बुधवार, 7 नवंबर 2018

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आज श्री राकेश खण्डेलवाल जी, श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी, श्री नीरज गोस्वामी जी, श्री गिरीश पंकज जी, नुसरत मेहदी जी, श्री द्विजेन्द्र द्विज जी और श्री मंसूर अली हाशमी के साथ मनाते हैं दीवाली का पर्व ।

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शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली…

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deepawali-164_thumb_thumb1ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे deepawali-16_thumb_thumb1

शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आज श्री राकेश खण्डेलवाल जी, श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी, श्री नीरज गोस्वामी जी, श्री गिरीश पंकज जी, नुसरत मेहदी जी, श्री द्विजेन्द्र द्विज जी और श्री मंसूर अली हाशमी के साथ मनाते हैं दीवाली का पर्व ।

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राकेश खंडेलवाल

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शरद की पूर्णिमा से हो शुरू यह
सुधाये है टपकती व्योम पर से
जड़े है प्रीत के अनुराग चुम्बन
लपेटे गंध अनुपम,पाटलों पे
किरण खोलेगी पट जब भोर के आ
नई इक प्रेरणा ले हंस पड़ेंगे
नयी परिपाटियों की रोशनी ले
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

यही पल हैं कि जब धन्वन्तरि के
चषक से तृप्त हो लेंगी त्रशाए
“नरक” के बंधनों से मुक्त होकर
खिलेंगी रूप की अपरिमित विभागों
भारत की पूर्ण हो लेगी प्रतीक्षा
वियोगि पादुका से पग मिलेंगे
नए इतिहास के अब पृष्ठ लिखने
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

मिटाकर इंद्र के अभिमान को जब
हुआ गिरिराज फिर  स्थिर धरा पर
बना छत्तीस व्यंजन भोग छप्पन
लगाएँ भोग उसका  सिर झुकाकर
मिलेंगे भाई जाकर के बहन से
नदी यमुना का तट। शोभित करेंगे
मनाएँगे उमंगों के पलों को
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे


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श्रीमती लावण्या शाह

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दीपावली की प्रतीक्षा में ~~
ज़रा सोचो, दिवाली, आ रही है
दीयों में, लौ, बनी, बलखा रही है
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .... ... 
सुनहरी शाम, आई है, घरों में,
रुपहली रात, नभ, मुस्कुरा रही है !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  ........
हों आतिशबाजियाँ, नीले गगन पे,
चेहरे, हों चमकते, जब, हर जन के !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  ........
मिठाई हो, हँसे, घर का हर कोना,
दिलों में प्यार, पलता हो, सलोना !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......
रौनक हो, लगे सब कुछ, सुहाना
कलश पर हो, बाती संग, दियना
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......
हो शुभ मंगल, करें, पूजन, हवन,
हो आरती, में मग्न, कुनबा, मगन !
ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
ज़रा सोचो  .......


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neeraj goswami

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नीरज गोस्वामी

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बदल कर भेष फूलों का, छलेंगे
ये काँटें जब मिला मौका, चुभेंगे

तुम्हारा जिस्म डाली मोगरे की
महक उट्ठेगा जब ये गुल खिलेंगे

बुजुर्गों की भी सुनते हैं ये बच्चे
मगर जो दिल कहेगा वो करेंगे

फटा जब ढोल खुद डाला गले में
बजेगा जब सुनेंगे , सर धुनेंगे

सिफर हमने किया ईजाद माना
सिफर से कब मगर आगे बढ़ेंगे

अंधेरों की सियासत को मिटाने
ये दीपक रात-भर यूँ ही जलेंगे

तसव्वुर में किसी के मुब्तला हैं
पुकारो मत, जमीं पे आ गिरेंगे

शजर की याद हो गहरी सफर में
तो रस्ते धूप के दिलकश लगेंगे

रखें निस्बत मगर कुछ फासले भी
तभी नीरज हरिक रिश्ते निभेंगे

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girish pankaj

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गिरीश पंकज

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अगर हिम्मत जुटा कर के उठेंगे
सितमगर एक दिन बेशक मिटेंगे

