बुधवार, 14 नवंबर 2018

बासी दीपावली मनाने की इस ब्लॉग की परंपरा रही है तो आइये आज सर्वश्री बासुदेव अग्रवाल 'नमन', कृष्णसिंह पेला, तिलक राज कपूर, शेख चिल्ली, मन्सूर अली हाश्मी, गुरप्रीत सिंह और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली।

orkut scrap diwali ki shubhkamane hindi greeting card_thumb[1]

दीपावली का त्यौहार बीत गया है और आज छठ का पवित्र पर्व है, उदित होते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने लिए शक्ति संचय करने का पर्व। देश के पूर्वी हिस्से में यह त्यौहार मनाया जाता रहा है किन्तु अब तो पूरे देश में ही मनाया जाता है। त्यौहारों को धर्म से अलग कर देना चा​हिए, तभी इनमें आनंद आएगा। फिर कोई नहीं कहेगा कि दीपावली हिन्दू का, ईद मुस्लिम का, क्रिसमस ईसाइयों का, बैसाखी सिक्खों का त्यौहार है। असल में त्यौहार तो इन्सान के होते हैं, धर्मों के नहीं। कितना अच्छा हो कि धर्म से सारे त्यौहार मुक्त हो जाएँ। किन्तु यह बस एक सुनहरी आशा है। आमीन।

diwali_india_thumb

deepawali-164_thumb_thumb1_thumb1ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे deepawali-16_thumb_thumb1_thumb1

बासी दीपावली मनाने की इस ब्लॉग की परंपरा रही है तो आइये आज सर्वश्री बासुदेव अग्रवाल 'नमन', कृष्णसिंह पेला,  तिलक राज कपूर, शेख चिल्ली, मन्सूर अली हाश्मी, गुरप्रीत सिंह और राकेश खंडेलवाल जी के साथ मनाते हैं बासी दीपावली।

deepawali-7_thumb1_thumb[1]

Vasudev Agrwal Naman_thumb[1]

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

deepawali-14_thumb1_thumb1_thumb1

दिवाली पर यही व्रत धार लेंगे,
भुला नफ़रत सभी को प्यार देंगे।

रहें झूठी अना में जी के हरदम,
भले ही घूँट कड़वे हम पियेंगे,

इसी उम्मीद में हैं जी रहे अब,
कभी तो आसमाँ हम भी छुयेंगे।

रे मन परवाह जग की छोड़ करना,
भले तुझको दिखाएँ लोग ठेंगे।

रहो बारिश में अच्छे दिन की तुम तर,
मगर हम पे जरा ये कब चुयेंगे।

नए ख्वाबों की झड़ लगने ही वाली,
उन्हीं पे पाँच वर्षों तक जियेंगे।

वे ही घोड़े, वही मैदान, दर्शक,
नतीज़े भी क्या फिर वे ही रहेंगे?

तु सुध ले या न ले, यादों के तेरी,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

सभी को दीप उत्सव की बधाई,
'नमन' अगली दिवाली फिर मिलेंगे।

deepawali-3_thumb_thumb1_thumb1

बहुत ही सुंदर मतले के साथ यह ग़ज़ल प्रारंभ हुई है। ज़ाहिर सी बात है कि यहाँ भी छोटी ईता से बचने की व्यवस्था की गई है। झूठी अना में जीने वालों का कड़वे घूँट पीना अच्छा तंज़ है ऐसे लोगों पर। और आसमाँ छूने की कामना का सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ शेर है। फिर सारी दुनिया की परवाह किए बिना अपने काम करते रहने का बेफिक्र शेर भी बहुत अच्छा है। राजनीति में नए ख़्वाबों की झड़ी लगने वाली है और शायर पाँच वर्ष की कल्पना कर रहा है। घोड़े, मैदान और दर्शक में भी अच्छा तेंज़ है। मकता बहुत अच्छा बना है। अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह । 

deepawali-74_thumb1_thumb1

KRISHAN SINGH PELA_thumb[1]

deepawali3_thumb_thumb1_thumb1

कृष्णसिंह पेला
धनगढी, नेपाल

deepawali-18_thumb1_thumb1_thumb1

हमेशा लोग गूँगे क्यों रहेंगे ?
कभी तो राज़ से पर्दे उठेंगे ।

वो मेरे रुक्न से ही थम गए हैं
ग़ज़ल पूरी कहूँ तो गिर पडेंगे ।

है पहरा नूर का पूरी धरा पर
“ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे” ।

