शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली है भई होली है हम मस्तों की टोली है, सबको रंग भरी शुभकामनाएँ और आज हम सात रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, गिरीश पंकज जी, द्विजेन्द्र द्विज जी, नकुल गौतम, अनीता तहज़ीब जी और रजनी नैयर मल्होत्रा जी के साथ होली का यह त्योहार मनाते हैं। 


होली है भइ होली है हम मस्तों की टोली है आज नहीं टकराए कोई रंग से भर ली झोली है। आप सभी को रंगों की मस्ती से भरे हुए पर्व होली की मंगल कामनाएँ। होली का यह त्योहार आप सभी के जीवन में खुशियों की, सुखों की गुलाल बिखेरे। शांति का हरा रंग, यश का लाल रंग, आनंद का नीला रंग, अपनेपन का पीला रंग, रस का केसरिया रंग, मिलन का फिरोजी रंग, स्वाभिमान का बैंगनी रंग और प्रेम का गुलाबी रंग आपके जीवन में सदा बिखरे रहें, कभी आपको इनकी कमी महसूस नहीं हो। आप हमेशा रंगीले रतन बने रहें। होली के रसिया बने रहें। क्योंकि रंगीले रतन होने का ही मतलब है कि आप जीवन को जीवन की ही तरह जीते रहेंगे। आनंद से भरे रहेंगे। इस बार की होली में आपको ऐसा रंग लगे जो जीवन भर उतरे ही नहीं। आप सारी दुनिया को अपने रंग में रँग लें। आपकी रचनाओं, आपकी ग़ज़लों आपके शेरों की  पिचकारियाँ इस प्रकार चलें कि सुनने वाले उनमें भीगते रहें, और अंदर तक उस रंग की छुअन को महसूस करते रहें। आप होली के हर रंग के आनंद को हर समय महसूस करते रहें। रंगों से भरी, उमंगों से भरी, तरंगों से भरी हुई इस होली पर आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ। होली है भई होली है रंगों वाली होली है, होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।



होली है भई होली है हम मस्तों की टोली है, सबको रंग भरी शुभकामनाएँ और आज हम सात रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी, गिरीश पंकज जी, द्विजेन्द्र द्विज जी, नकुल गौतम, अनीता तहज़ीब जी और रजनी नैयर मल्होत्रा जी के साथ होली का यह त्योहार मनाते हैं।
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी




राकेश खंडेलवाल जी

खुनक में भंग पीकर के ये तरही दी है होली में
लगा ननदी लगी कहने ये भावज से ठिठोली में
ब्लागर जो हैं कवि शायर कभी बूढ़े नहीं होते
भला किस तरह तरही में है सम्भव फिर ग़ज़ल होते
सुने ' ये रस्म हमसे तो नहीं निभने में आएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

अभी कल शाम हो को तो ज़रा सा मश्क भीगी हैं
अभी उतरी है आँखों में गुलाबों की रंगीनी है
अभी तो दास्ताँ ए इश्क़ को आगाज करना है
अभी तो हुस्न के आगे नई परवाज़ भरना है
इबारत किस तरह बतलाए फिर होंठों पे आएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

अभी परसों ही तो हमने है कलिज की गली देखी
अभी कल शाम ही को तो कोई खिलते कली देखी
जो मिलते हैं किताबों में अभी वे पत्र लिखने है
अभी उपवन से जूड़े के लिए कुछ फूल चुनने हैं
ये तरही आपके दर पर पलट कर ख़ाली जाएगी
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

