मंगलवार, 17 जून 2008

दिन जा रहे हैं के रातों के साये, अपनी सलीबें आप ही उठाए । आज सुनिये पंचम दा और गुलजार जी की अद्भुत जुगलबंदी का ये गीत

पिछले गीत के बारे में मैंने कहा था कि ये गीत हवा के हल्‍के झौंकों का गीत है तो आज सुनिये एक ऐसा गीत जिसमें कि रातों के सन्‍नाटे भांय भांय करते हुए सुनाई देते हैं । वैसे एक बात तो है कि जब जब भी पंचम दा और गुलजार साहब का मेल हुआ तब तब ही कुछ ईश्‍वरीय रचनाएं हमें सुनने को मिली हैं । उस पर भी आंधी के गीत तो ऐसे हैं कि जिन पर कोई भी टिप्‍पणी ही नहीं की जा सकती है । कई सारी फिल्‍में हैं जिनमें पंचम दा और गुलजार साहब ने मिलकर प्रयोग किये हैं । मैं अपनी कहूं तो मुझे तो इसमें एक नाम और जोड़ने की इच्‍छा होती है । ये बिल्‍कुल मेरा ही व्‍यक्तिगत नजरिया है ( आजकल ये कहना जरूरी हो गया है ) और वो ये कि जब इस जुगलबंदी में लता जी की आवाज भी शामिल हो जाती है तो त्रिवेणी का ये संगम कुछ आकाशीय रच देता है । हालंकि बाद में पंचम दा ने आशा जी से ज्‍यादा गाने गवाए और लता जी के साथ कम ही काम किया । मगर फिर भी लता जी और पंचम दा के गीत सुनने वाले को दूसरी दुनिया की सैर करवा देते हैं । आज एक ऐसा ही मनपसंद गीत मैंने छांटा है जो उसी त्रिवेणी का है जिसमें लताजी हैं, गुलजार साहब हैं और आरडी बर्मन साहब (पंचम दा) भी हैं ।तीनों ने मिलकर एक अद्भुत गीत रचा है । गीत ज्‍यादा मकबूल नहीं हो पाया था । मगर मुझे इसके शब्‍द बहुत पसंद हैं । गीत को पुराने रिकार्ड प्‍लेयर से लिया गया है इसलिये एक दो जगह पर सुई उचक गई है । जो लोग रिकार्ड प्‍लेयर के शौकीन हैं उनको इसमें रिकार्ड प्‍लेयर की सुई के चलने की नास्‍टेल्जिया भी सुनाईदेगी । गीत 1974 में आई फिल्‍म दूसरी सीता का है आवाज है लता मंगेशकर जी की, गीत गुलजार साहब का और धुन आर डी बर्मन जी की सुनिये और आनंद लीजिये

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6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! मज़ा आ गया आज तो.. बहुत उम्दा गीत

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  2. जैसा गीत, वैसा ही माहौल-रातों के साये में ही सुना. आनन्द आ गया.आभार इसे प्रस्तुत करने का.

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  3. आप वास्तव में संगीत के जोहरी है...तभी ऐसे ऐसे रत्न जमा हैं आप की तिजोरी में....वाह.
    नीरज

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  4. वाह ...क्या बेहतरीन गीत सुनवाया आपने ..
    मोडर्न अँदाज की धुन और दीदी की आवाज़ ,
    गुलजार साहब के शब्द और पँचम दा का कमाल-
    ऐसे कयी रत्न छिपे हैँ .....आज इसे उजागर करने का बहुत बहुत शुक्रिया
    -लावण्या

