रूप की चतुर्दशी का त्यौहार आज मनाया जा रहा है। इस दिन सुबह से उठ कर उबटन लगा कर स्नान करने का अपना महत्व होता है। बचपन के दिन याद आते हैं जब हम सब बच्चे सुबह्र-सुबह नहाने से बचने के लिए क्या-क्या उपक्रम करते थे। बात नहाने की नहीं होती थी, बात उबटने से होने वाली रगड़ की होती थी। अब जाकर पता चला कि जीवन में चमक लाने के लिए रगड़ बहुत ज़रूरी है। जब तक घिसा नहीं जाएगा तब तक चमक नहीं आएगी। आजकल हमने अपने बच्चों को रगड़ से बचाने के पूरे इंतज़ाम किए हुए हैं, और इसीलिए ऐसा हो रहा है कि वे जीवन में पहली कठिन धूप मिलते ही मुरझा जाते हैं। आइए रूप चतुर्दशी का यह पर्व हम सब मिलकर मनाएँ और कामना करें कि दुनिया का हर इन्सान अंदर से रूपवान हो जाए, सबके अंदर की ख़ूबसूरती और निखर उठे। आमीन।
रूप की यह चतुर्दशी आइए आज कुछ अपेक्षाकृत युवा चेहरों के साथ मनाते हैं आज सुनते हैं दिगम्बर नासवा, गुरप्रीत सिंह, राजीव भरोल, अंशुल तिवारी तथा निर्मल सिद्धू की ग़ज़लें।
दिगंबर नासवा
अँधेरे कब तलक लड़ते रहेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे
जो तोड़े पेड़ से अमरूद मिल कर
दरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे
किसी के होंठ को तितली ने चूमा
किसी के गाल अब यूँ ही खिलेंगे
गए जो उस हवेली पर यकीनन
दीवारों से कई किस्से झरेंगे
समोसे, चाय, चटनी, ब्रेड पकोड़ा
न होंगे यार तो क्या खा सकेंगे
न जाना “पालिका बाज़ार” तन्हा
किसी की याद के बादल घिरेंगे
न हो तो नेट पे बैंठे ढूंढ लें फिर
पुराने यार तो यूँ ही मिलेंगे
मुड़ी सी नज़्म दो कानों के बुँदे
किसी के पर्स में कब तक छुपेंगे
अभी तो रात छज्जे पे खड़ी है
अभी जगजीत की गजलें सुनेंगे
दिगम्बर की ग़ज़लें इतनी नास्टेल्जिक होती हैं कि कभी कभी आँखों को नम कर देती हैं। यह तो पूरी ही ग़ज़ल मानों स्मृतियों के गलियारों की सैर करती हुई टहल रही है। अमरूद के बहाने से पेड़ से लमहों का गिरना और किसी हवेली में जाते ही उस हवेली की दीवारों से किस्सों का गिरना…. उफ़ बहुत ही अच्छे बिम्ब रचे हैं। अंदर तक नमी को फिर से जीवित कर देते हैं। किसी के पर्स में एक नज़्म और दो बूँदे बहुत ही कमाल का अंदाज़ है यहाँ कहने का। किसी के होंठ को तितली के चूमने से किसी के गालों का खिल उठना कमाल है। समोसे, चाय, पालिका बाज़ार से लेकर जगजीत सिंह की ग़ज़लों तक, सब कुछ जैसे किसी बीती कहानी के फिर जीवित उठने जैसा है। वाह वाह वाह।
गुरप्रीत सिंह
जो अनजाना सा डर ज़हनों में रेंगे ।
निज़ात उस से कभी हम पा सकेंगे ?