लिखे तरही पे वो कैसे जिसे लिखना नही आता
रदीफों काफिया से है न बहरो वज़्न से नाता
हुआ परिचय न कविता से न रिश्ता गीत से जिसका
भला कैसे रहेगा फिर ग़ज़ल पर कोई बस उसका
ये होली तो बिना ग़ज़लें लिए इस बार जाएगी
कि जब हो जाएंगे बूढ़े जवानी याद आयेगी
होली का हास्य और व्यंग्य से भरा हुआ यह गीत मानों होली के आगमन की सूचना दे रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे होली तो आ ही गई है और सच कहा है कि कवि और शायर तो कभी भी बूढ़े नहीं होते हैं और वह तो बार-बार लौट कर आते हैं त्यौहार को मनाने । जरा सी मश्क़ भीगी हो और आंखों में गुलाब की रंगीनी हो तो फिर होली तो हो ही जाती है । कॉलेज की वह गली जो हमने आज ही देखी है और वहां पर कोई कली खिलते हुए देखी है  तो फिर होली का यह रंग भला आंखों में क्यों नहीं खिलेगा । किताबों में अभी तो पत्र रखे हुए देखे ही जा रहे हैं  और अभी  किसी के  लिए फूल चुनने  जाता हुआ यह  प्रेमी होली  अपने ही अंदाज में मनाना चाह रहा है । ग़ज़ल लिखने के लिए रदीफ़ काफिया से ज्यादा जरूरत होती है अंदर शायर के होने की और वह इस शायर में कूट कूट कर भरा है इसीलिए इतना सुंदर गीत जन्म ले चुका है । वाह वाह वाह, बहुत ही सुंदर गीत कहा है होली की मस्ती में भरा हुआ गीत



सौरभ पाण्डेय जी

अभी इग्नोर कर दो, पर, ज़ुबानी याद आयेगी
अकेले में तुम्हें मेरी कहानी याद आयेगी

चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
कभी तो यार को ये बाग़वानी याद आयेगी

मसें फूटी अभी हैं, शोखियाँ, ज़ुल्फ़ें, निखरता रंग
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी है कोई दुनिया
ठहर कर सोचिए, वो ज़िंदग़ानी याद आयेगी

कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो
सियासत की उसे हर बदग़ुमानी याद आयेगी

मुकाबिल हो अगर दुश्मन निहायत काँइयाँ फिर तो
बरत तुर्की-ब-तुर्की ताकि नानी याद आयेगी

बहुत संतोष औ’ आराम से है ज़िन्दग़ी कच की
मगर कैसे कहे, कब देवयानी याद आयेगी ?

सदा रौशन रहे पापा.. चिराग़ों की तरह ’सौरभ’
मगर माँ से सुनो तो धूपदानी याद आयेगी
 
अभी इग्नोर कर दो पर जुबानी याद आएगी अंग्रेजी के शब्द का बहुत ही खूबसूरती के साथ उपयोग किया गया है और फिर अकेले में हमारी कहानी का याद आना बहुत सुंदर बन पड़ा है। चढ़ता हुआ फागुन खिलती हुई कलियां और नजारों का गुलाबीपन यह बागवानी सचमुच ऐसी है जो रहती उम्र तक हर किसी को याद रहने वाली है बहुत ही अच्छा शेर वाह। और अगला ही शेर किसी की टूटती हुई मसें और जुल्फों को देखकर आती याद अपनी जवानी के नाम जवानी जो बीत गई है और याद आ रही है। मोबाइल और नेट के परे एक दुनिया है जो सचमुच की हमारी जिंदगी है जिसको हम भूल चुके हैं और उसको याद दिलाता हुआ यह शेर बहुत खूबसूरत बन पड़ा है। और राजपथ की पगडंडियों से प्रश्न नहीं पूछने में जो व्यंग शायर कस रहा है वह हमारे समय पर तीखा कटाक्ष है। और जब मुकाबिल दुश्मन काया हो तो उसको नानी याद दिलाने की बात हमारे समय का एक कड़वा सच है लेकिन हम सबको ऐसा बनना पड़ता है। बहुत खूबसूरत। और निशब्द करता हुआ मकते का शेर जिसमें दीपक और धूप दानी के साथ मां और पिता का बहुत श्रद्धा के साथ जिक्र है। इस शेर पर शायद कोई कमेंट नहीं किया जा सकता। ये आत्मा का शेर है इसे रूह से महसूस करना पड़ेगा बहुत खूबसूरत शेर। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।




