बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

आइये आज रूप चतुर्दशी या छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी का यह त्योहार मनाते हैं अपने पाँच रचनाकारों के साथ। आज का यह पर्व धर्मेंद्र कुमार सिंह, गुरप्रीत सिंह, नकुल गौतम, राकेश खंडेलवाल जी और डॉ. संजय दानी के नाम।

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मित्रों दीपावली का त्योहार हमारी वर्ष भर की थकान को दूर करने का एक अवसर होता है। थकान दूर कर आने वाले समय की लिये कुछ और ऊर्जा को एकत्र करने का समय। और इस अवसर का लाभ उठाने में चूकना नहीं चाहिए। असल में हम सब जीवन की जिन परेशानियों और कठिनाइयों से जूझ रहे होते हैं उनके कारण हमारे लिए बहुत आवश्यक होता है कि हम अपने आप को इन पर्वों के बहाने कुछ ताज़ा कर लें। हमारे अंदर जो जीवन शक्ति है वो भी समय समय पर अपने आपको कुछ रीचार्ज करना चाहती है। रोज़ाना के रूटीन से हट कर अपने लिए अपनों के लिए कुछ समय यदि हम निकाल लें तो हमारे लिए जीवन कुछ आसान हो जाएगा। तो मित्रों बस यह कि आनंद मनाइये और आनंद बिखेरिये।

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आइये आज रूप चतुर्दशी या छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी का यह त्योहार मनाते हैं अपने पाँच रचनाकारों के साथ। आज का यह पर्व धर्मेंद्र कुमार सिंह, गुरप्रीत सिंह, नकुल गौतम, राकेश खंडेलवाल जी और डॉ. संजय दानी के नाम।

deepawali

dharmendra kuma

deepawali[4]

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

बात ही बात में सादगी खिल उठी
एक बिन्दी लगा साँवली खिल उठी

गुदगुदी कर छुपीं धान की बालियाँ
खेत हँसने लगे भारती खिल उठी

यूँ तो दुबली हुई जा रही थी मगर
डोर मज़बूत पा चरखड़ी खिल उठी

बल्ब लाखों जले, खिन्न फिर भी महल
एक दीपक जला झोपड़ी खिल उठी

एक नटखट दुपट्टा मचलने लगा
उसको बाँहों में भर अलगनी खिल उठी

जब किसानों पे लिखने लगा मैं ग़ज़ल
मुस्कुराया कलम डायरी खिल उठी

उसने पूजा की थाली में क्या धर दिया
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी

deepawali[6]

धर्मेंद्र की ग़ज़लों का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूँ। लेकिन इस बार की ग़ज़ल बिल्कुल अलग ही मूड में है, रचनाकार का यह रंग एकदम चौंकाने वाला है। एक ही बात में सादगी खिल उठी एक बिन्दी लगा साँवली खिल उठी वाह क्या मतला है। धान की बालियों के गुदगुदी करने से भारत की आत्मा का खिल उठना, कमाल है, यह बड़ा शेर हो गया है शायर की सोच के कारण। इस सोच को सलाम। और महल का खिन्न होना तथा एक ही दीपक जलने से झोपड़ी का खिल उठना, उस्तादों की राह पर कहा गया शेर है, कबीर और रहीम के कई दोहे इसी सोच पर कहे गए हैं। और नटखट दुपट्टे को बाँहों में भर कर अलगनी का खिल उठना, वाह यह तो कमाल पर कमाल है, बहुत ही बारीक शेर है। किसानों पर ग़ज़ल लिखते शायर की डायरी और उसका कलम हँसने लगे तो समझिये लेखन सार्थक हो गया। और अंत में गिरह का शेर बिल्कुल ही अलग सोच का शेर है। मिसरा उला ही ऐसा है कि बस। ये जो अनडिफाइंड “क्या” होता है, यह रचना में ग़ज़ब सुंदरता लाता है, कैफ़ भोपाली साहब ख़ूब उपयोग करते थे इसका। बहुत ही सुंदर और बहुत सलीक़े से कही गई ग़ज़ल। वाह वाह क्या बात है।

deepawali[8]