दीये छोडो, करो रौशन दिलों को
असल में ये अँधेरे तब मिटेंगे ।

खुदा ने ये कभी सोचा न होगा
जहाँ में नेकी के भी दिन लदेंगे ।

तुम्हारे काम आखिर चाँद आया
सितारे दूर हैं वो क्या करेंगे ?

सदा काँटे ही बोते आ रहे हो
तुम्हें तो हर तरफ कैक्टस दिखेंगे ।

अभी जब धूप हो जायेगी रुख़सत
तो आँगन में ये साये ही बचेंगे ।

जो धब्बे लग चुके हैं आबरु पर
उजालों में भला कैसे छिपेंगे

तुम्हारे त्याग की फ़िहरिस्त लाओ
हमारे पास जो है हम तजेंगे ।

अभी तुम मंजिलों पर हँस रहे हो
किसी दिन रास्ते तुम पर हँसेंगे ।

कुरेदो और ज़ख़्मों को हरे रख्खो
वगर्ना बेजुबाँ लगने लगेंगे ।

अकेला मैं तनिक थक सा गया हूँ
चलो हम साथ में सपने बुनेंगे ।

deepawali-33_thumb1_thumb1_thumb1

पेला जी पहली बार हमारे मुशायरे में नेपाल से तशरीफ़ लाए हैं, उनके स्वागत में तालियाँ। राज़ की बात को उजागर कहता बहुत सुंदर मतला बना है। गिरह के शेर में नूर का पूरी धरा पर बिखरना दीपावली को साकार कर रहा है। सितारों का दूर होना और अंततः चाँद का ही काम आना कई कई अर्थों को समेटे हुए है। काँटे बोते आने वाले लोगों को हर तरफ़ केक्टस दिखना अच्छा प्रयोग है। तुम्हारे त्याग की सूचि माँगने वाला शेर आज की बाबागिरी की दुनिया के लिए आँखों को खोलने वाला है। मंज़िलों पर हँसने वालों पर रास्तों का हँसना भी कमाल है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali-74_thumb3_thumb1

TILAK RAJ KAPORR JI_thumb[1]

deepawali3_thumb1_thumb1_thumb1 

तिलक राज कपूर

deepawali-112_thumb1_thumb1_thumb1 

खुशी अपनी हम उन में बांट देंगे
और उनके दर्द उनसे मांग लेंगे।

खरे सिक्कों रखो तुम सब्र थोड़ा
समय की बात है खोटे चलेंगे।

लहू से सुर्ख़ है शफ़्फ़ाफ़ चादर
सरू के पेड़ कब तक चुप रहेंगे।

हवाई वायदों से कुछ न होगा
अमल की बात करिये, कब करेंगे।

तेरी आंखों में दिखता है समंदर
हमें तू डूबने दे, थाह लेंगे।

मनाने रूठने के खेल में वो
नए इल्ज़ाम मेरे सर धरेंगे।

अरे अंधियार तू ठहरेगा कब तक
"ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे"।

deepawali-35_thumb1_thumb1_thumb1

तिलक जी का नियम है कि बासी दीपावली में तो वे आते ही हैं, भले ही ताज़ी में भी आ चुके हों। बहुत ही सुंदर मतला है जिसमें प्रेम की ​शिद्दत को महसूस किया जा सकता है। खरे और खोटे वाला शेर तो कमाल का है आज के समय पर पूरी तरह से सटीक। सरू के पेड़ों का चुप रहना, उफ़ ग़ज़ब है। और हवाई वायदों के साथ शायर एक बार फिर से तीखा तंज़ कस रहा है । पलट कर प्रेम में आता शायर आँखों में डूब कर थाह लेना चाह रहा है सुंदर। अंत में गिरह का शेर बहुत अलग तरीक़े से बाँधा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali-74_thumb5_thumb1

