मंगलवार, 2 जून 2009

मेरे कारोबार में सबने बड़ी इमदाद की, दाद लोगों की, गला मेरा, ग़ज़ल उस्‍ताद की

( सूचना: ये ब्‍लाग हो सकता है इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर में न खुले, अत: मोजिला या क्रोम में खोलें )

तरही मुशायरा ठीक से संपन्‍न हो गया है और अब चलिये आगे चलते हैं । ये बहुत अच्‍छी बात है कि इन दिनों ग़ज़ल की धूम मची हुई है । हर तरफ हर ब्‍लाग पर ग़ज़लों का चलन साफ दिखाई दे रहा है । और ये भी कि सीधे और सादे लहज़े में ग़ज़ल लिखने पर ज़ोर दिया जा रहा है । आज कुछ आगे बात करते हैं । आठ दस साल पहले जब मैं पूरी तरह से पत्रकार था तब मैं एक कालम लिखता था जिसमें बिंदुवार चर्चा होती थी आज कुछ वैसा ही करने की इच्‍छा है ।

मुजारे - बहरे मुजारे दरअसल में एक मुरक्‍कब बहर है । मुरक्‍कब बहर वो होती है जिसका सालिम बहर में एक से ही रुक्‍न नहीं होते बल्कि अलग अलग रुक्‍नों का योग होता है । जैसे बहरे हजज एक मुफरद बहर है, मुफरद बहर वो होती है जिसकी सालिम एक ही रुक्‍न से बनती है । हजज का स्थिर रुक्‍न है मुफाईलुन, अत: सालिम में केवल मुफाईलुन ही होगा । मतलब ये कि मुफरद बहर वो बहर जिसके स्थिर रुक्‍न एक ही प्रकार के होंगें और मुरक्‍क्‍ब वो जिसके स्थिर रुक्‍न एक से अधिक प्रकार के हो सकते हैं । जैसे बहरे मुजारे की ही बात करें तो इसके रुक्‍न इस प्रकार हैं मुफाईलुन-फाएलातुन-मुफाईलुन-फाएलातुन ये बहरे मुजारे की सालिम बहर है अर्थात दो प्रकार के रुक्‍नों से इसको बनाया गया है जिसमें से एक रुक्‍न है बहरे हजज स्थिर रुक्‍न और दूसरा है बहरे रमल का स्थिर रुक्‍न । एक और रोचक जानकारी ये है कि बहरे रमल और हजज ये सबसे लोकप्रिय बहरें हैं और बहुत सारा काम इन्‍हीं में हुआ है । अब जानें कि मुफरद और मुरक्‍कब बहरों में क्‍या फर्क है । फर्क दिखता है सालिम बहरों में

आइये तीनों बहरों की एक मुसमन सालिम बहर देखें

हजज़: मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन

रमल: फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन

मुजारे: मुफाईलुन- फाएलातुन- मुफाईलुन- फाएलातुन

इस प्रकार देखा जाये तो बहरे मुजारे वास्‍तव में बहरे हजज़ और बहरे रमल का वर्ण संकर है ।  बहरे मुजारे में जो रुक्‍न होते हैं वे भी लगभग वैसे ही होते हैं जो कि बहरे हजज़ में होते हैं । इनकी बात करते हैं अगले अंक में ।

तरही मुशायरा -  तरही मुशायरा हो गया है और अब उसकी समीक्षा शीघ्र ही की जायेगी साथ ही हासिले मुशायरा शेर भी चयन किया जायेगा । वैसे एक मुश्किल सी बहर पर काम करना था और जिसे सभी ने बहुत मेहनत करके पूरा किया है । कई सारे शेर तो बहुत ही उच्‍च कोटि के निकल कर आये हैं ।पूरे मुशायरे की समीक्षा जल्‍द ही करने का प्रयास किया जायेगा । अब बात करते हैं ये कि आगे क्‍या किया जायेगा । तो आगे के लिये ये सोचा है कि तरही तो होगी किन्‍तु उसमें मिसरा किसी बनी हुई ग़ज़ल का नहीं लिया जायेगा बल्कि यूं ही हवा में से लिया जायेगा । जैसे इस बार के लिये जो सोचा है वो ये है रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से । ये यूं ही हवा से पकड़ी हुई पंक्ति है जो एक बार  जेहन में आई थी और अच्‍छी लगी थी । बहरे रमल मुसमन महजूफ पर है ये और मेरे विचार से इसमें काफिया आर है और रदीफ से । वजन फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन  है । बहुत आसान बहर और बहुत ही आसान रदीफ काफिया है इस बार क्‍योंकि पिछली बार कुछ कठिन हो गया था ।