अंधेरे हाथ अपने अब मलेंगे
'ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"

मुझे उम्मीद है मंजिल मिलेगी
हमारा काम है चलना, चलेंगे

मिटा देंगे जगत का हम अंधेरा
गिनूँगा हाथ अब कितने उठेंगे

भले दो चार खंडित हो गए हैं
मगर कुछ स्वप्न दोबारा पलेंगे

यहां है भूख, बेकारी, करप्शन
यही मुद्दे जरूरी क्यों टलेंगे
 

हमारे हाथ में जलता दिया है
अंधेरे क्या हमें अब भी छलेंगे

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द्विजेंद्र द्विज

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अँधेरे कब तलक अब दम भरेंगे
ये दीपक रात भर यूँ  ही जलेंगे

अँधेरे ही अगर  मन में रहेंगे
तो फिर ये दीप जल कर क्या करेंगे

अँधेरे आस्तीनों में पलेंगे
तो पग-पग पर हमें अक्सर डसेंगे

जो मायावी उजाले हैं, छलेंगे
उजालों पर तो वे फंदे कसेंगे

अँधेरों में कुछ ऐसे आ फँसेंगे
अँधेरों की ही सब माला जपेंगे

अँधेरे बैठ जाएँगे जड़ों में
अगर हम यूँ उन्हें ढोते रहेंगे

जो उनके रास्तों में आ रहे हैं
वो सारे पेड़ तो पहले कटेंगे

उजालों की सफ़ेदी के सिपाही
अँधेरों की सियाही से डरेंगे?

अँधेरे हैं अँधेरों की ज़रूरत
अँधेरों को उजाले तो खलेंगे

अँधेरे आदतों में आ बसे तो
हमेशा आदतों में ही बसेंगे

उजालों को तो आना ही है इक दिन
उजाले इस तरह कब तक टलेंगे

बपौती हैं किसी की क्या उजाले?
यहीं के हैं यहीं देने पड़ेंगे

अँधेरों ने जलाए हैं जो दीपक
वो दीपक क्या भला तम को हरेंगे

जलाओगे अगर दीपक से दीपक
अँधेरे कब तलक फिर यूँ टिकेंगे

भले हर रोज़ सूरज को है ढलना
नहीं ये आस के सूरज ढलेंगे

सिखाओ मत हमें यह क़ायदा तुम
जो कहना है हमें हम वो कहेंगे

उन्हें दरकार है कुछ तो उजाला
उजाले के लिए जो मर मिटेंगे

उजालों की तो मर्यादा यही है
ये कालिख पर भी उजियारा मलेंगे

उजालों का अगर हम साथ दें तो
अँधेरे इस तरह फूलें फलेंगे?

उजालों की नदी में डूब कर हम
उजाला अपने माथे पर मलेंगे

उजाले जिनके दम से हैं 'द्विज' उनके
नसीबों से अँधेरे कब छटेंगे?

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nusrat mehdi

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नुसरत मेहदी

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नई टकसाल में जाकर ढलेंगे
कई सिक्के यहां फिर से चलेंगे

ज़रा सी फ़िक्र की वुसअत बढ़ाकर
नए मफ़हूम में मानी ढलेंगे

ये होगा फिर कई किरदार एक दिन
कहानीकार को ख़ुद ही खलेंगे

बहुत भटका रही हैं क़ुरबतेँ अब
तो हम कुछ फ़ासला रख कर चलेंगे

जिसे आना है लौ से लौ जला ले
"ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे"

बढ़ा दी है तपिश सूरज ने अपनी
तो अब ये बर्फ़ से लम्हे गलेंगे

खुला रक्खो दरे उम्मीद नुसरत
दुआओं के शजर फूले फलेंगे

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Mansoor ali Hashmi

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मंसूर अली हाशमी

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हे ग़ुंचा तो अभी गुल भी खिलेंगे
खिले है फूल अब फल भी  मिलेंगे।

तेरी यादों की लेकर रोशनी अब
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

मैं गर्दिश में हूँ तुम ठहरे ही रहना
मिले थे फिर मिले है फिर मिलेंगे

यहीं सदियों से होता आ रहा है
गिरें हैं फिर उठेंगे फिर चढ़ेंगे।

अभी 'मी टू' का चर्चा हर तरफ है
उपेक्षित क्या मुझे अब भी करेंगे?

