सोमवार, 5 मार्च 2018

बासी होली का अपना ही आनंद होता है, बासी होली का अपना मज़ा होता है। तो आइये आज पाँच रचनाकारों के साथ मनाते हैं बासी होली। तिलक राज कपूर जी, मंसूर अली हाशमी जी, सुमित्रा शर्मा जी, दिनेश नायडू और पारुल सिंह के साथ आनंद लेते हैं बासी होली का।

Barsana Nandgaon Holi 2015 8

होली का पर्व भी बीत गया, हालाँकि हमारे यहाँ मालवांचल में अभी नहीं बीता है अभी तो रंग पंचमी कल होनी है। मालवांचल में सबसे ज़्यादा रंग रंगपंचमी पर ही होता है। इसके बाद शीतला सप्तमी के दिन होली की आग को ठंडा किया जाएगा और उसी के साथ ही होली के पर्व का समापन होगा। उस दिन पिछली रात को ही सारा भोजन बना कर रख लिया जाएगा। शीतला सप्तमी के दिन कुछ भी नहीं पकाया जाता, पिछली रात का ठंडा और बासी खाना ही खाया जाता है। पंरपराएँ यूँ ही तो नहीं बनती हैं, कोई न कोई बात तो उनके पीछे होती है। असल में मुझे लगता है कि यह जो ठंडा खाना खाने की परंपरा है इसका अर्थ गलत निकाल लिया गया है। मुझे लगता है कि वास्तव में यह रहा होगा कि शीतला सप्तमी के साथ ही शीत ऋतु विदा हो जाती है और ग्रीष्म् का आगमन हो जाता है। तो यह जो ठंडा खाने की बात है वह ये है कि आज से ठंडी तासीर वाला  भोजन करना शुरू करना है, अब गरम तासीर वाला भोजन नहीं करना है। जैसे अब बाजरे के स्थान पर ज्वार खाना शुरू करना है। गुड़ के स्थान पर बेल का सेवन करना है। आदि आदि। लेकिन अब बस एक दिन ही रात का बासी खाना खाकर ठंडा खाने की परंपरा को निभा लिया जाता है। और अब तो हमें यह भी नहीं पता कि किस पदार्थ की तासीर ठंडी है और किसकी गर्म है। पर आज तो यह पता चल गया है आपको कि शीतला सप्तमी के दिन से आपको गर्म तासीर वाला भोजन करना बंद करना है।

इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

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होली की तरही की ट्रेन झकड़-पकड़ गति से चल रही है। इतनी धीमी गति से कि बुज़ुर्ग मुसाफ़िर भी आसानी से चलते हुए इस पर सवार हो रहे हैं। आज कुछ इसी प्रकार के मुसाफ़िरों को हम ले रहे हैं जो दरवाज़े का डंडा पकड़ कर लटके हुए हैं। और हाँ अभी तो कुछ और भी बाक़ी रहेंगे इसके बाद भी । बासी होली कुछ दिनों तक तो चलेगी ऐसा अनुमान है। बासी होली का अपना ही आनंद होता है, बासी होली का अपना मज़ा होता है। तो आइये आज पाँच रचनाकारों के साथ मनाते हैं बासी होली। तिलक राज कपूर जी, मंसूर अली हाशमी जी, सुमित्रा शर्मा जी, दिनेश नायडू और पारुल सिंह के साथ आनंद लेते हैं बासी होली का।

TILAK RAJ KAPORR JI

तिलक राज कपूर जी
क़त्आ
नई यादों से छनकर जब पुरानी याद आएगी
हमारे साथ बीती ऋतु सुहानी याद आएगी।
झपकते ही पलक, बेबात हमसे दूर हो जाना
बहुत पछताओगे जब बदगुमानी याद आएगी।

ग़ज़ल
कुरेदे ज़ख़्म तो फिर वो कहानी याद आएगी
ज़माने की निगाहे-तर्जुमानी याद आएगी।

तराने उन दिनों के छेड़, जब आज़ाद फिरते थे
जवाँ होती हुई गुड़ियों की रानी याद आएगी।

मिलेगी शह्र में जब बंद बोतल में भरी ख़ुश्बू
यहाँ आंगन में फैली रातरानी याद आएगी।

नज़रिया है नया इसका, नई ऊंचाई ख्वाबों की
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।"

नज़र का फेर है, फिर से; नज़र को फेर कर देखो
हवस की आंख को बिटिया सयानी याद आएगी।

न जाने किस दिशा में, कौनसी, कब, चाल चल दे ये
सियासत का पियादा देख रानी याद आएगी।

हमारी उम्र थी कच्ची, कबीरा याद क्या रखते
बुढ़ापे में ही अब शायद वो बानी याद आएगी।

