सोमवार, 9 मार्च 2020

होली है भई होली है, रंगों वाली होली है, होली का त्यौहार भी आ पहुँचा है और आज शब्दों और भावों के रंगों से होली खेलने का दिन आ गया है। तो आइये आज होली के आनंद में डूबते हैं।

होली है भई होली है रंग बिरंगी होली है, आज बुरा ना माने कोई निकल पड़ी ये टोली है। लो भाई होली का त्यौहार भी आन पहुँचा ही। अब होली का दिन हो तो हम तो सुबे-सुबे से भांग पी के टुन्न हो जात हैं। मोड़ा-मोड़ी से हमने सुबे से ही के दी थी कि कोई भी आज हमको बिलकुल नहीं छेड़े। काय के होरी को दिन एक तो साल भ्रर में आत है, उस पे जे भी कि हम तो होरी के त्योहार पे ख़ूब ही कछु-कछु करत रे हैं। आप सभन को होरी की भुसकामनाएँ। आप सब होरी के दिन जो भांग पी के टुन्न हो जाओ तो साल भर बने रहो। काय के आजकल होस में रहना बहुतई खराब बात है। जिते देखो उते सब कछ़ु न कछु को नसो करत घूम ही रए हैं। ओ दद्दा हमने तो सटायर मार दओ। आप लोग दिल पे बिलकुल मती लेना। काय के भांग पी के हमारे अंदर भी कछु कछु पढ़े लिखे लोग लुगाइन टाइप की फीलिंग आने लगत है। कही सुनी माफ करनी पड़ेगी तो करनी ही पड़ेगी। काय के ओर कोई चारा है नहीं आप लोगन के पास।

कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
जा बार की होरी में हमने अपने पुराने टेम की होरी की लाइब्रेरी को तलास के बा में से कछु आप लोगों के फोटुन निकाले हैं। बो का केते हैं कि हॉल ऑफ फेम से निकाले हेंगे जे सारे फ़ोटो। तो सबसे पेले तो आप सब लोग-लुगाई होन हमारी पीठ जा बात पे जोर से थपथपाओ (ऐ दद्दा जो थपथपान के बदले थपड़िया कौन रओ है ?) आप सब को होरी की भोत भोत सुभकामना।
राकेश खंडेलवाल
आप सदा ही ग़ज़लों की लिए मिसरे देते हैं! हुज़ूर  कभी तो हम जैसों पर भी तरस खाइए जिन्हें आपके उस्ताद शागिर्दों की परछाई भी पहुँच के परे लगती है हम क्या खाकर (भांग तो यहाँ मिलती नहीं और हलवा-ए-गाजर पर आपका एकि क्षत्र साम्राज्य है) तो हमारे बस की बात नहीं की ग़ज़ल का ग भी लिखें।  आस सब के साथ अपना भी नाम जुड़ सके इसीलिए होली के मौक़े पर कुछ शब्द जामुन की तरह कुल्हड़ में डाल कर हिला जला कर काग़ज़ पर उँडेल दिए हैं इसी आस में की कोई कहे ग़ज़ल नहीं तो बुरा न माने होली है
जहाँ अहीर छोरियाँ नचातीं नाच कृष्ण को
जहाँ पे छाछ छांछियाँ भिगोया करती थी डगर
जहाँ उमंग डोलती थी ढपलियों की थाप पर
जहाँ रँगों में डूबती थी भोर साँझ औ दुपहर
सुनहरा पृष्ठ आज फिर खुला हुआ अतीत का
बिरज  के रसियों की लगी है गूंजने वो बोली है
चने के बूटे और सुनहरी बालियों के गाँव में
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
घर के द्वार आँगनों में रच रही रंगोलियाँ
उड़ रही हैं चूनरें पतंग बन के व्योम में
सज रहे हैं भाल टीके चाँदनी कपूर के
सिहर रही हैं सिहरनें धरा के रोम रोम में
सजी गली के मोड़ पर आ कीकरों की झाड़ियाँ
अग्नि से मिले वरों की आज फिर ठिठोलि है
हरणकशिप के शिशु से फिर पराजित है सिंहिका
कोई मले गुलाल तो बुरा न मान होली है
जो खींचता है भीत भर के भेद भावनाओं में
चलो नगर से दूर उस आज फेंक आएँ हम
ये पर्व है मिटाएँ हम जो दूरियाँ है मध्य में
सभी मनुज समान है कोई बड़ा न कोई कम
उठा के रख क़ुरान गीत बाइबिल को ताक पर
मनुष्यता ने सभ्यता की अब किताब खोली है
भुला के बीतते कालों को अब लिखें नए सफ़े
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
काय के एक तो जे बात की आपने कपड़े भोत ही मर्यादा विहीन पहन रखे हैं। तो सबसे पेले तो हमारी जेई आपत्ती दरज की जाए। आपसे हमने पिछली होरी पे भी जे बात कही हती कि आपके ऊपर जे सब अब जा उमर में बिलकुल भी सोभा नहीं देता है। पर आप मानने वाले थोड़ी हो। और अब दूसरी बात हम जे कह रए हेंगे कि जो आपने बात कही है ऊपर कि आपको गजल को ग भी लिखनो नहीं आतो है, तो दद्दा एक बात हमारी सुनो, जे बात आपसे कौन दुस्मन ने कह दी कि आपको गीत लिखनो आतो है। सच्ची बात कह रए हैं, जिसने भी आपसे जे बात कही है, उसको होरी पे ढूँढ के चार जूते अबस्य लगाइए। काय के जो कोई भी इत्ती बड़ी गलतफहमी आपके अंदर डाल रओ है, बाके लाने इत्ती सजा तो दद्दा बनती ही बनती है। बाकी आपको जो गीत होरी पे सुनने को मतबल है कि चढ़ी चढ़ाई भंग को नसो एक झटका में उतर जानो। भांग तो खुदइ आपको गीत सुनकर होलिका की आग में कूद जाए है कि होलिका जले चाय नी जले पर मैं तो जल मरूँगी। काय दद्दा उते अमेरिका में कछु और काम धाम नहीं है का तुमाए पास कि तुम दिन भर धे गीत, धे गीत पेलते रेते हो। हम होली की कसम खा के के रए हैं कि हमने जे गीत को एक भी अच्छर नी पड़ो। तुमाए गले की कसम पढ़ भी लेते तो बा से कछु नी होन वारो थो। तो सुनो अमेरिका के दद्दा अब ज्यादा मन पे मल लीजो हमारी बात को, काय के हम तो पेले ही के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – गंजे अंकल तिलक राज जी जा बार होरी पे अपनी गझल लेके नहीं आ सके हैं, काय के उनको मध्य प्रदेश सरकार ने पकड़ के भोपाल के बड़ तालाब के किनारे खड़ो कर दओ है, सोलर लाइट बनाने के पैनल लग रए थे तो एक पैनल कम पड़ गओ हतो। सूचना समापत भई… टिंग टिड़ांग….
सौरभ पाण्डेय
आजकल ’संयोगों-प्रयोगों’ को लेकर खूब चर्चा है. हमने भी प्रस्तुत ग़ज़ल में पंक्चुएशन को लेकर प्रयोग किये हैं. सूचित कीजिएगा, यदि ऐसा प्रयोग चलेबुल है और रुचकर लगा. अलबत्ता, ग़ज़ल की सलामती अधिक आवश्यक है.