'पटाख़े' चल रहे है, फिर रहे है
जो छेड़ा तो यक़ीनन यें फटेंगे।

बदलते दौर में मअयार बदले
घटेगा कोई तब तो हम बढ़ेंगे

हुए जब रुबरु तो फिर वह बोले
चलो जी! फेसबुक पर ही मिलेंगे

नही यह क़ैस-ओ-लैला का ज़माना
सितम हर्गिज़ न अब तो हम सहेंगे।

ब्लॉगिंग, फेसबुक अब छोड़ बैठें
लिखेंगे हम न अब कुछ भी पढ़ेंगे।

दिवाली 'हाश्मी' तू भी मना ले
दुबाला इस तरह ख़ुशियां करेंगे।

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शुभ दीपावली, शुभ दीपावली, शुभ दीपावली… आप इन शायरों को दाद देते रहिए। मिलते हैं अगले अंक में।

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27 टिप्‍पणियां:

  1. सब को दीपावली की अनन्त शुभकामनाएं।

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  2. राकेश जी के गीत ये पंक्तियां:

    किरण खोलेगी पट जब भोर के आ
    नई इक प्रेरणा ले हंस पड़ेंगे
    नयी परिपाटियों की रोशनी ले
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

    बहुत खूब हैं।

    लावण्या शाह जी की ये पंक्तियां:

    रुपहली रात, नभ, मुस्का रही है !
    ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....
    ज़रा सोचो ......
    बहुत खूब हैं।

    नीरज जी ने एक से बढ़कर एक शेर कहें हैं मतले से लेकर मकते तक । खासतौर पर ये शेर देखिए:

    सिफर हमने किया ईजाद माना
    सिफर से कब मगर आगे बढ़ेंगे
    अंधेरों की सियासत को मिटाने
    ये दीपक रात-भर यूँ ही जलेंगे

    तसव्वुर में किसी के मुब्तला हैं
    पुकारो मत, जमीं पे आ गिरेंगे

    शजर की याद हो गहरी सफर में
    तो रस्ते धूप के दिलकश लगेंगे

    जवाब देंहटाएं
  3. गिरीश पंकज जी के ये शेर:

    अंधेरे हाथ अपने अब मलेंगे
    'ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"

    मुझे उम्मीद है मंजिल मिलेगी
    हमारा काम है चलना, चलेंगे

    बहुत खूब।

    नुसरत जी की सारी ग़ज़ल खूबसूरत बनी है ,खासतौर पर ये शेर देखिए:

    नई टकसाल में जाकर ढलेंगे
    कई सिक्के यहां फिर से चलेंगे

    ज़रा सी फ़िक्र की वुसअत बढ़ाकर
    नए मफ़हूम में मानी ढलेंगे

    ये होगा फिर कई किरदार एक दिन
    कहानीकार को ख़ुद ही खलेंगे

    द्विज जी की पूरी ग़ज़ल ही अंधेरो से उजालो के संघर्ष में गूँथी है ,ये शेर देखिए:

    अँधेरे कब तलक अब दम भरेंगे
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

    अँधेरे ही अगर मन में रहेंगे
    तो फिर ये दीप जल कर क्या करेंगे

    अँधेरे आस्तीनों में पलेंगे
    तो पग-पग पर हमें अक्सर डसेंगे

    बहुत खूब1।

    हाशमी साहब का तो अंदाज़ ही निराला है ,इनके शेर तो समय की नब्ज पकड़ते दिखते हैं :

