सोमवार, 5 नवंबर 2018

आज धनतेरस है, आज से दीपावली का त्यौहार प्रारंभ होता है तो आज हम भी श्री राकेश खंडेलवाल जी, श्री महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश, श्री अश्विनी रमेश, श्री मन्सूर अली हाशमी और सुलभ जायसवाल के साथ प्रारंभ करते हैँ दीपावली के मुशायरे का।

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एक बार फिर से दीपावली को त्यौहार सामने आ गया है। आज धन तेरस है, जो वास्तव में अच्छे स्वास्थ्य को लेकर मनाया जाने वाला पर्व है। कालांतर में इसे धनवंतरी से धन में बदलदिया गया। हमारे पूर्वज तो कहते भी  थे कि पहला सुख निरोगी काया। आइए आज इस आरोग्य दिवस पर मिल कर प्रार्थना करते हैं कि विश्व में सभी स्वस्थ रहें, किसी को कोई बीमारी न हो, कष्ट न हो। असल में हम ने तन मन धन में से पहले दो को तो लगभग छोड़ ही दिया है और हम इस समय पीछे पड़ गए हैं तीसरे के, अर्थात धन के। और यह जो तीसरा है यह हमारे पहले दोनो को नष्ट कर रहा है। इसलिए ध्रन तेरस पर हम अच्छे स्वास्थय की कामना करें।

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deepawali (16)[4]ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे deepawali (16)

इस बार मिसरा देने में ज़रा देर हो गई थी उसके बाद भी आप सब ने मेरे कहे का मान रखा और अपनी गज़ल़ें भेजीं, आप सब का यही प्रेम मुझे बार-बार अंदर तक छू जाता है। यह जो भावना है कि यह ब्लॉग हम सब को है अपना है, बस यही बनी रहे। आज धनतेरस है, आज से दीपावली का त्यौहार प्रारंभ होता है तो आज हम भी श्री राकेश खंडेलवाल जी, श्री महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश, श्री अश्विनी रमेश, श्री मन्सूर अली हाशमी और सुलभ जायसवाल के साथ प्रारंभ करते हैँ दीपावली के मुशायरे का।

deepawali (5)

rakesh khandelwal ji

deepawali

राकेश खंडेलवाल

deepawali (1)[4]

नहीं तरही में हम शिरकत करेंगे
ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे

अगरचे कह दिए हमने जो मिसरे
तो नीरज हाथ फिर अपने मलेंगे

हुआ जो ज़िक्र ग़ज़लों का सभा में
सभी बस इक तिलक का नाम लेंगे

सुलभ है ये ग़ज़ल सौरभ का कहना
तभी भकभौं भी उनका साथ देंगे

है आश्विनमास  की गहरी अमावस
यहीं पर स्वाति से मोती  झरेंगे

नकुल, गुरप्रीत, द्विज सब कह रहे हैं
दिगंबर नाम अब रोशन करेंगे

खलिश तो लिख चुके दस बीस गज़लें
कहें, हम गिनतियाँ कब तक करेंगे

सुमित्रा और नैयर, हाशमी सब
नए अंशआर को अंजाम देंगे

खड़े हम दूर से देखा करेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

deepawali (3)

राकेश जी हर बार पूरे परिवार को संबोधित करते हुए अपनी ग़ज़ल कहते हैं। इस बार भी उन्होंने पूरे ब्लॉग परिवार को समेट लिया है। इस प्रकार की रचना कहना बहुत मुश्किल काम होता है, जिसमें नामों को रचना में पिरोना हो। राकेश जी गीत सम्राट हैं, इसलिए उनके लिए इस प्रकार के काम बहुत आसान होते हैं। इस प्रकार की रचनाओं से आपसी प्रेम और सौहार्द्र भी बढ़ता है, एक प्रकार का बंधन एक दूसरे के साथ महसूस होता है। हम लोग भले ही मिले नहीं हैं लेकिन ऐसा लगता ही नहीं है कि हम मिले नहीं हैं। राकेश जी इस ब्लॉग परिवार के प्रारंभ से ही यहाँ जुड़े हैं, तथा इस तरही मुशायरे को चलायमान रखने में उनकी सबसे अधिक प्रेरणा होती है। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे में उनकी उपस्थिति हम सब के लिए आनंद का विषय होती है। आज उनकी यह ग़ज़ल और अगले अंकों में उनके गीत भी हम सुनेंगे। फिलहाल तो आज की इस ग़ज़ल के लिए वाह वाह वाह ।

deepawali (5)[3]