कहे बसंत क्या सुनो ! - ’बुरा न मानो होली है’
अजी, उसे ज़वाब दो, बुरा न मानो ! .. होली है !!
ये रुत है भंग-रंग की, रुचे बवाल काटना,
तो क्यों न फिर धमाल हो, बुरा न मानो होली है !

रग़ों में फाग भर रहा उछाह झाल-ताल की
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है।
बहुत हुई खुसुर-फुसुर.. उठो, विभेद-डाह की--
खमोशियाँ हिंड़ोल दो, बुरा न मानो, होली है !

लुभा रहे हों तत्समों पे शब्द-भाव देसजी
तो यार, बेझिझक कहो, ’बुरा न मानो होली है !’
समय ग़ज़ब है आजकल गली-गली छली-बली--
बताएँ दिन भी रात को ! बुरा न मानो, होली है !!

असत्य-सत्य बाँचते शहर-शहर जमावड़े
लगें न ठीक, मत सुनो। बुरा न मानो, होली है !
कई-कई मुहावरे समाज रोज़ गढ़ रहा
प्रपंच कह न मान दो, बुरा न मानो। होली है !!

सियासती उठा-पटक या धूर्तई विवाद में
मधुर लगे है कान को : ’बुरा न मानो होली है’
गलत-सही के मानकों पे जी रहे जो रात-दिन,
तरुण-किशोर-बालको ! बुरा न मानो ! होली है !!
जे बात हमें भोत पसंद आई कि आपने जो कपड़े पहने हैं वो एकदम मर्यादाहीन नहीं हैं। और जे बात भी हमें भोत ही पसंद आई कि आपके गालन को रंग आपके कपड़ों से भोत ही मिल रओ हेगो। पर जो आपने के दी है कि आपने गजल में प्रयोग किए हेंगे, जे बात हमें कछु समझ में पड़ी नहीं। हम तो जे बात सोच रए हेंगे कि जो कुछ आपने जो गो-विष्ठा के रूप में सामग्री भेजी है बा से हम अपनो आँगन लीपें कि बाकी मलरियाँ और उपले बना लें होलिका दहन के लाने। काय के हम तो एकदम सच के रए हैं कि जे जो कुछ आपने लिख के भेजो है, जे कोरोना बायरस से भी ज्यादा खतरनाक है। आपके गले की सौं खा के के रए हैं कि उते आप जे चीज लिख रए हते और इते हमें सीहोर में बदबू आने लग पड़ी हती। हमाओ दिमाग़ तो आपको पतो ही है कि भोत तेज चलतो है। हम बदबू से ही समझ गए हते कि उते आप कछु न कछु लिख रए हो। दद्दा एक बात हम सोइ बता रए आपको, आप तो एक काम करो, आप किसी हस्पताल में बेहोस करने वाली नौकरी कर लो, जे जो कुछ आप लिख रए हो इससे और कछु होय न होय आपको घर अच्छे से चल जायगों। कसम खा रए हैं कि आपको दूसरी लाइन पढ़ने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, इते आपने पहली लाइन पढ़ी और उते मरीज एकदम बेहोस। काय हमारी बात बुरी लग रही है, मगर दद्दा हम तो पेले ही के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – जैपुर वाले नीरज गोस्वामी जी भी जा बारे पेली बार होली पे अनुपस्थित हैं, उनके बारे में पतो चलो हेगो कि उनने जब से दाढ़ी बढ़ा ली है, तब से उनके अंदर गझल बढ़नी और बननी दोनो बंद हो गई हेंगी। काय के आदमी पे मनहूसियत हो तो सकल पे दाढ़ी ही बढ़ सके है गझल फिर टाटा कर के निकल जाए है। सूचना समाप्ति की घोसना…. टिंग टिंग टिंग टड़ंग…..
मन्सूर अली हाश्मी
तरही पर अपना कलाम इरसाल कर रहा हूँ। मुनासिब हो तो शामिल कीजिएगा। 
करे कोई धमाल तो बुरा न मनो होली है
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
ग़ज़ल न कह सका अगर तो ग़ैर हाज़री लगे!
हज़ल ही लाया हूं पढ़ो बुरा न मानो होली है