    मैं गर्दिश में हूँ तुम ठहरे ही रहना
    मिले थे फिर मिले है फिर मिलेंगे

    यहीं सदियों से होता आ रहा है
    गिरें हैं फिर उठेंगे फिर चढ़ेंगे।

    हुए जब रुबरु तो फिर वह बोले
    चलो जी! फेसबुक पर ही मिलेंगे ।
    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  4. राकेश जी का गीत हमेशा की तरह गीत के माध्यम से अभिव्यक्त होते हुए बड़ी ख़ूबसूरती से शरद पूर्णिमा की खीर से लेकर भाई-दूज तक के शुभ-अवसरों का गीतमय आनंद प्रस्तुत किया है। हर बार लगने लगता है है कि गीत का भी प्रयास किया जाए लेकिन अपनी गाड़ी तो ग़ज़ल से आगे बढ़ती ही नहीं। राकेश जी के गीत पढ़कर आनन्दमय वाह वाह निकले बिना नहीं रहती।
    लावण्या दी ने दीपावली के प्रतीक्षा गीत के माध्यम से . जो दृश्य बांधे हैं और अंत में मंगल कामना की है उससे अहसास होता है कि आस-पास ही कोई निरंतर इस उत्सव की आहटें ले रहा है और शब्दों में पिरोता जा रहा है। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।
    नीरज भाई साहब तो स्वयं ही मोगरे की डाली हैं और मोग्रा भी ऐसा कि हर ख़ुशबू बिखेरने में सक्षम। सिफर हमने किया ईजाद माना, सिफर से कब मगर आगे बढ़ेंगे बहुत पैना शेर हुआ। जीवन का अनुभव समेटे हर ऐक शेर दिलकश है। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।
    गिरीश पंकज जी ने चुनौती भरे मत्ले से शुरुआत की और इस चुनौती को क़ायम रखा हर शेर की ख़ूबसूरती में। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।


    नुसरत मेहदी जी का "ये होगा फिर कई किरदार एक दिन, कहानीकार को ख़ुद ही खलेंगे" गहरा फ़लसफ़ा लिए है। नुसरत जी ग़ज़ल कहने का लम्बा अनुभव रखती हैं और उस स्थिति में आ चुकी हैं की शेर ख़ुद-ब-ख़ुद आ कर ग़ज़ल में सजने को तैयार रहते हैं। हर शेर में यह अनुभव स्पष्ट है। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।

    द्विजेंद्र द्विज भाई भी अनुभवी शायर हैं और चुटकियों में शेर निकालने में माहिर, परिणाम सामने है ५ ख़ूबसूरत मत्ले लिए हुए। यूँ तो हर शेर ख़ूबसूरत है लेकिन "जो उनके रास्तों में आ रहे हैं, वो सारे पेड़ तो पहले कटेंगे" और "अँधेरों ने जलाए हैं जो दीपक, वो दीपक क्या भला तम को हरेंगे" का पैनापन विशेष है। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।

    मंसूर अली हाशमी साहब की दूसरी ग़ज़ल और पुख़्ता ग़ज़ल। ख़ूब कहे शेर लेकिन जनाब ख़ैर मनाएँ। उस ज़माने का कोई पटाखा मी टू पर उतर आया तो उसकी वर्तमान हालत देखकर कोई विश्वास नहीं करेगा कि आप जैसी हसीन शख़्सियत ने उसे कभी घास डाली होगी। मस्त रहें। आनंद आ गया। वाह-वाह और वाह।

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  5. # नीरज गोस्वामी

    सबसे पहले दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं आपको और इस महफिल में शरीक तमाम शौअराए किराम, कविजन एंव आयोजक पंकज सुबीर जी को।
    इस मर्तबा आपकी क़लम से निराले ही अशआर निकले है, सभी क़ाबिले दाद है।
    बदल कर भेष फूलों का, छलेंगे
    ये काँटें जब मिला मौका, चुभेंगे

    तुम्हारा जिस्म डाली मोगरे की
    महक उट्ठेगा जब ये गुल खिलेंगे

    बुजुर्गों की भी सुनते हैं ये बच्चे
    मगर जो दिल कहेगा वो करेंगे

    सिफर हमने किया ईजाद माना
    सिफर से कब मगर आगे बढ़ेंगे
    आपके इस 'सिफर' वाले ख़्याल पर कुछ अर्ज़ करू.....?

    "सिफर को जोड़ कर देखे 'फिगर' से
    ज़माने भर से हम आगे ही होंगे!"