मनों में भर दिया आकाश का डर,
परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे ।
भले ही छीन लो नजरें हमारी,
मगर हम ख़्वाब तो देखा करेंगे ।
नहीं मरने का डर, बस बात ये है,
कोई कह कर गया था 'फिर मिलेंगे’
तू आए या न आए इस दफ़ा भी ,
''ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।''
हँसी के गुल तेरे अश्कों के मोती,
न जाने किस के दामन में गिरेंगे ।
वो सीने पे रखे सर सो गए हैं ,
वो उठ जाएंगे, गर हम सांस लेंगे ।
मैं इक आशिक का दिल हूँ, आप मुझको,
भला किस-किस किनारे से सिएँगे ।
हमें ये वहम ले डूबा हमारा ,
कि वो जाएगा, तो हम रोक लेंगे ।
मैंने मिसरा देते समय कहा था कि इस बार मिसरा छोटी ईता के दोष का मिसरा है। क्योंकि कहेंगे, मिलेंगे, खिलेंगे… जैसे सारे शब्दों में ध्वनि “एंगे” को हटा दिया जाएगा तो पूर्ण शब्द कह, मिल, खिल बचा रहेगा। गुरप्रीत ने उस ही बात को पकड़ कर अपनी ग़ज़ल को ईता दोष से मुक्त रखने की कमाल की युक्ति की है मतले में। ग़ज़ब, बहुत अच्छे। मनों में भर दिया आकाश का डर एक शुद्ध पॉलेटिकल शेर है, दुष्यंत की याद दिलाता हुआ। और ख़्वाब वाला अगला शेर भी वैसा ही कमाल है। फिर मिलेंगे वाला शेर तो मानों अंदर तक उतर जाता है, बहुत ही सुंदर। वो सीने पे रखे सर सो गए हैं…. उफ़ ये तो बहुत ही उस्तादाना बात कह दी गई, ग़ज़ब का शेर और क्या ही मासूमियत है मिसरा सानी में। मैं इक आशिक का दिल में भी पूरी तरह से उस्तादाना रंग है ग़ज़ब का ही शेर है । और अंत का शेर भी बहुत ही कमाल से रचा गया है। बहुत बहुत अद्भुत ग़ज़ल…. वाह वाह वाह।
राजीव भरोल
तेरा ऐ ज़िन्दगी हम साथ देंगे
कि जब तक ले सकेंगे सांस लेंगे
किसे कल की ख़बर पर हम तुम्हारा
जहां तक हो सकेगा साथ देंगे
तेरी यादों के दीपक जल उठे, अब
ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे
पपीहे तेरे दुख का गीत, बादल
सुनेंगे, देखना इक दिन सुनेंगे
ये सोचा ही नहीं हमने कि तुम बिन
अगर जीना हुआ कैसे जियेंगे
तेरे अपने ही तेरी पीठ पीछे
बताऊँ क्या तुझे क्या क्या कहेंगे
ये दिल के घाव अपनों ने दिये हैं
किसे मालूम ये कब तक भरेंगे
हम अपनी सोच के इस शोरोगुल में
सदा ए दिल भला कैसे सुनेंगे
मेरे इस ख़ुदशनासी के सफ़र में
कदम जाने कहाँ जाकर रुकेंगे
नमी ढूँढा किये हो पत्थरों में
तुम्हें राजीव सब पागल कहेंगे
राजीव ने भी मतले में अपने क़ाफ़ियों से ग़ज़ल को छोटी ईता से मुक्त कर दिया है उस पर मतला भी बहुत ही कमाल का रचा है। गिरह का शेर बिलकुल ही नए तरीक़े से कहा गया है, यह ढंग भी इस मिसरे की गिरह का हो सकता है। और पपीहे के दुख का गीत बादलों के सुनने में मिसरा सानी बहुत ख़ूबसूरत बना है। किसी के बिन जीने की कल्पना भी नहीं करने वाला शेर सुंदर बना है। एक बहुत ही बारीक सा शेर इस बीच बना है और वो है हम अपनी सोच के इस शोरोगुल में सदा ए दिल भला कैसे सुनेंगे, बहुत ही सलीक़े से बड़ी बात इस शेर में कह दी गई है। बहुत ही सुंदर। और तीखा तंज़ कसता ख़ुदशनासी वाला शेर भी कमाल है। मकते में भी बहुत सलीक़े से मिसरा सानी कहा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
अंशुल तिवारी
कहानी रात की सारी कहेंगे,
ये दीपक रात भर यूँही जलेंगे।
सियाही रात की सारी धुलेगी,
ये झरने रौशनी के जब बहेंगे।
अकेला दीप जब देगा चुनौती,
अंधेरे हाथ बस अपने मलेंगे।
ख़ुदा! इस नर्म दिल पे वार तीखे,
बता तू ही भला कब तक सहेंगे।
कभी तो चाँद बन के आओगी तुम,
कभी तो आशिक़ों के दिन फिरेंगे।
निशाने पे लगी है जान फिर भी,
क़दम अपने नहीं पीछे करेंगे।
मुहब्बत बस किताबों में बची है,
तेरे इस कौल को झूठा करेंगे।
ग़ज़ल कहने में यों तो मुश्किले हैं,
मगर कोशिश मुसलसल हम करेंगे।
किसी दिन ख़्वाब ये होगा मुक़म्मल,
ख़ुशी के फूल घर-घर में खिलेंगे।
सुबह की इंतजारी शाम से है,
कल उनसे हम बहाने से मिलेंगे।
अगर तुम हाथ थामे चल पड़ोगी,
नहीं हम ज़िन्दगी में फिर गिरेंगे।
ज़रा तुम छेड़ दो तो बात ही क्या?