MAHESH CHANDRA GUPT KHALISH

deepawali[3]

महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’

deepawali (1)[8]

ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे
जले हम किसलिए, मन में कहेंगे

भले कुछ देर को हम टिमटिमाए
मगर दिल के अंधेरे तो रहेंगे

जो दिल की ले गए खुशियाँ हैं सारी
न हम से वो अंधेरे मिट सकेंगे

हुआ माहौल कुछ संगीन सा है
भला ऐसे में दीपक क्या करेंगे

जला कर क्यों हमें ख़ुश हो रहे हो
हमारी लौ में परवाने मरेंगे

तुम्हें कोई नहीं कुछ भी कहेगा
मगर सब दोष हम पर ही मढ़ेंगे

चुका है तेल, बाती भी फुंकी  है
ख़लिश मरना था, लो हम भी मरेंगे.

deepawali (3)[3]

मतले के साथ ही ग़ज़ल बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से प्रारंभ होती है। एक ओर सकारात्मक पक्ष है तो दूसरी ओर नकारात्मक भी है। जो दिल के ले गए खुशियाँ हैं सारी में अंधेरों के कायम रहने की बात है । जला कर क्यों हमें खुश हो रहे हो शेर में मिसरा सानी में उस आग में परवानों के बहाने गहरी बात कहने का प्रयास किया गया। यह प्रयास शेर को एक बिलकुल ही अलग अर्थ प्रदान कर रहा है। चुका है तेल बाती भी फुंकी है में अंतिम दृश्य को अलग प्रकार के बिम्ब से दिखाने की कोशिश की गई है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali (5)[5]

ashwini ramesh ji

deepawali[3] 

अश्विनी रमेश

deepawali (1)[12] 

ये दीपक रात भर यूं ही जलेंगे
अंधेरे अब उजाले   में   ढलेंगे

अजब यूं रात दुल्हन सी सजेगी
दिवे जब रात भर उजले जलेंगे

सभी के ज़हन से नफ़रत मिटा कर
उजाला प्यार का बिखरा चलेंगे

अंधेरा सब के अंदर का मिटाने
ये दीपक प्यार के हर सू जलेंगे

मनेगी अब के दीवाली अलग कुछ
पटाखे जब बहुत कम ही चलेंगे

रिवायत इस दफा ऐसी चलाओ
गले लग नाच गाते  सब मिलेंगे

ये महफ़िल यूं सदा रोशन रहेगी
मिटाकर फासले जब हम चलेंगे

deepawali (3)[5]

पूरी तरह से यह ग़ज़ल दीपावली के पर्व को समर्पित है। हर शेर में अंधेरे से लड़ने की कामना की गई है और उस कामना में उजाले के लिए दीप जलाया गया है।सभी के ज़हन से नफरत मिटा कर प्यार के उजाले को हर तरफ़ बिखरा देने की जो कामना की गई है, वह काश सच हो जाए। अंदर के अंधेरे को मिटाने के लिए प्यार के दीपक हर सू जलाने की जो बात कही गई है वह बात हम सभी को समझने की आवश्यकता है। हम सब को समझना होगा कि प्यार से ही हर अंधेरा मिटाया जा सकता है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल वाह वाह वाह।

deepawali (5)[7]

sulabh jaiswal

deepawali[3] 

सुलभ जायसवाल

deepawali (1)[12]

अंधेरे रात भर थर थर करेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

तुम्हारे बिन कभी हम चल सकेंगे
तुम्हारे बिन कदम कैसे उठेंगे
अभी कुछ दिन सहारा हम न देंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

सिपाही चुप खड़ा है सरहदों पर
बसेरा मौन का है परबतों पर
मगर जुगनु को लड़ना है लड़ेंगे
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

सुहागिन एक हर दम साथ रहती
जो माथे की लकीरों को है पढ़ती
अकेला छोड़ उसको जी सकेंगे?
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे

deepawali (3)[7]

गीत पर कुछ भी कहने से पहले सुलभ का यह संदेश -इस वक्त पूर्णिय शहर के एक अस्पताल के सुरक्षित कक्ष में लेटा हूं. दहीना (bhojpuri shabd) पैर हिलाने मे असमर्थ. कल 24 अक्टूबर को ऑपरेशन होना है. आज दोपहर अचानक से स्मार्ट phone के स्क्रीन पर यह मिसरा आया, जाने क्यूँ यह गीतों में ढलना चाह रहा है। गीत के बारे में कुछ भी कहने से पूर्व हम सब की ओर से सुलभ को आज आरोग्य दिवस पर अच्छे स्वास्थ्य की मंगल कामनाएँ। गीत बहुत अच्छा बना है। अलग तरह के भावों को लेकर छंद बनाए है। सरहद पर खड़े सिपाही से लेकर सुहागिन तक सभी को अपने छंद में समेटा है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।

deepawali (5)[7]

