मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

दीपावली के तरही मुशायरे के लिए तरही मिसरा

दोस्तों, आप सभी को विजयादशमी पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
इस बार एक बार फिर ऐसा हुआ है कि हमने दीपावली के तरही मुशायरे के बाद अब एक साल बाद यहाँ तरही मुशायरे का आयोजन किया है। इसी बीच होली का त्यौहार आकर निकल गया ईद का त्यौहार भी आकर निकल गया और हम इस आयोजन को चाहते हुए भी नहीं कर पाए। बहुत सी व्यस्तताएं होती हैं, बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं, जो जीवन के आगे बढ़ने के साथ-साथ हमारे सामने आकर खड़ी होती हैं।उनका सामना करना होता है और उनके साथ साथ जीवन को आगे बढ़ाना होता है। लेकिन यह भी सच है कि पुरानी परंपराएं और पुराने रीति-रिवाजों को भी जारी रखना चाहिए। यदि हम इन पुरानी परंपराओं और इन पुराने रीति-रिवाजों को इसी प्रकार भूलते गए, तो फिर होगा ये कि एक दिन यह भी इतिहास की बात हो कर रह जाएंगे। अपनी ही चीजों को अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते हुए देखने से ज्यादा पीड़ादायक कुछ भी नहीं होता है। समय की एक गति होती है और गति के कारण होता यही है कि पुरानी चीजें धीरे-धीरे केवल स्मृतियों में शेष रह जाती हैं। ब्लॉगिंग और ब्लॉगिंग के बाद फेसबुक और फेसबुक से व्हाट्सएप तक का यह सफर जो सोशल मीडिया ने तय किया है उसमें भी ऐसा ही हुआ है कि बहुत सारी पुरानी बातें, बहुत सारी पुरानी चीजें अब केवल स्मृतियों के गलियारे में भटकने पर ही प्राप्त होती हैं।
जैसा कि हमने देखा है कि हम तीन महीने के अंतर पर, चार महीने के अंतर पर या एक साल के अंतर पर भी यहां आकर तरही मुशायरे का आयोजन करते हैं, तो पुरानी यादों के रेशम की डोर पकड़ कर लोग यहां पर इस प्रकार जुटते हैं जैसे यहां पर इस तरह के आयोजन रोज़ ही हो रहे हों। और यह आप सबका प्रेम है, आप सबका स्नेह है कि हम यहां तरही मुशायरे का आयोजन बार-बार करते रहते हैं, लगातार करते रहते हैं। इस बार जाहिर सी बात है कि एक बड़े अंतराल के बाद आयोजन हो रहा है। पिछली दीपावली का तरही मुशायरा और उस एक साल बाद इस साल दीपावली का यह तरही मुशायरा। बीच में एक साल का बड़ा अंतर है।
जब भी ब्लॉग की तरफ लौटना होता है तो ऐसा लगता है कि इस अंधेरी देहरी पर भी एक दीप जला दिया जाए। कभी इस देहरी पर उजालों की रौनक हुआ करती थी, चहल-पहल हुआ करती थी। आज दूसरे प्लेटफार्म पर जो रौनक है वह कभी ब्लॉगिंग के प्लेटफार्म पर हुआ करती थी। समय की गति और बदले हुए परिवेश के कारण अब वह रौनक कहीं और है। समय का चक्र यही होता है चीजें बदलती रहती हैं, परिवर्तित होती रहती हैं। लेकिन हम तो हठीले लोग हैं हम तो नए से भी जुड़ाव रखते हैं और पुराने को भी छोड़ते नहीं हैं। यही सोच कर दीपावली के त्यौहार पर एक बार फिर तरही मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है और आज उस तरही मुशायरे हेतु यह तरही मिसरा आप सबको-
"उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे"
बहर- बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
क़ाफ़िया- दीये शब्द में 'ए' की ध्वनि
(उदाहरण - कच्चे, पक्के, टूटे, पिछले, अगले, शीशे, मीठे, काले)
रदीफ़- 'तलाशेंगे'
रुक्न- 1222-1222-1222-1222
फिल्मी गीत उदाहरण- "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है"
"चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों"
लोकप्रिय ग़ज़ल- "हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी की हर ख़्वाहिश पे दम निकले"
"बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं"
यह आप सबकी बहुत जानी पहचानी बहर है जिस पर हम लोगों ने बहुत काम किया है। बहरे 'हज़ज मुसम्मन सालिम' यह एक बहुत लोकप्रिय बहर है और इस पर बहुत सारी लोकप्रिय ग़ज़लें भी हैं बहुत सारे लोकप्रिय फिल्मी गीत भी हैं। इस बार जो मिसरा दिया जा रहा है उसमें "दीये" (असल शब्द "दीया" ही है जिसे दीवा भी कहते हैं।) यह शब्द क़ाफ़िये का शब्द है, और 'ए' क़ाफ़िये की ध्वनि है। 'तलाशेंगे' शब्द रदीफ़ है। मतलब आपको 'दीये' शब्द में जो 'ए' की मात्रा है उसकी ही ध्वनि पर क़ाफ़िए रखने हैं। जैसे बच्चे, टूटे, टुकड़े, शीशे, कच्चे, पक्के, आदि-आदि। और उसके बाद 'तलाशेंगे' रदीफ़ का उपयोग करना है। सरल है बहर भी और रदीफ़-क़ाफ़िया भी सरल ही रखे गए हैं, ताकि इस कम समय में आप लोग गजल कहकर भेज सकें।
तो इंतज़ार किस बात का, लिखना शुरू कीजिए ग़ज़ल। समय कम है लेकिन मुझे उम्मीद है कि आप सब की ग़ज़लें समय पर प्राप्त हो जाएंगी।