ये नदिया, पेड़, भी बातें करेंगे।
तुम्हें देखा, खिले कुछ फूल दिल में,
जो मिलने आओ... बागीचे खिलेंगे।
तुम अपनी राह चलते जाओ प्यारे,
खड़े हर मोड़ पर हम ही मिलेंगे।
मुहब्बत का मज़ा है डूबने में,
गधे हैं क्या, जो हम इससे तरेंगे?
सुहानी शाम बन बैठो कभी तो,
सितारे माँग में उजले जड़ेंगे।
डरे हैं जब से शादी हो गई है,
वगरना, हम किसी से क्या डरेंगे??
मतला और उसके बाद के दोनों शेरदीपावली के पर्व को पूरा चित्र प्रस्तुस करते हुए कहे गए हैं। वही भावना जिस भावना से यह त्यौहार मनाया जाता है। फिर उसके बाद एकदम इश्क़ आ जाता है नर्म दिल पर तीखे वार और किसी का चाँद बन कर आ जाने की कामना, यह इश्क़िया कल्पना से रँगे हुए शेर हैं। और उसके बाद के दो शेर इश्क़ के जुनून में बदल जाने के शेर हैं कदम नहीं पीछे करने की बात हो या किताबों को झूठा साबित करने की बात हो, यह बात जुनून में ही की जा सकती है, बहुत सुंदर।ग़ज़ल कहने में मुश्किल और कोशिश की बात बहुत सुंदर है। आगे के पाँच शेर जो इश्क़ के वर्तमान पर कहे गए हैं बहुत अच्छे हैं जब हम इश्क़ में होते हैं तब यही सब होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
निर्मल सिद्धू
दिवाली के दिये घर - घर सजेंगे
ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे
चलेंगे आज फुलझड़ियां पटाख़े
मचेगी धूम दिल सबके हिलेंगे
मुहब्बत मे हुए दीवाने हम सब
गले इक दूजे के फिर से मिलेंगे
उजाला गर मिले तुहफ़े में सबको
ग़मों के साये ना ज़िन्दा रहेंगे
उजाला इल्म का है सबसे बेहतर
ये जो फैले अंधेरे सब मिटेंगे
हों सारे झूमते मस्ती में तो फिर
क़दम ' निर्मल ' के भी ना टिक सकेंगे
मतले के साथ पहला शेर दीवाली के पर्व को पूरी तरह से चित्रित कर रहा है। एक दूसरे के गले मिलने के लिए ज़रूरी है कि हम सब एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाएँ, एक दूसरे के प्यार में पड़ जाएँ। उजाला एक ऐसी शै है जो अगर हम एक दूसरे को तोहफ़े में दे दें तो कहीं किसी के जीवन में अँधेरा ही न रहे और सबसे अच्छा उजाला होता है इल्म का उजाला। आइए इस दीवापली हम सब एक दूसरे को इल्म के उजाले से ही रौशन करें। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
तो यह आज के पाँचों शायर हैं, जो मुशायरे को आगे बढ़ा रहे हैं। आप इन पाँचों को खुलकर दाद दीजिए, कल हम मिलते हैं दीपावली के अंक के साथ।
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जवाब देंहटाएंकोई जमाना था साहब कि क्रिकेट में विश्वनाथ गावस्कर कपिल गांगुली सचिन की तूती बोलती थी अब जो युवा खिलाड़ी आये हैं इनके अंदाज़ और साहस ने सबको चौंका दिया है ये ही हाल शायरी के क्षेत्र में हुआ है, युवा कुछ इस अंदाज़ से लिख रहे हैं कि उनकी सोच पर हैरत होती है , नए लफ्ज़ नई सोच और नए अंदाज़ ने विस्मित कर दिया है। ये बात आज की तरही में एक बार फिर से सिद्ध हो गयी। दिगंबर , राजीव अंशुल और निर्मल ने तो कमाल किया ही है लेकिन गुरप्रीत "मैन ऑफ द मैच "का अवार्ड ले गए हैं।