द्विजेंद्र द्विज

घड़ी जब मैं हुआ था पानी-पानी, याद आएगी
मुझे अक्सर वो इक होली पुरानी याद आएगी

मेरे दिल से तेरी वो छेड़खानी याद आएगी
जो मुझसे की थी तूने बेइमानी याद आएगी


तेरी तहज़ीब सारी ख़ानदानी याद आएगी
हुई जो साथ मेरे बदज़ुबानी याद आएगी

बुला कर घर मुझे तूने तमाशा जो बनाया था
मुहल्ले भर को मेरी वो कहानी याद आएगी


तेरी मम्मी ने वो मुझ पर जो दे मारा था गमला ही
मुझे उसकी अदा-ए-गुलफ़िशानी* याद आएगी
(फूल बरसाने की अदा)

“लफ़ंगा तू , हरामी तू, फ़रेबी तू , मवाली तू”
तेरे पापा की मुझको प्रेम- बानी याद आएगी


जकड़ कर काँख में गर्दन, मला मुँह पर मेरे गोबर
तेरे भाई की मुझको पहलवानी याद आएगी

वो धक्कमपेल थी कैसी बताऊँ किस तरह यारो
फटी कैसे मेरी थी शेरवानी याद आएगी


तमंचे पर किया मैंने वहाँ जो देर तक डिस्को
तेरे घर की मुझे वो मेज़बानी याद आएगी

चबा कर वो मेरी पिंडली रफ़ूचक्कर हुई जानम !
तेरे बंगले में थी कुतिया जो कानी याद आएगी


फिर उसके बाद जब आने लगा था घर को मैं अपने
तेरे जीजा ने की जो छेड़खानी याद आएगी

तेरा बनकर यूँ बुत ऐसे तमाशा देखना मेरा
मेरी गत पर तुम्हारी बेज़बानी याद आएगी


कभी होली पे यूँ महबूब के घर मत चले जाना
घसीटेंगे जो कीचड़ में तो नानी याद आएगी
ग़ज़ल हुस्ने मतला तीसरे वाले से शुरू होती है जब हमें उनकी तहजीब सारी खानदानी एक बदजुबानी से ही याद आ जाती है बहुत ही खूबसूरत और मजा देने वाला शेर है। और उसके बाद धमाके की तरह आता है शेर जिसमें घर बुलाकर तमाशा बनाने की वह कहानी जो सारे मोहल्ले को पता है। और अम्मा द्वारा गमला फेंक फूल बरसाने का जो दृश्य है वह तो अकेले में अगर दिमाग में आ जाए तो हंस हंस के लोटपोट होने के अलावा और क्या किया जा सकता है । कमाल का दृश्य बनाया है। और फिर लगा हुआ शेर जिसमें पिताजी द्वारा की गई कमाल की तारीफें भांति-भांति की उपमाओं द्वारा संकलित की गई हैं हा हा हा क्या बात है। मां और पिता के बाद भाई द्वारा कांख में दबा कर गोबर मलना और पहलवानी दिखाना तत्पश्चात शेरवानी का शहीद हो जाना सारी शेर एक के बाद एक मानो आशिक के बारे में तफ़सील से जानकारी प्रदान कर रहे हैं बहुत खूब बहुत खूब। तमंचे पर किए गए डिस्को का इतना बेहतरीन प्रयोग इससे पूर्व किसी शहर में नहीं किया गया होगा यहां आकर शायर ने कमाल ही कर दिया है आनंद का मंगलमय शेर है यह। फिर आशिक की खबर लेता जीजा और रही सही कसर निकालती मोहल्ले की कानी कुतिया, मतलब हर एक ने मिलकर उसके बैंड बजाए। इसीलिए वह कह उठता है कि मत जाना उस गली में वरना नानी याद आ जाएगी। होली की अति सुंदर हजल, हंस-हंसकर पेट दुखने वाली। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह




गिरीश पंकज जी

वो होली में दिखेगी फिर तो नानी याद आएगी
मोहल्ले की वो मोटी और सयानी याद आएगी

गज़ब त्योहार होली का हमें रंगीन कर देता
हमें हर बार बचपन की कहानी याद आएगी


मज़े से रंग जो खेले वही बच्चा लुभाता है
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

मुझे होली में इक लड़की ने लोटा फेंक मारा था
मेरे माथे पे है उसकी निशानी याद आएगी


बड़ी मस्ती से खेलो रंग सबके संग में यारो
तुम्हें हर पल यही मस्ती सुहानी याद आएगी

अभी तुम जिंदगी में रंग जितने हो सको भर लो
बुढ़ापे में तुम्हें यह जिंदगानी याद आएगी


तुम्हारे दिल की जो रानी उसे होली में रंग देना
हमेशा फिर वही हरकत पुरानी याद आएगी

बड़ा रंगीन है त्योहार इसमें भंग मस्ती की
जरा इसका मज़ा लो नौजवानी याद आएगी


ये होली ढाई आखर प्यार के पंकज सिखाती है
हमें ताउम्र कबिरा की ये बानी याद आएगी
न जाने वह कौन है जिसको होली में देख कर शायर को नानी याद आ रही है हालांकि मिसरा सानी में बता दिया गया है कि वह किस शारीरिक संरचना की बात कर रहा है। यह बिल्कुल सच है कि होली का त्योहार हमें बार-बार बचपन की कहानी की याद दिला देता है। और जो बच्चा मजे से रंग खेलता हुआ दिखता है उसे देखते हैं तो हमें अपनी जवानी अपना बचपन अपना लड़कपन याद आ जाता है, वह जो बीत चुका है। बहुत सुंदर दोनों शेर। शायर को भी वह निशानी याद आती है जो बचपन में किसी के द्वारा होली पर लोटा फेंक कर मारने से बनी है। यह निशानियां ही जिंदगी का सरमाया होती हैं और तो क्या होता है हमारे जीवन में। आगे के तीनों शेर मानो होली का पूरा फ़लसफ़ा लिए हैं सच बात यही है कि आज मस्ती से रंगो में डूब जाइए क्योंकि आज जिंदगी में जितने रंग भर सकेंगे वही रंग बुढ़ापे में हमें इस जिंदगानी की याद दिलाएंगे। और जो कोई आपका है उसे होली में रंग दो क्योंकि फिर हमेशा वही हरकत पुरानी याद आती रहती है। और अंत में होली के बहाने दिया जाने वाला वही प्रेम का संदेश जो कबीर ने दिया था कि ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय उसी के साथ समाप्त होती है यह सुंदर ग़ज़ल। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह


नकुल गौतम

जुड़ी हर इक हमें उससे कहानी याद आएगी
जो बक्से में रखी कोई निशानी याद आयेगी

हमारा दम घुटेगा जब कभी शहरों की सड़कों पर
हवा हमको पहाड़ों की सुहानी याद आएगी


हम अब के गाँव लौटेंगे तो उन बचपन की गलियों में
किसी नुक्कड़ पे खोयी शादमानी याद आएगी

गली के मोड़ पर जिस घर की घण्टी हम बजाते थे
वहाँ रहती थी जो बूढ़ी सी नानी, याद आएगी


कुछ आलू काट कर खेतों में हमने गाड़ कर की थी
महीनों तक चली वो बाग़बानी याद आएगी

वो लड़की वक़्त से लड़कर अब औरत बन गयी होगी
लड़कपन की वो पहली छेड़खानी, याद आएगी


उसी छत से पतंगें इश्क़ की हमने उड़ाई थीं
अजी बस कीजिये, फिर वो कहानी याद आएगी

हमारे गाँव के रस्ते पर अब पुल बन गया लेकिन
नदी, जिस में कभी बहता था पानी, याद आएगी