Gurpreet singh

गुरप्रीत सिंह

deepawali[8]

कुमकुमे हँस दिए, रौशनी खिल उठी
ऐसे हर घर में दीपावली खिल उठी

धूप हर दिन मिली, तो कली खिल उठी
आप मिलने लगे, ज़िन्दगी खिल उठी

खेलते बालकों की हँसी खिल उठी
मानो सारी की सारी गली खिल उठी

आप के पांव घर में मेरे क्या पड़े
छत महकने लगी, देहरी खिल उठी

पहले मंज़र में थी बस ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ
ये नज़र आप से जो मिली, खिल उठी

सब से छुप के निकाली जो फ़ोटो तेरी
मेरे कमरे में तो चाँदनी खिल उठी

दर्द-ए-दिल आपने जो दिया, शुक्रिया
कहते हैं सब, मेरी शायरी खिल उठी

deepawali[8]

मतले में ही गिरह का शेर इस युवा शायर ने ख़ूब लगाया है, दीपावली की सारी भावनाओं को पूरी तरह व्यक्त करता हुआ। मतले के बाद दो हुस्ने मतला भी शायर ने कहे हैं। तीनों अलग अलग रंगों के हैं। धूप हर दिन मिली में प्रेम को बहुत सलीक़े से अभिव्यक्त किया है, किसी के मिलने से ज़िन्दगी का खिल उठना, यह ही तो जीवन है। प्रेम की धूप का प्रयोग बिल्कुल नया है, अभी तक प्रेम की चाँदनी होती थी। खेलते बालकों की हँसी से खिली हुई गली का मतला देर तक उदास कर गया, हाथ पकड़ कर एकदम बचपन में ले गया। बहुत ही सुंदर हुस्ने मतला। किसी के पाँव घर में पड़ते ही छत का महकना और देहरी का खिल उठना यही तो प्रेम होता है। पहले मंज़र में थी बस ख़िजाँ ही ख़िजाँ में मिसरा सानी में उस्तादों की तरह क़ाफिया लगाया है, बहुत ही सुंदर। किसी के फोटो को निकालते ही कमरे में चाँदनी का खिल उठनाबहुत ही सुंदर। और अंत में किसी के दर्दे दिल देने पर शुक्रिया कहना क्योंकि उससे शायर की शायरी खिला उठी है। बहुत ही सुंदर बात कही है, सचमुच प्रेम के बिना कोई भी रचनाकार रचनाकार हो ही नहीं सकता। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

deepawali[8]

Nakul Gautam

नकुल गौतम

deepawali[8]

वक़्त बस का हुआ तो घड़ी खिल उठी
रास्ते खिल उठे, हर गली खिल उठी

गाँव पहुँचा तो बस से उतर कर लगा
जैसे ताज़ा हवा में नमी खिल उठी

वो हवेली जो मायूस थी साल भर
एक दिन के लिए ही सही, खिल उठी

घर पहुँचते ही छत ने पुकारा मुझे
कुछ पतंगे उड़ीं, चरखड़ी खिल उठी

छत पे नीली चुनर सूखती देखकर
उस पहाड़ी पे बहती नदी खिल उठी

बर्फ़ के पहले फाहे ने बोसा लिया
ठण्ड से काँपती तलहटी खिल उठी

चीड़ के जंगलों से गुज़रती हवा
गुनगुनाई और इक सिंफ़नी खिल उठी

उन पहाड़ी जड़ी बूटियों की महक
साँस में घुल गयी, ज़िन्दगी खिल उठी

मुझ से मिलकर बहुत खुश हुईं क्यारियाँ
ब्रायोफाइलम, चमेली, लिली खिल उठी

थोड़ा माज़ी की गुल्लक को टेढ़ा किया
एक लम्हा गिरा, डायरी खिल उठी

शाम से ही मोहल्ला चमकने लगा
"कुमकुमे हँस दिये, रौशनी खिल उठी"

गांव से लौटकर कैमरा था उदास
रील धुलवाई तो ग्रीनरी खिल उठी

फिर मुकम्मिल हुई इक पुरानी ग़ज़ल
काफ़िये खिल उठे, मौसिकी खिल उठी

deepawali[8]