तिलक जी जनरल कोच के डब्बे के डंडे से लटकर कर यहाँ तक आए हैं, स्वागत किया जाए इनका। सबसे पहले तो बहुत ही ख़ूबसूरत क़त्आ है, बिछड़न के रंग से रंगा हुआ क़त्आ। और उसके बाद ग़ज़ल भी रंगे-तिलक में रँगी हुई है। ज़ख़्म कुरेदे जाने पर किसी कहानी का याद आ जाना, वाह क्या सुंदर मिसरा है। अगले शेर में पहले मिसरे में –जब आज़ाद फिरते थे तो मानों किसी फाँस की तरह कलेजे में धँस गया और उसके बाद जवाँ होती हुई गुड़ियों की रानी, वाह वाह क्या बात है। अगले शेर में बोतल में बंद ख़ुशबू के मिलने पर गाँव की रातरानी याद आ जाना प्रतीकों के माध्यम से दो जीवन शैलियों के बीच के अंतर को ख़ूब रेखांकित करता है। और गिरह का शेर बिल्कुल अलग ही अंदाज़ में सकारात्मक तरीक़े से लगाया गया है। नज़र का फेर में मिसरा ऊला विशुद्ध कविता है, कलात्मक कविता, शब्दों की कारीगरी का सौंदर्य। और उसके बाद मिसरा सानी थप्पड़ सा लगता है हमारे समय और समाज पर। सियासत को समर्पित शेर में पियादे को देख कर रानी का याद आना उलटबाँसी प्रयोग है और खूब बन पड़ा है। और अंत में वही सच कि हमको कबीर उस उम्र में पढ़ाया गया जब हम उसे रट ही सकते थे। आज उसका अर्थ समझ सकते हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

mansoor hashmi

मन्सूर अली हाश्मी जी
कहानी दर कहानी दर कहानी याद आएगी
पलटते रहिये सफहे ज़िंदगानी याद आएगी।

शरारत से भरी आंखें, दबी पिचकारी हाथों में
कईं बातें 'पुरानी से पुरानी' याद आएगी

किसी मजनूँ पे हंस लेना बहुत आसान है लेकिन
हुए जो मुब्तलाए इश्क़ नानी याद आएगी ।

फ़साने को हक़ीक़त में बदलते अपने शब्दों से
हमें मिथ्यागरों की लंतरानी याद आएगी।

दिवा स्वप्नों ही में गोचर हुई 'नर्गिस' या 'नन्दा' गर
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

लिपट जाती है गाजर घास से भी बेल फूलों की
भंगेडी को तो दिन में 'रातरानी' याद आएगी

गुरु चाणक्य में जागा अगर जो मोह सत्ता का
तो तक़दीरे 'मनोहर', 'आडवाणी' याद आएगी

हया दारों की आंखें तो अंगूठे पर टिकी रहती
कहाँ 'प्रिया'* की आंखें मिचमिचानी याद आएगी?
(*प्रिया प्रकाश)

बचाने को तुम्हें ही सायकल से मेरा गिर जाना
औ' तिस पर सैंडल से मार खानी याद आएगी!

दिवाना 'हाश्मी' को कह रही है भीड़ होली की
उसे अब भी नही  क्या वो जवानी याद आएगी?

दोहराव का सौंदर्य मुझे हमेशा से भाता रहा है। जैसे इसमें कहानी दर कहानी दर कहानी ने मिसरे को बहुत सुंदर बना दिया है। और उसके बाद मिसरा ऊला , वाह क्या बाता है। और अगले ही शेर में पुरानी  से पुरानी, क्या ख़ूब प्रयोग किया गया है। साहित्य प्रयोगधर्मिता का ही नाम है, जब तक आप प्रयोग कर रहे हैं, तब तक आप रच रहे हैं। अगला शेर मजनूँ पे हँसने वालों को जिस मासूमियत से नानी याद आने की चेतावनी दे रहा है, वह चेतावनी पढ़कर मुस्कुराए बिन कोई कैसे रह सकता है ? और अगले शेर में मिथ्यागरों की लंतरानी ग़ज़ब है, सलीक़ा तो यही है कि बिना किसी का नाम लिए सब कुछ कह दिया जाए। दिवास्वप्न में न​र्गिस तथा नंदा का आना तो उम्र का तक़ाज़ा है, हर उम्र की अपनी नर्गिंसें और नंदाएँ होती हैं। यहाँ से ग़ज़ल हजल के ट्रेक पर आती है। और बताती है कि गाजर घास से लिपटी बेल की तरह भँगेड़ी को दिन में रातरानी याद आती है। प्रिया प्रकाश का मिचमिचाना सफेद दाढ़ी के बाद भी हाशमी साहब को  दिख रहा है यह बड़ी बात है। इसी से पता चलता है कि जवानी अभी गई नहीं है। सायकल से उसे ही बचाते हुए गिरना और उसकी ही सेंडिलों से मार खाना, उफ़्फ इससे बड़ी दुर्घटना और क्या हो सकती है भला। और मकते में होली की मस्ती को सुंदरता से गूँथा गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