बुढ़ापे के लिये अमरुद का इक पेड़ रक्खा है
"इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी"

गुज़रना उस गली से गर हुआ फाल्गुन महीने में
हमें पिचकारियों की मेज़बानी याद आएगी
सचमुच बक्से में रखी हुई उस निशानी को जब भी देखते हैं तो उससे जुड़ी हुई हर एक कहानी याद आ जाती है। यह नॉस्टेल्जिया का शेर है और हम सबके अंदर जो अतीत से जुड़े रहने का भाव है उसे गहरा कर रहा है। और गांव की ओर लौटने की याद दिलाते वह दोनों शेर जिसमें शहर की सड़कों पर दम घुट रहा है और गांव में बचपन की गलियों में किसी नुक्कड़ पर कोई शादमानी आज याद आ रही है। यह बचपन और गांव ही है जो हमारे अवचेतन में हमेशा एक मीठी याद बनकर बसा रहता है। और गली के मोड़ पर वह बूढ़ी नानी जिसके घर की घंटी बजा कर हम भागते थे वह किसके बचपन में नहीं हुई है हम सबके बचपन में यह कहानी घटित हुई है। बहुत सुंदर। और जिस छत से इश्क की पतंगे लड़ाई गई उस छत का जिक्र भी आना ऐसा लगता है मानो किसी ने जख्मों को खोल दिया है और हम कह उठते हैं मत बात करिए हमें पुरानी यादें आ जाएंगी। और उतनी ही खूबसूरती से बांधा गया है गिरह का शेर जिसमें बचा कर रखे गए एक अमरुद के पेड़ को इसलिए रखा है क्योंकि उसे देखकर अपनी जवानी शायद याद आ जाए। बहुत खूबसूरत सुंदर । और आखिर में उस गली से जब भी गुजरना होगा फागुन के महीने में तो याद आएगी वह मेजबानी जो पिचकारियों ने की थी। यादों में बसी हुई एक बहुत खूबसूरत ग़ज़ल जिसका गज़ल जिसका एक एक शेर यादों के गलियारे में हमें उंगली थाम कर टहलाता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।



अनिता तहज़ीब

कन्हैया तुमको गोकुल की कहानी याद आएगी
मिलोगे देवकी से,नंदरानी याद आएगी।

तुम्हें उल्फ़त की जब भी तर्जुमानी याद आएगी
जड़ों पर नाज़ होगा बागबानी याद आएगी


सुनाने को कहेंगे बच्चे जब क़िस्से फ़रिश्तों के
शहीदों की हमें तब ज़िंदगानी याद आएगी