SHEKH CHILLI_thumb[1]

deepawali3_thumb2_thumb1_thumb1 

शेख चिल्ली

deepawali-112_thumb2_thumb1_thumb1

यूँ कहने को तो हम सच कह भी देंगे
किसी के कान पर जूँ भी तो रेंगे

हुए हैं ग्रीन बेचारे पटाखे
सुना है अब ये चुपके से फटेंगे

यहाँ पर्यावरण के सब पटाखे
गरीबों के ही कांधों पर फटेंगे

भला क्या सोच कर बोली अदालत
पटाखे दस बजे तक ही चलेंगे

ये आँखें मुन्तज़िर हैं साल भर से
"ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे"

मुझे वो तौलने तो आ गये हैं
तराज़ू में मुक़ाबिल क्या धरेंगे

चलो यह तय रहा दीपावली पर
पटाखे देख कर ही दिल भरेंगे

क़सम खायी है हमने 'शेख चिल्ली'
निठल्ले थे, निठल्ले ही रहेंगे

deepawali-37_thumb1_thumb1_thumb1

शेख चिल्ली ने मतला ही बहुत कमाल बाँधा है। और उसके बाद ग्रीन पटाखे में मिसरा सानी तो एकदम ग़ज़ब बना है। उसके बाद की दोनो शेर त्यौहारों में छेड़छाड़ को लेकर शायर के ग़ुस्से को बता रहा है। गिरह का शेर बहुत बहुत कमाल बना है, रात भर की प्रतीक्षा को बहुत अच्छे से समेटा है। और तराज़ू वाला शेर तो उस्तादाना शेर है, क्या ग़ज़ब वाह वाह। और मकते का शेर तो एकदम ऐसा है कि बस आदमी को अंदर तक आनंद से भर दे। ग़ज़ब भाई ग़ज़ब बहुत सुंदर ग़़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali-74_thumb7_thumb2

Mansoor ali Hashmi_thumb[1]

deepawali_thumb1

मन्सूर अली हाश्मी

    deepawali-1_thumb1

करेंगे याद माज़ी की करेंगे
यह दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

मुझे 'मी टू' पे 'मिठ्ठु' याद आया
गवाही उसकी ली तो हम फसेंगे!

ढली है उम्र अब आया है 'मी टू'
फ़क़त अल्लाह ही अल्लाह अब करेंगे!

कहा 'मी टू' तो कह दूंगा मैं 'यू टू'
क़फ़स में भी रहे तो संग रहेंगे।

इलाही पत्रकारिता से तौबा
न लिखवाएंगे उनसे ना लिखेंगे

है हमदर्दी हमें भी 'मीटूओं' से
लड़ो तुम तो! वकालत हम करेंगे।

यह दीपों की है संध्या औ' Me-You
सदा ही साथ अब हमतुम रहेंगे

deepawali-3_thumb1

हाशमी जी इस बार मीटू के पीछे पड़े हैं। मिट्ठू की गवाही और उसके रटंत पर बहुत ही अच्छा शेर कहा है। ढलती उम्र में मीटू का आना शायर को उम्र का एहसास करवा रहा है। यूटू में क़फ़स में साथ रहने की जो मासूम ख़्वाहिश है वह बहुत कमाल है। और पत्र​कारिता से तौबा करता हुआ शायर उस गली जाना ही नहीं चाह रहा है। वकालत का चोगा पहनना चाह रहा है शायर क्योंकि उसे मीटूओं से हमदर्दी है, यह ग़ज़ल तो वायरल शायरल टाइप की हो जाने वाली है सोशल मीडिया पर । लेकिन अंत में बहुत सकारात्मक तरीक़े से ग़ज़ल को अंजाम तक पहुँचाया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali-7_thumb

Gurpreet singh_thumb[1]

deepawali3_thumb3_thumb1_thumb2 

गुरप्रीत सिंह

deepawali-112_thumb3_thumb1_thumb2     

वो पहले हम से सब कुछ छीन लेंगे ।
फ़िर उसमें से हमें किश्तों में देंगे ।

जो सपने भी उधारे देखते हों,
कोई सच्चाई कैसे मोल लेंगे ।

सुनो ऐ ज़िन्दगी मैं थक गया हूँ ,
ज़रा आराम कर लूँ ? फ़िर चलेंगे..