DINESH NAYDU

दिनेश नायडू
ख़लाओं में भी अपनी बेमकानी याद आएगी
मुझे ऐ जिस्म तेरी मेज़बानी याद आएगी

समंदर उम्र भर ताज़ा रहेगा मेरी आँखों में
ये जो मौजों में रहती है रवानी याद आएगी

वो चुप लम्हा की जब उसका बदन मुझसे मुख़ातिब था !
मुझे ताउम्र अपनी बेज़बानी याद आएगी

मनाएंगे सहर का जश्न कितनी देर हम शबज़ाद
चुभेगी धूप तो वो रातरानी याद आएगी

वो क्या दिन थे तुम्हारे ध्यान में जब ख़ाक उड़ाता था 
अब अपने बाद अपनी ख़ुश गुमानी याद आएगी

बगूलों की तरह फिरता रहूंगा तेरे सहरा में
कभी तो तुझको मेरी क़द्र दानी याद आएगी

जब आँखें अश्क रो रो कर बदल जाएंगी पत्थर में 
ये दावा है तुम्हे मेरी कहानी याद आएगी

ये पहला ख़त है पहले प्यार का यारों, संभालेंगे !
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

दिनेश जी पहली बार तरही में शामिल हो रहे हैं तो सबसे पहले तो तालियों से उनका स्वागत किया जाए। मतले के साथ ही ग़ज़ल ने ग़ज़ब का स्टार्ट लिया है, जिस्म की मेज़बानी के तो कहने ही क्या हैं पूरा शेर सुगंध से भर गया है। समंदर का उम्र भर ताज़ा रहने वाला पहला ही शेर और उसके बहाने मौजों की रवानी याद आना बहुत ख़ूब। लेकिन अगला शेर जिसमें बदन मुख़ातिब था और बेज़बानी याद आ रही है, यह हासिले ग़़ज़ल शेर है, मिसरा ऊला तो जैसे कटार की तरह जिगर कलेजे दिल सबमें बिना घाव किये उतर जा रहा है। बहुत ही सुंदर शेर, ग़ज़ब, कमाल। उस्तादाना अंदाज़ का शेर है। इसके बाद किसी अन्य शेर की चर्चा करने की इच्छा ही नहीं हो रही है। मगर आगे के शेर भी कमाल हैं तो करना पड़गी चर्चा तो। सहर के जश्न के बाद जब धूप चुभती है तो रातरानी याद आती है, अगर इस शेर को राजनैतिक संदर्भ में देखा जाए तो कितना गहरा है यह शेर, तीखे कटाक्ष के साथ उतरता है। फिर आगे के तीनों विरह के शेर…. अब अपने बाद अपनी खुशगुमानी….. “अपने बाद” वाह वाह वाह…. क्या कहन है भाई, सदक़े….. फिर अगले ही शेर में बगूलों की तरह उड़ते फिरने का अंदाज़ कमाल कमाल है। फिर उसके साथ क़ाफिया भी ऐसा जोड़ा है कि अश अश। जब आँखें अश्क रो रो कर…. यह शेर उस प्रकार का है कि इस पर कोई प्रतिक्रिया शब्दों से दी ही नहीं जा सकती बस पलकों की कोरों पर आई नमी है प्रतिक्रिया देती है। अंतिम शेर में गिरह…. ग़ज़ब… इस बार अधिकांश गिरहों में काल की समस्या बनी है। लेकिन यह शेर उस समस्या से बेदाग़ निकल कर आता है। सर्रर्रर्र से निकल जाता है शेर और हम स्तब्ध से रह जाते हैं। पहली ही आमद और आते ही ऐसी कमाल की ग़ज़ल… मुकम्मल ग़ज़ल, हर शेर बोलता हुआ…. वाह वाह वाह।

parul singh

पारूल सिंह
कभी वो शाम पलकों से गिरानी याद आएगी
कभी फिर सुब्ह पलकों पर उठानी याद आएगी