Mansoor ali Hashmi

deepawali[3] 

मन्सूर अली हाश्मी

deepawali (1)[12]
 

सियासत में हज़ारों सुख सहेंगे
ज़बाँ लेकिन न अपनी हम सिलेंगे

शबे तारीक से लड़ने की ख़ातिर
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

नही आती बनाना 'चाय' तो क्या
'पकौड़े' दोस्तों हम तो तलेंगे।

फिर अच्छे दिन की आमद हो रही है
अति ही शिघ्र गल बहिया करेंगे।

ज़रा फुर्सत मिले तो देख लेना
हमारे 'लाख पन्द्रह' कब मिलेंगे!

हुई आचार की संहिता जारी
अभी छुपकर ही हम तुम से मिलेंगे

बग़ावत अबकि तोतों ने भी कर दी
कहा मालिक का बोला न रटेंगे

है पछतावा तो नाकरदा गुनाह का
मगर मीटू से कैसे हम बचेंगे

कोई तो मसलहत होगी कि चुप है
'रफेली डील' में हम न पड़ेंगे!

सियासी भेद हम सारे भुलाकर
तरक़्क़ी ही की अब बातें करेंगे।

deepawali (3)[9]

राजनैतिक व्यंग्य करने में हाशमी जी का कोई सानी नहीं है। अपने आस पास के पूरे परिदृश्य का अपने शेरों में समेट लिया है उन्होंने। चाय से लेकर पकौड़े तक और अच्छे दिन से लेकर पन्द्रह लाख तक और मीटू तक हर विषय को अपने शेर में जगह देने की सफल को​शिश की है उन्होंने। कुछ शेर तो अंदर तक गुदगुदाते हुए गुज़रते हैं। बग़ावत अब कि तोतों ने भी कर दी में बहुत तीखा व्यंग्य है। रफेली डील से लेकर प्रदेश में चुनावों की आचार संहिता तक सब कुछ समेटा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह। 

deepawali (5)[7]

तो यह आज के पाँचों शायर हैं, जो मुशायरे का आग़ाज़ कर रहे हैं। आपकी ज़िम्मेदारी तो ज़ाहिर सी बात है कि वही ​है कि कि आप अच्छे शेरों पर वाह वाह करें, हौसला अफ़ज़ाई करें। तो मन से दाद दीजिए हम लिते हैं अगले अंक में।

shub-deepavali

28 टिप्‍पणियां:

  1. अभी तो बस हजिरी है, शाम को विस्तार सहित उपस्थित होता हूँ. बहरहाल आनंद आ गया.

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  3. इस ब्लॉग से जुड़े रचनाकार इतनी विलक्षण प्रतिभा के हैं कि हमें तो अब यहाँ कुछ भी पोस्ट करते हुए डर लगता है। राकेश जी के चरणों की धूल भी हमसे लाख गुणा अच्छी है , जिस अदा से उन्होंने ब्लॉग के रचनाकारों को अपनी रचना में पिरोया है उसकी प्रशंशा शब्दों में नहीं की जा सकती इसके लिए तो उन्हें भारत आने पर बादाम का हलुआ ही खिलाया जा सकता है।
    महेंद्र भाई, अश्विनी भाई और सुलभ तो जाने माने रचनाकार हैं इनकी रचनाओं पर मुझ सा नौसीखिया क्या टिपण्णी करेगा। महेंद्र जी के जला कर क्यों हमें खुश ---, रमेश जी के रिवायत इस दफा ऐसी चलाओ ----और सुलभ जी के सुहागिन एक हरदम साथ रहती बंध पर -मेरा फर्शी सलाम। अब बात मंसूर मियां की तो भाई ऐसा दिलदार शख्श दूसरा नहीं देखा ,जब वो अपने लफ़्ज़ों की जूतियां भिगो भिगो के मारते हैं तो पिटने वाला न हंसने लायक रहता है और न रोने लायक। मंसूर भाई जो भी तुम खुदा की कसम लाजवाब हो.