नकुल की कहन इस ग़ज़ल में बिल्कुल अलग अंदाज़ में सामने आई है। सबसे पहले तो मतले में ही जो कमाल किया है वो ग़ज़ब है, सचमुच प्रेम में और इंतज़ार में जो अकुलाहट होती है और उसके बाद जो मिलन की ठंडक होती है वह अलग ही आनंद देती है। वह हवेली जो मायूस थी साल भर शेर ने एक बार फिर से उदास कर दिया, घर में बच्चे आए हुए हैं मेरे भी, और मुझे पता है कि दीपावली के दो दिन बाद सबको जाना है। बहुत ही सुंदर बात कह दी है।और नीली चुनर को सूखती देखकर पहाड़ी नदी का खिल उठना, वाह क्या कमाल का अंदाज़ है इस शेर में, जिओ। बर्फ़ के पहले फाहे का बोसा, ग़ज़्ज़्ज़ब टाइप की बात कह दी है। चीड़ के जंगलों से गुज़रती हवा की बजती हुई सिम्फनी बहुत ही कमाल, यह आब्ज़र्वेशन ही होता है जो रचनाकार को अपने समकालीनों से कुछ आगे ले जाता है। प्रकृति की गंध से भरे अगले दोनों शेरों में जड़ी बूटियों से लेकर चमेली लिली तक सब कुछ महक राह है। और माज़ी की गुल्लक को टेढ़ा करने पर लम्हे का डायरी पर गिरना बहुत ही कमाल की बात कह दी है। गाँव लौटकर कैमरे की रील का धुलवाना और ग्रीनरी का खिल उठना, बहुत ही सुंदर क्या बात है, बहुत ही कमाल की ग़ज़ल। बहुत सुंदर वाह वाह वाह। (इस ग़ज़ल ने पलकों की कोरें नम कर दीं, क्यों ? ये बात ब्लॉग परिवार के वरिष्ठ सदस्य जानते हैं।)

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rakesh khandelwal ji

राकेश  खंडेलवाल जी

deepawali[8]

आ गया ज्योति का पर्व यह सामने
सज रही हर तरफ दीप की मालिका
हर्ष उल्लास में डूबी हर इक डगर
घर की अंगनाई महकी, बनी वाटिका
ढोल तासे पटाखों के बजने लगे
नाचने लग पड़ी हाथ में फुलझड़ी
रक्त –‘पंकज’  निवासिन के सत्कार में
बिछ रही है पलक बन,  सजी ‘पाँखुरी’

और ‘रेखा’ हथेली से बाहर निकल
अल्पनाओं में दहलीज की ढल हँसी
सांझ का रूप सजता हुआ देखकर
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठा

बारिशों में नहा मग्न मन शहर के
घर ने खिड़की झरोखों ने कपड़े बदल
चौखटों पर मुंडेरों पे दीपक रखे
फिर हवा से कहा अब चले, तो संभल
सज गए हैं सराफे, कसेरे सभी
झूमती मस्तियों में भरी बस्तियां
स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत हुई
धन की औ धान की और गृह लक्ष्मियाँ

अड़ गए टेसू चौरास्तो पर अकड़
साँझियां खिलखिला घूँघटों में हंसी
झूमकर प्रीत के ऐसे अनुराग में
कुमकुमे हंस दिए रोशनी खिल उठी

‘पाँखुरी’ ‘नीरजों’ की लगाती ‘तिलक’
एक ‘सौरभ’ हवा में उड़ाते हुए
आज ‘पारुल’ के पाटल ‘सुलभ’ हो गए
आंजुरी में भरे मुस्कुराते हुए
स्वाति नक्षत्र में आई दीपावली
हर्षमय हो गए ‘अश्विनी’, फाल्गुनी
‘द्विज’ ‘दिगंबर’ दिशाओं को गुंजित करें
और छेड़ें ‘नकुल’ शंख से रागिनी

द्वार ‘शिवना’ के आकर ‘तिवारी’ कहें
आज सबके लिए शुभ हो दीपावली
मन के उदगार ऐसे सुने तो सहज
कुमकुमे हंस दिए रोशनी खिल उठी

deepawali[8]