मलाल कि गुलाल भी मला तो कुछ नही कहा
न यह कहा परे हटो! बुरा न मानो होली है!!
यह ज़िंदगी है ईद और दिवाली की रंगोली भी
गले मिले यह दोनो तो बुरा न मानो होली है।

है यार गौरी का अगर गुलाल मल भी दे तो क्या
बलम खड़ो तरस रह्यो बुरा न मानो होली है
'करोना' वायरस कहीं छुपा है अपने ज़हन में
इलाज ख़ुद का ही करो बुरा न मानो होली है।

तू भगवा डाल मैं हरा ऐ भाई दूर क्यों खड़ा
भुला दे ज़ात-पात को बुरा न मानो होली है
'एनारसी' न लाएंगे, न लाएंगे, न लाएंगे
अगर ये आ ही जाए तो बुरा न मानो होली है

'ट्रम्प' आये भी गये हंसी-ख़ुशी विदा हुए
ग़लत जो नाम ले लियो बुरा न मानो होली है
वो तुम को गाली दे अगर ख़मोशी इख़्तियार कर
गधे को क्या गधा कहो बुरा न मानो होली है

करे जो भीड़ 'लिन्च' तो पलट के रंग डाल दे
पुकार उठेंगे तब तो वो बुरा न मानो होली है
तकल्लुफ उनका 'हाशमी' परेशां तुझको कर रहा
उड़ा के रंग कह भी दो बुरा न मानो होली है
सबसे पेले तो हम जे बात अभश्य ही आपको सूचित करेंगे कि आपकी पोसाक देख के दिल एकदम गार्डन-गार्डन हो गया हेगा। आपने मर्यादा की रच्छा के लिए जो वस्त्र धारण किए हैं, उसके कारण इतिहास में आपका नाम हम आज ही काजल में कोयला मिलाकर लिख देंगे। आप का यह गुणवंती, सतवंती टाइप का जो रूप है, जे एकदम दिल में उतर रओ हेगो। आपकी छटा ऐसी लग रई है जैसे बस भुवना मोहिनी हो आप। और अब जे बात भी जो कुछ आपने जे लिख के हमाए पास भेजो हेगो, जे हमाए भेजे में एक इंच भी उतरो हो, तो जो काले चोर की सजा बो ही हमाई सजा। काय के आपने इत्तो बुरो, इत्तो बुरो लिखो है कि हम पेले तो खुद बेहोस होते होते बचे, फिर हमाए पास हमाओ अल्सेसियन डॉग खड़ो थो, वो बेहोस होते होते बचो। मगर सामने पेड़ पर कछु चिड़िया बैठी थीं, बे बिचारी चिरैया होन बच नी पाईं। वे सोई टपक गईं हैं पेड़ पे से। अब जे बात आपको पेले इसलिए बता दी हेगी कि अब मेनका गांधी आपके पीछे लट्ठ लेके घूम रही हेंगी। उते हमने जे बात भी सुनी है कि आपके गझल कहने पर सरकार आजीवन प्रतिबंध लगाने की सोच रही हेगी। एक बात कान में केना चा रहे हैं आपके, कान इते लाओ पास में…. ओ रे दद्दा कित्ती बुरी गझल लिख के भेजी है आपने, मोड़ा-मोड़िन की जान लेना चा रए हो क्या ? बुरी लगी…? हम तो पेले ही के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – जा बार उते कैनेडा में रेने वाले निरमल मन के सिद्धू जी भी सामिल नहीं हो पा रए हैं। काय के उते कपिल सरमा के सो में जब से सिद्धू को हटाओ गओ है, तब से सारे के सारे सिद्धू डरे भए हैं, जा के लाने ही निरमल जी एकदम कोमल होके लापता हो गए हेंगे। सूचना समापत होती हेगी.. टिंग टिड़ांग टिंग टिंग टिड़ांग….
गिरीश पंकज
आपका तरही मिसरा मिला। आपकी लंबी चौड़ी व्याख्या बहुत पल्ले तो नहीं पड़ी। ऊपर वाले ने पता नहीं आपको कैसा अद्भुत ज्ञान दिया है। यह सब हमें अगले जन्म में ही मिल पाएगा। अभी जो कुछ समझ में आया, वह मैं भेज रहा हूं। उम्मीद है दुरुस्त करके  दे देंगे। एडवांस में होली मुबारक।
भुलाओ बैर भाव को, बुरा न मानो होली है
हवा में रंग बन उड़ो, बुरा न मानो होली है
हमें कहा गधा तो तुम भी ये सुनो ज़रा के तुम
उलूक के ही पट्ठे हो, बुरा न मानो होली है

हैं राजनीति में सभी के काले काले काम बस
तो क्यों न कोयला मलो, बुरा न मानो होली है
गले लगाओ दुश्मनों को प्यार से दुलार से
गले लगा के कह भी दो, बुरा न मानो होली है

है रिश्ता होली चोली का युगों युगों पुराना ये
मिलें जो राह में रंगो, बुरा न मानो होली है
कोई न ऊँच नीच है, ये रंग का जहान है
दीवाना बन के ये कहो, बुरा न मानो होली है

