गुरुवार, 12 मार्च 2020

बासी कढ़ी में भी उबाल आता है और बासी होली में भी गुलाल आता है। आइए आज देर से गाड़ी पकड़ रहे दो युवा रचनाकारों के साथ तथा तरही के लिए एक एक रचना और भेजने वाले दो बुज़ुर्ग रचनाकारों के साथ मनाते हैं बासी होली।

इस बार की तरही होली में लग नहीं रहा था कि आप लोग इत्ती सारी रचनाएँ भेजेंगे। काय के एक तो कछु देरी से मिसरा दओ थो और फिर आप लोग-लुगाइन सब उते टीवी पे मोबाइल पर दिन भर तो लगे रेत हो, आपको टैम ही कब है कि आप कछु लिखवे पढ़वे को काम कर सको। पर नहीं जे तो हमारी ग़लतफैमिली थी आपके बारे में आप ओरों ने तो गजगजा के लिख दी गझलें ही गझलें। इत्ती तो होली पर गुझिया नहीं चलीं जित्ती आप ओरों की गझलें चलीं। जे बात अलग है कि कछु लोग अभी भी परदे के पीछे से सरमा रए हेंगे। सरमा रहे हैं कि अपनी गझल पेलें की नहीं पेलें। काय कि इते तो फुल बेहज्जती करने का पिरोगिराम चल रिया हैगा।

 

कोई मले गुलाला तो बुरा न मानो होली है
आज हम दो एकदम जुवा टाइप के रचनाकारों को लेके आए हेंगे और उनके साथ दो बूढ़े खूंसट भी एक बार फिर आ रए हेंगे। हमने ऊपर उनको सम्मान देने के लिए बुज़ुर्ग लिख दओ हतो पर फिर हमें याद आया कि होरी पर तो कोई सम्मान-फम्मान की होती ही नहीं है, तो जा के लाने ही हमने इते बूढ़े खूँसट लिख दओ है।
 
सुधीर त्यागी
रॅंगो,पुतो,छिपो,बचो, बुरा न मानो होली ।
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है।
बिगड़ते है कई शरीफ भी इसी रिवाज से।
रिवाज को निभाने दो, बुरा न मानो होली है।

रकीब का हमारा रिश्ता तो रहेगा उम्र भर।
गिले भुला गले मिलो, बुरा न मानो होली है।
रहा तमाम उम्र फीका, रंग मेरे इश्क का।
मिला नसीब और को, बुरा न मानो होली है।

ये होली के तमाम रंग जिंदगी के ही तो है।
खिले न कोई रंग तो ,बुरा न मानो होली है
ऐ रे दद्दा हमाए लाने तो इत्ती मिसकुल हो रही हेगी, पेले तो हम बूढ़े लोग होन को झेलें और उसके बाद जुबा लोगों को भी। काय के हमें जे पतो चलो है कि जे जो हैं जे सच्ची वाले डॉक्टर हेंगे। इनकी एक सबसे बड़ी बिसेसता जे हेगी कि जे बैसे तो जानबरन के डॉक्टर हैं, पर डॉक्टर बनने के बाद से इनने आज तक एक भी जानबर को इलाज नहीं कियो बस आदमियन को ही इलाज करते हेंगे। काय कि जब ये डॉक्टरी पढ़ रए हते, तब इनखों एक कुत्ते ने काट लओ हतो। जे कुत्ते को खांसी दी दबा पिलाने घूम रए हते उसके पीछे, बस ससुरे कुत्ते ने खांसी तो एक तरफ रखी अपने दाँतन का पूरा खाँसा इनकी पिंडली में पेल दिया। जे तब से ही जानबरन को इलाज करना बंद कर दिए। कोऊ को भी नहीं पता है जे बात कि जे असल में जानबरन के डॉक्टर हेंगे। इनने क्या कर रखी है कि दबा तो जानबरों वाली ही आदमियन को देते हैं, पर खुराक कम कर के दे हैं। इनका नाम गलीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में आ रओ हेगो, काय के इनने डॉक्टर बनने के बाद से आज तक एक भी मरीज को ठीक नहीं कियो हेगो। कित्ती बड़ी बात हेगी ? इत्ते साल में एक भी मरीज को ठीक नहीं कियो। ऊपर से जे बात अलग है कि आज तक कित्ते ही सारों को सीधे ऊपर भी पहुँचा चुके हैं। ओ रे दद्दा कित्ती मेहनत लगती है जे सब में। सुना डागसाब बुरा तो मानियो मत, काय के हम तो तीन दिन से के रए हेंगे कि बुरा न मानो होली है।
सुचना – सर्व साधारण को सूचित किया जाता है कि सड़ीमान नीरज गोस्वामी जी की किताब “डाली बबूल की” को जा साल को “गोबर पुरस्कार” देने की घोषण की गई हेगी। काय कि किताब में से इत्ती बदबू आ रही हती कि इससे अच्छी कोई किताब जा साल हो ही नहीं सकत थी जा अवार्ड के लिए। सूचना समाप्ति की घोषणा… टिंग टिंग टड़ंग टड़ंग