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    1. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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    2. शुक्रिया नीरज जी, हौसला अफज़ाई के लिये। इस महफिल में जगह मिलना बाइसे फ़ख़्र है। आप, पंकज जी, तिलक जी, राकेश जी वग़ैरह की नज़रों से कोई कलाम गुज़रेगा यह ख़्याल ही ये ज़िम्मेदारी आयद कर देता है कि कुछ अर्थयुक्त बातें ही लिखी जाऐ वरना विचार तो बड़े ऊलजलूल कि़स्म के ज़हन में आते है। फिर भी पंकज जी गाड़ी को पटरी से उतरने से बचा लेते है अक्सर!

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  4. वाह वाह..
    राकेश जी अपने अलग अंदाज़ में हैं. "... लिख चुके दस बीस ग़ज़लें" से मुझे द्विज जी की याद आ रही है. इस जमीन पर दस बीस ग़ज़लें कहना उनके बाएं हाथ का काम होगा।
    ख़लिश जी का मतला बहुत पसंद आया. दीपक सोच रहे हैं हम जले क्यों? वाह. बढ़िया ग़ज़ल.
    रमेश जी की ग़ज़ल भी पसंद आई. मतला बहुत अच्छा लगा. सादगी भरा.
    सुलभ जी का मतला क्या बात है.. "अँधेरे रात भर थर थर करेंगे "..बहुत बढ़िया गिरह।
    हाश्मी जी हमेशा की तरह सटीक, सामयिक और लाजवाब। बहुत बढ़िया।

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  5. आज ही धनतेरस के दिन हम अस्पताल से घर वापसी कर रहे हैं. आहा, कितना सुखद पल है !
    सभी अपने शाईरों से आज यहाँ मिलकर अति प्रसन्नता हुई.
    आदरणीय राकेश जी, हाशमी जी, ख़लिश जी, रमेश जी
    क्या खूब दीपावली का माहौल बनाया आपने.
    बहुत बहुत बधाई!!

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    1. भाई मेरी बाईं बाजू का पलस्तर भी अभी दो दिन पहले मैंने ख़ुद ही काट फ़ेंका है। 45 दिन की कैद से छूटा हूँ।
      स्वस्थ हो कर लौटने के लिए धनतेरस पर और ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

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    2. सुलभ जी, आपकी तबियत के बारे में जानकर फिक्र हुई। Get Well Soon.

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    3. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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  6. दीपावली का शुभ आरंभ इस ब्लॉग पर धूमधाम के साथ हो गया है। त्यौहार की तैयारियों और गहमागहमी के बीच इस ब्लॉग पर ग़ज़लों को पढ़ना अब दीपावली का एक हिस्सा हो गया है। राकेश जी के गीतों का हमेशा इंतजार रहता है पर आज उनकी ग़ज़ल पढ़ कर बहुत आनंद आया सभी के नाम पढ़ मजा आ गया।
    ख़लिश जी की ग़ज़ल जिंदगी की सच बयानी है।
    भले कुछ देर को हम टिमटिमाए
    मगर दिल के अंधेरे तो रहेंगे
    दुश्वारियां और दुखों से निकल कर ही हम सच्चे अर्थों में पॉजिटिव बन सकते हैं।
    दुख में दुखी ना होना नकली पॉजिटिविटी होती हैं या तो फिर आप संवेदनाहीन होते हैं।
    जो दिल की ले गए खुशियाँ हैं सारी
    न हम से वो अंधेरे मिट सकेंगे
    दीवाली की जगमग मे जगमगाती रमेश जी की ज
    ग़ज़ल बहुत अच्छी है।
    ये महफ़िल यूं सदा रोशन रहेगी
    मिटाकर फासले जब हम चलेंगे,, वाह वाह।

    सुलभ जी के गीत का ये अंतरा बहुत भाया।
    तुम्हारे बिन कभी हम चल सकेंगे
    तुम्हारे बिन कदम कैसे उठेंगे
    अभी कुछ दिन सहारा हम न देंगे
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे
    सुलभ जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं।
    हाशमी जी के चाय पकौड़े लाख 15 और रफेली डील बहुत ही मजा आ गया पूरी गजल पढ़कर। हाशमी जी की ग़ज़लें तेजधार व्यंगय लिए होती हैं मगर उतनी ही मुस्कुराहट भी ले आती है होठों पर। हाशमी जी की बस एक ही ग़ज़ल आएगी क्या? हाशमी जी एक और ग़ज़ल दूसरे मिज़ाज की भी होनी चाहिए।