यूनुस भाई का आभार - रेडियो वाणी वाले यूनुस भाई से मैंने कुछ गीतों को सुनने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की थी । चार पांच गीत थे जिनको मैंने बरसों से नहीं सुना और कहीं मिलते भी नहीं है वे गीत । यूनुस भाई ने तुरंत ही इच्‍छा पूरी कर दी और बताया कि वे गीत उन्‍होंने 7 जून के छायागीत कार्यक्रम में शामिल किये हैं । छायागीत मेरा सबसे पसंदीदा कार्यक्रम है रेडियो का  जो रात 10 बजे आता है । अब उलझन ये है कि उन गीतों को रेडियो से कम्‍प्‍यूटर में रिकार्ड कैसे किया जाये । आपमें से कोई जानता हो तो बताये या मेरे लिये उन गीतों को आने वाली 7 जून को रात 10 बजे विविध भारती के छायागीत से रिकार्ड कर सकता हो मैं आभारी रहूंगा । मैं अगर करना भी चाहूं तो पता नहीं शिवराज सिंह चौहान ( बिजली) मुझे करने देंगे या नहीं ।

नीरज जी का लाल नीला -  वैसे तो नीरज जी का ब्‍लाग एक ऐसा मल्‍टीप्‍लैक्‍स है जिसमें जो भी फिल्‍म लगती है वो हिट हो जाती है । इस बार सोमवार को उन्‍होंने लाल नीला प्रयोग किया है । नीरज जी ने मुझसे पूछा कि यदि आप मिसरा उला लिखते तो कैसे लिखते । मैं आश्‍चर्य इस पर कर रहा हूं कि जब मैंने ग़ज़ल को देखा तो नीरज जी ने लगभग वही भाव रखे मिसरा उला में जो शायद मैं रखता । शब्‍दों का चयन हो सकता हो थोड़ा अलग होता या नहीं भी होता किन्‍तु मेरे विचार में भाव लगभग वही रहते जो नीरज जी ने रखे । हो सकता है मैं भी इस प्रकार की गिरह नहीं लगा पाता जैसी नीरज जी ने इस शेर में लगाई है

गहरी उदासियों में आई यूं याद तेरी, जैसे कोई सितारा टूटा हो झिलमिलाकर

सप्‍ताह का शेर- जनाब राहत इंदौरी साहब का ये शेर मुझे बहुत पसंद आता है ।

मेरे कारोबार में सबने बहुत इमदाद की, दाद लोगों की, गला मेरा, ग़ज़ल उस्‍ताद की

सप्‍ताह के चित्र - आज सप्‍ताह के चित्र में दो चित्र ये खास हैं मेरे लिये । कुछ सालों पहले जब मुझे सीहोर के कालेज में प्रेमचंद जयंति पर व्‍याख्‍यान के लिये बुलाया गया तो एक अजीब सा एहसास हो रहा था । उसी कालेज में व्‍याख्‍यान जहां पढ़ा हूं । उस पर ये कि ठीक उसी कमरे में आयोजन जहां पर कालेज के ठीक पहले साल की कक्षाएं लगती थीं  । और ये भी कि ठीक सामने श्रोताओं में वे लोग बैठे थे जो उस समय मुझे पढ़ाया करते थे । वे वहां बैठे थे जहां मैं बैठता था और मैं वहां खड़ा होकर भाषण दे रहा था जहां वे होते थे । ये एक न भूलने वाला अनुभव था जो जीवन भर याद रहेगा । दूसरी पंक्ति मैं बैठी हैं उस समय मुझे केमेस्‍ट्री पढ़ाने वाली तथा मुझे सबसे जियादह स्‍नेह देने वाली मैडम सुनंदा ढोंक ( नीली साड़ी में ) ।

P1010110  P1010104

वैसे तो इच्‍छा है कि आपको हर सप्‍ताह एक सप्‍ताह का गीत भी सुनाऊं इस बार के लिये एक गीत भी छांट कर रखा था लेकिन उसको ठीक से होस्‍ट नहीं कर पा रहा हूं । पूर्व में जहां पर मैं होस्‍ट करता था वो सर्वर काम नहीं कर पा रहा । आप लोग कुछ सुझाएं कि आडियो होस्टिंग के लिये कहां पर प्रयास करूं । हो सके तो लिंक भेजें ।

 

 

13 टिप्‍पणियां:

  1. गुरुदेव, जान की अमान पाऊं तो अर्ज़ करूँ... आज आपकी पोस्ट तकनिकी ज्ञान से परिपूर्ण है...क्या ही अच्छा हो यदि आप बहरे मुजारे के एक आध शेर उधाहरण के तौर पर देदें ...इस से समझने में आसानी होगी ...क्या है की आप की क्लास में हम जैसे उम्र दराज़ लोग भी हैं जिनकी सोच और समझ का दायरा वक्त के साथ तंग से तंगतर होता जा रहा है...बात अब वैसे खोपडी में नहीं घुसती जैसे पहले घुस जाया करती थी...हालाँकि आपने बहुत अच्छे से समझाया है लेकिन वो हम जैसे मूढ़-मति ( इंसान को अपनी कमियां सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेनी चाहियें...इस से बाद में होने वाली शर्मिंदगी से बचा जा सकता है...ऐसा मेरा मानना है) के लिए ना काफी है..