तुझे हम जानते हैं यूँ , कि तुझको,
तेरी ख़ामोशी से पहचान लेंगे ।

वो मिसरा-ए-गिरह क्या था ..अरे हाँ,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।

हमारा छीन लो चाहे सभी कुछ,
पर अपने ख़्वाब हम हरगिज़ न देंगे ।

चलो अब चाँद को छूते हैं यारो,
यूँ कब तक दूर से तकते रहेंगे ।

गीत
युवा हैं देश के हम, क्या करेंगे ।। 
ये लगता हैं पकौड़े ही तलेंगे ।।

इसी ख़ातिर है ये दिन रात खपना,
कि पूरा कर सकें इक-आध सपना,
हम अपना वक़्त और सम्मान अपना,
किसी आफिस में जाकर बेच देंगे।
हमें कागज़ के कुछ टुकड़े मिलेंगे ।।

ये हैं इस युग की टैंशन के नतीजे,
सफेदी आई बालों में सभी के,
लगा बढ़ने है बी.पी. भी अभी से,
बुढ़ापे में बताओ क्या करेंगे ।
बुढ़ापे तक तो शायद ही बचेंगे ।। 

ये वातावर्ण है कितना विषैला,
कि सब दिखता है धुँदला और मैला,
प्रदूषण इस तरह हर ओर फ़ैला,
कि मर ही जाएंगे गर सांस लेंगे ।
भला ऐसे में हम कब तक जिएंगे।। 

जो हम समझे हैं वो सब को बताएं,
पटाखे इस दफ़ा हम ना चलाएं,
फ़क़त दीपक बनेरों पर जलाएं,
यही दीपक अंधेरों से लड़ेंगे ।
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।।

deepawali-39_thumb1_thumb1_thumb2

गुरप्रीत ने पहले भी एक कमाल की ग़ज़ल कही है और आज भी सुंदर ग़ज़ल लेकर आए हैं। मतला ही ऐसा ग़ज़ब बना है कि तीखा होकर धंस जाता है कलेजे में। सुनो ऐ ज़िंदगी में मिसरा सानी बहुत ही अच्छा बना है एकदम ग़ज़ल के असली अंदाज़ में। यहाँ पर गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर बना है, बहुत बेफ़िक्र होकर कहा गया है यह शेर। ख़्वाब नहीं देने वाला शेर हो या चाँद को पास जाकर छूने का हौसले वाला शेर दोनों बहुत कमाल हैँ। गुरप्रीत ने एक गीत भी भेजा है यह राजनीति पर तंज़ कसते हुए कहा गया है। चार बंदों में अलग अलग प्रकार के भावों को बाँधा है। बहुत ही सुंदर वाह वाह वाह।

deepawali-74_thumb9_thumb2

rakesh khandelwal ji_thumb[1]

deepawali3_thumb3_thumb1_thumb3 

राकेश खंडेलवाल

deepawali-112_thumb3_thumb1_thumb3     
तमस बढ़ता रहा चोले बदल कर
चले हैं ग़ोटिया अभिमंत्रिता  कर
उजाले की गली में डाल परदे
निरंतर हंस रहा है ये ठठाकर
सहज मन में निराशा उग रही है
तिमिर के मेघ कल क्या छँट सकेंगे
जिन्हें आश्वासनों ने नयन आँजे
कभी वे स्वप्न शिल्पित हो सकेंगे

लिया है स्नेह साँसों का निरंतर
बंटी है धड़कनों  ने वर्तिकाएँ
अंधेरों का न हो साहस तनिक भी
ज़रा सा सामने आ ठहर जाएँ
जली है तीलियाँ जो प्रज्ज्वलन को
उन्हें संकल्प ने ही अग्नि दी है
उन्हें थामे हुए जो उँगलियाँ हैं
सकल निष्ठाओं ने ही सृष्टि की है