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  5. मैं वीनस केशरी
    उम्र 23 वर्ष
    निवासी इलाहाबाद
    यूॅ तो पिछले 2 वर्ष से इन्टरनेट से जुड़ा हूॅ परन्तु ब्लागिंग के कीडें ने मुझे 5 महीने पहले काटा और कुछ मशहूर ब्लागों को नियमित रुप से पठ़ना शुरु किया, अपना ब्लाग भी बनाया मगर ये मेरे लिये विकट कार्य साबित हुआ सो 10 दिन में ही ब्लाग को डिलिट कर दिया ।
    एक दिन मेरेकविमित्र.ब्लागस्पाट पर गया जिसमें एक लिंक देख कर मन खिल उठा, जिसका नाम था
    गजल लिखना सीखें
    गजल
    मैं नहीं जानता क्यों लिखना शुरु किया मगर 18 वर्ष की आयु में कक्षा 12 की पठाई के दौरान लिखना शुरु किया तो जो पहली पंक्तियाॅं लिखी वो कुछ यूॅ थी.................

    मेरे इस दिल में अरमान ना थे वैसे ।
    वो दिल ही दिल में क्या क्या समझ बैठे ।।
    ना हमने की है गलती ना उनसे है शिकायत ।
    बस दिल में इक कसक है इल्जाम दिये कैसे ।।

    धीरे धीरे अच्छे कवि गजलकारों के अशआर पठें और अपने आप को निखारता रहा
    यहाॅ पर ये अवश्य कहना चाहूॅगा कि मैं नियमित रुप से नहीं लिख पाता हूॅ जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि मुझे महीने दो महीने में लिखने की कुछ सनक होती है और डायरी उठा कर लिखना षुरु कर देता हूॅ फिर दो तीन दिन बाद फिर से डायरी अलमारी में चली जाती है
    ये उस समय की बात है जब मेरी डायरी में 95 अशआर लिख चुके थे, तब आपका लिंक मिला गजल लिखना सीखें आपके पाठ को पठ़ने के पहले मैं काफिया, रदीफ के बारे में कुछ नहीं जानता था बस लय के साथ लिखना सीख लिया था, जिस दिन आपका लिंक मिला आपके 3 या 4 पाठ पूरे हो चुके थे इसलिये मैने वहाॅ कोई टिप्पणी नहीं की और पिछले पाठ को तैयार करता रहा ।
    काफिया और रदीफ के बारे में जान कर आष्चर्य हुआ कि इनकी जानकारी ना होने के बावजूद मैने अपनी गजलों में इनको हमेषा निभाया था, जब तक मैने पिछले पाठ समाप्त किये होली आ चुकी थी, और आपके द्वारा दिया गया गृहकार्य ’’होली, रंग, पिचकारी आदि काफिये के साथ गजल लिखना ’’ को पूरा करके आपके सामने प्रस्तुत होने का मन बनाया परन्तु उसी समय होली बीतते ही आपके होमवर्क में जो विवाद उठा उसे देख कर मैने अपना निर्णय दो दिन के लिये टाल दिया परन्तु जब मैने अपना होमवर्क डाला तो कोई टिप्पणी ही नहीं मिली दुख हुआ ये सोच कर कि जैसे ही मैने षुरुआत की आपको खो दिया साथ ही आपने भी कोई कारण बताये बिना अपने षिश्यों से मुह मोड़ लिया ।
    होली के बाद से ही प्रतिदिन उस लिंक को चेक किया किन्तु आपकी वापसी नहीं हुयी
    और आज से 15 दिन पहले मैं समझ गया की अब आपकी वापसी संभव नहीं
    इस बीच कई गजल लिखी एक आपके सामने प्रस्तुत है..................

    दुश्मनी खुल के जताता है बताओ क्या करुॅ ।
    उससे मेरा ये ही नाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    उसकी सारी गल्तियाॅ अच्छी लगती है मुझे ।
    घर में केवल वो कमाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    मेरी सारी कोशिशें तब छटपटाती रहति है ।
    महफिलों पर वो हि छाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    मेरी मजबूरी गिनाता है वो पहले और फिर ।
    नोट के बंडल दिखाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    गहने बेचे, कपड़ें बेचे, बैल बेचे औ मकाॅ ।
    फिर भी लाला रोज आता है बताओ क्या करुॅ ।।