    जवाब देंहटाएं
  6. # राकेश खंडेलवाल

    भरत की पूर्ण हो लेगी प्रतीक्षा
    वियोगि पादुका से पग मिलेंगे
    नए इतिहास के अब पृष्ठ लिखने
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

    अति उत्तम, दीपोत्सव का कारण और उद्देश्य सब बयान हो गये इन पंक्तियों में।
    अभिव्यक्ति की आपकी शैली अनूठी है। मन में इर्ष्या जगाती है।
    बहुत बधाई इस ज्योति पर्व की आपको।

    जवाब देंहटाएं
  7. नीरज गोस्वामी जी की ग़ज़ल नायाब है. मतला, मकता और मध्य का पाँचवाँ शेर कमाल के हैं.

    महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’

    जवाब देंहटाएं
  8. इन शानदार रचनाओं के लिये सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं दीपावाली की अशेष शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  9. राकेश जी को प्रणाम।। हमेशा की तरह लाजवाब गीत

    नई परिपाटियों की रौशनी ले ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे
    नए इतिहास के अब पृष्ठ लिखने ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे

    क्या बात है.. अद्भुत।


    लावण्या जी:
    आहा... बहुत खूबसरत कविता।
    ज़रा सोचो दीवाली आ रही है. ज़रा सोचो! बहुत बढ़िया। कमाल।

    नीरज जी:
    क्या बात है... खूबसूरत मतला और गिरह।
    तसव्वुर में किसी के मुब्तिला हैं/पुकारो मत ज़मीं पर आ गिरेंगे .... क्या बात है.
    शजर की याद हो गहरी सफर में.... वाह
    बहुत बढ़िया मकता। ग़ज़ल बहुत पसंद आई. दिली दाद कबूल करें।

    गिरीश जी:
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल
    भले दो चार खंडित हो गए हों / मगर कुछ स्वपन दोबारा पलेंगे
    हासिले ग़ज़ल शेर है. आखिरी शेर भी लाजवाब। ग़ज़ल पसंद आई. दाद कबूल करें।


    नुसरत जी:
    कमाल का मतला .... कई किरदार एक दिन कहानी कार को खुद ही खेलेंगे. ... बहुत बढ़िया।।
    बहुत भटका रही हैं कुर्बते अब ... वाह वाह बहुत सुंदर शेर
    गिरह खूब लगाई है.
    मकता भी बहुत खूबसूरत है. शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.


    द्विज जी को नतमस्तक प्रणाम:
    इतने सारे शेर और क्या मज़ाल जो एक मिसरा भी कमज़ोर हो. सभी शेर लाजवाब। किसी एक को कोट करने का अर्थ बाकी शेरों के साथ नाइंसाफी होगा. फिर भी "अँधेरे हैं अंधेरों की ज़रुरत" कमाल का शेर.. "उजालों की तो मर्यादा यही है.." वाह

    हाश्मी जी:
    आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार रहता है. बहुत खूब मतला। सभी शेर मज़ेदार! बधाई और दिली दाद.

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह दीपावली के दिन क्या खूबसूरत रचनाएँ पढ़ने को मिलीं , मज़ा आ गया । गिरीश पंकज जी ने बहुत खूबसरत ग़ज़ल कही है - मुझे उम्मीद है मंज़िल मिलेगी और भले दो चार खंडित हो गए हैं , , ये दोनों शेर बहुत पसंद आए ।
    नीरज जी ने तो बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है । मतला शानदार । और फ़िर मोगरे के फूल । बुजुर्गों वाला , सिफर वाला , शजर वाला, गिरह का शेर और मतला सभी शेर उम्दा हुए हैं । लेकिन ये शेर मेरे दिल में घर कर गया है,बार बार अपने अंदर इसे दोहरा कर लुत्फ़ ले रहा हूँ ।
    तसव्वुर में किसी के मुब्तला हैं
    पुकारो मत, जमीं पे आ गिरेंगे
    नुसरत जी की ग़ज़ल तो क्या कहने । रदीफ में 'लेंगे' लेकर उन्होंने ख़ुद एक और चुनौती ली है और क्या ही माहिर तरीके से निभाया है उसे । शेर तो जाहिर है सभी बेहतरीन है, ये दोनों दिल में उतर गए हैं
    नई टकसाल में जाकर ढलेंगे
    कई सिक्के यहां फिर से चलेंगे