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    1. बहुत शुक्रिया परुल जी। आप तवज्जोह से कलाम पढ़ कर, दिल खोल कर दाद देती है। आप की एक और ग़ज़ल की फरमाईश हवा के पंख पर सवार होकर आपकी टिप्पणी से पहले मुझ तक कैसे पहुंच गई अचंभित हूँ

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    2. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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  7. वाह कितना अपनापन है इस ब्लाग परिवर में , गुरु जी ने सही कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि हम लोग कभी मिले नहीं हैं । ये अपनापन हमेशा कायम रहे , ये दुआ है । इसी अपनेपन का शिद्दत से अहसास कराती आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की ग़ज़ल से मुशायरे की शुरुआत होना एकदम जंचता है । इस शानदार ग़ज़ल के बाद उनके गीत का इन्तजार रहेगा ।
    आदरणीय महेश चंद्र गुप्त 'खलिश' जी ने बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे है अपनी ग़ज़ल में
    जला कर क्यों हमें खुश हो रहे हो
    हमारी लौ में परवाने मरेंगे
    ये शेर विशेष तौर पर पसंद आया ।
    आदरणीय अश्विनी रमेश जी ने बहुत अच्छे संदेश देती हुई ग़ज़ल कही , बहुत पसंद आई । दियों की लौ में रात का दुल्हन सा सजना, ज़हन से नफरत मिटाकर प्यार का उजाला बिखेरना , पटाखों का प्रदूषण कम करने का संदेश देते अशआर वाकई बहुत ही बढ़िया हुए हैं ।
    आदरणीय सुलभ जायसवाल जी ने क्या खूबसरत गीत लिखा है , आनंद आ गया पढ़कर ।
    अंधेरे रात भर थर थर करेंगे
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।
    वाह वाह दिए गए मिसरे के साथ क्या कमाल की पंक्तियों से शुरुआत की है गीत की। और उसके बाद के बंद भी उतने ही सुंदर और प्रभावशाली , वाहवाह । और आज के इस शुभ दिन पर उनके स्वस्थ होकर घर लौटने की खबर भी संतोषजनक रही । वैसे आज सुबह मुझे बाइक से गिरने के कारन कुछ हल्की चोटें आई हैं ।
    आदरणीय मंसूर अली हाशमी जी ने अपने जाने पहचाने रंग में एक और बेहतरीन ग़ज़ल कही है ।
    बगावत अब के तोतों ने भी करदी
    कहा मालिक का बोला न रटेंगे ।

    जरा फुर्सत मिले तो देख लेना
    हमारे लाख पंद्रह कब मिलेंगे

    शबे तारीक से लड़ने की खातिर
    ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे ।

    वाह वाह क्या ही शानदार शेर हुए हैं सभी के सभी

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    1. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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  8. वाह ... शुरुआत हो गई आज से ... सभी को धन तेरस की बधाई ... वैसे ये बधाई राकेश जी ने हर किसी पे शेर मार कर आशीर्वाद के रूप में दे दी है ... और साथ ही हमकेदार शुरुआत भी आकर दी है ...
    लाजवाब मतले के साथ खलिश जी ने बहुत ही कमाल के शेर कहे हैं ... दीपक के माध्यम से बहुत कुछ कहा है उन्होंने ... लाजवाब शेर ...
    दीपों के पर्व को समर्पित रमेश जी के शेर बहुत रौशनी कर रहे हैं ... पटाखों की बात अलग अंदाज़ से रक्खी है रमेश जी ने ... सभी शेर बहुत उम्दा हैं ... बहुत बधाई ...
    सुलभ जी को पहले स्वस्थ होने की शुभ कामनाएं ... अंधेरों से जरूर लड़ेंगे दीप और आप भी और सैनिक भी जो सरहदों पर चुपचाप खड़े हैं देश प्रेम में ... बहुत ही सुन्दर लाजवाब गीत है ... हर छंद अलग अंदाज़ लिए ... बधाई सुलभ जी को ...
    मंसूर अली ज ने तो बहुत ही कमाल के शेर कहे हैं ... आज के हालात पर टिपण्णी है हर शेर ... हर किसी ताज़ा घटना को समेत लिए है शेरोन में ... गज़ब की धार है लेखनी में उनकी ... सुभान अल्ला ...
    दीपावली का मुशायरा बहुत कमल की गजलों के साथ आगाज़ हो रहा है ... अभी तो अनेक दिग्गज आने बाकी हैं जो ग़ज़ल को अलग अंदाज़ में कहने के माहिर हैं ... सभी का इंतज़ार है ...