है पंकज आज भंग की तरंग और उमंग ये
गिरो, उठो, उठो गिरो, बुरा न मानो होली है
हमें एक बात तो पेले जे समझ में नहीं आ रही है कि आपने जे ड्रेस कोन से टेलर से सिलवाई हेगी। काय के एक तो जिस ने भी सिली है उसने जा में से कपड़ा बचा लओ हेगो। दूसरी बात जे कि आपसे कौन ने कह दई हेगी कि आपके जे साँवरे रंग पे आपको नीलो रंग के कपड़े भोत अच्छे लगेंगे। काय के हमें तो आपकी जे छटा भोतइ बुरी लग रही हेगी। सच्ची बात कहें तो इत्ती बुरी फोटो हमने आज के दिना से पेले कभी देखी ही नहीं हती। हम जा को प्रिंट आउट निकाल के रख रए हेंगे, काय के मोड़ा-मोडिन को डराने के काम आयगो। दूसरी बात आपसे हम जे के रए हेंगे कि जो कछु आपने जे लिख दओ हेगो, जा को सिरो हमें सोइ पकड़ में नहीं आ रओ हेगो कि जा को हम करें का। आप इत्ती मेहनत से इत्तो बुरो-बुरो कैसे लिख लेते हो, और फिर जे बात कि उसके बाद भी आपको जरा सो भी घमंड नहीं है अपनी जा कला पर। सच्ची बात के रए हैं गौमाता की कसम खा के कि हमने जब जे पढ़ी तो हमें साढ़े तीन बार उल्टी हुई। साढ़े तीन जा के लाने के चौथी बार उल्टी होते होते बरक गई। कित्तो टेलेंट भरो पड़ो है आपके अंदर। हमें तो जे बात ही समझ में नहीं आ रही है कि आप इत्ते टेलेंट को इत्ते छोटे से शरीर में कित्ती मेहनत से संभाल के रख रए हो। हमें तो भोत ही बुरी लगी आपकी जे जो कुछ भी चीज थी। आपको हमाई बात बुरी तो नहीं लग रई हेगी। लगे तो हम तो के ही चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – अभी अभी गुप्त ज्ञान के सूत्रों से पता चली हेगी कि संजय दानी जो डॉक्टर हेंगे, वे भी जा बार नहीं आ रहे हेंगे। काय के उनको जे बात पता चल गई है कि कोरोना के इलाज को सबसे अच्छो तरीको है मरीज को उनकी गझलें सुनाना।वे उते व्यस्त हो गए हेंगे। सूचना समापत करने की घोसना.. टिंग टिड़ांग टिंग टिंग टिड़ांग….टिंग टिंग टिड़ांग
दिगम्बर नासवा 
होली के इस कठिन बहर पे कुछ लिखना आसान नहीं है. फिर भी जो लिख पाया उसे पेल रहा हूँ, सभी साथी हैं गुरुकुल के इसलिए झेलना तो पड़ेगा उन्हें.
होली की सभी को बहुत बहुत बधाई.
रंगो सभी को जो भी हो, बुरा न मानो होली है
दिलों से दिल मिला चलो, बुरा न मानो होली है
रुको तो जाना, सुन तो लो, बुरा न मानो होली है
असर था भांग का सुनो, बुरा न मानो होली है

बयार फ़ागुनी उड़ी है प्रेम रंग में घुली
बहक गया हुँ दोस्तो, बुरा न मानो होली है
निकल पड़ी हैं मस्त नाचती मलंग टोलियाँ
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है

हुई भले ही भूल से ये बात दिल की है मगर
रंगी गई है माँग जो, बुरा न मानो होली है
पकड़ जो ली है जाने-मन कलाई गोरे रंग की
झटक रहे हो क्यों रुको, बुरा न मानो होली है

भड़ास दिल की जो निकाल कर मिले हो शाम फिर
उठो तपाक से कहो, बुरा न मानो होली है
जे जो आप उँगली उठा के खड़े हैं, जे बात कोउ को भी पसंद नी आने बारी है। काय के आजकल उँगली उठानो एकदम से बंद हो चुको हेगो। दूसरी बात जे हेगी कि आपने जे जो पुरुषों वाले कपड़े पहने हैं, जे बात भी हमें तन्नक भी ठीक नहीं लग रई हेगी। जे बात आपको सोभा नहीं देती है। हाँ आपने एक बात बिलकुल ही साफ लिख दी है कि सबको झेलना पड़ेगा, तो इस एकदम सच्ची बात के लिए हम आपके सात ख़ून माफ़ कर देत हैं। आपने सचमुच जे जो कछु करो हेगो, जा के लाने तो भोत बड़ो कलेजो चइए। हमाए पास इत्तो बड़ो कलेजो नहीं है कि जे जो कछु आपने करो है जाए हम झेल पाएँ। बनवारी दद्दा की लड़की चम्पा के सेंडिल और चप्पल तो हम रोज झेल जाएँ हैं, लेकिन आपने जे जो कुछ करो हेगो, जे तो बा से भी ख़तरनाक है। हमाए मन में एक बात सुबे से ही आ रही हेगी, काय आपको खुद मन कभी करतो हेगो कि जे सब कुछ लिखने के बाद कितउँ जाके चुल्लू दो चुल्लू की तलाश की जाए। काय के डूबने के लाने उत्तो ही भोत है। पर हमें जे बिलकुल भी नहीं लग रओ है कि जो कुछ करने के बाद आपको तन्नक भी सरम आती होगी। काय के आपके थोबड़े पे ही लिखो हेगो कि आप को और सरम को कोई दूर-दूर को भी रिस्तो हेगो। पर जे बात अभस्य आप से केनी हेगी कि आप भोत बुरो लिखनो बंद कर दो। बुरी लगी ? ओ दद्दा पेले ही तो के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – हमाए इते हर बार एक धमेंद्र सज्जन आते हते, नाम के ही सज्जन हते बाकी सब काम उनके दुर्जन टाइप के ही हते, जा बार वे भी नहीं आ पा रहे हेंगे, काय के उनने एक डेम बनवाओ थो पर डेम में पानी रोकने के लाने दरवाजा लगाना वे भूल गए। अभी वे डेम में दरवाज़ ठोंक रए हेंगे। सूचना समापत की जाती हेगी.. टिड़ांग टिंग टिंग टिड़ांग….
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
होली के मुशायरे का मिसरा बहुत ही शानदार दिया है। इस बह्र में यह पहली ही रचना का प्रयास किया है जो ब्लाग के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
ये नीति धार के रहो, बुरा न मानो होली है,
कठोर घूँट पी हँसो, बुरा न मानो होली है।
मिटा के भेदभाव सब, सभी से ताल को मिला,
थिरक थिरक के नाच लो, बुरा न मानो होली है।