मेरे कंधे सर अपना चाँद की परछाई रख देगी
तुम्हारे साथ गुज़री शब सुहानी याद आएगी


कली डाली पे मुरझाई मिलेगी सुब्ह उठने पर
उदास आँखों की भूली सी कहानी याद आएगी

यूं ही इक शाम थामे हाथ सूरज ढलता देखा था
नहीं सोचा था रंगत जाफरानी याद आएगी


दुशाला सात रंगों का बना बूँदों से मिल किरणें
हमें तो सीनरी वो आसमानी याद आएगी

महकती थी तुम्हारी बातें सुन के पास खिड़की के
नहाती चाँदनी से रातरानी याद आएगी


परिन्दे घर बनाने को लगे करने जमा तिनके
इन्हें देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
मतले का शेर कृष्ण और देवकी के साथ नंदरानी की याद दिलाता हुआ एक ऐसा शेर है जो बहुत खूबसूरती के साथ अपनी बात कह जाता है और मन में कहीं स्पर्श कर जाता है। अगला शेर जिसमें उल्फत की तर्जुमानी याद आने पर जड़ों पर नाज होना और बागवानी के याद आने की बात कही गई है बहुत अच्छे से कहा गया शेर है। अगले ही शेर में बच्चों के द्वारा फरिश्तों की कहानी सुनाई जाने पर अमर शहीदों की कहानी याद आ जाना, बहुत खूबसूरत बहुत सुंदर। उसके बाद के तीन शेर जो प्रेम के सुंदर रंगों से रंगे गए शेर हैं, कंधे पर चांद की परछाई का सर रख देना और किसी के साथ गुजारी हुई रात सुहानी याद आ जाना ।सुबह उठने पर डाली पर मुरझाई हुई कली मिलने पर उदास आंखों की भूली हुई कहानी याद आ जाना। किसी के साथ हाथों में हाथ थामे सूरज को ढलता हुआ देखा था कभी और तब नहीं सोचा था कि बाद में जब हाथों से हाथ छूट जाएगा तो बस यह जाफरानी रंग यादों में बसा रह जाएगा। सात रंगों का बना हुआ यह दुशाला और आसमानी सीनरी का याद आना, अंग्रेजी के शब्द का बहुत खूबसूरती के साथ उपयोग किया गया है। किसी की बातें सुनकर खिड़की के पास चांदनी से नहाई हुई रातरानी का जगमगा जाना, नजाकत से कहा गया खूबसूरत शेर। अंत में तिनके  जमा करते हुए परिंदों को देखकर अपनी जवानी का याद आ जाना गजब का दृश्य रचा गया है इस शेर में बहुत खूबसूरत। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।




रजनी नैयर मल्होत्रा

इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
वही बीती हुई फिर से कहानी याद आएगी

तेरे बिन फीकी होगी मेरी होली और दीवाली
जो तेरे संग बीती ज़िंदगानी याद आएगी


तेरे जाने से आँगन ये मेरा सूना रहेगा अब
महकती थी कभी जो रातरानी याद आएगी

खिलेंगे मन में फिर यादों के गुंचे सुन मेरी बिटिया
मुझे जब तोतली तेरी ज़ुबानी याद आएगी


नहीं अश्कों को तब ये रोक पाएँगी मेरी पलकें
मुझे बीते पलों की जब सुहानी याद आएगी
किसी को देख कर अपनी जवानी का याद आ जाना और जवानी के याद आते हैं किसी बीती हुई कहानी का याद आ जाना यही तो जीवन होता है। हम उम्र भर कुछ बीती हुई कहानियों को याद करके ही तो बिताते आते हैं। किसी एक के नहीं होने से हमारा सारा संसार फीका हो जाता है ना होली और ना दिवाली हमें वह आनंद देती है और हमेशा याद आती है वही जिंदगानी जो किसी खास के साथ देती थी। यह दोनों शेर शायद घर से विदा ले चुकी बेटी के लिए कहे गए हैं जिसमें मां कह रही है कि तेरे जाने से आंगन यह मेरा सूना रहेगा क्योंकि तू यहां रात रानी बनकर महकती थी चहकती थी और मन में यादों के गुंचे खिला उठेंगे जब बेटी की तोतली जुबान के बारे में मां अकेले में बैठकर याद करेगी और जब याद आएगी तो पलकें भला अश्कों को कैसे रोक पायेंगी, वह याद सुहानी दिल में पीड़ा बनकर उभरेगी और आंखों से आंसू बनकर बरसेगी। बहुत सुंदर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।



