मैं uk में आया था । कई सालों तक मैं हिंदी  साहित्य से कटा रहा, धन कमाने के चक्कर में । मुझे याद आता है कि  १९६५ में में मैंने एक ग़ज़ल ( जो कादम्बिनी में छपी थी ) कही थी ।
                        उसका मतला था--
                                    हरी धरती, खुले ,  नीले     गगन    को    छोड़  आया  हूँ
                                    कि कुछ  सिक्कों  की खातिर  मैं वतन को छोड़ आया हूँ

                                                    कुछ सालों से फिर से लिखने-लिखाने में सक्रिय  हुआ हूँ । ढलती उम्र है । चाहता हूँ कि कुछ अच्छा कह जाऊं.

प्राण जी ने अपने निर्णय के साथ जो पत्र भेजा है उसमें वे लिखते हैं

"तरही  ग़ज़ल " का  आयोजन  मुझे  बहुत  जिआदा  पसंद  आया  है । इस  आयोजन  से  आप  जो  लड़कों  और लड़कियों  में  ग़ज़ल  कहने  के  बीज  रोप  रहे  हैं, वह  निस्संदेह  एक  ऐतिहासिक  कार्य  है । जनाब  गौतम राजरिशी, नीरज  गोस्वामी, समीर  लाल  समीर, प्रकाश  सिंह  अर्श, कंचन चौहान, अंकित सफर, रविकांत पांडे, दिगम्‍बर नासवा  जैसे गज़लकार  आपकी  ही देन  हैं । आपका  ये  "क्रांतिकारी "कदम  है । आपका  अनुसरण  अब  कई  कर  रहे  हैं  लेकिन  आपका  जो  प्रयास है  की   हर  कोइ  ग़ज़ल  सीख  कर  ही  निकले  आपके  स्कूल  से , ये  बात  अलग  करती  है   आपको  सबसे । कठिन  लेकिन सराहनीय  काम  है  आपका । मैं  आपके  इस  काम  से  बहुत  प्रसन्न  हूँ । मेरी  शुभ   कामनाएं  आपके  साथ हैं । एक  काम  सौंपा  आपने  मुझे । मुश्किल  है  फिर  भी   करना  ही  पड़ेगा  आपके  आदेश  से । सभी  शायरों  ने  वज़न  में  शेर  कहें  हैं । ये  प्रसन्नता  की  बात  है । शायरों  ने  कुछ  हट  कर  अपने अपने  अनोखे  अंदाज़  में  कहा  है ।

और सरताज शेर के बारे में श्री प्राण शर्मा जी लिखते हैं

इस  शेर  में  "खामोशी " और  "शोर " का तारतम्य  खूब  है । समर्पण  की  उद्दात  भावना  है । किसी बात  को  स्पष्ट  शब्दों  में व्यक्त  न  करके  "प्रतीकों " से  कहा  गया  है । बहुत  खूब ।  प्रिय सुबीर भाई,  कृपया शेर लिखने वाले को मेरी हार्दिक बधाई अवश्य दीजियेगा । चूँकि उसमें बहुत संभावनाएं हैं इसलिए उससे बहुत आशाएं भी हैं । ( प्राण जी ने शेर लिखने वाले इसलिये लिखा कि उनको भी नहीं पता था कि शेर किसका है । मैंने उनको बेनामी शेर भेजे थे चयन के लिये । शेरों के साथ ये नहीं लिखा था कि ये किसके शेर हैं । )

तो कौन सा शेर है हासिले मुशायरा शेर अंदाजा लगायें । बिल्‍कुल सहीं पहचाना । कंचन चौहान  के शेर को प्राण जी ने हासिले मुशायरा शेर घोषित किया है । कंचन लखनऊ में रहती हैं और केन्‍द्र सरकार के कार्यालय में हिंदी अनुवादक के रूप में कार्यरत हैं । कंचन को शिवानी, अमृता प्रीतम और महादेवी वर्मा को पढ़ना भाता है । समूचे ब्‍लाग जगत की चहेती कंचन कभी कभी कोई ऐसी भी पोस्‍ट अपने ब्‍लाग पर लिख देती हैं जो सबको चौंका देती है । इस बार के मुशायरे का हासिले मुशायरा बनने वाला कंचन चौहान का  शेर है ।

पाके  शोर  करता  है, है  अजब   ये  सागर    भी 
देके  कुछ  नहीं  कहती है  लहर  की    खामोशी

बधाइयां हो बधाइयां कंचन को

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जीत की खुशी । मार लिया मैदान ।

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प्राण साहब जैसे उस्‍ताद ने कंचन का चयन किया है खुश तो होना ही है ।