मुसीबतों की आँधियाँ, झझोड़ के तुम्हें रखे,
पहाड़ से अडिग बनो, बुरा न मानो होली है।
विचार जातपांत का, रिवाज और धर्म का,
मिटा के जड़ से तुम कहो, बुरा न मानो होली है।

परंपरा सनातनी, सदा से दिल में ये बसी,
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है।
बुराइयाँ समेट सब, अनल में होली की जला,
गले लगा भलाई को, बुरा न मानो होली है।

ये पर्व फाग का अजब, मनाओ मस्त हो इसे,
कहे 'नमन' सभी सुनो, बुरा न मानो होली है।
जो फोटो में आप एकदम से कंस टाइप के लग रए हो। मनो हमे जे समझ में नहीं आ रओ है कि कंस को जो बाल रूप हेगा क्या। उते से देखने पर हमें जे भी समझ में आ रओ हेगो कि आपकी धोती जो है बो या तो ढीली है या खुल गई हेगी। काय कि जमीन पर ज्यादा दिख रही है आपकी धोती। हमें जे बात सोई पता है कि आपने रूप तो कृष्ण को ही धरो है, पर जा में कोई का कर सकते हैं कि सकल के कारण आप कंस दिख रए हो। और जे जो आप सावधान की मुद्रा में खड़े हो जे बात भी अलग से मिलने पर हमें ज़रूर समझाना कि जा के पीछे कौन सो प्राकृतिक कारण आ गओ ​थो फोटो खिंचवाते टेम। अब असल काम की बात सुनो दद्दा, अपने से कोई डॉक्टर ने तो कही नहीं है कि अपने को एक गझल सुबह, एक दोपहर में और एक रात को लिखनी है। जे बात आप समझ लो कि आप अगर ऐसे ही गझल लिखते रए तो जे बात भी पक्की है कि कोउ न कोउ दिन रात के आठ बजे टीवी पे जे बात हमको सुननी पड़ेगी कि –भाईयों और बहनों आज रात बारह बजे से जे सारी गझलें बंद घोसित की जा रही हैं। जे बात सुनने पड़े ऐसो टेम ही मत आने दो रे दद्दा, बा से पेले ही अपने कलम को छप्पर पे फेंक दो और ताली बजाओ। काय देस भर को परेसान करने की ठान के रखी है आपने, जे बात हम भोत अपनेपन से के रए हैं। आपको बुरी लगी हो तो हम तो पेले ही के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – अमेरिका वाले राजीव भरोल भी जा बार कोई कारण के चलते नहीं आ सके हेंगे। हमाए गुप्त सूत्रों से पता चलो हेगो कि वे उते डोनाल्डवा ट्रंपिस को गझल सिखा रए हैं, काय के आगली बार जब ट्रंपिस आएँ तो वे गझल सुना सकें।  सूचना समापत हो चुकी हेगी.. टिड़ांग टिड़ांग टिड़ांग टिड़ांग….
अश्विनी रमेश
कम समय व समयाभाव के कारण टूटे फूटे लफ़्ज़ों में जो एक छोटी ग़ज़ल दिए हुए काफिया रदीफ़ पर लिख पाया हूँ आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ । यदि त्रुटियां ज़्यादा हों और ग़ज़ल न भी लग पाए तो मेरी और से कोई शिकवा शिकायत नहीं रहेगी ।
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है
उसे भी बढ़ के तुम रंगो, बुरा न मानो होली है
मिलें जुलें गले लगें भुला गिले दिलों के सब
है रंग का कमाल जो बुरा न मानो होली है

है रंग के मिज़ाज में अजब हैं मस्तियाँ घुलीं
हर इक सवाल पे कहो बुरा न मानो होली है
ये लाल और पीत रँग हरा गुलाब केसरी
रँगो कोई भी रंग हो बुरा न मानो होली है