रखे हैं होंठ तेरे आज भी जैसे वो माथे पर
उमर की धूप में ठंडक सुहानी याद आएगी

पलट कर देखना उसका, महब्बत है समझ लेना
बहुत मासूम सी वो बदगुमानी याद आएगी

सयानी हो रही बेटी हक़ों की बात करती है
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

सितम दिल पर खमोशी से हैं झेले रात-दिन उसने
मुझे यूँ दोस्ती उसकी निभानी याद आएगी

मुझे दिल पे सितम मंजूर हैं सबके, मगर  तेरे
तग़ाफुल की हमेशा गुलफ़िशानी याद आएगी

किताबे इश्क़ में तो नाम तेरा है नहीं पारुल
वफ़ा के नाम पर तेरी कहानी याद आएगी

पारुल जी बीच बीच में हाजिरी लगाने आ जाती हैं। बीच में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या से दो-चार हुई हैं। और अब उनकी यह ग़ज़ल। मतला किसी तूलिका से निकला हुआ चित्र हो मानों जिसमें अलग-अलग रंगों से कमाल दिखाया गया है। पहला ही शेर प्रेम की स्म़ृतियों में खोया हुआ ख़ूबसूरत शेर है। रखे हैं होंठ तेरे आज भी जैसे वो माथे पर…. वाह वाह वाह क्या भाव है। उमर की धूप में ठंडक सुहानी की याद आ जाना कमाल है बस। पलट कर देखना उसका में कितनी मासूमियत भरी हुई है, मासूम सी बदगुमानी के तो कहने ही क्या हैं, बहुत ही सुंदर है। सयानी हो रही बेटियाँ जब भी अपने हक़ों की बात करती हैं तो सचमुच माँ को अपनी जवानी याद आती है जब वो अपने लिए नहीं लड़ पाई, इमोशनल कर देने वाला शेर है। कई बार हम दोस्ती को नहीं याद रखते हैं, लेकिन याद रखते हैँ कि किसी ने दोस्ती को किस प्रकार निभाया था। बहुत सुंदर। मुझे दिल पे सितम शेर रवायती अंदाज़ में कहा गया शेर है, नई तकनीक के बीच रवायती अंदाज़ का शेर आनंद देता है। और मकते का शेर तो बहुत सुंदर बना है, क्या उदासी से भरा हुआ शेर है… उदासी जो जब शेर में करेक्ट तरीक़े से आ जाए तो काट देती है। बहुत ही सुंदर शेर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

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सुमित्रा शर्मा जी
नदी के तीर से चुनरी चुरानी याद आएगी
तुम्हारी वो मधुर बंसी बजानी याद आएगी

चले जाओ किशन यूं छोड़ गोकुल तुम विमोही बन
मुहब्बत ये तुम्हें भी तो पुरानी याद आएगी

पुरानी डायरी से जो गिरा सूखा हुआ इक गुल
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

जो खोली याद की गठरी तो अंखियां भीग जाएंगी
मनाने रूसने की सब कहानी याद आएंगी

तुम्हारे साथ तो हर पल दिवाली,ईद, होली था
तुम्हारी छुअन की अब बस, सुहानी याद आएगी

महक फूलों की, रंग होली, उजाले आफताबी थे
इबादत सी मुहब्बत की सुहानी याद आएगी

कृष्ण और होली तो मानों एक दूसरे के पूरक ही हैं। और कृष्ण से जुड़ी हुई कहानियों का काव्य में प्रयोग करना हमेशा से होता आया है। यहाँ भी मतले में गोपियों के वस्त्र चुराने और उसके बाद बंशी बजाने का प्रयोग बहुत सुंदर तरीके से किया गया है। अगले ही शेर में कृष्ण को विमोही बन कर जाते हुए चेतावनी दी जा रही है कि तुमको यह भूली हुई पुरानी कहानी हमेशा याद आएगी, आती रहेगी। पुरानी डायरी में सूखे हुए फूल जाने कब से सहेजे जा रहे हैं और जाने कब तक सहेजे जाते रहेंगे और उनको देख कर जवानी याद आती रहेगी। यादों की गठरी में सचमुच मनाने और रूठने की कुछ ऐसी कहानियाँ बँधी होती हैं, जो गठरी के खुलते ही आँखों में पानी ला देती हैं। अगले ही शेर में किसी के साथ से दीवाली, ईद और होली का आनंद और बिछड़ने के बाद उस सुहानी छुअन का याद आना। यादें। मुहब्बत वास्तव में एक इबादत ही तो है जिसकी सुहानी यादें हमेशा हमारे अंदर बसी रहती हैं। अज़ल से बसी हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।