    बहुत भटका रही हैं क़ुरबतेँ अब
    तो हम कुछ फ़ासला रख कर चलेंगे
    द्विजेंद्र जी ने कमाल ही कर दिया है , इतनी लम्बी ग़ज़ल , पाँच मतले और, सभी शेर उजाले और अंधेरे के सदैव चलने वाले संघर्ष के और फ़िर सभी के सभी बेहतरीन , वाह वाह ।
    मंसूर अली हाशमी जी की दूसरी ग़ज़ल पढ़ने को मिली । बहुत ही खूबसरत मतला, बार बार पढ़ने को दिल चाहता है । और लाजवाब गिरह वाह मज़ा आ गया
    बदलते दौर में मअयार बदले
    घटेगा कोई तब तो हम बढ़ेंगे
    ये शेर बेहद पसंद आया
    और फ़िर उनके स्पैशल मी टू और फेसबुक वाले शेर , , बहुत ही ख़ूब
    और फ़िर राकेश जी लावण्या जी के दो खूबसरत गीत , वाह वाह । आज तो मुशायरा अपने चरम पर रहा , ख़ूब मज़ा आया ।

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  11. प्रेम से जुड़ा, फिर भारत वर्ष को पुनः विभाव दिलाता रंग दीपावली और प्रकृति के मोहक रंगों से साथ सजा राकेश जी का गीत अपना अलग ही मुकाम रखता है इस मुशायरे .... फिर में इंद्र के प्रसंग को भी बखूबी जोड़ता मनमोहक गीत ... आनद की सीमा से परे परमानंद के दायरे ले जाता है ... आभार है राकेश जी का ...
    आदरणीय लावण्या जी का गीत भी ... पहले प्रतीक्षा .... फिर मनमोहक शाम और रात की आतिशबाजी मिठाई और मंगल कामनाओं के साथ बहुत आनद दे रहा है ... सुन्दर मतले पे सुन्दर गीत ...

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  12. नीरज जी की ग़ज़ल मतले से ही अपने तेवर सेट कर देती है ... फिर मोंगरा जब आता है तो ग़ज़ल परवान चढ़ जाती है, प्रेम भरा ये शेर तो सीधे दिल में उतारते हैं ...
    फिफर वाला शेर बहुत ही गज़ब शेर है ... और कितना सच्चा ....
    और गिरह के तो क्या कहने .... जबरदस्त शेर ....
    आखरी शेर भी सही बता रहा है की रिश्ते निभाने हों तो फांसले रखना जरूरी होता है ...

    गिरीश जी के सभी शेर दिवाली की आशा और उम्मीद का सन्देश लिए हैं ... सकारात्मक भाव लिए शेर दिल में उतर जाते हैं सीधे ...

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  13. अपने आस पास उठते सवालों को डिस्कस करते नुसरत जी के शेर बहुत ही प्रभावी हैं ...
    फिर कोई किरदार ... और सूरज की तपिश ... दोनों शेर बहुत ही अलग अंदाज़ के और गहरे शेर हैं ...

    द्विज जी की तो क्या बात है ... लगता जैसे अनार छोड़ दोय हो ... हर दिशा में उड़ रहे हैं शेर ... एक से बढ़ कर एक उस्ताज़ा अंदाज़ ... इतने सारे शेर ... इतने सारे शेर की पढ़ते पढ़ते तालियाँ ही तालियाँ स्वयं बज जाती हैं ... अनेक विषयों को समेटे शेर बेहद कमाल के हैं ... बधाई इस कामयाब, लाजवाब ग़ज़ल की ....

    जवाब देंहटाएं
  14. मंसूर अली जी ने मी तो, पटाखे, ब्लोगिंग, फेसबुक ..... सभी को लपेटा है इस कमाल की ग़ज़ल में
    इतने सारे विषय एक ही ग़ज़ल में समेटना कोई मंसूर जी से सीखे ...
    इस मुशायरे का अब मज़ा आने लगा है ...