भला बुरे से हारता कभी नहीं ये जान लो
सँदेश ये कहो सुनो बुरा न मानो होली है
काय के सबसे पेले तो आपको जे पोज हमको भोत पसंद आओ हेगो। आप एकदम सती साबित्री की मुद्रा में जो सरीफ़ बन के ठाड़े हैं, बा बात पे हम आपकी आज होरी के दिन कोई भी बात को बुरो नहीं मानेंगे। काय के आपने इत्ती सरीफ मुद्रा बनाई है कि एक बार तो हमें भी जे बात की गलतफहमी हो गई कि आप सच्ची में तो सरीफ नहीं हेंगे। पर हमें तो आपकी हिस्ट्री पता हेगी तो बाद में हमारे दिल को चैन आओ कि नहीं जे तो बस फोटो है, आप सच्ची में ऐसे थोड़े ही हैं। और दूसरी बात जे कि आप की सराफत की पोल तो जे जो कछु आपने लिख के भेजो है, जाए पढ़ने के बाद ही खुल रही हेगी। एक बात तो हम अभस्य जानना चा रहे हेंगे कि इत्ती मेहनत करके गझल को जो पोस्टमार्टम आप करते हैं, जे कला आपनी सीखी किते से है। हमें भी अपने मास्टर साहब को नाम आप बता दें तो होरी के जा पावन पर्व पे आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। काय के और भी भोत सारे लोग हैं जो जे कला सीखने के पीछे नहा धो के पड़े हैं, पर आप जैसो अभी भी नहीं कर पा रहे हेंगे। आप इत्ती अच्छी तरकीब से गझल बिगाड़ो हो कि हम तो जमीन पे लोटपोट होके वाह वाह करत हैं। जे बात अलग है कि हमाए मन में आपके लाने बा बख़त कछु मधुर मधुर बातें उभर रही हेती हैं। कभी मिलने पर  आपको सादर प्रदान करेंगे। काय का आपको बुरो लग रओ है ? ए दद्दा हम पेले ही तो के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – नकुल गौतम के बारे में हमें कल ही जे बात  पता चली हेगी कि इनके घरवालों ने एकदम नरम निवेदन कर के इनसे कहो हेगो कि जो घर में या तो आपकी गझल रहेगी या टॉयलेट। सूत्रों के अनुसार घर में हुई वोटिंग में टायलेट ने विजय प्राप्त कर ली हेगी। सूचना तुरंत ही समापत हो चुकी.. टिड़ांग टिड़ांग टिंग टिंग, टिड़ांग टिड़ांग टिंग टिंग….
रजनी नैयर मल्होत्रा
न आज रंग से बचो बुरा न मानो होली है
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली  है
भुला दो भेदभाव सब भुला दो सारी दूरियाँ
लगा के रंग बस कहो बुरा न मानो होली है

जला दो सारी नफ़रतें इस होलिका की आग में
सभी से बस गले मिलो बुरा न मानो होली है
लिए गुलाल हाथ में चलीं वो देखो टोलियाँ
गली गली ये शोर हो बुरा न मानो होली है

निराली ब्रज की होली है जो आ गए हो तो सुनो
पड़े जो सर पे लट्ठ तो बुरा न मानो होली है
सबसे पेली बात तो आपसे हम जे के रए हैं कि आपने सबसे अच्छी बात जे ही की है कि आपने माइक को अपने मुँह से इत्ती दूर रखो है। काय के आप माइक को पास रख के जदि कछु भी बोलने की कोशिश करतीं तो हमाए धोबी को गधो भोत बुरो मान जातो। काय के हर कोई को बुरा लगतो हेगो कि कोई ऐसो है जो उससे भी बुरी आवाज़ में रेंक रओ हेगा। हमें एक बात समझ में नहीं आ रही हेगी कि जे आपके सिर पर जो जुल्फें हेंगी, बे इत्ती सफेद कैसे हो रही हेंगी। काय कि आपकी उमर तो इत्ती हमें नहीं लग रही हेगी। आपको अभस्य ही किसी न किसी डॉक्टर को दिखानो चाहिए। और अब हम एक बात की घोसणा करने जा रहे हेंगे कि जो कछु आपने जे लिखो है, इसको हम आज की रात है ,खुद अपने कर कमलों से, अपने इन्हीं पवित्र हाथों से होलिका की पवित्र अग्नि में समर्पित करने जाएँगे। काय कि कोरोना वायरस के बारे में हमने जे बात सुनी है कि कोरोना वायरस को आग से ही खतम कर सको जात हेगो।  आपसे हमें कोई भी सिकायत नहीं हेगी। काय कि आपको भी कब पता है कि आपने कित्तो बुरो लिख दओ हेगो। मगर गंगा मैया की सौगंध आपने अगर लिखनो बंद नहीं कियो तो जे बात बिलकुल सच्ची है कि या तो आपकी गझ़लें बचेंगी या फिर ये दुनिया बचेगी, आप खुद तय कर लो आपको क्या बचाना है। बुरी तो मानियो ही मत काय के हम तो पेले ही के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – और जे अंतिम सूचना उन सारे लोग-लुगाइन के बारे में जो जा बार नहीं आ सके हैं कि वे सब जा बार जे बात जान चुके हेंगे कि वे कित्ती खराब गझल केते हेंगे, सो जा बार वे जरा सर्मिंदा होने के लाने नहीं आए हेंगे, अगली बार सरम कछु कम हो जाएगी तो पक्के में आएँगे।  सूचना समापत भई उठाओ बाल्टी.. टिड़ांग टिंग टिंग टिड़ांग टिड़ांगटिंग टिंग टिड़ांग….
होली है भाई होली है बुरा न मानो होली है। होली की आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएँ। अभी कुछ रचनाएँ बची हैं, जो हम बासी होली में उपयोग करने वाले हैं। यदि आप भी चूक गए हों तो अगले दिनों में भेज दीजिए ताकि बासी होली समृद्ध हो सके। तो आनंद लीजिए होली का और दाद देते रहिए, मिलते हैं बासी होली में।

32 टिप्‍पणियां:

  1. 😂🤣😂🤣😛😂🤣😂😛😂🤣😂😛😂🤣😛😀😋😄😂🤣😛😀😋

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  2. जबरदस्त और मस्त-मस्त होली की फुहार लिए सुन्दर रंगारंग प्रस्तुति
    सबको होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  3. सुन्दर प्रस्तुति।
    रंगों के महापर्व
    होली की बधाई हो।

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  4. आज तो आपने कमाल ही कर दिया है अरसे बाद पेट पकड़ कर हंसे हैं और हंसते ही जा रहे हैं... क्या ग़ज़ब का सैंस आफ ह्यूमर है आपके पास...एक एक पंक्ति सो सो बार पढ़ कर भी मन न भरे ऐसे लेखन की प्रशंसा के लिए शब्द कहाँ से लाएं...जय हो

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  5. इतने सारे सुन्दर स्वरूप मिलकर रँग भरी होली पर्व बनाते हैं ।वाह क्या कहने।

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  6. Holi Mubarak sabhi sathiyon ko
    Iytna adbhut ank waah maza aa gaya sabhi se milkar

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  7. वाऽऽउ .. .. वैऽऽउ.. .. वाऊऽऽऽऽऽ.. :-D :-D :-D :-D

    मिली सभी की शख्सियत अजब-गजब लिपी-पुती
    उठा-पटक करो, रँगो ! .. ’बुरा न मानो होली है !’