गुरप्रीत सिंह
बहुत लेट हो गया हूँ । लेकिन आख़िर छूटती हुई गाड़ी भागते हुए पकड़ ही ली। हाँ लेकिन सामान कुछ हल्का ही लाया हूँ , क्यूंकि वज़नी सामान के साथ भाग नहीं पाता और गाड़ी छूट ही जाती। उमीद है आप होली के इस तरही मुशायरे की इस गाड़ी में सवार होने की इजाज़त देंगे ।
मिले जो रंग डाल दो, बुरा न मानो होली है ।
बुरा जो माने तो कहो, बुरा न मानो होली है । 
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है,
ये बात सबको याद हो, बुरा न मानो होली है।

जो घन भिगो के चल दिया, रवि ने रंग मल दिया,
तो क्या हुआ ऐ रेनबो, बुरा न मानो होली है।
हरा बसंती केसरी, तमाम रंगों से भरी,
ये धरती कह रही सुनो, बुरा न मानो होली है।

मकां जला रहे हैं वो, लहू बहा रहे हैं वो,
ये गीत गा रहे हैं वो, बुरा न मानो होली है।
ये संग और ये गोलियाँ, ये ख़ून वाली होलियाँ,
जो कह सको तो अब कहो, बुरा न  मानो होली है।

दुआ है जल्द अम्न हो, ये अपना प्यार कम न हो,
कि आज सब गले मिलो, बुरा न मानो होली है।
जे बात तो तुमने एकदम सही कही है कि सामान कछु हल्को है, पर सुनो तो मोड़ा, जे तुमसे कौन ने कह दी कि तुम्हारे पास कछु भारी सामान भी है। काय के भारी सामान के लिए तो बुद्धि की आबस्यकता होती हेगी और बुद्धि और तुमारो तो राहुल-मोदी टाइप को बैर हेगो। होरी के दिन जे बात भी एकदम अच्छी है कि एकदम सच बात बोलना। तुमने जे बात एकदम सच्ची कह दी है तुमाए पास हल्का ही सामान है। सुनो मोड़ा जे जो तुम बच्चों के कपड़े पहन के सोच रहे हो कि इससे बेइज्जती कम होएगी तो जे तुम्हारी ग़लतफैमिली है। होरी पर तो बेइज्जती की कोई कसर छोड़ी ही नहीं जा रही हेगी। तो मुन्ना गुड्डू पेले तो एक बात जे समझ लो कि जे जो गझल होती हेगी न जे धारदार छुरी होती हेगी, तुमाई उमर अभी भोत कम हेगी, जासे खेलोगे तो हाथ् कट जाएगा। दूसरी बात हम जे कह रऐ हेंगे कि लॉलीपाप लेके निकल तो लो यहाँ से। अब हमाए इत्ते बुरे दिन भी नहीं आए हैं कि हम यहाँ पे बैठ के मुन्नाओं, गुड्डुओं की गझ़लों की प्रस्तुति देते रहेंगे दिन भर। जे तो हमाए लिए भी सरम से चुल्ले भर रंग में डूबने की बात हो जाएगी। तो मुन्ना एक बात सुनो सबसे पहले तो अपनी चड्डी को खींच कर ऊपर करो और उसके बाद पदड़म-पदड़म दौ़ड़ते हुए पतली गली से निकल तो लो चुपचाप। काय का बुरा लग रओ है तुमको, अरे मुन्ना हम पेले ही तो के चुके हैं कि बुरा न मानो होली है।
सूचना – जा बार मुसायरे में जो भी लोग-लुगाइन नहीं आ पाए हैं, उन सबके घर पर कोरट को नोटिस भेजने की ब्यबस्था की जा रही हेगी। काय के इन लोगन ने होरी के त्यौहार को अपमान कियो है। कन्टेम्प्ट ऑफ होरी के अपराध में अब जे सब अंदर जाएँगे। सूचना अत्यंत गुस्से के साथ समाप्त भई कोई टिंग नहीं कोई टिड़ांग नहीं।