राकेश जी जब भी कुछ करते हैं तो बस कमाल ही करते हैं, इस बार भी उन्होंने मेरे दोनों परिवारों को अपने गीत में समेट लिया है। गीत का पहला ही छंद मानों दीपावली के उल्लास में डूब कर रचा गया है। ऐसा लगता है जैसे छंद में से गंध, स्वर, नाद सब कुछ फूट रहा है। बहुत ही कमाल। सांझ का रूप सजता हुआ देखकर, कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठा, वाह क्या बात है। बारिशों से नहा चुके शहर का कपड़े बदलना और फिर उसके हवा से यह कहना कि अब ज़रा संभल कर चले, वाह वाह वाह, क्या ही सुंदर चित्र बना दिया है। साँझियां खिलखिला घूँघटों में हंसी, यह एक पंक्ति जैसे गीतों के स्वर्ण युग में वापस ले जाती है, मन में कहीं गहरे तक उतर जाती है। और उसके बाद के बंद में ब्लॉग परिवार के सदस्यों का प्रतीक रूप में ज़िक्र आना मानों सोने पर सुहागे के समान है। यह ही कला है जो राकेश जी को बहुत आगे का कवि बना देती है। अंतिम पंक्तियों में शिवना का ज़िक्र आ जाना कुछ भावुक भी कर गया। राकेश जी इस ब्लॉग के आधार स्तंभ क्यों हैं, यह बात आज की यह रचना पढ़कर ही ज्ञात हो जाता है। बहुत ही सुंदर गीत, क्या बात है, वाह वाह वाह।

deepawali[8]

sanjay dani

डॉ. संजय दानी

deepawali[8] 

कुककुमे हंस दिये रौशनी खिल उठी
एक चिलमन उठी, तो गली खिल उठी

इश्क़ का जादू सर मेरे जबसे चढा
दिल के आकाश की दिल्लगी खिल उठी

जब छिपा चांद बादल में तो दोस्तों
सोच कर जाने क्या चांदनी खिल उठी

जो घिरी थी उदासी के दामन में कल
तुम नहा आये तो वो नदी खिल उठी

शायरी में मेरी तुमने तन्क़ीद की
तो बुझी सी मेरी शायरी खिल उठी

देख खुश जूतियों को तेरी जाने मन
बुद्धी के चेहरे पर बेकसी खिल उठी

deepawali[8]

मतले में ही किसी चिलमन के उठते ही सारी गली का खिल उठना और साथ में कुमकुमों का हँसना, रोशनी का खिल उठना, जैसे पूरा का पूरा दृश्य ही इस एक शेर से बन रहा है। सच में यही तो होता है कि किसी एक चेहरे पर पड़ा नकाब, किसी एक चिलमन के हटते ही ऐसा लगता है मानों पूरा आसपास का परिदृश्य ही बदल गया है। किसी एक का जादू यही तो होता है। चाँद का बादलों में छिप जाना और किनारों से झरती हुई चाँदनी का खिल उठना प्रकृति के बहाने वस्ल का दृश्य रचने का एक सुंदर प्रयास है। और अगले ही शेर में किसी के नहा आने पर नदी का खिल उठना यही तो वो बात है जिसके लिए कहा जाता है कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि। किसी के नहा लेने भर से नदी के खिल उठने की कल्पना केवल कवि ही कर सकता है। नहीं तो सोचिए कि बदलता क्या है कुछ भी नहीं, नदी तो वैसे ही बह रही है जैसे कल बह रही थी, लेकिन जो कुछ बदलता है वह नज़रिया होता है।नज़रिया ही तो प्रेम है और क्या है इसके अलावा। किसी एक द्वारा तन्कीद कर देने से शायरी का खिल उठना बहुत ही अच्छा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

deepawali[8]

मित्रों आज तो पाँचों रचनाकारों ने मिल कर दीपावली का रंग ही जमा दिया है। बहुत ही कमाल की ग़ज़लें कही हैं पाँचों रचनाकारों ने। आज रूप की चतुर्दशी पर ऐसी सुंदर रूपवान ग़ज़लें मिल जाएँ तो और क्या चाहिए भला। तो दाद दीजिए खुलकर और खिलकर। मिलते हैं अगले अंक में।