एक और शेर जो हासिले मुशायरा बनते बनते रहा गया तथा कुछ नंबरों से पीछे रहा है उसे भी प्राण जी ने नंबर दो पर रखा है । शेर है रविकांत का

साथ -साथ  चलकर  भी  दूरियां   न  मिट  पाईं
पीर  की  बनी  पोथी  हमसफर    की   खामोशी

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रविकांत को भी बधाइयां । दूसरे नंबर पर रहना, पहले नंबर पर आने का जुनून पैदा करता है । 

आज के ये दोनों शेर ग़ज़ल की कक्षाओं की तरफ से ओमप्रकाश आदित्‍य जी, नीरज पुरी जी और लाड़ सिंह गुर्जर जी को श्रद्धांजलि स्‍वरूप समर्पित । वे जहां भी होंगें इन नये रचनाकारों के फन को देखकर संतुष्‍ट होंगें की साहित्‍य की परंपरा को उनके बाद भी कायम रखने वाले युवा सामने आ रहे हैं  । तीनों को हमारी श्रद्धांजलि ।

और अब विजेताओं के लिये आशीर्वाद स्‍वरूप आदरणीय प्राण जी ने अपने संग्रह से एक लगभग पचास साल पुरानी ग़ज़ल निकाल कर भेजी है आप सब इस ग़ज़ल का आनंद लें और मुझे आज्ञा दें ।

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दिल पे क्या-क्या लिखा नहीं जाता
पर    ये    पन्ना    भरा    नहीं   जाता
आग पर तो चला हूँ    मैं    भी   पर
पानियों    पर      चला     नहीं    जाता
अपने   बच्चे  को कैसे माँ  दे दे
दिल    का   टुकड़ा  दिया  नहीं   जाता
मांगते   हो  तुम  अपना दिल    मुझ से
दे  के  तोहफा     लिया   नहीं      जाता
यूँ  तो   सुनता   हूँ    शोर     दुनिया  का
शोर  घर    का    सुना   नहीं     जाता
हंसने   को   जी   तो चाहता है   पर
क्या  करूँ   नित   हंसा    नहीं     जाता
माफ़   उसको  तो कर    दिया      मैंने
दिल   से   लेकिन   गिला   नहीं   जाता
दूर  कितनी  निकल  आये    हैं     हम
"प्राण"  अब तो     मुड़ा      नहीं     जाता

इस गज़ल़ को सुनने के बाद अब कुछ और नहीं कहा जा सकता । प्राण साहब का आभार हमारे लिये समय निकालने के लिये और नये लिखने वालों को प्रोत्‍साहित करने के लिये । और हां ये कि इस बार के तरही का मिसरा है रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से । मज़े की बात ये है कि इतना आसान लगा कि दो गज़लें तो आ ही चुकी हैं ।

 

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्राण जी के बारे मे जानकारी के लिये धन्यवाध कंचन जी और रवीकान्त जी को बधाइ और आपका बहुत बहुत आभार कि आपके प्रयास से नये नये शब्दशिल्पी उभर कर सामने आ रहे हैांअपकी इस साहित्य सेवा को साहित्य जगत मे सदा याद किया जायेगा 1ाउर प्राण जी का ये अश आर्कि
    यूँ तो सुनता हूंम शोर दुनिया का
    शोर घर का सुना नहिं जाता
    लाजवाब है
    आभार्

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  2. बिगड़ी संवर नहीं सकती

    पर और तो न बिगाड़।

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  3. साहित्य जगत, खासकर कावय संसार में अचानक जो हादसा हुआ है, अगर वो ना हुआ होता तो शायद मैं आज बहुत खुश होती। अपने गुरु जी के आशीष के साथ, प्राण शर्मा जी जैसे दिग्गज गज़लकार से आशीर्वाद पाना खुशी को ना संभाल पाने की स्थिति है।

    मगर फिर भी मन ये सोच रहा है कि क्या औम जी भी....??? ईश्वर कुछ चमत्कार कर....!

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  4. आदरणीय प्राण जी के लिये हमेंशा मन में आदर-भाव रहता है। उनका प्रोत्साहन नये गज़लकारों के लिए अमूल्य है। नमन प्राण शर्मा जी को।
    ओम व्यास जी और जानी बैरागी जी के लिये तो नित्य ही ईश्वर प्रार्थी हूं।परमात्मा शीघ्र सुखद संदेश सुनवाए। कंचन जी का शेर है ही इतना अद्भूत कि उसके हासिले मुशायरा बनने पर कोई आश्चर्य नहीं। ईश्वर उन्हे चिरायु करे और उनकी लेखनी की धार को बरकरार रखे।
    और प्राण जी के गज़ल पर कुछ कह पाना मेरे सामर्थ्य के बाहर है। मैं बस मूक आनंद ले रहा हूं।

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  5. सचमुच यह अपार दुःख का समय है.....ईश्वर अब स्थिति सम्हाल लें....