    जवाब देंहटाएं
  15. पहली सम्मान की बात तो ये है कि आपकी ग़ज़ल को इस तरही में शरीक़ होने लायक समझा गया। दूसरी और सबसे अहम् बात ये है कि आपको ऐसे दिग्गजों के साथ पेश किया गया जिनका लेखन में कोई सानी नहीं है अब बताइये और जीने को क्या चाहिए ? मुझे तो सच और कुछ नहीं चाहिए।

    राकेश जी का शब्द चयन और उपमाएं अद्भुत होते हैं। हर बार वो चमत्कार कैसे कर लेते हैं ये शोध का विषय है। इस बार भी क्या ही कमाल का गीत प्रस्तुत उन्होंने किया है। मैं तो प्रतिभा के सम्मुख नत मस्तक होता आया हूँ और होता ही रहूँगा।

    लावण्या दी के चेहरे से जैसे वात्सल्य टपकता है। वो प्रेम की साक्षात् मूरत हैं। सीधे सरल शब्दों में भाव बाँधने में कुशल। उन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव से गुजरने के समान है। प्रणाम करता हूँ उनकी लेखनी को।

    गिरीश भाई हमेशा ही अपनी ग़ज़लों में बहुत सरल अंदाज़ में गहरी बात कहते हैं। इस तरही की ग़ज़ल के हर शेर में ये बात साफ़ तौर पर देखी जा सकती है। ढेरों दाद गिरीश भाई।

    नुसरत जी की तो जितनी तारीफ़ की जाय कम है। जितनी वो दिखने में शालीन हैं वैसे ही लिखने में भी मखमली अहसास को पिरोने में कुशल। लफ्ज़ लगता उनके सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। ' ये होगा फिर कोई किरदार --' ग़ज़ब का शेर हुआ है। 'बहुत भटका रहीं हैं ---' का तो कहना ही क्या ? वाह गिरह का शेर तो जबरदस्त है ही पूरी ग़ज़ल दिलकश है। ज़िंदाबाद नुसरत जी। वाह !!

    द्विज जी तो गुरु हैं , समझो गो-मुख हैं जिस से शेर की गंगा अविरल बहती है। कोई विषय उन्हें देदो कमाल की ग़ज़ल कहने का हुनर है उनमें। ऐसा हुनर हमारे तिलक राज जी में भी हैं वो तो तरही मिसरे पर पूरा दीवान लिखने की कुव्वत रखते हैं। द्विज जी के किस शेर की तारीफ करूँ एक से बढ़ कर एक शेर। अँधेरे और उजाले पे ही कोई इतने सारे कैसे कह सकता है -उनकी प्रतिभा हैरत अंगेज़ है। वाह द्विज जी वाह।

    हमारे मंसूर भाई का तो कहना ही क्या ? लपेट लपेट के मारने में इनका कोई जवाब नहीं। हास्य का पूत लिए इनके शेर बहुत मारक क्षमता वाले हैं। हँसते हँसते ऐसी बात कर देते हैं की मुंह खुला का खुला रह जाता है। अभी मी टू की हवा शुरू ही हुई है की हुज़ूर ने कमाल शेर कह डाला है और पटाखे वाला शेर तो भाई मंसूर भाई ही कह सकते हैं. इनकी सिर्फ दाढ़ी ही सफ़ेद है वरना हज़रत अभी 18-20 साल के जवान ही तो हैं। इनकी ज़िंदादिली को मेरा फर्शी सलाम।

    अपने बारे में तो न ही कुछ कहूं तो बेहतर , शेर कहना तो दूर एक मिसरा ढंग से कहने की औकात नहीं अपनी। किसी जमाने में तुकबंदी किया करते थे अब तो दिमाग की हालत उस नल की तरह हो गयी है जिसमें अब पानी की जगह शूं शूं करती हवा की आवाज आती है। सच्ची !!! इसके बावजूद आप सब को मेरी तारीफ में झूट बोलने का शुक्रिया। :) :) :)

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  16. कमाल और कमाल. पूरा रंग समेटे यह तरही मुशायरा, इतने सारे पटाखो के साथ साथ म्यूज़िकल गीत वाले 🚀 राकेट भी.
    मजेदार और यादगार..