राकेश खंडेलवाल

फँसा है चक्रव्यूह में जो आज मन तू स्वार्थ के
नहींजवाब  दे सकेंगे  तुझको ये सवाल के
ये कौन कर रहा यहाँ दुपहरियों में लूट है
ये राजनीति डालती रही सदा ही फूट है
हज़ार वर्ष से ग़ुलाम सोच को गंवा चुके
स्वतंत्रता  का बोध कितनी देर तक उठा सके
यों दिल में डर भरा हुआ कि काटती ये बोली है
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
ये मुट्ठियाँ गुलाल की है मुस्लिमी बिरह्मिनी
या आइ है ईसाइयों की फैक्ट्रियों से ये बनी
ये फूल टेसुओं के है उगाता कोई पारसी
जो घोलता है गुनगुनाता कोई ग़ज़ल फ़ारसी
ये कांग्रेस सोचतीं या कह रही है भाजपा
बताओ कौन है हवा में जो ज़हर ये घोलता
किसी की आस्तीन किसानी कब कहाँ टटोली है
अगर लगे गुलाल तो बुरा न मानो होली है
बचाना अपनी संस्कृति को आज हमने ही यहाँ
न द्वेष शेष रह सकें मज़हबों  के दरमयां
जो आदमी की अस्मिताएँ लूटते रहे सदा
उन ऐसी संहिताओं को उखाड़ जड़ से दें मिटा
ये समवती नई सुबह नया संदेश लाई है 
भरे जो धर्म-जाती-देश की बनी जो खाई है
उमंग आए लौट कर चिरैय्या सोन बोली है
कोई मले गुलाल तो बुरा न मानो होली है
सुनो रे दद्दा पेले तो जे बताओ कि इत्ती बुरी-बुरी बातें तुमाए दिमाग़ में आती किते से हैं। उते अमेरिका में रह के इत्तो बुरा सोचने को कोई इंजेक्शन लगवा लओ है का तुमने। होली मैया की कसम तुमने जो होली के दिन एक रचना पेली थी न, जे आज वाली तो उससे भी भोत ज्यादा बुरी हेगी। उस दिन बारी तो कछु कछु समझ में भी आ रही हती, जा बारी तो एकदम दिमाग़ के भोत ऊपर से भिंच्क्याऊँ करके निकल रही हेगी। एक बात और हम अभस्य ही जानना चाह रहे हेंगे कि जे तुमने जो कविता में इत्ते बड़े बड़े सबद लिख दए हेंगे, जिनको मतलब समझने के लिए लोग-लुगाइयन को कौन से सबदकोस के पास जानो पड़ेगा, जो बात भी साथ में ही समझा देते तो और अच्छो होता। काय के हम ने जब से जे पढ़ी है हमाए तो पेट में भोत जोर से हेडेक हो रओ हेगो। दद्दा एक बात समझ लो कभी कोई आदमी तुमाई जे रचना टाइप की चीज़ें सुन के सलट लिया तो बुढ़ापा ख़राब हो जाएगा तुम्हारा। बुरा तो मानियो मत काय के बुरा न मानो होली है।
सूचना – कल्लू हलवाई की घरवाली ने कल चलती रामलीला में जो मंच पर चढ़ कर मेघनाथ की जूतियन से पिटाई की थी, बो इसलिए की थी कि मेघनाथ बनो भओ लच्छू कल्लू की होटल से पिछले महीने पोहा भजिए खाकर बिना पैसे दिये भाग गओ थो। जा घटना को रामलीला कंपनी से कोऊ लेनो देनो नहीं हेगा। सूचना नहीं समाप्त कर रहे कोऊ हमाओ का बिगाड़ लेगा।