ज़रा सा धीर रख ओ थक रहे मन
अंधेरे एक दीपक से सदा ही हारते हैं
उजालों को यहाँ का दे निमंत्रण
सतत तमयुद्ध में ही दीप जीवन वारते हैं
इन्ही  के एक सुर का मान रख कर
चढ़े  रथ भोर दिनकर चल पड़ेंगे
उन्ही की राह के बन मार्गदर्शन
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

deepawali-39_thumb1_thumb1_thumb3

राकेश जी के गीत के साथ हम तरही मुशायरे का समापन कर रहे हैं। बहुत ही सुंदर गीत लेकर आए हैं राकेश जी। उजालों की और तमस की लड़ाई को चित्रित करता पहला ही बंद अंत में कई सारे प्रश्न लेकर खड़ा है। अगले बंद में अँधेरे को चुनौती देकर कवि कहता है कि ज़रा सामने आ ठहर तो जाएँ। और अंतिम बंद में एकदम सकारात्मक दृष्टि से अपने मन को समझाने का प्रयास है। धीरज धरने का कहा जा रहा है मन को कि यह सब तो चलता ही रहता है । बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।

deepawali-74_thumb9_thumb3

चलिए तो दीपावली के तरही मुशायरे का आज हम विधिवत समापन करते हैं। आप इन शायरों को दाद देते रहिए। मिलते हैं अगले तरही मुशायरे में। और हाँ इस बीच अगर भभ्भड़ कवि का मन चला तो वो आ ही जाएँगे अपनी ग़ज़ल लेकर।

Shubh-Deepawali-2015-Download-Free-H

5 टिप्‍पणियां:

  1. All gajals are Superb.

    पर्व दीप का था, रोशनी बाचाल थी, दीये मूक,
    बस,जलते रहे रातभर,'सुबीरउम्मीद' के अनुरूप।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी आदरणीय गजलकारों की नायाब ग़ज़लें और एक से बढ़ एक शेर ... बहुत कुछ देखने को मिलता है ऐसी हस्तियों से ...
    जनाब वासुदेव जी ... तिलक जी ... शेख़ चिल्ली जी ... राकेश जी ... मंसूर जी ... गुरप्रीत जी के ग़ज़लें और गीत जैसे दीपों की माला में अलग अलग रंग भर दिए हों ...
    हर शेर अपनी निराली अदा लिए हुए है ...
    हमें तो अभी इंतज़ार है निराले अन्दाज़ के भभड़ कवि का ...
    अब तो आना ही चाहिए उन्हें ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वे ही घोड़े, वही मैदान, दर्शक, नतीज़े भी,वाह क्या बात कही बासुदेव जी, वाह।
    कृष्णसिंह पेला जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ, आनंद आ गया। बहुत खूबसूरत शेर हैं, वाह।
    ये शेख चिल्ली जी शोध का विषय हो गए हैं, मुझ तो विश्वास हो चला है कि ये भभ्भड़ कवि भौंचक्के का कमाल है। लाजवाब ग़ज़ल।
    हाशमी साहब, जरा बच्चों का फ़ोन नंबर दीजिये। उन्हें बताना है कि दिन भर गल्ले में से आप शेर निकलते रहते हैं। मज़ा आ जाता है शेर पढ़कर।
    गुरप्रीत ने तो लगता ग़ज़ल की चिप लगवा ली है। भाई बाक़माल शेर और गीत हैं। बेहद खूबसूरत।
    अंत में राकेश जी का गीत, ललचाता है कि आओ भाई गीत कहो, इस का आनंद ही कुछ और होता है।
    आनंद आ गया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार आदरणीय तिलक राज कपूर साहब । पंकज जी के सुबीर संवाद ब्लॉग में मै पहली बार ही उपस्थित हुआ हूँ । आपकी रचनाएँ ओपन बुक्स ऑनलाइन में कई बार पढने का अवसर मिला था । वहाँ कुछ मुशायरों में मैने सहभागिता जनाई है । आपका स्नेह व मार्गदर्शन सदा प्राप्त होता रहे ।

      हटाएं
  4. Appreciate this post. Thank you for compiling and sharing it....FCI Recruitment 2020 of India invites application from Personal Assistant, Personal Secretaries, Managers/ AGM (Promoted from the post of Steno) & Doctors who have retired from the State/ Central Government on a Temporary & Contract Basis..

    जवाब देंहटाएं

परिवार