जवाब देंहटाएंतिरछी टोपी वाले दिगंबर हमारे पुराने साथी हैं और इनकी ग़ज़लें मुझे शुरू से ही पसंद हैं ,इनका अपना एक अंदाज़ है जो लाजवाब है। तरही ग़ज़ल के ये शेर 'जो तोड़े पेड़ से --', किसी के होंठ को --', और 'मुड़ी सी नज़्म ---' तो बस --उफ्फ यू माँ हैं।
राजीव जी की ग़ज़ल के 'पपीहे तेरे दुःख का गीत --', और नमी ढूँढा किये हो ---' ग़ज़ब हैं। पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन शेरों से सजी हुई है -दिली दाद क़बूलें।
अंशुल जी ने अपनी ग़ज़ल में इतने मुक्तलिफ़ रंग भरे हैं की हर शेर पर वाह निकलती है -मुहब्बत , रौशनी , फूल ,ज़िन्दगी , इंतज़ार के रंगों के अलावा जो उन्होंने ख़ुशी और हास्य के रंग जड़े हैं वो अद्भुत हैं। वाह अंशुल जी वाह। जियो।
निर्मल जी भी हमारे ब्लॉग के पुराने साथी हैं और क्या खूब लिखते हैं। दिवाली पर मुसलसल ग़ज़ल कह कर उन्होंने अपनी लेखनी का लोहा एक बार फिर मनवाया है। दाद कबूल करें हुज़ूर।
अब बात गुरप्रीत की -कहाँ से शुरू करें और कौनसा शेर कोट करें ? भाई ग़ज़ब किया है। कहाँ से लाये हो ऐसी नायब सोच ? अहा !!! विराट कोहली को पहली बाल पे छक्का मारते हुए देखने की फीलिंग आ रही है। दिल बल्लियों उछल है।'नहीं मरने का डर---', और 'वो सीने पे रखे --' तो जी जानलेवा शेर हैं। बल्ले बल्ले बाउजी बैजा बैजा करा दित्ती तुसी -ज्यूंदे रवो। आपको और पढ़ने का दिल कर रहा है , कहाँ मिलेंगी आपकी ग़ज़लें ? ढेरो दाद की टोकरियां ले जाओ जी।
नीरज सर जी , बच्चे की जान लेंगे क्या । अभी तो हमें ढंग से बल्ला भी पकड़ना नहीं आता । हाँ आप जैसे धुरंदरों के साथ खेलने का मौका मिल रहा है , यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है । ग़ज़ल को दिल खोल कर दाद देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया । ये आपकी हौसला अफज़ाई ही है कि जिससे अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है । ग़ज़ल , , पंजाबी में ही कहता हूँ ज़्यादातर । पर इसी ब्लाग पर ग़ज़ल कहना सीखा है तो इस मुशायरे में हिस्सा लेना अपना फ़र्ज़ और हक़ दोनों समझता हूँ । गुरु जी का शुक्रिया कि वो इन्हें मुशायरे में स्थान दे देते हैं ।
हटाएंयक़ीनन नए बैट्समेन बहुत ख़ूबसूरत बैटिंग कर रहे हैं|
जवाब देंहटाएंभाई दिगंबर नासवा ग़ज़ल के दिगंबर तो हैं ही ऊपर से वे नोस्टेल्जिया के पैग़म्बर भी हैं|
दरख्तों से लम्हे गिरा रहे हैं दीवारों से किस्से झारा रहे है, सलाम |
गुरप्रीत जी
अनजाना डर, आकाश का डर उसके बावजूद ख़्वाब देखने की जुर्रत! वाह वाह वाह और इंतज़ार का सब्र , और फिर आशिक़ के दिल की सिलाई!