    जो इस बार पधार पाए, उनको दिल के गहरे कुएँ से ईको करती हुई बधाइयाँ कि उनका जिगरा भारी कड़ेड़ है. जियो बहादुरो !!
    जो अबके न पधार पाए, उनको तो और भी, खुब्बईऽऽ भर-भर शुभकामनाएँ.. कि वे लोगाँ पूरे साल भर अपनाई थोबड़ा छुपातेई फिरें..
    न आओ.. जाओ, खाओ-पिओ, कमाओ.. करोना से बचो, बचाओ .. :-D :-D :-D

    जै-जैऽऽऽऽ .. होली हैऽऽऽऽऽऽऽ

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  8. अब इस बार तो सच में कितनी ही बार आया और कितनी ही बार पढ़ा पर इतनी हँसी कभी मनके आइ ... बार बार और जो मेरे आस पास बैठे हुए हैं मुझको देख कर बोल रहे हैं पागल हो गया है क्या थोड़ी थोड़ी देर में हंसे जा रहा है ...
    क्या गज़ब की पोस्ट बनाई है ... सच में संजो के रखने वाली है ये ... गज़ल से ज़्यादा लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ बात बार ... होली की भूमिका वाली पोस्ट में इतनी गुणी पोस्ट और इस पोस्ट में इतना हास्य ... आपके ही बस का है गुरुदेव ... होली की बधाई ...

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  9. वाह वाह गुरु जी क्या मज़ेदार पोस्ट है । इसे बार बार पढ़ा जाएगा । शुध्द हास्य , मज़ाक और मज़ाक में क्या अपनापन। वाकई मज़ा आ गया ।
    राकेश जी का होली के दृष्य जीवंत करता गीत पढ़ कर मज़ा आ गया और उनका स्टाइलिश फ़ोटो भी सब पर भारी है। सौरभ जी और हाशमी जी ने इस मुश्किल बहर में भी इतनी लंबी और सुंदर ग़ज़लें कह कर कमाल कर दिया है जी । गिरीश जी की प्रेम और भाईचारे का संदेश देती और दिगम्बर जी की रोमांटिक ग़ज़ल भी बहुत ही खूबसूरत हैं जी । वासुदेव अग्रवाल जी, अश्विनी रमेश जी और रजनी जी सभी ने होली के इस मुशायरे को चार चाँद लगा दिए हैं अपनी ग़ज़लें कह कर ।
    और गुरु जी ने अपनी कमेंट्री से क्या रंग जमाया है । ये वाकई एक क्लासिक पोस्ट बन गई है । मज़ा आ गया ।
    आप सब को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

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  10. वाह क्या कहने,गज़ब की कमेंट्री, बिल्कुल होली का माहोल, वही मस्ती।एक एक शब्द मस्ती के नशे से सरोबार। सभी की सुंदर ग़ज़ले

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  11. सभी 'कमानुभावो' को होली की हार्दिक बधाई।
    इस बार तो ग़ज़लों पर टिप्पणियां भारी पड़ी है। उस्ताद तो उस्ताद ही होते है, धोबीपछाड़ दाव चल दिया है। सबको अॉनलाईन होली खिलादी है! 😊

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  12. राकेश खण्डेलवाल:
    सुंदर (भांगरहित) विचार, बधाई।
    जो खींचता है भीत भर के भेद भावनाओं में
    चलो नगर से दूर उस आज फेंक आएँ हम
    ये पर्व है मिटाएँ हम जो दूरियाँ है मध्य में
    सभी मनुज समान है कोई बड़ा न कोई कम
    उठा के रख क़ुरान गीत बाइबिल को ताक पर
    मनुष्यता ने सभ्यता की अब किताब खोली है
    भुला के बीतते कालों को अब लिखें नए सफ़े
    कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
    होली के शौर में यह अपठित या प्रतिक्रियाविहीन न रह जाए!

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    1. आपकी नजरों ने शब्दों को थपथपाया. बहुत शुक्रिया मान्य हाशमी साहब

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  13. सौरभ पाण्डेय जी:
    सुन्दर रचना, बधाई।

    "ये रुत है भंग-रंग की, रुचे बवाल काटना,
    तो क्यों न फिर धमाल हो, बुरा न मानो होली है !"
    (ये रुत है काट-छांट की रुचे है बाल काटना,
    तो क्यों न कैंची थाम लो, बुरा न मानो होली है)

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    1. वाह ! ग़ज़ब !!
      आपका सादर धन्यवाद, मन्सूर अली हाशमी जी.

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  14. गिरिश पंकज जी:
    भुलाओ बैर भाव को, बुरा न मानो होली है
    हवा में रंग बन उड़ो, बुरा न मानो होली है

    कोई न ऊँच नीच है, ये रंग का जहान है
    दीवाना बन के ये कहो, बुरा न मानो होली है
    होली के उद्देश्य को परिलक्षित करते अशआर, बहुत ख़ूब, बधाई।

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  15. दिगम्बर नासवा जी:

    हुई भले ही भूल से ये बात दिल की है मगर
    रंगी गई है माँग जो, बुरा न मानो होली है
    .... क्या मासूम अंदाज़ में excuse किया है!