 
मन्सूर अली हाश्मी
मलो गुलाल और कहो बुरा न मानो होली है
बुरा वो मान बैठे तो, बुरा न मानो होली है
गधों का कारोबार है, ये राजनीति आज बस
चलो, उठो, चढ़ो, बिको, बुरा न मानो होली है

जो दाम ले पलट गया बिसात ही उलट गया
दिखाए फिर भी आंख तो बुरा न मानो होली है
यही है लोकतंत्र तो ख़ुदाया तू मुझे बचा
न समझो तो परे हटो, बुरा न मानो होली है

यह होश क्यों हवा हुआ जो 'हाशमी' ने यह कहा
गधे को बाप मान लो, बुरा न मानो होली है
सुनो बुढ़ऊ पहले तो हमें जे बताओ कि जा उमर में कहाँ से इत्ती ताकत ला रहे हो कि गझल पे गझल पेले जा रए हो। और एक बात तो तुमाई हम बिलकुल मानेंगे कि चाहे कछु भी हो जाए लेकिन बुरा लिखने की निरंतरता तो है तुमाए पास। पेले वाली जित्ती बुरी हती, जे वाली उससे तन्नक भी कम नहीं हेगी। जे कला तो कमाल की हेगी तुमाए पास। दुनिया जाए भाड़ में लेकिन अपन तो बुरी लिख रए हेंगे तो लिख रए हेंगे। दुनिया से नफरत करने में हमे कोई आपत्ति नहीं हेगी लेकिन जे बात हमाई समझ में नहीं आ रही हेगी कि दुनिया को अपनी गझलें सुना-सुना के ही मारने की बात आपने क्यों ठान ली हेगी। और भी तरीके हैं जा के लाने। बुरी गझलें लिख लिख के पूरी दाढ़ी सफेद हो गई पर आज भी प्रतिभा तो उत्ती है जित्ती जवानी में थी। जे तो ऊपर वाला किसी किसी को ही हुनर देत है। अब इत्ती तारीफ के बाद भी बुरा मान रए हो तो बुरा न मानो होली है।
सूचना – भीखू हुड़दंगा ने अभी अभी घोसना की है कि सिरी तिलक राज कपूर जो जा बार मुसायरे में नहीं आए हेंगे, उनको भीख़ू की तरफ़ से साढ़े बत्तीस रुपये का इनाम दिया जाए। काय के हर बार तिलकराज कपूर की गझल सुनके भीख़ू सात दिन तक का​न्स्टिपेशन रहता था। जा बार तिलक राज कपूर के नहीं आने से भीख़ू प्रसन्न है। सूचना समाप्त भई।