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  17. भाई श्री पंकज सुबीर जी दुनियाभर के कोने कोने से
    साहित्य रसिकों को इकट्ठा कर एक परिवार की मानिंद
    इस मंच पर प्रस्तुत किया करते हैं। उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद तथा सभी उत्कृष्ट साहित्यकार साथियों को
    दीप ~ पर्व की शुभकामनाएं। ईश्वर आप से इसी तरह लाजवाब रचनाएं लिखवाते रहें।
    खुश रहें,आबाद रहें, लिखते रहें, पढ़ते रहें।
    सादर - लावण्या

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  18. पूरी की पूरी पोस्ट ही ख़ूबसूरत ग़ज़लों की लड़ियों से जगमगाती दीवाली है जैसे। इतने अच्छे शायरों को एक ही जगह पढ़ना आनंद की बात है, सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  19. # लावण्या शाह:
    सुन्दर गीत रचा है।

    मिठाई हो, हँसे हर एक कोना,
    दिलों में प्यार, पलता हो, सलोना !
    ज़रा सोचो दिवाली आ रही है ....

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  20. द्विजेंद्र द्विज:
    हक़ गोई से काम लिया है, बहुत अर्थपूर्ण संदेश दिया है।

    जो मायावी उजाले हैं, छलेंगे
    उजालों पर तो वे फंदे कसेंगे

    अँधेरों में कुछ ऐसे आ फँसेंगे
    अँधेरों की ही सब माला जपेंगे

    अँधेरे बैठ जाएँगे जड़ों में
    अगर हम यूँ उन्हें ढोते रहेंगे

    जो उनके रास्तों में आ रहे हैं
    वो सारे पेड़ तो पहले कटेंगे

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  21. नुसरत मेहदी:
    ख़ूबसूरत ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब।

    ये होगा फिर कई किरदार एक दिन
    कहानीकार को ख़ुद ही खलेंगे

    ( शरत चन्द्र आज होते तो यह कहते
    "ए पारो, 'देवदास' अब न रचेंगे" )

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  22. गिरीश पंकज:
    सकारात्मकता से भरपूर। हर शेर प्रेरणा प्रदान करता हुआ।

    अगर हिम्मत जुटा कर के उठेंगे
    सितमगर एक दिन बेशक मिटेंगे

    अंधेरे हाथ अपने अब मलेंगे
    'ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"

    मुझे उम्मीद है मंजिल मिलेगी
    हमारा काम है चलना, चलेंगे

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  23. कई दिनों से समय की तलाश में था और नीरज गोस्वामी का यह शेर गुनगुना रहा था

    सिफ़र हम्नने किया ईजाद माना
    सिफ़र से कब मगर आगे बढ़ेंगे

    और उनका यह शेर

    रखे निस्बत मगर कुछ फ़ासले से ---अचानक बशीर बद्र की याद ताजा कर गया:

    कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
    ये नये मिजाज़ का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो

    नीरज जी को ढेर सी बधाई .

    गिरीशझी

    हमारा काम है चलना चलेंगे
    हमें भी दाद देनी, दाद देंगे

    मान्य द्विजजी की पूरी गज़ल प्रभावी है. यह शेर विशेष पसन्द आया-

    अंधेरे आदतों में आ बसे तो
    हमेशा आदतों में ही बसेंगे


    नुसरतजी के कलाम का तो स्भी कायल रहे हैं.

    खुला रक्खो दरे उम्मीद नुसरत
    दुआओं के स्झजर फ़ूले फ़लेंगे


    लावण्यजी का दिवाली आगमन की सूचना देता हुआ गीत

    और हाशमी जी की आदत की मजबूरी;-

    य़ही सदियों से होता आ रहा है
    गिरेंगे, फिर उठेंगे और चढ़ेंगे
    बनी है एक यह आदत पुरानी
    खफ़ा वो, इश्क हम फ़िर भे एकरेंगे.

    सभी को बधाई

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