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ऐसा पहली बार हुआ है कि मुख्य के मुकाबले में बासी आयोजन अधिक भारी पड़ रहा है। आज के पाँचों शायरों ने बहुत ही कमाल की ग़ज़लें कही हैं। अभी भी कुछ ग़ज़लें और हैं जो आने वाले दिनों में शामिल होंगी। और शायद इस बीच भभ्भड़ कवि भौंचक्के भी शामिल हो जाएँ। इस बार हो सकता है कि वो पार्टनर के साथ आएँ नीरज गोस्वामी जी के साथ। कुछ भी हो सकता है। प्रतीक्षा करें। और हाँ आज की ग़ज़लों पर दाद देते रहें। उत्साह बनाए रखें मिलते हैँ अगले अंक में।

32 टिप्‍पणियां:

  1. वो चुप लम्हा.....पूरी तरही की जान है ये शेर... उफ़्फ़ यूँ माँ। ...दिनेश की ग़ज़ल बहुत वक्त के बाद पढ़ने को मिली है -क्या ग़ज़ब का शायर है ये नौजवान -ज़िंदाबाद। इसके बाद क्या कहना बाकी है।

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  2. आज का दिन उस्ताद शायरों का रहा...


    सबसे पहले तिलक राज sir की उस्तादाना इंट्री, और उस पर मंसूर अली sir की धोनी जैसी पारी।

    जी हाँ, दिनेश भाई की उस्तादना ग़ज़ल के बाद यह तरही सफल हुई मानी जाएगी। यहाँ मेरा क्रेडिट लेना बनता है। क्योंकि दिनेश भाई ने मेरी फ़ेसबुक से ही पढ़कर यह ग़ज़ल कही। और क्या 'सहवागाना' ग़ज़ल की पारी खेली। बेइंतिहां खूबसूरत ग़ज़ल।

    फिर पारुल दी कि ग़ज़ल ने भी तरही में चार चांद लगाए।

    सयानी हो रही बेटी हक़ों की बात करती है
    इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

    क्या गिरह लगाई है। ज़िन्दाबाद।

    चले जाओ किशन यूं छोड़ गोकुल तुम विमोही बन
    मुहब्बत ये तुम्हें भी तो पुरानी याद आएगी
    सुमित्रा मैडम की ग़ज़ल का यह शेर् साथ लिए जा रहा हूँ।

    सभी शायरों को मुबारकबाद।

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    1. बहुत धन्यवाद नकुल भाई।

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    2. नकुल, अब तो आपकी उम्र के शायरों के खूबसूरत कलाम पढ़कर जो सुकून मिलता है उसके आगे अपना अब तक कह सब क़ुर्बान है।

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  3. सुबीरजी ...आपका तह-ए-दिल से शुक्रिआ... मुझे अपने ब्लॉग में प्रकाशित करने के लिए और मेरे लिए इतनी अच्छी अच्छी बातें करने के लिए ...आपलोगो की इस महफ़िल से जुड़ कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई .....

    नीरज जी ... आपकी मुहर लगने से मेरी ग़ज़ल कामयाब हो गयी ....आपकी बातें हमेशा मुझे बहुत प्रोत्साहित करती हैं ....


    और नकुल मेरे प्यारे भाई .... ये ग़ज़ल आपकी ही है ... बहुत शुक्रिआ भाई

    आपका

    दिनेश

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  4. मंसूर अली हाशमी जी जब ग़ज़ल लिखते हैं तो दिल से कहते हैं यह बात इनकी हर ग़ज़ल में साफ साफ नजर आती है। होली के अवसर पर हास्य विनोद न हो यह कैसे हो सकता है और यह हास्य विनोद जितनी खूबसूरती से सफेद दाढ़ी से उत्पन्न रंगों में प्रस्तुत किया जा सकता है उतना शायद नौजवानों के लिए मुश्किल होगा। यह बात सिद्ध करती हुई हास्य गजल हाशमी जी ने कही जिसके लिए वे विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं। इनका गज़ल कहने का अनुभव कॉफियों के प्रयोग में स्पष्ट हो रहा है कि किस प्रकार "आडवाणी" जैसे पुल्लिंग को भी स्त्रीलिंग में बांधा जा सकता है।