तो मित्रो ये आज के सात रचनाकार जिन्होंने आपको रंगों में सराबोर कर दिया है। होली का रंग इतना बिखर गया है कि यह रंग अब सिर चढ़ कर बोल रहा है। और हाँ अभी भी बहुत से लोग ऐसी सूचना प्राप्त हुई है कि होली की ग़ज़ल कहने में व्यस्त हैं। उनका भी बासी होली में स्वागत किया जाएगा। हमारी होली का रंग इसी प्रकार बरसता रहे। इसी प्रकार हम इस परिवार के साथ होली मनाते रहें। हम सब साथ-साथ रहें। हम सब में प्रेम और आत्मीयता के रंग इसी प्रकार बने रहें। बस यही प्रार्थना है। होली के बहाने हमारे इस पुराने चौपाल पर कुछ चहल-पहल हो जाती है। लोग आते हैं अपनी सुनाते हैं, दूसरों की सुनते हैं और उत्सव का रंग जम जाता है। आइये प्रार्थना करें, दुआ करें कि यह आवागमन बना रहे। हम यूँ ही हर त्योहार पर एकत्र होकर आनंद मनाते रहें। होली हो, दीवाली हो, ईद हो कोई भी त्योहार हो, हम सब आत्मीयता के साथ मिलजुल कर मनाते रहें। आनंद सब के साथ ही आता है। आनंद एक दूसरे के साथ ही आता है। आनंद वास्तव में साथ होने का ही दूसरा नाम है। तो आइये आनंद उठाते हैं। आज के इन सात रचनाकारों ने हमारे आनंद को बढ़ाने में जो अपनी तरफ़ से योगदान दिया है उसके लिए इनको दाद देते हैं, वाह वाह करते हैं। होली शुभ हो मंगलमय हो।












7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-03-2017) को "खेलो रंग" (चर्चा अंक-2898) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रंगों के पर्व होलीकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सचिन और गावस्कर ने एक बार फिर सबके छक्के छुड़ा दिए हैं..
    सौरभ जी, गिरीश जी, नकुल जी, अनीता जी रजनी जी कमाल की ग़ज़लें हैं. हार्दिक बधाई.

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  3. ग़ज़ब के रंग इस पेज के संग ...
    आज तो इतने सारे दिग्गज एक ही जगह की मज़ा आ गया ... गावस्कर सचिन के साथ गुंडप्पा यशपाल धोनी और न जाने किस किस के कमाल ... सभी की ग़ज़लें क़ाबिले तारीफ़ ... सौरभ जी का चुटीला अन्दाज़ गिरीश जी और नकुल जी का भी जवाब नहीं अनीता और रजनी जी के प्रेम के रंग सबको सरोवर कर गए ... सभी को होली की बहुत बहुत बधाई ...

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  4. भाई राकेश जी कहाँ-कहाँ से ले आते हैं इतना संसार। बेहद ख़ूबसूरत गीत कहा आपने। वाह-वाह और वाह।

    भाई सौरभ पाण्डेय जी इग्नोर करने से तो यादें पीछे पड़ जाती हैं, सताने लगती हैं। बहुत ख़ूबसूरत गिरह हुई, शायद इस स्थिति से लगभग हर किसी को कभी न कभी गुज़रना ही होता है। मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी दुनिया है और बेशक है। पगडंडियों से होकर राजपथ तक पहुँचते ही पगडंडियों की धूलभरी स्थिति नागवार हो जाती है। तुर्की-ब-तुर्की का मशिवरा बहुत ख़ूब है। कच-देवयानी का मिथक संदर्भ एक अच्छा शेर दे गया। वाह-वाह और वाह।

    द्विजेंद्र द्विज भाई तो इस बार नोट-आउट बैटिंग के मूड में है। बहुत ख़ूबसूरत हास्य ग़ज़ल होली के रंग में सार से पा तक डूबी हुई। वाह-वाह और वाह।


    गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल हास्य प्रधान होते हुए भी होली की ही तरह विभिन्न रंगों में डूबी हुई है।

    वो होली में दिखेगी फिर तो नानी याद आएगी
    मोहल्ले की वो मोटी और सयानी याद आएगी
    वाह-वाह और वाह।

    नकुल गौतम की ग़ज़ल ख़ूबसूरत तो है ही लेकिन
    कुछ आलू काट कर खेतों में हमने गाड़ कर की थी
    महीनों तक चली वो बाग़बानी याद आएगी
    की मासूमियत विशेष आकर्षक है।