कमाल कमाल कमाल ! मुकम्मिल शाइरी! ज़िन्दाबाद!
उत्साहवर्धन के लिए आपका बेहद शुक्रिया द्विजेंद्र द्विज जी ।
हटाएंभाई राजीव भरोल जी ग़ज़ल में जादू बुनते हैं|
जवाब देंहटाएंमतला, पपीहे का गीत और फिर बादल सुनेंगे! जादू है भाई!
और सोच के शोरोगुल में सदा-ए-दिल न सुन पाने की तकलीफ! ज़िन्दाबाद!
खुदशनासी का सफ़र तवील है अनंत है , तय हो जाने पर मुक्ति है मोक्ष है ! वाह वाह वाह
पत्थरों में नमी ढूँढना दीवानापन है इसे सलाम!
सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंअंशुल तिवारी साहिब की तवील ग़ज़ल वाक़ई रोशनी का झरना है|
जवाब देंहटाएंहर शेर ख़ूबसूरत!!!
'अभी तुम इश्क़ में हो' और उससे आगे की स्टेज की ज्ञानप्राप्ति भी!!!! तम सो मा ज्योतिर्गमय ही तो है!!
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई!!!
भाई निर्मल सिद्धू साहिब के यहाँ भी उजाला ही उजाला है |
जवाब देंहटाएंमुहब्बत , इल्म और तोहफ़ों का उजाला !!!
यही तो दरकार है भाई जी इस अमावस में !!!
बधाई ख़ूबसूरत ग़ज़ल क लिए
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-11-2018) को "दीप खुशियों के जलाओ" (चर्चा अंक-3148) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
दिगम्बर नासवा जी का मतला:
जवाब देंहटाएंअँधेरे कब तलक लड़ते रहेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे
बहुत खूब।
गुरप्रीत सिंह ने सभी यूं तो शेर कमाल के कहे हैं मगर ये शेर :
मनों में भर दिया आकाश का डर,
परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे ।
भले ही छीन लो नजरें हमारी,
मगर हम ख़्वाब तो देखा करेंगे ।
नहीं मरने का डर, बस बात ये है,
कोई कह कर गया था 'फिर मिलेंगे’
खास तौर पर पसंद आये।
राजीव भरोल जी ने भी एक से एक वज़नी शेर कहे हैं :
ये सोचा ही नहीं हमने कि तुम बिन
अगर जीना हुआ कैसे जियेंगे
तेरे अपने ही तेरी पीठ पीछे
बताऊँ क्या तुझे क्या क्या कहेंगे
ये दिल के घाव अपनों ने दिये हैं
किसे मालूम ये कब तक भरेंगे
हम अपनी सोच के इस शोरोगुल में
सदा ए दिल भला कैसे सुनेंगे
खास तौर पर पसंद आये ।
अंशुल तिवारी जी ने भी एक से एक कमाल शेर कहे हैं:
अकेला दीप जब देगा चुनौती,
अंधेरे हाथ बस अपने मलेंगे।
ख़ुदा! इस नर्म दिल पे वार तीखे,
बता तू ही भला कब तक सहेंगे।
कभी तो चाँद बन के आओगी तुम,
कभी तो आशिक़ों के दिन फिरेंगे।
खास तौर पर ये पसंद आये।
निर्मल सिद्धू जी का भी ये शेर बहुत खूब है:
मुहब्बत मे हुए दीवाने हम सब
गले इक दूजे के फिर से मिलेंगे ।
हमारी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए गुरु जी का बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी तो उस्ताद शायर हैं । खूबसरत मतले से ग़ज़ल की शुरुआत की है उन्होंने। रोशनी और अंधेरे की लड़ाई में आखिरकार हार अंधेरे की ही होगी । पेड़ों से लम्हे गिरना , दीवारों से किस्से झरना और पर्स में नज़्म और बुंदे छिपाना वाह पुरानी यादें । और फ़िर जगजीत की गजलों वाला शेर क्या कमाल की ग़ज़ल है सारी की सारी ।