    दिनेश नायडू जी को पहली बार पढ़ रहा हूं और आश्चर्य है कि अभी तक ऐसे उम्दा शायर की ग़ज़ल पढ़ने का मौका क्यों नहीं मिला। हर एक शेर उम्दा पूरी तरह से पुष्ट। और तो और गिरह का का शेर जिस खूबसूरती से बांधा गया है वह विशेष दाद मांगता है। जब आंखें अश्क रो रो कर इंतिहाई शेर है। बहुत बहुत बधाई इस उम्दा ग़ज़ल के लिए।

    पारुल जी, इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिए समय निकाल लेना ही एक उपलब्धि है। एक एक शेर आंखों के सामने सजीव दृश्य निर्मित कर रहा है। बधाई हो।

    सुमित्रा शर्मा जी ने मत्ले के शेर में जो मोहक दृश्य बांध है उससे आगे बढ़ते ही ग़ज़ल कृष्णमय होने का अहसास दिलाती है लेकिन एकाएक पुरानी डायरी से फूल गिरना! आगे प्रगाढ़ संबंधों के शेर दे रहा है। बधाई हो।

    अभी तो ट्रेन रुकी नहीं है लेकिन नीरज भाई साहब और भभ्भड़ कवि भौंचक्के की प्रतीक्षा प्रबलित हो रही है। स्वागत है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद तिलक जी हौसला अफजाई का।

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  5. Sabse pehle apni baat param aadarniy pratah smarniy shri shri 1008 shri Tialk Raj Kapoor sahab se shuru karta hoon. Aap janab ko main san 2006 se jaanta hoon jab Pankaj ji ke yahan Ghazal kehna sikhaya jata tha...inse main kisi tarahi men ek sher namoone ke taur per bhejne ko kehta to ye janab 8-10 ghazalen bhej dete the. Saraswati maa ki itpe kuchh vishesh ki kripa hai aur usi ka faayda utha kar ye de danadan sher kehte hain...Nazar ka fer hai....wale sher men kya nazar daudai hai kasam se maza aa gaya...hum to bhai inke poore pakke wale fan hain...mureed hain inke...jaise khud nihayat maje ke insaan hain vaisi hi inki shayri bhi hai...umr ho gayi ,hamari tarah pen ko dhakkan laga kar mej par nahin rakha koi kaisi bhi tarahi ho huzoor pahunch hi jaate hain...Zindabaad Kapoor sahab...aap se bahut kuchh siikhna hai abhi...:)

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    1. आपकी भावनाएं सर माथे।
      हुज़ूर आपने कहा प्रातः स्मरणीय, तो बाकी समय कौन छाया रहता है इस आराम की आयु में?
      अब ग़ज़ल नहीं कही जाती मुझसे, बस इक्का-दुक्का शेर हो जाये तो बहुत हुआ। यह अवश्य है कि यहाँ की मोहब्बतें किसी न किसी तरह एक ग़ज़ल तक पहुंचा ही देती हैं। बस यही रस्म-अदायगी भर है जिसे आप सब की मोहब्बतें पूरा करा देती हैं। पाठशाला के गुरुजी को मैंने हमेशा अनुज के रूप में देखा है तो उनका अधिकार देने का दायित्व-निर्वहन भी ज़रूरी है।

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  6. Pankaj ji ke blog par aaj tak jitni bhi tarahi mushayre hue hain unmen bhai Mansoor Hashmi sahab ki ghazal apna lag mukaam rakhti aayi hai. unka apna style hai sab se alag sabse dilkash...Jaise zindadil insaan wo khud hain vaisi hi unki shayri hai...kahin sahaj saral hasy hai...kahin rajniiti pe bhigo bhigo kar maare gaye kode hain...kahin samaj men faili buraiyan hain...sab par Hasmi sahab ki kalam chalti hai aur kya khoob chalti hai...Latest Priya wala sher to kamaal ka hai...Miyan ki dadhi safed hai lekin dil...aha ha 16 saal wala hai...Is bemisaal shaks ko mera farshi salaam....

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    1. "भिगो कर हम को रंगों में मज़े लेते हुए 'नीरज'
      बिसाते 'भभ्भड़ी' पर लंतरानी याद आएगी!"

      #दिला कर याद 'दाढ़ी' की हमें 'जिझकाये'देते है
      हमें 'उपदेशको' की मेहरबानी याद आएगी!

      (सफेद दाढ़ी का याद दिलाना ज़रूरी है क्या ?)