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20 टिप्‍पणियां:

  1. पांचों रचनाकार अपनी शेर में दीपावली की रौशनी बिखेरे ग़ज़ल लेकर आये हैं । बहुत उम्दा प्रस्तुति सबकी ।
    पंकज भईया को सादर प्रणाम 🙏 दीपावली के शुभ अवसर पर
    जगमगाती रचनाओं से रु-ब-रु कराने के लिए

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  2. गुदगुदी कर छुपीं धान की बालियाँ
    खेत हँसने लगे भारती खिल उठी

    धर्मेंद्र सज्जन जी बहुत खूब।

    दर्द-ए-दिल आपने जो दिया, शुक्रिया
    कहते हैं सब, मेरी शायरी खिल उठी

    गुरप्रीत जी ,वाह बहुत ज़ोरदार क्या मक़्ता कहा है । बाकी ग़ज़ल भी शानदार है।

    उन पहाड़ी जड़ी बूटियों की महक
    साँस में घुल गयी, ज़िन्दगी खिल उठी

    नकुल जी वाह क्या शेर कहा है ,बहुत खूब । यूं सारी ग़ज़ल भी अच्छी बनी है।

    पाँखुरी’ ‘नीरजों’ की लगाती ‘तिलक’
    एक ‘सौरभ’ हवा में उड़ाते हुए
    आज ‘पारुल’ के पाटल ‘सुलभ’ हो गए
    आंजुरी में भरे मुस्कुराते हुए
    स्वाति नक्षत्र में आई दीपावली
    हर्षमय हो गए ‘अश्विनी’, फाल्गुनी
    ‘द्विज’ ‘दिगंबर’ दिशाओं को गुंजित करें
    और छेड़ें ‘नकुल’ शंख से रागिनी

    राकेश जी के गीत का तो ज़ायका ही कुछ और है ,अदभुत सारी रंगीनियाँ समेटे हुए।

    जब छिपा चांद बादल में तो दोस्तों
    सोच कर जाने क्या चांदनी खिल उठी

    संजय जी, वाह क्या शेर कहा है ,बहुत खूब ।

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  3. धर्मेन्द्र कुमार सिंहः
    "बात ही बात में सादगी खिल उठी 
    एक बिन्दी लगा साँवली खिल उठी"

    बिन्दी से सांवली का खिल उठना......

    -----इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा !

    "गुदगुदी कर छुपीं धान की बालियाँ "....

    ------हाथ में आ के फिर से उड़ी तितलियाँ!

    ------विचारोत्तेजक मिसरा

    ख़ालिस ग़ज़ल के अश्आर निकाले है, बहुत ख़ूब।

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  4. गुरप्रीत सिंह:

    "धूप हर दिन मिली, तो कली खिल उठी 
    आप मिलने लगे, ज़िन्दगी खिल उठी"

    ----- धूप भी चाहिये खिलने के वास्ते
    सच कहा 'सिंह' जी शायरी खिल उठी।

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  5. नकुल गौतम:

    गली, नमी, सही, चरखड़ी, नदी तलहटी, सिंफनी, लिली, डायरी, मौसिकी...... रश्क आ रहा है आपके काफियों के इंतिख़ाब पर .......

    "फिर मुकम्मिल हुई इक पुरानी ग़ज़ल 
    काफ़िये खिल उठे, मौसिकी खिल उठी"।
    बहुत ख़ूब।

    जवाब देंहटाएं
  6. राकेश  खंडेलवाल जी:

    दीपो के त्यौहार का सजीव चित्रण करती रचना। आपके तरकश में तीरो की कोई कमी नही.....आज तो ज़द में शायर भी आ गये है, बहुत सारे!

