ग़ज़ल की कक्षाएं कुछ दिनों से बंद सी हैं और माड़साब अगर शुरू करना भी चाहें तो मध्य प्रदेश की सरकार ने उसपे रोक लगा दी है । घबराइये नहीं दरअस्ल में ये रोक बिजली की कटौती के कारण लगी है । हमारे यहां पे आजकल बिजली जाती नहीं है आती है । हम ये नहीं कह पाते कि बिजली गई हम ये कहते हैं कि आ गई क्योंकि । जाती ज्यादा है । खैर अभिनव की ग़ज़ल की तखतीई करें और बताएं कि क्या हाल हैं ।
सूचना आई फटा है आर्याव्रत में बम,
मुट्ठियाँ भींचे हुए बस देखते हैं हम,
नखलऊ, जैपूर, बंगलूरु, हईद्राबाद,
मुंबई, काशी, नै दिल्ली दम दमा दमदम,
बात ये पहुँची जब अपने हुक्मरानों तक,
हंस के बोले ग्लास में डालो ज़रा सी रम,
अब नियमित रूप से मौसम ख़बर के बाद,
बम की खबरें आ रही हैं देख लो प्रियतम,
आदमीयत हो रही है आदमी में कम,
पढ़ के लिख के बन गए हैं पूरे बेशरअम.
फर्क पड़ता ही नहीं कोई किसी को अब,
दुःख रहा फिर दिल हमारा आँख है क्यों नम,
हिंदू मुस्लिम लड़ मरें तो कौन खुश होगा,
सोच कर देखो मेरे भाई मेरे हमदम.
अभिनव जी की बहर तो 2122 2122 2122 2 लग रही है.
जवाब देंहटाएंआप की पाठशाला भारत के उन ग्रामीण क्षेत्रों की पाठशाला का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें विद्यार्थी तो नियमित रूप से आते हैं लेकिन माड़साब ही गायब हो जाते हैं...उम्मीद है बिजली के बहाने को और अधिक लंबा ना खींचते हुए आप हमारी गुहार पर विचार करेंगे और नियमित रूप से पढायेंगे...
नीरज
क्या कहें कि हम कल ही रात को आपको फोन ट्राई कर रहे थे कि कहाँ हैं??
जवाब देंहटाएंऔर आप आज आ गये. दिल को बड़ा सुकून मिला. ऐसे मत गायब हो जाया करिये. :)
आप आये तो आया मुझे याद गली में आज चाद निकला..............
जवाब देंहटाएंसूचना आ , ई फटा है , आर्याव्रत में , बम
जवाब देंहटाएं2122 , 2122 , 2122 , 2
मुट्ठियाँ भीं, चे हुए बस, देखते हैं , हम
2122 , 2122 , 2122 , 2
श्रद्धेय गुरू जी को दंडवत चरण-स्पर्श,
जवाब देंहटाएंआपकी कक्षा में शामिल होने की अनुमती चाहता हूँ.
विगत सात-आठ दिनों से चुपके-चुपके तमाम पुराने पाठों को घोंत रहा था.फ़ौजी हूँ और गज़ल का साधक.अपने आप को कोस रहा हूँ कि अब तलक कैसे आपके इस अलौकिक कार्यशाला से अनभिग्य था.सेना में हूँ तो ज्यादा समय नहीं निकाल पाता हूँ,फिर भी पूरी कोशिश करूंगा आप्का नियमित और योग्य छात्र बनने की.
स्वीकार क अनुग्रहीत करें.
आपकी शुरुआती सबकों के दौरान का जो पहला होमवर्क था "मुहब्ब्त की झूठी कहानी पे..." तो उस पर मेरा प्रयास कुछ ये रहा:-
हवा जब किसी की कहानी कहे है
नये मौसमों की जुबानी कहे है
फसाना लहर का जुड़ा है जमीं से
समन्दर मगर आसमानी कहे है
नयी बात हो अब नये गीत छेड़ो
गुजरती घड़ी हर पुरानी कहे है
....इससे पहले भी लिखा है गुरूजी और दोस्तों व विभागीय महफ़िलों में तारिफ़ें भी पायी,लेकिन आपके ब्लोग ने वापस धरातल पर ला दिया ...
शायद पहले दिन के लिहाज से कुछ ज्यादा तो नहीं कह गया???