राजीव जी की ग़ज़ल तो दिलो दिमाग पर छा गई है । क्या ही शानदार मतला है । 10 शेर और सभी एक से बढ़कर एक । गिरह भी बहुत ही दिलकश अंदाज़ में लगाई है ।
पपीहे के दुख का गीत , किसी अपने के बिन जीने की सोचना , सोच के शोर में दिल की आवाज़ न सुन पाना और फ़िर अंत में मतला तो क्या ही कहने । वाह वाह ।
अंशुल जी ने लम्बी ग़ज़ल कही है लेकिन लम्बी होने के बावजूद ग़ज़ल बहुत दमदार कही है । दीपक जलकर रात की कहानी कह रहे हैं ।
ख़ुदा! इस नर्म दिल पे वार तीखे,
बता तू ही भला कब तक सहेंगे।
कभी तो चाँद बन के आओगी तुम,
कभी तो आशिक़ों के दिन फिरेंगे।
ग़ज़ल कहने में यों तो मुश्किले हैं,
मगर कोशिश मुसलसल हम करेंगे।
सुहानी शाम बन बैठो कभी तो,
सितारे माँग में उजले जड़ेंगे।
सारी ग़ज़ल खूबसरत है , ये अशआर तो बहुत पसंद आए । और अंत में होटों पे मुस्कुराहट छोड़ जाता शेर । बहुत बढ़िया ।
और अंत निर्मल सिध्धू जी जैसे माहिर ग़ज़लगो की खूबसरत ग़ज़ल । दिवाली के जश्न के साथ साथ मुहब्बत का संदेश देती इस शानदार ग़ज़ल के लिए उनको बहुत बहुत बधाई
दिगंबर नासवा जी ने दीपोत्सव की मूल भावना से प्रारम्भ कर बड़ी ख़ूबसूरती से वक़्त के दरखत से लमहों के गिरने का ख़ूबसूरत प्रयोग किया।
जवाब देंहटाएंकिसी के होंठ को तितली ने चूमा
किसी के गाल अब यूँ ही खिलेंगे
पढ़कर सोम ठाकुर जी की पंक्तियाँ "फूल कुछ और खिल गया, शायद; गरम होंठों ने छू लिया होगा।" की याद आ गयी।
अभी तो रात छज्जे पे खड़ी है, अभी जगजीत की गजलें सुनेंगे बहुत सुंदर बन पड़ा है।
वाह-वाह, और बधाई इस ख़ूबसूरत यादों में डूबी ग़ज़ल के लिए।
गुरप्रीत सिंह ने उस्तादाना काम किया है मतले में।
मनों में भर दिया आकाश का डर, परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे को गुरुवर रविंद्र नाथ टैगोर की गीतांजलि में कल्पित भयमुक्त वातावरण से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि हम कहाँ आ पहुँचे हैं।
भले ही छीन लो नजरें हमारी, मगर हम ख़्वाब तो देखा करेंगे ऐक लाजवाब चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।
नहीं मरने का डर, बस बात ये है, कोई कह कर गया था 'फिर मिलेंगे’ में मिस्र ए सानी विवशता की इंतहा पर खड़ा है। ख़ूबसूरती यह कि हर शेर परिपूर्ण है। वाह-वाह, बधाई।
राजीव भरोल ने मत्ले में ईंता दोष की सम्भावना को बड़ी ख़ूबसूरती से दूर किया है। राजीव परिपक्व शायर हो चुके हैं और उनका हर शेर इस बात की पुष्टि करता है। बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है। वाह-वाह, बधाई।
अंशुल तिवारी तो मेरी तरह मालगाड़ी लेकर निकले हैं, बस डिब्बे गिनते जाओ। अच्छे शेर कहे हैं।वाह-वाह, बधाई।
निर्मल सिद्धू जी ने बड़ी ख़ूबसूरती से अवसरानुकूल दीपोत्सव के शेर कहे हैं और दीपावली जीवंत प्रस्तुत की है। वाह-वाह, बधाई।
वाह क्या खूब!