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  7. Dinesh ki ghazal to aesi hai ki jispe mere jaisa nausikhiya kuchh kehne laayak hi nahin hai...aese aese sher kahen hain ki hairat hoti hai...ek se badh kar ek...ek aesi ghazal jise bhulana na mumkin hai...Dinesh ne likhna kuchh kam kar diya hai ya hum tak wo pahunchta nahin par is tarahi ke bahane us muddat baad padhne ka mauka mila...wo nazm ka baadshah hai ya ghazal ka Shehjada ye tay karna mushkil hai... par jo hai khoob nahin bahut khoob hai....

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  8. Parul ji ka ek signature style hai...prem men bhiige unke ashaar dil chhuu lete hain...kya kamaal ki girah lagayi hai ...jiyo...ek mukammal behtareen lajawab ghazal...ruko mat...likhti raho.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर। बहुत मामूली सा लिखने पर भी आपका ये उत्साहवर्धन ऊर्जा देता है।

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  9. aadarniy Sumitra ji ne ghazal ke kshetr men bahut jaldi apna mukaam banaya hai...abhi kuchh saal pehle tak unhen ghazal ki baarikiyon ka gyan nahin tha lekin unke zazbe aur hausle ki daad deni padegi...umr ko munh chidate hue unhone bahut khoobsurat ghazal kahi hai...unki pratibha ko naman karta hoon...

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  10. Bhabhbhad kavi kavi hain ya unka dimag bhi hamari tarah diwaliya ghoshit ho chuka hai :) :) agar hain to..jra saamne to aao chhaliye...:)

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  11. इतनी खूबसूरत ग़ज़लें कहने वाले उस्ताद शायरों के साथ मेरी ग़ज़ल का आना ही भावविभोर कर देता है।
    तिलक जी की ग़ज़ल तो बाकमाल है ही क़त्आ पढ़कर पर शुरु में ही कदम ठिठक जाते हैं बहुत सुन्दर क़त्आ।
    हाशमी साहब की ग़ज़ल पढ़ते वक्त मैं तो हमेशा सबसे पहले वो शेर ढूँढती हूँ जिस मे उनकी हँसी ठिठोली या हास्य व्यंग्य होता है इस मे उन्हें महारत हासिल है। एक और खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई हाशमी साहब। सुमित्रा आंटी और दिनेश जी की ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में नगीना है। पंकज जी हौसला अफजाई व मार्गदर्शन के लिए बहुत धन्यवाद व मुशायरे के बेहद सफल संचालन के लिए बधाई।

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  12. बहुत हो कमाल की रही ये बासी होली की तरही ...
    आदरणीय तिलक राज जी की ग़ज़ल का हर शेर उस्तादों की तरह है ... नज़र का फेर है फिर से ... इसेक शेर ने इस मुशायरे को नए मुकाम तक खडा कर दिया है ... काफी कुछ सोचने को मजबूर करता है ये शेर ... और आखरी शेर भी कलाम का है ... सच है बचपन और बीतती उम्र के फर्क का बाखूबी रखा है ...
    मंसूर अली जी के शेर तो इतने सादगी भरे मासूमियत लिए हैं की सुभान अल्ला ... मतले के शेर ने ही समा बाँध दिया ... फिर नानी याद आ जाने वाला शेर भी सच बयानी ही है ... गुरु चाणक्य वाला शेर भी गहरी बात को सादे नदाज़ एमिन कहता हुआ है ... तालियाँ बजाने का मन करता है पूरी ग़ज़ल पर ...
    दिनेश जी का स्वागत है ... मतले के शेर से ही धमाके दार शुरुआत है ... जब आँखें अश्क रो रो कर ... बहुरत ही लाजवाब शेर है ... और आखरी शेर ने तो धमाल कर दिया ...प्यार के पहले ख़त की यादें उम्र भर नहीं जातीं ... और जवानी भी बैंक रहती है इस ख़त के साथ ताउम्र ... स्वागत .. स्वागत ... स्वगत इस लाजवाब ग़ज़ल का ... बधाई ...
    पारुल जी ने तो बहुत मासूमियत भरे, सादगी लिए प्रेम से सरोबर शुरुआत की है ...पलकें गिराना और उठाना ... गज़ब का शेर ... उसके बाद लगातार दो सादा से प्रेम में डूबे शेर ... गज़ब ... फिर सयानी हो रही बेटी ... वाह, क्या श्र कहा है ... सच्चा शेर, क्योंकि मैं भी महसूस करता हूँ इसे जीवन में ... पूरी ग़ज़ल लाजवाब है ... बधाई पारुल जी को ...
    सुमित्रा जी ने तो होली और कृष्ण को एकरस करते हुए लाजवाब शेर बुने हैं ... फिर पुरानी डायरी वाला शेर तो कमाल का है ... यादों की गठरी तो हमेशा गुदगुदाती है जैसे ये शेर ... पूरी ग़ज़ल लाजवाब है ...
    सभी को बहुत बहुत मुबारक होली की ...