    इस बार आपने आसान मिसरा दिया है...लगता है गिरह लगाने में उतनी ही मुश्किल आएगी...

    आपने लाल-नीले वाले प्रयोग के दौरान जिस शेर का जिक्र किया है वो मैंने नहीं लिखा मुझसे लिखवाया गया है...मैं आपका मिसरा पढ़ रहा था की अचानक ये पंक्ति दिमाग में कौंधी...मेरा विश्वाश है ऐसे शेर सोच कर नहीं लिखे जा सकते...

    युनुस भाई जब आपको गाने सुनवा रहे हैं तो वो ही आपको उसे रिकार्ड करने की विधि भी बता देंगे...हुनर मंद इंसान हैं वो..वैसे ऐसे कौनसे गाने हैं जो आप सुनना चाहते हैं और नहीं सुन पाए हैं...सूचित करें क्या पता मैं कुछ मदद कर सकूँ आपकी...

    सप्ताह का चित्र देख मन गदगद हो गया...इस अनुभूति कोशब्दों मेंव्यक्त करना मुश्किल है...

    नीरज

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  2. आज का पाठ पढ़ लिया होमवर्क नोट कर लिया....! फोटू बढ़ियाँ..!

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  3. गुरुजी आपकी कक्षा मे आए, बैठे और आपकी वाणी का रसास्वादन किया. अब हमको तो आपकी वाणी पढकर ही आनन्द आगया.

    समझे या ना समझे क्या फ़र्क पडता है? परंतु गुणीजनों की संगत ही सुखदायिनी होती है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. गुरु देव को सादर प्रणाम,
    तकनिकी तौर पे मुकम्मल ये पोस्ट सहेज के फिक्स देपोजित में रखने लायक है जहां से बस यूँ ही गज़लें पैदा होती रहेंगी आपके आर्शीवाद से मगर गुरु देव दो एक उदाहरण तो वाजिब है ....... खैर.. आगले अंक का इंतज़ार है ....
    युनुस जी का आभार तो हम भी रहेंगे और इंतज़ार करेंगे ७ जून का के आपकी पसंद क्या है ... मगर जो भी होगा वो मोतियों की तरह होगा निसंदेह .......
    वाकई लाल और नीले का प्रयोग लाभ प्रद है सभी के लिए... उसमे तो ना जाने कितने ही ऐसी शे'र है जो बस देखते ही बनता है ....

    और गुरु देव ये मेरा सौभाग्य है है के आज आपने जो बात कही है वो दूसरी दफा देख और सुन रहा हूँ बरसों पहले मेरे भी कॉलेज में जब मैं हिंदी का क्लास चुपके से करता था तो पिछली सिट पे बैठता था .... क्युनके मुझे हिंदी पढ़नी पसंद थी और मैं बिज्ञान का बिद्यार्थी था ... उस समय के जो मेरे शिक्षक थे उन्होंने एक बार बात कही थी के मैं ( वो खुद )पहले सबसे पिछली सिट पे बैठते थे क्यूँ के कल जाके वो आगे आसके और वो सबसे आगे रहे ... आज वही बात आपके जुबान से सुन रहा हूँ बहोत ही अच्छा लगा... इससे ये समझा सकता है के पीछे वाले सिर्फ पीछे नहीं रहते बल्कि वो सबसे आगे आते है....
    सच में साड़ी तस्वीरें अमूल्य होती है...
    आपका
    अर्श

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  5. ये तो कमाल हो गया गुरूदेव, अभी-अभी उधर मैंने आपको विकल होकर एक मेल लिखा और इधर ही ये आपका पोस्ट आ गया नया।
    मुरक्कब की उलझन दूर हुई, शुक्र है। नीरज जी की विनती में मैं भी सुर-में-सुर मिलाना चाहूँगा। एक दो उदाहरण में शेर सुना दे तो...आपका खजाना असीम है गुरूवर।
    आज के दिये हुये मिस्रा तो खूब रंग जमायेगा...कृपया नीरज जी से आग्रह करें कि इस बार वो भी गिरह लगायें।
    तस्वीर की बात बहुत भायी। मैं समझ सकता हूँ आपकी मनःस्थिति। अभी विगत दो साल से मैं भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षक के पद पर ही था कुछ अपने उन प्रशिक्षकों के साथ कंधे-से-क्म्धे मिलाते हुये जिन्होंने मुझे इसी जगह पर ट्रेनिंग दी थी।
    नीरज जी के मल्टीप्लेक्स पर लगा नया सिनेमा खूब धूम मचाने वाला है। निर्देशन का नया अंदाज़ और प्रस्तुती की नायाब तरीक...नीरज जी का मेल भी मिला इसी बाबत।

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  6. गुरुदेव............आपकी जानकारी तो इतनी अच्छी होती है बस हमारे भेजे में उतरती नहीं.......... अब तो बस आमने सामने बैठ कर ही सीखना होगा तभी समझ आएगी. मुशायरा संपन्न होने की बहुत बहुत बधाई.............आगे भी ऐसे ही दौर चलते रहेंगे आश है ...........आपका और नीरज की का प्रयोग लजवाब है............ गुरु शिष्य की सोच तो एक होनी ही है..........