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी बहुत बढ़िया।
दीवारों से किस्से झरना ... नज़्म और कान के बुँदे .... बहुत खूबसूरत मिसरे। मतला बहुत अच्छा है. दाद.
गुरप्रीत जी,
बस कमाल ही कर दिया है.
परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे ...
मगर हम खाब तो देखा करेंगे ....
तेरे अश्कों के मोती ...
मैं इस आशिक़ का दिल हूँ ..
वो उठ जाएंगे गर हम सांस लेंगे
हमें ये वहम ले डूबा हमारा ..
गजब के शेर. दाद!!!
अंशुल:
लम्बी ग़ज़ल और दमदार सभी शेर पसंद आये
मतला बढ़िया है. नरम दिल पर वार तीखे .... कभी तो आशिकों के दिन फ़िरेंगे ... खास तौर पर पसंद आये
निर्मल सिद्धू जी:
बढ़िया मतला .. उजाला इल्म का है सबसे बेहतर .. वाह क्या मिसरा है बढ़िया शेर . दाद कबूल करें
कमाल के शेर हैं राजीव जी ... हर शेर पे दाद निकलती है ... पके हुए शेर शायद ऐसे को कहते हैं
जवाब देंहटाएंपपीहे तेरे दुख का गीत, बादल
सुनेंगे, देखना इक दिन सुनेंगे
ये सोचा ही नहीं हमने कि तुम बिन
अगर जीना हुआ कैसे जियेंगे ... उफ़्फ़ ... जान ले गया ये शेर
तेरे अपने ही तेरी पीठ पीछे
बताऊँ क्या तुझे क्या क्या कहेंगे ... सच है आज का जो शेर में ढाल दिया आपने ... ग़ज़ब और कमाल ...
पूरी ग़ज़ल माहोल बना रही है ...
गुरप्रीत जी ने तो मतले का शेर में ही धमाका कर दिया ... उसके बाद लगातार ये शेर ...
जवाब देंहटाएंमनों में भर दिया आकाश का डर,
परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे ।
भले ही छीन लो नजरें हमारी,
मगर हम ख़्वाब तो देखा करेंगे ...
दोनों शेर आज के माहिर पे सटीक टीका ... ग़ज़लें वर्तमान का आइना भी होती हैं ...
वो सीने पे ...
में इक आशिक़ ...
ज़बरदस्त शेर ... प्रेम के रंग में पूरी तरह दूबे ... ग़ज़ब के शेर ...
दिल लूट लिया इन दोनों शेरों ने भी ...
गुरप्रीत जी बधाई बधाई बधाई इस ग़ज़ल की ...
# Digambar Naswaji:
जवाब देंहटाएंगए जो उस हवेली पर यकीनन
दीवारों से कई किस्से झरेंगे
बहुत उम्दा अश्आर निकाले है.... माज़ी के झरोखे से। बधाई, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
# गुरप्रीत सिंह
जवाब देंहटाएंजो अनजाना सा डर ज़हनों में रेंगे ।
निज़ात उस से कभी हम पा सकेंगे ?
मनों में भर दिया आकाश का डर,
परिंदे अब भला कैसे उड़ेंगे ।
बहुत ख़ूब, बहुत गहराई में जा कर यें मोती निकाले है आपने।
आख़री शेर भी ग़ज़ब है।
दीपोत्सव की शुभकामनाएं
#राजीव भरोल
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूब, सफर जारी रहे👌 आप ख़ुद को और ज़माने को ख़ूब पहचान रहै है।
हम अपनी सोच के इस शोरोगुल में
सदा ए दिल भला कैसे सुनेंगे
मेरे इस ख़ुदशनासी के सफ़र में
कदम जाने कहाँ जाकर रुकेंगे
नमी ढूँढा किये हो पत्थरों में
तुम्हें राजीव सब पागल कहेंगे
# अंशुल तिवारी
जवाब देंहटाएंरोमांटिक शायरी वाक़ई 'अभी तुम इश्क़ में हो'
ज़रा तुम छेड़ दो तो बात ही क्या?