    जवाब देंहटाएं
  7. डॉ. संजय दानी:

    # "कुककुमे हंस दिये रौशनी खिल उठी 
    एक चिलमन उठी, तो गली खिल उठी"

    # "जो घिरी थी उदासी के दामन में कल 
    तुम नहा आये तो वो नदी खिल उठी"

    ----- मतले से ले कर नदी किनारे तक का निहारना पसंद आया।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (19-10-2017) को
    "मधुर वाणी बनाएँ हम" (चर्चा अंक 2762)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. वाह धर्मेद्र जी,
    गुदगुदी कर छुपी........
    बहुत ही अछ्छा शेर
    गुरप्रीत जी, ग़ज़ल हेतु बधाई
    सब से छुप........ गज़ब
    नकुल जी,
    थोड़ा माजी......... बडा प्यारा शेर
    आदरणीय खंडेलवाल जी कमाल.
    डा संजय जी,
    जो घिरी थी उदासी......
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रणाम sir

    दीपवाली की हार्दिक शुभकामनाएं। मेरी ग़ज़ल को तरही में स्थान देने के लिए आभार।

    धर्मेन्द्र जी की ग़ज़ल में एक से बढ़कर एक शेर् पढ़ने को मिले।

    एक नटखट दुपट्टा मचलने लगा
    उसको बाँहों में भर अलगनी खिल उठी

    क्या कहने जनाब

    गुरप्रीत जी ने एक के बाद एक, तीन मतले पढ़वाये, क्या कहने...

    खेलते बालकों की हँसी खिल उठी
    मानो सारी की सारी गली खिल उठी
    बहुत ख़ूब

    राकेश sir का positivity से भरपूर एक और गीत.. और इस गीत में ब्लॉग के सदस्यों का ज़िक्र भी बेहतरीन अंदाज़ में हुआ,

    ‘पाँखुरी’ ‘नीरजों’ की लगाती ‘तिलक’
    एक ‘सौरभ’ हवा में उड़ाते हुए
    आज ‘पारुल’ के पाटल ‘सुलभ’ हो गए
    आंजुरी में भरे मुस्कुराते हुए
    स्वाति नक्षत्र में आई दीपावली
    हर्षमय हो गए ‘अश्विनी’, फाल्गुनी
    ‘द्विज’ ‘दिगंबर’ दिशाओं को गुंजित करें
    और छेड़ें ‘नकुल’ शंख से रागिनी

    क्या कहने sir।


    डॉ संजय दानी ने भी अपने खूबसूरत अशआर पढ़वाकर दिन बना दिया।

    जवाब देंहटाएं
  11. यह पोस्ट मैं चूक गया था।
    गुदगुदी कर छुपीं धान की बालियाँ
    खेत हँसने लगे भारती खिल उठी।

    बल्ब लाखों जले, खिन्न फिर भी महल
    एक दीपक जला झोपड़ी खिल उठी

    उसने पूजा की थाली में क्या धर दिया
    कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी

    वाहः, वाहः। धर्मेंद्र जी की कहाँ का दायरा बड़ा है और यही खूबसूरती रहती है इनकी ग़ज़लों में।

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  12. आप के पांव घर में मेरे क्या पड़े
    छत महकने लगी, देहरी खिल उठी

    पहले मंज़र में थी बस ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ
    ये नज़र आप से जो मिली, खिल उठी

    सब से छुप के निकाली जो फ़ोटो तेरी
    मेरे कमरे में तो चाँदनी खिल उठी

    दर्द-ए-दिल आपने जो दिया, शुक्रिया
    कहते हैं सब, मेरी शायरी खिल उठी

    आखरी शेर तो बहुत ही खूबसूरत बन पड़ा है।
    वाहः।

    जवाब देंहटाएं
  13. नकुल की ग़ज़ल पर क्या कहूँ।
    एक मुकम्मल, लाजवाब ग़ज़ल है। बेहद खूबसूरत।

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  14. राकेश जी का गीत हमेशा की तरह खूबसूरत। इतने सारे रिश्ते एक साथ, एक गीत में। वाहः।

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  15. कुककुमे हंस दिये रौशनी खिल उठी
    एक चिलमन उठी, तो गली खिल उठी
    क्या बात है, वाहः।

    जब छिपा चांद बादल में तो दोस्तों
    सोच कर जाने क्या चांदनी खिल उठी
    वाहः, क्या कंट्रास्ट है। वाहः।

    शायरी में मेरी तुमने तन्क़ीद की
    तो बुझी सी मेरी शायरी खिल उठी

    वाहः, क्या बात है।

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