    कंचन और रविकांत जी को बहुत बहुत बधाई....

    दिगज्जों के लेखन की तारीफ क्या की जाय,उन्हें तो बस पढ़कर आह्लादित होना है और उनसे बहुत कुछ सीखना है....प्राण शर्मा जी ऐसे ही व्यक्तित्वों में से एक हैं...ये लोग मील के पत्थर हैं...इन्हें नमन.

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  6. आग पर तो चला हूँ मैं भी पर
    पानियों पर चला नहीं जाता

    यूँ तो सुनता हूँ शोर दुनिया का
    शोर घर का सुना नहीं जाता

    वाह...अब इस ग़ज़ल की क्या तारीफ की जाये...सुभानाल्लाह...प्राण साहेब की लेखनी जब शेर कहती है तो बरबस मुंह से वाह वा ही निकलती है.

    आपका आयोजन और प्राण साहेब का चयन...याने.. सोने पर सुहागा...आपने इस बार प्राण साहेब से निर्णायक का काम करवा कर हम सब पर उपकार किया है...एक बेहतरीन शेर (कंचन जी को ढेरों बधाईयाँ) के साथ साथ उनकी बेमिसाल ग़ज़ल जो पढने को मिल गयी. रवि जी ने शादी के बाद ये दूसरा बड़ा मैदान मारा है...इश्वर उन्हें ऐसी कामयाबियां जीवन के हर मोड़ पर अता करे...

    प्राण साहेब ने भी आपकी सराहना की क्यूँ की आप अनगढ़ पत्थरों को तराश कर उनको पहचान दे रहे हैं, वो भी बिना किसी अपेक्षा के, ये काम आज के युग में किसी अजूबे से कम नहीं. आप दोनों विद्वान यूँ ही हम जैसों को आर्शीवाद देते रहें ये ही कामना है.

    इश्वर निष्ठुर नहीं है...ओम व्यास जी सकुशल हास्पिटल से लौयेंगे ऐसी मेरा अटूट विश्वाश है...
    नीरज

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  7. कंचन जी और रविकांत जी को बहुत बहुत बधाइयाँ........................

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  8. कंचन को ढ़ेरों बधाई...इस शेर को तो होना ही था सरताज!

    मन उदास है....इधर हमारे भी तीन साथी शहीद हो गये हैं....

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  9. प्राण साहब गजल के प्राण हैं,सूरज को क्या दीया दिखाऊँ,दीये में भी तो उसी की आग हैं। कंचन जी और रविकांत जी को बधाईयाँ।

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  10. प्राण जी को नमन.

    कंचन जी और रविकांत जी को बहुत बधाई और शुभकामनाऐं.

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  11. कंचन बिटिया को बहुत बहुत बधाई - और रविकांत भाई को भी -

    श्री प्राण भाई साहब की हरेक रचना पढ़कर दिल को बहुत सुकून मिलता है

    8 जून की ये काल रात्रि
    अपूरणीय क्षति करा गयी है -
    दिवंगत कवियों को श्रध्धा सुमन -

    - लावण्या

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  12. गुरु देव को सादर प्रणाम.
    इस हादसे ने तो कविता जगत की कमर ही तोड़ के रख दी है ... और उधर तिन जवान शहीद हुए सभी को मेरे तरफ से बिनम्र श्रधांजलि....
    गुरु बहन कंचन के क्या कहने इस शे'र पे मैं उनको सुबह ही बधाई दे आया हूँ क्युनके हमारी अक्सर बात होती है और उनसे झगडे भी खूब... वो बहन का फर्ज अदा करटी है और मैं भी का आपके कक्षा से ही मुझे एक बहन भी मिल गयी है इस हासिल शे'र के लिए बहोत बहोत बधाई... गुरु भाई रवि के लिए भी दिल खोल के बधाई दे रहा हूँ.... साथ में ब्यास जी के लिए और ज्ञानी जी के लिए इश्वर से प्रार्थना करता हूँ के जल्द ही मंच पे लौट आयें पहले की भाति... जहाँ तक ग़ज़ल पितामह प्राण शर्मा जी की बात है तो मैं उन्हें ग़ज़ल पितामह कहके ही संबोधित करता हूँ ... उनकी इस पचास साल पुरानी रचना को पढ़ के मैं तो स्ताभ्धा रह गया कमाल की बात है मैं अदना क्या कह सकता हूँ के बारे में ... और गुरु देव आपकी कक्षा में रह के आपका आर्शीवाद मिल रहा है यही मेरे लिए बहोत गर्व की बात है ....