ये नदिया, पेड़, भी बातें करेंगे।
तुम्हें देखा, खिले कुछ फूल दिल में,
जो मिलने आओ... बागीचे खिलेंगे।
("हसीं 'पर्यावरण' भी ख़ूब होगा
मिलन से ग़ुंचे गुल बन कर खिलेंगे")
# निर्मल सिद्धू
जवाब देंहटाएंउजाला इल्म का है सबसे बेहतर
ये जो फैले अंधेरे सब मिटेंगे
हासिले ग़ज़ल शेर।
दीपो के पर्व पर हार्दिक बधाई।
लड़ी की तरह अंशुल जी के शेर। शूट ही कमाल कर रहे हैं ।।.
जवाब देंहटाएंअकेला दीप जब देगा चुनौती,
अंधेरे हाथ बस अपने मलेंगे। ... आशा और उम्मीद लिए ग़ज़ब के शेर कहे हैं अंशुल जो ने ...
अकेला दीप जब देगा चुनौती,
अंधेरे हाथ बस अपने मलेंगे।
तुमने देखा ... और मुहब्बत वाले शेर सच में इश्क़ का बयान कर रहे हैं और आख़िर शेर तो इश्क़ की अंतिम सीडी का बखान कर रहे हैं ... शादी की दास्ताँ ... बहुत ख़ूब ... बहुत बधाई ...
निर्मल जी ने हर शेर दिवाली के रंग में डूब कर लिखा है और लाजवाब लिखा है ...
जवाब देंहटाएंदीपावली की बहुत बधाई इस मंच को ... सभी के सीप यूँ ही जलते रहें ...
ग़ज़लों का बेहतरीन गुलदस्ता जैसे हाथ आ गया हो ,
जवाब देंहटाएंवो जो बिछड़ा था बरसों से मुसाफिर आ गया है।
सुबीर संवाद ग़ज़ल का मेला है। बधाई !
सत्श्रीअकालजीओ
satshriakaljio.blogspot.com
वाह वाह!! क्या उजियारा फैला है..
जवाब देंहटाएंदिगंबर भैया ने क्या खूबसूरत सैर कराया. अमरूद के पेड़, झरते किस्से, समोसे चटनी, पर्स, रात छज्जे... बहुत खूब.
गुरप्रीत सिंह जी, के अशआर दिलेरी की बानगी है.
जवाब देंहटाएंऔर ये शेर तो क़ाबिले गौर है- वो सीने पे रखे सर सो गए हैं ,
बहुत बहुत बधाई गुरप्रीत !
तेरी यादों के दीपक जल उठे, अब
जवाब देंहटाएंये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे ... भई वाह राजीव जी.
आगे ये शेर भी खूब हुये हैं- सोच के इस शोरो गुल में, मेरे इस ख़ुदशनासी के सफ़र में . बहुत बहुत बधाई!
अंशुल जी को सुना, बहुत सुकून मिला इस जमीन पर बढ़िया बढ़िया शेर कहे हैं. मतला बड़ा अर्थपूर्ण है. बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंनिर्मल सिद्धू जी की गजल पूरी तरह दिवाली को शोभायमान कर रही है. उजाला इल्म का है सबसे बेहतर
जवाब देंहटाएंये जो फैले अंधेरे सब मिटेंगे .. वाह वाह! सुंदर!
इस ब्लॉग की पोस्टस की भूमिका में त्यौहारों से जुड़ी रोचक जानकारियां मिलती हैं। जिनके बारे में या तो भ्रांतियाँ होती हैं या पहले से कुछ मालूम नही होता। मुझे बहुत अच्छी लगती हैं ये जानकारियाँ और इनका इंतज़ार रहता है।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की बात करें तो बार बार सारी ग़ज़लें पढ़ी। बहुत ही ख़ूबसूरती से लगायी गयी गिरहें, खूबसूरत बिम्ब हर शेर पर कंई कंई बार दाद देने को दिल करता है। सभी शायरों को बहुत सम्मान के साथ ढ़ेरों दाद।