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  7. सुबीर जी आपका सबक तो मेरे लिये याद करना बहुत मुश्किल है मगर क्यों कि आप मेरे बेटे के गुरु हैं तो मेरे भी गुरु हुये अपकी तरीफ करूँ तो सूरज को दीपक दिखने जेसी बात होगी आपकी कलम को मेर नमन आभार्

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  8. Gajal samrat ko
    Namste.
    Aap ke bare mein pada. Aap ke sunder pohto mein aap ka vyaktitva jhalak raha hai. Yeh badi uplabdhi ki baat hai ki jis manch par aapke shikshak bolte the, aur aap vidhyarthi ban sunte the, usi manch par aapne apna karyakram diya aur shikshak shrotaon mein baithkar aapko sun rahe hai! Bhagwan aapko safalta ka shikhar de. Mein bhi gazal sikhne ki koshis karungi.

    Manju Gupta.

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  9. गुरु जी प्रणाम
    क्या कहूं आज तो अपने आप से नाराजगी है मुझे,
    कारण बस इतना सा है की जब भी आपकी पोस्ट पढ़ कर कुछ कहने के लिए टिप्पडी बॉक्स खोलता हूँ तो पढ़ कर पता चलता है जो मैं कहना चाहता था वो पहले ही अर्श भाई, नीरज जी और गौतम जी कह चुके है मुझे हर बार एक नए सिरे से सोचना पड़ता है अब अपने शब्दों में कौन सी गति भरूं की टिप्पडी का दोहराव न लगे इसी उलझन में आज फिर हूँ
    सबसे पहले आपको शुक्रिया कहता हूँ,
    शुक्रिया
    शुक्रिया इसलिए की आपने मुझ जैसे का ध्यान रखा और सरल बहर पर अगला मुशायरा रखा जैसा की आपने भी महसूस किया होगा पिछले मुशायरों में जो कठिन बहर आपने दी उस पर सभी ने कितनी अच्छी गजलें कही और मैं प्रस्तुत कर पाया कभी ३ तो कभी ४ शेर

    मुजारे के विषय में आपने जो कहाँ समझ में आ गया मगर शंकालू प्रवित्ति का इंसान हूँ इस लिए एक प्रश्न है की क्या जितने रुक्न है सभी का संकर कर के मुजरे बहर बनाई जा सकती है ?

    नीरज जी का लाल नीला प्रयोग जैसा कुछ हमको भी दीजिये बस बहर सरल दीजियेगा यही विनती है
    तरही मुशायरे की समीछा के इंतज़ार में

    आपका वीनस केसरी

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  10. प्रणाम गुरु जी,
    कभी सोचता हूँ के कौन से पुण्य रहे होंगे जो आप जैसा गुरु मिला, डेढ़ साल पहले तक मैं केवल लिखना जनता था ये नहीं जानता था की बहर क्या चीज़ है. मगर आपके आर्शीवाद से बहुत कुछ सीखने को मिला. मुजारे बहर के बारे में काफी समस्याएँ थी जिनका आपका द्वारा समाधान हुआ. आज इसी सिम्त और सीखने को मिल रहा है.
    पिछली बार का तरही मुशयेरा में नहीं आ पाना मेरी बदकिस्मती के अलावा क्या हो सकता है मगर कुछ कारन रहे और वक़्त ने इजाज़त नहीं दी मगर इस बार कोई शिकायत नहीं दूंगा. मैंने ग़ज़ल पे काम शुरू कर दिया है.
    दोनों चित्र देख के मन को आनंदमय कर देते हैं.

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  11. ... 'माथाफोडी' के बिना समझ पाना कठिन जान पडता है !!!!!!!!!

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  12. पाठ को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हूं। और जो मिसरा आपने दिया है इस बार वो बहुत ही जानदार है। कुछ काम शुरू करता हूं इस पर। नीरज के लाल नीले ने तो शुरूआत कर ही दी अब इस इंद्रधनुष के बाकी रंग आपको भरने हैं। प्रयोग की सफ़लता में शक की कोई गुंजाईश नहीं है। और फोटो तो बहुत प्यारी है...जीवंत!

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