    और अब नकुल उस उम्र में प्रवेश कर रहे हैं जब शायर कहता है कि

    वो लड़की वक़्त से लड़कर अब औरत बन गयी होगी
    लड़कपन की वो पहली छेड़खानी, याद आएगी

    सूखती जाती नदियों का दर्द बायाँ करता शेर

    हमारे गाँव के रस्ते पर अब पुल बन गया लेकिन
    नदी, जिस में कभी बहता था पानी, याद आएगी
    अच्छा दायरा है। वाह-वाह और वाह।


    अनिता तहज़ीब जी क्या लाजवाब शेर कहा है आपने

    सुनाने को कहेंगे बच्चे जब क़िस्से फ़रिश्तों के
    शहीदों की हमें तब ज़िंदगानी याद आएगी

    कली डाली पे मुरझाई मिलेगी सुब्ह उठने पर
    उदास आँखों की भूली सी कहानी याद आएगी
    बहुत दर्दभरा शेर हुआ

    इंद्रधनुष की ख़ूबसूरती समेटे है:
    दुशाला सात रंगों का बना बूँदों से मिल किरणें
    हमें तो सीनरी वो आसमानी याद आएगी

    महकती थी तुम्हारी बातें सुन के पास खिड़की के
    नहाती चाँदनी से रातरानी याद आएगी

    और अंत में

    परिन्दे घर बनाने को लगे करने जमा तिनके
    इन्हें देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी

    बहुत ख़ूबसूरत शेर हुआ।
    वाह-वाह और वाह।


    रजनी नैयर मल्होत्रा जी की ग़ज़ल का दूसरा शेर नारी भावनाओं की स्वाभाविक कोमलता लिए है। इस बार शेर कम सही पर मोहित करने में सफल है. वाह-वाह और वाह।

    जवाब देंहटाएं
  5. राकेश sir ने एक और बेहतर गीत प्रस्तुत किया।
    कितने ज़ावीए छुपे हुए हैं आपके कलम में। बहुत ही उम्दा प्रस्तुति। कालेज की गली में घुमाते हुए जुड़े के लिए फूल चुनवाने के लिए शुक्रिया। हमें भी अभी वो खत लिखना सीखना है जिनका ज़िक्र आपने किया है। वाह वाह वाह


    आदरणीय सौरभ sir की ग़ज़ल में सभी शेर् एक से बढ़ कर एक हुए हैं।

    चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
    कभी तो यार को ये बाग़वानी याद आयेगी
    ज़िन्दाबाद

    द्विज sir का यह अंदाज़ मेरे लिए नया है। आपकी पहली हास्य प्रधान ग़ज़ल पढ़ने का अवसर मिला। यह पारी भी लाजवाब रही।


    तमंचे पर किया मैंने वहाँ जो देर तक डिस्को
    तेरे घर की मुझे वो मेज़बानी याद आएगी
    यह शेर् पढ़ते ही आपको डिस्को करते इमेजिन किया... अब साक्षात देखने की इच्छा प्रबल हो रही है।

    गिरीश sir भी इसी सिलसिले में चौंकाते हुए पाये गए

    मुझे होली में इक लड़की ने लोटा फेंक मारा था
    मेरे माथे पे है उसकी निशानी याद आएगी
    क्या रंग है

    एक इंटरवल के बाद अनिता जी की ग़ज़ल पढ़ने को मिली।
    आप की ग़ज़ल पर क्या कहें। हम 20 जुलाई वालों की बात ही कुछ और होती है।

    अंत में रजनी मल्होत्रा जी की छोटी सी, और प्यारी सी ग़ज़ल मिली। बहुत खूब।

    इस कड़ी में मेरी ग़ज़ल को जगह मिली, बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।

    सादर
    नकुल

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  6. सभी ग़ज़लकारों के एक से बढ़कर एक ग़ज़ल हुए हैं वाह । बधाई सभी को होली के रंग से सराबोर ग़ज़ल के लिए
    आदरणीय पंकज भईया को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏

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