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को    "विजय का पर्व"   (चर्चा अंक- 3483)     पर भी होगी। --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. मैं कल सोच ही रहा था कि अभी इस बार का दीपावली तरही मुशायरा मिसरा नहीं आया । सो कल का सोचा आज पूरा हो गया ।प्रयास करते हैं अब कुछ ।

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  3. वाह ... बहुत दिनों बाद फिर से दिवाली की रौशनी और दीप दिखाई दे रहे हैं ...
    मज़ा आने वाला है ... महफ़िल जुटने वाली है ... शिकारी आने वाले हैं ... दर्शक दीर्घा भी सजने वाली है ...
    सभी को अग्रिम शुभ-कामनाएं ...

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  4. जी बिल्कुल, तरही में हम सब मिलते रहेंगे, मिलकर दीये जलाएंगे

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  5. स्वागत है।
    हमारी ज़िन्दगी की खुशबुएँ भर दें किताबों में
    इन्हीं में दृश्य अनदेखे कई बच्चे तलाशेंगे।

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  6. चलो हम आज फ़िर जागे, बरस भर गहरी निन्दिया से

    जला कर दीप आन्गन में, नई सुबहा बुला लेंगे

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  7. स्वागत है. बहुत दिनों से इंतजार था.

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  8. दिमाग के दही करने का समय आ गया...कभी ज़हन में शायरी मोगरे के फूलों सी खिला करती थी जिसे वक्त की बकरी चर गई...अब उस ठूंठ पर फिर से फूल खिल पाएंगे ? लगता तो नहीं...कोशिश करते हैं..

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  9. आ0 पंकज सुवीर जी
    इस उद्घोषणा का बहुत बहुत स्वागत

    प्रतीक्षा जिसकी थी अवसर सुहाना आ गया है वो,
    नए सब शेर हाथों में कलम ले के तलाशेंगे।

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  10. चल पड़ी है गाड़ी
    नया जोश भरकर
    बहुत अच्छी पहल

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  11. आज यह पोस्ट पढ़ी। तरही की ग़ज़लें भी पढ़ीं। फुरसत से सब पर कॉमेंट्स करता हूँ। और आप की अनुमति हो तो एक दो दिन में एक ब्रजगजल भी आप तक पहुँचाता हूँ। मण्डली आज भी अपने ओर शबाब पर है। जैसे गाँव से निकले दोस्त अहबाब अलग अलग जगहों पर रोजी रोटी के लिए जाते हैं और त्यौहार पर गाँव में लौटकर फिर सब के सब के वही पहले जैसे मटरगश्त टाइप जो जाते हैं, त्यौहारों पर यह ब्लॉग भी कुछ ऐसा ही लगने लगता है। सभी अग्रजानुजों को सादर प्रणाम। अनेकानेक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण। राधे-राधे। www.navincchaturvedi.blogspot.com

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