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  13. पाँचों ग़ज़लें अपने उस्तादों के हुनर का लोहा मनवा रहीं। हर ग़ज़ल उच्च स्तर की है कथ्य भाव भी लाज़वाब । बधाई आज के सभी ग़ज़लकारों को

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  14. तिलकराज कपूर:
    कत्आ और ग़ज़ल के सभी अशआर ख़ूब पसंद आये। दिली दाद क़बूल फरमायें।
    साथ-साथ (आदतवश!) यह भी कहदूं:
    "करी है बात ज़ख़्मों की,तरानो की,नज़रियों की
    समझ में आते-आते ये जवानी बीत जाएगी!"
    (बुढ़ापे में ही अब शायद वो बानी याद आएगी।)

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    1. तहे-दिल से शुक्रिया आपकी मोहब्बतों का।
      अब तो 60 पार कर लिया। रूह को देह से अलग देखने की उम्र है, कबीर की बानी कुछ तो मदद करेगी।

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  15. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-03-2018) को ) "फसलें हैं तैयार" (चर्चा अंक-2902) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  16. दिनेश नायडू जी:
    # ख़लाओं में भी अपनी बेमकानी याद आएगी 
    मुझे ऐ जिस्म तेरी मेज़बानी याद आएगी 

    कमाल ग़ज़ल कह दी है, दिनेश नायडू जी ने। फलसफियाना अंदाज़ में मतला ता मक़्ता ज़िंदगी के अनेको रंग भर दिये है।

    # ये पहला ख़त है पहले प्यार का यारों, संभालेंगे ! 
    इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

    "डिपाॅज़िट कर रखे 'पी& बी' में हमने ख़त सारे
    कभी इक 'जौहरी' की क़द्रदानी याद आएगी!"


    (कभी तो तुझको मेरी क़द्र दानी याद आएगी !)

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  17. पारुल सिंह:

    मोहब्बत में बदगुमानी, तग़ाफ़ुल की गुलफ़िशानी......
    'कभी हम इश्क़ में थे'.....एक मुकम्मिल किताब लिख दी है इस ग़ज़ल में, पारुल जी ने। बहुत ही ख़ूब अशआर निकाले है, यादों के इस मौसम में

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  18. सुमित्रा शर्मा जी:
    यादों की गठरी में बड़े सलीक़े से चुनरी, बंसी,बंशीधर,डायरी, सूखा हुआ गुल, तीज-त्योहार हर पुरानी और सुहानी यादों को सहेज लिया है, मुहब्बत को इबादत के दर्जे तक पहुँचाते हुए। यहीं तो शायरी है। बहुत सुन्दर ।

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  19. पारुल जी,
    पलट कर देखना......
    सयानी हो रही बेटी.....
    रखें है होठ.......वाह सारे ताजा शेर।नर्म मखमली अहसास जब सफ़्हे पर उतरते है तो पारुल जी की ग़लत बनती है।सरल से शेर पर बहुत गहरी मार।
    आदरणीया सुमित्रा जी की ग़ज़ल...... उम्र की मुंडेर पर बैठ दुनिया का विहंगावलोकन है।
    तुम्हारे साथ तो..........
    सुनहरी यादों के पिटारे में क्या क्या है......... बहुत कुछ अनकहा।

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  20. तिलक राज जी,
    नजर का फेर है.......
    बहुत उम्दा शेर,
    हमारी उम्र थी..... वाह वाह, या यूँ कहूँ सारे ही शेर बाकमाल।
    मंसूर अली हाश्मी जी,
    जबरदस्त मतला,
    शरारत से भरी...... वाह।
    दिनेश नायडू जी,
    मनाएंगे सहर का जश्न...... वाह, गहरा प्रभाव.
    समंदर उम्र भर ताजा......गजब, वाह

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  21. ग़लत की जगह ग़ज़ल पढा जाए, टंकण त्रुटि

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  22. सबने अच्छा लिखा है, पारूल मैमं ओर हाशमी साहब की गजल मुझे बहुत अच्छी लगी, पारूल मैमं की किताब ओर सुमित्रा जी आप दोनो की किताबे पढ़ चुका हूँ,

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