    आपका
    अर्श

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  13. गुरु जी प्रणाम
    कहने के लिए बहुत कुछ है मगर केवल इतना ही कहना चाहता हूँ की इश्वर ओम जी को स्वस्थ कर दे

    आपका वीनस केसरी

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  14. इल्मे अरूज़ के विद्वान, समीक्षक, कहानीकार, यू.के. से प्रकाशित पत्रिका के 'खेल निराले हैं दुनिया में' स्तम्भ के लेखक आज सुबीर जी के वेब पर तरही मुशायरे में जज की कुर्सी पर विराजमान देख कर हृदय को असीम प्रसन्नता हुई. श्री शर्मा जी जैसे विद्वान के कर कमलों द्वारा हासिले मुशायरा शेर के चयन करवाने के लिए श्री सुबीर जी केवल धन्यवाद के ही नहीं,बधाई के पात्र भी हैं. सुबीर जी धन्यवाद और बधाई स्वीकारें.
    सुबीर जी ग़ज़ल सिखाने में निस्वार्थ अदम्य परिश्रम कर रहें हैं. यह साहित्य-सेवा साहित्य के इतिहास में विशेष रूप से दर्ज किया जायेगा.
    बेटी कंचन और युवक रविकांत को इस कठिन तरही पर निहायत ही खूबसूरत शेर पर हार्दिक बधाई.

    दादा ओम प्रकाश आदित्य, श्री नीरज पुरी और लाड़सिंह गुर्जर जी की कमी हमेशा महसूस होती रहेगी. मुझे विशवास है कि परमपिता परमेश्वर की कृपा से श्री व्यास जी और श्री बैराग जी स्वस्थ हो जायेंगे.

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  15. प्राण शर्मा जी की ५० पुरानी यह ग़ज़ल एक ऐसी ग़ज़ल है जो किसी भी काल में पुरानी नहीं कही जा सकती. उनकी ग़ज़लों की यही खूबी है कि भूत, वर्तमान और भविष्य - हर काल के अनुरूप होती हैं. इसीलिए मैं उनकी ग़ज़लों को सदा-बहार कहा करता हूँ.

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  16. प्राण जी और आप दोनो ही ग़ज़ल के माहिर हैं आज के दौर के......... और जो भी कहेंगे संजोने वाला ही होगा ............ प्राण जी के विचार और भावनाओं के लिए बहूत बहूत आभार, कंचन जी और रवि जी को बधाई

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  17. कंचन जी और रवि जी को हार्दिक बधाई....
    गजल गुरुदेव सुबीर जी की पोस्ट हमेशा सजीव होती है..इतना सुन्दर प्रस्तुतीकरण होता है कि हमेशा अगली पोस्ट का इंतजार रहता है..

    प्रकाश सिंह 'पाखी'

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  18. प्राण जी को प्रणाम. कंचन और रवि को बधाई. आपको साधुवाद. संदीप शर्मा को जयपुर के महामूर्ख सम्मेलन की याद. जानी बैरागी को पुनः शुभकामना और ऒम भाई तुम भी कहा मानना कि अभी पूरे देश को हंसाना है. पिछले साल आये थे ना, इस साल भी पानीपत आना है... शुभकामनाएं.......

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  19. सुवीर जी ,कंचन जी के साथ साथ आपको भी बधाई ! नेपथ्य का गरिमामय दिग्दर्शन ही मंच पर आभा बिखेरता है ! आप प्रबुद्ध मना हैं और सहृदय भी !

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  20. दिव्‍या माथुर जी आज की चर्चित काहनीकार और कवियित्री हैं वे भारतीय दूतावास से संबद्ध नेहरू केन्‍द्र में प्रोग्राम आफीसर हैं उनकी ये टिपपणी मेल से प्राप्‍त हुई है ।
    Wah wah, kya sher chuna hai aapney, apko aur Kanchan ko badhai aur Ravikant ko bhi
    abhi haath kaam nahi kaar rahey,

    aaj dard kuchch zyaada hai
    mera hi ye pyaada hai

    sasneh
    with all good wishes,

    Divya Mathur
    Senior Programme Officer
    The Nehru Centre
    8 South Audley Street
    London W1K 1HF
    Tel : 020 7491 3567/7493 2019
    E-mail : nehrucentre@aol.com
    www.nehrucentre.org.uk

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  21. sir jee, Internet Explorer agar aapka blog nahin open kar raha hai uska ek reason ye ho sakta hai ki koi javascript wo nahin padh pa raha hai.. Ek soultion suggest keroonga-- aapne jo bhi widgets lagayi hain, ek ek karke delete karen(back up le le phir delete karen) aur blog ko kholen... usse idea lag jayega ki kis widget ki wajah se problem hai..use fix kar lenge phir..

    try karen, shayad kaam aa jaaye..

    जवाब देंहटाएं

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