    फिर खिलौना ले के आया, उसका है धन्धा यही ।
    मेरा मुन्ना रुठ जाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    जिससे हमने प्यार चाहा वो हमारी पीठ पर ।
    वार करके मुस्कुराता है बताओ क्या करुॅ ।।

    हम तो ‘‘वीनस‘‘ काफिये में ही उलझ कर रह गये ।
    वो बहर के साथ गाता है बताओ क्या करुॅ ।।

    बहर के बारे में सीखने की ललक साफ ही दिखती होगी आपको ...................
    आपकी ओर से निराश हो कर मैने इक बार फिर से नई शुरुआत करने की सोची और काफिया और रदीफ के आपके द्वारा मिले ज्ञान के साथ आगे बठ़ा ।
    मेरे साथ दो शब्द थे रदीफ और काफिया
    तीन दिन तक सर्च किया परन्तु कुछ नहीं मिला, एक दिन गूगल के हिन्दी सेक्षन में जाकर काफिया सर्च किया और मुझे वो मिला जिसके बारे में सोचा भी नहीं था,
    और वो था ‘‘‘‘‘सुबीर संवाद सेवा ‘‘‘‘
    मुझे वो मिल गया था जिसे मैने खो दिया था, मैने षुरु से षुरु किया और सिहोर की धटनाओं वाली पोस्टों से लेकर आपकी अन्तिम पोस्ट तक सभी को पठ़ डाला।
    इतना कुछ सीखने को मिला जिसे षब्दों में नहीं बयाॅ कर सकता खास कर बहर की गहराई में उतर कर।
    और एक बात कहना चाहूगा की पोस्ट से कहीं ज्यादा प्रभावित पोस्ट के टाइटलों ने किया जो आपके वृहद कोश को परिभाशित करता है।
    आज टिप्पणी लिखनी षुरु की है तो लिखता ही जा रहा हूॅ कहने के लिये बहुत कुछ है, पिछले 12 दिनों में आपके द्वारा प्रकाषित 1 साल की सारी पोस्ट को पठ डाला और रात रात भर जाग कर तैयार भी कर लिया है, और कुछ गजल भी बहर में लिखी है।
    मगर 1 साल की पठ़ाई 12 दिन में करने का नतीजा ये निकला की गंभीर रुप से बीमार पड़ गया,
    इलाहाबाद में हो रही 28 दिनों की लगातार बारिष का भी इसमें योगदान रहा, फिलहाल भूखे को सामने छप्पन भोज रखा दिखेगा तो ऐसा तो होना ही था, इन बारह दिनों में जो भी सीखा उसे जिन्दगी भर नहीं भूल सकता हूॅ।
    आशा करता हूॅ कि आप मुझे शिष्य के रुप में स्वीकार करेंगें और मुझे नीरज जी, उडनतष्तरी, अभिनव और अन्य षिश्यों की भाॅति ग्रहण करके मार्गदर्शित करने की महती कृपा करेंगे ।
    अपनी लिखी नई गजल आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूॅ कृपया आलोचनात्मक टिप्पणी करें

    पठ़ा लिखा आलिम फाजिल नहीं हूॅ मैं ।
    सुबीर तेरे जितना काबिल नहीं हूॅ मैं ।।

    मैं इक सफीना हूॅ सागर से लौटूॅगा ।
    किसी समन्दर का साहिल नहीं हूॅ मैं ।।

    महल में रहने की आदत नहीं मुझको ।
    किसी मुहम्मद का कातिल नहीं हूॅ मैं ।।

    तिरी सभी बातें अच्छी नहीं लगती ।
    ये बात कहूॅ इतना काहिल नहीं हूॅ मैं ।।

    धन्यवाद
    आपका वीनस केशरी

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  6. subeer ji
    aapke liye to keval ek hi baat kah sakta hoo

    na jee bhar ke dekha na kuch baat ki
    badi aarzo thi mulakaat ki......

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