तो जे इस बार की बासी होली हेगी। आप सबको अपनो अपनो काम तो पता ही हेगो। तालियाँ बजाते रहो और दाद देते रहो। अभी भभ्भड़ कवि भौंचक्के का आना शेष हेगा। इसलिए मुसायरे को अभी विधिवत समाप्त घोसित नहीं किया जा रहा हेगा।

11 टिप्‍पणियां:

  1. 😂🤣😂😂 गलीज बुक ऑफ बल्ड रिकॉर्ड🤣😂🤣😂 गोबर पुरस्कार🤣😂🤣😂🤣😂 चढ्ढी को खींच के ऊपर करो 🤣😂🤣😂🤣 भिच्कयाऊं कर के 😂🤣😂🤣😂🤣 सूचना नहीं समाप्त कर रहे😂🤣😂🤣😂🤣😂😂 आज भी प्रतिभा उत्ती है...🤣😂🤣😂🤣😂🤣😂🤣😂🤣😂🤣😂

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह वाह वाह

    यो लाग रह्यो है कि बिरज को सगरो द्रस्य सामई आय गयो/
    सिलबट्टा पे भान्ग घुत रई
    मथुरा जमना तीरे
    सीढी चढ़ गयो है खुमार की
    पंकज धीरे धीरे
    जिजमानी में चार किलो
    रबड़ी कर साफ़ गयो
    होली को हुड़्दंग देख के
    जाडो भाग गयो

    जवाब देंहटाएं
  3. ताज़ी और बासी बधाईयों के साथ सबको होली की शुभकामनाएं �� आदरणीय पंकज भईया को बहुत बहुत धन्यवाद इतना हँसाने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  4. सुधीर जी और गुरदीप जी के रंगों की फुहार ... राकेश जी के गीतों की मिठास और मंसूर साहब का चुटीला पन ... सब कुछ मिला के होली का आनंद बाधा रहे हैं ...
    इस कमाल के क्या कहने जो आपने साथ गूँथ दिया है ... घर बैठे इस बार होली खेल ली ... बहुत बधाई सभी को ...

    जवाब देंहटाएं
  5. डॉ त्यागी और गुरप्रीत जी भाई थीदा और रुक जाते तो हमारे समूह में आ जाते, हमें कम पड़ रहे हैं वोट। चलो अब आ ही गये हो तो क्या करें। ले लो बधाई अपनी प्रस्तुति पर।

    हाशमी साहब और राकेश खंडेलवाल भाई को अगली बार बंधक बनाकर रखना पड़ेगा। यह लोग रहे तो सदन में गजल प्रस्तुत न करने वालों का बहुमत कभी सिद्ध न हो पाएगा। भाई यह क्या बात हुई? अगर ज्यादा लिख लिया था तो हमारे नाम से चिपका देते। हम भी दल बदल कर प्रस्तुत करने वालों में आ जाते।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी कमी इस बार विशेश रूप से खटकी। अब देखे भभ्भर कवि अपना वादा निभाते है कि नही!
      नीरज जी को तो लगता है किसी की नज़र लग गई है......लगातार ग़ैर हाज़री!!.....होली भस्मी का कोई टोटका तो आज़माए?

      हटाएं
    2. मंसूर भाई दिमाग की बंदूक के कारतूस सब खत्म हो गए हैं... दिमाग अब न लीपने का बचा न पोतने का (कह तो ऐसे रहा हूँ जैसे पहले बड़े काम का था ,गोबर था जो अब सूख गया है 😂🤣😂🤣😂🤣)

      हटाएं
  6. वाह , मैं तो धन्य हो गया गुरु जी

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. जाल तू, जलाल तू.. आयी बला को टाल तू ..
    ये मुशायरा क्या जम गया.. आयी बला भी टल गयी !

    अब देश क्या विश्व भर की बला टल जाएगी.. मन बस बासंती-बासंती, रंग-रँगीला बना रहे..
    जय-जय

    जवाब देंहटाएं

परिवार