    पकड़ जो ली है जाने-मन कलाई गोरे रंग की
    झटक रहे हो क्यों रुको, बुरा न मानो होली है

    ..... शुद्ध ग़ज़ल के रंग का शेर है।
    बहुत बढ़िया। बधाई।

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    उत्तर
    1. सर आपकी हजल का मज़ा ... वाह वाह ...
      बहुत आभार है आपका ...

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  16. बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी:

    परंपरा सनातनी, सदा से दिल में ये बसी,
    कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है।

    .... तरही मिसरे को ख़ूबसूरत अंदाज़ में बांधा है, होली की व्याख्या भी हो गई है आसान और अर्थपूर्ण शब्दों में। बधाई।

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  17. अश्विनी रमेश जी:

    मिलें जुलें गले लगें भुला गिले दिलों के सब
    है रंग का कमाल जो बुरा न मानो होली है
    .... आइडिया अच्छा है, परन्तु 'सबसे' एसे मिलने में ख़तरें भी है!
    ... लो, आपने साथ-साथ जवाब भी दे दिया है:-
    है रंग के मिज़ाज में अजब हैं मस्तियाँ घुलीं
    हर इक सवाल पे कहो बुरा न मानो होली है

    ... क्या कहने! बधाई।

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  18. रजनी नैयर मल्होत्रा सुश्री:

    “भुला दो भेदभाव सब भुला दो सारी दूरियाँ
    लगा के रंग बस कहो बुरा न मानो होली है. "

    .... आपकी बात तो सही है पर....
    # कोरोना वायरस को डर 'सुबीर' ने सता रह्यो!
    कोई मले जो 'गाल' तो बुरा न मानो होली है!!
    ... इस महफिल में कोई 'ग़ज़ल' भी ग़ज़लसरा हुई है.... प्रसन्नता का विषय है..... मगर, सावधान! हाथ में लट्ठ लिये...
    " पड़े जो सर पे लट्ठ तो बुरा न मानो होली है।"
    ... बधाई तो फिर भी देना बनती है... शुभ कामनाओं सहित।

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  19. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को    "होलक का शुभ दान"    (चर्चा अंक 3637)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     -- 
    रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  20. सबको पढा। आनन्द आ गया होली में।

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  21. गजब लिखो है,जा बुन्देलखंडी तो हमाई जान है । मजई आ गओ ।

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  22. होली के रंग के साथ इंद्रधनुषी गज़लों की रंगत सबको मुबारक हो 🙏 आदरणीय पंकज भईया ने इतना हँसाया कि कोरोना के वायरस छिटक कर दूर चले गए😂

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  23. राकेश जी का गीत स्मृतियों के द्वार से प्रवेश करते हुए खूबसूरत दृश्यचित्रण करते हुए अंत में दर्शनशास्त्र में पहुंच जाता है इस प्रकार होली के रंगों की तरह ही जीवन के कई रंग एक ही गीत में देखने को मिल रहे हैं। बहुत खूबसूरत गीत हुआ है।

    सौरव जी का ग़ज़ल में शब्द प्रयोग बड़ा ही खूबसूरत लगता है, बिल्कुल गीतों की तरह। शायद इसलिए भी कि शुद्ध हिंदी में ग़ज़ल बहुत कम कही जाती हैं और इतने खूबसूरत चयनित शब्द प्रयोग कम देखने को मिलते हैं। बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है।

    मंजूर अली हाशमी साहब की ग़ज़ल उनके दिल जैसी खूबसूरत है। बड़ी खूबसूरती से अपने ही आसपास के और समकालीन दृश्य उठाते हुए बहुत अच्छे शेर प्रस्तुत किए हैं।

    गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल पूरी तरह से वैसी ही है जिस तरह होली मनाई जाती है जिसमें कहे सुने रंगे-पुते किसी भी चीज का बुरा नहीं माना जाता। बहुत अच्छे शेर कहे हैं।

    दिगंबर नासवा जी कर लीजिए कुछ वर्ष और इस तरह की मस्ती। प्रेम के रंग में रंगे हुए आपकी गजल में प्रेम खूब रचा बसा हुआ है। अच्छी रंगारंग ग़ज़ल हुई।

    वासुदेव अग्रवाल जी ने होली की परंपरा को ग़ज़ल में बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है और अच्छे शेर दिये हैं।

    अश्विन रमेश जी ने प्रयास करने की हिम्मत तो की और प्रयास गंभीरता से किया तो कम शेर ही सही, ग़ज़ल तो हो गई। यहां तो इतना भी नहीं हो सका।

    रजनी नैयर जी ने भी लगता है जल्दी-जल्दी में अटैची पैक कर ट्रैन पकड़ ही ली और होली के पहले ही होली की फीलिंग ले ली।

    परिवार के सदस्य एकत्रित हुए तो होली के रंग भी आ गये और आनंद भी।
    सभी को बधाई।

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    1. सर आपकी नज़र से गज़ल का गुजरना एक सुखद अहसास देता है ... आपकी ग़ज़लों और शेरों की अदायगी से ही सीखा और जाना है गज़ल को ...

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    2. आपका हार्दिक धन्यवाद, तिलकराज भाईजी.
      आपने प्रस्तुति को मान दे कर उत्साहित किया, कि हम फिर से होली-होली हुए जा रहे हैं.. जय-जय ..

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