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    1. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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  9. वाह वाह वाह वाह वाह
    रौशनी के त्यौहार का रौशन आग़ाज़
    भाई राकेश खंडेलवाल साहिब ने तो अभी पारी की शुरुआत की है आते ही लगभग सभी आने वाले प्रतिभागियों को अपनी ग़ज़ल के मोहपाश में बाँध लिया है। पूरे एक वर्ष बाद घर वापसी जैसा लग रहा है। आभार भाई राकेश जी।

    आदरणीय महेश चंद्र गुप्त साहिब की ग़ज़ल भी जीवन के अँधेरों उजालों को अपने अशआर में बाख़ूबी प्रस्तुत कर रही है । सत्य तो सत्य है और वो यही है कि कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष पर भारी ही पड़ रहा है।

    भाई अश्विन रमेश जी ने जीवन से अंधकार मिटाने के लिए प्यार के उजियार रामबाण नुस्ख़ा सुझाया है। वे स्वयं बहुत प्यारे इंसान हैं, बहुत सहज सरल और सरस । सदा प्यार से आश्वस्त करते हुए। बहुत ख़ूब।

    भाई सुलभ जी का गीत भी लाजवाब है। आपके लिए अलग से भी संदेश लिख चुका हूं। जल्द स्वस्थ हो जाइए।

    आदरणीय भाई मंसूर अली हाशमी साहिब की इस ग़ज़ल में भी फ़न ए शायरी में उनकी महारत और उसमें भी तंज़ की जो चाशनी है , उसका ज़ायक़ा अलहदा ही है। ज़िंदाबाद अंदाज़ ज़िंदाबाद कलाम। हार्दिक बधाई।

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    1. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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  10. मोहब्बत से लबरेज़ राकेश जी की ग़ज़ल ऐक स्वागत गीत का अहसास दे रही है। इन मोहब्बतों के लिए दिल की गहराइयों से आभार। वाह-वाह।
    जहाँ महेश जी ने अवसर अनुकूल अँधियार को सहजता से स्वीकार कर “भला ऐसे में दीपक क्या करेंगे” का सार्थक प्रश्न बड़ी ख़ूबसूरती से उठाया है वहीं अश्विनी अमेश जी ने मत्ले से मक्ते तक अँधियार में रोशनी को बख़ूबी तलाश है। वाह-वाह।
    सुलभ ने तो राकेश जी के नक़्शे क़दम पर गीत का ख़ूबसूरत प्रयास किया है और जिस ख़ूबसूरती से दीपक के रात भर जलने की प्रतिबद्दहता को बांधा है वह लाजवाब है। सुलभ को जल्द ही स्वस्थ होकर लौटना है सभी की शुभकामनाऐं उसके साथ हैं।
    हाशमी जी ने गिरह बहुत ख़ूबसूरत बांधी है।
    हाशमी साहब आप अकेले ही नहीं हैं। बहुत से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई मी-टू में नाम ले ले तो बदन फिर से खोई हुई अँगडाईयाँ लेने लगे।
    सभी के लिए वाह-वाह। सभी को दीपोत्सव की बधाइयाँ।

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    1. मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणी के लिए आपका दिली शुक्रिया ।

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    2. शुक्रिया तिलक राज जी।

      "मुझे 'मी टू' पे 'मिठ्ठु' याद आया
      गवाही उसकी ली तो हम फसेंगे!"

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  11. सुलभ के लड़ रहे जुगनू लड़ेंगे
    अंधेरे झुका सिजदा करेंगे

    जो नीरज का बने बादाम शीरा
    कहां यू एस में हम फ़िर रुक सकेंगे

    गज़ब करते खलिशजी हर गज़ल में
    भला क्या अब नया करतब करेंगे

    दुआ अश्विन की की जायें कुबूली
    यही बस इक दुआ अब हम करेंगे

    अली मंसूर को आदाब कह कर
    सुभान अल्लह सुभान अल्लाह कहेंगे

    तिलक, द्विज और फिर राजीव की भी
    प्रतीक्षा हम जिगर थामे करेंगे

    मिली है आपकी स्वीकृति कलम को
    सरे इस वज़्म, ह,म सर खम करेंगे

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    1. जवाब नही आपका। सभी की ख़ूब ख़बर ले रहे है आप, सभी को ख़ूब नवाज़ भी रहे है।

      "ढली है उम्र अब आया है 'मी टू'
      फ़क़त अल्लाह ही अल्लाह अब करेंगे!"

      हटाएं
  12. कमाल करते हैं लोग. बधाई हर शाइर को

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